आइए हम अपने अनमोल विश्वास को थामे रहें!
“उन लोगों के नाम जिन्हों ने . . . हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है।”—२ पतरस १:१.
१. अपने प्रेरितों को चेतावनी देते हुए यीशु ने क्या कहा, लेकिन पतरस ने गर्व से क्या कहा?
अपनी मृत्यु से पहले की शाम को यीशु ने कहा कि उसके सभी चेले उसका साथ छोड़ देंगे। उनमें से पतरस ने गर्व से कहा: “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएं तो खाएं, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊंगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती २६:३३) लेकिन यीशु जानता था कि ऐसा नहीं होगा। इसीलिए उसने पतरस से उसी वक़्त कहा: “मैं ने तेरे लिये बिनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे: और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।”—लूका २२:३२.
२. पतरस के अतिविश्वस्त होने के बावजूद उसके कौन-से कार्यों ने प्रकट किया कि उसका विश्वास कमज़ोर है?
२ पतरस ने, जो अपने विश्वास के बारे में अतिविश्वस्त हो गया था, यीशु को उसी रात अस्वीकार किया। तीन बार उसने यीशु को पहचानने से भी इंकार किया! (मत्ती २६:६९-७५) जब वह ‘फिरा,’ तब ‘अपने भाइयों को स्थिर करने’ के उसके स्वामी के शब्द उसके कानों में स्पष्ट और ज़ोर से गूँजे होंगे। तब से उस हिदायत ने पतरस के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला जैसा कि उसके द्वारा लिखी दो पत्रियों से स्पष्ट है, जो बाइबल में सुरक्षित हैं।
पतरस ने अपनी पत्रियाँ क्यों लिखीं
३. पतरस ने अपनी पहली पत्री क्यों लिखी?
३ यीशु की मृत्यु के क़रीब ३० साल बाद, पुन्तुस, गलतिया, कप्पदुकिया, आसिया और बिथुनिया, क्षेत्र जो अब उत्तरी और पश्चिमी तुर्की में हैं, में रहनेवाले अपने भाइयों के नाम पतरस ने अपनी पहली पत्री लिखी। (१ पतरस १:१) पतरस ने जिन्हें संबोधित किया उनमें निःसंदेह यहूदी भी शामिल थे जिनमें से कुछ शायद सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त में मसीही बने हों। (प्रेरितों २:१, ७-९) अनेक अन्यजातीय लोग थे जो विरोधियों के हाथों कठोर परीक्षाओं का सामना कर रहे थे। (१ पतरस १:६, ७; २:१२, १९, २०; ३:१३-१७; ४:१२-१४) सो पतरस ने इन भाइयों को लिखा ताकि उन्हें प्रोत्साहित करे। “अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् [अपनी] आत्माओं का उद्धार प्राप्त” करने में उन्हें मदद देने का उसका उद्देश्य था। इसलिए अपनी आख़िरी हिदायत में उसने आग्रह किया: ‘विश्वास में दृढ़ हो, और [इब्लीस] का साम्हना करो।’—१ पतरस १:९; ५:८-१०.
४. पतरस ने अपनी दूसरी पत्री क्यों लिखी?
४ बाद में पतरस ने इन मसीहियों को एक और पत्री लिखी। (२ पतरस ३:१) क्यों? क्योंकि एक और बड़ा ख़तरा था। अनैतिक लोग भ्रष्ट करनेवाले अपने चालचलन को विश्वासियों के बीच बढ़ावा देने की कोशिश करते और कुछ लोगों को भरमाते! (२ पतरस २:१-३) इसके अलावा, पतरस ने ठट्ठा करनेवालों के बारे में भी चिताया। उसने अपनी पहली पत्री में लिखा था कि “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है,” और अब ऐसा लगता है कि कुछ लोग ऐसे विचार का ठट्ठा उड़ा रहे थे। (१ पतरस ४:७; २ पतरस ३:३, ४) आइए हम पतरस की दूसरी पत्री की जाँच करें और देखें कि विश्वास में दृढ़ बने रहने के लिए इसने भाइयों को कैसे स्थिर किया। इस पहले लेख में हम २ पतरस अध्याय १ पर विचार करेंगे।
अध्याय १ का उद्देश्य
५. पतरस समस्याओं की चर्चा करने के लिए अपने पाठकों को कैसे तैयार करता है?
