अध्याय 23
“पहिले उस ने हम से प्रेम किया”
1-3. कौन-सी कुछ वजहों से यीशु की मौत, किसी भी आम आदमी की मौत से अलग थी?
आज से करीब दो हज़ार साल पहले, बसंत के मौसम में एक दिन, एक बेगुनाह पर मुकद्दमा चलाया गया। उसे ऐसे जुर्मों के लिए मुजरिम करार दिया गया जो उसने कभी किए ही नहीं थे। और उसे तड़पा-तड़पाकर मार डाला गया। अफसोस, वह इतिहास का ना तो पहला ऐसा शख्स था और ना ही आखिरी, जिसके साथ सरासर नाइंसाफी करते हुए बड़ी बेरहमी के साथ सज़ाए-मौत दी गयी हो। मगर फिर भी, उस शख्स की मौत सबसे अलग थी।
2 आखिरी घंटों में जब वह दर्द से तड़पता हुआ ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा था, तब आसमान पर भी ऐसा मातम छा गया जिसने उसकी मौत की अहमियत की गवाही दी। हालाँकि दोपहर का वक्त था, लेकिन अचानक उस देश पर घोर अंधकार छा गया। एक इतिहासकार लिखता है: “सूर्य का उजियाला जाता रहा।” (लूका 23:44, 45) फिर दम तोड़ने से ठीक पहले, उस इंसान ने ये यादगार शब्द कहे: “पूरा हुआ”! वाकई, अपनी जान देकर उसने जो कुछ पूरा किया, वह लाजवाब था। प्यार की यह महान मिसाल किसी भी इंसान की दी कुरबानी से कहीं बढ़कर थी।—यूहन्ना 15:13; 19:30.
3 वह शख्स कोई और नहीं बल्कि यीशु मसीह था। निसान 14, सा.यु. 33 के उस अंधकार से भरे दिन, उसने जो तकलीफें सहीं और आखिरकार मार डाला गया उसे सब जानते हैं। मगर एक ऐसी अहम सच्चाई है जिसे ज़्यादातर नज़रअंदाज़ किया गया है। यह सच है कि यीशु ने बहुत दुःख सहा था, मगर कोई और भी था जिसने उससे भी बढ़कर दुःख झेला था। दरअसल, उसी दिन किसी और ने यीशु से भी बड़ी कुरबानी दी थी। पूरे जहान में किसी ने भी प्यार की खातिर इतनी बड़ी कुरबानी देने की मिसाल कायम न की थी। यह मिसाल क्या थी? इसका जवाब, हमारे सबसे अहम और खास विषय की एक बढ़िया शुरूआत है: यहोवा का प्रेम।
प्रेम की सबसे महान मिसाल
4. एक रोमी सैनिक कैसे समझ पाया कि यीशु कोई आम इंसान नहीं था, और वह सैनिक किस नतीजे पर पहुँचा?
4 यीशु को सज़ा-ए-मौत देने की कार्यवाही को सरअंजाम देने की ज़िम्मेदारी एक रोमी सूबेदार को सौंपी गयी थी। जब उसने देखा कि यीशु के मरने से पहले किस तरह चारों तरफ घोर अंधकार छा गया और उसके दम तोड़ते ही एक ज़बरदस्त भूकंप ने उस इलाके को हिलाकर रख दिया, तो वह हक्का-बक्का रह गया। उसने कहा: “सचमुच ‘यह परमेश्वर का पुत्र था।’” (मत्ती 27:54) साफ ज़ाहिर है कि यीशु कोई आम इंसान नहीं था। उस सैनिक ने अभी-अभी परमप्रधान परमेश्वर के एकलौते बेटे को मरवाने में हिस्सा लिया था! इस बेटे से उसके पिता को आखिर कितना प्यार था?
5. यहोवा और उसके बेटे ने स्वर्ग में साथ-साथ जो समय बिताया, उसे कैसे समझाया जा सकता है?
