“यह सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है”
“मैं प्रभु के दिन में आत्मा की प्रेरणा में आ गया।”—प्रकाशितवाक्य १:१०.
१. हम कौनसे “दिन” में जी रहे हैं, और यह वास्तविकता इतनी भावोत्तेजक क्यों है?
“यह सबसे महत्त्वपूर्ण दिन है। देखो, राजा राज्य करता है!” १९२२ में वॉच टावर बाइबल ॲन्ड ट्रॅक्ट सोसाइटी के दूसरे सभापति द्वारा कहे गए वे शब्द आज भी हमें भावोत्तेजित कर देते हैं। वे हमें सतत याद दिलाते हैं कि हम सारे इतिहास के सबसे उत्तेजक समय में जी रहे हैं, वह समय जिसे बाइबल में ‘प्रभु का दिन’ कहा जाता है। (प्रकाशितवाक्य १:१०) यह सचमुच ही “सबसे महत्त्वपूर्ण दिन” है, इसलिए कि यह वह समय है जब यहोवा, मसीह के राज्य के ज़रिए, अपने सभी महान् उद्देश्यों को पूरा करेगा और सारी सृष्टि के सामने अपने पवित्र नाम का पवित्रीकरण करेगा।
२, ३. (अ) प्रभु के दिन की कालावधि क्या है? (ब) इस दिन के बारे में हम कहाँ से पता लगा सकते हैं?
२ यह दिन १९१४ में शुरू हुआ जब यीशु परमेश्वर के राज्य के राजा की हैसियत से अधिष्ठापित किया गया। और यह एक हज़ार वर्ष के राज्य की समाप्ति तक जारी रहेगा, जब मसीह ‘राज्य को अपने परमेश्वर और पिता के हाथ में सौंप देगा।’ (१ कुरिन्थियों १५:२४) विश्वसनीय मसीहियों ने सदियों से प्रभु के दिन की उत्सुकता से प्रतीक्षा की है। अब, आख़िर यह आ पहुँचा है! इस “सबसे महत्त्वपूर्ण दिन” ने परमेश्वर के लोगों और आम संसार के लिए क्या सूचित किया है?
३ प्रभु के दिन के बारे में हमें सबसे अधिक बतानेवाली बाइबल किताब प्रकाशितवाक्य है। इस किताब की लगभग सभी भविष्यवाणियाँ प्रभु के दिन में पूरी होती हैं। लेकिन प्रकाशितवाक्य उस दिन के बारे में हमें बतानेवाली भविष्यसूचक किताबों की एक श्रृंखला का मात्र क्रमोत्कर्ष ही है। अन्यों के अलावा, यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल और दानिय्येल, भी हमें उसके बारे में बताते हैं। अक़्सर, जो बातें वे बताते हैं, वे हमें प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणियों को बेहतर रीति से समझने में मदद करती हैं। आइए देखें कि विशेषकर यहेजकेल की किताब प्रभु के दिन में प्रकाशितवाक्य की पूर्ति पर किस तरह रोशनी डालती है।
चार घुड़सवार
४. प्रकाशितवाक्य अध्याय ६ के अनुसार, प्रभु के दिन की शुरुआत में क्या घटित हुआ?
४ मिसाल के तौर पर, प्रकाशितवाक्य के छठे अध्याय में, प्रेरित यूहन्ना एक प्रभावशाली दर्शन का वर्णन करता है: “मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक श्वेत घोड़ा है; और उसका सवार धनुष लिए हुए है; और उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकला कि और भी जय प्राप्त करे।” (प्रकाशितवाक्य ६:२) यह विजयी घुड़सवार कौन है? यह स्वयं यीशु है, जो परमेश्वर के राज्य के राजा की हैसियत से अधिष्ठापित किया गया है और अपने शत्रुओं पर विजय करने के लिए आगे बढ़ रहा है। (भजन ४५:३-६; ११०:२) यीशु की विजयी सवारी १९१४ में शुरू हुई, प्रभु के दिन की बिल्कुल शुरुआत में। (भजन २:६) उसकी सबसे पहली जीत शैतान और उसके दानवों को पृथ्वी पर फेंकना थी। मनुष्यजाति के लिए कैसा नतीजा? “हे पृथ्वी और समुद्र, तुम पर हाय।”—प्रकाशितवाक्य १२:७-१२.
