“शान्ति को ढूँढ़े और उसके यत्न में रहे”
“यहोवा की बड़ाई हो, जो अपने दास की शान्ति से खुश होते हैं!”—भजन ३५:२७, न्यू.व.
१. हम आज किस तरह की शान्ति का आनन्द लेते हैं?
इस विभक्त दुनिया में शान्ति से रहना कैसी हर्ष की बात है! “शान्ति का परमेश्वर,” यहोवा, की उपासना करना और उनकी “शान्ति की वाचा” की आशीषों में हिस्सेदार बनना कितनी आनन्दित बात है! ज़िन्दगी के दबावों के बीचोंबीच “परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है” जानना और ‘शान्ति के उस बन्ध’ का अनुभव करना, जो परमेश्वर के लोगों को एक कर देता है, चाहे उनकी राष्ट्रीयता, भाषा, प्रजाति या सामाजिक पृष्ठाधार जो भी हो, कैसी तरोताज़ा करनेवाली बात है!—१ थिस्सलुनीकियों ५:२३; यहेज़केल ३७:२६; फिलिप्पियों ४:७; इफिसियों ४:३.
२, ३. (अ) हालाँकि परमेश्वर के लोग आम तौर से सहन करेंगे, व्यक्तिगत मसीहियों को सम्भवतः क्या हो सकता है? (ब) बाइबल हमें क्या करने के लिए उकसाती है?
२ यहोवा के गवाह होने के तौर से, हम इस शान्ति को बहुमूल्य समझते हैं। बहरहाल, हम यह मानकर नहीं चल सकते हैं कि इसे कुछ न होगा। शान्ति यूँ ही बनी नहीं रहती, सिर्फ़ इसलिए कि हम एक मसीही मण्डली से संग-साथ कर रहे हैं या संयोगवश किसी मसीही परिवार के सदस्य हैं। हालाँकि शेष अभिषिक्त जन और “अन्य भेड़” वर्ग के उनके साथी एक ही झुण्ड के रूप में अन्त तक बने रहेंगे, फिर भी उन में से कुछ व्यक्ति शायद अपनी शान्ति को खोकर पथभ्रष्ट होंगे।—यूहन्ना १०:१६; मत्ती २४:१३; रोमियों ११:२२; १ कुरिन्थियों १०:१२.
३ प्रेरित पौलुस ने अपने समय के मसीहियों को चिताया: “हे भाइयों, सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम में किसी का मन दुष्ट और अविश्वासी हो जाए और तुम जीवित परमेश्वर से दूर हो जाओ।” (इब्रानियों ३:१२, न्यू.व.) यह चेतावनी बड़ी भीड़ पर भी लागू होती है। इसलिए बाइबल मसीहियों को उकसाती है: “मेल-मिलाप (शान्ति, न्यू.व.) को ढूँढ़े, और उसके यत्न में रहे। क्योंकि प्रभू (यहोवा, न्यू.व.) की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं और उसके कान उन की बिनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु (यहोवा, न्यू.व.) बुराई करनेवालों के विमुख रहता है।”—१ पतरस ३:१०-१२; भजन ३४:१४, १५.
“शरीर पर मन लगाना”
४. परमेश्वर के साथ हमारी शान्ति किस बात से भंग हो सकती है?
