न्यायपूर्ण संसार—एक सपना नहीं!
“न्याय पृथ्वी पर मनुष्य की बड़ी चिंता है,” अमरीकी राजनेता डैनियल वॆबस्टर ने कहा। और बाइबल कहती है: “यहोवा न्याय से प्रीति रखता [है]।” (भजन ३७:२८) परमेश्वर के स्वरूप में बनाये गये, पहले मानव जोड़े के पास ईश्वरीय गुण थे, जिनमें न्याय का बोध शामिल था।—उत्पत्ति १:२६, २७.
शास्त्र यह भी बताता है कि “अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं।” इस प्रकार वे “व्यवस्था की बातें अपने अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती हैं।” (रोमियों २:१४, १५) जी हाँ, मनुष्यों में एक अंतःकरण—सही और ग़लत का आंतरिक बोध—डाला गया है। स्पष्ट है कि न्याय की ज़रूरत मनुष्य के स्वभाव में है।
न्याय की ज़रूरत के साथ निकटता से जुड़ी है मनुष्य द्वारा सुख की खोज, क्योंकि भजन १०६:३ कहता है: “क्या ही धन्य [ख़ुश] हैं वे जो न्याय पर चलते, और हर समय धर्म के काम करते हैं।” लेकिन, मनुष्य एक न्यायपूर्ण संसार क्यों नहीं ला सका है?
मनुष्य असफल क्यों हुआ है?
न्यायपूर्ण संसार लाने में असफल रहने का एक मूल कारण है वह कलंक जो हमने अपने प्रथम माता-पिता, आदम और हव्वा से उत्तराधिकार में पाया है। बाइबल समझाती है: “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५:१२) वह कलंक पाप है। जबकि आदम और हव्वा को दोषरहित सृजा गया था, उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने का फ़ैसला किया और इस प्रकार अपने आपको पापी बना लिया। (उत्पत्ति २:१६, १७; ३:१-६) इस कारण, वे अपने बच्चों के लिए पापमय, ग़लत प्रवृत्तियों की विरासत छोड़ गये हैं।
व्यक्तित्व में लालच और पूर्वधारणा जैसे गुण क्या पापमय प्रवृत्तियों का फल नहीं? और क्या ये गुण संसार में हो रहे अन्याय में योग नहीं देते? जानबूझकर किये गये पर्यावरण दूषण और आर्थिक दमन के मूल में लालच ही है! नृजातीय झगड़ों और जातीय अन्यायों के पीछे निश्चित ही पूर्वधारणा है। ऐसे गुण लोगों को चोरी करने, धोखाधड़ी करने और दूसरों को हानि पहुँचानेवाला व्यवहार करने के लिए भी उकसाते हैं।
हमारी पापमय प्रवृत्तियों के कारण न्याय और भलाई करने के प्रयास प्रायः असफल हो जाते हैं, चाहे वे अच्छे-से-अच्छे अभिप्राय से भी क्यों न किये गये हों। स्वयं प्रेरित पौलुस ने स्वीकार किया: “जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूं।” वह यह कहते हुए आगे इस संघर्ष को समझाता है: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था की बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।” (रोमियों ७:१९-२३) संभवतः, आज हमारी भी यही लड़ाई है। इसीलिए अन्याय इतना फैला हुआ है।
जिस ढंग से मनुष्यों ने शासन किया है उसने भी संसार में हो रहे अन्याय में योग दिया है। हर देश में कानून हैं और उन्हें लागू करनेवाले भी। और हाँ, न्यायी और न्यायालय भी हैं। निश्चित ही, कुछ नीतिमान लोगों ने मानव अधिकारों को बनाए रखने और यह ध्यान रखने की कोशिश की है कि सभी के लिए बराबर का न्याय हो। फिर भी, उनके अधिकतर प्रयास असफल रहे हैं। क्यों? उनकी असफलता से जुड़े विभिन्न कारणों का सार देते हुए, यिर्मयाह १०:२३ बताता है: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” परमेश्वर से विमुख, मनुष्य एक धर्मी और न्यायपूर्ण संसार बनाने में समर्थ है ही नहीं।—नीतिवचन १४:१२; सभोपदेशक ८:९.
