“वचन पर चलनेवाले” आनन्दित लोग
“उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। परन्तु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं।” —याकूब १:२१, २२.
१. वर्ष १९९६ के हमारे वार्षिक-पाठ को कैसे लिया जाना है?
“वचन पर चलनेवाले बनो।” इस सरल कथन में एक शक्तिशाली संदेश है। यह बाइबल की “याकूब की पत्री” में से लिया गया है, और यह पूरे १९९६ के दौरान यहोवा के साक्षियों के वार्षिक-पाठ के तौर पर राज्यगृहों में प्रदर्शित किया जाएगा।
२, ३. यह क्यों उपयुक्त था कि याकूब अपने नाम की पत्री लिखता?
२ प्रभु यीशु का सौतेला भाई, याकूब प्रारंभिक मसीही कलीसिया में प्रमुख था। यीशु के पुनरुत्थान के बाद एक अवसर पर, हमारा प्रभु व्यक्तिगत रूप से याकूब के सामने और फिर सब प्रेरितों के सामने प्रकट हुआ। (१ कुरिन्थियों १५:७) बाद में, जब प्रेरित पतरस को क़ैद से चमत्कारिक रूप से छुड़ाया गया, तब उसने इकट्ठे हुए एक मसीही समूह को बताया: “याकूब और भाइयों को यह बात कह देना।” (प्रेरितों १२:१७) ऐसा प्रतीत होता है कि हालाँकि याकूब ख़ुद एक प्रेरित नहीं था, उसने यरूशलेम में शासी निकाय सभा की अध्यक्षता की जब प्रेरितों और प्राचीनों ने निर्णय किया कि अन्यजातीय धर्मान्तरितों को ख़तना करवाने की ज़रूरत नहीं थी। याकूब ने विषय का सार दिया, और पवित्र आत्मा द्वारा प्रमाणित निर्णय सभी कलीसियाओं को भेजा गया।—प्रेरितों १५:१-२९.
३ स्पष्टतया, याकूब के प्रौढ़ तर्क में काफ़ी दम था। लेकिन, उसने नम्रतापूर्वक स्वीकार किया कि वह स्वयं ‘परमेश्वर का और प्रभु यीशु मसीह का दास’ मात्र था। (याकूब १:१) उसकी उत्प्रेरित पत्री में आज मसीहियों के लिए ठोस सलाह और प्रोत्साहन की भरमार है। सुसमाचार का प्रचार विस्तृत रूप से “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” किए जाने के बाद, जनरल सॆस्टियस गैलस द्वारा यरूशलेम पर प्रारंभिक रोमी आक्रमण के तक़रीबन चार साल पहले यह पूरी की गयी थी। (कुलुस्सियों १:२३) वे कठिन समय थे, और यहोवा के सेवक पूरी तरह से अवगत थे कि उसका न्यायदण्ड यहूदी जाति पर कार्यान्वित किया जाने ही वाला था।
४. क्या बात सूचित करती है कि प्रारंभिक मसीहियों का परमेश्वर के वचन पर बहुत विश्वास था?
४ उन मसीहियों के पास पहले ही सम्पूर्ण इब्रानी शास्त्र और यूनानी शास्त्र का ज़्यादातर भाग था। प्रारंभिक लेखनों के उनके अनेक उल्लेखों के द्वारा जैसे सूचित होता है, मसीही बाइबल लेखकों का स्पष्टतया परमेश्वर के वचन में बहुत विश्वास था। उसी तरह, आज हमें परमेश्वर के वचन का मन लगाकर अध्ययन करने और उसे अपने जीवन में लागू करने की ज़रूरत है। धीरज धरने के लिए, हमें उस आध्यात्मिक शक्ति और साहस की ज़रूरत है जो पवित्र शास्त्र हमें प्रदान करता है।—भजन ११९:९७; १ तीमुथियुस ४:१३.
५. हमें आज ख़ास मार्गदर्शन की ज़रूरत क्यों है, और हम इसे कहाँ पाएँगे?
