क्या आप प्रयत्न कर रहें हैं?
“यदि कोई पुरुष अध्यक्ष के पद के लिए प्रयत्न कर रहा है, वह भले काम की इच्छा करता है।” —१ तीमुथियुस ३:१. न्यू.व.
१. यहोवा के गवाहों में किस उद्देश्य का पूर्ण होना सर्वाधिक महत्त्व की बात है?
यहोवा के गवाहों के पास सही लक्ष्य हैं जो एक ईश्वरीय रीति से निर्देशित और पूरा किए जाते हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि उनके परमेश्वर के भी महान लक्ष्य हैं और हमेशा वह अपने उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं। (यशायाह ५५:८-११) यहोवा के सेवकों को उन लोगों के समान नहीं होना चाहिए जिनके पास एक उत्तम लक्ष्य नहीं और अपने आप के सिवाय दूसरों के लिए बहुत कम भलाई करते हुए लापरवाही से ज़िन्दगी के मार्ग से गुज़रते हैं। परमेश्वर के गवाहों के लिए सर्वाधिक महत्त्व की बात राज्य संदेश की घोषणा करने और दूसरों को परमेश्वर के वचन का जीवन-दायी ज्ञान बाँटने के महान लक्ष्य को पूर्ण करना है।—भजन ११९:१०५; मरकुस १३:१०; यूहन्ना १७:३.
२. मसीही पुरुषों के लिए कौनसा लक्ष्य १ तीमुथियुस ३:१ में पौलुस द्वारा उल्लेखित किया गया था?
२ यहोवा के संघटन में, अन्य महान लक्ष्य भी हैं। उन में से एक का उल्लेख करते हुए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “यह बात विश्वासयोग्य है, कि जो अध्यक्ष होना चाहता है, तो वह भले काम की इच्छा करता है।” ऐसा पुरुष दूसरों की भलाई के लिए कुछ करना चाहता है। वह आराम और महिमा की ज़िन्दगी नहीं बल्कि एक “भले काम” की चाह रखता है। एक और अनुवाद ऐसा कहता है: “यह कहना बहुत सही है कि जो पुरुष अपने दिल से अगुआई का कार्य चाहता है, उसकी आकांक्षा प्रशंसनीय है।”—१ तीमुथियुस ३:१, फिलिप्स.
प्राचीनों के लिए ख़तरा
३, ४. अध्यक्ष बनने की प्रयत्न करनेवाले पुरुष को अपने दिल पर क्यों नियंत्रण रखना चाहिए?
३ किस रीति से उस मनुष्य की “आकांक्षा प्रशंसनीय” है जो दिल से एक मसीह अध्यक्ष बनना चाहता है? ख़ैर, आकांक्षा एक विशेष लक्ष्य प्राप्त करने की तीव्र इच्छा है। यह सच है कि दोनों महान और अधम आकांक्षाएँ होती हैं। किन्तु अगर एक पुरुष नम्रतापूर्वक अध्यक्ष का पद चाहता है इसलिए कि वह दूसरों की सेवा करना चाहता है, उसकी सेवा सच्चे उद्देश्यों से की गयी है और आध्यात्मिक आशिषों में परिणत हो सकता है। लेकिन उसे अपने दिल पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है।—नीतिवचन ४:२३.