न्यायपूर्ण संसार बनाने के मनुष्य के प्रयास में एक बड़ी बाधा है शैतान अर्थात् इब्लीस। बाइबल साफ़-साफ़ बताती है कि विद्रोही स्वर्गदूत शैतान आरंभिक “हत्यारा” और “झूठा” है और “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (यूहन्ना ८:४४; १ यूहन्ना ५:१९) प्रेरित पौलुस उसकी पहचान “इस संसार के ईश्वर” के रूप में कराता है। (२ कुरिन्थियों ४:३, ४) क्योंकि शैतान धार्मिकता से घृणा करता है वह दुष्टता को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करता है। जब तक संसार उसके वश में है, तब तक हर तरह का अन्याय और उससे परिणित क्लेश मानवजाति पर छाया रहेगा।
क्या इस सब का यह अर्थ है कि मानव समाज में अन्याय होना ही है? क्या एक न्यायपूर्ण संसार का सपना सच नहीं हो सकता?
न्यायपूर्ण संसार एक वास्तविकता—कैसे?
यदि एक न्यायपूर्ण संसार की आशा को वास्तविकता बनना है तो मानवजाति को उस स्रोत की ओर देखना है जो अन्याय के कारणों को मिटा सकता है। लेकिन कौन पाप को जड़ से उखाड़ सकता है और शैतान तथा उसके शासकत्व को हटा सकता है? स्पष्ट है कि कोई मनुष्य या मानव संगठन ऐसा कठिन काम नहीं कर सकता। केवल यहोवा परमेश्वर कर सकता है! उसके बारे में बाइबल कहती है: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण ३२:४) और क्योंकि यहोवा “न्याय से प्रीति रखता” है, वह चाहता है कि मानवजाति न्यायपूर्ण संसार में जीवन का आनंद ले।—भजन ३७:२८.
परमेश्वर ने एक न्यायपूर्ण संसार लाने का प्रबंध किया है। उसी के बारे में बोलते हुए, प्रेरित पतरस ने लिखा: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (२ पतरस ३:१३) यह ‘नया आकाश’ नया भौतिक आकाश नहीं। परमेश्वर ने हमारे भौतिक आकाश को सिद्ध बनाया है और यह उसकी महिमा करता है। (भजन ८:३; १९:१, २) ‘नया आकाश’ पृथ्वी पर एक नया शासकत्व है। वर्तमान “आकाश” मानव-निर्मित सरकारों से बना है। जल्द ही, परमेश्वर के युद्ध, अरमगिदोन में यह मिट जाएगा और ‘नया आकाश’—उसका स्वर्गीय राज्य, या सरकार—आ जाएगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६) उस राज्य का राजा यीशु मसीह है। मानव शासकत्व का हमेशा के लिए अंत करके, यह सरकार अनंतकाल तक राज करेगी।—दानिय्येल २:४४.
तो फिर, “नई पृथ्वी” क्या है? यह एक नया ग्रह नहीं है, क्योंकि परमेश्वर ने पृथ्वी को मानव निवास के लिए एकदम सही बनाया है और उसकी इच्छा है कि यह सदा बनी रहे। (भजन १०४:५) “नई पृथ्वी” एक नये मानव समाज को सूचित करती है। (उत्पत्ति ११:१; भजन ९६:१) जिस “पृथ्वी” का नाश होगा वह ऐसे लोगों से बनी है जो अपने आपको इस दुष्ट रीति-व्यवस्था का भाग बनाते हैं। (२ पतरस ३:७) जो “नई पृथ्वी” इनकी जगह लेगी वह परमेश्वर के सच्चे सेवकों से बनी होगी, जो दुष्टता से घृणा करते हैं और धार्मिकता तथा न्याय से प्रेम करते हैं। (भजन ३७:१०, ११) इस प्रकार, शैतान का संसार मिट जाएगा।
लेकिन शैतान का भविष्य क्या है? प्रेरित यूहन्ना ने पूर्वबताया: “[मसीह यीशु] ने उस अजगर, अर्थात् पुराने सांप को, जो इब्लीस और शैतान है; पकड़ के हजार वर्ष के लिये बान्ध दिया। और उसे अथाह कुंड में डालकर बन्द कर दिया और उस पर मुहर कर दी, कि वह . . . जाति जाति के लोगों को फिर न भरमाए।” (प्रकाशितवाक्य २०:१-३) जैसे अँधेरी कोठरी में पड़ा क़ैदी कुछ नहीं कर सकता वैसे ही बँधा हुआ शैतान भी मानवजाति का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। मानवजाति को कितनी राहत मिलेगी, यह घटना न्यायपूर्ण संसार का अग्रदूत बनकर आएगी! और हज़ार साल के बीतने पर, शैतान का अस्तित्त्व मिटा दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य २०:७-१०.
