प्रेम (अगापे)—क्या नहीं है और क्या है
“अपने . . . भाईचारे की प्रीति को प्रेम प्रदान करते जाओ।” —२ पतरस १:५, ७, NW.
१. (क) बाइबल कौनसे गुण को उत्कृष्टता देती है? (ख) कौनसे चार यूनानी शब्दों को अक्सर “प्रेम” अनुवाद किया जाता है, और १ यूहन्ना ४:८ में कौनसे शब्द का ज़िक्र किया गया है?
यदि एक गुण या सद्गुण है जिसे परमेश्वर का वचन, बाइबल उत्कृष्टता देती है, तो वह है प्रेम। मसीही शास्त्र की मूल भाषा, यूनानी में चार शब्द हैं जिन्हें अक्सर “प्रेम” अनुवाद किया जाता है। जिस प्रेम पर हम इस समय विचार कर रहे हैं, यह ईरॉस (एक ऐसा शब्द जो मसीही यूनानी शास्त्र में नहीं पाया जाता है) वाला प्रेम नहीं है, जो यौन-आकर्षण पर आधारित है; न ही यह स्टॉरजे वाला प्रेम है, रक्त सम्बन्धों पर आधारित भावना; न ही यह फिलिया है, आपसी आदर पर आधारित मित्रता का हार्दिक प्रेम, जिसकी चर्चा पिछले लेख में की गई थी। इनके बजाय, यह अगापे है—सिद्धांत पर आधारित प्रेम, जिसे निःस्वार्थता का समानार्थक कहा जा सकता है, वह प्रेम जिसका ज़िक्र प्रेरित यूहन्ना ने किया जब उसने कहा: “परमेश्वर प्रेम है।”—१ यूहन्ना ४:८.
२. उचित रूप से प्रेम (अगापे) के विषय में क्या कहा गया है?
२ इस प्रेम (अगापे) के विषय में, प्रोफेसर विलियम बार्कली अपने न्यू टेस्टामेंट वर्डस् (New Testament Words) में कहता है: “अगापे का सम्बन्ध मन के साथ है: यह केवल एक ऐसी भावना नहीं है जो स्वैच्छिक हमारे हृदय में उठती है [जैसे फिलिया के मामले में हो सकता है]; यह एक सिद्धांत है जिसके अनुसार हम जानबूझकर जीते हैं। अगापे का अत्यधिक सम्बन्ध संकल्प के साथ है। यह एक विजय, एक जीत, और उपलब्धि है। किसी ने कभी अपने शत्रुओं से स्वाभाविक रूप से प्रेम नहीं किया। अपने शत्रुओं से प्रेम करना अपनी सभी स्वाभाविक प्रवृत्तियों और भावनाओं पर विजय प्राप्त करना है। यह अगापे . . . असल में अप्रीतिकर से प्रेम करने, उन लोगों से प्रेम करने की शक्ति है जिन्हें हम पसन्द नहीं करते हैं।”
३. यीशु मसीह और पौलुस ने प्रेम पर कैसा ज़ोर दिया?
३ जी हाँ, एक चीज़ जो यहोवा परमेश्वर की शुद्ध उपासना को सभी अन्य प्रकार की उपासना से भिन्न करती है, वह है कि यह इस प्रकार के प्रेम पर ज़ोर देती है। उचित रीति से यीशु मसीह ने दो महत्तम आज्ञाओं को व्यक्त किया: “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; . . . तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना। और दूसरी यह है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना: इस से बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।” (मरकुस १२:२९-३१) प्रेरित पौलुस ने १ कुरिन्थियों १३ अध्याय में प्रेम पर समान ज़ोर दिया। इस बात पर ज़ोर देने के बाद कि प्रेम प्रमुख अनिवार्य गुण था, उसने यह कहकर समाप्त किया: “पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।” (१ कुरिन्थियों १३:१३) यीशु ने उचित रीति से कहा कि प्रेम उसके अनुयायियों का पहचान चिह्न होगा।—यूहन्ना १३:३५.
