चरवाहे जो “झुंड के लिये आदर्श” हैं
“परमेश्वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में है रखवाली करो . . . आनन्द से . . . मन लगा कर . . . झुंड के लिये आदर्श बनो।”—1 पतरस 5:2, 3.
1, 2. (क) यीशु ने प्रेरित पतरस को क्या काम दिया, और क्या यीशु का उस पर भरोसा करना सही था? (ख) यहोवा अपने ठहराए हुए चरवाहों के बारे में कैसा महसूस करता है?
यह घटना सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त से कुछ समय पहले की है। अभी हाल ही में यीशु का पुनरुत्थान हुआ था। एक दिन सुबह-सुबह गलील सागर के किनारे, पतरस और छः और चेलों को यीशु दिखायी दिया। उसने उन्हें अपने पास बुलाया और नाश्ता कराया। यीशु के जी उठने के बाद पतरस उससे कई बार मिल चुका था। यीशु को ज़िंदा देखकर पतरस खुश तो बहुत था, मगर अंदर-ही-अंदर उसे एक डर खाए जा रहा था। क्योंकि कुछ ही दिन पहले उसने सबके सामने कहा था कि यीशु से मेरा कोई वास्ता नहीं है, मैं उसको नहीं जानता। (लूका 22:55-60; 24:34; यूहन्ना 18:25-27; 21:1-14) पतरस अपने किए पर बहुत शर्मिंदा था। उसे डर था कि यीशु विश्वास की कमी के लिए उसे कहीं दुत्कार न दे। मगर यीशु ने ऐसा कुछ नहीं किया। इसके बजाय, उसने पतरस को अपनी “भेड़ों” या मसीही कलीसिया पर चरवाहा ठहराया और उनकी देखभाल करने और उन्हें खिलाने का काम दिया। (यूहन्ना 21:15-17) क्या यीशु का पतरस पर भरोसा करना सही था? जी हाँ, बिलकुल। बाइबल से हमें पता चलता है कि पतरस ने पहली सदी के यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों के साथ मिलकर मसीही कलीसिया की अच्छी देखभाल की। जब कलीसिया में भेड़ों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी और जब वे सख्त आज़माइशों से गुज़र रहे थे, तब भी पतरस और दूसरे चरवाहों ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभायी।—प्रेरितों 1:15-26; 2:14; 15:6-9.
2 आज भी, यहोवा ने अपने बेटे यीशु के ज़रिए अपनी भेड़ों यानी अपने लोगों के लिए आध्यात्मिक चरवाहे यानी प्राचीन ठहराए हैं। इन काबिल भाइयों को यह ज़िम्मेदारी दी गयी है कि दुनिया के इस सबसे खतरनाक दौर में परमेश्वर की भेड़ों को सही राह दिखाएँ। (इफिसियों 4:11, 12; 2 तीमुथियुस 3:1) क्या यहोवा का इन चरवाहों पर भरोसा करना सही है? जी हाँ, बिलकुल। इन चरवाहों ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभायी है और इसका सबूत यह है कि पूरी दुनिया में सच्चे मसीहियों के बीच शांति और भाईचारा देखा जा सकता है। बेशक इन चरवाहों से भी गलतियाँ होती हैं, जैसे पतरस से हुई थीं। (गलतियों 2:11-14; याकूब 3:2) मगर यह सब जानते हुए भी यहोवा इन भाइयों पर भरोसा करता है कि वे उन भेड़ों की देखभाल करेंगे जिन्हें “उसने अपने प्रिय पुत्र के रक्त से प्राप्त किया है।” (प्रेरितों 20:28, नयी हिन्दी बाइबिल) यहोवा को ये भाई बहुत प्यारे हैं और वह इन्हें “दो गुने आदर के योग्य” समझता है।—1 तीमुथियुस 5:17.
3. आध्यात्मिक चरवाहे अपना जोश और उमंग कैसे बनाए रखते हैं?