लेकिन, वंशागत पाप के बारे में क्या? यहोवा ने पाप को जड़ से उखाड़ने का आधार पहले ही प्रदान कर दिया है। “मनुष्य का पुत्र [यीशु मसीह] . . . इसलिये आया कि . . . बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) शब्द “छुड़ौती” उस मूल्य को सूचित करता है जो बँधुओं को मुक्त कराने के लिए दिया जाता है। मानवजाति को छुड़ाने के लिए यीशु ने छुड़ौती के रूप में अपने परिपूर्ण मानव जीवन का मूल्य दिया।—२ कुरिन्थियों ५:१४; १ पतरस १:१८, १९.
यीशु का छुड़ौती बलिदान अभी-भी हमें लाभ पहुँचा सकता है। उसमें विश्वास रखने के द्वारा, हम परमेश्वर के सम्मुख एक शुद्ध स्थिति का आनंद ले सकते हैं। (प्रेरितों १०:४३; १ कुरिन्थियों ६:११) परमेश्वर के राज्य शासन के अधीन, छुड़ौती मानवजाति के लिए पाप से पूरी तरह मुक्त होना संभव बनाएगी। बाइबल की अंतिम पुस्तक एक लाक्षणिक ‘जीवन के जल की नदी’ का वर्णन करती है जो परमेश्वर के सिंहासन से निकलती है, और उसके तटों पर लाक्षणिक फलदायी वृक्ष लगे हैं जिनके पत्तों से “जाति जाति के लोग चंगे होते” हैं। (प्रकाशितवाक्य २२:१, २) बाइबल यहाँ जो शब्द-चित्र बनाती है वह यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर मानवजाति को पाप से मुक्त करने के सृष्टिकर्ता के अद्भुत प्रबंध को चित्रित करता है। इस प्रबंध का पूरी तरह से लागू किया जाना आज्ञाकारी मनुष्यों को पाप और मृत्यु से मुक्त करेगा।
न्यायपूर्ण संसार में जीवन
सोचिए कि राज्य शासन के अधीन जीवन कैसा होगा। अपराध और हिंसा बीती हुई बातें होंगी। (नीतिवचन २:२१, २२) आर्थिक अन्याय जाता रहेगा। (भजन ३७:६; ७२:१२, १३; यशायाह ६५:२१-२३) सामाजिक, जातीय, जनजातीय और नृजातीय भेदभाव का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। (प्रेरितों १०:३५) युद्ध और युद्ध शस्त्र न रहेंगे। (भजन ४६:९) लाखों मृतजनों को अन्याय से मुक्त संसार में फिर से जीवन दिया जाएगा। (प्रेरितों २४:१५) हर कोई परिपूर्ण और ओजपूर्ण स्वास्थ्य का आनंद लेगा। (अय्यूब ३३:२५; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) बाइबल हमें आश्वस्त करती है, “[यीशु मसीह] सच्चाई से न्याय चुकाएगा।”—यशायाह ४२:३.
इस बीच, हमारे साथ अन्याय हो सकता है, लेकिन ऐसा कभी न हो कि बदले में हम भी अन्याय करें। (मीका ६:८) जब अन्याय सहना पड़ता है तब भी ऐसा हो कि हम सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें। प्रतिज्ञात न्यायपूर्ण संसार जल्द ही एक वास्तविकता बनेगा। (२ तीमुथियुस ३:१-५; २ पतरस ३:११-१३) सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने वचन दिया है और वह ‘व्यर्थ न ठहरेगा।’ (यशायाह ५५:१०, ११) परमेश्वर हमसे क्या माँग करता है यह सीखने के द्वारा, उस न्यायपूर्ण संसार में जीवन के लिए तैयारी करने का अभी समय है।—यूहन्ना १७:३; २ तीमुथियुस ३:१६, १७.
[पेज 7 पर तसवीर]
परमेश्वर के प्रतिज्ञात नये संसार में अन्याय का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा