नम्र होकर प्यार करनेवाले चरवाहों के अधीन रहिए
“अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो।”—इब्रानियों 13:17.
1, 2. कौन-सी आयतें दिखाती हैं कि यहोवा और यीशु अपने झुंड से प्यार करनेवाले चरवाहे हैं?
यहोवा परमेश्वर और उसका बेटा, यीशु मसीह अपने झुंड से प्यार करनेवाले चरवाहे हैं। यहोवा के बारे में यशायाह ने भविष्यवाणी की थी: “देखो, प्रभु यहोवा सामर्थ दिखाता हुआ [आ] रहा है, वह अपने भुजबल से प्रभुता करेगा; . . . वह चरवाहे की नाईं अपने झुण्ड को चराएगा, वह भेड़ों के बच्चों को अंकवार में लिए रहेगा और दूध पिलानेवालियों को धीरे-धीरे ले चलेगा।”—यशायाह 40:10, 11.
2 यह भविष्यवाणी बहाली के बारे में थी जो पहली बार तब पूरी हुई, जब सा.यु.पू. 537 में बचे हुए यहूदी अपने वतन यहूदा लौट आए थे। (2 इतिहास 36:22, 23) इसकी एक और पूर्ति सन् 1919 में हुई, जब बचे हुए अभिषिक्त जनों को महान कुस्रू, यीशु मसीह ने ‘बड़े बाबुल’ से आज़ाद किया था। (प्रकाशितवाक्य 18:2; यशायाह 44:28) यीशु ही यहोवा का प्रभुता करनेवाला “भुजबल” है, जो भेड़ों को इकट्ठा करता है और बड़ी कोमलता से उनकी देखभाल करता है। यीशु ने खुद कहा: “अच्छा चरवाहा मैं हूं; . . . मैं अपनी भेड़ों को जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं।”—यूहन्ना 10:14, 15.
3. यहोवा कैसे दिखाता है कि उसे इस बात की परवाह है कि उसके भेड़ों के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है?
3 यशायाह 40:10, 11 की भविष्यवाणी से हमें पता चलता है कि यहोवा कितनी कोमलता से अपने लोगों की देखभाल करता है। (भजन 23:1-6) धरती पर सेवा करते वक्त, यीशु ने भी अपने चेलों और दूसरे लोगों के लिए यहोवा के जैसी कोमल परवाह दिखायी थी। (मत्ती 11:28-30; मरकुस 6:34) यहोवा और यीशु को इस्राएल के उन चरवाहों या अगुवों से सख्त घृणा थी जो बड़ी बेरहमी से झुंड को लताड़ते और उनका नाजायज़ फायदा उठाते थे। (यहेजकेल 34:2-10; मत्ती 23:3, 4, 15) इसलिए यहोवा ने वादा किया: “मैं अपनी भेड़-बकरियों को छुड़ाऊंगा, और वे फिर न लुटेंगी, और मैं भेड़-भेड़ के और बकरी-बकरी के बीच न्याय करूंगा। और मैं उन पर ऐसा एक चरवाहा ठहराऊंगा जो उनकी चरवाही करेगा, वह मेरा दास दाऊद होगा, वही उनको चराएगा, और वही उनका चरवाहा होगा।” (यहेजकेल 34:22, 23) महान दाऊद, यीशु मसीह ही वह “चरवाहा” है जिसे यहोवा ने इन अंतिम दिनों में धरती पर अपने सभी सेवकों पर ठहराया है। इन सेवकों में आत्मा से अभिषिक्त मसीही और “अन्य भेड़ें” शामिल हैं।—यूहन्ना 10:16, NW.
कलीसिया को यहोवा की तरफ से मिला वरदान
4, 5. (क) यहोवा ने धरती पर अपने लोगों को क्या अनमोल वरदान दिया है? (ख) यीशु ने अपनी कलीसिया को क्या वरदान दिया है?
4 यहोवा ने यीशु मसीह को “एक चरवाहा” ठहराकर धरती पर अपने सेवकों को एक अनमोल वरदान दिया है। इस वरदान, यानी हम पर ठहराए गए प्रधान के बारे में यशायाह 55:4 में भविष्यवाणी की गयी थी: “सुनो, मैं ने उसको राज्य राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है।” इन्हीं राज्य-राज्य के लोगों, कुलों, भाषाओं और जातियों में से अभिषिक्त मसीहियों और “बड़ी भीड़” के लोगों को इकट्ठा किया जाता है। (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 7:9) इन दोनों समूहों से मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय कलीसिया बनती है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे ‘एक ही चरवाहे’ मसीह यीशु के अधीन “एक ही झुण्ड” बनते हैं।
5 यहोवा की तरह, यीशु ने भी धरती पर अपनी कलीसिया को एक अनमोल वरदान दिया है। उसने कुछ वफादार पुरुषों को उपचरवाहा ठहराया है, जो उसके और यहोवा के नक्शेकदम पर चलते हुए बड़े प्यार से झुंड की देखभाल करते हैं। प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में इस वरदान का ज़िक्र किया था: “वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुवाई को बान्ध ले गया, और मनुष्यों [के रूप में] दान दिए। . . . उस ने कितनों को प्रेरित नियुक्त करके, और कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए।”—इफिसियों 4:8, 11, 12.