वे बातें जो प्रेम नहीं है
४. पौलुस १ कुरिन्थियों १३:४-८ में प्रेम के कितने नकारात्मक और कितने सकारात्मक पहलुओं का ज़िक्र करता है?
४ यह बात कही गई है कि यह कहना कि प्रेम क्या है से ज़्यादा आसान है यह कहना कि वह क्या नहीं है। इस बात में कुछ सच्चाई है, क्योंकि प्रेरित पौलुस प्रेम पर अपने अध्याय, १ कुरिन्थियों १३, आयत ४ से ८ में, नौ बातों का ज़िक्र करता है जो प्रेम नहीं है और सात बातें जो वह है।
५. “ईर्ष्या” को कैसे परिभाषित किया गया है, और शास्त्रवचनों में इसे कैसे सकारात्मक अर्थ में प्रयोग किया गया है?
५ पहली बात जो पौलुस कहता है कि जो प्रेम नहीं है, वह है कि यह “ईर्ष्या नहीं करता।” (NW) इसे थोड़ा स्पष्ट करने की आवश्यकता है क्योंकि ईर्ष्या के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं। एक शब्दकोश “ईर्ष्या” को “प्रतिद्वंद्विता के प्रति असहनशील” और “अनन्य भक्ति की माँग करना” परिभाषित करता है। इसलिए, मूसा ने निर्गमन ३४:१४ में कहा: “तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील [ईर्ष्या, NW] है, वह जल उठनेवाला [ईर्ष्यालु, NW] ईश्वर है।” निर्गमन २०:५ (NW) में, यहोवा कहता है: “मैं यहोवा तेरा परमेश्वर अनन्य भक्ति की माँग करनेवाला परमेश्वर हूं।” उसी रीति से, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं तुम्हारे विषय में ईश्वरीय ईर्ष्या के साथ ईर्ष्या रखता हूं।”—२ कुरिन्थियों ११:२, NW.
६. कौनसे शास्त्रवचनीय उदाहरण दिखाते हैं कि क्यों प्रेम ईर्ष्या नहीं करता?
६ लेकिन, सामान्यतः, “ईर्ष्या” एक बुरा अर्थ रखती है, जिस कारण उसे गलतियों ५:२० में शरीर के कामों के साथ सूचीबद्ध किया गया है। जी हाँ, ऐसी ईर्ष्या स्वार्थी है और नफ़रत उत्पन्न करती है, और नफ़रत प्रेम के विपरीत है। ईर्ष्या के कारण कैन ने हाबिल की हत्या करने की हद तक उससे नफ़रत की, और ईर्ष्या के कारण यूसुफ के दस सौतेले भाइयों ने उसे मार डालने की इच्छा की हद तक उससे नफ़रत की। प्रेम किसी की सम्पत्ति या अनुकूल स्थिति के कारण ईर्ष्या से कुढ़ता नहीं है, जिस प्रकार राजा अहाब नाबोत की दाख की बारी के कारण ईर्ष्या से उससे कुढ़ा।—१ राजा २१:१-१९.
७. (क) कौनसी घटना दिखाती है कि अपनी बड़ाई करने से यहोवा अप्रसन्न होता है? (ख) प्रेम बिना सोचे-समझे भी अपनी बड़ाई क्यों नहीं करता?
७ पौलुस आगे हमें बताता है कि प्रेम “अपनी बड़ाई नहीं करता।” अपनी बड़ाई करना प्रेम की कमी सूचित करता है, क्योंकि यह एक व्यक्ति का अपने आपको दूसरों से ऊच्च पद पर रखने का कारण बनता है। अपनी बड़ाई करनेवालों से यहोवा अप्रसन्न होता है, यह इस बात से देखा जा सकता है जिस प्रकार से उसने राजा नबूकदनेस्सर को विनम्र किया जब उसने अपनी बड़ाई की। (दानिय्येल ४:३०-३५) अपनी बड़ाई अक्सर स्वयं अपनी उपलब्धियों या सम्पत्ति से अति प्रसन्न होकर बिना सोचे-समझे की जाती है। कुछ लोग शायद मसीही सेवकाई में अपनी सफलता के बारे में डींग मारने के प्रति प्रवृत्त हों। अन्य लोग उस प्राचीन की तरह हैं जिसने लगभग $५०,००० की एक गाड़ी ख़रीदी और अपने मित्रों को केवल यही बात बताने के लिए उन्हें फोन करने को मजबूर हुआ। ऐसी सब बातें प्रेमरहित हैं क्योंकि ये अपनी बड़ाई करनेवाले को अपने सुननेवालों से उच्च दिखाता है।
८. (क) उन व्यक्तियों के प्रति यहोवा की क्या मनोवृत्ति है जो घमंडी हैं? (ख) क्यों प्रेम इस तरीक़े से व्यवहार नहीं करता?