४ हमारा शान्ति के पीछे लगे रहने में क्या बाधा डाल सकता है? पौलुस एक बात का ज़िक्र करता है जब वह कहता है: “शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है।” (रोमियों ८:६, ७) “शरीर” से, पौलुस विरासत में पायी गयी पापपूर्ण प्रवृत्तियों समेत अपरिपूर्ण मानवों के तौर से हमारी पतीत अवस्था का ज़िक्र करता है। पतीत शरीर की प्रवृत्तियों के सामने झुकना हमारी शान्ति को भंग करेगा। अगर कोई मसीही अपश्चातापी रूप से अनैतिकता में लगा रहता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, नशीले पदार्थ लेता है, या अन्य किसी भी रीति से ईश्वरीय नियम को तोड़ देता है, तो वह परमेश्वर के साथ उस शान्ति को भंग कर देता है जिसका आनन्द उसने किसी वक़्त लिया था। (नीतिवचन १५:८, २९; १ कुरिन्थियों ६:९, १०; प्रकाशितवाक्य २१:८) इसके अलावा, अगर वह भौतिक चीज़ों को आध्यात्मिक चीज़ों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बनने देता है, तो परमेश्वर के साथ उसकी शान्ति घोर ख़तरे में पड़ती है।—मत्ती ६:२४; १ यूहन्ना २:१५-१७.
५. शान्ति की खोज में क्या शामिल है?
५ दूसरी ओर, पौलुस ने कहा: “आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है।” शान्ति आत्मा के फलों का एक हिस्सा है, और अगर हम अपने दिल को आध्यात्मिक बातों की क़दर करने को सिखाते हैं, और इस में परमेश्वर की आत्मा की मदद के लिए प्रार्थना करते हैं, फिर हम “शरीर पर मन लगाने” से बचे रहेंगे। (गलतियों ५:२२-२४) १ पतरस ३:१०-१२ में, शान्ति को धार्मिकता से जोड़ा गया है। (रोमियों ५:१) पतरस कहता है कि शान्ति की खोज में लगे रहने में ‘बुराई का साथ छोड़ना और भलाई करना’ शामिल है। परमेश्वर की आत्मा हमें ‘धर्म का पीछा करने’ और इस प्रकार परमेश्वर के साथ हमारी शान्ति को बनाए रखने की मदद कर सकती है।—१ तीमुथियुस ६:११, १२.
६. मण्डली में शान्ति के सम्बन्ध में प्राचीनों की एक ज़िम्मेदारी क्या है?
६ शान्ति की खोज मण्डली के प्राचीनों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। मिसाल के तौर पर, अगर कोई दूषित अभ्यासों को मण्डली में प्रस्तुत करना चाहे, तो प्राचीन अपराधी को फटकारने की कोशिश करने के द्वारा मण्डली की रक्षा करने के लिए ज़िम्मेदार है। अगर वह फटकार को स्वीकार करता है, तो वह अपनी शान्ति को फिर से हासिल करेगा। (इब्रानियों १२:११) अगर स्वीकार नहीं करता, तो उसे शायद निकाल बाहर करना पड़ेगा ताकि यहोवा के साथ मण्डली का शान्तिमय सम्बन्ध बनाए रखा जा सके।—१ कुरिन्थियों ५:१-५.
हमारे भाइयों के साथ शान्ति
७. पौलुस कुरिन्थियों को ‘शरीर पर मन लगाने’ के कौनसे प्रदर्शन के बारे में चेतावनी दी?
७ ‘शरीर पर मन लगाने’ से न सिर्फ़ परमेश्वर के साथ हमारी शान्ति खो दी जाएगी, लेकिन दूसरे मसीहियों के साथ हमारा अच्छा सम्बन्ध भी। पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा: “क्योंकि अब तक शारीरिक हो, इसलिए कि जब तुम में डाह और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं? और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते?” (१ कुरिन्थियों ३:३) डाह और झगड़ा शान्ति से बिलकुल विपरीत है।
८. (अ) उस व्यक्ति का क्या होगा जो मण्डली में डाह और झगड़ा उत्पन्न करेगा? (ब) परमेश्वर के साथ हमारी शान्ति किस बात पर निर्भर है?
