विश्वास करनेवालों को उद्धार देने के लिए यहोवा द्वारा “मूर्खता” का प्रयोग
“क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान [बुद्धि, NW] के अनुसार संसार ने ज्ञान [बुद्धि, NW] से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालों को उद्धार दे।”—१ कुरिन्थियों १:२१.
१. यहोवा “मूर्खता” को किस अर्थ में प्रयोग करता, और हम कैसे जानते हैं कि संसार ने अपनी बुद्धि से परमेश्वर को नहीं जाना?
क्या? क्या यहोवा मूर्खता का प्रयोग करेगा? असल में नहीं! परन्तु वह संसार को मूर्खता प्रतीत होने वाली वस्तु का प्रयोग कर सकता है और करता भी है। वह ऐसे इसलिए करता है कि उन लोगों को उद्धार दे जो उसे जानते और प्रेम करते हैं। अपनी बुद्धि द्वारा, संसार परमेश्वर को नहीं जान सकता है। यीशु मसीह ने यह स्पष्ट किया जब उसने प्रार्थना में कहा: “हे धार्मिक पिता, संसार ने [तुझे, NW] नहीं जाना।”—यूहन्ना १७:२५.
२. यह कैसे प्रतीत हो सकता है कि यहोवा के मार्ग तथा संसार के मार्ग आपस में समांतर हैं, परन्तु तथ्य क्या हैं?
२ यीशु के शब्द संकेत करते हैं कि यहोवा के तरीक़े संसार के तरीक़ों से भिन्न हैं। ऊपर से तो, शायद प्रतीत हो कि परमेश्वर का और इस संसार का उद्देश्य आपस में समांतर है। शायद ऐसा लगे कि इस संसार के उद्देश्यों पर परमेश्वर की आशीष है। उदाहरणार्थ, बाइबल कहती है कि परमेश्वर एक धार्मिक सरकार खड़ा करेगा जो पृथ्वी पर मानवजाति के लिए शांति, ख़ुशी, तथा समृद्धि में जीवन लाएगी। (यशायाह ९:६, ७; मत्ती ६:१०) उसी प्रकार, यह संसार एक नाम-मात्र नयी विश्व-व्यवस्था के ज़रिये लोगों को शांति, समृद्धि, तथा अच्छी सरकार देने के उद्देश्य को घोषित करता है। परन्तु परमेश्वर के तथा संसार के उद्देश्य एक समान नहीं हैं। यहोवा का उद्देश्य स्वयं अपने को विश्व के सर्वोच्च सर्वसत्ताधारी के रूप में दोषनिवारित करना है। वह यह एक स्वर्गीय सरकार के ज़रिये से करेगा जो सब पार्थिव सरकारों को मिटा देगी। (दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य ४:११; १२:१०) इसलिए परमेश्वर और इस संसार में कुछ भी सामान्य नहीं है। (यूहन्ना १८:३६; १ यूहन्ना २:१५-१७) इस कारण बाइबल दो प्रकार की बुद्धि का ज़िक्र करती है—‘परमेश्वर की बुद्धि’ और ‘संसार की बुद्धि।’—१ कुरिन्थियों १:२०, २१, NW.
सांसारिक बुद्धि की बुनियादी कमी
३. चाहे संसार की बुद्धि प्रभावशाली प्रतीत हो, मनुष्य की प्रतिज्ञात नयी विश्व-व्यवस्था क्यों कभी भी संतोषजनक नहीं होती?
३ वे जो परमेश्वर की बुद्धि से निर्देशित नहीं हैं, उनके लिए संसार की बुद्धि प्रभावशाली प्रतीत होती है। ऐसे प्रभावशाली लगनेवाले सांसारिक-दर्शनशास्त्र हैं जो मन को मोहित करते हैं। ऊँची शिक्षा के हज़ारों विद्यालय उन लोगों का ज्ञान प्रदान करते हैं जिन्हें बहुतेरे लोग मानवजाति के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति समझते हैं। विशाल पुस्तकालय उन कई सौ सालों के मानव अनुभव के इकट्ठे किये हुए ज्ञान से भरपूर हैं। लेकिन, इसके बावजूद भी, सांसारिक शासक जो नयी विश्व-व्यवस्था प्रस्तावित कर रहे हैं, सिर्फ़ असिद्ध, पाप से कलंकित, मरणासन मानव का ही एक राज्य हो सकता है। इसलिए, वह व्यवस्था असिद्ध होती, जो पिछली कई गलतियों को दोहराती और कभी भी मानवजाति की सब ज़रूरतों को संतुष्ट न करती।—रोमियों ३:१०-१२; ५:१२.