5 बाइबल, यीशु को “सारी सृष्टि में पहिलौठा” कहती है। (कुलुस्सियों 1:15) ज़रा सोचिए—यहोवा का बेटा हमारे विश्व के बनने से पहले मौजूद था। तो फिर, पिता और पुत्र ने कितना वक्त साथ-साथ बिताया था? कुछ वैज्ञानिक अंदाज़ा लगाते हैं कि हमारे विश्व को अस्तित्त्व में आए 13 अरब साल हो चुके हैं। यह कितना लंबा अरसा था, क्या आप इसका अंदाज़ा लगा सकते हैं? वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस विश्व की आयु कितनी है यह लोगों को समझाने के लिए, एक प्लैनिटेरियम में दीवार पर 360 फुट लंबी समय-रेखा खींची गयी है। जब प्लैनिटेरियम आनेवाले मेहमान उस समय-रेखा के सामने चलते हैं, तो उनका हर कदम, इस विश्व की उम्र के 7 करोड़ 50 लाख सालों के बराबर होता है। समय-रेखा के आखिर में, सारे इंसानी इतिहास को दिखाने के लिए एक छोटी-सी लकीर है जिसकी कुल मोटाई इंसान के एक बाल के बराबर है! अगर यह अंदाज़ा सही है, तो भी यह सारी समय-रेखा इतनी लंबी नहीं कि यहोवा के बेटे की उम्र नाप सके! इतने युगों-युगों तक यह बेटा क्या करता रहा?
6. (क) यहोवा का बेटा, इंसान बनने से पहले स्वर्ग में क्या करता था? (ख) यहोवा और उसके बेटे के बीच कैसा बंधन है?
6 यह बेटा खुशी-खुशी एक “कुशल कारीगर” की तरह, अपने पिता की सेवा करता था। (नीतिवचन 8:30, NHT) बाइबल कहती है: “जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु [पुत्र के] बिना उत्पन्न न हुई।” (यूहन्ना 1:3) इस तरह, यहोवा और उसके बेटे ने साथ मिलकर बाकी सब कुछ बनाया। वह कितना रोमांचक और खुशियों भरा समय रहा होगा! कई लोग इस बात को ज़रूर मानेंगे कि माता-पिता और बच्चे के बीच का प्यार बहुत मज़बूत और गहरा होता है। और प्रेम “एकता का सिद्ध बन्ध[न] है।” (कुलुस्सियों 3:14, NHT) तो फिर, हममें से कौन यह अंदाज़ा लगा सकता है कि यहोवा और उसके बेटे के बीच, जो प्यार का रिश्ता है वह कितना गहरा और मज़बूत होगा, क्योंकि वे तो अरबों साल से साथ-साथ रहे हैं? ज़ाहिर है कि उनके बीच जो प्यार का बंधन है वह पूरे जहान का सबसे अटूट रिश्ता है।
7. जब यीशु का बपतिस्मा हुआ, तो यहोवा ने अपने बेटे के बारे में अपनी भावनाएँ कैसे ज़ाहिर कीं?
7 इसके बावजूद, पिता ने अपने बेटे को इस धरती पर भेजा ताकि वह एक बालक के रूप में जन्म ले। इसके लिए ज़रूरी था कि यहोवा अपने उस प्यारे बेटे से कुछ सालों के लिए बिछड़े, जिसके साथ उसका सबसे करीबी रिश्ता था। जब यीशु धीरे-धीरे बड़ा होता गया और आखिरकार एक सिद्ध आदमी बना, तो यहोवा का सारा ध्यान उस पर था। यीशु ने करीब 30 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया। यहोवा उसके बारे में कैसा महसूस करता था, इस बारे में हमें अटकल लगाने की ज़रूरत नहीं। खुद पिता की आवाज़ स्वर्ग से सुनायी दी: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।” (मत्ती 3:17) भविष्यवाणियों में यीशु के बारे में जो कुछ कहा गया था और उससे जो माँग की गयी थी, वह सब यीशु को वफादारी से पूरा करते देखकर उसका पिता ज़रूर बेहद खुश हुआ होगा!—यूहन्ना 5:36; 17:4.
8, 9. (क) यीशु को निसान 14, सा.यु. 33 को क्या कुछ सहना पड़ा और स्वर्ग में उसके पिता पर इसका क्या असर हुआ? (ख) यहोवा ने अपने बेटे को तकलीफें सहने और मरने क्यों दिया?