४ कुछ महत्त्वाकांक्षी लोग महिमा की खोज करते हैं। दूसरे संगी मानवों पर राज करना चाहते हैं। प्राधान्य और अधिकार के लिए लोभ एक सड़ी हुई जड़ के समान है जो एक स्वस्थ दिखनेवाले पेड़ को भी धमाके से गिरा सकती है। एक मसीही भी ऐसी ग़लत रीति से प्रेरित आकांक्षा से वशीभूत हो सकता है। (नीतिवचन १६:१८) प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “मैं ने मण्डली को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उन में बड़ा बनना चाहता है [“जो हर बात का प्रधान बनना चाहता है,” फिलिप्स], (हमारी सब बात आदर से, न्यू.व.) ग्रहण नहीं करता। सो जब मैं आऊँगा, तो उसके कामों की जो वह कर रहा है सुधि दिलाऊँगा, कि वह हमारे विषय में बुरी बुरी बातें बकता है। और इस पर भी सन्तोष न करके आप ही भाइयों को (आदर से, न्यू.व.) ग्रहण नहीं करता, और उन्हें जो ग्रहण करना चाहते हैं, मना करता है: और मण्डली से निकाल देता है।” (३ यूहन्ना ९, १०) दियुत्रिफेस की आकांक्षा अख्रीस्तीय थी। अहंकार और दूसरों पर अधिकार की महत्त्वाकांक्षी खोज के लिए यीशु के सच्चे अनुयायियों में कोई जगह नहीं है।—नीतिवचन २१:४.
५. अध्यक्षों को अपनी ज़िम्मेदारियाँ किस मनोवृत्ति से सभाँलनी चाहिए?
५ एक मसीही अध्यक्ष जो अपनी ज़िम्मेदारियों को सही उद्देश्य से सम्भालता है, स्वार्थी आकांक्षाओं की खोज नहीं करेगा। मसीही निरीक्षण के इस उत्तम कार्य को वह एक परमेश्वर-प्रदत्त विशेषाधिकार के रूप में देखेगा और वह परमेश्वर के झुण्ड का नेतृत्व ‘दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिए नहीं, पर मन लगा कर’ करेगा। ‘और जो लोग सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार नहीं जताता, बरन झुण्ड के लिए [एक आदर्श] बनता है।’ (१ पतरस ५:२, ३) जी हाँ, अध्यक्षों को अहंकार उत्पन्न करने से और अनुचित रीति से अधिकार चलाने की इच्छा से बचकर रहना चाहिए।
६. एक प्राचीन को परमेश्वर के लोगों पर अधिकार क्यों नहीं चलाना चाहिए?
६ एक प्राचीन को दूसरे मसीहियों पर अधिकार नहीं चलाना चाहिए, क्योंकि वह ‘विश्वास के विषय में उनका प्रभु’ नहीं बल्कि वह उनका सहकर्मी है। (२ कुरिन्थियों १:२४) जब कुछ प्रेरितों ने प्राधान्य चाहा, यीशु ने कहा: “तुम जानते हो, कि अन्य जातियों के हाकिम उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने। जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि उस की सेवा टहल की जाएँ, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे; और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२०-२८) कोई प्राचीन प्रधान चरवाहा नहीं बल्कि केवल एक अधीनस्थ चरवाहा है। अगर वह झुण्ड पर अधिकार चलाता है, वह गर्व की आत्मा प्रकट करता है। हानि विशेषकर तब उत्पन्न होगी, अगर वह अपनी घमण्डी महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने की मदद करने के लिए दूसरों को फुसलाता है। एक नीतिवचन ऐसा कहता है: “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करते हैं; मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे।”—नीतिवचन १६:५.