४. प्रस्तावित नयी विश्व-व्यवस्था किसके प्रभाव के अधीन है, और इस का क्या परिणाम होगा?
४ मानव की प्रस्तावित नयी विश्व-व्यवस्था सिर्फ़ इन्सानी कमज़ोरियों के ही नहीं, बल्कि दुष्ट आत्मिक प्राणियों—हाँ, शैतान अर्थात् इब्लीस और उसके पिशाचों के प्रभाव के भी अधीन है। शैतान ने लोगों की बुद्धि को अंधा कर रखा है ताकि वे मसीह के “तेजोमय सुसमाचार” पर विश्वास न करें। (२ कुरिन्थियों ४:३, ४; इफिसियों ६:१२) परिणामस्वरूप, यह संसार एक के बाद एक कष्ट भोग रहा है। यह परमेश्वर की सहायता के बिना तथा ईश्वरीय इच्छा का आदर किए बिना स्वयं अपने पर राज करने के विनाशपूर्ण यत्न में संघर्ष करता और हानि उठाता है। (यिर्मयाह १०:२३; याकूब ३:१५, १६) इस कदर, जैसे प्रेरित पौलुस ने कहा, “संसार ने ज्ञान [अपनी बुद्धि, NW] से परमेश्वर को न जाना।”—१ कुरिन्थियों १:२१.
५. इस संसार की बुद्धि की बुनियादी कमी क्या है?
५ फिर, इस संसार की बुद्धि, जिसमें नयी विश्व-व्यवस्था के लिए इसकी योजनाएँ सम्मिलित हैं, की बुनियादी कमी क्या है? वह यह है कि संसार उस बात को नज़रअंदाज़ करता है जो कभी भी सफ़लतापूर्वक नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती है—यहोवा परमेश्वर की सर्वोच्च सर्वसत्ता। वह घमंड के साथ ईश्वरीय सर्वसत्ता को स्वीकार करने से इन्कार करता है। संसार जानबूझकर यहोवा को अपनी किसी भी योजनाओं में सम्मिलित नहीं करता है और अपनी ही योग्यताओं तथा परियोजनाओं पर भरोसा रखता है। (दानिय्येल ४:३१-३४; यूहन्ना १८:३७ से तुलना कीजिए.) बाइबल यह स्पष्ट करती है कि “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है।” (नीतिवचन ९:१०; भजन १११:१०) तो भी, संसार ने बुद्धि की इस बुनियादी ज़रूरत को ही नहीं सीखा है। अंतः, बिना ईश्वरीय सहायता के, यह कैसे सफ़ल हो सकता है?—भजन १२७:१.
राज्य प्रचार—मूर्ख या व्यावहारिक?
६, ७. (क) परमेश्वर की बुद्धि द्वारा निर्देशित लोग क्या प्रचार कर रहे हैं, परन्तु संसार उन्हें किस नज़रिए से देखता है? (ख) मसीहीजगत के पादरी किसकी बुद्धि के अनुसार प्रचार करते हैं, और इसका परिणाम क्या हुआ?
६ दूसरी तरफ़, वे जो परमेश्वर को जानते हैं परमेश्वर की बुद्धि को प्रदर्शित करते हैं और इस बुद्धि से निर्देशित होने का चुनाव करते हैं। जैसे यीशु ने पूर्वकथन किया, वे “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में” प्रचार कर रहें हैं। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) क्या ऐसा प्रचार अब व्यावहारिक है, जबकि हमारी पृथ्वी झगड़ों, दूषण, ग़रीबी, तथा मानव दुःखों से भरी हुई है? सांसारिक तौर से ज्ञानी लोगों को परमेश्वर के राज्य के बारे में ऐसा प्रचार करना बिलकुल ही मूर्खता प्रतीत होता है, जिसमें व्यावहारिकता नहीं। वे परमेश्वर के राज्य प्रचारकों को बार्नेकल के रूप में देखते हैं जो राष्ट्र के जहाज़ को भारी बनाकर एक आदर्श राजनीतिक सरकार की ओर इसकी प्रगति को धीमा कर देते हैं। इसमें मसीह जगत के पादरी उन्हें सहयोग देते हैं, जो इस संसार की बुद्धि के अनुसार प्रचार करते और लोगों को, जो उन्हें परमेश्वर के नये संसार और उसके राज्य सरकार के बारे में जानने की ज़रूरत है, नहीं बताते हैं, जबकि यही मसीह की मूल शिक्षा थी।—मत्ती ४:१७; मरकुस १:१४, १५.
७ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने मसीह जगत के पादरी वर्ग की इस कमज़ोरी पर ध्यान आकर्षित किया। उसने लिखा: “अद्भुत है वह विशाल प्रमुखता जो यीशु ने उस चीज़ को दी जिसे उसने स्वर्ग का राज्य कहा, और ज़्यादातर मसीही गिरजों की कार्य-प्रणाली तथा शिक्षाओं में इसकी तुलनात्मक महत्त्वहीनता।” तो भी, अगर इस पीढ़ी के लोगों को जीवन प्राप्त करना है, तो उन्हें पहले परमेश्वर के स्थापित राज्य के बारे में सुनना है, और उस उद्देश्य तक पहुँचने के लिए किसी को इसके बारे में सुसमाचार प्रचार करना है।—रोमियों १०:१४, १५.
८. परमेश्वर के सुसमाचार को प्रचार करना आज क्यों सबसे व्यावहारिक काम है, परन्तु कौनसे मार्ग को अपनाने से स्थायी लाभ नहीं मिलेगा?
८ परमेश्वर का सुसमाचार प्रचार करना, फिर, आज के लिए सबसे व्यावहारिक काम है। यह इसलिए क्योंकि राज्य का संदेश वह सच्ची आशा प्रदान करता है जो इन अंतिम दिनों के दौरान, जबकि ‘कठिन समय है,’ मानव हृदयों को हर्श से भर देती है। (२ तीमुथियुस ३:१-५; रोमियों १२:१२; तीतुस २:१३) जबकि इस संसार में जीवन अनिश्चित और अल्पकालीन है, परमेश्वर के नये संसार में ठीक यहीं पृथ्वी पर आनन्द, प्रचुरता, और शांति के बीच सर्वदा का जीवन होगा। (भजन ३७:३, ४, ११) जैसे यीशु मसीह ने कहा, “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा?” अगर एक व्यक्ति परमेश्वर के नये संसार में जीवन के अधिकार को खो दे, तो इस संसार का क्या लाभ, जो मिटता जाता है? ऐसे व्यक्ति का भौतिक चीज़ों का अभी आनन्द लेना, व्यर्थ, ख़ाली, तथा अल्पकालिक रहा है।—मत्ती १६:२६; सभोपदेशक १:१४; मरकुस १०:२९, ३०.
९. (क) जिस आदमी को यीशु का अनुयायी होने का निमंत्रण मिला था, जब उसने स्थगन के लिए निवेदन किया, तो यीशु ने उसे क्या करने की सलाह दी? (ख) यीशु के जवाब का हम पर क्या प्रभाव होना चाहिए?
९ एक आदमी जिसे यीशु ने उसका अनुयायी बनने के लिए आमंत्रित किया था, ने ऐसा कहा: “मुझे पहिले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूं।” यीशु ने उसे क्या करने की सलाह दी? यह जानते हुए कि वह आदमी एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य को सिर्फ़ इसलिए स्थगित करता कि अपने माता-पिता की प्राकृतिक मृत्यु तक इंतज़ार करे, यीशु ने जवाब दिया: “मरे हुओं को अपने मुरदे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कथा सुना।” (लूका ९:५९, ६०) जो मसीह की आज्ञा मानकर बुद्धिमानी दिखाते हैं, वे राज्य संदेश को प्रचार करने की अपनी कार्यनियुक्ति को पूरा करने से हट नहीं सकते हैं। ईश्वरीय बुद्धि उन्हें अवगत कराती है कि यह संसार और इसके शासक सर्वनाश के लिए नियत हैं। (१ कुरिन्थियों २:६; १ यूहन्ना २:१७) परमेश्वर की सर्वसत्ता के समर्थक यह जानते हैं कि मानवजाति के लिए एक-मात्र सच्ची आशा सिर्फ़ ईश्वरीय हस्तक्षेप और शासकत्व में ही है। (जकर्याह ९:१०) इसलिए जबकि इस संसार की बुद्धि रखनेवाले लोग परमेश्वर के राज्य में विश्वास नहीं करते हैं और वे स्वर्गीय सरकार नहीं चाहते हैं, ईश्वरीय बुद्धि द्वारा निदेशित लोग ऐसे कार्य करते हैं जो उनके संगी मनुष्यों को असल लाभ पहुँचाए, इस प्रकार यहोवा के प्रतिज्ञात नये संसार में अनन्त जीवन के लिए उन्हें तैयार करते हैं।—यूहन्ना ३:१६; २ पतरस ३:१३.