८ फिर हम से कहा गया है कि प्रेम “घमंड नहीं करता।” (NW) एक व्यक्ति जो घमंडी है, या अभिमानी है, वह प्रेमरहित रूप से अपने आपको दूसरों से उच्च करता है। ऐसी मनोवृत्ति अत्यधिक मूर्खतापूर्ण है क्योंकि “परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है।” (याकूब ४:६) प्रेम बिल्कुल विपरीत तरीक़े से कार्य करता है; वह दूसरों को अपने से अच्छा समझता है। फिलिप्पियों २:२, ३ में पौलुस ने लिखा: “मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित, और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।” ऐसी मनोवृत्ति दूसरों को आराम महसूस कराती है, जबकि एक अभिमानी व्यक्ति झगड़ालुता के कारण दूसरों को बेआराम महसूस कराता है।
९. क्यों प्रेम अनरीति नहीं चलता?
९ पौलुस आगे कहता है कि प्रेम “अनरीति नहीं चलता।” शब्दकोश “अनरीति” को “शिष्टाचार या नीतियों के अनुसार अत्यधिक अनुचित या घिनौना” परिभाषित करता है। एक व्यक्ति जो अनरीति (प्रेमरहित रूप से) चलता है दूसरों की भावनाओं की उपेक्षा करता है। अनेक बाइबल अनुवाद इस यूनानी शब्द को “अशिष्ट” अनुवाद करते हैं। ऐसा व्यक्ति उन बातों का निरादर करता है जो उचित या सुरुचिपूर्ण समझी जाती हैं। निःसंदेह, दूसरों के लिए प्रेममय लिहाज़ रखने का अर्थ होगा उन सब बातों से बचे रहना जो अशिष्ट या अनरीति हैं, वे बातें जो नाराज़ करती हैं और शायद धक्का भी पहुँचाएँ।
अन्य बातें जो प्रेम नहीं है
१०. किस तरीक़े से प्रेम अपना हित नहीं खोजता?
१० आगे हमें यह कहा गया है कि प्रेम “अपना हित नहीं खोजता” (NW), यानी, जब हमारे और अन्य लोगों के निजी हितों की बात आती है। प्रेरित और कहीं यह कहता है: “किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है।” (इफिसियों ५:२९) लेकिन, जब हमारे हित अन्य व्यक्ति के हितों से मुक़ाबला करते हैं और बाइबल के कोई अन्य सिद्धांत शामिल नहीं हैं, तब हमें वैसा कार्य करना चाहिए जैसा इब्राहीम ने लूत के साथ किया था, यानी प्रेममय रूप से अन्य व्यक्ति को अधिमान्यता दे देना।—उत्पत्ति १३:८-११.
११. प्रेम झुंझलाता नहीं का क्या अर्थ है?
११ प्रेम जल्दी बुरा भी नहीं मानता। इसलिए पौलुस हमें कहता है कि प्रेम “झुंझलाता नहीं।” यह तुनकमिज़ाज नहीं है। यह संयम बरतता है। ख़ासकर विवाहित दम्पतियों को अपनी आवाज़ उतावलेपन से ऊँची उठाने या एक दूसरे पर चिल्लाने से बचे रहने के द्वारा इस सलाह को गम्भीरता से लेना चाहिए। ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जब झुंझलाना आसान होता है, जिस कारण पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह देने की आवश्यकता महसूस की: “प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो”—जी हाँ, झुंझलाए न—“विरोधियों को नम्रता से समझाए।”—२ तीमुथियुस २:२४, २५.