6. प्राचीनों के निकायों में सेवा करनेवाले अभिषिक्त अध्यक्षों को प्रकाशितवाक्य 1:16, 20 में क्या बताया गया है, और अन्य भेड़ों में से ठहराए गए प्राचीनों के बारे में क्या कहा जा सकता है?
6 ‘मनुष्यों के रूप में ये दान’ कौन हैं? ये वे अध्यक्ष या प्राचीन हैं जिन्हें यहोवा और उसका बेटा पवित्र आत्मा के ज़रिए झुंड की प्यार-भरी देखभाल करने के लिए ठहराते हैं। (प्रेरितों 20:28, 29) शुरू-शुरू में सारे अध्यक्ष अभिषिक्त पुरुष थे। अभिषिक्त मसीहियों से बनी कलीसिया में प्राचीनों के निकायों में सेवा करनेवाले उन अध्यक्षों को प्रकाशितवाक्य 1:16,20 में “तारे” या “स्वर्गदूत” (आर.ओ.वी.) बताया गया है, जो मसीह के दाहिने हाथ में हैं या उसके अधीन हैं। मगर अंत के इस समय के दौरान, धरती पर अभिषिक्त अध्यक्षों की गिनती लगातार घटती जा रही है। इसलिए आज कलीसियाओं में सेवा करनेवाले ज़्यादातर मसीही प्राचीन, अन्य भेड़ों में से हैं। शासी निकाय के नुमाइंदे इन्हें पवित्र आत्मा की मदद से अध्यक्ष ठहराते हैं, इसलिए कहा जा सकता है कि ये प्राचीन भी अच्छे चरवाहे यानी यीशु मसीह के दाहिने हाथ में (या, उसके मार्गदर्शन पर चलते) हैं। (यशायाह 61:5, 6) ये प्राचीन, कलीसिया के सिर, मसीह के अधीन रहते हैं, इसलिए ज़रूरी है कि हम उन्हें पूरा-पूरा सहयोग दें।—कुलुस्सियों 1:18.
आज्ञा मानना और अधीन रहना
7. मसीही अध्यक्षों की तरफ हमारा रवैया कैसा होना चाहिए, इस बारे में प्रेरित पौलुस ने क्या सलाह दी?
7 स्वर्ग में रहनेवाले हमारे चरवाहे, यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह चाहते हैं कि हम उन उपचरवाहों का कहा मानें और उनके अधीन रहें जिन्हें वे कलीसिया में ज़िम्मेदारी का पद सौंपते हैं। (1 पतरस 5:5) प्रेरित पौलुस ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा: “जो तुम्हारे अगुवे [हैं], और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो। अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते [हैं], जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”—इब्रानियों 13:7, 17.
8. पौलुस हमें क्या ‘ध्यान से देखने’ का बढ़ावा देता है, और हमें किस तरह अपने अगुवों का कहा ‘मानना’ चाहिए?
8 गौर कीजिए कि पौलुस हमें प्राचीनों के अच्छे चालचलन का नतीजा ‘ध्यान से देखने’ का बढ़ावा देता है और उनके जैसा विश्वास दिखाने के लिए कहता है। यही नहीं, वह हमें उनकी हिदायतों को मानने और उनके अधीन रहने की भी सलाह देता है। बाइबल विद्वान आर. टी. फ्रांस समझाते हैं कि बाइबल की इस आयत में जिस मूल यूनानी शब्द के लिए “मानो” अनुवाद किया गया है, वह “आम तौर पर आज्ञा मानने के लिए इस्तेमाल [नहीं] किया जाता। इसके बजाय, उस शब्द का शाब्दिक अर्थ है, ‘यकीन दिलाया जाना।’ इससे उनके अधिकार को दिल से मानने का विचार मिलता है।” हम प्राचीनों की आज्ञा दो वजहों से मानते हैं। एक तो यह कि परमेश्वर का वचन हमें ऐसा करने की हिदायत देता है। और दूसरी, हमें इस बात का यकीन दिलाया जाता है कि इन प्राचीनों को न सिर्फ परमेश्वर के राज्य से जुड़े कामों की, बल्कि हमारी भलाई की भी चिंता है। अगर हम दिल से उनकी अगुवाई को मानें, तो हम सही मायनों में खुश रहेंगे।
9. आज्ञा मानने के साथ-साथ ‘अधीन रहना’ क्यों ज़रूरी है?