3 ये आध्यात्मिक चरवाहे अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी उमंग और पूरे जोश के साथ निभाते हैं और भेड़ों के लिए एक अच्छा आदर्श रखते हैं। लेकिन वे यह जोश और उमंग कैसे बनाए रखते हैं? इसके लिए ज़रूरी है कि वे परमेश्वर की पवित्र आत्मा का सहारा लें जो उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का बोझ उठाने के लिए ज़रूरी ताकत देती है। पतरस और उसके ज़माने के दूसरे चरवाहों ने भी पवित्र आत्मा का ही सहारा लिया था। (2 कुरिन्थियों 4:7) यही नहीं, पवित्र आत्मा इन भाइयों को आत्मा के फल पैदा करने में मदद करती है जैसे प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम। (गलतियों 5:22, 23) आइए देखें कि ये चरवाहे भेड़ों की देखभाल करते वक्त किन खास तरीकों से आत्मा के ये फल दिखाते हैं और सबके लिए एक बढ़िया आदर्श रखते हैं।
पूरे झुंड से ही नहीं, हर भेड़ से प्यार कीजिए
4, 5. (क) यहोवा और यीशु झुंड के लिए प्यार कैसे दिखाते हैं? (ख) आध्यात्मिक चरवाहे किन तरीकों से झुंड के लिए प्यार दिखाते हैं?
4 परमेश्वर की आत्मा के फलों में सबसे पहला है, प्यार। प्यार दिखाने में यहोवा ने चरवाहों के लिए एक बढ़िया मिसाल रखी है। कैसे? उसने अपने पूरे झुंड यानी कलीसिया में अपने लोगों के लिए भरपूर मात्रा में आध्यात्मिक भोजन का इंतज़ाम किया है। (यशायाह 65:13, 14; मत्ती 24:45-47) मगर उसका प्यार पूरे झुंड को खिलाने तक ही सीमित नहीं है। इस झुंड की हर भेड़ उसे बहुत प्यारी है और वह उसकी फिक्र करता है। (1 पतरस 5:6, 7) यीशु भी परमेश्वर के इस झुंड से बहुत प्यार करता है। यहाँ तक कि उसने उनके लिए अपनी जान कुरबान कर दी और वह एक-एक भेड़ को उसके “नाम” से जानता है।—यूहन्ना 10:3, 14-16.
5 आध्यात्मिक चरवाहे भी यहोवा और यीशु की तरह भेड़ों से प्यार करते हैं। कैसे? वे कलीसिया को “सिखाने में” दिन-रात मेहनत करते हैं। वे बाइबल से ऐसे भाषण तैयार करते हैं जिनसे न सिर्फ भेड़ों को आध्यात्मिक भोजन मिलता है बल्कि वे कई खतरों से भी बचायी जाती हैं। उनकी यह मेहनत हर किसी को दिखायी देती है। (1 तीमुथियुस 4:13, 16) मगर चरवाहे कलीसिया के दूसरे ऐसे काम भी करते हैं जिनकी ज़्यादातर भाई-बहनों को खबर तक नहीं होती। जैसे कलीसिया के काम का रिकॉर्ड रखना, संस्था के साथ पत्र-व्यवहार करना, कलीसिया के कार्यक्रम तैयार करना और दूसरी छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखना। इन सारे कामों की वजह से कलीसिया की सभाएँ और दूसरा काम-काज “उचित रीति से और क्रमानुसार” होता है। (1 कुरिन्थियों 14:40, NHT) कलीसिया के ज़्यादातर लोग इन कामों में लगनेवाली मेहनत को नहीं देख पाते और शायद ही उनकी इस मेहनत के लिए एहसानमंद होते हैं। सचमुच, भेड़ों के लिए प्यार की खातिर चरवाहे ऐसी निःस्वार्थ सेवा में लगे रहते हैं।—गलतियों 5:13.
6, 7. (क) चरवाहों के लिए अपनी भेड़ों को अच्छी तरह जानने का एक तरीका क्या है? (ख) कभी-कभी अपना सुख-दुःख किसी प्राचीन को बताना क्यों अच्छा होता है?