५ पतरस शुरू में ही गंभीर समस्याओं के बारे में चर्चा नहीं करता है। इसके बजाय, मसीही बनने पर उसके पाठकों ने जो प्राप्त किया उसके लिए उनका मूल्यांकन बढ़ाने के द्वारा वह इन समस्याओं के बारे में चर्चा करने के लिए माहौल तैयार करता है। वह परमेश्वर की शानदार प्रतिज्ञाओं और बाइबल भविष्यवाणियों की विश्वसनीयता के बारे में उन्हें याद दिलाता है। वह उस दर्शन अर्थात् रूपांतरण के बारे में बताने के द्वारा ऐसा करता है जिसमें उसने ख़ुद मसीह को राज्य सत्ता में देखा था।—मत्ती १७:१-८; २ पतरस १:३, ४, ११, १६-२१.
६, ७. (क) पतरस की पत्री की प्रस्तावना से हम क्या सबक़ सीख सकते हैं? (ख) यदि हम सलाह देते हैं, तो कभी-कभी किस प्रकार की स्वीकृति करना सहायक हो सकता है?
६ क्या हम पतरस की प्रस्तावना से कोई सबक़ सीख सकते हैं? क्या सलाह तब ज़्यादा स्वीकारयोग्य नहीं होती यदि हम पहले श्रोताओं के साथ उस महान राज्य आशा के पहलुओं पर पुनर्विचार करें जिन्हें हम मूल्यवान समझते हैं? और एक व्यक्तिगत अनुभव बताना कैसा रहेगा? संभवतः, यीशु की मृत्यु के बाद, पतरस ने मसीह को राज्य महिमा में देखने के उस दर्शन के बारे में अकसर बताया होगा।—मत्ती १७:९.
७ यह भी याद रखिए कि संभवतः जब पतरस ने अपनी दूसरी पत्री लिखी तब तक मत्ती का सुसमाचार और गलतियों को लिखी पौलुस की पत्री दूर-दूर तक वितरित की जा चुकी थी। सो पतरस की मानवीय कमज़ोरियाँ, साथ ही उसके विश्वास का रिकॉर्ड उस समय के मसीही अच्छी तरह जानते होंगे। (मत्ती १६:२१-२३; गलतियों २:११-१४) लेकिन इन बातों ने उसे साहसपूर्वक बोलने से नहीं रोका। वास्तव में, इससे उसकी पत्री उन लोगों को ज़्यादा प्रिय लगी होगी जो अपनी कमज़ोरियों के बारे में सचेत थे। अतः, जब उन लोगों की मदद की जाती है जो समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तब क्या यह स्वीकार करना प्रभावकारी नहीं होगा कि हम भी ग़लती कर सकते हैं?—रोमियों ३:२३; गलतियों ६:१.
स्थिर करनेवाला अभिवादन
८. पतरस ने शब्द “विश्वास” को संभवतः किस अर्थ में इस्तेमाल किया?
८ अब पतरस के अभिवादन पर विचार कीजिए। वह सीधे विश्वास के विषय पर बात करता है और अपने पाठकों को संबोधित करता है “उन लोगों के नाम जिन्हों ने . . . हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है।” (२ पतरस १:१) संभवतः यहाँ अभिव्यक्ति “विश्वास” का अर्थ है “दृढ़ धारणा” और यह समस्त मसीही विश्वासों या शिक्षाओं को सूचित करता है जिन्हें शास्त्रवचनों में कभी-कभी “सत्य” कहा जाता है। (गलतियों ५:७; २ पतरस २:२; २ यूहन्ना १) शब्द “विश्वास” को अकसर इसी अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है, किसी व्यक्ति या वस्तु पर भरोसे या विश्वास के साधारण अर्थ में नहीं।—प्रेरितों ६:७; २ कुरिन्थियों १३:५; गलतियों ६:१०; इफिसियों ४:५; यहूदा ३.
९. पतरस का अभिवादन ख़ास तौर पर अन्यजातीय लोगों को क्यों स्नेही लगा होगा?