8 लेकिन सा.यु. 33 के निसान 14 के दिन यहोवा ने कैसा महसूस किया होगा? जब यीशु के साथ विश्वासघात हो रहा था और उत्पातियों की एक भीड़ ने उसे रात के वक्त गिरफ्तार कर लिया? जब यीशु को उसके सारे दोस्त अकेला छोड़कर भाग खड़े हुए और जब उस पर गैरकानूनी मुकद्दमा चलाया जा रहा था? जब उसका ठट्ठा उड़ाया जा रहा था, उस पर थूका जा रहा था, उसे घूँसे मारे जा रहे थे? जब उसकी पीठ पर कोड़े बरसाए जा रहे थे, और उसकी खाल उधड़कर तार-तार हो रही थी? जब एक लकड़ी के खंभे पर उसके हाथों और पैरों में कीलें ठोंककर उसको लटकाया जा रहा था, और सामने खड़ी भीड़ उस पर लानतें भेज रही थी? जब उसका प्यारा बेटा दर्द से बुरी तरह कराहते हुए उसे पुकार रहा था, तब उसके पिता के दिल पर क्या बीती होगी? यहोवा को तब कैसा महसूस हुआ होगा जब यीशु ने आखिरी सांस ली, और सृष्टि की शुरूआत से लेकर पहली बार उसके प्यारे बेटे का वजूद खत्म हो गया?—मत्ती 26:14-16, 46, 47, 56, 59, 67; 27:38-44, 46; यूहन्ना 19:1.
“परमेश्वर ने . . . अपना एकलौता पुत्र दे दिया”
9 हमसे कुछ कहते नहीं बन पड़ता। यहोवा भी बाप जैसा कलेजा रखता है, इसलिए अपने बेटे की मौत पर जो दर्द उसने महसूस किया होगा उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। लेकिन जो बयान किया जा सकता है, वह यह है कि यहोवा ने किस इरादे से यह सब होने की इजाज़त दी। एक पिता होते हुए भी, उसने क्यों खुद को इस दर्द से गुज़रने दिया? यूहन्ना 3:16 में यहोवा हमें एक लाजवाब बात बताता है। बाइबल की यह आयत इतनी अहम है कि इसे सुसमाचार की किताबों का सार कहा जाता है। यह कहती है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” तो यहोवा का जो इरादा था उसे बयान करने के लिए सिर्फ एक ही शब्द है: प्रेम। यहोवा का यही तोहफा यानी अपने बेटे को हमारी खातिर तकलीफें सहने और मरने के लिए भेजना—प्यार की खातिर की गयी कुरबानी की सबसे महान मिसाल है।
परमेश्वर के प्रेम की परिभाषा
10. इंसानों की ज़रूरत क्या है, और शब्द “प्रेम” के मतलब को क्या हो गया है?
10 “प्रेम” शब्द का मतलब क्या है? कहा जाता है कि प्रेम, इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत है। जन्म से लेकर मरण तक, लोग इसके पीछे भागते हैं, इसके साये में फलते-फूलते हैं, यहाँ तक कि इसके न मिलने पर धीरे-धीरे मुरझा जाते हैं और आखिर में दम तोड़ देते हैं। इसके बावजूद, ताज्जुब की बात है कि प्रेम की परिभाषा देना बहुत मुश्किल है। बेशक, लोग प्रेम के बारे में बहुत कुछ बोलते हैं। इसके बारे में अनगिनत किताबें, गीत और कविताएँ लिखी गयी हैं और आगे भी लिखी जाती रहेंगी। लेकिन, कुल मिलाकर यह सब समझा नहीं पाए कि आखिर प्रेम का मतलब है क्या। दरअसल, यह शब्द इतना ज़्यादा इस्तेमाल हो चुका है कि इसका असली मतलब करीब-करीब खो-सा गया है।
11, 12. (क) हम प्रेम के बारे में कहाँ से सीख सकते हैं, और वहीं से क्यों? (ख) प्राचीन यूनानी भाषा में प्रेम के कौन-से किस्म बताए गए हैं, और मसीही यूनानी शास्त्र में “प्रेम” के लिए कौन-सा शब्द ज़्यादातर इस्तेमाल हुआ है? (फुटनोट भी देखिए।) (ग) अघापि क्या है?