५ आज मनुष्यजाति ‘ऐसे भारी क्लेश’ की दहलीज़ पर खड़ी है “जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।” (मत्ती २४:२१) हमारी उत्तरजीविता ईश्वरीय मार्गदर्शन पर निर्भर करती है। हम इसे कैसे पा सकते हैं? परमेश्वर के आत्मा-उत्प्रेरित वचन की शिक्षाओं के प्रति अपने हृदय को ग्रहणशील बनाने के द्वारा। यह हमें प्राचीन समयों के यहोवा के निष्ठावान सेवकों की तरह ‘वचन पर चलनेवाले बनने’ की ओर ले जाएगा। हमें अध्यवसायी रूप से परमेश्वर के वचन को पढ़ना और अध्ययन करना चाहिए और इसे यहोवा की स्तुति में इस्तेमाल करना चाहिए।—२ तीमुथियुस २:१५; ३:१६, १७.
आनन्द सहित धीरज
६. परीक्षाओं का सामना करने में हमें क्यों आनन्द मिलना चाहिए?
६ अपनी पत्री की शुरूआत में, याकूब आनन्द का ज़िक्र करता है, जो परमेश्वर की आत्मा का दूसरा फल है। वह लिखता है: “हे मेरे भाइयो, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है। पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।” (याकूब १:२-४; गलतियों ५:२२, २३) यह कैसे कहा जा सकता है कि अनेक परीक्षाओं का सामना करना “पूरे आनन्द” की बात है? अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने भी कहा: “धन्य [“ख़ुश,” NW] हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है।” (मत्ती ५:११, १२) जैसे-जैसे हम अनन्त जीवन के लक्ष्य की ओर कर्मठता से बढ़ते जाते हैं, हमारे प्रयासों पर यहोवा की आशिष देखने में आनन्दपूर्ण संतुष्टि मिलती है।—यूहन्ना १७:३; २ तीमुथियुस ४:७, ८; इब्रानियों ११:८-१०, २६, ३५.
७. (क) धीरज धरने में हमें मदद कैसे मिल सकती है? (ख) अय्यूब की तरह, हमें कैसे प्रतिफल मिल सकता है?
७ स्वयं यीशु ने “उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था” धीरज धरा। (इब्रानियों १२:१, २) यीशु के साहसी उदाहरण की ओर ध्यानपूर्वक ताकते हुए, हम भी धीरज धर सकते हैं! अपनी पत्री के अन्त में जैसे याकूब ज़िक्र करता है, यहोवा खराई रखनेवालों को भरपूर प्रतिफल देता है। “देखो, हम धीरज धरनेवालों को धन्य [“ख़ुश,” NW] कहते हैं,” याकूब कहता है। “तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।” (याकूब ५:११) याद कीजिए कि कैसे अय्यूब की खराई का प्रतिफल दिया गया था जब उसे फिर से अच्छा स्वास्थ्य और प्रियजनों के साथ एक पूर्ण, सुखी जीवन का आनन्द दिया गया। यहोवा की अभी सेवा करने के आनन्द की पराकाष्ठा के रूप में, परमेश्वर के नए संसार के प्रतिज्ञात परादीस में खराई से धीरज धरना आपको समान आनन्द ला सकता है।
बुद्धि ढूँढना
८. हम सच्ची, व्यावहारिक बुद्धि कैसे पा सकते हैं, और इसमें प्रार्थना क्या भूमिका अदा करती है?
८ परमेश्वर के वचन का हमारा अध्यवसायी अध्ययन, साथ ही इसका व्यावहारिक अनुप्रयोग ईश्वरीय बुद्धि में परिणित होगा, जो हमें शैतान की मिट रही व्यवस्था के भ्रष्टाचार में परीक्षाओं को सहने में समर्थ करता है। ऐसी बुद्धि पाने के लिए हम कैसे आश्वस्त हो सकते हैं? याकूब हमें बताता है: “यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है।” (याकूब १:५, ६) हमें दृढ़ विश्वास के साथ और हार्दिक रूप से प्रार्थना करनी चाहिए कि यहोवा हमारे निवेदनों को सुनेगा और कि वह अपने नियत समय में और अपने तरीक़े से उनका जवाब देगा।
९. याकूब ईश्वरीय बुद्धि और उसके अनुप्रयोग का वर्णन कैसे करता है?
