मसीही स्त्रियाँ सम्मान और आदर के योग्य हैं
“हे पतियो, . . . बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो।”—१ पतरस ३:७.
१, २. (क) कुएँ के पास सामरी स्त्री के साथ यीशु के वार्तालाप ने कौन-सी चिन्ता को प्रेरित किया, और क्यों? (फुटनोट भी देखिए।) (ख) उस सामरी स्त्री को प्रचार करने के द्वारा यीशु ने क्या प्रदर्शित किया?
सामान्य युग ३० के अन्तिम भाग में, सूखार नगर के पुराने कुएँ के पास एक दोपहर को यीशु ने प्रकट किया कि उसके अनुसार स्त्रियों के साथ कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए। उसने सुबह का समय सामरिया के पहाड़ी देश में चलते हुए गुज़ारा था और कुएँ के पास थका-माँदा, भूखा, और प्यासा पहुँचा। जब वह कुएँ के पास बैठा, एक सामरी स्त्री पानी भरने के लिए आयी। यीशु ने उससे कहा: “मुझे पानी पिला।” उस स्त्री ने आश्चर्यचकित होकर उसे देखा होगा। उसने पूछा: “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों मांगता है?” बाद में, जब उसके शिष्य भोजन मोल लेकर लौटे, तब वे चकित होकर सोचने लगे कि क्यों यीशु “स्त्री से बातें कर रहा” था।—यूहन्ना ४:४-९, २७.
२ किस बात ने इस स्त्री के सवाल को और शिष्यों की चिन्ता को प्रेरित किया? वह एक सामरी थी, और यहूदी सामरियों के साथ कोई लेन-देन नहीं रखते थे। (यूहन्ना ८:४८) लेकिन स्पष्ट रूप से चिन्ता का एक और भी कारण था। उस समय, रब्बियों की परम्परा, पुरुषों को स्त्रियों के साथ सरे आम बात करने का प्रोत्साहन नहीं देती थी।a फिर भी, यीशु ने इस निष्कपट स्त्री को खुले आम प्रचार किया, और उसे यह भी प्रकट किया कि वह मसीहा था। (यूहन्ना ४:२५, २६) इस तरह यीशु ने दिखाया कि वह अशास्त्रीय परम्पराओं से नहीं बन्धेगा, जिनमें ऐसी परम्पराएँ भी शामिल थीं जो स्त्रियों को नीचा दिखाती थीं। (मरकुस ७:९-१३) इसके विपरीत, यीशु ने जो कार्य किए और जो बातें सिखायीं, उसके द्वारा उसने प्रदर्शित किया कि स्त्रियों के साथ आदर और सम्मान से व्यवहार किया जाना चाहिए।
यीशु ने स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया
३, ४. (क) उसके वस्त्र को छूनेवाली स्त्री के प्रति यीशु ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? (ख) यीशु ने मसीही पुरुषों, ख़ासकर ओवरसियरों के लिए एक अच्छा उदाहरण कैसे रखा?
३ जिस तरीक़े से यीशु ने स्त्रियों के साथ व्यवहार किया उससे लोगों के लिए उसकी कोमल करुणा प्रतिबिम्बित हुई। एक बार एक स्त्री ने, जो १२ साल से लहू के बहने से पीड़ित थी, भीड़ में यीशु को ढूँढा। उसकी अवस्था ने उसे परम्परागत रूप से अशुद्ध किया, सो उसे वहाँ मौजूद नहीं होना चाहिए था। (लैव्यव्यवस्था १५:२५-२७) लेकिन वह नितान्त ज़रूरत में थी कि वह यीशु के पीछे चुपके-से आ गयी। जब उसने उसके वस्त्र को छुआ, तो वह तत्क्षण चंगी हो गयी! हालाँकि यीशु याईर के घर जा रहा था, जिसकी बेटी गंभीर रूप से बीमार थी, वह रुका। अपने शरीर में से शक्ति जाती हुई महसूस करने पर, उसने उस व्यक्ति को आस-पास ढूँढा जिसने उसे छुआ था। आख़िरकार, वह स्त्री आकर काँपते हुए उसके सामने गिर पड़ी। क्या यीशु उसे भीड़ में मौजूद होने के लिए या उसकी इजाज़त के बग़ैर उसके वस्त्र को छूने के लिए उसे डाँटता? इसके विपरीत, उस स्त्री ने पाया कि वह बहुत ही स्नेही और दयालु है। “पुत्री,” उसने कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” यह एकमात्र अवसर था जब यीशु ने एक स्त्री को सीधे रूप से “पुत्री” कहकर सम्बोधित किया। इस शब्द से उसे कितनी तसल्ली मिली होगी!—मत्ती ९:१८-२२; मरकुस ५:२१-३४.