6 झुंड से प्यार करनेवाले एक मसीही चरवाहे को हरेक भेड़ की सलामती की फिक्र रहती है। (फिलिप्पियों 2:4) हर भेड़ को अच्छी तरह जानने का एक तरीका है कि चरवाहा उसके साथ प्रचार काम में जाए। यीशु भी जब प्रचार करता था, तो अकसर उसके चेले उसके साथ हुआ करते थे और उन मौकों का फायदा उठाकर वह उनका हौसला बढ़ाता था। (लूका 8:1, 2क) एक तजुरबेकार मसीही चरवाहा कहता है: “मैंने देखा है कि किसी भाई-बहन को अच्छी तरह जानने और उसकी हिम्मत बँधाने का सबसे अच्छा तरीका है, उसके साथ प्रचार में जाना।” अगर आप काफी समय से किसी प्राचीन के साथ प्रचार नहीं गए, तो क्यों न जल्द-से-जल्द उनके साथ जाने का पक्का इंतज़ाम करें।
7 यीशु को अपने चेलों से बहुत प्यार था, इसलिए वह उनकी खुशी देखकर खुश होता था और उनके दुःख-दर्द में उनके साथ रहता था। जब उसके 70 चेले प्रचार करके लौटे तो उनकी खुशी देखकर यीशु भी “आनन्द से भर गया।” (लूका 10:17-21) मगर जब उसके दोस्त लाजर की मौत हुई और यीशु ने देखा कि लाजर की बहन मरियम और उसके नाते-रिश्तेदार दुःख से कितने व्याकुल हैं, तो वह भी उनके साथ “रो पड़ा।” (यूहन्ना 11:33-35, NHT) उसी तरह आज भेड़ों की परवाह करनेवाले चरवाहे उनके सुख-दुःख में उनका साथ देते हैं। वे “आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द” करते हैं और “रोनेवालों के साथ” रोते हैं और इस तरह उनके लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं। (रोमियों 12:15) अगर आप किसी बात को लेकर खुश हैं, तो इस बारे में अपने मसीही चरवाहों को बताइए। आपकी खुशी से उन्हें भी हिम्मत मिलेगी। (रोमियों 1:11, 12) और अगर आप तकलीफ में हैं, तो यह भी उन्हें बताइए ताकि वे आपको तसल्ली दे सकें और आपकी हिम्मत बढ़ा सकें।—1 थिस्सलुनीकियों 1:6; 3:1-3.
8, 9. (क) एक प्राचीन अपनी पत्नी को प्यार का एहसास कैसे दिलाता था? (ख) एक चरवाहे का अपने परिवार के लिए प्यार दिखाना किस बात का सबूत देता है?
8 मसीही चरवाहा अपने परिवार के साथ जिस तरह पेश आता है उससे भी वह झुंड के लिए अपना प्यार एक खास तरीके से ज़ाहिर करता है। (1 तीमुथियुस 3:1, 4) अगर वह शादीशुदा है तो अपनी पत्नी के साथ जिस तरह प्यार और आदर से पेश आता है, उससे कलीसिया के दूसरे शादीशुदा भाइयों के लिए अच्छी मिसाल रखता है। (इफिसियों 5:25; 1 पतरस 3:7) आइए एक प्राचीन की मिसाल देखें जो अपनी मौत से पहले 20 से ज़्यादा साल तक एक चरवाहे की ज़िम्मेदारी निभाता रहा। उसकी पत्नी लिंडा उसे याद करते हुए कहती है: “मेरे पति हमेशा कलीसिया की देखरेख में लगे रहते थे। लेकिन वे मुझे हमेशा यह एहसास दिलाते थे कि मेरा साथ उनके लिए कितना ज़रूरी है। मेरी मेहनत के लिए अकसर मेरी तारीफ किया करते थे। और वे अपने फुरसत के पल मेरे साथ बिताते थे। इस वजह से मुझे कभी प्यार की कमी महसूस नहीं हुई। न ही मुझे इस बात की शिकायत थी कि वे कलीसिया की सेवा में इतना वक्त लगाते हैं।”
9 जिन प्राचीनों के बच्चे हैं, अगर वे उन्हें प्यार से अनुशासन देते हैं और उनके अच्छे कामों के लिए उन्हें अकसर शाबाशी देते हैं, तो ऐसे प्राचीन कलीसिया के बाल-बच्चेदार भाइयों के लिए एक अच्छा आदर्श रखते हैं। (इफिसियों 6:4) सच तो यह है कि एक प्राचीन का अपने परिवार के लिए प्यार इस बात का सबूत है कि पवित्र आत्मा ने उसे ज़िम्मेदारी के जिस पद पर ठहराया है, वह अब भी उस ज़िम्मेदारी की माँगों पर खरा उतर रहा है।—1 तीमुथियुस 3:4, 5.