९ ईश्वरीय बुद्धि यहोवा की ओर से एक भेंट है। ऐसी भेंटों का वर्णन करते हुए, याकूब कहता है: “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।” बाद में अपनी पत्री में, याकूब सच्ची बुद्धि पाने के परिणाम को समझाता है जब वह कहता है: “तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] से उत्पन्न होती है। . . . जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।”—याकूब १:१७; ३:१३-१७.
१०. झूठा धर्म सच्चे धर्म की विषमता में कैसे है?
१० झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य में, चाहे मसीहीजगत में हो या अन्य देशों में, उपासकों का अकसर यह रिवाज़ होता है कि कुछ भजन गाएँ, दोहराई जानेवाली प्रार्थनाएँ सुनें, और शायद एक भाषण सुनें। आशा के संदेश की घोषणा करने के प्रति कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, क्योंकि अधिकांश धर्मों में भविष्य के लिए कोई उज्जवल प्रत्याशा नहीं है। परमेश्वर के मसीहाई राज्य की शानदार आशा का या तो कभी ज़िक्र नहीं किया जाता है या इसके बारे में उनकी समझ पूरी तरह से ग़लत है। यहोवा मसीहीजगत के अनुयायियों के बारे में भविष्यसूचक रूप से कहता है: “मेरी प्रजा ने दो बुराइयां की हैं: उन्हों ने मुझ बहते जल के सोते को त्याग दिया है, और, उन्हों ने हौद बना लिए, वरन ऐसे हौद जो टूट गए हैं, और जिन में जल नहीं रह सकता।” (यिर्मयाह २:१३) उनके पास सच्चाई का जल नहीं है। स्वर्गीय बुद्धि की कमी है।
११, १२. (क) ईश्वरीय बुद्धि द्वारा हमें कैसे प्रेरित होना चाहिए? (ख) हमें ईश्वरीय बुद्धि किसके सम्बन्ध में चिताती है?
११ आज यहोवा के साक्षियों के बीच स्थिति कितनी भिन्न है! परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ के साथ, वे उसके आनेवाले राज्य के सुसमाचार से पृथ्वी को भर रहे हैं। जिस बुद्धि की वे बात करते हैं वह परमेश्वर के वचन पर पूर्ण रूप से आधारित है। (नीतिवचन १:२०; यशायाह ४०:२९-३१ से तुलना कीजिए।) सचमुच, वे हमारे परमेश्वर और सृष्टिकर्ता के महान उद्देश्यों की घोषणा करने में सच्चे ज्ञान और समझ का व्यावहारिक इस्तेमाल करते हैं। यह हमारी इच्छा होनी चाहिए कि कलीसिया में सभी जन ‘सारे आत्मिक ज्ञान [“बुद्धि,” NW] और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाएँ।’ (कुलुस्सियों १:९) इस नींव के साथ, दोनों जवान और वृद्ध हमेशा ‘वचन पर चलनेवाले बनने’ के लिए प्रेरित होंगे।
१२ “जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ऊपर से आता है” वह हमें ऐसे पापों के बारे में चिताता है जो ईश्वरीय अस्वीकृति में परिणित हो सकते हैं। “हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो,” याकूब कहता है। “हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो। क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है।” जी हाँ, हमें ईश्वरीय सलाह को सुनने और उसे लागू करने में तत्पर और उत्सुक होना चाहिए। लेकिन, हमें इस ‘छोटे से अंग,’ अर्थात् जीभ के दुरुपयोग से सावधान रहना चाहिए। डींगें मारने, अनुचित गपशप, या हठ-धर्मी बातचीत के ज़रिए, जीभ लाक्षणिक रूप से “बड़े बन” को आग लगा सकती है। इसलिए हमें अपनी सब संगति में सुहावनापन और आत्म-नियंत्रण विकसित करने की ज़रूरत है।—याकूब १:१९, २०; ३:५.
१३. यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि हम ‘हृदय में बोए गए वचन’ को स्वीकार करें?