“नाश होनेवालों के निकट मूर्खता”
१०. (क) जब तारसी का शाऊल धर्मपरिवर्तित किया गया, तो उसने कौनसा कार्य स्वीकार किया, और उसने इसे किस नज़रिए से देखा? (ख) प्राचीन यूनानी लोग किस बात के लिए प्रसिद्ध थे, परन्तु परमेश्वर ने उनकी बुद्धि को किस नज़रिए से देखा?
१० तारसी का शाऊल, जो यीशु मसीह का प्रेरित पौलुस बना, ने यह प्राण-रक्षक कार्य स्वीकार किया। क्या ऐसा सोचना तर्कसंगत है कि जब यीशु मसीह ने शाऊल को धर्मपरिवर्तित किया, तो वह उसे मूर्ख कार्यकलाप में हिस्सा लेने के लिए नियुक्त कर रहा था? पौलुस ने ऐसा नहीं सोचा। (फिलिप्पियों २:१६) उस समय यूनानी लोग संसार के सबसे बुद्धिमान लोग समझे जाते थे। वे अपने महान् दर्शनशास्त्रियों और बुद्धिमान व्यक्तियों पर घमण्ड करते थे। जबकि पौलुस यूनानी भाषा बोलता था, उसने यूनानी दर्शनशास्त्र और शिक्षा का अनुकरण नहीं किया। क्यों? क्योंकि इस संसार की ऐसी बुद्धि परमेश्वर के आगे मूर्खता है।a पौलुस ने ईश्वरीय बुद्धि की तलाश की, जिससे वह घर-घर सुसमाचार प्रचार करने के लिए प्रेरित हुआ। सब समय के सर्वश्रेष्ठ प्रचारक, यीशु मसीह, ने नमूना रख दिया था और उसे यही काम करने के लिए आदेश दिया था।—लूका ४:४३; प्रेरितों २०:२०, २१; २६:१५-२०; १ कुरिन्थियों ९:१६.
११. सारांश में, पौलुस ने अपने प्रचार कार्यनियुक्ति और संसार की बुद्धि के बारे में क्या कहा?
११ अपने प्रचार करने की कार्यनियुक्ति के विषय में पौलुस यूँ कहता है: “क्योंकि मसीह ने मुझे . . . सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे। क्योंकि क्रूस [यीशु के छुड़ौती बलिदान] की कथा नाश होनेवालों के निकट मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालों के निकट परमेश्वर की सामर्थ है। क्योंकि लिखा है, कि मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारों की समझ को तुच्छ कर दूंगा। कहां रहा ज्ञानवान [जैसे कि दर्शनशास्त्री]? कहां रहा शास्त्री? कहां इस संसार का विवादी? क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया? क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालों को उद्धार दे।”—१ कुरिन्थियों १:१७-२१.
१२. “प्रचार की मूर्खता” के द्वारा यहोवा क्या कार्य पूरा कर रहा है, और “जो ज्ञान ऊपर से आता है,” उसके चाहनेवाले कैसी प्रतिक्रिया दिखाएंगे?
१२ चाहे यह अविश्वासनीय प्रतीत हो, पर जिन्हें संसार मूर्ख कहता है, उन्हीं को यहोवा अपने प्रचारकों के रूप में इस्तेमाल करता है। हाँ, इन प्रचारकों की सेवकाई की मूर्खता के द्वारा, परमेश्वर विश्वास करनेवालों को बचाता है। यहोवा ने मामलों को ऐसे व्यवस्थित किया कि इस “मूर्खता” के प्रचारक अपनी महिमा नहीं कर सकते हैं, और दूसरे मनुष्य उचित ढंग से उनकी महिमा नहीं कर सकते जिनके द्वारा उन्होंने सुसमाचार सुना है। ऐसा इसलिए है ताकि “कोई प्राणी परमेश्वर के साम्हने घमण्ड न करने पाए।” (१ कुरिन्थियों १:२८-३१; ३:६, ७) सच है, प्रचारक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, परन्तु जिस संदेश को प्रचार करने के लिए उसे नियुक्त किया गया है, उसी के कारण ही एक व्यक्ति का उद्धार होगा अगर वह विश्वास करे। “जो ज्ञान ऊपर से आता है,” उसके चाहनेवाले, प्रचारक के संदेश को सिर्फ़ इसलिए तुच्छ नहीं मानेंगे कि वह मूर्ख और दीन प्रतीत होता है, सताया हुआ है, और घर-घर जाता है। इस के बदले, विनम्र लोग एक राज्य उद्घोषक का सम्मान करेंगे, क्योंकि वह यहोवा द्वारा नियुक्त प्रचारक है और परमेश्वर के नाम में आता है। वे ज़बानी और प्रकाशनों द्वारा लाए उस प्रचारक के संदेश को बहुत महत्त्व देंगे।—याकूब ३:१७; १ थिस्सलुनीकियों २:१३.
१३. (क) यहूदी और यूनानी लोगों ने क्रूस पर चढ़ाए गये मसीह के प्रचार को किस नज़रिए से देखा? (ख) यीशु के अनुयायी बनने के लिए किन लोगों के वर्गों से ज़्यादों को नहीं बुलाया गया, और क्यों?
१३ परमेश्वर के तरीक़ों पर विचार-विमर्श को जारी रखते हुए, पौलुस कहता है: “यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं। परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है। परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर का ज्ञान है। क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है। हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञानवानों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे।”—१ कुरिन्थियों १:२२-२७; यशायाह ५५:८, ९ से तुलना कीजिए.
१४. (क) उनके प्रत्यय-पत्र के बारे में पूछे जाने पर, यहोवा के गवाह किस बात की ओर संकेत करते हैं? (ख) पौलुस ने क्यों सांसारिक बुद्धि के किसी प्रदर्शन से यूनानियों को खुश करने से इन्कार किया?
१४ जब यीशु पृथ्वी पर था, तो यहूदियों ने स्वर्ग से एक चिन्ह की मांग की। (मत्ती १२:३८, ३९; १६:१) परन्तु यीशु ने कोई भी चिन्ह देने से इन्कार किया। इसी प्रकार, आज यहोवा के गवाह कोई चिन्ह समान प्रत्यय-पत्र नहीं प्रदर्शित करते हैं। इस के बजाय, वे सुसमाचार को प्रचार करने की अपनी कार्यनियुक्ति की ओर संकेत करते हैं, जो कि यशायाह ६१:१, २; मरकुस १३:१०; और प्रकाशितवाक्य २२:१७ जैसी बाइबल आयतों में दर्ज है। पुराने समय के यूनानी लोग इस संसार की चीज़ों में बुद्धि, ऊँची शिक्षा ढूँढ़ते थे। जबकि पौलुस इस संसार की बुद्धि में शिक्षित था, उसने इसका प्रदर्शन करके यूनानियों को खुश करने से इन्कार किया। (प्रेरितों २२:३) उसने शास्त्रीय यूनानी भाषा के बजाय, आम लोगों की यूनानी भाषा में बातचीत तथा लिखाई की। पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा: “हे भाइयो, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। . . . मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।”—१ कुरिन्थियों २:१-५.
१५. सुसमाचार का हंसी ठट्ठा उड़ानेवालों को पतरस क्या याद दिलाता है, और वर्तमान परिस्थिति कैसे नूह के दिनों के समान है?
१५ इन अंतिम दिनों में, परमेश्वर के आनेवाले नये संसार और इस संसार के नज़दीक आते हुए अंत के सुसमाचार का हंसी ठट्ठा करनेवालों को प्रेरित पतरस याद दिलाता है कि नूह के दिनों का संसार “जल में डूब कर नाश हो गया।” (२ पतरस ३:३-७) उस विध्वंसक अंत का सामना करते हुए, नूह ने क्या किया? बहुतेरे लोग उसको सिर्फ़ एक जहाज़ बनानेवाला समझते हैं। परन्तु पतरस ने कहा कि जब परमेश्वर उस प्राचीन संसार पर जल प्रलय लाया, तो उसने “धर्म के प्रचारक नूह समेत आठ व्यक्तियों को बचा लिया।” (२ पतरस २:५) अपनी सांसारिक बुद्धि में, उन भक्तिहीन प्रलयपूर्व लोगों ने निस्संदेह नूह के प्रचार का मज़ाक उड़ाया होगा और उसे मूर्ख, अयथार्थवादी, तथा अव्यावहारिक कहा होगा। आज, सच्चे मसीही समान परिस्थिति का सामना कर रहे हैं, क्योंकि यीशु ने हमारी पीढ़ी की तुलना नूह के दिनों के साथ की थी। परन्तु, मसख़रों के बावजूद, राज्य सुसमाचार का प्रचार सिर्फ़ बातें ही नहीं है। नूह के किये प्रचार के समान, प्रचारक के लिए तथा उसके सुननेवालों के लिए यह उद्धार का अर्थ रखता है!—मत्ती २४:३७-३९; १ तीमुथियुस ४:१६.