८ डाह और झगड़ा को उत्पन्न करने के द्वारा मण्डली की शान्ति भंग करना बहुत ही गंभीर बात है। आत्मा के फल के तौर से शान्ति से सम्बद्ध एक गुण के बारे में बोलते हुए, प्रेरित यूहन्ना ने चेतावनी दी: “यदि कोई कहे, कि ‘मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूँ;’ और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।” (१ यूहन्ना ४:२०) उसी तरह, अगर कोई व्यक्ति भाइयों के बीच डाह या झगड़ा उत्पन्न करे, क्या वह सचमुच परमेश्वर के साथ शान्ति से हो सकता है? निश्चय ही नहीं! हमें प्रोत्साहित किया जाता है: “निदान, हे भाइयों, आनन्दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा।” (२ कुरिन्थियों १३:११) जी हाँ, अगर हम एक दूसरे के साथ शान्ति से रहते रहेंगे, तभी प्रेम और शान्ति का परमेश्वर हमारे साथ होंगे।
९. हमें किस तरह मालूम है कि मसीहियों में कभी-कभी असहमति और ग़लतफ़हमियाँ होंगी?
९ इसका यह मतलब नहीं कि मसीहियों के बीच कभी कोई ग़लतफ़हमियाँ न होंगी। पिन्तेकुस्त के बादवाले हफ़्तों में, नयी मसीही कलीसिया में दैनिक भोजन वितरण के बारे में मतभेद हुआ। (प्रेरितों ६:१) एक अवसर पर पौलुस और बरनबास के बीच हुए मतभेद के कारण “टंटा हुआ।” (प्रेरितों १५:३९) पौलुस को यूओदिया और सुन्तुखे को, जो निश्चय ही बढ़िया, उत्साही बहनें थीं, सलाह देनी पड़ी कि “वे प्रभु में एक मन रहें।” (फिलिप्पियों ४:२) तो कोई ताज्जुब की बात नहीं कि यीशु ने मसीहियों के बीच शान्ति भंग को सुलझाने की समस्या पर ब्योरेवार सलाह दी और ऐसी समस्याओं से अविलंब से निपटने की अत्यावश्यकता पर विशिष्ट बल दिया! (मत्ती ५:२३-२५; १८:१५-१७) उसने ऐसी सलाह न दी होती अगर उसने पूर्वानुमान न किया होता कि अपने अनुयायियों के बीच मुश्किलें होंगी।
१०. कभी-कभी मण्डली में कौनसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, और इस से सम्बद्ध सभी लोगों पर कैसी ज़िम्मेदारी आ जाती है?
१० तो फिर आज, यह बहुत ही सम्भव है कि कोई व्यक्ति किसी संगी मसीही के अनुचित शब्द से या कोई महसूस किए गए अपमान से नाराज़ हो जाए। एक व्यक्ति की विशिष्टता शायद दूसरे को तीव्र रूप से चिढ़ाएगी। व्यक्तित्वों के बीच शायद टक्कर होगी। कोई व्यक्ति प्राचीनों के किसी फ़ैसले से ज़ोरदार रूप से असहमत होगा। प्राचीनों के वर्ग में ही, एक प्राचीन शायद बहुत ज़्यादा दृढ़निश्चयी होगा और दूसरे प्राचीनों पर रोब जमाने की कोशिश करेगा। इस तथ्य के बावजूद कि ऐसी बातें हो जाती हैं, हमें फिर भी शान्ति को ढूँढ़कर उसका पीछा करना चाहिए। इन समस्याओं से एक मसीही रीति से निपटना ही चुनौती है, ताकि “मेल के बन्ध” को बनाए रख सके।—इफिसियों ४:३.
११. यहोवा ने कौनसे प्रबन्ध किए हैं जिन से हमें एक दूसरे के साथ शान्ति पाने का यत्न करने में मदद हो?