९ पतरस का अभिवादन ख़ास तौर पर अन्यजातीय पाठकों को स्नेही लगा होगा। यहूदियों का अन्यजातीय लोगों के साथ कोई लेना-देना नहीं था, यहाँ तक कि वे उन्हें तुच्छ समझते थे और जो यहूदी मसीही बन गए थे, उनमें भी अन्यजातीय लोगों के प्रति पूर्वधारणाएँ क़ायम रही। (लूका १०:२९-३७; यूहन्ना ४:९; प्रेरितों १०:२८) लेकिन पतरस ने, जो जन्म से एक यहूदी था और यीशु मसीह का एक प्रेरित था, कहा कि उसके पाठकों—यहूदियों और ग़ैरयहूदियों—का वही विश्वास था और उन्हें उसके साथ समान विशेषाधिकार प्राप्त था।
१०. पतरस के अभिवादन से हम कौन-से सबक़ सीख सकते हैं?
१० पतरस का अभिवादन जो उत्तम सबक़ आज हमें सिखाता है, उस पर विचार कीजिए। परमेश्वर पक्षपाती नहीं; वह एक जाति या राष्ट्र को दूसरे से बढ़कर नहीं समझता। (प्रेरितों १०:३४, ३५; ११:१, १७; १५:३-९) जैसे स्वयं यीशु ने सिखाया, सभी मसीही भाई हैं और हममें से किसी को बड़ा महसूस नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, पतरस का अभिवादन इस बात पर ज़ोर देता है कि हम वास्तव में एक अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे का भाग हैं, जिन्होंने पतरस और उसके संगी प्रेरितों “सा बहुमूल्य” विश्वास प्राप्त किया था।—मत्ती २३:८; १ पतरस ५:९.
ज्ञान और परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ
११. अपने अभिवादन के बाद, पतरस किन अत्यावश्यक बातों पर ज़ोर देता है?
११ अपने अभिवादन के बाद पतरस लिखता है: “अनुग्रह और शान्ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए।” अनुग्रह और शांति हम बहुतायत में कैसे प्राप्त कर सकते हैं? “परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान [यथार्थ ज्ञान] के द्वारा,” पतरस जवाब देता है। फिर वह कहता है: “ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें . . . दिया है।” लेकिन हम इन अत्यावश्यक बातों को कैसे प्राप्त करते हैं? “उसी की पहचान [यथार्थ ज्ञान] के द्वारा . . . जिस ने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।” इस प्रकार पतरस दो बार इस बात पर ज़ोर देता है कि परमेश्वर और उसके पुत्र का यथार्थ ज्ञान ज़रूरी है।—२ पतरस १:२, ३; यूहन्ना १७:३.
१२. (क) पतरस यथार्थ ज्ञान के महत्त्व पर क्यों ज़ोर देता है? (ख) परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं का अनुभव करने के लिए हमें पहले क्या करना चाहिए?
१२ जिन ‘झूठे उपदेशकों’ के बारे में पतरस अध्याय २ में चिताता है, वे मसीहियों को भरमाने के लिए ‘बातें गढ़ते’ हैं। इस तरह वे उन्हें फिर उसी अनैतिकता के लिए प्रलोभित करने की कोशिश करते हैं जिससे वे बचाए गए थे। “प्रभु और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह की पहचान [यथार्थ ज्ञान] के द्वारा” बचाए जाने के बाद जो लोग ऐसे भ्रम में पड़ जाते हैं उनका अंत विनाशकारी होगा। (२ पतरस २:१-३, २०) स्पष्टतः, इस समस्या की बाद में चर्चा करने की उम्मीद करते हुए, पतरस अपनी पत्री की शुरूआत में ही परमेश्वर के सम्मुख स्वच्छ स्थिति बनाए रखने में यथार्थ ज्ञान की भूमिका पर ज़ोर देता है। पतरस कहता है कि परमेश्वर “ने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम . . . ईश्वरीय स्वभाव के समभागी हो जाओ।” लेकिन इन प्रतिज्ञाओं का अनुभव करने के लिए, जो हमारे विश्वास का अभिन्न अंग हैं, पतरस कहता है कि हमें पहले ‘उस सड़ाहट से छूटना है जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है।’—२ पतरस १:४.
१३. अभिषिक्त मसीही और “अन्य भेड़ें,” दोनों किसमें दृढ़ रहने के निश्चयी हैं?
१३ आप परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को किस दृष्टि से देखते हैं? क्या उसी तरह जिस तरह अभिषिक्त मसीहियों का शेषवर्ग देखता है? १९९१ में, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष फ्रेड्रिक फ्रैंज़ ने, जिन्होंने ७५ से अधिक साल पूर्ण-समय की सेवकाई की थी, मसीह के साथ शासन करने की आशा रखनेवालों की भावनाएँ बताईं: “हम इस घड़ी तक दृढ़ हैं, और तब तक दृढ़ रहेंगे जब तक परमेश्वर वाक़ई साबित करता है कि वह अपनी ‘बहुमूल्य और बहुत बड़ी प्रतिज्ञाओं’ के प्रति सच्चा है।” भाई फ्रैंज़ स्वर्गीय पुनरुत्थान के संबंध में परमेश्वर की प्रतिज्ञा के बारे में विश्वस्त रहे और ९९ वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक वे अपने विश्वास में दृढ़ रहे। (१ कुरिन्थियों १५:४२-४४; फिलिप्पियों ३:१३, १४; २ तीमुथियुस २:१०-१२) वैसे ही लाखों लोग अपने विश्वास में दृढ़ हैं, और एक पार्थिव परादीस के संबंध में परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं जिसमें लोग ख़ुशी से सर्वदा जीएँगे। क्या आप इनमें से एक हैं?—लूका २३:४३, NW; २ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.
परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के प्रति प्रतिक्रिया
१४. विश्वास पर बढ़ाने के लिए पतरस सूची में सद्गुण का उल्लेख प्रथम गुण के रूप में क्यों करता है?
१४ परमेश्वर ने जो प्रतिज्ञाएँ की हैं उनके लिए क्या हम उसके आभारी हैं? यदि हाँ, तो पतरस कहता है कि हमें यह प्रदर्शित करना चाहिए। जी हाँ, “इसी कारण” (क्योंकि परमेश्वर ने हमें बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएँ दी हैं) हमें सक्रिय रहने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। हम मात्र विश्वास में होने या बाइबल सत्य से परिचित होने से संतुष्ट नहीं हो सकते। इतना काफ़ी नहीं है! शायद पतरस के दिनों में, कलीसियाओं में कुछ लोगों ने विश्वास के बारे में बहुत कुछ कहा लेकिन अनैतिक कार्यों में शामिल हो गए। उनका व्यवहार सद्गुणी होना चाहिए था, सो पतरस ने उकसाया: “अपने विश्वास पर सद्गुण . . . बढ़ाते जाओ।”—२ पतरस १:५-७; याकूब २:१४-१७.
१५. (क) विश्वास पर बढ़ाने के एक गुण के तौर पर सद्गुण के बाद ज्ञान को सूची में क्यों शामिल किया गया है? (ख) कौन-से अन्य गुण विश्वास में स्थिर रहने के लिए हमें सज्जित करेंगे?
१५ सद्गुण का ज़िक्र करने के बाद पतरस छः और गुणों का उल्लेख करता है जिन्हें हमारे विश्वास में बढ़ाया जाना या उसमें जोड़ा जाना चाहिए। ये सभी ज़रूरी हैं यदि हमें “विश्वास में स्थिर” रहना है। (१ कुरिन्थियों १६:१३) क्योंकि धर्मत्यागी ‘पवित्र शास्त्र को खींच तान’ रहे थे और “भ्रमात्मक शिक्षाओं” (NW) को फैला रहे थे, पतरस अब बताता है कि ज्ञान अनिवार्य है और कहता है: “और सद्गुण पर समझ [ज्ञान] . . . बढ़ाते जाओ।” वह आगे कहता है: “और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति। और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।”—२ पतरस १:५-७; २:१२, १३; ३:१६.
१६. क्या होगा यदि पतरस द्वारा सूचीबद्ध गुण हमारे विश्वास पर बढ़ाए जाते हैं, लेकिन क्या होगा यदि ऐसा नहीं किया जाता है?
१६ क्या होगा यदि ये सात चीज़ें हमारे विश्वास पर बढ़ाई जाती हैं? “यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं,” पतरस जवाब देता है, “तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने [यथार्थ ज्ञान] में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी।” (२ पतरस १:८) दूसरी ओर, पतरस कहता है: “और जिस में ये बातें नहीं, वह अन्धा है, और धुन्धला देखता है, और अपने पूर्वकाली पापों से धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है।” (२ पतरस १:९) ध्यान दीजिए कि पतरस “तुम” और “हमारे” के इस्तेमाल को छोड़कर “जिस में” और “वह” का इस्तेमाल करता है। हालाँकि, दुःख की बात है, कुछ लोग अंधे, भुलक्कड़ और अशुद्ध हैं, यह न सुझाते हुए कि पाठक उनमें से एक है, पतरस कृपा दिखाता है।—२ पतरस २:२.