४ यीशु ने व्यवस्था के अर्थ के आगे देखा। उसने इसके पीछे उद्देश्य को तथा दया और करुणा की ज़रूरत को देखा। (मत्ती २३:२३ से तुलना कीजिए।) यीशु ने बीमार स्त्री की निराशाजनक परिस्थितियों को देखा और इस बात को ध्यान में रखा कि वह विश्वास द्वारा प्रेरित हुई थी। इस तरह उसने मसीही पुरुषों, ख़ासकर ओवरसियरों के लिए एक अच्छा उदाहरण रखा। अगर एक मसीही बहन व्यक्तिगत समस्याओं का या एक ख़ासकर कठिन या तकलीफ़देह स्थिति का सामना कर रही है, तो प्राचीनों को उसके प्रत्यक्ष शब्दों या कार्यों के आगे देखने की कोशिश करनी चाहिए, और परिस्थितियों और अभिप्रायों को ध्यान में लेना चाहिए। ऐसी अन्तर्दृष्टि शायद दिखाए कि सलाह और सुधार के बजाय धीरज, समझ, और करुणा की ज़रूरत है।—नीतिवचन १०:१९; १६:२३; १९:११.
५. (क) रब्बियों की परम्पराओं से स्त्रियाँ किस तरह प्रतिबन्धित थीं? (फुटनोट देखिए।) (ख) पुनरुत्थित यीशु को देखनेवाले और उसकी गवाही देनेवाले पहले व्यक्ति कौन थे?
५ यीशु जब पृथ्वी पर था तब जीनेवाली स्त्रियाँ रब्बियों की परम्पराओं से बन्धकर क़ानूनी गवाहों के रूप में कार्य करने से प्रतिबन्धित थीं।b सामान्य युग ३३ के निसान १६ की सुबह को यीशु के मृतकों में से पुनरुत्थित होने के थोड़े समय बाद जो हुआ उस पर ग़ौर कीजिए। पुनरुत्थित यीशु को देखनेवाला और अन्य शिष्यों को इस बात की गवाही देनेवाला कि उनका प्रभु जी उठा है, कौन होता? वह स्त्रियाँ साबित हुईं जो उसके मरने तक सूलारोपण के स्थान के आस-पास ही रुकी थीं।—मत्ती २७:५५, ५६, ६१.
६, ७. (क) उस स्त्री से यीशु ने क्या कहा जो क़ब्र पर आयी? (ख) यीशु के पुरुष शिष्यों ने स्त्रियों की गवाही पर पहले कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और इससे क्या सीखा जा सकता है?
६ सप्ताह के पहले दिन सुबह तड़के ही, मरियम मगदलीनी और अन्य स्त्रियाँ यीशु की देह पर मलने के लिए मसाले लेकर क़ब्र पर गयीं। क़ब्र को खाली पाने पर, मरियम पतरस और यूहन्ना को बताने के लिए भागी। अन्य स्त्रियाँ वहीं रुक गयीं। जल्द ही, उनके सामने एक स्वर्गदूत प्रकट हुआ और उसने उन्हें कहा कि यीशु जी उठा है। स्वर्गदूत ने हिदायत दी: “शीघ्र जाकर उसके चेलों से कहो।” जब ये स्त्रियाँ समाचार सुनाने के लिए जल्दी-जल्दी जा ही रही थीं, तब यीशु ख़ुद उनके सामने प्रकट हुआ। उसने उन्हें कहा, “मेरे भाइयों से जाकर कहो।” (मत्ती २८:१-१०; मरकुस १६:१, २; यूहन्ना २०:१, २) स्वर्गदूत की भेंट के बारे में अनजान और दुःख में डूबी हुई, मरियम मगदलीनी खाली क़ब्र पर लौटी। यीशु उसके सामने वहाँ प्रकट हुआ, और आख़िरकार जब उसने उसे पहचान लिया, तब यीशु ने कहा: “मेरे भाइयों के पास जाकर उन से कह दे, कि मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूं।”—यूहन्ना २०:११-१८. मत्ती २८:९, १० से तुलना कीजिए।
७ यीशु पहले पतरस, यूहन्ना, या किसी अन्य पुरुष शिष्य के सामने प्रकट हो सकता था। इसके बजाय, अपने पुनरुत्थान की प्रथम चश्मदीद गवाह बनाने के द्वारा और उन्हें इसके बारे में अपने पुरुष शिष्यों को गवाही देने की नियुक्ति देने के द्वारा उसने इन स्त्रियों पर अनुग्रह दिखाने का चुनाव किया। शुरू-शुरू में पुरुषों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? अभिलेख कहता है: “उन [स्त्रियों] की बातें उन्हें कहानी सी समझ पड़ीं, और उन्हों ने उन की प्रतीति न की।” (लूका २४:११) क्या ऐसा हो सकता था कि उन्हें इस गवाही को स्वीकारने में दिक़्क़त हुई क्योंकि यह स्त्रियों ने दी थी? अगर ऐसा था, तो उन्हें समय आने पर प्रचुर प्रमाण प्राप्त हुए कि यीशु मृतकों में से जी उठा था। (लूका २४:१३-४६; १ कुरिन्थियों १५:३-८) आज, मसीही पुरुष बुद्धिमानी से काम करते हैं जब वे अपनी आध्यात्मिक बहनों की टिप्पणियों पर ध्यान देते हैं।—उत्पत्ति २१:१२ से तुलना कीजिए।
८. जिस तरह यीशु ने स्त्रियों के साथ व्यवहार किया उससे उसने क्या प्रकट किया?
८ इस बात पर ध्यान देना सचमुच हृदयस्पर्शी है कि यीशु ने स्त्रियों के साथ किस तरह से व्यवहार किया। सदा करुणामय और स्त्रियों के साथ व्यवहार करने में पूरी तरह संतुलित, न तो उसने उन्हें उन्नत किया, और ना ही उनका अनादर किया। (यूहन्ना २:३-५) उसने रब्बियों की ऐसी परम्पराओं को अस्वीकार किया जो स्त्रियों से उनका सम्मान छीन लेती थीं और जो परमेश्वर के वचन को टाल देती थीं। (मत्ती १५:३-९ से तुलना कीजिए।) स्त्रियों के साथ आदर और सम्मान से व्यवहार करने के द्वारा, यीशु ने प्रत्यक्ष रूप से प्रकट किया कि यहोवा परमेश्वर के अनुसार उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। (यूहन्ना ५:१९) यीशु ने मसीही पुरुषों द्वारा अनुकरण के लिए एक बढ़िया उदाहरण भी रखा।—१ पतरस २:२१.
स्त्रियों के बारे में यीशु की शिक्षाएँ
९, १०. यीशु ने स्त्रियों के बारे में रब्बियों की परम्पराओं का खण्डन कैसे किया, और फरीसियों द्वारा तलाक़ के बारे में सवाल उठाए जाने के बाद उसने क्या कहा?
९ यीशु ने केवल अपने कार्यों के द्वारा ही नहीं बल्कि अपनी शिक्षाओं के द्वारा भी रब्बियों की परम्पराओं का खण्डन किया और स्त्रियों को सम्मानित किया। उदाहरण के लिए, ग़ौर कीजिए कि उसने तलाक़ और व्यभिचार के बारे में क्या सिखाया।
१० तलाक़ के बारे में, यीशु से यह पूछा गया: “क्या पुरुष के लिए अपनी पत्नी को किसी भी कारण से तलाक देना उचित है?” मरकुस के वृत्तान्त के अनुसार, यीशु ने कहा: “जो कोई अपनी पत्नी को [व्यभिचार को छोड़ कोई और वजह से] तलाक देकर दूसरी स्त्री से विवाह करे, वह उसके विरुद्ध व्यभिचार करता है। और स्त्री भी अपने पति को तलाक देकर यदि दूसरे पुरुष से विवाह करती है तो वह व्यभिचार करती है।” (मरकुस १०:१०-१२; मत्ती १९:३, ९, NHT) सरलता से कहे गए इन शब्दों ने स्त्रियों के सम्मान के प्रति आदर दिखाया। यह कैसे?
