क्या वाकई में “सात महापाप” होते हैं?
शास्त्र से जवाब
बाइबल में ऐसी कोई सूची नहीं दी गयी है जिनमें “सात महापाप” गिनकर बताए गए हों। लेकिन बाइबल यह ज़रूर सिखाती है कि गंभीर पाप करते रहने से एक इंसान को उद्धार नहीं मिलेगा। उदाहरण के लिए, नाजायज़ यौन-संबंध, मूर्तिपूजा, जादू-टोना, गुस्से से भड़कना और पियक्कड़पन जैसे कामों को बाइबल “शरीर के काम” कहती है। इसमें यह भी बताया गया है कि “जो लोग ऐसे कामों में लगे रहते हैं वे परमेश्वर के राज के वारिस नहीं होंगे।”—गलातियों 5:19-21.a
क्या बाइबल में ‘वे सात बातें’ नहीं बतायी गयी हैं जिनसे ‘प्रभु घृणा करता है’?
बिलकुल बतायी गयी हैं। बाइबल के वाल्द-बुल्के अनुवाद में नीतिवचन 6:16 कहता है, “प्रभु छः बातों से बैर रखता और सात बातों से घृणा करता है।” लेकिन नीतिवचन 6:17-19 में जो सूची दी गयी है उसमें सारे पाप नहीं बताए गए हैं। इसके बजाए, उसमें हर तरह की गलत बातों को मोटे तौर पर बताया गया है जिनमें हमारी सोच, बातें और काम शामिल हैं।b
शब्द “महापाप” का क्या मतलब है?
बाइबल के कुछ अनुवादों में 1 यूहन्ना 5:16 में शब्द “महापाप” आया है। उदाहरण के लिए, द न्यू अमेरिकन बाइबल में यह आयत इस तरह लिखी गयी है, “पाप ऐसा भी होता है जो महापाप है।” यहाँ इस्तेमाल हुए शब्द का अनुवाद इस तरह भी किया जा सकता है, “ऐसा पाप भी है जिसका अंजाम मौत है।” बाइबल में एक और तरह के पाप के बारे में बताया गया है ‘जिसका अंजाम मौत नहीं होता।’ तो फिर इन दोनों में क्या फर्क है?—1 यूहन्ना 5:16.
बाइबल साफ बताती है कि वैसे तो हर पाप का अंजाम मौत है, मगर यीशु मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर हम पाप और मौत से बच सकते हैं। (रोमियों 5:12; 6:23) इसलिए जिस ‘पाप का अंजाम मौत है’ वह ऐसा पाप है जो मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर भी माफ नहीं किया जा सकता। जो इंसान इस तरह का पाप करता है वह इतना ढीठ हो जाता है कि वह कभी अपना रवैया या चालचलन बदलने को तैयार नहीं होता। इस तरह के पाप के बारे में बाइबल बताती है कि ‘उसे कभी माफ नहीं किया जाएगा।’—मत्ती 12:31; लूका 12:10.
a गलातियों 5:19-21 में जो सूची दी गयी है उसमें 15 गंभीर पाप के उदाहरण दिए गए हैं। मगर उसमें सारे पाप नहीं बताए गए हैं क्योंकि उस सूची के आखिर में लिखा है, “और ऐसी ही और बुराइयाँ।” इसलिए लोगों को समझ से काम लेना चाहिए और ‘ऐसी ही और बुराइयों’ को पहचानना चाहिए जो वहाँ नहीं बतायी गयी हैं।
b नीतिवचन 6:16 में एक इब्रानी मुहावरे का उदाहरण मिलता है जिसमें दो संख्याएँ दी गयी हैं। दूसरी संख्या ज़ोर देने के लिए इस्तेमाल की जाती थी। ऐसे उदाहरण कई आयतों में मिलते हैं।—अय्यूब 5:19; नीतिवचन 30:15, 18, 21.