अच्छी बातचीत से खुशी और शांति बढ़ाइए
10. (क) आज किस वजह से कलीसिया की खुशी और शांति को खतरा हो सकता है? (ख) किस मसले की वजह से शुरू की मसीही कलीसिया की शांति खतरे में थी और उस मसले का हल कैसे किया गया?
10 पवित्र आत्मा मसीहियों में खुशी और शांति (या आनंद और मेल) जैसे फल भी पैदा कर सकती है, चाहे वह प्राचीनों का निकाय हो या पूरी कलीसिया हो। लेकिन अगर मसीहियों में अच्छी और खुली बातचीत न हो, तो उनके बीच यह खुशी और शांति ज़्यादा वक्त तक नहीं टिक सकती। सदियों पहले, राजा सुलैमान ने कहा था: “बिना परामर्श के योजनायें विफल होती है।” (नीतिवचन 15:22, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) लेकिन अगर खुलकर सलाह-मशविरा किया जाए और एक-दूसरे के लिए लिहाज़ दिखाया जाए, तो इससे खुशी बढ़ती है और शांति बनी रहती है। इसकी एक मिसाल, शुरू की मसीही कलीसिया में देखी जा सकती है। मसीहियों को खतना करवाना चाहिए या नहीं, इस मसले की वजह से कलीसिया की शांति खतरे में थी। इसलिए यरूशलेम में मौजूद शासी निकाय ने इस मसले का हल ढूँढ़ने के लिए पवित्र आत्मा का सहारा लिया। इस मसले के बारे में उन्होंने खुलकर अपनी-अपनी राय ज़ाहिर की। ज़ोरदार बहस के बाद, वे एक ऐसे नतीजे पर पहुँचे जिससे सब सहमत थे। जब उन्होंने सभी कलीसियाओं को अपना यह फैसला लिखकर भिजवाया, तो भाई “उस से प्रोत्साहन पाकर अति आनन्दित हुए।” (NHT) (प्रेरितों 15:6-23, 25, 31; 16:4, 5) उनकी खुशी बढ़ गयी और शांति बनी रही।
11. प्राचीन, कलीसिया की खुशी और शांति कैसे बनाए रख सकते हैं?