११ बाइबल कहती है: “यहोवा की बड़ाई हो, जो अपने दास की शान्ति से खुश होते हैं।” (भजन ३५:२७, न्यू.व.) जी हाँ, यहोवा चाहते हैं कि हम शान्ति से हों। इसलिए, हमारे बीच और उनके साथ शान्ति को बनाए रखने के लिए उन्होंने दो विशिष्ट प्रबन्ध किए हैं। एक है पवित्र आत्मा, जिसका एक फल शान्ति है। और साथ ही सहनशीलता, कृपा, नम्रता और आत्म-संयम जैसे सम्बद्ध शान्तिमय गुण, इसके अन्य फल हैं। (गलतियों ५:२२, २३) दूसरा प्रबन्ध ईश्वरीय बुद्धि है, जिसके बारे में हम पढ़ते हैं: “जो बुद्धि ऊपर से आती है वह पहले तो विशुद्ध होती है फिर शान्तिप्रिय, सन्तुलित, आज्ञापालन करने को तैयार, दया से और अच्छे फलों से भरपूर।”—याकूब ३:१७, १८.
१२. हमें क्या करना चाहिए अगर हमारे भाइयों के साथ हमारी शान्ति भंग हो गयी है?
१२ इसलिए, जब दूसरों के साथ हमारी शान्ति भंग हो जाती है, हमें उस बुद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए जो ऊपर से आती है, और जो सही है, वह करने की शक्ति के लिए हमें पवित्र आत्मा के लिए बिनती करनी चाहिए। (लूका ११:१३; याकूब १:५; १ यूहन्ना ३:२२) हमारी प्रार्थना के अनुरूप, फिर हम ईश्वरीय बुद्धि के स्रोत, बाइबल, में मार्गदर्शन के लिए देख सकते हैं, और साथ ही, धर्मशास्त्रों पर किस तरह अमल करना चाहिए, इस पर सलाह पाने के लिए उपलब्ध बाइबल साहित्य की भी जाँच करनी चाहिए। (२ तीमुथियुस ३:१६) हम शायद मण्डली के प्राचीनों से सलाह माँगना भी चाहेंगे। एक आख़री क़दम प्राप्त मार्गदर्शन पर अमल करना होगा। यशायाह ५४:१३ में कहा गया है: “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।” इस से सूचित होता है कि हमारी शान्ति उन बातों को अमल में लाने पर निर्भर है, जो यहोवा हमें सिखाते हैं।
“धन्य हैं वे, जो शान्तिप्रिय हैं”
१३, १४. (अ) यीशु की अभिव्यक्ति, “शान्तिप्रिय,” से क्या सूचित होता है? (ब) हम शान्ति सृष्टिकारी किस तरह बन सकते हैं?
१३ अपने पर्वत के उपदेश में, यीशु ने कहा: “धन्य हैं वे, जो शान्तिप्रिय हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे।” (मत्ती ५:९, न्यू.व.) यहाँ “शान्तिप्रिय” से एक ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र नहीं होता जो स्वभाव से सिर्फ़ शान्तमना है। मूल यूनानी शब्द का मतलब है “शान्ति सृष्टिकारी।” जब शान्ति भंग हो जाती है, तब शान्ति सृष्टिकारी शान्ति पुनःस्थापित करने में माहिर है। फिर भी, ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि शान्ति सृष्टिकारी पहले से ही शान्ति भंग करने से बचने की कोशिश करता है। ‘शान्ति उसके हृदय में राज्य करती है।’ (कुलुस्सियों ३:१५) अगर परमेश्वर के दास शान्ति सृष्टिकारी बनने की कोशिश करते हैं, तो उनके बीच समस्याएँ न्यूनतम स्तर पर रखी जाएँगी।
१४ एक शान्ति सृष्टिकारी बनने में हमारी अपनी कमज़ोरियों को पहचानना शामिल है। उदाहरण के लिए, कोई मसीही ग़रम मिज़ाजी हो सकता है या बहुत ही संवेदनशील और आसानी से बुरा माननेवाला हो सकता है। दबावों तले, उसके जज़बात शायद उसे बाइबल के सिद्धान्तों को भुलाने पर मजबूर करेंगे। यह अपरिपूर्ण मानवों में अप्रत्याशित नहीं। (रोमियों ७:२१-२३) फिर भी, बैर, झगड़ा, और क्रोधावेश को शरीर के कामों के अन्तर्गत सूचिबद्ध किया गया है। (गलतियों ५:१९-२१) अगर हम अपने में ऐसी प्रवृत्तियाँ पाए—या अगर कोई दूसरा इनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करे—तो हमें सच्चे दिल से और निरन्तर यहोवा की आत्मा को हम में आत्म-संयम और नम्रता विकसित करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। सचमुच, हर एक को अपने नए व्यक्तित्व के एक हिस्से के तौर से ऐसे गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।—इफिसियों ४:२३, २४; कुलुस्सियों ३:१०, १५.
१५. वह बुद्धि जो ऊपर से आती है, असंगत हठीलेपन से किस तरह विपरीत है?
१५ कभी-कभी, मण्डली या प्राचीनों का वर्ग ऐसे किसी व्यक्ति से अशान्त किया जाता है जो हठीला है, और हमेशा अपनी मनमानी करने पर अड़ा रहता है। यह सच है कि जब ईश्वरीय नियम का सवाल उठता है, तब एक मसीही को दृढ़निश्चयी, अटल भी होना चाहिए। और अगर हमें लगता है कि हमें कोई अच्छी बात सूझी है जिस से दूसरों का फ़ायदा हो सकता है, तो अपने आप को सुस्पष्ट रूप से व्यक्त करने में कोई बुराई नहीं, जब तक कि हम अपने कारण बता देते हैं। लेकिन हम दुनिया के उन लोगों के जैसे होना नहीं चाहते जो “मेल के खिलाफ़” हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-४, न्यू.व.) वह बुद्धि जो ऊपर से आती है, शान्तिप्रिय और तर्कसंगत है। जिन लोगों के कार्य हठीली अटलता की एक प्रणाली बनती है, उन्हें फिलिप्पियों को दी पौलुस की सलाह की ओर ध्यान देना चाहिए कि “अहंमन्यता से कुछ न करो।”—फिलिप्पियों २:३, न्यू.व.
१६. फिलिप्पियों की किताब में पौलुस की सलाह से हमें अहंमन्यता पर क़ाबू पाने के लिए किस तरह मदद मिलती है?
१६ उसी चिट्ठी में, पौलुस आग्रह करता है कि हमें, ‘दीनता से,’ निष्कपट रूप से ‘दूसरों को अपने से अच्छा समझना’ चाहिए। यह अहंमन्यता के बिलकुल विपरीत है। एक परिपक्व मसीही सबसे पहले अपने ही विचारों को जबरन लागू करने, अपनी इज़्ज़त रखने, या अपने ही पद और अधिकार को सुरक्षित रखने के बारे में नहीं सोचता। यह “अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता” करने के लिए पौलुस के प्रोत्साहन के विपरीत होगा।—फिलिप्पियों २:४; १ पतरस ५:२, ३, ६.
शान्तिमय शब्द
१७. जीभ के कौनसे ग़लत प्रयोग से मण्डली की शान्ति भंग हो सकती है?
१७ जो व्यक्ति शान्ति को ढूँढ़ता है, वह अपनी जीभ के प्रयोग में ख़ास तौर से सावधानी बरतता है। याकूब चेतावनी देता है: “जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगें मारती है: देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े बन में आग लग जाती है!” (याकूब ३:५) शरारती गपशप, दूसरों के पीठ पीछे उनकी आलोचना, निर्दय और कठोर शब्द, फुसफुसाहट और शिक़ायत, और साथ ही निजी फ़ायदे के लिए झूठी प्रशंसा—ये सब शरीर के कामों में से हैं जो परमेश्वर के लोगों की शान्ति को भंग कर देते हैं।—१ कुरिन्थियों १०:१०; २ कुरिन्थियों १२:२०; १ तीमुथियुस ५:१३; यहूदा १६.