७, ८. (अ) मसीही प्राचीनों को दीन होने की ज़रूरत क्यों है? (ब) एक दीन प्राचीन का उदाहरण दें।
७ मसीही प्राचीनों को इसलिए ‘परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहना’ चाहिए। घमण्ड आध्यात्मिक उपयोगिता के रास्ते में एक बाधा है, क्योंकि ईश्वरीय इच्छा पूरा करने के लिए केवल दीन लोग ही मन और दिल से सही स्थिति में हैं। “परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।” (१ पतरस ५:५, ६) जी हाँ, यहोवा दीनों को आशिष देते हैं। इन्हीं व्यक्तियों में से मसीही प्राचीनों के रूप में सेवा करने के लिए योग्य पुरुषों को चुना जाता है।
८ यहोवा के गवाहों का आधुनिक इतिहास ईश्वरीय व्यक्तियों द्वारा दी गयी दीन सेवा के वृत्तान्तों से भरा हुआ है। उदाहरणार्थ, सौम्य-आचरण वाले डब्ल्यू. जे. थॉर्न पर ग़ौर करें, जो कभी एक पिल्ग्रिम या यात्रा करनेवाले अध्यक्ष और काफ़ी समय के एक बेथेल सेवक थे। उनके बारे में, एक मसीही ने कहा: “मैं कभी भी वह बात नहीं भूलूँगा जो भाई थॉर्न ने कही, जिस से मुझे आज तक मदद मिली है। उन्होंने यह कहा, और मैं उद्धृत करता हूँ, ‘जब भी मैं अपने आप को बड़ा समझने लगता हूँ, मैं मानो अपने को एक कोने में ले जाकर कहता हूँ: “हे धूल के कण। तुम्हारे पास क्या है जिसका तुम घमण्ड कर सकते हो?”’” प्राचीनों और दूसरों को प्रदर्शित करने के लिए यह क्या ही एक प्रशंसनीय गुण है! याद रखिए कि, “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।”—नीतिवचन २२:४.
सेवा करने की परमेश्वर-प्रदत्त इच्छा
९. ऐसे क्यों कहा जा सकता है कि एक अध्यक्ष के रूप में सेवा करने की इच्छा परमेश्वर-प्रदत्त है?
९ क्या एक अध्यक्ष के रूप में सेवा करने की इच्छा परमेश्वर-प्रदत्त है? जी हाँ, क्योंकि यहोवा की आत्मा उनकी पवित्र सेवा करने के लिए प्रेरणा, धैर्य और शक्ति देती है। उदाहरणार्थ, जब यीशु के पीड़ित शिष्यों ने प्रचार करने में हिम्मत के लिए प्रार्थना की, तब क्या हुआ? “वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे, हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।” (प्रेरितों ४:२७-३१) इसलिए कि पवित्र आत्मा ने ऐसे परिणामों को उत्पन्न किया है, वह एक व्यक्ति को अध्यक्ष बनने के लिए प्रेरित भी कर सकती है।
१०. (अ) एक मसीही पुरुष का अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्न न करने का एक कारण क्या है? (ब) हम किस विषय में निश्चित हो सकते हैं, अगर परमेश्वर हमें एक सेवकाई विशेषाधिकार प्रदान करते हैं?
१० एक प्रौढ़ मसीही अध्यक्ष बनने की प्रयत्न शायद क्यों नहीं करता होगा? वह एक आध्यात्मिक पुरुष होगा लेकिन शायद अपने आप को अपर्याप्त महसूस करता होगा। (१ कुरिन्थियों २:१४, १५) अवश्य हमें अपनी सीमाओं के बारे में अवगत रहते हुए, अपने बारे में एक विनयशील दृष्टिकोण रखना चाहिए। (मीका ६:८) धृष्टता से अपने आप को एक अमुक ज़िम्मेदारी के लिए सर्वाधिक योग्य समझने के बजाय, यह याद रखना अच्छा होगा कि “नम्र लोगों में बुद्धि होती है।” (नीतिवचन ११:२) लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि अगर परमेश्वर हमें सेवकाई का एक विशेषाधिकार देते हैं, वह उसे पूर्ण करने के लिए आवश्यक शक्ति भी प्रदान करेंगे। जैसे पौलुस ने कहा: “जो मुझे सामर्थ देता है, उस में मैं सब कुछ कर सकता हूँ।”—फिलिप्पियों ४:१३.
११. उस मसीही द्वारा क्या किया जा सकता है जो अध्यक्ष पद की प्रयत्न इसलिए नहीं करता कि वह सलाह देने के लिए पर्याप्त विवेक की कमी महसूस करता है?
११ एक मसीही शायद इसलिए अध्यक्ष बनने की प्रयत्न नहीं करेगा कि उसे लगता है कि सलाह देने के लिए उसके पास पर्याप्त विवेक की कमी है। ख़ैर, वह परमेश्वर के वचन का एक अधिक अध्यवसायी विद्यार्थी बनने के द्वारा विवेक प्राप्त कर सकता है, और उसे अवश्य विवेक के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। याकूब ने लिखा: “पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से माँगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता हैं; और उस को दी जाएगी। पर विश्वास से माँगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह न समझे कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।” (याकूब १:५-८) प्रार्थना के उत्तर में, परमेश्वर ने सुलैमान को “बुद्धि और विवेक से भरा मन” दिया जिसके द्वारा उसे न्याय करते वक़्त भलाई और बुराई के बीच पहचानने की योग्यता मिली। (१ राजा ३:९-१४) सुलैमान की बात विशेष थी, लेकिन अध्यवसायी अध्ययन और परमेश्वर की मदद से, वे पुरुष जिन्हें मण्डली की ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गयी हैं, दूसरों को धार्मिक रूप से सलाह दे सकते हैं। “बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुँह से निकलती हैं।”—नीतिवचन २:६.
१२. अगर चिन्ता के कारण एक पुरुष अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्न नहीं करता, तो उसकी मदद किस बात से होगी?
१२ कुछ चिन्ता भी किसी पुरुष को अध्यक्ष बनने की प्रयत्न करने से पीछे हटा सकती है। वह शायद सोचेगा कि प्राचीन बनने की भारी ज़िम्मेदारी को वह सँभाल न सकेगा। पौलुस ने भी मान लिया था: “सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन मुझे दबाती है।” (२ कुरिन्थियों ११:२८) लेकिन प्रेरित जानता था कि चिन्ता अनुभव करते वक़्त क्या करना चाहिए, क्योंकि उसने लिखा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ, परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी। (फिलिप्पियों ४:६, ७) जी हाँ, प्रार्थना और परमेश्वर में भरोसा चिन्ता कम करने में हमारी मदद करेगी।
१३. अगर एक पुरुष अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्न करने के बारे में बेचैनी महसूस करता है, तो वह कैसे प्रार्थना कर सकता है?
१३ अगर कुछ चिन्ता बनी रहती है, तो वह पुरुष जो अध्यक्ष बनने की प्रयत्न करने में बेचैनी महसूस करता है, दाऊद की तरह प्रार्थना कर सकता है: “हे ईश्वर, मुझे जाँचकर जान ले। मुझे परखकर मेरी बेचैन कर देनेवाली चिन्ताओं को जान ले। और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।” (भजन १३९:२३, २४, न्यू.व.) हमारे ‘बेचैन कर देनेवाले’ या ‘अशांत विचार’ चाहे किसी भी प्रकार के हों, उनसे निपटने के लिए परमेश्वर हमारी मदद कर सकते हैं, ताकि हम आध्यात्मिक प्रगति कर सकें। (द न्यू इंटरनॅशनल वर्शन देखें।) एक और भजन में यह बात अच्छी तरह कही गयी है: “जब मैं ने कहा: ‘मेरा पाँव फिसलने लगा है,’ तब हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया। जब मेरे मन में बहुत सी बेचैन कर देनेवाली चिन्ताएँ हो गयी, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख हुआ।”—भजन ९४:१८, १९, न्यू.व.
यहोवा की इच्छानुसार आनन्दपूर्वक सेवा करें
१४. अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्न न करनेवाले पुरुष को परमेश्वर की पवित्र आत्मा के लिए क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?
१४ अगर चिन्ता, अपर्याप्तता की भावनाएँ, या प्रेरणा की कमी से एक मसीही पुरुष अध्यक्ष बनने की प्रयत्न नहीं करता, तो परमेश्वर की आत्मा के लिए प्रार्थना करना अवश्य उचित होगा। यीशु ने कहा: “सो जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा?” (लूका ११:१३) इसलिए कि आत्मा के फलों में शांति और संयम है, यह आत्मा हमें चिन्ताओं या अपर्याप्तता की भावनाओं से निपटने की मदद करेगी।—गलतियों ५:२२, २३.