11 उसी तरह आज भी चरवाहे एक-दूसरे के साथ अच्छी बातचीत करके कलीसिया की शांति और खुशी बढ़ाते हैं। जब किसी समस्या की वजह से कलीसिया की शांति को खतरा होता है, तो प्राचीन अपनी बैठक में खुलकर इस बारे में अपनी-अपनी राय ज़ाहिर करते हैं। और जब कोई प्राचीन अपनी राय देता है तो बाकी उसकी बात ध्यान से सुनते हैं। (नीतिवचन 13:10; 18:13) वे परमेश्वर से प्रार्थना में पवित्र आत्मा की आशीष माँगते हैं और फिर, बाइबल के सिद्धांतों और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की लिखी हुई हिदायतों के मुताबिक फैसला करते हैं। (मत्ती 24:45-47; 1 कुरिन्थियों 4:6) जो फैसला किया जाता है उस पर सभी प्राचीन यह मानकर रज़ामंद होते हैं कि परमेश्वर की पवित्र आत्मा की अगुवाई के मुताबिक यही फैसला सही है, फिर चाहे उनकी अपनी राय न मानी गयी हो। इस तरह प्राचीन नम्रता दिखाकर कलीसिया की खुशी और शांति बनाए रखते हैं और भेड़ों के लिए अच्छी मिसाल रखते हैं कि कैसे परमेश्वर के साथ-साथ चलते वक्त उन्हें नम्र होना चाहिए। (मीका 6:8) आपके बारे में क्या? कलीसिया के चरवाहे बाइबल के आधार पर जो फैसला करते हैं, क्या आप नम्रता से उन फैसलों को मानकर सहयोग देते हैं?
धीरज और कृपा के गुण दिखाइए
12. अपने प्रेरितों के साथ पेश आते वक्त यीशु को सब्र और कृपा जैसे गुण दिखाने की ज़रूरत क्यों थी?
12 यीशु के बारह चेलों में कई खामियाँ थीं, फिर भी उसने उन्हें सिखाते वक्त सब्र (धीरज) और कृपा जैसे गुण दिखाए। उसने कई बार उनके मन में यह बात बिठाने की कोशिश की कि नम्र होना कितना ज़रूरी है। (मत्ती 18:1-4; 20:25-27) ऐसी ही कोशिश यीशु ने अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात को भी की थी। उसने अपने चेलों के पैर धोकर उन्हें नम्रता का सबक सिखाया। मगर इसके फौरन बाद “उन में यह विवाद छिड़ गया कि हम में किस को सब से बड़ा समझा जाना चाहिए।” (लूका 22:24, बुल्के बाइबिल; यूहन्ना 13:1-5) क्या यीशु ने तंग आकर अपने प्रेरितों को फटकार दिया? नहीं, उसने उन्हें प्यार से समझाया: “बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के नाईं हूं।” (लूका 22:27) वाकई यीशु उनके लिए क्या ही बढ़िया आदर्श था! यीशु ने अपने धीरज, कृपा और अच्छे आदर्श से आखिरकार चेलों के मन में वह बात बिठा दी जो वह उन्हें सिखाना चाहता था।
13, 14. चरवाहों को खास तौर से कृपा का गुण क्यों दिखाना चाहिए?
13 आज भी मसीही कलीसिया में शायद एक चरवाहे को किसी भाई-बहन की खामी के लिए उसे बार-बार सलाह देनी पड़े। अगर उसकी सलाह नहीं मानी जाती तो वह उस भाई से तंग आ सकता है। ऐसे में अगर प्राचीन यह याद रखे कि खुद उससे भी भूल-चूक होती है तो वह ‘ठीक चाल न चलनेवाले’ अपने भाई को ‘समझाते वक्त’ धीरज और कृपा के गुण दिखा सकेगा। इस तरह वह प्राचीन, यहोवा और यीशु के आदर्श पर चलेगा, जो सब मसीहियों और प्राचीनों के साथ भी धीरज और कृपा से पेश आते हैं।—1 थिस्सलुनीकियों 5:14; याकूब 2:13.
14 कभी-कभी ज़रूरी होता है कि चरवाहे घोर पाप करनेवाले को सख्त ताड़ना दें। अगर पाप करनेवाला प्रायश्चित्त नहीं करता तो उसे कलीसिया से निकाला जाना चाहिए। (1 कुरिन्थियों 5:11-13) ऐसे में भी मसीही चरवाहों के व्यवहार से साफ पता चलता है कि वे पाप से घृणा करते हैं पापी से नहीं। (यहूदा 23) चरवाहे जब इस तरह कृपा दिखाते हैं तो जो भेड़ें भटककर झुंड से दूर चली गयी हैं वे एक-न-एक-दिन वापस आ सकती हैं।—लूका 15:11-24.