11 लेकिन प्रेम क्या है, इस बारे में बाइबल हमें साफ-साफ सिखाती है। वाइन की एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट वड्र्स् कहती है: “प्रेम क्या है, यह सिर्फ उन कामों से जाना जा सकता है जिन्हें करने के लिए प्रेम हमें उकसाता है।” बाइबल में दर्ज़ यहोवा के काम हमें उसके प्रेम के बारे में बहुत कुछ सिखाते हैं—कि वह अपने सृष्ट प्राणियों का भला चाहता है और उनसे बेहद प्रीति रखता है। यहोवा ने प्रेम की जो सबसे बड़ी मिसाल कायम की है, जिसका हमने पहले ज़िक्र किया, उससे बढ़कर भला और क्या उसके प्रेम को ज़ाहिर कर सकेगा? आनेवाले अध्यायों में हम ऐसी और कई मिसालें देखेंगे जब यहोवा ने प्रेम की खातिर काम किया। इसके अलावा, हम बाइबल में “प्रेम” के लिए इस्तेमाल होनेवाले मूल शब्दों से भी इसके बारे में गहरी समझ हासिल कर सकेंगे। प्राचीन यूनानी भाषा में “प्रेम” के लिए चार शब्द थे।a इनमें से, मसीही यूनानी शास्त्र में जिस शब्द को ज़्यादातर इस्तेमाल किया गया है वह है अघापि। बाइबल का एक शब्दकोश कहता है कि “प्यार के लिए इससे ज़बरदस्त शब्द और कोई हो ही नहीं सकता।” क्यों?
12 अघापि ऐसे किस्म का प्रेम है जो सिद्धांतों से प्रेरित होता है। इसका मतलब यह नहीं कि किसी की बात सुनकर या काम देखकर सिर्फ जज़्बातों के आधार पर कुछ कहना या करना। इसके बजाय, इस प्रेम का दायरा बहुत विशाल है, यह ज़्यादा समझदारी और स्वेच्छा से दिखाया जाता है। सबसे बढ़कर, अघापि पूरी तरह से निःस्वार्थ होता है। मिसाल के लिए, एक बार फिर यूहन्ना 3:16 पर नज़र डालिए। वह “जगत” क्या है जिसे परमेश्वर ने इतना प्रेम किया कि अपने एकलौते बेटे को उसके लिए दे दिया? यह उद्धार पाने के योग्य मानवजाति है। इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो आज पाप की राह पर चल रहे हैं। क्या यहोवा इनमें से हर किसी को एक निजी दोस्त की तरह प्यार करता है, जैसे उसने वफादार इब्राहीम से किया था? (याकूब 2:23) नहीं, मगर यहोवा ने बड़े प्यार से हाथ बढ़ाकर सबकी भलाई की है, और इसके लिए खुद भारी कीमत चुकायी है। वह चाहता है कि सब लोग पश्चाताप करें और अपने मार्गों से फिर जाएँ। (2 पतरस 3:9) बहुत-से लोग ऐसा ही करते हैं। इनकी तरफ यहोवा बड़ी खुशी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है।
13, 14. क्या दिखाता है कि अघापि में अकसर गहरी प्रीति शामिल होती है?
13 मगर कुछ लोग अघापि के बारे में गलत विचार रखते हैं। उनका मानना है कि इस प्रेम में भावनाएँ नहीं होतीं, यह दिल से नहीं बल्कि दिमाग से किया जाता है। मगर सच तो यह है कि अघापि में अकसर किसी के लिए अपनापन और स्नेह की भावना शामिल होती है। मिसाल के लिए, जब यूहन्ना ने लिखा, “पिता पुत्र से प्रेम रखता है,” तो उसने अघापि शब्द का ही एक रूप इस्तेमाल किया। क्या इस तरह के प्रेम में गहरी प्रीति की भावना नहीं होती? ध्यान दीजिए कि यीशु ने कहा: “पिता पुत्र से प्रीति रखता है,” और यहाँ उसने फीलियो शब्द के एक रूप का इस्तेमाल किया। (यूहन्ना 3:35; 5:20) यहोवा के प्रेम में अकसर उसकी कोमल प्रीति होती है। मगर वह कभी-भी भावनाओं में बहकर प्रेम नहीं करता। उसका प्रेम हमेशा उसके बुद्धि-भरे और खरे सिद्धांतों से प्रेरित होता है।
14 जैसा हम देख चुके हैं, यहोवा के सभी गुण उत्तम, सिद्ध और लुभावने हैं। मगर इन सभी गुणों से ज़्यादा उसका प्रेम हमें उसकी तरफ खींचता है। कोई और चीज़ हमें यहोवा की तरफ इतने ज़बरदस्त तरीके से नहीं खींचती। खुशी की बात है कि प्रेम उसका सबसे खास गुण है। यह हम कैसे जानते हैं?
