यहोवा को आपके शादी के बंधन को मज़बूत करने और उसकी हिफाज़त करने दीजिए
“यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा।”—भज. 127:1ख.
1, 2. (क) 24,000 इसराएलियों ने क्यों उन्हें मिलनेवाली शानदार आशीष गवाँ दी? (ख) यह घटना आज हमारे लिए क्यों मायने रखती है?
वादा किए गए देश में कदम रखने से बस कुछ ही समय पहले, इसराएल राष्ट्र के हज़ारों पुरुषों ने “मोआबी लड़कियों के संग कुकर्म” किया। इसका नतीजा यह हुआ कि 24,000 इसराएली यहोवा के हाथों मारे गए। ज़रा सोचिए, सालों से वे इस देश में दाखिल होकर एक खुशहाल ज़िंदगी बिताने के सपने बुन रहे थे और अगर वे थोड़ा और धीरज धरते, तो उन सपनों को सच होते देखते। मगर अफसोस, ऐन वक्त पर उन्होंने अपने हथियार डाल दिए और अनैतिकता के फंदे में फँस गए, जिस वजह से उनके सारे सपने चकनाचूर हो गए।—गिन. 25:1-5, 9.
2 यह दिल दहलानेवाली घटना “हमारी चेतावनी के लिए लिखी गयी [थी] जिन पर दुनिया की व्यवस्थाओं का आखिरी वक्त आ पहुँचा है।” (1 कुरिं. 10:6-11) आज हमारे हालात भी उन इसराएलियों की तरह ही हैं। हम इन “आखिरी दिनों” के भी आखिरी वक्त में जी रहे हैं और परमेश्वर की नयी दुनिया में एक खुशहाल ज़िंदगी जीने के सपने बुन रहे हैं, जो अब बिलकुल कगार पर है। (2 तीमु. 3:1; 2 पत. 3:13) मगर दुख की बात है कि यहोवा के कुछ सेवकों ने इसराएलियों की तरह, ऐसे ऐन वक्त पर अपने हथियार डाल दिए हैं और अनैतिकता के फंदे में फँस गए हैं। अब वे अपने कामों के बुरे अंजाम भुगत रहे हैं और अगर वे पछतावा न दिखाएँ, तो फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी जीने का उनका सपना भी चकनाचूर हो जाएगा।
3. शादीशुदा जोड़ों को यहोवा के मार्गदर्शन और उसकी हिफाज़त की ज़रूरत क्यों है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
3 आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो सेक्स के पीछे पागल है, या यूँ कहें कि आज हर गली, हर नुक्कड़ पर अनैतिक काम हो रहे हैं। ऐसे खतरों से अपने पवित्र रिश्ते को बचाने के लिए पति-पत्नियों को यहोवा के मार्गदर्शन और उसकी हिफाज़त की सख्त ज़रूरत है। (भजन 127:1 पढ़िए।) इस लेख में हम ऐसे 5 तरीकों पर चर्चा करेंगे, जिन पर अमल करके एक जोड़ा अपने रिश्ते की हिफाज़त कर सकता है। वे हैं, अपने दिल की हिफाज़त करना, यहोवा के करीब आना, नयी शख्सियत पहनना, एक-दूसरे से खुलकर बातचीत करना और अपने साथी को उसका हक अदा करना।
अपने दिल की हिफाज़त कीजिए
4. कुछ मसीही कैसे अनैतिकता के फंदे में फँसे हैं?