५. श्वेत घोड़े के सवार के पीछे-पीछे कौनसे भयंकर रूप नज़र आते हैं, और हर एक को कौनसा अधिकार है?
५ दर्शन में इसके बाद तीन भयंकर रूप नज़र आते हैं: एक लाल रंग का घोड़ा जो युद्ध का प्रतीक है, एक काला घोड़ा जो अकाल का प्रतीक है, और एक फीके रंग का घोड़ा जिसके घुड़सवार का नाम “मृत्यु” दिया गया था। इस चौथे घोड़े के विषय, हम पढ़ते हैं: “मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक पीला सा घोड़ा है; और उसके सवार का नाम मृत्यु है। और अधोलोक उसके पीछे पीछे है और उन्हें पृथ्वी की एक चौथाई पर यह अधिकार दिया गया, कि तलवार, और अकाल, और मरी, और पृथ्वी के वनपशुओं के द्वारा लोगों को मार डालें।”—प्रकाशितवाक्य ६:३-८; मत्ती २४:३, ७, ८; लूका २१:१०, ११.
६. इन तीन भयानक घोड़ों और सवारों का पृथ्वी पर कैसा असर रहा है?
६ बिल्कुल उस भविष्यवाणी के ही जैसे, १९१४ से मानवजाति ने युद्ध, अकाल, और मरियों के कारण भयंकर दुःख भोगा है। परन्तु चौथा घुड़सवार “पृथ्वी के वनपशुओं” के ज़रिए भी वध करता है। क्या १९१४ से यह एक उल्लेखनीय लक्षण रहा है? यहेजकेल द्वारा की गयी एक समान भविष्यवाणी पर विचार करना भविष्यवाणी के इस पहलू को सही परिप्रेक्ष्य में रखने की मदद करती है।
७. (अ) यरूशलेम से संबंधित यहेजकेल ने कौनसी भविष्यवाणी कही? (ब) यह भविष्यवाणी किस तरह पूर्ण हुई?
७ सामान्य युग पूर्व ६०७ में यरूशलेम के विनाश से शायद पाँच वर्ष पहले लिखते हुए, यहेजकेल ने यहूदियों की अविश्वसनीयता की वजह से उनके लिए एक भयानक दण्ड की भविष्यवाणी की। प्रेरणा में आकर उसने लिखा: “मैं यरूशलेम पर अपने चारों दण्ड पहुँचाऊँगा, अर्थात्, तलवार, अकाल, दुष्ट जन्तु और मरी, जिन से मनुष्य और पशु सब उस में से नाश हों।” (यहेजकेल १४:२१; ५:१७) क्या यह उस समय वास्तविक रूप से पूर्ण हुई? बेशक जैसे यरूशलेम का अन्त नज़दीक आया, उसने अकाल और युद्ध की वजह से दुःख उठाए। और आम तौर पर अकाल से मरियाँ उत्पन्न होती हैं। (२ इतिहास ३६:१-३, ६, १३, १७-२१; यिर्मयाह ५२:४-७; विलापगीत ४:९, १०) क्या उस समय वनपशुओं की एक वास्तविक विपत्ति भी थी? संभवतः ऐसी घटनाएँ घटीं जहाँ आदमियों को पशु घसीट ले गए या शायद उन्हें जान से भी मार डाले, चूँकि यिर्मयाह ने भी इसकी भविष्यवाणी की।—लैव्यव्यवस्था २६:२२-३३; यिर्मयाह १५:२, ३.
८. अब तक प्रभु के दिन के दौरान वनपशुओं का क्या भाग रहा है?