9 लेकिन तब हमें क्या करना चाहिए जब किसी मामले पर हम प्राचीनों की हिदायत से सहमत न हों और हमें लगे कि उस मामले से निपटने के और भी बेहतरीन तरीके हैं? ऐसे हालात में हमें अधीनता दिखाने की ज़रूरत है। यह सच है कि हमारे लिए उन हिदायतों को मानना आसान है, जो हमें साफ समझ में आती हैं और जिनसे हम सहमत भी होते हैं। मगर जब प्राचीनों की कोई हिदायत हमें समझ में नहीं आती और फिर भी हम उसे मानकर चलते हैं, तब हम सही मायनों में अधीनता दिखा रहे होते हैं। पतरस ने भी, जो आगे चलकर एक प्रेरित बना, ऐसी ही अधीनता दिखायी थी।—लूका 5:4, 5.
पूरा-पूरा सहयोग देने के चार कारण
10, 11. पहली सदी में और आज के समय में, अध्यक्षों ने किस तरह अपने मसीही भाइयों को “परमेश्वर का वचन सुनाया है”?
10 इब्रानियों 13:7, 17 में प्रेरित पौलुस चार कारण बताता है कि हमें क्यों मसीही अध्यक्षों की आज्ञा माननी चाहिए और उनके अधीन रहना चाहिए। पहला यह कि उन्होंने हमें “परमेश्वर का वचन सुनाया है।” याद कीजिए कि यीशु कलीसियाओं को ‘मनुष्यों के रूप में दान’ इसलिए देता है ताकि “पवित्र लोग सिद्ध हो [“सुधारे,” NW] जाएं।” (इफिसियों 4:11, 12) यीशु ने पहली सदी के मसीहियों की सोच और चालचलन को सुधारने के लिए अपने वफादार उपचरवाहों को इस्तेमाल किया था। इनमें से कुछ उपचरवाहों ने इस मकसद को पूरा करने के लिए ईश्वर-प्रेरणा से कलीसियाओं को पत्रियाँ लिखी थीं। इसके अलावा, यीशु ने आत्मा से ठहराए इन अध्यक्षों के ज़रिए शुरू के मसीहियों का मार्गदर्शन किया था और उनकी हिम्मत बँधायी थी।—1 कुरिन्थियों 16:15-18; 2 तीमुथियुस 2:2; तीतुस 1:5.
11 आज यीशु “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें राह दिखाता है। (मत्ती 24:45) शासी निकाय और आत्मा से ठहराए प्राचीन इस दास के नुमाइंदे हैं। हम अपने ‘प्रधान रखवाले’ यीशु मसीह का आदर करते हैं, इसलिए हम पौलुस की इस सलाह को मानते हैं: “जो तुम में परिश्रम करते हैं, और प्रभु में तुम्हारे अगुवे हैं, और तुम्हें शिक्षा देते हैं, उन्हें मानो।”—1 पतरस 5:4; 1 थिस्सलुनीकियों 5:12; 1 तीमुथियुस 5:17.
12. अध्यक्ष किस तरह “[हमारे] प्राणों के लिये जागते रहते” हैं?
12 मसीही अध्यक्षों को सहयोग देने का दूसरा कारण यह है कि वे “[हमारे] प्राणों के लिये जागते रहते” हैं। कैसे? अगर उन्हें हमारे रवैए या व्यवहार में ऐसी कोई भी बात नज़र आती है जो हमारी आध्यात्मिकता को नुकसान पहुँचा सकती है, तो वे हमें सुधारने के लिए फौरन हमें ज़रूरी सलाह देते हैं। इस तरह वे आध्यात्मिक रूप से जागते या सतर्क रहते हैं। (गलतियों 6:1) जिस यूनानी शब्द के लिए “जागते रहते” अनुवाद किया गया है, उसका शाब्दिक अर्थ है “आँखों में नींद न आने देना।” एक बाइबल विद्वान के मुताबिक इसका “मतलब है, एक चरवाहे की तरह रात-भर जागकर पहरा देना।” प्राचीन आध्यात्मिक मायने में जागते रहने के अलावा, कभी-कभी सचमुच में भी रात-रात तक जागते रहते हैं, क्योंकि उन्हें हमारी आध्यात्मिक खैरियत की लगातार चिंता रहती है। वाकई, ये उपचरवाहे ‘भेड़ों के महान रखवाले’ यीशु मसीह के जैसी कोमल परवाह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। क्या झुंड से प्यार करनेवाले इन चरवाहों को हमें पूरा-पूरा सहयोग नहीं देना चाहिए?—इब्रानियों 13:20.