१३ “इसलिये,” याकूब लिखता है, “सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।” (याकूब १:२१) अपनी दिखावटी, भौतिकवादी, पहले-मैं जीवन-शैली और विकृत नीतियों के साथ यह लोभी संसार जल्द ही मिटनेवाला है। “पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (१ यूहन्ना २:१५-१७) तब यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि हम ‘हृदय में बोए गए वचन’ को स्वीकार करें! परमेश्वर के वचन द्वारा प्रदान की गयी बुद्धि इस मिट रहे संसार की बुराई की स्पष्ट विषमता में दिखती है। हमें उस बुराई का कोई भाग नहीं चाहिए। (१ पतरस २:१, २) हमें अपने हृदय में सच्चाई के लिए प्रेम और मज़बूत विश्वास को बोने की ज़रूरत है, ताकि हम यहोवा के धर्मी मार्गों से कभी विचलित नहीं होने के लिए दृढ़संकल्पी हों। लेकिन क्या परमेश्वर का वचन सुनना काफ़ी है?
“वचन पर चलनेवाले” बनना
१४. हम कैसे वचन के दोनों, “सुननेवाले” और उस पर “चलनेवाले” बन सकते हैं?
१४ याकूब १:२२ में हम पढ़ते हैं: “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।” “वचन पर चलनेवाले बनो”! यह विषय निश्चय ही याकूब की पत्री में विशिष्ट किया गया है। हमें सुनना चाहिए, फिर “सब कुछ वैसा ही” करना चाहिए! (उत्पत्ति ६:२२, NHT) अनेक लोग आज दावा करते हैं कि एक भाषण सुनना या कभी-कभी किसी रैतिक उपासना में भाग लेना पर्याप्त है, लेकिन वे इससे ज़्यादा कुछ नहीं करते। वे शायद सोचें कि जब तक वे अपने स्तरों के मुताबिक़ एक ‘अच्छा जीवन’ जीते हैं, वह पर्याप्त होगा। फिर भी यीशु मसीह ने कहा: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती १६:२४) सच्चे मसीहियों से परमेश्वर की इच्छा करने में यीशु के नमूने का अनुकरण करने के लिए आत्म-त्यागी कार्य और धीरज की स्पष्ट रूप से माँग की जाती है। उनके लिए आज परमेश्वर की इच्छा वैसे ही है जैसे पहली शताब्दी में थी जब पुनरुत्थित यीशु ने आदेश दिया: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” (मत्ती २८:१९) इस पहलू में आप कितना कर रहे हैं?
१५. (क) यह दिखाते हुए कि हम ‘वचन पर चलनेवालों’ के तौर पर ख़ुश कैसे बन सकते हैं, याकूब कौन-सा दृष्टान्त देता है? (ख) मात्र रैतिक उपासना काफ़ी क्यों नहीं है?
१५ यदि हम परमेश्वर के वचन में झाँकते रहते हैं, तो यह एक दर्पण की तरह हमें यह प्रतिबिम्बित करके दिखा सकता है कि हम किस प्रकार के व्यक्ति हैं। याकूब कहता है: “वह जो स्वतंत्रता के पवित्र नियम में झाँकता है और जो उसमें लगा रहता है, यह व्यक्ति, चूँकि वह एक भूलक्कड़ सुननेवाला नहीं, बल्कि कार्य पर चलनेवाला बन गया है, ऐसा करने में ख़ुश होगा।” (याकूब १:२३-२५, NW) जी हाँ, वह ‘वचन पर चलनेवाला’ एक ख़ुश व्यक्ति होगा। इसके अतिरिक्त, अपने मसीही जीवन की हर तफ़सील में “चलनेवाले” होना महत्त्वपूर्ण है। हमें यह सोचने में अपने आपको कभी धोखा नहीं देना चाहिए कि मात्र रैतिक उपासना काफ़ी है। याकूब हमें सच्ची उपासना के कुछ ऐसे पहलुओं को मानने की सलाह देता है जिन्हें शायद उत्साही मसीहियों ने भी अनदेखा कर दिया हो। वह लिखता है: “हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें।”—याकूब १:२७.