१२. (क) प्रेम किस तरीक़े से चोट का लेखा नहीं रखता? (ख) एक चोट का लेखा रखना क्यों मूर्खतापूर्ण है?
१२ जो बातें प्रेम नहीं है उन के बारे में आगे बताते हुए, पौलुस सलाह देता है: “प्रेम . . . चोट का लेखा नहीं रखता।” (NW) इसका यह अर्थ नहीं कि प्रेम चोट की ओर ध्यान नहीं देता। यीशु ने दिखाया कि जब हमें गम्भीर रूप से चोट पहुँचाई जाती है तब हमें मामले से कैसे निपटना है। (मत्ती १८:१५-१७) लेकिन प्रेम हमें नाराज़ रहने, दुर्भाव रखे रहने नहीं देता। एक चोट का लेखा नहीं रखने का अर्थ है कि जब एक बार मामला शास्त्रवचनीय तरीक़े से निपटाया गया है, तब क्षमा करना और उसके बारे में भूल जाना। जी हाँ, एक चोट का लेखा रखते हुए, एक ग़लती को बार-बार याद करने के द्वारा अपने आपको पीड़ित न कीजिए या अपने आपको दुःखी न कीजिए!
१३. अधार्मिकता से आनन्दित नहीं होने का क्या अर्थ है, और प्रेम ऐसा क्यों नहीं करता?
१३ इसके अतिरिक्त, हमें कहा गया है कि प्रेम “अधार्मिकता से आनन्दित नहीं होता।” (NW) संसार अधार्मिकता से आनन्दित होता है, जैसे कि हिंसात्मक और अश्लील साहित्य, फ़िल्मों, और टी.वी. कार्यक्रमों की लोकप्रियता से देखा जा सकता है। ऐसे सभी आनन्द स्वार्थी हैं, और परमेश्वर के धार्मिक सिद्धांतों या दूसरों के कल्याण के लिए परवाह नहीं दिखाते हैं। ऐसे सभी स्वार्थी आनन्द शरीर के लिए बोना है और समय आने पर शरीर से विनाश की कटनी काटेंगे।—गलतियों ६:८.
१४. यह विश्वास के साथ क्यों कहा जा सकता है कि प्रेम कभी टलता नहीं?
१४ अब आख़िरी बात जो प्रेम नहीं करता: “प्रेम कभी टलता नहीं।” एक बात तो यह है कि प्रेम कभी टलता या समाप्त नहीं होता क्योंकि परमेश्वर प्रेम है, और वह “सनातन राजा” है। (१ तीमुथियुस १:१७) रोमियों ८:३८, ३९ में, हमें आश्वासन दिया गया है कि हमारे लिए यहोवा का प्रेम कभी टलेगा नहीं: “मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” साथ ही, प्रेम कभी टलता नहीं क्योंकि यह कभी अपर्याप्त नहीं पाया जाता। प्रेम किसी भी अवसर, किसी भी चुनौती की माँग पूरी करने में समर्थ है।
वे बातें जो प्रेम है
१५. प्रेम के सकारात्मक पहलुओं में पौलुस धीरज को सबसे पहले क्यों सूचीबद्ध करता है?
१५ अब सकारात्मक पक्ष की ओर आते हुए, अर्थात् वे बातें जो प्रेम है, पौलुस आरम्भ करता है: “प्रेम धीरजवन्त है।” यह कहा गया है कि धीरज के बिना, यानी, एक दूसरे को धीरतापूर्वक सहन करने के बिना मसीही भाईचारे जैसी कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। यह इस कारण है क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं, और हमारी अपरिपूर्णताएँ और कमज़ोरियाँ दूसरे लोगों के धीरज की हद को परखती हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि प्रेम क्या है के सम्बन्ध में प्रेरित पौलुस इस पहलू को सबसे पहले सूचीबद्ध करता है!
१६. एक परिवार के सदस्य एक दूसरे को किन तरीक़ों से कृपालुता दिखा सकते हैं?