“परमेश्वर प्रेम है”
15. यहोवा के प्रेम के गुण के बारे में बाइबल में क्या बात लिखी है, और किस तरह यह बात बिलकुल अनोखी है? (फुटनोट भी देखिए।)
15 बाइबल प्रेम के बारे में एक ऐसी बात कहती है जो वह यहोवा के दूसरे खास गुणों के बारे में कभी नहीं कहती। शास्त्र में ऐसा कभी नहीं कहा गया कि परमेश्वर शक्ति है या परमेश्वर न्याय है या फिर परमेश्वर बुद्धि है। उसके अंदर ये गुण ज़रूर हैं, और वही इन गुणों का दाता है। इन तीनों गुणों को ज़ाहिर करने में कोई और उसकी बराबरी नहीं कर सकता। लेकिन, चौथे गुण के बारे में बहुत अनोखी बात कही गयी है: “परमेश्वर प्रेम है।”b (1 यूहन्ना 4:8) इसका क्या मतलब है?
16-18. (क) बाइबल क्यों कहती है कि “परमेश्वर प्रेम है”? (ख) धरती के तमाम प्राणियों में से, क्यों इंसान यहोवा के प्रेम के गुण का बिलकुल सही प्रतीक है?
16 “परमेश्वर प्रेम है” यह कोई साधारण-सा समीकरण नहीं, मानो हम कह रहे हों “परमेश्वर बराबर है प्रेम के।” इसको उलटा करके यह कहना सही नहीं होगा कि “प्रेम परमेश्वर है,” क्योंकि वह किसी निराकार गुण से कहीं श्रेष्ठ है। यहोवा एक ऐसी हस्ती है जिसमें प्रेम के गुण के अलावा ढेरों मनभावने गुण और भावनाएँ हैं। मगर प्रेम यहोवा में अंदर तक समाया हुआ है। इसलिए, एक किताब इस आयत के बारे में कहती है: “परमेश्वर की प्रवृत्ति या स्वभाव प्रेम है।” आम तौर पर, हम इसके बारे में यूँ सोच सकते हैं: यहोवा की शक्ति उसे कार्यवाही करने में समर्थ करती है। उसके न्याय और उसकी बुद्धि से यह तय होता है कि वह किस तरीके से कार्यवाही करेगा। मगर यहोवा का प्रेम उसे कार्यवाही करने को उभारता है। और यहोवा जिस तरीके से अपने दूसरे गुण ज़ाहिर करता है, उसमें उसका प्रेम हमेशा होता है।
17 अकसर कहा जाता है कि यहोवा प्रेम का साक्षात् रूप है। इसलिए अगर हमें अघापि प्रेम के बारे में ज़्यादा सीखना है, तो हमें यहोवा के बारे में सीखना होगा। बेशक, हमें यह खूबसूरत गुण शायद इंसानों में भी दिखायी दे। मगर उनमें ये गुण आया कहाँ से? इसका जवाब हमें यहोवा के इन शब्दों से मिलता है, जो ज़ाहिर है कि उसने सृष्टि के वक्त अपने बेटे से कहे थे: “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं।” (उत्पत्ति 1:26) इस धरती पर बनाए गए सभी प्राणियों में से सिर्फ इंसानों के पास यह काबिलीयत है कि वह चाहे तो किसी से प्रेम कर सकता है और इस तरह अपने स्वर्गीय पिता के जैसा बन सकता है। याद कीजिए कि यहोवा ने अपने खास गुणों को दर्शाने के लिए कई प्राणियों का इस्तेमाल किया। लेकिन, अपने सबसे बड़े गुण प्रेम को दर्शाने के लिए, यहोवा ने धरती पर अपनी सबसे श्रेष्ठ रचना, इंसान को चुना।—यहेजकेल 1:10.