4 आखिर एक मसीही अनैतिकता के फंदे में कैसे फँस सकता है? अकसर इसकी शुरूआत आँखों से होती है। यीशु ने समझाया: “हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस स्त्री के साथ व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती 5:27, 28; 2 पत. 2:14) कई मसीही भाई-बहनों ने पोर्नोग्राफी या अश्लील तसवीरें देखकर, अश्लील साहित्य पढ़कर या फिर इंटरनेट पर घिनौनी चीज़ें देखकर अपने नैतिक स्तरों के साथ समझौता किया है, जिस वजह से वे अनैतिकता के फंदे में फँसे हैं। फिर कुछ ऐसे हैं जो गंदी फिल्में या टीवी कार्यक्रम, या फिर अश्लील स्टेज शो देखकर इसके झाँसे में आ गए हैं। कुछ मसीही तो ऐसे भी हैं, जो नाइट-क्लबों, डांस-बार, वासना जगानेवाले मसाज सेंटरों या स्ट्रिप शो में भी गए हैं, जहाँ खुल्लम-खुल्ला घिनौने काम किए जाते हैं।
5. हमें अपने दिल की हिफाज़त करने की ज़रूरत क्यों है?
5 कुछ मसीही अनैतिकता के फंदे में इसलिए फँस जाते हैं, क्योंकि वे अपने साथी को छोड़ किसी और व्यक्ति की तरफ आकर्षित होने लगते हैं। हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ लोगों में संयम की कमी है और उन्हें हर तरह के अनैतिक कामों से खुशी मिलती है। और-तो-और, हमारा अपना दिल भी धोखेबाज़ और उतावला है। (यिर्मयाह 17:9, 10 पढ़िए।) ऐसे में एक मसीही का अपने साथी को छोड़ किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रोमानी रिश्ता जोड़ना बहुत आसान है। यीशु ने कहा था: ‘दुष्ट विचार, हत्याएँ, शादी के बाहर यौन-संबंध, व्यभिचार दिल से ही निकलते हैं।’—मत्ती 15:19.
6, 7. (क) एक बार जब दिल में गलत इच्छाएँ जड़ पकड़ लेती हैं, तो इसका क्या अंजाम हो सकता है? (ख) हम कैसे खुद को परमेश्वर के खिलाफ पाप करने से रोक सकते हैं?
6 जब दो शादीशुदा लोग, जो एक-दूसरे के जीवन-साथी नहीं हैं, एक-दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं, तो उनके दिलों में गलत इच्छाएँ पैदा होने लगती हैं। एक बार जब उनके दिलों में ये इच्छाएँ जड़ पकड़ लेती हैं, तो वे ऐसे विषयों पर एक-दूसरे से बात करने लगते हैं, जो उन्हें सिर्फ अपने पति या अपनी पत्नी से करनी चाहिए। धीरे-धीरे वे एक-दूसरे से मिलने के बहाने ढूँढ़ने लगते हैं। और जब वे मिलते हैं, तो ऐसे पेश आते हैं मानो गलती से मिले हों। फिर वे यह “गलती” बार-बार दोहराने की कोशिश करते हैं। उनसे एक-दूसरे के बगैर रहा नहीं जाता। जितना वे एक-दूसरे के साथ वक्त बिताते हैं, उनकी इच्छाएँ और भी ज़ोर पकड़ने लगती हैं। जितना ज़्यादा वे एक-दूसरे के करीब आते हैं, उतना ही नैतिक स्तरों पर बने रहने का उनका इरादा कमज़ोर पड़ता जाता है। वे जानते हैं कि वे जो कर रहे हैं, वह सरासर गलत है, फिर भी वे अपनी इच्छाओं को काबू में नहीं करते।—नीति. 7:21, 22.
