सच्ची उपासना की विजय निकट आती है
“यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा।”—जकर्याह १४:९.
१. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अभिषिक्त मसीहियों का क्या अनुभव रहा, और यह कैसे पूर्वबताया गया था?
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, अभिषिक्त मसीहियों ने युद्ध कर रहे राष्ट्रों द्वारा अनेक कठिनाइयों और क़ैद का दुःख झेला। यहोवा को उनके स्तुति के बलिदान अत्यधिक रूप से सीमित हो गए थे, और वे एक आध्यात्मिक बन्धुआई की दशा में पड़ गए। ये सभी बातें जकर्याह १४:२ में पूर्वबतायी गई थीं, जो कि यरूशलेम पर एक अन्तरराष्ट्रीय आक्रमण का वर्णन करती हैं। इस भविष्यवाणी का नगर “स्वर्गीय यरूशलेम,” अर्थात् परमेश्वर का स्वर्गीय राज्य है और ‘परमेश्वर और मेम्ने के सिंहासन’ का स्थान है। (इब्रानियों १२:२२, २८; १३:१४; प्रकाशितवाक्य २२:३) पृथ्वी पर परमेश्वर के अभिषिक्त जन इस नगर का प्रतिनिधित्व करते थे। ‘नगर’ से बाहर निकाले जाने से इन्कार करते हुए, उनमें जो वफ़ादार जन थे वे आक्रमण से बच गए।a
२, ३. (क) १९१९ से यहोवा की उपासना कैसे विजयी हुई है? (ख) १९३५ से कौन-सा विकास हुआ है?
२ वर्ष १९१९ में वफ़ादार अभिषिक्त जनों को उनकी बन्धुआई की दशा से छुटकारा दिया गया, और उन्होंने तुरन्त युद्ध के बाद आनेवाले शान्ति के समय का फ़ायदा उठाया। स्वर्गीय यरूशलेम के राजदूतों के तौर पर, उन्होंने परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने और १,४४,००० जनों के अन्तिम सदस्यों को इकट्ठा करने में सहायता करने के महान अवसर का लाभ उठाया है। (मत्ती २४:१४; २ कुरिन्थियों ५:२०) १९३१ में उन्होंने यहोवा के साक्षी इस उचित शास्त्रीय नाम को धारण किया।—यशायाह ४३:१०, १२.
३ तब से, परमेश्वर के अभिषिक्त साक्षियों ने कभी-भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यहाँ तक कि हिटलर भी अपने नात्ज़ी राजनैतिक और सैन्य संगठन से उन्हें शान्त नहीं कर सका। संसार-व्याप्त सताहट के बावजूद, उनके काम ने सारी पृथ्वी पर फल उत्पन्न किए हैं। ख़ासकर वर्ष १९३५ से, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में पूर्वबताई गई अन्तरराष्ट्रीय “बड़ी भीड़” ने उनका साथ दिया है। ये भी समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त मसीही हैं और “इन्हों ने अपने अपने वस्त्र मेम्ने के,” अर्थात् यीशु मसीह के “लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) लेकिन, वे स्वर्गीय जीवन की आशा रखनेवाले अभिषिक्त जन नहीं हैं। उनकी प्रत्याशा उस जीवन को पाने की है जो आदम और हव्वा ने खो दिया, यानी परादीस पृथ्वी पर परिपूर्ण मानव जीवन। (भजन ३७:२९; मत्ती २५:३४) आज, बड़ी भीड़ की संख्या ५० लाख व्यक्तियों से ज़्यादा है। यहोवा की सच्ची उपासना विजयी हो रही है, लेकिन उसकी अन्तिम विजय अभी बाक़ी है।
परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर में परदेशी
४, ५. (क) बड़ी भीड़ यहोवा की उपासना कहाँ करती है? (ख) वे कौन-से विशेषाधिकारों का आनन्द उठाते हैं, और किस भविष्यवाणी की पूर्ति में?
४ जैसा पूर्वबताया गया था, बड़ी भीड़ “उसके मन्दिर में दिन रात [परमेश्वर] की सेवा करती है।” (प्रकाशितवाक्य ७:१५, NW फुटनोट) क्योंकि वे आत्मिक, याजकीय इस्राएली नहीं हैं, यूहन्ना ने संभवतः उन्हें मन्दिर में अन्यजातियों के बाहरी आँगन में खड़े हुए देखा। (१ पतरस २:५) यहोवा का आत्मिक मन्दिर कितना ही महिमावान हो गया है, इसका अहाता इस बड़े समूह से भरा हुआ है जो, आत्मिक इस्राएल के शेषवर्ग के साथ उसकी स्तुति कर रहे हैं!
५ बड़ी भीड़ परमेश्वर की सेवा उस स्थिति में नहीं करती जो भीतर के याजकीय आँगन द्वारा चित्रित होती है। वे परमेश्वर के दत्तक, आत्मिक पुत्र होने के उद्देश्य से धर्मी नहीं ठहराए जाते। (रोमियों ८:१, १५) फिर भी, यीशु की छुड़ौती में विश्वास करने के द्वारा, यहोवा के सामने उनकी एक स्वच्छ स्थिति है। वे उसके मित्र होने के उद्देश्य से धर्मी ठहराए जाते हैं। (याकूब २:२१, २३ से तुलना कीजिए।) उन्हें भी परमेश्वर की आत्मिक वेदी पर स्वीकार-योग्य बलिदान चढ़ाने का विशेषाधिकार प्राप्त है। अतः, इस बड़ी भीड़ में, यशायाह ५६:६, ७ की भविष्यवाणी एक शानदार पूर्ति से गुज़र रही है: “परदेशी भी जो यहोवा के साथ इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें, . . . उनको मैं अपने पवित्र पर्वत पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूंगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएंगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा।”
६. (क) किस प्रकार के बलिदान परदेशी चढ़ाते हैं? (ख) याजकीय आँगन में पानी का हौद उन्हें किस की याद दिलाता है?
६ जो बलिदान ये परदेशी चढ़ाते हैं उनमें “स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल [बारीक़ तैयार की गई अन्नबलि के समान] जो [परमेश्वर के] नाम की सार्वजनिक घोषणा करते हैं” और ‘भलाई और उदारता करना’ शामिल है। (इब्रानियों १३:१५, १६, NW) पानी का बड़ा हौद भी जिसे याजकों को ख़ुद को स्वच्छ करने के लिए इस्तेमाल करना होता था, इन परदेशियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण अनुस्मारक है। जैसे-जैसे परमेश्वर का वचन उनके लिए क्रमिक रूप से और स्पष्ट किया जाता है, उनका भी आत्मिक और नैतिक शुद्धिकरण से गुज़रना ज़रूरी है।
पवित्र स्थान और उसका साज-सामान
७. (क) याजकों के पवित्र समाज के विशेषाधिकारों को बड़ी भीड़ किस दृष्टिकोण से देखती है? (ख) कुछ परदेशियों को कौन-से अतिरिक्त विशेषाधिकार प्राप्त हुए?
७ क्या पवित्र स्थान और उसकी सजावट का परदेशियों की इस बड़ी भीड़ के लिए कोई अर्थ है? वे पवित्र स्थान द्वारा चित्रित स्थिति में कभी नहीं होंगे। वे स्वर्गीय नागरिकता के साथ परमेश्वर के आत्मिक पुत्रों के तौर पर नये सिरे से नहीं जन्मे हैं। क्या इससे वे ईर्ष्यालु या लोभी महसूस करते हैं? नहीं। इसके बजाय, वे १,४४,००० के शेषवर्ग का समर्थन करने के अपने विशेषाधिकार में आनन्द मनाते हैं और इन आत्मिक पुत्रों को, जो मसीह के साथ मानवजाति को परिपूर्णता की ओर उठाने में शामिल होंगे, दत्तक लेने के परमेश्वर के उद्देश्य के प्रति गहरा मूल्यांकन दिखाते हैं। साथ ही, परदेशियों की यह बड़ी भीड़, उन्हें परादीस में सर्वदा जीवित रहने की पार्थिव आशा प्रदान करने के लिए, परमेश्वर के महान अपात्र अनुग्रह की क़दर करती है। इन में से कुछ परदेशियों को, प्राचीन नतिनों की तरह, पवित्र याजकवर्ग की सहायता करने के लिए निरीक्षण के विशेषाधिकार दिए गए हैं।b (यशायाह ६१:५) इनके बीच में से यीशु “सारी पृथ्वी पर हाकिम” ठहराता है।—भजन ४५:१६.
८, ९. पवित्र स्थान के साज-सामान पर विचार करने के द्वारा बड़ी भीड़ क्या लाभ प्राप्त करती है?
८ जबकि वे प्रतिप्ररूपक पवित्र स्थान में कभी-भी प्रवेश नहीं करेंगे, परदेशियों की यह बड़ी भीड़ इस साज-सामान से मूल्यवान सबक़ सीखती है। ठीक जैसे दीवट को तेल की आपूर्ति की लगातार ज़रूरत होती थी, वैसे ही इन परदेशियों को “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के माध्यम से आनेवाली, परमेश्वर के वचन की क्रमिक सच्चाइयों को समझने में उनकी मदद करने के लिए पवित्र आत्मा की ज़रूरत है। (मत्ती २४:४५-४७) इसके अलावा, परमेश्वर की आत्मा उन्हें इस निमंत्रण के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने में मदद करती है: “आत्मा, और दुल्हिन [अभिषिक्त शेषवर्ग] दोनों कहती हैं, आ; और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।” (प्रकाशितवाक्य २२:१७) अतः, यह दीवट बड़ी भीड़ के लिए, मसीहियों के तौर पर चमकने की उनकी बाध्यता का और मनोवृत्ति, विचार, कथनी, अथवा करनी में ऐसी किसी भी चीज़ से बचने का अनुस्मारक है, जो कि परमेश्वर की पवित्र आत्मा को शोकित करता।—इफिसियों ४:३०.
९ भेंट की रोटी की मेज़ बड़ी भीड़ को याद दिलाती है कि आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए, उन्हें बाइबल से और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के साहित्य से आध्यात्मिक भोजन नियमित रूप से लेते रहना चाहिए। (मत्ती ४:४) धूप की वेदी, उनकी खराई बनाए रखने में मदद करने के लिए यहोवा से मन लगाकर प्रार्थना करने के महत्त्व की उनको याद दिलाती है। (लूका २१:३६) उनकी प्रार्थनाओं में स्तुति और धन्यवाद की हार्दिक अभिव्यक्तियाँ शामिल होनी चाहिए। (भजन १०६:१) धूप की वेदी उन्हें अन्य तरीक़ों से परमेश्वर की स्तुति करने की ज़रूरत की भी याद दिलाती है, जैसे कि उनका मसीही सभाओं में राज्य गीतों को पूरे दिल से गाना और प्रभावशाली रीति से “उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार” करने के लिए उनका अच्छी तैयारी करना।—रोमियों १०:१०.
सच्ची उपासना की सम्पूर्ण विजय
१०. (क) किस महान प्रत्याशा का हम इन्तज़ार कर सकते हैं? (ख) कौन-सा विकास पहले होना ज़रूरी है?
१० आज सब देशों से ‘बहुत लोग’ परमेश्वर की उपासना के घर की ओर धारा की नाईं जा रहे हैं। (यशायाह २:२, ३) इस बात की पुष्टि करते हुए, प्रकाशितवाक्य १५:४ कहता है: “हे प्रभु, कौन तुझ से न डरेगा? और तेरे नाम की महिमा न करेगा? क्योंकि केवल तू ही पवित्र है, और सारी जातियां आकर तेरे साम्हने दण्डवत करेंगी, क्योंकि तेरे न्याय के काम प्रगट हो गए हैं।” जकर्याह अध्याय १४ उसके बाद जो होता है उसकी व्याख्या करता है। निकट भविष्य में, पृथ्वी पर अधिकांश लोगों की बुरी मनोवृत्ति एक चरमसीमा पर पहुँच जाएगी जब वे आख़िरी बार यरूशलेम—पृथ्वी पर स्वर्गीय यरूशलेम के प्रतिनिधि—के विरुद्ध युद्ध करने के लिए इकट्ठे होते हैं। तब यहोवा कार्यवाही करेगा। एक योद्धा-परमेश्वर के रूप में, वह “निकलकर उन जातियों से . . . लड़ेगा” जो यह हमला करने की हिम्मत करते हैं।—जकर्याह १४:२, ३.
११, १२. (क) अपने मन्दिर में उपासकों पर आनेवाले विश्वव्यापी आक्रमण का यहोवा कैसे जवाब देगा? (ख) परमेश्वर के युद्ध का क्या परिणाम होगा?
११ “जितनी जातियों के लोग यरूशलेम के विरुद्ध युद्ध में भाग लेंगे उन सभी लोगों को यहोवा इस मरी से मारेगा; खड़े खड़े उनका मांस गल जाएगा, उनकी आंखें गोलकों में सड़ जाएंगी, उनकी जीभ मुंह में ही सड़ जाएगी। उस दिन यहोवा की ओर से उन में बड़ी घबराहट पैठेगी, और वे एक दूसरे के हाथ को पकड़ेंगे, और एक दूसरे पर अपने अपने हाथ उठाएंगे।”—जकर्याह १४:१२, १३, NHT.
१२ यह मरी शाब्दिक है या लाक्षणिक, यह देखने के लिए हमें इन्तज़ार करना होगा। लेकिन, एक बात निश्चित है। जबकि परमेश्वर के शत्रु यहोवा के सेवकों पर विश्वव्यापी आक्रमण करने जा रहे हैं, उन्हें परमेश्वर की अजेय शक्ति के असाधारण प्रदर्शन द्वारा रोक दिया जाएगा। उनके मुँह बन्द किए जाएँगे। यह ऐसा होगा मानो उनकी ललकारनेवाली जीभ सड़ चुकी हो। उनका संयुक्त लक्ष्य उनकी आँखों में धुँधला हो जाएगा, मानो उनकी आँखें सड़ गई हों। उनकी शारीरिक शक्ति, जिसने आक्रमण करने के लिए उन्हें हिम्मत दी, नष्ट हो जाएगी। गड़बड़ी में, वे एक दूसरे के ख़िलाफ़ होकर बड़ा क़त्लेआम करेंगे। अतः परमेश्वर की उपासना के सभी पार्थिव शत्रुओं को मिटा दिया जाएगा। आख़िरकार, सभी राष्ट्रों को यहोवा की विश्वव्यापी सर्वसत्ता मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यह भविष्यवाणी पूरी हो जाएगी: “यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा।” (जकर्याह १४:९) उसके बाद, जैसे मसीह का हज़ार वर्ष का शासन, मानवजाति के लिए महान आशीषों के साथ आरंभ होगा, तब शैतान और उसके पिशाचों को बाँधा जाएगा।—प्रकाशितवाक्य २०:१, २; २१:३, ४.
पार्थिव पुनरुत्थान
१३. वे लोग कौन हैं जो “सब जातियों में से बचे रहेंगे”?
१३ जकर्याह की भविष्यवाणी अध्याय १४, आयत १६ में आगे कहती है: “जितने लोग यरूशलेम पर चढ़नेवाली सब जातियों में से बचे रहेंगे, वे प्रति वर्ष राजा को अर्थात् सेनाओं के यहोवा को दण्डवत् करने, और झोपड़ियों का पर्ब मानने के लिये यरूशलेम को जाया करेंगे।” बाइबल के अनुसार, वे सभी लोग जो आज इस दुष्ट व्यवस्था के अन्त तक जीवित रहते हैं और जिनका न्याय सच्ची उपासना के शत्रुओं के रूप में किया गया है वे “अनन्त विनाश का दण्ड पाएंगे।” (२ थिस्सलुनीकियों १:७-९. मत्ती २५:३१-३३, ४६ भी देखिए।) उनका पुनरुत्थान नहीं होगा। संभवतः, तब, जो लोग “बचे रहेंगे,” उनमें उन राष्ट्रों के सदस्य भी शामिल हैं जो परमेश्वर के अन्तिम युद्ध से पहले मर गए थे और जिनके लिए पुनरुत्थान की बाइबल-आधारित आशा है। “वह समय आता है,” यीशु ने प्रतिज्ञा की, “कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।”—यूहन्ना ५:२८, २९.
१४. (क) अनन्त जीवन पाने के लिए पुनरुत्थित लोगों को क्या करने के ज़रूरत है? (ख) ऐसे किसी भी व्यक्ति का क्या होगा जो ख़ुद को यहोवा को समर्पित करने और सच्ची उपासना करने से इनकार करेगा?
१४ इन सभी पुनरुत्थित लोगों को ऐसा कुछ करने की ज़रूरत होगी जिसके कारण उनका पुनरुत्थान जीवन का पुनरुत्थान बन जाए और प्रतिकूल दंड का नहीं। उन्हें यहोवा के मन्दिर के पार्थिव आँगन में आने और यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर को समर्पण में दण्डवत् करने की ज़रूरत है। कोई भी पुनरुत्थित व्यक्ति जो ऐसा करने से इनकार करता है वह उसी मरी से पीड़ित होगा जो कि वर्तमान-दिन राष्ट्रों पर आती है। (जकर्याह १४:१८) कौन जानता है कि पुनरुत्थित जनों में से कितने लोग सहर्ष बड़ी भीड़ के साथ प्रतिरूपक झोपड़ियों का पर्व मनाने में शामिल होंगे? निःसंदेह, अनेक लोग होंगे, और इसके परिणामस्वरूप यहोवा का महान आत्मिक मन्दिर और ज़्यादा महिमान्वित हो जाएगा!
प्रतिप्ररूपक झोपड़ियों का पर्व
१५. (क) प्राचीन इस्राएली झोपड़ियों के पर्व की कुछ उत्कृष्ट विशेषताएँ क्या थीं? (ख) पर्व के दौरान ७० बैलों की भेंट क्यों दी जाती थी?
१५ प्रत्येक वर्ष, प्राचीन इस्राएल से झोपड़ियों का पर्व मनाने की माँग की जाती थी। यह एक सप्ताह तक चलता था और उनकी कटनी इकट्ठा करने के समय पर आकर समाप्त होता था। यह धन्यवाद देने का एक आनन्ददायक समय होता था। एक सप्ताह तक उन्हें पेड़ों की पत्तियों से ढकी, ख़ासकर खजूर की डालियों से ढकी अस्थायी झोपड़ियों में रहना होता था। इस पर्व ने इस्राएल को याद दिलाया कि कैसे परमेश्वर ने उनके पूर्वजों को मिस्र से छुड़ाया था और कैसे वह उनकी देखभाल करता रहा जब वे मरुभूमि में झोपड़ियों में रहकर लगभग ४० वर्ष तक घूमते रहे जब तक कि वे प्रतिज्ञात देश में पहुँच नहीं गए। (लैव्यव्यवस्था २३:३९-४३) पर्व के दौरान, मन्दिर की वेदी पर ७० बैल बलि किए जाते थे। स्पष्ट रूप से, पर्व की यह विशेषता, यीशु मसीह द्वारा किए गए श्रेष्ठ और सम्पूर्ण जीवन-रक्षक कार्य की भविष्यसूचक थी। उसके छुड़ौती बलिदान के फ़ायदे आख़िरकार नूह से आनेवाले मानवजाति के ७० परिवारों के अनगिनत वंशजों तक पहुँचेंगे।—उत्पत्ति १०:१-२९; गिनती २९:१२-३४; मत्ती २०:२८.
१६, १७. (क) प्रतिप्ररूपक झोपड़ियों का पर्व कब आरंभ होता था, और यह कैसे आगे बढ़ता था? (ख) बड़ी भीड़ इसको मनाने में कैसे भाग लेती है?
१६ इस प्रकार प्राचीन झोपड़ियों के पर्व ने यहोवा के आत्मिक मन्दिर में छुड़ाए गए पापियों के आनन्दमय एकत्रीकरण की ओर इशारा किया। इस पर्व की पूर्ति सा.यु. ३३ में पिन्तेकुस्त के समय मसीही कलीसिया में आत्मिक इस्राएलियों के आनन्दमय एकत्रीकरण की शुरूआत के साथ आरंभ हुई। (प्रेरितों २:४१, ४६, ४७) इन अभिषिक्त जनों ने इस बात की क़दर की कि वे शैतान के संसार में “यात्री” थे क्योंकि उनकी वास्तविक “नागरिकता स्वर्ग की है।” (१ पतरस २:११; फिलिप्पियों ३:२०, NHT) उस आनन्दमय पर्व पर धर्मत्याग द्वारा अस्थायी रूप से ग्रहण लग गया था जिसके परिणाम से मसीहीजगत का निर्माण हुआ। (२ थिस्सलुनीकियों २:१-३) फिर भी, यह पर्व १९१९ में, १,४४,००० आत्मिक इस्राएलियों के अन्तिम सदस्यों के आनन्दमय एकत्रीकरण के साथ पुनःआरंभ हुआ, जिसके बाद प्रकाशितवाक्य ७:९ की अन्तरराष्ट्रीय बड़ी भीड़ का एकत्रीकरण हुआ।
१७ इस बड़ी भीड़ को उनके हाथों में खजूर की डालियाँ लिए हुए चित्रित किया गया है, जो दिखाता है कि वे भी प्रतिप्ररूपक झोपड़ियों के पर्व के आनन्दमय मनानेवाले हैं। समर्पित मसीहियों के तौर पर, यहोवा के मन्दिर में और उपासकों को एकत्रित करने के काम में वे आनन्द से हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा, पापियों के तौर पर, वे समझते हैं कि उनके पास स्थायी रूप से पृथ्वी पर रहने का अधिकार नहीं है। उन्हें भविष्य में पुनरुत्थित जनों के साथ, मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास दिखाते रहना चाहिए, जब तक कि मसीह के हज़ार वर्ष के शासन के अन्त तक वे मानव परिपूर्णता हासिल नहीं कर लेते।—प्रकाशितवाक्य २०:५.
१८. (क) यीशु मसीह के हज़ार वर्ष के शासन के अन्त में क्या होगा? (ख) यहोवा की सच्ची उपासना आख़िरकार कैसे विजयी होगी?
१८ उसके बाद, परमेश्वर के उपासक पृथ्वी पर उसके सामने बिना किसी स्वर्गीय याजकवर्ग की ज़रूरत के खड़े रह सकेंगे। वह समय आ चुका होगा जब यीशु मसीह “राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा।” (१ कुरिन्थियों १५:२४) परिपूर्ण मानवजाति की परीक्षा लेने के लिए शैतान को “थोड़ी देर के लिये” छोड़ दिया जाएगा। शैतान और उसके पिशाचों के साथ, किसी भी अविश्वासी जन को हमेशा के लिए नाश कर दिया जाएगा। जो वफ़ादार बने रहते हैं उन्हें अनन्त जीवन दिया जाएगा। वे पार्थिव परादीस के स्थायी निवासी बन जाएँगे। इस प्रकार प्रतिप्ररूपी झोपड़ियों का पर्व एक महिमान्वित, सफल समाप्ति पर आ चुका होगा। यहोवा की अनन्त महिमा और मानवजाति की अनन्त ख़ुशी के लिये सच्ची उपासना विजयी हो चुकी होगी।—प्रकाशितवाक्य २०:३, ७-१०, १४, १५.
[फुटनोट]
a जकर्याह अध्याय १४ पर एक-एक आयत पर व्याख्या के लिए, पुस्तक ईशतंत्र द्वारा—मनुष्यजाति के लिए परादीस पुनःस्थापित! (अंग्रेज़ी), १९७२ में वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, अध्याय २१ और २२ देखिए।
b आधुनिक दिन नतीन के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए, प्रहरीदुर्ग, जुलाई १, १९९२, पृष्ठ ३० देखिए।
पुनर्विचार प्रश्न
◻ प्रथम विश्व युद्ध के दौरान “यरूशलेम” पर कैसे आक्रमण हुआ?—जकर्याह १४:२.
◻ १९१९ से परमेश्वर के लोगों को क्या हुआ है?
◻ प्रतिप्ररूपी झोपड़ियों का पर्व मनाने में आज कौन लोग हिस्सा लेते हैं?
◻ सच्ची उपासना पूरी तरह से कैसे विजयी होगी?
[पेज 23 पर तसवीरें]
झोपड़ियों का पर्व मनाने के लिए खजूर की डालियों का प्रयोग किया जाता था