18 जब हम बिना स्वार्थ के, सिद्धांतों से प्रेरित होकर प्रेम करते हैं, तो हम यहोवा के इस सबसे खास गुण को ज़ाहिर करते हैं। जैसा प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” (1 यूहन्ना 4:19) मगर यहोवा ने किन तरीकों से हमसे पहले प्रेम किया?
यहोवा ने पहल की
19. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा के सृष्टि के कामों में प्रेम की बहुत बड़ी भूमिका थी?
19 प्रेम की भावना कोई नयी नहीं है। आखिर, यहोवा को सृष्टि करने के लिए किस गुण ने उकसाया? ऐसा नहीं था कि वह अकेलापन महसूस कर रहा था और उसे किसी साथी की ज़रूरत थी। यहोवा अपने आप में पूरा और आत्म-निर्भर है और उसमें ऐसी कोई कमी नहीं है जिसे कोई और पूरा कर सके। मगर यहोवा के सबसे खास गुण प्रेम ने उसे सहज ही उभारा कि वह दूसरे बुद्धिमान प्राणियों की रचना करे, जो जीवन के वरदान का आनंद ले सकें और इसकी कदर कर सकें। “परमेश्वर की सृष्टि का मूल” उसका एकलौता बेटा था। (प्रकाशितवाक्य 3:14) इसके बाद, यहोवा ने अपने इस कुशल कारीगर को इस्तेमाल करके बाकी सभी चीज़ें बनायीं, जिनमें सबसे पहले स्वर्गदूत थे। (अय्यूब 38:4, 7; कुलुस्सियों 1:16) इन शक्तिशाली आत्मिक प्राणियों को आज़ादी और बुद्धि का वरदान मिला था, और इनमें भावनाएँ थीं। ये प्राणी एक-दूसरे के साथ और सबसे बढ़कर यहोवा परमेश्वर के साथ प्यार-भरा निजी रिश्ता कायम कर सकते थे। (2 कुरिन्थियों 3:17) इस तरह, उन्होंने प्रेम किया क्योंकि पहले उनसे प्रेम किया गया।
20, 21. आदम और हव्वा के आगे यहोवा के प्यार का क्या सबूत मौजूद था, मगर उन्होंने इस प्यार का जवाब कैसे दिया?
20 इंसानों के साथ भी ऐसा ही किया गया। शुरू से ही, आदम और हव्वा पर मानो प्रेम की बौछार की गयी। अदन में अपने फिरदौस जैसे घर में वे जहाँ कहीं नज़र दौड़ाते, अपने पिता के प्यार का सबूत देख सकते थे। ध्यान दीजिए कि बाइबल क्या कहती है: “यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा था, रख दिया।” (उत्पत्ति 2:8) क्या आप कभी एक बेहद खूबसूरत बगीचे या पार्क में गए हैं? वहाँ आपको सबसे ज़्यादा क्या अच्छा लगा? पेड़ों के झुरमुट में पत्तियों के बीच से छनकर आती सूरज की किरणें? गलीचे की तरह बिछे हुए एक-से-बढ़कर-एक रंग-बिरंगे फूल? झरने की कलकल, पंछियों के गीत, भौंरों की गुंजन? पेड़ों, फलों और कलियों की मीठी सुगंध के बारे में क्या? चाहे कोई बाग कितना ही सुंदर क्यों न हो, वह अदन के बाग की बराबरी नहीं कर सकता। क्यों?