7 जब लैंगिक इच्छाएँ उनके दिल में ज़ोर पकड़ने लगती हैं, तो यहोवा के नैतिक स्तर उनके दिलों से पूरी तरह हवा हो जाते हैं। ऐसे में उनकी बातें धीरे-धीरे एक-दूसरे का हाथ पकड़ने, चूमने, और गलत इरादे से एक-दूसरे को सहलाने और छूने में तबदील हो जाती हैं, जबकि ये चीज़ें सिर्फ अपने जीवन-साथी तक ही सीमित होनी चाहिए। वे “अपनी ही इच्छाओं से खिंचकर परीक्षाओं के जाल में” फँस जाते हैं। आखिरकार, जब उनकी इच्छाएँ गर्भवती होती हैं, यानी जब वे अपनी इच्छाओं को काबू में नहीं रख पाते, तो ये इच्छाएँ “पाप को जन्म देती” हैं। नतीजा, वे अपनी हवस के शिकार हो जाते हैं और व्यभिचार कर बैठते हैं। (याकू. 1:14, 15) कितने दुख की बात है। वे दोनों यहोवा के खिलाफ पाप करने से खुद को रोक सकते थे, बशर्ते उन्होंने शादी के रिश्ते की पवित्रता के लिए अपना आदर बढ़ाने के मामले में यहोवा की मदद कबूल की होती। यह कैसे किया जा सकता है?
यहोवा के करीब आते रहिए
8. यहोवा के साथ हमारी दोस्ती हमें अनैतिकता से कैसे बचा सकती है?
8 भजन 97:10 पढ़िए। यहोवा के साथ हमारी दोस्ती हमें अनैतिकता के फंदे में फँसने से बचा सकती है। वह कैसे? जब हम यहोवा के बेहतरीन गुणों के बारे में सीखते हैं, तो हम ‘परमेश्वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलने और प्यार की राह पर चलते रहने’ के लिए उभारे जाते हैं। इससे हमें “व्यभिचार और किसी भी तरह की अशुद्धता” को ठुकराने की ताकत मिलती है। (इफि. 5:1-4) जिन पति-पत्नियों को इस बात का एहसास है कि “परमेश्वर व्यभिचारियों और शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवालों को सज़ा देगा,” वे एक-दूसरे के वफादार बने रहने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।—इब्रा. 13:4.
9. (क) अनैतिक काम करने के दबाव के बावजूद, यूसुफ यहोवा के साथ अपनी दोस्ती कैसे बनाए रख पाया? (ख) हम यूसुफ की मिसाल से क्या-क्या सबक सीख सकते हैं?
9 कुछ मसीहियों ने काम खत्म होने के बाद अपने सहकर्मियों के साथ वक्त बिताकर अपने नैतिक स्तरों के साथ समझौता करने का खतरा मोल लिया है। आज़माइशें तो काम के वक्त भी आ सकती हैं। यूसुफ के बारे में सोचिए। काम के वक्त ही उसके मालिक, पोतीपर की पत्नी उस पर डोरे डाल रही थी। यूसुफ जवान था और दिखने में भी सुंदर था और शायद ही ऐसा कोई दिन गुज़रा हो जब पोतीपर की पत्नी ने उसे अपने झाँसे में लेने की कोशिश न की हो। एक दिन उसने अपनी हद पार कर ही दी। उसने “उसका वस्त्र पकड़कर कहा, मेरे साथ सो।” लेकिन यूसुफ जैसे-तैसे उससे पीछा छुड़ाकर भागा। किस बात ने यूसुफ को पोतीपर की पत्नी से आनेवाले दबाव के बावजूद, अपने नैतिक स्तरों के साथ समझौता न करने में मदद दी? यहोवा के साथ उसकी दोस्ती ने। उसने ठान लिया था कि वह यहोवा के साथ अपनी दोस्ती पर ज़रा भी आँच नहीं आने देगा। हाँ, इस वजह से उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, यहाँ तक कि कैद में भी जाना पड़ा, मगर यहोवा ने उसे आशीष दी। (उत्प. 39:1-12; 41:38-43) हम चाहे काम की जगह पर हों या कहीं और, हमें अपने साथी को छोड़ किसी और के साथ कभी अकेले में वक्त नहीं बिताना चाहिए। हमें ऐसे हर हालात से दूर रहना चाहिए, जिनमें हम अनैतिक काम करने के लिए लुभाए जा सकते हैं।
नयी शख्सियत पहन लो
10. नयी शख्सियत पहनने से पति-पत्नी के रिश्ते की हिफाज़त कैसे होती है?