८ वर्तमान स्थिति का क्या? विकसित देशों में, वनपशु एक ख़तरनाक समस्या नहीं जिस तरह वे किसी समय थे। फिर भी, अन्य देशों में, वनपशु अब भी शिकार ले जाते हैं, ख़ास कर अगर हम “पृथ्वी के वनपशुओं” में साँपों और मगरमच्छों को समाविष्ट करेंगे। ऐसे दुःखपूर्ण मरण अंतर्राष्ट्रीय अख़बारों में कभी-कभार ही रिपोर्ट होते हैं, लेकिन वे उल्लेखनीय हैं। प्लॅनेट अर्त—फ़्लड़ नामक किताब भारत और पाकिस्तान में उन अनेक लोगों के बारे में बताती है जो सैलाब से बच निकलने की कोशिश करते समय “ज़हरीले साँपों की काटों से घोर यंत्रणा में मरे हैं।” इण्डिया टुडे ने पश्चिम बंगाल के एक गाँव पर रिपोर्ट किया जहाँ अनुमानित ६० औरतों के पति बाघ के हमलों की वजह से मर गए हैं। ऐसी दुःखद घटनाएँ शायद भविष्य में और भी सामान्य होंगी जब मानवी समाज बिगड़ जाएगा और अकाल बढ़ जाएगा।
९. और किस क़िस्म के “पशु” ने इस सदी के दौरान मनुष्यजाति में तबाही और कष्ट उत्पन्न किया है?
९ परन्तु यहेजकेल ने एक और क़िस्म के “पशु” की ओर संकेत किया जब उसने कहा: “तेरे भविष्यद्वक्ताओं ने तुझ में राजद्रोह की गोष्ठी की, उन्होंने गरजनेवाले सिंह की नाईं अहेर पकड़ा और प्राणियों को खा डाला है . . . उसके प्रधान हुंडारों की नाईं अहेर पकड़ते हैं।” (यहेजकेल २२:२५, २७) तो मनुष्य भी जानवरों के जैसे बरताव कर सकते हैं, और हमारी सदी में मनुष्यजाति ने ऐसे परभक्षियों की वजह से कितना कष्ट उठाया है! कई लोग पाशविक अपराधियों और आतंकवादियों के हाथों मरे हैं। जी हाँ, एक से ज़्यादा तरीके से मृत्यु को “पृथ्वी के वनपशुओं” के शिकारों की एक भरपूर फ़सल मिली है।
१०. यूहन्ना का युद्ध, अकाल, मरी, और वनपशुओं को मृत्यु के कारणों के तौर से सूचीबद्ध करना हमें क्या समझने की मदद करता है?
१० यूहन्ना के दर्शन में युद्ध, अकाल, मरी और वनपशुओं का सूचीकरण हमें यह समझने की मदद करता है कि सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम द्वारा सही गयी घोर-व्यथाओं के सादृश्य हमारे समय में कई अवसरों पर होनेवाले थे। इस प्रकार प्रभु के दिन ने अभी तक मनुष्यजाति के लिए कष्ट सूचित किया है, अधिकांशतः इसलिए कि मनुष्यजाति के शासकों ने उस पहले घुड़सवार, सिंहासनारूढ़ राजा, यीशु मसीह के अधीन होना अस्वीकार किया है। (भजन २:१-३) यद्यपि, परमेश्वर के लोगों का क्या? उनके लिए प्रभु का दिन क्या सूचित करता है?
मन्दिर को नापना
११. प्रकाशितवाक्य ११:१ में, यूहन्ना को क्या करने का आदेश दिया, और यह कौनसे मन्दिर के संबंध में था?
११ प्रकाशितवाक्य ११:१ में, प्रेरित यूहन्ना कहता है: “मुझे लग्गी के समान एक सरकंडा दिया गया, और किसी ने कहा: ‘उठ, परमेश्वर के मन्दिर और वेदी, और उस में भजन करनेवालों को नाप ले।’” मन्दिर का ऐसा दिव्यदर्शी नाप लेना परमेश्वर के लोगों के लिए बहुत ही सार्थक था। यूहन्ना ने कौनसे मन्दिर को नापा? वह वास्तविक यहूदी मन्दिर नहीं जहाँ यूहन्ना ने मसीही बनने से पहले उपासना की थी। यहोवा ने उस मन्दिर को अस्वीकार किया था, और वह सामान्य युग ७० में नाश किया गया। (मत्ती २३:३७--२४:२) उल्टे, यह यहोवा की भव्य आत्मिक मन्दिर व्यवस्था थी। इस लाक्षणिक मन्दिर में, अभिषिक्त मसीही पार्थिव आँगन में उपयाजकों की हैसियत से सेवा करते हैं।—इब्रानियों ९:११, १२, २४; १०:१९-२२; प्रकाशितवाक्य ५:१०.
१२. वह मन्दिर अस्तित्व में कब आया, और पहली सदी में उस से संबंधित कौनसी नयी स्थितियाँ घटित हुईं?
१२ वह मन्दिर सा.यु. २९ में अस्तित्व में आया जब यीशु को महायाजक के तौर से अभिषिक्त किया गया। (इब्रानियों ३:१; १०:५) उस में १,४४,००० उपयाजक होने थे, और पहली सदी में इन में से अनेक व्यक्ति चुने गए, मुहरबन्द किए गए, और फिर वे विश्वसनीय अवस्था में मर गए। (प्रकाशितवाक्य ७:४; १४:१) पर जब वे पहली सदी के मसीही मर गए, चूँकि उनका पुनरुत्थान सीधे स्वर्ग में नहीं किया गया, वे कब्र में सोए। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१५) इसके अतिरिक्त, पहली सदी के बाद एक बड़ा धर्मत्याग शुरू हुआ, और याजकीय अभिषिक्त मसीही फलते-फूलते “जंगली घास,” धर्मत्यागियों से घेर लिए गए। (मत्ती १३:२४-३०) तब से सभी सदियों में, यह शायद भली-भाँति पूछा गया होगा: ‘क्या सभी १,४४,००० उपयाजक कभी मुहरबन्द होंगे?’ ‘जो लोग विश्वसनीय अवस्था में मर गए, क्या वे कभी स्वर्गीय मन्दिर में सेवा करने के लिए पुनरुत्थित किए जाएँगे?’ मन्दिर के उस दिव्यदर्शी मापन से प्रगट हुआ कि दोनों सवालों का जवाब हाँ है। क्यों?
१३. यूहन्ना का मन्दिर को नापना किस बात की गारंटी थी, और प्रभु के दिन की शुरुआत में क्या हुआ?
१३ इसलिए कि बाइबल भविष्यवाणी में किसी चीज़ को नापना आम तौर से सूचित करता है कि उस वस्तु के लिए यहोवा का उद्देश्य निश्चित रूप से पूरी तरह परिपूर्ण होगा। (२ राजा २१:१३; यिर्मयाह ३१:३९; विलापगीत २:८) इस प्रकार, यूहन्ना का मन्दिर का दिव्यदर्शी मापन एक गारंटी थी कि प्रभु के दिन के दौरान, मन्दिर से संबंधित यहोवा के सभी उद्देश्य परिपूर्ण किए जाते। इसके अनुसार और सारे सबूत के मुताबिक, पहले ही विश्वसनीय अवस्था में जो अभिषिक्त लोग मरे थे, उनका पुनरुत्थान १९१८ से लेकर स्वर्गीय मन्दिर में उनकी प्रतिज्ञात जगह में होने लगा। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१६; प्रकाशितवाक्य ६:९-११) लेकिन १,४४,००० के बाक़ी जनों का क्या?
१४. प्रथम विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान अभिषिक्त मसीहियों पर क्या बीती?
१४ प्रभु का दिन शुरू होने से भी पहले, धर्मत्यागी ईसाईजगत् से बाहर आए हुए अभिषिक्त मसीही एक अलग संगठन में इकट्ठा होने लगे। सन् १९१४ का महत्त्व घोषित करने में उन्होंने विश्वसनीयता का एक उत्तम विवरण जमाया था, लेकिन उस निर्णायक वर्ष में, जैसे प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ, वे ज़ुल्म, या ‘रौंदना’ सहने लगे। यह १९१८ में एक पराकाष्ठा पर पहुँचा जब वॉच टावर सोसाइटी के निदेशकों को क़ैद किया गया, और संगठित प्रचार कार्य क़रीब-क़रीब बन्द हो गया। उस समय, वे प्रतीयमान रूप से ‘मार डाले’ गए। (प्रकाशितवाक्य ११:२-७) इन मसीहियों के लिए मन्दिर के मापन का क्या अर्थ था?
१५. परमेश्वर के यहेजकेल के समय के लोगों के लिए दिव्यदर्शी मन्दिर के मापन का क्या अर्थ था?
१५ सा.यु.पू. ५९३ में, यरूशलेम में यहोवा के मन्दिर के विनष्ट होने के १४ साल बाद, यहेजकेल ने यहोवा का एक दिव्यदर्शी भवन देखा। उसे इस मन्दिर के एक विस्तृत दौरे पर लिया गया और वह देखता गया जैसे जैसे उसकी प्रत्येक विशेषता को ध्यानपूर्वक नापा गया। (यहेजकेल, अध्याय ४०-४२) इसका क्या मतलब था? खुद यहोवा ने समझाया: मन्दिर के मापन से यहेजकेल के लोगों के लिए एक परीक्षा सूचित हुई। अगर वे अपने आप को विनम्र बनाते, अपनी ग़लतियों से पछताते, और यहोवा के नियमों के अनुरूप होते, तो उन्हें मन्दिर की नाप बतायी जाती। प्रत्यक्षतः यह उन्हें उस आशा में प्रोत्साहित करता कि एक दिन यहोवा के लोग बाबेलोन से छुड़ा दिए जाते और एक बार फिर यहोवा के वास्तविक मन्दिर में उसकी उपासना करते।—यहेजकेल ४३:१०, ११.
१६. (अ) यूहन्ना का मन्दिर नापना १९१८ में परमेश्वर के लोगों को किस बात के विषय आश्वस्त बना दिया? (ब) यह किस तरह परिपूर्ण हुआ?
१६ उसी तरह, अगर वे निराश मसीही १९१८ में, अपने आप को विनम्र बनाते और ऐसी कोई भी ग़लती जो शायद उन्होंने की होगी, उससे पछताते, तो वे यहोवा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए छुड़ा दिए जाते और उसकी मन्दिर व्यवस्था में एक पूर्ण भाग लेते। और यही हुआ। प्रकाशितवाक्य ११:११ के अनुसार, वे ‘खड़े हुए,’ या लाक्षणिक रूप से पुनरुत्थित किए गए। यहूदियों का अपने देश में पुनरुद्धार होने का पूर्व-संकेत यहेजकेल में एक संबंधित पुनरुत्थान के दर्शन से मिला। (यहेजकेल ३७:१-१४) इस आधुनिक ‘पुनरुत्थान’ को परमेश्वर के लोगों का उनके निराश, क़रीब-क़रीब निष्क्रिय अवस्था से एक जीवंत, स्पंदमान अवस्था में पुनरुद्धार होते हुए पाया गया, जिस में वे यहोवा की सेवा में एक पूर्ण भाग ले सकते थे। ऐसा ‘पुनरुत्थान’ १९१९ में घटा।
छोटा लपेटवाँ कागज़
१७. (अ) प्रकाशितवाक्य १०:१ में यूहन्ना के दर्शन का विवरण दें। (ब) यूहन्ना ने कौनसे स्वर्गदूत को देखा, और दर्शन कौनसे दिन के दौरान पूरा किया जानेवाला था?
१७ प्रकाशितवाक्य १०:१ में, यूहन्ना ने “एक और बली स्वर्गदूत को बादल ओढ़े हुए स्वर्ग से उतरते देखा, उसके सिर पर मेघधनुष था: और उसका मुँह सूर्य का सा और उसके पाँव आग के खंभे के से थे।” यह यहेजकेल और स्वयं यूहन्ना द्वारा यहोवा के दर्शनों से कुछ-कुछ साम्य रखता है, जो पहले देखे गए थे। (यहेजकेल ८:२; प्रकाशितवाक्य ४:३) मगर यूहन्ना ने यहाँ एक स्वर्गदूत को देखा, यहोवा को नहीं। इसलिए, यह यहोवा का महान् स्वर्गदूतीय पुत्र, यीशु मसीह, रहा होगा, जो “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है।” (कुलुस्सियों १:१५) इसके अलावा, प्रकाशितवाक्य १०:२ यीशु को बड़े अधिकार के पद पर खड़ा हुआ चित्रित करता है, जिसका “दहिना पाँव समुद्र पर, और बायाँ पृथ्वी पर रखा” है। तो स्वर्गदूत प्रभु के दिन के दौरान यीशु को चित्रित करता है।—भजन ८:४-८; इब्रानियों २:५-९ देखें।
१८. (अ) यूहन्ना को क्या खाने का आदेश दिया गया? (ब) एक समान दर्शन में, यहेजकेल को क्या खाने का आदेश दिया गया, और उसका क्या परिणाम हुआ?
१८ इस शानदार दिव्यदर्शी रूप में, यीशु के हाथ में एक छोटा लपेटवाँ कागज़ है, और यूहन्ना को वह लपेटवाँ कागज़ लेने और उसे खा डालने का आदेश दिया जाता है। (प्रकाशितवाक्य १०:८, ९) इस तरह, यूहन्ना को एक ऐसा अनुभव होता है जो यहेजकेल के अनुभव से बहुत मिलता-जुलता है, जिसे भी एक दिव्यदर्शी लपेटवाँ कागज़ खाने का आदेश दिया गया। यहेजकेल के विषय में, खुद यहोवा ने भविष्यद्वक्ता के हाथ में लपेटवाँ कागज़ दिया, और यहेजकेल ने देखा कि “जो उस में लिखा था, वे विलाप और शोक और दुःखभरे वचन थे।” (यहेजकेल २:८-१०) यहेजकेल बताता है: “सो मैं ने उसे खा लिया; और मेरे मुँह में वह मधु के तुल्य मीठी लगी।” (यहेजकेल ३:३) यहेजकेल के लिए उस लपेटवें कागज़ को खाने से क्या सूचित हुआ?
१९. (अ) यहेजकेल का उस लपेटवाँ कागज़ खाने से क्या चित्रित था? (ब) यहेजकेल जो कडुवे संदेश प्रचार करने के लिए नियुक्त किया गया, वे किस के लिए थे?
१९ स्पष्टतः, लपेटवें कागज़ में प्रेरित भविष्यसूचक जानकारी थी। जब यहेजकेल ने लपेटवाँ कागज़ खा डाला, उसने इस जानकारी को घोषित करने का नियतकार्य स्वीकार किया, इस हद तक कि यह उसका ही एक अंश बन गया। (यिर्मयाह १५:१६ से तुलना करें) लेकिन दूसरों के लिए लपेटवें कागज़ की अन्तर्वस्तु मीठी न थी। लपेटवाँ कागज़ “विलाप और शोक और दुःखभरे वचनों” से भरा था। यह कडुआ संदेश किस के लिए था? सबसे पहले, यहेजकेल को कहा गया: “हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने के पास जाकर उनको मेरे वचन सुना।” (यहेजकेल ३:४) बाद में, यहेजकेल का संदेश इर्द-गिर्द के विधर्मी देशों को समाविष्ट करने के लिए विस्तृत किया गया।—यहेजकेल, अध्याय २५-३२.
२०. जब यूहन्ना ने उस छोटे लपेटवें कागज़ को खा डाला, तब क्या हुआ, और ऐसा करने से नतीजा क्या था?
२० यूहन्ना के विषय में, उसका लपेटवाँ कागज़ खाने का नतीजा समान था। वह बताता है: “सो मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से लेकर खा गया, वह मेरे मुँह में मधु सी मीठी तो लगी, पर जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गया।” (प्रकाशितवाक्य १०:१०) यूहन्ना के लिए भी वह लपेटवाँ कागज़ खाना मीठा था। यहोवा के वचन का उसका अंश बन जाना उसके लिए भावोत्तेजक था। फिर भी संदेश में एक कड़वी ध्वनि थी। किस के लिए कड़वी? यूहन्ना से कहा गया: “तुझे बहुत से लोगों, और जातियों, और भाषाओं, और राजाओं पर, फिर भविष्यद्वाणी करनी होगी।”—प्रकाशितवाक्य १०:११.