विश्वास से भलाई करने का बढ़ावा मिलता है
15. एक तरीका क्या है जिससे मसीही चरवाहे परमेश्वर की मिसाल पर चलकर भलाई के काम करते हैं और वे इतनी मेहनत क्यों करते हैं?
15 “यहोवा सभों के लिये भला है।” जी हाँ, यहोवा उन लोगों का भी भला करता है, जो उसकी भलाई के लिए कभी उसका एहसान नहीं मानते। (भजन 145:9; मत्ती 5:45) आज हमारे वक्त में उसकी भलाई बहुत ही खास तरीके से ज़ाहिर हो रही है। कैसे? वह अपने लोगों को भेजकर दुनिया-भर में ‘राज्य के सुसमाचार’ का ऐलान करवा रहा है। (मत्ती 24:14) मसीही चरवाहे परमेश्वर की मिसाल पर चलकर भलाई के काम करते हैं और इसलिए प्रचार के काम में आगे रहते हैं। लेकिन वे जी-जान लगाकर इतनी मेहनत क्यों करते हैं? क्योंकि यहोवा और उसके वादों पर उनका विश्वास चट्टान की तरह मज़बूत है।—रोमियों 10:10, 13, 14.
16. चरवाहे अपनी भेड़ों की “भलाई” कैसे कर सकते हैं?
16 प्रचार काम के ज़रिए “सब के साथ भलाई” करने के अलावा, चरवाहों की ज़िम्मेदारी है कि वे ‘विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ भलाई’ करें। (गलतियों 6:10) विश्वासी भाइयों के साथ भलाई करने का एक तरीका है, रखवाली भेंट के ज़रिए उनका हौसला बढ़ाना। इस बारे में एक प्राचीन कहता है: “जब मैं भाइयों से मिलने जाता हूँ, तो मुझे बेहद खुशी मिलती है। मुझे उनकी मेहनत के लिए उन्हें शाबाशी देने का मौका मिलता है। और मैं उन्हें यह यकीन दिला पाता हूँ कि यहोवा की सेवा में उनकी कड़ी मेहनत काबिले-तारीफ है।” शाबाशी देने के अलावा, कभी-कभी एक प्राचीन को शायद किसी भाई-बहन को सलाह देने की ज़रूरत पड़े ताकि वह यहोवा की सेवा ज़्यादा अच्छी तरह कर पाए। ऐसा करते वक्त, समझदार चरवाहे वही करते हैं जो प्रेरित पौलुस ने किया था। थिस्सलुनीके के भाई-बहनों को सलाह देने के बाद, गौर कीजिए पौलुस ने उनसे किस तरह आग्रह किया: “हमें प्रभु में तुम्हारे ऊपर भरोसा है, कि जो जो आज्ञा हम तुम्हें देते हैं, उन्हें तुम मानते हो, और मानते भी रहोगे।” (2 थिस्सलुनीकियों 3:4) ऐसी बातों से चरवाहे दिखाते हैं कि भेड़ों में अच्छा करने की चाह है और ये बातें सुनकर भेड़ों का भी मन करता है कि वे ‘अपने अगुवों की बात मानें।’ (इब्रानियों 13:17) अगर प्राचीनों ने आपसे रखवाली भेंट की है और आपका हौसला बढ़ाया है, तो क्यों न उन्हें बताएँ कि इस भेंट के लिए आप कितने एहसानमंद हैं?
नरमी से पेश आने के लिए संयम ज़रूरी है
17. पतरस ने यीशु से क्या सबक सीखा?
17 यीशु नर्म स्वभाव का था, इसलिए भड़काए जाने पर भी उसने कभी अपना आपा नहीं खोया। (मत्ती 11:29) जब उसे धोखे से पकड़वाया गया, तो वह बौखलाया नहीं बल्कि संयम बनाए रखा। जबकि पतरस ने आव देखा न ताव, और यीशु की गिरफ्तारी के विरोध में तलवार चला दी। इस पर यीशु ने उससे कहा: “क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूं, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?” (मत्ती 26:51-53; यूहन्ना 18:10) यीशु की यह बात पतरस के दिल में घर कर गयी और उसने एक ज़रूरी सबक सीखा। बरसों बाद उसने मसीहियों को यही सबक याद दिलाया: “मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो . . . वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था।”—1 पतरस 2:21-23.