10 जब एक व्यक्ति नयी शख्सियत पहनता है, जो “परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी है और परमेश्वर की नज़र में सच्चाई, नेकी और वफादारी की माँगों के मुताबिक है,” तो वह अनैतिक काम करने से दूर रह पाता है। (इफि. 4:24) जब हम नयी शख्सियत पहन लेते हैं, तो हम अपने शरीर के उन अंगों को ‘मार डालते’ हैं, “जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, व्यभिचार, अशुद्धता, काम-वासना, बुरी इच्छाएँ और लालच।” (कुलुस्सियों 3:5, 6 पढ़िए।) शब्द “मार डालो” क्या ही ज़बरदस्त तरीके से ज़ाहिर करते हैं कि हमें अपने दिलो-दिमाग से अनैतिक खयालों को उखाड़ फेंकने के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जो हमारे मन में बुरी इच्छाएँ पैदा करे। (अय्यू. 31:1) जब हम परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक ज़िंदगी जीते हैं, तो हम “दुष्ट बातों से घिन” करना और “अच्छी बातों से लिपटे” रहना सीखते हैं।—रोमि. 12:2, 9.
11. नयी शख्सियत पहनने से कैसे शादी का बंधन मज़बूत हो सकता है?
11 जब हम नयी शख्सियत पहनते हैं, तब हम यहोवा के गुणों को ज़ाहिर करते हैं। (कुलु. 3:10) जब पति-पत्नी ‘करुणा से भरपूर गहरा लगाव, कृपा, मन की दीनता, कोमलता और सहनशीलता’ दिखाते हैं, तो उनका शादी का बंधन मज़बूत होता है और यहोवा भी उन्हें आशीष देता है। (कुलु. 3:12) और जब वे “मसीह की शांति [को अपने] दिलों पर काबू” करने देते हैं, तो उनके बीच एकता और बढ़ जाती है। (कुलु. 3:15) जब पति-पत्नी को “एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव” होता है, तो उन्हें “एक-दूसरे का आदर करने में पहल” करने से खुशी मिलती है।—रोमि. 12:10.
12. आपकी राय में खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी बिताने के लिए कौन-कौन-से गुण ज़रूरी हैं?
12 जब एक जोड़े से पूछा गया कि किन गुणों ने उनकी शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल बनाने में मदद दी, तो सिड ने कहा: “सबसे ज़रूरी गुण है प्यार। इस गुण को हमने अपने अंदर बढ़ाने की हमेशा कोशिश की है। साथ ही, हमने पाया है कि कोमलता का गुण भी बहुत ज़रूरी है।” उसकी पत्नी, सोनिया उसकी बातों से पूरी तरह सहमत है। वह यह भी कहती है: “कृपा दिखाना भी एक बेहद ज़रूरी गुण है और हमने एक-दूसरे को नम्रता दिखाने की भी कोशिश की है, हालाँकि हमारे लिए ऐसा करना हमेशा आसान नहीं रहा है।”
एक-दूसरे से खुलकर बातचीत कीजिए
13. शादी के रिश्ते को मज़बूत बनाए रखने का एक अहम तरीका क्या है? और क्यों?
13 बेशक, शादी के रिश्ते को मज़बूत बनाए रखने का एक अहम तरीका है, एक-दूसरे से प्यार और आदर के साथ बात करना। कितने अफसोस की बात है कि कुछ पति-पत्नी अजनबियों से, यहाँ तक कि अपने पालतू जानवरों से बात करते वक्त मीठे-मीठे शब्द बोलते हैं, जबकि एक-दूसरे से बात करते वक्त उन्हें कड़वे-से-कड़वे शब्द ही सूझते हैं। जब एक रिश्ते में “जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज” जगह ले लेते हैं, तो वह रिश्ता धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ने लगता है। (इफि. 4:31) इसलिए हर वक्त एक-दूसरे पर ताने कसकर और एक-दूसरे में नुक्स निकालकर अपने रिश्ते को तबाह करने के बजाय, पति-पत्नी को चाहिए कि वे एक-दूसरे से इस तरह बात करें जिससे कृपा, कोमलता और करुणा झलके। ऐसा करने से उनका रिश्ता मज़बूत होगा।—इफि. 4:32.
14. जब पति-पत्नी के बीच तकरार हो जाती है, तो उन्हें क्या नहीं करना चाहिए?
14 बाइबल कहती है कि “चुप रहने का [भी एक] समय” है। (सभो. 3:7) बेशक, इसका यह मतलब नहीं कि जब पति-पत्नी के बीच कोई तकरार हो जाती है, तो वे बिलकुल ही चुप्पी साध लें और अपने साथी से बात ही न करें, क्योंकि बातचीत शादी के रिश्ते को मज़बूत बनाती है। जर्मनी में रहनेवाली एक पत्नी कहती है: “ऐसे हालात में चुप्पी साध लेने से आपके साथी को और दुख पहुँच सकता है।” फिर वह कहती है, “जब आप तनाव में हों, तो शांत रहना हमेशा आसान नहीं होता, लेकिन ऐसे में अपने दिल की सारी भड़ास निकाल देना भी सही नहीं। क्योंकि ऐसे में आपके मुँह से कुछ ऐसी बात निकल सकती है या आप कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे आपके साथी को ठेस पहुँच सकती है। इससे मामला और बिगड़ सकता है।” जी हाँ, पूरी तरह चुप्पी साधने या एक-दूसरे पर चीखने-चिल्लाने से मामले सुलझते नहीं, और उलझ जाते हैं। लेकिन जब पति-पत्नी बहस या झगड़ा किए बगैर, ठंडे दिमाग से जल्द-से-जल्द अपनी आपसी समस्याओं को सुलझाते हैं, तो उनका रिश्ता और भी मज़बूत होता है।
15. किस तरह अच्छी बातचीत से शादी का बंधन मज़बूत होता है?
15 जब पति-पत्नी एक-दूसरे से बात करने और एक-दूसरे को अपनी भावनाएँ बताने के लिए समय निकालते हैं, तो उनका रिश्ता और मज़बूत होता है। आप क्या कह रहे हैं बेशक यह बात अहमियत रखती है, मगर आप उसे कैसे कह रहे हैं यह बात भी उतनी ही अहमियत रखती है। इसलिए मुश्किल हालात में भी, अपने शब्दों के चुनाव से और अपने बात करने के लहज़े में प्यार झलकने दीजिए। इससे आपके साथी के लिए आपकी बात पर ध्यान देना आसान हो जाएगा। (कुलुस्सियों 4:6 पढ़िए।) वाकई, जब पति-पत्नी सिर्फ ऐसी बात करते हैं, “जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाने के लिए अच्छी हो” और जिससे एक-दूसरे को “फायदा पहुँचे,” तो उनका बंधन अटूट हो जाता है।—इफि. 4:29.
अपने साथी का हक अदा कीजिए
16, 17. पति-पत्नियों के लिए एक-दूसरे की भावनाओं और लैंगिक ज़रूरतों का खयाल रखना क्यों ज़रूरी है?