२१. (अ) १९१९ में अभिषिक्त मसीहियों ने ऐसा क्या किया जो यूहन्ना का उस छोटे लपेटवें कागज़ खाने के सादृश था, और इसका क्या असर था? (ब) ईसाईजगत् और आम संसार के लिए कैसा परिणाम था?
२१ प्रभु के दिन के दौरान ये सब किस तरह पूर्ण हुआ है? ऐतिहासिक वास्तविकताओं के अनुसार, १९१९ में विश्वसनीय मसीहियों ने यहोवा की सेवा करने का विशेषाधिकार इतने पूर्ण रूप से ग्रहण किया कि यह उनका एक अंश बन गया, और यह सचमुच ही मीठी थी। लेकिन उनका आशीर्वाद और विशेषाधिकार दूसरों के लिए कडुआ निकला—ख़ास कर ईसाईजगत् के पादरी वर्ग के लिए। क्यों? इसलिए कि इन विश्वसनीय अभिषिक्त मसीहियों ने साहस से मनुष्यजाति के लिए यहोवा का सारा संदेश घोषित किया। उन्होंने न सिर्फ़ “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार किया लेकिन उन्होंने ईसाईजगत् और आम संसार की आध्यात्मिक मृतावस्था को भी परदाफ़ाश किया।—मत्ती २४:१४; प्रकाशितवाक्य ८:१--९:२१; १६:१-२१.
२२. (अ) अब तक यहोवा ने अभिषिक्त मसीहियों को प्रभु के दिन के दौरान किस शानदार रीति से इस्तेमाल किया है? (ब) प्रभु के दिन का शैतान की दुनिया के लिए और परमेश्वर के लोगों के लिए क्या अर्थ रहा है?
२२ मुहरबन्दी के लिए १,४४,००० के बाक़ी जनों को इकट्ठा करने के वास्ते यहोवा ने मसीहियों के इस विश्वसनीय दल को इस्तेमाल किया, और उन्होंने बड़ी भीड़ को, जिनकी आशा पार्थिव है, एकत्र करने के कार्य में नेतृत्व किया। (प्रकाशितवाक्य ७:१-४, ९, १०) यह बड़ी भीड़ पृथ्वी से संबंधित यहोवा के उद्देश्यों में एक महत्त्वपूर्ण भाग लेती है, और उसके प्रकटन से स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों में बहुत आनन्द हुआ है। (प्रकाशितवाक्य ७:११-१७; यहेजकेल ९:१-७) इसलिए, इस “सबसे महत्त्वपूर्ण दिन” ने शैतान की दुनिया के लिए पहले ही कष्ट सूचित किया है, मगर यहोवा के लोगों के लिए प्रचुर आशीर्वाद। अब, हम देखें कि जैसे जैसे प्रभु का दिन आगे बढ़ता जाता है यह किस तरह सच होता रहेगा।
क्या आप व्याख्या दे सकते हैं?
◻ प्रभु का दिन क्या है?
◻ प्रभु के दिन के दौरान “पृथ्वी के वनपशु” कौनसा विध्वंसकारी भाग लेते हैं?
◻ यूहन्ना के मन्दिर के मापन के ज़रिए यहोवा ने कौनसा आश्वासन दिया?
◻ १९१९ में यूहन्ना का छोटे लपेटवें कागज़ खाने से अभिषिक्त अवशेष के लिए क्या सूचित हुआ?
◻ अब तक, परमेश्वर के लोगों के लिए और आम संसार के लिए प्रभु के दिन का क्या अर्थ रहा है?
[पेज 13 पर तसवीरें]
यूहन्ना का मन्दिर के मापन से प्रभु के दिन के अभिषिक्त जनों को पक्की गारंटियाँ मिलीं