अपने भाइयों को स्थिर करना
१७. ‘ऐसा करते जाने’ के पतरस के कोमल अनुरोध को किस बात ने प्रेरित किया होगा?
१७ शायद यह समझते हुए कि ख़ास तौर पर नए लोग आसानी से भरमाए जा सकते हैं, पतरस कोमलता से उन्हें प्रोत्साहित करता है: “इस कारण हे भाइयो, अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने का भली भांति यत्न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे।” (२ पतरस १:१०; २:१८) अभिषिक्त मसीही, जो अपने विश्वास में इन सात बातों को जोड़ते हैं, एक महान प्रतिफल का आनंद लेंगे, जैसे पतरस कहता है: “बरन इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे।” (२ पतरस १:११) ‘अन्य भेड़ें’ परमेश्वर के राज्य के पार्थिव परिवेश में अनंत विरासत प्राप्त करेंगी।—यूहन्ना १०:१६; मत्ती २५:३३, ३४.
१८. पतरस अपने भाइयों को “सुधि दिलाने” को क्यों “सर्वदा” तैयार रहता है?
१८ पतरस वास्तव में चाहता है कि उसके भाई ऐसा एक महान प्रतिफल प्राप्त करें। “इसलिये,” वह लिखता है, “यद्यपि तुम ये बातें जानते हो, और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, उस में बने रहते हो, तौभी मैं तुम्हें इन बातों की सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूंगा।” (२ पतरस १:१२) पतरस यूनानी शब्द स्तेरीज़ो का इस्तेमाल करता है, जिसका अनुवाद यहाँ “बने रहते हो” किया गया है परंतु यीशु ने पतरस को पहले जो हिदायत दी थी कि “अपने भाइयों को स्थिर करना,” वहाँ इसी शब्द का अनुवाद “स्थिर करना” किया गया है। (लूका २२:३२) इस शब्द का इस्तेमाल शायद सुझाए कि पतरस अपने प्रभु से प्राप्त प्रभावशाली हिदायत को याद करता है। फिर पतरस कहता है: “और मैं यह अपने लिये उचित समझता हूं, कि जब तक मैं इस डेरे [मानव शरीर] में हूं, तब तक तुम्हें सुधि दिला दिलाकर उभारता रहूं। क्योंकि यह जानता हूं, कि मसीह के वचन के अनुसार मेरे डेरे के गिराए जाने का समय शीघ्र आनेवाला है।”—२ पतरस १:१३, १४.
१९. आज हमें कौन-कौन सी मदद की ज़रूरत है?
१९ हालाँकि पतरस कृपापूर्वक कहता है कि उसके पाठक ‘जो सत्य वचन उन्हें मिला है, उस में बने रहते हैं,’ फिर भी पतरस इस बात को समझता है कि उनके विश्वास का जहाज़ डूब सकता है। (१ तीमुथियुस १:१९) क्योंकि वह जानता है कि उसे जल्द ही मरना है, वह अपने भाइयों को ऐसी बातें बताने के द्वारा स्थिर करता है जिन्हें वे बाद में याद कर सकते हैं और अपने आपको आध्यात्मिक रूप से दृढ़ रख सकते हैं। (२ पतरस १:१५, ३:१२, १३) वैसे ही, आज हमें विश्वास में दृढ़ बने रहने के लिए नियमित रूप से सुधि दिलाए जाने की ज़रूरत है। चाहे हम जो भी हों, या सत्य में जितने सालों से भी रहे हों, हम नियमित बाइबल पठन, व्यक्तिगत अध्ययन और कलीसिया सभाओं में उपस्थिति को छोड़ नहीं सकते। कुछ लोग उपस्थित न होने के लिए बहाने बनाते हैं और कहते हैं कि वे बहुत थके हुए हैं या कि सभाओं में वही बातें दोहरायी जाती हैं या उन्हें दिलचस्पी जगानेवाली रीति से प्रस्तुत नहीं किया जाता है। लेकिन पतरस जानता था कि अतिविश्वस्त हो जाने पर हममें से कोई भी बहुत जल्दी विश्वास खो सकता है।—मरकुस १४:६६-७२; १ कुरिन्थियों १०:१२; इब्रानियों १०:२५.