१६ पौलुस कहता है कि प्रेम “कृपालु” (NW) भी है। अर्थात्, प्रेम सहायता करता है, विचारशील है, दूसरों का लिहाज़ रखता है। कृपालुता अपने आपको बड़ी और छोटी दोनों बातों में प्रकट करती है। वह मित्रवत् सामरी निःसंदेह उस व्यक्ति को कृपालुता दिखा रहा था जिसे डाकुओं ने लूट लिया था। (लूका १०:३०-३७) प्रेम “कृपया” कहने में आनन्द प्राप्त करता है। यह कहना कि “रोटी पकड़ाइए” एक आज्ञा है। इसके आगे “कृपया” लगाने से यह एक निवेदन बन जाता है। पति अपनी पत्नियों के प्रति कृपालु होते हैं जब वे १ पतरस ३:७ में दी गई सलाह को लागू करते हैं: “हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” पत्नियाँ अपने पतियों के प्रति कृपालु होती हैं जब वे उन्हें “गहरा आदर” दिखाती हैं। (इफिसियों ५:३३, NW) पिता अपने बच्चों के प्रति कृपालु होते हैं जब वे इफिसियों ६:४ में दी गई सलाह को लागू करते हैं: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।”
१७. कौनसे दो तरीक़ों से प्रेम सत्य से आनन्दित होता है?
१७ प्रेम अधार्मिकता से आनन्दित नहीं होता बल्कि “सत्य से आनन्दित होता है।” प्रेम और सत्य साथ-साथ जाते हैं—परमेश्वर प्रेम है, और साथ ही, वह “सत्यवादी ईश्वर” है। (भजन ३१:५) झूठ पर सत्य का विजयी होना और उसका परदाफ़ाश करना देखकर प्रेम आनन्दित होता है; और कुछ हद तक इस कारण यहोवा के उपासकों की गिनती में आज महान वृद्धि हो रही है। लेकिन, क्योंकि सत्य का वैषम्य अधार्मिकता के साथ दिखाया गया है, यह विचार भी हो सकता है कि प्रेम धार्मिकता से आनन्दित होता है। प्रेम धार्मिकता की विजय से आनन्दित होता है, जैसे कि यहोवा के उपासकों को बड़े बाबुल के पतन पर आनन्दित होने के लिए आज्ञा दी गई है।—प्रकाशितवाक्य १८:२०.
१८. प्रेम किस अर्थ में सब बातें सह लेता है?
१८ पौलुस हमें यह भी कहता है कि प्रेम “सब बातें सह लेता है।” जैसे किङ्गडम इंटरलीनियर दिखाती है, विचार यह है कि प्रेम सब बातें ढांप देता है। यह किसी भाई की “चुगली” नहीं “खाता है,” जैसे दुष्ट लोग चुगली खाने के प्रति प्रवृत्त होते हैं। (भजन ५०:२०; नीतिवचन १०:१२; १७:९) जी हाँ, यहाँ का विचार १ पतरस ४:८ के समान है: “प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” निःसंदेह, निष्ठा एक व्यक्ति को यहोवा के विरुद्ध और मसीही कलीसिया के विरुद्ध गम्भीर पाप को ढांपने से बचाए रखेगी।
१९. प्रेम किस तरीक़े से सब बातों की प्रतीति करता है?
१९ प्रेम “सब बातों की प्रतीति करता है।” प्रेम सकारात्मक है, नकारात्मक नहीं। इसका यह अर्थ नहीं कि प्रेम आसानी से मूर्ख बन जाता है। यह जल्दी से सनसनीखेज़ कथनों की प्रतीति नहीं करता है। लेकिन एक व्यक्ति का परमेश्वर पर विश्वास रखने के लिए, उसके पास प्रतीति करने का संकल्प होना चाहिए। इसलिए प्रेम संदेही नहीं है, यानी अनुचित रूप से आलोचनात्मक नहीं है। यह प्रतीति करने का प्रतिरोध नहीं करता जैसे कि नास्तिक करते हैं, जो हठधर्मी से कहते हैं कि कोई परमेश्वर है ही नहीं, न ही यह अज्ञेयवादी की तरह है, जो हठधर्मी से दावा करते हैं कि यह जानना बिल्कुल असम्भव है कि हम कहाँ से आए हैं, हम यहाँ क्यों हैं, और भविष्य किस प्रकार का होगा। परमेश्वर का वचन इन सब बातों के विषय में हमें आश्वासन देता है। प्रेम प्रतीति करने के लिए इसलिए भी तैयार है क्योंकि यह विश्वासी है, न कि अनुचित रूप से शक्की है।
२०. प्रेम कैसे आशा से सम्बद्ध है?