१६. किन तरीक़ों से इब्राहीम “यहोवा का मित्र” बना, और हम उसकी मित्रता कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
१६ मात्र यह कहना पर्याप्त नहीं है कि ‘मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ,’ और बातों को वहीं छोड़ दें। जैसे याकूब २:१९ कहता है: “तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्वर है: तू अच्छा करता है: दुष्टात्मा भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं।” याकूब ज़ोर देता है कि “विश्वास . . . यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है,” और इब्राहीम की ओर संकेत करते हुए कहता है: “विश्वास ने उस के कामों के साथ मिलकर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ।” (याकूब २:१७, २०-२२) इब्राहीम के कामों में अपने रिश्ते-नातों के लिए राहत प्रदान करना, पहुनाई दिखाना, इसहाक को बलिदान करने की तैयारी करना, और “स्थिर नेववाले नगर,” अर्थात् भावी मसीहाई राज्य की परमेश्वर की प्रतिज्ञा में अटल विश्वास की ‘सार्वजनिक रूप से घोषणा’ करना शामिल था। (उत्पत्ति १४:१६; १८:१-५; २२:१-१८; इब्रानियों ११:८-१०, १३, १४, NW; १३:२) उपयुक्त रूप से, इब्राहीम “[यहोवा] का मित्र कहलाया।” (याकूब २:२३) जैसे-जैसे हम उसके आनेवाले धार्मिकता के राज्य में अपने विश्वास और आशा की सक्रिय रूप से घोषणा करते हैं, हम भी ‘यहोवा के मित्रों’ में गिने जा सकते हैं।
१७. (क) राहाब क्यों ‘धर्मी ठहरायी’ गयी, और उसे प्रतिफल कैसे दिया गया? (ख) जो ‘वचन पर चलनेवाले बने,’ बाइबल उनकी कौन-सी लम्बी सूची प्रदान करती है? (ग) अय्यूब को प्रतिफल कैसे दिया गया, और क्यों?
१७ जो ‘वचन पर चलनेवाले बनते’ हैं, वे सचमुच ‘केवल विश्वास ही से नहीं, बरन कर्मों से भी धर्मी ठहरते हैं।’ (याकूब २:२४) राहाब ने यहोवा के महान कार्यों के सम्बन्ध में जो “वचन” सुना था, उसमें अपने विश्वास के साथ कर्मों को जोड़ा। उसने इस्राएली भेदियों को छुपाया और भाग निकलने में उनकी मदद की, और फिर बचाव के लिए उसने अपने पिता के घराने को इकट्ठा किया। पुनरुत्थान में, यह जानकर वह कितना आनन्द करेगी कि उसका विश्वास, जिसमें कार्य भी शामिल थे, उसके मसीहा की पुरखिन बनने की ओर ले गया! (यहोशू २:११; ६:२५; मत्ती १:५) इब्रानियों अध्याय ११ ऐसे अन्य लोगों की एक लम्बी सूची प्रदान करता है जो अपने विश्वास को प्रदर्शित करने में ‘चलनेवाले बने,’ और उन्हें भरपूर प्रतिफल दिया जाएगा। ना ही हमें अय्यूब को भूलना चाहिए, जिसने तीव्र परीक्षा में कहा: “यहोवा का नाम धन्य है।” जैसे हम पहले ही देख चुके हैं, उसका विश्वास और उसके कार्य बड़े प्रतिफल में परिणित हुए। (अय्यूब १:२१; ३१:६; ४२:१०; याकूब ५:११) उसी तरह, ‘वचन पर चलनेवालों’ के तौर पर आज हमारा धीरज यहोवा की स्वीकृति की मुसकराहट लाएगा।
१८, १९. काफ़ी समय से पीड़ित भाई “वचन पर चलनेवाले” कैसे बने, और उनकी गतिविधि क्या आशिष लायी है?