18, 19. (क) चरवाहों को नरमी और संयम की ज़रूरत खासकर कब पड़ सकती है? (ख) अगले लेख में किन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?
18 जो चरवाहे अपने काम में कामयाब होना चाहते हैं, उन्हें भी बुरे बर्ताव के बावजूद भेड़ों के साथ नरमी से पेश आना चाहिए। नरमी की ज़रूरत खासकर तब पड़ सकती है जब प्राचीन किसी की मदद करना चाहें मगर वह उनकी सलाह को कबूल न करे। या हो सकता है कि प्राचीन, आध्यात्मिक मायने में किसी कमज़ोर या बीमार भाई को सलाह दें मगर वह “बिना सोचविचार” के कुछ ऐसा बोल दे ‘जो तलवार की नाईं चुभ’ जाए। (नीतिवचन 12:18) लेकिन ऐसे में भी प्राचीन यीशु की मिसाल पर चलते हैं और बुराई का बदला बुराई से नहीं देते, न ही जली-कटी बातों से भेड़ों का दिल दुखाते हैं। इसके बजाय, वे खुद पर काबू रखते हैं और उनका दर्द समझने की कोशिश करते हैं। उनकी यही परवाह एक कमज़ोर इंसान में जान डाल सकती है। (1 पतरस 3:8, 9) प्राचीनों की अच्छी मिसाल से क्या आप कुछ सीख सकते हैं? जब आपको सलाह दी जाती है तो क्या आप नरमी से और खुद पर काबू रखकर उसे कबूल करते हैं?
19 हमें यकीन है कि यहोवा और यीशु इन चरवाहों की कड़ी मेहनत की बहुत कदर करते हैं। हज़ारों की तादाद में ये चरवाहे दुनिया के हर कोने में परमेश्वर की भेड़ों की खुशी-खुशी देखभाल करते हैं। इन चरवाहों के साथ हज़ारों सहायक सेवक भी हैं जो परमेश्वर के “पवित्र लोगों की सेवा” करने में प्राचीनों का साथ देते हैं। (इब्रानियों 6:10) ये सेवक भी यहोवा और यीशु को बहुत प्यारे हैं। तो फिर, ऐसा क्यों है कि कुछ बपतिस्मा-शुदा भाई इस “भले काम” या ज़िम्मेदारी से कतराते हैं और इसके काबिल बनने की कोशिश नहीं करते? (1 तीमुथियुस 3:1) इसके अलावा, यहोवा जिन्हें चरवाहा ठहराता है, उन्हें यह ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए वह तालीम कैसे देता है? इन सवालों के जवाब अगले लेख में दिए जाएँगे।
क्या आपको याद है?
• आध्यात्मिक चरवाहे किन तरीकों से झुंड के लिए प्यार दिखाते हैं?
• कलीसिया में हर कोई कैसे खुशी बढ़ा सकता है और शांति बनाए रख सकता है?
• चरवाहे सलाह देते वक्त धीरज और कृपा के गुण क्यों दिखाते हैं?
• प्राचीन किस तरह भलाई करते हैं और विश्वास दिखाते हैं?
[पेज 18 पर तसवीर]
प्राचीन, कलीसिया की सेवा प्यार की खातिर करते हैं
[पेज 18 पर तसवीरें]
वे अपने परिवार के साथ फुरसत के पल बिताते हैं . . .
. . . और प्रचार में भी उनके साथ रहते हैं
[पेज 20 पर तसवीर]
प्राचीन, अच्छी बातचीत से कलीसिया की खुशी बढ़ाते हैं और शांति बनाए रखते हैं