११. यीशु के शब्द “व्यभिचार को छोड़” विवाह बन्धन के बारे में क्या सूचित करते हैं?
११ पहला, “व्यभिचार को छोड़” शब्दों (मत्ती के सुसमाचार वृत्तान्त में पाए जाते हैं) के द्वारा, यीशु ने सूचित किया कि विवाह बन्धन को लापरवाही से नहीं लिया जाना है या आसानी से नहीं तोड़ा जाना है। रब्बियों की प्रचलित शिक्षा, पत्नी द्वारा खाना पकाते वक़्त उसे ख़राब कर देने या किसी अजनबी पुरुष के साथ बात करने जैसे छोटे-छोटे आधार पर तलाक़ देने की इजाज़त देती थी। अगर एक पति को कोई ऐसी स्त्री मिल जाती जो उसकी नज़रों में ज़्यादा खूबसूरत है, तो तब भी तलाक़ देने की इजाज़त थी! एक बाइबल विद्वान कहता है: “जब यीशु ने यह कहा तब वह . . . विवाह को उस पद पर पुनःस्थापित करने की कोशिश करने के द्वारा, जिस पर उसे होना चाहिए था, स्त्रियों को अपना समर्थन दे रहा था।” वाक़ई, विवाह को एक स्थायी बन्धन होना चाहिए जिसमें एक स्त्री सुरक्षित महसूस कर सके।—मरकुस १०:६-९.
१२. ‘उस [स्त्री] के विरुद्ध व्यभिचार करता है’ शब्दों से, यीशु किस धारणा का आरम्भ कर रहा था?
१२ दूसरा, अभिव्यक्ति ‘उस [स्त्री] के विरुद्ध व्यभिचार करता है’ के द्वारा, यीशु ने एक ऐसे नज़रिए का आरम्भ किया जो रब्बियों की अदालतों में स्वीकार नहीं किया जाता था—पति द्वारा अपनी पत्नी के विरुद्ध व्यभिचार करने की धारणा। दी एक्सपोज़िटर्स बाइबल कॉमॆन्ट्री समझाती है: “रब्बियों के यहूदीवाद में एक स्त्री बेवफ़ाई से अपने पति के विरुद्ध व्यभिचार कर सकती थी; और एक पुरुष, दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ लैंगिक सम्बन्ध रखने के द्वारा उस पुरुष के विरुद्ध व्यभिचार कर सकता था। लेकिन एक पुरुष अपनी पत्नी के विरुद्ध व्यभिचार कभी नहीं कर सकता था, चाहे वह कुछ भी क्यों न करता। यीशु ने पति को पत्नी के समान नैतिक बाध्यता में रखने के द्वारा स्त्रियों की प्रतिष्ठा और सम्मान को बढ़ाया।”
१३. तलाक़ के बारे में, यीशु ने कैसे दिखाया कि मसीही व्यवस्था के अधीन पुरुषों और स्त्रियों के लिए एक स्तर होता?
१३ तीसरा, पद “अपने पति को तलाक देकर” के द्वारा, यीशु ने एक अविश्वासी पति को तलाक़ देने के स्त्री के हक़ को स्वीकार किया—एक ऐसी प्रथा जो उन दिनों प्रत्यक्ष रूप से ज्ञात थी लेकिन यहूदी नियम के अधीन सामान्य नहीं थी।c यह कहा जाता था कि “एक स्त्री को उसकी इच्छा से या उसकी इच्छा के बग़ैर तलाक़ दिया जा सकता है, लेकिन एक पुरुष को केवल उसकी इच्छा से ही तलाक़ दिया जा सकता है।” लेकिन, यीशु के अनुसार मसीही व्यवस्था के अधीन, पुरुषों और स्त्रियों पर समान स्तर लागू होते।
१४. अपनी शिक्षाओं के द्वारा यीशु ने क्या प्रतिबिम्बित किया?
१४ यीशु की शिक्षाएँ स्पष्ट रूप से स्त्रियों के कल्याण के लिए गहरी चिन्ता प्रकट करती हैं। अतः, यह समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों कुछ स्त्रियों ने यीशु के लिए ऐसा प्रेम महसूस किया कि उन्होंने ख़ुद अपनी सम्पत्ति से उसकी ज़रूरतों को पूरा किया। (लूका ८:१-३) “मेरा उपदेश मेरा नहीं,” यीशु ने कहा, “परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्ना ७:१६) यीशु ने जो सिखाया उसके द्वारा उसने स्त्रियों के लिए ख़ुद यहोवा की कोमल विचारशीलता को प्रतिबिम्बित किया।
“उसका आदर करो”
१५. पतियों को अपनी पत्नियों के साथ जिस तरह से व्यवहार करना चाहिए, उसके बारे में प्रेरित पतरस ने क्या लिखा?
१५ प्रेरित पतरस ने प्रत्यक्ष रूप से देखा कि यीशु ने स्त्रियों के साथ किस तरह व्यवहार किया। कुछ ३० साल बाद, पतरस ने पत्नियों को प्रेमपूर्ण सलाह दी और फिर लिखा: “वैसे ही हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” (१ पतरस ३:७) “उसका आदर करो” शब्दों से पतरस का क्या अर्थ था?
१६. (क) “आदर” अनुवादित यूनानी संज्ञा का क्या अर्थ है? (ख) रूपान्तरण के दौरान यहोवा ने यीशु का आदर कैसे किया, और हम इससे क्या सीखते हैं?
१६ एक कोशकार के अनुसार, “आदर” (टाइमे) अनुवादित यूनानी संज्ञा का अर्थ है “मूल्य, महत्त्व, आदर, सम्मान।” इस यूनानी शब्द के प्रकार को “भेंट” और “बहुमूल्य” अनुवादित किया गया है। (प्रेरितों २८:१०, NW; १ पतरस २:७) किसी व्यक्ति का आदर करने का जो अर्थ है उसकी हमें अन्तर्दृष्टि मिलती है, अगर हम २ पतरस १:१७ में पतरस द्वारा इस्तेमाल किए गए उसी शब्द के एक प्रकार को जाँचते हैं। वहाँ उसने यीशु के रूपान्तरण के सम्बन्ध में कहा: “उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं।” यीशु के रूपान्तरण के समय, यहोवा ने यीशु के लिए अपना अनुमोदन व्यक्त करने के द्वारा अपने पुत्र का आदर किया, और परमेश्वर ने यह तब किया जब अन्य लोग सुन रहे थे। (मत्ती १७:१-५) तो फिर, वह पुरुष जो अपनी पत्नी का आदर करता है उसे अवमानित नहीं करता या नीचा नहीं दिखाता। इसके बजाय, वह—अकेले में और सरे आम—अपने शब्दों और अपने कार्यों द्वारा प्रदर्शित करता है कि वह उसका सम्मान करता है।—नीतिवचन ३१:२८-३०.
१७. (क) आदर मसीही पत्नी का हक़ क्यों है? (ख) एक पुरुष को यह क्यों नहीं महसूस करना चाहिए कि परमेश्वर की नज़रों में उसका मूल्य एक स्त्री के मूल्य से ज़्यादा है?
१७ पतरस कहता है कि मसीही पतियों को अपनी पत्नियों का ऐसा आदर ‘करना’ चाहिए। इसे मेहरबानी के रूप में नहीं, बल्कि अपनी पत्नी के उचित हक़ के रूप में दिया जाना है। पत्नियाँ ऐसे आदर की हक़दार क्यों हैं? क्योंकि ‘तुम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हो,’ पतरस समझाता है। सामान्य युग पहली सदी में, पतरस की पत्री प्राप्त करनेवाले पुरुषों और स्त्रियों को मसीह के संगी वारिस होने के लिए बुलाया गया था। (रोमियों ८:१६, १७; गलतियों ३:२८) कलीसिया में उनके पास समान ज़िम्मेदारियाँ नहीं थीं, लेकिन आख़िरकार वे मसीह के साथ स्वर्ग में शासन करने में भाग लेतीं। (प्रकाशितवाक्य २०:६) आज भी, जब परमेश्वर के अधिकांश लोगों की पार्थिव आशा है, किसी भी मसीही पुरुष के लिए यह महसूस करना एक गंभीर ग़लती होगी कि कलीसिया में उन विशेषाधिकारों के कारण जो शायद उसके पास हों, परमेश्वर की नज़रों में उसका मूल्य स्त्रियों के मूल्य से ज़्यादा है। (लूका १७:१० से तुलना कीजिए।) परमेश्वर के सामने पुरुषों और स्त्रियों की आध्यात्मिक स्थिति एकसमान है, क्योंकि यीशु की बलिदानी मृत्यु ने पुरुषों और स्त्रियों, दोनों के लिए समान अवसर प्रदान किया—अर्थात्, अनन्तकाल के जीवन को ध्यान में रखते हुए पाप और मृत्यु की दण्डाज्ञा से मुक्त होने का अवसर।—रोमियों ६:२३.
१८. पतरस एक पति को अपनी पत्नी का आदर करने के लिए कौन-सा बाध्यकारी कारण देता है?
१८ पतरस एक और बाध्यकारी कारण देता है कि क्यों एक पति को अपनी पत्नी का आदर करना चाहिए, “जिस से [उसकी] प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” अभिव्यक्ति ‘रुक जाएं’ एक यूनानी क्रिया (एनकोप्टो) से आती है जिसका शाब्दिक अर्थ है “में काटना।” वाइन की एक्सपॉज़िटरी डिक्शनरी ऑफ द न्यू टॆस्टामेन्ट वर्डस् के अनुसार, इसे “रास्ते को तहस-नहस करने के द्वारा, या राह के बीचों-बीच कोई रोड़ा रखने के द्वारा लोगों को रोकने के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता था।” इस तरह, वह पति जो अपनी पत्नी का आदर करने से चूक जाता है, यह पा सकता है कि उसकी प्रार्थना में और परमेश्वर के सुनने के बीच में रास्ते का एक रोड़ा है। वह पुरुष परमेश्वर के पास जाने में शायद अयोग्य महसूस करे, या यहोवा उसकी सुनने के लिए शायद प्रवृत्त न हो। स्पष्ट रूप से, यहोवा इस बात के बारे में बहुत चिन्ता करता है कि पुरुष किस तरह स्त्रियों के साथ व्यवहार करते हैं।—विलापगीत ३:४४ से तुलना कीजिए।
१९. कलीसिया में पुरुष और स्त्रियाँ परस्पर सम्मान से एकसाथ कैसे सेवा कर सकते हैं?
१९ आदर दिखाने की बाध्यता केवल पतियों पर ही नहीं है। जबकि एक पति को अपनी पत्नी के साथ प्रेमपूर्ण रूप से और सम्मान के साथ व्यवहार करने के द्वारा उसका आदर करना चाहिए, एक पत्नी को अधीनता में रहने और गहरा सम्मान दिखाने के द्वारा अपने पति का आदर करना चाहिए। (१ पतरस ३:१-६) इसके अलावा, पौलुस ने मसीहियों को “परस्पर आदर करने” की सलाह दी। (रोमियों १२:१०) यह कलीसिया में पुरुषों और स्त्रियों को परस्पर सम्मान से एकसाथ सेवा करने का एक बुलावा है। जब ऐसी आत्मा व्याप्त होती है, तब मसीही स्त्रियाँ ऐसे ढंग से बातें नहीं करेंगी जो अगुआई करनेवालों के अधिकार के आड़े आता है। इसके बजाय, वे प्राचीनों का समर्थन करेंगी और उन्हें सहयोग देंगी। (१ कुरिन्थियों १४:३४, ३५; इब्रानियों १३:१७) उसी प्रकार, मसीही ओवरसियर ‘बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर, और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जानकर’ उनके साथ व्यवहार करेंगे। (१ तीमुथियुस ५:१, २) बुद्धिमत्तापूर्वक, प्राचीन अपनी मसीही बहनों की बातों की ओर कृपापूर्ण ध्यान देंगे। अतः, जब एक बहन ईश्वरशासित मुखियापन के लिए अपना आदर दिखाती है और आदरपूर्वक कोई सवाल पूछती है या कुछ ऐसी बात बताती है जिसे ध्यान देने की ज़रूरत है, तब प्राचीन ख़ुशी से उसके सवाल या समस्या पर ध्यान देंगे।
२०. शास्त्रीय अभिलेख के अनुसार, स्त्रियों के साथ कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए?
२० अदन में पाप के आरम्भ के बाद से, अनेक संस्कृतियों में स्त्रियों को एक अनादर के दर्ज़े पर ढकेल दिया गया है। लेकिन यह उस प्रकार का व्यवहार नहीं है जिसे यहोवा ने प्रारम्भ में नियत किया था कि वे अनुभव करें। स्त्रियों के प्रति चाहे जो भी सांस्कृतिक दृष्टिकोण प्रचलित हों, इब्रानी और मसीही यूनानी शास्त्र, दोनों के अभिलेख स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि धर्म-परायण स्त्रियों के साथ आदर और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। यह उनका परमेश्वर-प्रदत्त हक़ है।
[फुटनोट]
a दी इन्टरनैशनल स्टैन्डर्ड बाइबल एनसाइक्लोपीडिया (अंग्रेज़ी) समझाती है: “स्त्रियाँ पुरुष मेहमानों के साथ खाना नहीं खाती थीं, और पुरुषों को स्त्रियों के साथ बात करने का प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था। . . . सार्वजनिक स्थान में एक स्त्री के साथ वार्तालाप ख़ासकर निन्दा की बात थी।” रब्बियों की शिक्षाओं के एक संग्रह, यहूदी मिशनाह ने सलाह दी: “स्त्रीजाति के साथ ज़्यादा बात मत कीजिए। . . . वह जो स्त्रीजाति के साथ ज़्यादा बात करता है अपने ऊपर कहर ढाता है और व्यवस्था के अध्ययन की उपेक्षा करता है और आख़िरकार गेहन्ना में जाएगा।”—एबॉथ १:५.
b किताब मसीहा के समय में पैलॆस्टाइन (अंग्रेज़ी) कहती है: “कुछ मामलों में, स्त्री को लगभग एक दासी के बराबर समझा जाता था। उदाहरण के लिए, वह अपने पति की मृत्यु के प्रमाण को छोड़, अदालत में गवाही नहीं दे सकती थी।” लैव्यव्यवस्था ५:१ का उल्लेख करते हुए, द मिशनाह (अंग्रेज़ी) समझाता है: “‘गवाही की शपथ’ [के बारे में नियम] पुरुषों को लागू होता है लेकिन स्त्रियों को नहीं।”—शिबुओथ ४:१.
c पहली-सदी का यहूदी इतिहासकार जोसिफस रिपोर्ट करता है कि राजा हेरोदस की बहन सलोमी ने अपने पति को “उनकी शादी को भंग करनेवाला एक दस्तावेज़ भेजा, जो यहूदी नियम के अनुरूप नहीं था। क्योंकि (केवल) पुरुष को ही हम ऐसा करने की इजाज़त देते हैं।”—ज्यूइश ऎन्टिक्विटीज़, (अंग्रेज़ी) XV, २५९ [vii, १०]।
आपका उत्तर क्या है?
◻ कौन-से उदाहरण प्रदर्शित करते हैं कि यीशु ने स्त्रियों के साथ आदर और सम्मान के साथ व्यवहार किया?
◻ यीशु की शिक्षाओं ने स्त्रियों के सम्मान के लिए आदर कैसे दिखाया?
◻ एक पति को अपनी मसीही पत्नी का आदर क्यों करना चाहिए?
◻ सभी मसीहियों पर आदर दिखाने की कौन-सी बाध्यता है?
[पेज 17 पर तसवीरें]
धर्म-परायण स्त्रियों के लिए यह ख़ुशी की बात थी कि उन्होंने पुनरुत्थित यीशु को सबसे पहले देखा, जिसने उनके द्वारा अपने भाइयों को गवाही दिलवायी