‘मूर्ख बनना कि ज्ञानी हो जाएं’
१६. अरमगिदोन के समय पर इस संसार की बुद्धि का क्या होगा, और कौन बचकर परमेश्वर के नये संसार में जाएंगे?
१६ जल्द, अरमगिदोन के समय, यहोवा परमेश्वर सब “ज्ञानवानों के ज्ञान” को नाश कराएगा। उन सब “समझदारों की समझ” को वह एक तरफ़ कर देगा, जिन्होंने भविष्यवाणियाँ कीं कि कैसे उनकी नयी विश्व-व्यवस्था मानवजाति के लिए बेहतर परिस्थितियाँ लाएगी। “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई,” इस संसार के सब छल-तर्क, दर्शनशास्त्र, और बुद्धि को भस्म कर देगी। (१ कुरिन्थियों १:१९; प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६) उस लड़ाई से बचकर परमेश्वर के नये संसार में जीवन प्राप्त करनेवाले सिर्फ़ वही लोग होंगे जो उस बात की आज्ञा पालन करते हैं जिसे यह संसार मूर्खता कहता है—हाँ, यहोवा का शानदार राज्य सुसमाचार।
१७. यहोवा के गवाह किस प्रकार “मूर्ख” बन गये, और परमेश्वर के सुसमाचार प्रचारक क्या करने के लिए दृढ़ हैं?
१७ उसकी आत्मा द्वारा निदेशित, यहोवा के गवाह उस चीज़ का प्रचार करने से लज्जित नहीं हैं जिसे यह संसार मूर्खता कहता है। सांसारिक तौर से बुद्धिमान होने का यत्न करने के बजाय, वे ‘मूर्ख’ बन गये हैं। कैसे? राज्य-प्रचार कार्य करने से, ताकि वे बुद्धिमान हों, जैसे पौलुस ने लिखा: “यदि तुम में से कोई इस संसार में अपने आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने; कि ज्ञानी हो जाए।” (१ कुरिन्थियों ३:१८-२०) यहोवा के सुसमाचार प्रचारक अपने संदेश के जीवन-रक्षक मूल्य को जानते हैं और बिना कम किये इसे प्रचार करते ही रहेंगे, जब तक कि अरमगिदोन की लड़ाई में इस संसार और इसकी बुद्धि का अंत न हो जाए। जल्द ही, यहोवा परमेश्वर अपनी विश्व सर्वसत्ता का दोषनिवारण करके उन सब के लिए अनन्त जीवन लाएगा जो “इस प्रचार की मूर्खता” पर विश्वास करते और अमल करते हैं।
[फुटनोट]
a प्राचीन यूनान के बुद्धिमान लोगों की दर्शनशास्त्रीय बहस और जाँच-पड़ताल के बावजूद, उनके लेख दिखाते हैं कि उन्हें आशा का कोई सच्चा आधार नहीं मिला। प्रोफ़ेसर जे. आर. एस. स्टॅरट तथा सॅमयल एंगस दिखाते हैं: “जीवन के दुःखों, प्रेम की समाप्ति, आशा की धोखेबाज़ी, और मृत्यु की निष्ठुरता के विषय में किसी और साहित्य में इतना कारुणिक विलाप नहीं पाया जाता है।”—फ़ंक एड वॅगनल्ज़ न्यू “स्टैंडर्ड” बाइबल डिक्शनरि (Funk and Wagnalls New “Standard” Bible Dictionary), १९३६, पृष्ठ ३१३.
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▫ कौनसी दो प्रकार की बुद्धि होती है?
▫ सांसारिक बुद्धि की बुनियादी कमी क्या है?
▫ सुसमाचार को प्रचार करना क्यों सबसे व्यावहारिक कार्य है?
▫ जल्द ही सब सांसारिक बुद्धि का क्या होगा?
▫ यहोवा के गवाह उस चीज़ का प्रचार करने से लज्जित क्यों नहीं हैं जिसे यह संसार मूर्खता कहता है?