१५. किस प्रकार की प्रार्थनाएँ उन्हें मदद कर सकती हैं, जो अपने आप को सेवा विशेषाधिकारों के लिए उपलब्ध कराने की प्रेरणा महसूस नहीं करते?
१५ प्रेरणा की कमी के बारे में क्या? बपतिस्मा पाए हुए मसीहियों के रूप में हमें यह प्रार्थना करने की ज़रूरत है कि परमेश्वर हम से वह करवाए जो उन्हें पसन्द है। दाऊद ने याचना की थी: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला . . . मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे।” (भजन २५:४, ५) ऐसी प्रार्थनाएँ एक ग़लत रास्ता लेने से हमें रोकेंगी, और अगर हम अध्यक्ष बनने की प्रयत्न करने में प्रेरणा की कमी महसूस करते हैं, तब भी हम इसी तरह प्रार्थना कर सकते हैं। सेवकाई के विशेषाधिकारों को स्वीकार करने की इच्छा हम में उत्पन्न करने के लिए हम यहोवा से माँग कर सकते हैं। वस्तुतः, अगर हम परमेश्वर की आत्मा के लिए प्रार्थना करेंगे और उनके निर्देशन के अधीन बनेंगे, तो निस्सन्देह सेवकाई के विशेषाधिकार दिए जाने पर, हम अपने आप को उनके लिए उपलब्ध कराएँगे। आख़िरकार, परमेश्वर के सेवक किसी भी तरह उनकी आत्मा का विरोध करना नहीं चाहेंगे।—इफिसियों ४:३०.
१६. मण्डली की ज़िम्मेदारियों को सँभालने की प्रयत्न करने के लिए कौनसी मनोवृत्ति दृढ़ प्रेरणा देती है?
१६ हम में “प्रभु का मन” होने से, हम ईश्वरीय इच्छा करने में आनन्द पाते हैं। (१ कुरिन्थियों २:१६) यीशु को वही मनोवृत्ति थी, जो उस भजनकार की थी, जिसने कहा: “हे मरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूँ; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्तःकरण में बनी है।” (भजन ४०:८) मसीह ने कहा: “देख, मैं आ गया हूँ, ताकि तेरी इच्छा पूरी करूँ,” और यह बात यातना खम्भे पर मृत्यु तक सही निकली। (इब्रानियों १०:९, १०) यहोवा की सेवकाई में जो भी संभव है करने की इच्छा, मण्डली की ज़िम्मेदारियों को सँभालने की प्रयत्न करने के लिए दृढ़ प्रेरणा देती है।
भविष्य की ओर देखें
१७. (अ) उन पुरुषों को, जो उस पूर्णता से सेवा नहीं कर रहे हैं, जैसे कि वे कभी किया करते थे, क्यों निराश नहीं होना चाहिए? (ब) सबसे बड़ा विशेषाधिकार क्या है?
१७ आरोग्य समस्याएँ और अन्य वजहों से, कुछों के पास, जो कभी मण्डली की महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को सँभालते थे, वे विशेषाधिकार इस समय नहीं हैं। इन्होंने निराश नहीं होना चाहिए। हम जानते हैं कि कई वफ़ादार पुरुष जो अब वैसी सेवा नहीं कर सकते जैसे कि वे कभी किया करते थे, अब भी ख़राई रखनेवालों के रूप में दृढ़ खड़े हुए हैं। (भजन २५:२१) सचमुच, नम्र और काफ़ी समय से कार्य करनेवाले प्राचीन, प्राचीनों के समूह में बने रहने के द्वारा अपना अनुभव उपलब्ध करा सकते हैं। उम्र या असमर्थता के कारण अक्षमता महसूस करने पर भी उन्हें उस पद से नीचे उतरने की ज़रूरत नहीं। इसी बीच, यहोवा का हर गवाह, उनके पवित्र नाम के समर्थक के रूप में इस सब से उत्कृष्ट विशेषाधिकार की क़दर करें जो कि ‘परमेश्वर के राज्य की महिमा की चर्चा करना’ है।—भजन १४५:१०-१३.
१८. (अ) अगर एक प्राचीन या सेवकाई सेवक को पद से हटा दिया गया है, तो किस बात की ज़रूरत होगी? (ब) पद से हटाए गए एक प्राचीन ने कौनसी उत्कृष्ट मनोवृत्ति प्रदर्षित की?
१८ अगर आप किसी समय एक प्राचीन या सेवकाई सेवक थे लेकिन अब उस हैसियत से कार्य नहीं करते, निश्चित रहें कि परमेश्वर अब भी आपकी चिन्ता करते हैं और शायद भविष्य में आपको कोई अनपेक्षित विशेषाधिकार भी देंगे। (१ पतरस ५:६, ७) अगर आपको कुछ समायोजन करने की ज़रूरत है, तब ग़लती मानने के लिए तैयार रहें और परमेश्वर की सहायता से सुधार लाएँ। उन में से कुछों ने, जिन्हें प्राचीनों के पद से निकाला गया, एक अख्रीस्तीय मनोवृत्ति अपनायी है और उन में से कुछ निष्क्रिय बन गए हैं या सत्य से दूर गए हैं। लेकिन उनके समान बनना कितना विवेकपूर्ण है, जिन्होंने एक उत्तम मनोभाव प्रकट किया है! उदाहरण के लिए, जब एक प्राचीन को उनके पद से निकाला गया, जिन्होंने मध्य अमरीका में वर्षों से सेवा की थी, उन्होंने कहा: “उस विशेषाधिकार को खोने से मैं काफ़ी दुःखी हुआ हूँ, जिसे बहुत समय से मैं बहुमूल्य समझा हूँ। लेकिन जो भी रूप में भाई मेरा उपयोग करना चाहते हैं, उस रूप में मैं कठिन परिश्रम करूँगा और सेवकाई के मेरे विशेषाधिकारों को पुनःप्राप्त करने के लिए कार्य करूँगा।” कुछ समय बाद, इस भाई को फिर एक प्राचीन के रूप में सेवा करने का विशेषाधिकार प्राप्त हुआ।
१९. प्राचीन या सेवकाई सेवक पद से हटाए गए किसी भी भाई को कौनसी उपयुक्त सलाह दी गयी है?
१९ अगर आपको प्राचीन या सेवकाई सेवक के पद से निकाला गया है, तब एक नम्र मनोवृत्ति बनाए रखें। एक कटु मनोवृत्ति से दूर रहें जो कि आपको भविष्य में विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए अयोग्य ठहराएगी। एक धार्मिक मनोभाव से आदर प्राप्त होता है। निराश होने के बजाय, इस पर विचार करें कि कैसे यहोवा आपकी सेवकाई या आपके परिवार पर आशिष दे रहे हैं। अपने परिवार को आध्यात्मिक रूप से विकसित करें, रोगियों की भेंट करें, और दुर्बलों को प्रोत्साहित करें। इन सबसे बढ़कर, परमेश्वर की स्तुति करने और यहोवा के एक गवाह के रूप में सुसमाचार की घोषणा करने के आपके विशेषाधिकार की क़दर करें।—भजन १४५:१, २; यशायाह ४३:१०-१२.
२०. प्राचीनों का समूह एक भूतपूर्व अध्यक्ष या सेवकाई सेवक की मदद कैसे कर सकता है?
२० प्राचीनों के समूह को यह समझना चाहिए कि पद से हटाया जाना एक भूतपूर्व अध्यक्ष या सेवकाई सेवक में दबाव उत्पन्न कर सकता है, तब भी जब वह अपना विशेषाधिकार स्वेच्छा से त्याग देता है। अगर उसे बहिष्कार नहीं किया गया और प्राचीन यह देख रहे हैं कि वह भाई दुःखी है, उन्हें प्रेममय आध्यात्मिक सहायता प्रदान करनी चाहिए। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४) उसे यह समझने में उन्हें मदद देनी चाहिए कि मण्डली में उसकी ज़रूरत है। तब भी जब सलाह की ज़रूरत हुई है, अधिक समय बीतने से पहले ही एक नम्र और कृतज्ञपूर्ण पुरुष दोबारा मण्डली में सेवकाई के विशेषाधिकार प्राप्त करेगा।
२१. किन व्यक्तियों ने सेवकाई के विशेषाधिकारों का इंतज़ार किया, और आज उन विशेषाधिकारों का इंतज़ार करनेवालों को क्या सलाह दी गयी है?
२१ अगर आप अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्न कर रहे हैं, तो आपको सेवकाई के अधिक विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए शायद कुछ समय इंतज़ार करना पड़ेगा। अधीर न बनें। मिस्री दासता से इस्राएलियों को छुड़ाने के लिए परमेश्वर का उसे उपयोग करने से पहले, मूसा ने ४० वर्ष तक इंतज़ार किया। (प्रेरितों ७:२३-३६) मूसा के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किए जाने से पहले, यहोशू ने कई वर्ष उसके सहवर्ती के रूप में सेवा की। (निर्गमन ३३:११; गिनती २७:१५-२३) इस्राएल के सिंहासन पर अपना स्थान पाने से पहले, दाऊद को कुछ समय इंतज़ार करना पड़ा। (२ शमूएल २:७; ५:३) प्रत्यक्षतः, पतरस और यूहन्ना मरकुस ने भी परिष्कृति की कालावधियों का अनुभव किया। (मत्ती २६:६९-७५; यूहन्ना २१:१५-१९; प्रेरितों १३:१३; १५:३६-४१; कुलुस्सियों ४:१०) इसलिए अगर आपको अब मण्डली में ज़िम्मेदारियाँ नहीं हैं, तो शायद यहोवा आपको अधिक अनुभव पाने के द्वारा विकास प्राप्त करने की अनुमति दे रहे हों। जो भी हो, जैसे आप अध्यक्ष पद के लिए प्रयत्न करेंगे, परमेश्वर से मदद माँगें, और वह आपको सेवा के अधिक विशेषाधिकारों से आशिष दे सकते हैं। इसी बीच, मण्डली की ज़िम्मेदारियों के योग्य बनने के लिए अध्यवसायी रूप से कार्य करें और दाऊद का मनोभाव प्रकट करें, जिसने कहा था: “मैं यहोवा की स्तुति करूँगा, और सारे प्राणी उसके पवित्र नाम को सदा सर्वदा धन्य कहते रहें।”—भजन १४५:२१.
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ मसीही प्राचीनों को किन ख़तरों की ओर सावधान रहना चाहिए?
◻ उन लोगों को किस बात से मदद मिल सकती है जो, चिन्ता या अपर्याप्तता की भावनाओं के कारण, प्रयत्न नहीं करते?
◻ मण्डली की ज़िम्मेदारियों के लिए अपने आप को उपलब्ध कराने के लिए एक व्यक्ति को क्या प्रेरित कर सकता है?
◻ भूतपूर्व प्राचीनों और सेवकाई सेवकों को भविष्य की ओर किस मनोवृत्ति से देखना चाहिए?
[पेज 11 पर तसवीरें]
डब्ल्यू. जे. थॉर्न ने एक नम्र प्राचीन के रूप में एक उत्कृष्ट उदाहरण स्थापित किया
[पेज 13 पर तसवीरें]
यीशु के समान, यहोवा की सेवा में हर सम्भव कार्य करने के लिए क्या आप तैयार हैं?