१८. (अ) जीभ के असावधान ग़लत प्रयोग के मामले में, इस से सम्बद्ध हर व्यक्ति के लिए कौनसा बरताव सही है? (ब) जब ग़ुस्से में आकर कोई चोट पहुँचानेवाले शब्दों का प्रयोग करता है, तब परिपक्व मसीही कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
१८ यह सच है, याकूब ने कहा: “जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता।” (याकूब ३:८) परिपक्व मसीही भी कभी-कभी ऐसी बातें कहते हैं जिनके लिए उन्हें बाद में सच्चा पश्चाताप महसूस होता है। हम सब आशा करते हैं कि दूसरे लोग हमारी ऐसी ग़लतियों को माफ़ कर दें, जैसे हम उन्हें माफ़ कर देते हैं। (मत्ती ६:९, १०) कभी-कभी क्रोधावेश में आकर कुछ ठेस पहुँचानेवाले शब्द निकल सकते हैं। फिर, शान्ति सृष्टिकारी हमेशा यह याद रखेगा कि “कोमल उत्तर सुनने से जल-जलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है।” (नीविचन १५:१) अकसर, उसे गहरी साँस लेकर ग़ुस्सैल शब्दों के बदले ग़ुस्सैल शब्द इस्तेमाल करने से इनकार करना पड़ेगा। बाद में, जब सब का ग़ुस्सा ठण्डा हो गया हो, बड़े दिल का शान्ति सृष्टिकारी ग़ुस्से के आवेश में कही गयी बातों को नज़रंदाज़ करना जानता है। और एक विनयशील मसीही माफ़ी माँगने और उसके कारण पैदा हुई चोट को भरने की कोशिश करना जानेगा। “मैं माफ़ी चाहता (या चाहती) हूँ,” कहना नैतिक शक्ति का चिह्न है।
१९. सलाह देने के बारे में हम पौलुस और यीशु से क्या सीखते हैं?
१९ जीभ को शायद किसी व्यक्ति को सलाह देने के लिए इस्तेमाल किया जाना पड़े। पौलुस ने पतरस को सरे आम डाँटा जब उस ने अन्ताकिया में ग़लत रूप से बरताव किया। और यीशु ने सात कलीसियाओं को दिए अपने सन्देशों में शक्तिशाली सलाह दी। (गलतियों २:११-१४; प्रकाशितवाक्य, अध्याय २, ३) अगर हम इन मिसालों की जाँच करेंगे, तो हमें पता चलता है कि सलाह को इतना नरम होना नहीं चाहिए कि इसका मुद्दा ही खो जाए। फिर भी, यीशु और पौलुस न तो कठोर थे और न क्रूर। उनका सलाह उनकी अपनी कुण्ठा अभिव्यक्त करने का ज़रिया न था। वे अपने भाइयों को सचमुच मदद करने की कोशिश कर रहे थे। अगर सलाह देनेवाले को लगे कि अपनी जीभ अपने आपे में नहीं है, तो कुछ कहने से पहले वह शायद रुकने और ज़रा ठण्डा हो जाना पसन्द करेगा। वरना, वह शायद कठोरता से बोलेगा और उस समस्या से एक बदतर समस्या खड़ा करेगा, जिस से वह निपटने की कोशिश कर रहा है।—नीतिवचन १२:१८.
२०. हमारे भाई-बहनों से और उन के बारे में हम जो कुछ भी कहते हैं, वह किस से नियंत्रित होना चाहिए?
२० जैसे पहले ही ज़िक्र किया जा चुका है, शान्ति और प्रेम आत्मा के फलों के रूप से निकट रूप से सम्बन्धित हैं। अगर हम अपने भाइयों से जो कहे—या उनके बारे में जो कहे—हमेशा ही उनके प्रति हमारे प्रेम का प्रतिबिंब है, तो यह मण्डली की शान्ति में सहायक होगा। (यूहन्ना १५:१२, १३) हमारी बातों को “अनुग्रह सहित और सलोना” होना ही चाहिए। (कुलुस्सियों ४:६) उन्हें मानो, स्वादिष्ट और मन को आकर्षक होना चाहिए। यीशु ने सलाह दी: “अपने में नमक रखो, और आपस में मेल मिलाप से रहो।”—मरकुस ९:५०.