16 जब पति-पत्नी अपनी ज़रूरतों से बढ़कर अपने साथी की ज़रूरतों की फिक्र करते हैं, तो उनका रिश्ता मज़बूत होता है। (फिलि. 2:3, 4) पति और पत्नी दोनों को एक-दूसरे की भावनाओं और लैंगिक ज़रूरतों का खयाल रखना चाहिए।—1 कुरिंथियों 7:3, 4 पढ़िए।
17 दुख की बात है कि कुछ पति-पत्नी एक-दूसरे को प्यार ज़ाहिर नहीं करते या एक-दूसरे के साथ प्यार-भरे पल नहीं बिताते। और कुछ पुरुषों को लगता है कि कोमलता से पेश आना उनकी मर्दानगी के खिलाफ है। लेकिन बाइबल कहती है: “पतियो, तुम . . . अपनी-अपनी पत्नी के साथ समझदारी से जीवन बिताते रहो।” (1 पत. 3:7) एक पति को यह समझना चाहिए कि अपने साथी का हक अदा करने का मतलब सिर्फ लैंगिक संबंध रखना नहीं है, बल्कि उसे हर वक्त अपनी पत्नी के साथ प्यार और कोमलता से पेश आना चाहिए। अगर वह ऐसा करे, तो मुमकिन है कि उसकी पत्नी को शारीरिक संबंध रखते वक्त और भी खुशी मिलेगी। अगर दोनों एक-दूसरे को प्यार और कोमलता दिखाएँ, तो उनके लिए एक-दूसरे की भावनाओं और शारीरिक ज़रूरतों का खयाल रखना ज़्यादा आसान हो जाएगा।
18. पति-पत्नी अपने रिश्ते को मज़बूत कैसे कर सकते हैं?
18 हालाँकि एक पति या पत्नी के पास अपने साथी के साथ बेवफाई करने की कोई जायज़ वजह नहीं। लेकिन जब उसका साथी उसे प्यार ज़ाहिर नहीं करता, तो वह शायद किसी दूसरे शख्स से प्यार पाने और उसके साथ लैंगिक संबंध रखने के लिए लुभाया जा सकता है। (नीति. 5:18; सभो. 9:9) यही वजह है कि क्यों बाइबल पति-पत्नियों से कहती है: “तुम एक-दूसरे को इस हक से वंचित न रखो, लेकिन अगर . . . ऐसा करो भी, तो आपसी रज़ामंदी से सिर्फ कुछ वक्त तक के लिए करो।” क्यों? “ताकि शैतान तुम्हारे संयम की कमी की वजह से तुम्हें फुसलाता न रहे।” (1 कुरिं. 7:5) कितने दुख की बात होगी अगर एक जोड़ा शैतान को यह मौका दे कि वह उनकी “संयम की कमी” का फायदा उठाकर उनमें से किसी को व्यभिचार करने के लिए फुसलाए! जब पति-पत्नी अपने साथी को उनका हद अदा करते हैं, तो वे अपने फायदे की नहीं, मगर अपने साथी के फायदे की सोच रहे होते हैं। और जब वे अपना फर्ज़ समझकर नहीं, मगर प्यार की वजह से अपने साथी का हक अदा करते हैं, तो उनका आपसी लैंगिक संबंध उनके रिश्ते को और भी मज़बूत बनाता है।—1 कुरिं. 10:24.
अपने रिश्ते की हिफाज़त करते रहिए
19. हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए? और क्यों?
19 हम नयी दुनिया के इतने नज़दीक आ पहुँचे हैं। सोचिए अगर ऐसे ऐन वक्त पर हम अपने आध्यात्मिक हथियार डाल दें और मोआब की तराई में डेरा डाले हुए उन 24,000 इसराएलियों की तरह हम लैंगिक इच्छाओं के गुलाम बन जाएँ, तो यह कितनी बड़ी मूर्खता होगी! इस शर्मनाक और दिल दहलानेवाली घटना का ज़िक्र करने के बाद, बाइबल खबरदार करती है: “जो सोचता है कि वह मज़बूती से खड़ा है, वह खबरदार रहे कि कहीं गिर न पड़े।” (1 कुरिं. 10:12) इसलिए अगर हम अपने शादी के रिश्ते को मज़बूत करना चाहते हैं, तो कितना ज़रूरी है कि हम यहोवा और अपने साथी के वफादार बने रहें। (मत्ती 19:5, 6) आज पहले से कहीं ज़्यादा हमारे लिए यह ज़रूरी हो गया है कि हम ‘अपना भरसक करें कि आखिरकार उसके सामने निष्कलंक और बेदाग और शांति में पाए जाएँ।’—2 पत. 3:13, 14.