21 वह बाग खुद यहोवा ने लगाया था! उसकी खूबसूरती का बयान करना मुमकिन नहीं। ऐसा हर पेड़ उस बाग में मौजूद था, जिसकी सुंदरता लुभावनी थी और जिसमें लज़ीज़, रसीले फल लगते थे। उस बाग में पानी की कोई कमी नहीं थी, यह बहुत बड़ा था और अलग-अलग जानवरों की ढेरों किस्में वहाँ पायी जाती थीं। आदम और हव्वा के पास अपनी ज़िंदगी में खुशियाँ लाने और इसे सफल बनाने के लिए सबकुछ था, उनके पास ऐसा काम था जिससे उन्हें संतोष मिलता और ऐसा साथी भी जिसमें कोई कमी न थी। पहले यहोवा ने उनसे प्यार किया और उनके पास ऐसी हर वजह थी कि वे भी बदले में उससे प्यार करें। मगर, उन्होंने ऐसा नहीं किया। अपने स्वर्गीय पिता के लिए प्यार की खातिर उसकी आज्ञा मानने के बजाय उन्होंने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उसके खिलाफ बगावत की।—उत्पत्ति, अध्याय 2.
22. अदन की बगावत के जवाब में यहोवा ने जो किया, उससे कैसे साबित हुआ कि उसका प्रेम सच्चा है?
22 यह देखकर यहोवा को कितना दुःख हुआ होगा! मगर क्या इस बगावत की वजह से उसके प्यार-भरे दिल में कड़ुवाहट भर गयी? नहीं! “उसकी करुणा [या, “सच्चा प्यार,” NW, फुटनोट] सदा की है।” (भजन 136:1) इसलिए, उसने फौरन यह प्यार भरा इंतज़ाम किया कि आदम और हव्वा की संतानों में से जो सही मन रखते हैं उन्हें पाप से छुड़ाया जाए। जैसा हम देख चुके हैं, इन इंतज़ामों में उसके प्यारे बेटे का छुड़ौती बलिदान शामिल है, जिसके लिए पिता को भारी कीमत चुकानी पड़ी।—1 यूहन्ना 4:10.
23. यहोवा “आनंदित परमेश्वर” है, इसकी एक वजह क्या है, और अगले अध्याय में किस अहम सवाल पर चर्चा की जाएगी?
23 जी हाँ, यहोवा ने शुरू से ही इंसान के लिए प्रेम दिखाने में पहल की है। अनगिनत तरीकों से “पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” जहाँ प्रेम होता है वहाँ एकता और खुशी होती है, इसलिए कोई ताज्जुब की बात नहीं कि यहोवा को “आनंदित परमेश्वर” कहा गया है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) मगर, यहाँ एक ज़रूरी सवाल उठता है। क्या यहोवा सचमुच हममें से हरेक से प्रेम करता है? अगले अध्याय में इस पर चर्चा की जाएगी।
a क्रिया फीलियो अकसर मसीही यूनानी शास्त्र में इस्तेमाल हुई है और इसका मतलब है “किसी के लिए प्रीति होना, किसी से लगाव होना, या किसी को पसंद करना (जैसा कोई अपने नज़दीकी दोस्त या भाई के लिए महसूस करता है)।” स्टोर्घी परिवार के सदस्यों के बीच प्यार को दर्शाता है। इसी शब्द का एक रूप 2 तीमुथियुस 3:3 में यह दिखाने के लिए इस्तेमाल हुआ है कि अंत के दिनों में ऐसे प्यार की भारी कमी होगी। इरॉस स्त्री और पुरुष के बीच के रोमानी प्यार के लिए इस्तेमाल होता है। यह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में इस्तेमाल नहीं किया गया, जबकि बाइबल में इस किस्म के प्यार के बारे में भी चर्चा की गयी है।—नीतिवचन 5:15-20.
b बाइबल में कुछ और आयतें इसी तरह लिखी गयी थीं। मिसाल के लिए, “परमेश्वर ज्योति है” और “परमेश्वर भस्म करनेवाली आग है।” (1 यूहन्ना 1:5; इब्रानियों 12:29) मगर इन्हें रूपक समझा जाना चाहिए, क्योंकि इनमें यहोवा की तुलना भौतिक चीज़ों से की गयी है। यहोवा ज्योति के जैसा है, क्योंकि वह पवित्र और खरा है। उसमें ज़रा भी “अन्धकार” या अशुद्धता नहीं है। और उसे आग के जैसा बताया गया है क्योंकि वह अपनी विनाशकारी शक्ति इस्तेमाल करता है।