२० प्रेरित पौलुस हमें अतिरिक्त आश्वासन देता है कि प्रेम “सब बातों की आशा रखता है।” चूँकि प्रेम सकारात्मक है, न कि नकारात्मक, यह परमेश्वर के वचन में प्रतिज्ञा की गई सभी बातों पर मज़बूत आशा रखता है। हमें कहा गया है: “जोतनेवाला आशा से जोते, और दावनेवाला भागी होने की आशा से दावनी करे।” (१ कुरिन्थियों ९:१०) जिस प्रकार प्रेम विश्वासी है, यह आशावान् भी है, हमेशा सर्वोत्तम बातों की आशा करता है।
२१. कौनसा शास्त्रवचनीय आश्वासन है कि प्रेम धीरज धरता है?
२१ आख़िर में, हमें आश्वस्त किया गया है कि प्रेम “सब बातों में धीरज धरता है।” प्रेरित पौलुस १ कुरिन्थियों १०:१३ में हम से जो कहता है, उसके कारण यह ऐसा करने में समर्थ है: “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।” प्रेम हमें प्रेरित करेगा कि हम शास्त्रवचनों में परमेश्वर के सेवकों के अनेक उदाहरणों की ओर देखें जिन्होंने धीरज धरा, और जिनमें यीशु मसीह मुख्य है, जैसे कि हमें इब्रानियों १२:२, ३ में याद दिलाया गया है।
२२. परमेश्वर के बच्चों के तौर पर, हमें हमेशा कौनसे उत्कृष्ट गुण को दिखाने के लिए चिंतित रहना चाहिए?
२२ सचमुच, प्रेम (अगापे) वह उत्कृष्ट गुण है जिसे हमें मसीही, यहोवा के गवाह होने के नाते विकसित करने की आवश्यकता है, दोनों के सम्बन्ध में कि यह क्या नहीं है और क्या है। परमेश्वर के बच्चों के तौर पर, ऐसा हो कि हम हमेशा परमेश्वर की आत्मा के इस फल को दिखाने के लिए चिंतित रहें। ऐसा करना ईश्वर-समान होने के जैसा होगा, क्योंकि याद रखिए, “परमेश्वर प्रेम है।”
क्या आपको याद है?
▫ यीशु मसीह और पौलुस कैसे प्रेम की उत्कृष्टता को दिखाते हैं?
▫ प्रेम किस अर्थ में ईर्ष्या नहीं करता?
▫ प्रेम कैसे “सब बातें सह लेता है”?
▫ यह क्यों कहा जा सकता है कि प्रेम कभी टलता नहीं?
▫ प्रेम किन दो तरीक़ों से सत्य से आनन्दित होता है?
[पेज 27 पर बक्स]
प्रेम (अगापे)
क्या नहीं है क्या है
१. ईर्ष्या १. धीरजवन्त
२. अपनी बड़ाई नहीं करता २. कृपालु
३. घमंड नहीं करता ३. सत्य से आनन्दित होता है
४. अनरीति चलता ४. सब बातें सह लेता है
५. अपना हित खोजता ५. सब बातों की प्रतीति करता है
६. झुंझलाता ६. सब बातों की आशा रखता है
७. चोट का लेखा रखता ७. सब बातों में धीरज धरता है
८. अधार्मिकता से आनन्दित होता
९. कभी टलता नहीं
[पेज 24 पर तसवीरें]
यहोवा ने नबूकदनेस्सर को अपनी बड़ाई करने के कारण विनम्र किया