“यत्न करो”
२१. परमेश्वर के लोगों की साप्ताहिक मीटिंगों में, और सभाओं तथा सम्मेलनों के दौरान उनके बारे में क्या ज़ाहिर है?
२१ भजनकार ने लिखा: “देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें!” (भजन १३३:१) सचमुच, हमें अपने भाइयों के साथ होने में खुशी होती है, ख़ास तौर से हमारी साप्ताहिक मीटिंगों में और सभाओं तथा अधिक बड़े सम्मेलनों के दौरान। ऐसे अवसरों पर हमारी शान्ति बाहरवालों पर भी ज़ाहिर है।
२२. (अ) जल्द ही राष्ट्र सोचेंगे कि वे कौनसी झूठी शान्ति क़ायम कर रहे हैं, और इसका अंजाम क्या होगा? (ब) परमेश्वर की शान्ति के क़रार की असली शान्ति का नतीजा क्या होगा?
२२ जल्द ही राष्ट्र सोचेंगे कि वे यहोवा के बग़ैर शान्ति क़ायम कर रहे हैं। लेकिन जब वे कह रहे होंगे कि “सब कुशल है, और कोई भय नहीं,” विनाश अचानक उन सभी लोगों पर आएगा जो परमेश्वर के साथ शान्ति की अवस्था में नहीं हैं। (१ थिस्सलुनीकियों ५:३) उसके बाद, शान्ति का महान् राजकुमार परमेश्वर के साथ शान्ति के प्रारंभिक विलोपन के अनर्थकारी नतीजों से मनुष्यजाति को ठीक करने के काम को आगे बढ़ाएगा। (यशायाह ९:६, ७; प्रकाशितवाक्य २२:१, २) तब, परमेश्वर की शान्ति के क़रार से विश्वव्यापी रूप से प्रशान्ति क़ायम होगी। और जानवर भी बैर से विश्राम का अनुभव करेंगे।—भजन ३७:१०, ११; ७२:३-७; यशायाह ११:१-९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.
२३. अगर हम एक शान्तिमय नयी दुनिया की आशा को संजोए रखेंगे, तो हमें इसी वक़्त क्या करना चाहिए?
२३ वह क्या ही शानदार समय होगा! क्या आप उत्सुकता से उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? अगर कर रहे हों, तो “शान्ति को ढूँढ़ें और उसके यत्न में रहें।” अपने भाइयों के साथ, और ख़ासकर यहोवा के साथ अपने रिश्ते में शान्ति को अभी ढूँढ़ें। जी हाँ, “जब कि तुम इन बातों की आस देखते हो तो यत्न करो कि तुम शान्ति से उसके सामने निष्कलंक और निर्दोष ठहरो।”—इब्रानियों १२:१४; २ पतरस ३:१४.
क्या आपको याद है?
◻ यहोवा के साथ हमारी शान्ति किस बात से भंग हो सकती है?
◻ मण्डली में शायद किस क़िस्म की ग़लतफ़हमियों को सुलझाने की ज़रूरत होगी?
◻ शान्ति को ढूँढ़ने और उसके यत्न में रहने के लिए यहोवा ने हमारी मदद के लिए कौनसा प्रबन्ध किया है?
◻ कौनसी शारीरिक मनोवृत्तियों से मण्डली की शान्ति भंग हो सकती है, और हम किस तरह उनका विरोध कर सकते हैं?
[पेज 25 पर तसवीरें]
यहोवा के सिखलाए हुओं में शान्ति की भरमार है
[पेज 27 पर तसवीरें]
एकता से सेवा करनेवाले भाइयों की शान्ति कितनी मनोहर बात है!