हमारे विश्वास का दृढ़ आधार
२०, २१. पतरस के विश्वास और उसकी पत्रियों के पाठकों के विश्वास को, जिनमें आज हम भी शामिल हैं, रूपांतरण ने कैसे दृढ़ किया?
२० क्या हमारा विश्वास मात्र चालाकी से रची गई कल्पनाओं पर आधारित है? “नहीं,” पतरस ज़ोर देकर कहता है, “क्योंकि जब हम ने तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह की सामर्थ का, और आगमन का समाचार दिया था तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुकरण नहीं किया था बरन हम ने आप ही उसके प्रताप को देखा था।” पतरस, याकूब और यूहन्ना मसीह के साथ उपस्थित थे जब उन्होंने एक दर्शन में उसे राज्य सत्ता में देखा था। पतरस समझाता है: “उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं। और जब हम उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।”—२ पतरस १:१६-१८.
२१ जब पतरस, याकूब और यूहन्ना ने वह दर्शन देखा तब राज्य सचमुच उनके लिए वास्तविक बन गया! पतरस कहता है: “और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा और तुम यह अच्छा करते हो जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो।” जी हाँ, पतरस की पत्री के पाठक, जिनमें आज हम भी शामिल हैं, परमेश्वर के राज्य के बारे में भविष्यवाणियों पर ध्यान देने के प्रभावशाली कारण पाते हैं। हमें किस रीति से ध्यान देना है? पतरस जवाब देता है: “वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे।”—२ पतरस १:१९; दानिय्येल ७:१३, १४; यशायाह ९:६, ७.
२२. (क) हमारे हृदय को किस बात के प्रति सचेत रहना चाहिए? (ख) भविष्यसूचक वचन की ओर हम कैसे ध्यान देते हैं?
२२ हमारे हृदय भविष्यसूचक वचन की ज्योति के बिना अंधियारे में होते। लेकिन उस पर ध्यान देने के द्वारा, मसीहियों के हृदय, पौ फटने के विषय में सचेत रहे हैं जब “भोर का तारा,” यीशु मसीह, राज्य महिमा में चमक उठता है। (प्रकाशितवाक्य २२:१६) हम आज भविष्यसूचक वचन की ओर ध्यान कैसे देते हैं? बाइबल अध्ययन के द्वारा, सभाओं के लिए तैयारी करने और उनमें भाग लेने के द्वारा और ‘इन बातों को सोचते रहने और इन्हीं में अपना ध्यान लगाए रहने’ के द्वारा। (१ तीमुथियुस ४:१५) यदि भविष्यसूचक वचन को एक दीये के समान होना है जो “अन्धियारे स्थान” (हमारे हृदयों) में प्रकाश देता है, तो हमें ख़ुद पर उसका गहरा प्रभाव पड़ने देना चाहिए—हमारी इच्छाएँ, भावनाएँ, प्रेरणाएँ और लक्ष्यों पर। हमें बाइबल का विद्यार्थी होना चाहिए क्योंकि पतरस अध्याय १ को समाप्त करते हुए कहता है: “पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।”—२ पतरस १:२०, २१.
२३. दूसरे पतरस के पहले अध्याय ने पाठकों को किसके लिए तैयार किया है?
२३ अपनी दूसरी पत्री के पहले अध्याय में पतरस ने हमें अपने बहुमूल्य विश्वास को थामे रहने के लिए प्रभावकारी प्रेरणा प्रदान की। अब हम उन गंभीर बातों की चर्चा करने के लिए तैयार हैं जो आगे बताई गई हैं। अगला लेख २ पतरस अध्याय २ की चर्चा करेगा, जहाँ प्रेरित उन अनैतिक प्रभावों की चुनौती के बारे में चर्चा करता है जो कलीसिया में घुस आए थे।
क्या आपको याद है?
◻ पतरस यथार्थ ज्ञान के महत्त्व पर क्यों ज़ोर देता है?
◻ संभवतः किस कारणवश विश्वास पर बढ़ाए जानेवाले गुणों की सूची में सद्गुण पहले बताया गया है?
◻ पतरस अपने भाइयों को सुधि दिलाने के लिए सर्वदा क्यों तैयार रहता है?
◻ पतरस हमारे विश्वास के लिए क्या दृढ़ आधार प्रदान करता है?
[पेज 9 पर तसवीर]
पतरस की कमज़ोरियों ने उसे अपना विश्वास छोड़ने पर मज़बूर नहीं किया