१८ ऐसे व्यक्तियों में जिन्होंने सालों के दौरान बहुत कुछ सहन किया है, हमारे पूर्वी यूरोप के भाई हैं। अब जबकि अनेक प्रतिबन्ध हटा दिए गए हैं, ये अपने नए वातावरण में सचमुच ‘वचन पर चलनेवाले बन’ गए हैं। सिखाने और संगठित करने में सहायता करने के लिए पड़ोस के देशों से मिशनरी और पायनियर आए। वॉच टावर संस्था की फिनलैंड शाखा और आस-पास की अन्य शाखाओं ने निर्माण-तरीक़ों में निपुण लोगों को भेजा, और उदार विश्वव्यापी भाईचारे ने नए शाखा दफ़्तरों और राज्यगृहों के निर्माण का अर्थप्रबन्ध किया है।—२ कुरिन्थियों ८:१४, १५ से तुलना कीजिए।
१९ काफ़ी समय से पीड़ित इन भाइयों ने क्षेत्र में कितने उत्साही रूप से अनुक्रिया दिखायी है! “प्रतिकूल समय” के दौरान उपलब्ध न होनेवाले अवसरों की मानो क्षतिपूर्ति करने के लिए ‘वे परिश्रम और यत्न कर रहे हैं।’ (१ तीमुथियुस ४:१०; २ तीमुथियुस ४:२, NW) उदाहरण के लिए, गत अप्रैल अल्बेनिया में, जहाँ दमन बहुत ही क्रूर रहा था, “जीवन इतनी समस्याओं से क्यों भरा हुआ है?” शीर्षक राज्य समाचार की पूरी सप्लाई मात्र तीन दिनों में वितरित की गयी थी। यह विवरण शानदार था जो यीशु की मृत्यु के स्मारक के बाद हुआ और इसमें ३,४९१ लोग उपस्थित हुए—उनके ५३८ सक्रिय प्रकाशकों से बहुत ज़्यादा।
२०. हाल की स्मारक उपस्थितियाँ क्या सूचित करती हैं, और अनेक लोगों की मदद कैसे की जा सकती है?
२० अन्य देशों ने भी स्मारक उपस्थितियों में उल्लेखनीय योगदान दिया है, जो हाल के वर्षों में बढ़कर १,००,००,००० से अधिक हो गयी है। अनेक जगहों में ऐसे नए जन ‘वचन पर चलनेवाले बन रहे’ हैं जिनका विश्वास स्मारक में उपस्थित होने और उसे मनाने के द्वारा मज़बूत हुआ है। क्या हम और नए संगियों को इस विशेषाधिकार के योग्य बनने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं?
२१. हमारे वार्षिक-पाठ के अनुसार, हमें कौन-से मार्ग पर दौड़ते जाना चाहिए, और किस लक्ष्य के साथ?
२१ पहली शताब्दी के उन उत्साही मसीहियों और तब से उन अनेकों की तरह, आइए हम अनन्त जीवन के, चाहे वह स्वर्गीय राज्य में हो या उसके पार्थिव क्षेत्र में, ‘लक्ष्य की ओर दौड़ते जाने’ में यत्न करने के लिए दृढ़संकल्पी हों। (फिलिप्पियों ३:१२-१४, NHT) उस लक्ष्य को प्राप्त करना हमारे हर प्रयास के योग्य है। फिर से केवल सुननेवाले हो जाने का यह समय नहीं है, लेकिन यह ‘हियाव बान्धकर काम करने’ का सबसे महत्त्वपूर्ण समय है। (हाग्गै २:४; इब्रानियों ६:११, १२) ‘हृदय में बोए गए वचन को ग्रहण करने’ की वजह से, ऐसा हो कि हम अभी और आनेवाले अनन्तकाल में ‘वचन पर चलनेवाले आनन्दित लोग बनें।’
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ हम कैसे आनन्द सहित धीरज धर सकते हैं?
◻ “जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ऊपर से आता है” वह क्या है, और हम उसके अनुसार कैसे चल सकते हैं?
◻ हमें क्यों ‘वचन पर चलनेवाले बनना है, और केवल सुननेवाले ही नहीं’?
◻ कौन-सी रिपोर्टों से हमें “वचन पर चलनेवाले” बनने के लिए प्रेरित होना चाहिए?
[पेज 17 पर तसवीरें]
ऐसा हो कि हम भी ईश्वरीय शिक्षा के प्रति अपने हृदय को ग्रहणशील बनाएँ
[पेज 18 पर तसवीरें]
प्रियजनों के साथ एक पूर्ण, सुखी जीवन फिर से दिए जाने के द्वारा अय्यूब की खराई का प्रतिफल दिया गया