13. अध्यक्षों और सभी मसीहियों को किसे और किन बातों के लिए लेखा देना पड़ेगा?
13 अध्यक्षों को पूरा सहयोग देने का तीसरा कारण यह है कि वे हमारी जिस तरह देखभाल करते हैं, इसका उन्हें “लेखा देना पड़ेगा।” अध्यक्षों को इस बात का एहसास है कि वे स्वर्ग में रहनेवाले चरवाहों, यहोवा और यीशु मसीह के उपचरवाहे हैं और उनके अधीन सेवा करते हैं। (यहेजकेल 34:22-24) यहोवा ने अपनी भेड़ों को “अपने प्रिय पुत्र के रक्त से प्राप्त किया है।” (नयी हिन्दी बाइबिल) इस नाते वह उनका मालिक है और वह अध्यक्षों को इस बात के लिए जवाबदेह ठहराता है कि वे उसकी भेड़ों के साथ “कोमलता” (NW) से पेश आते हैं कि नहीं। (प्रेरितों 20:28, 29) अध्यक्षों के अलावा, हम भी यहोवा के सामने इस बात के लिए जवाबदेह ठहरते हैं कि हम उसकी हिदायतों को मानकर चलते हैं कि नहीं। (रोमियों 14:10-12) जब हम कलीसिया में ठहराए प्राचीनों का कहा मानते हैं, तो हम कलीसिया के सिर, मसीह को भी अधीनता दिखाते हैं।—कुलुस्सियों 2:19.
14. मसीही अध्यक्ष किस वजह से “ठंडी सांस ले लेकर” सेवा कर सकते हैं, और इसके नतीजे क्या हो सकते हैं?
14 पौलुस एक चौथा कारण बताता है कि क्यों हमें नम्र होकर मसीही अध्यक्षों के अधीन रहना चाहिए। वह लिखता है: “कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।” (इब्रानियों 13:17) मसीही प्राचीनों पर ज़िम्मेदारियों का भारी बोझ होता है। उन्हें कलीसिया को सिखाना, उसकी रखवाली करना, प्रचार में अगुवाई करना, अपने परिवारों की देखभाल करना और कलीसिया की समस्याओं को निपटाना होता है। (2 कुरिन्थियों 11:28, 29) अगर हम उन्हें सहयोग न दें, तो हम उनका बोझ और भी बढ़ाते हैं। नतीजा यह होता है कि वे खुशी-खुशी नहीं, बल्कि “ठंडी सांस ले लेकर” अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं। प्राचीनों को सहयोग न देकर हम यहोवा को भी नाराज़ करते हैं और इससे हमारा ही नुकसान हो सकता है। लेकिन जब हम प्राचीनों का आदर करते हैं और उन्हें सहयोग देते हैं, तो वे खुशी से अपना फर्ज़ निभा पाते हैं। इससे कलीसिया की एकता बढ़ती है और सभी भाई-बहन राज्य के प्रचार में खुशी-खुशी हिस्सा ले पाते हैं।—रोमियों 15:5, 6.
अधीनता दिखाना
15. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम अध्यक्षों की आज्ञा मानते हैं और उनके अधीन रहते हैं?
15 हम कई कारगर तरीकों से कलीसिया में ठहराए अध्यक्षों को सहयोग दे सकते हैं। क्या प्राचीनों ने प्रचार इलाके के बदलते हालात को मद्देनज़र रखते हुए उन दिनों और समयों पर प्रचार की सभाएँ रखी हैं, जो हमारे शेड्यूल से मेल नहीं खातीं? तो आइए हम अपने शेड्यूल में फेरबदल करके इस नए इंतज़ाम का पूरा-पूरा साथ दें। हो सकता है, हमें अपनी उम्मीदों से कहीं बढ़कर आशीषें मिलें। क्या कलीसिया का सेवा अध्यक्ष हमारे पुस्तक अध्ययन समूह का दौरा करने आ रहा है? अगर हाँ, तो हमें उस पूरे हफ्ते में प्रचार काम में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेना चाहिए। क्या हमें परमेश्वर की सेवा स्कूल में कोई भाग मिला है? तो फिर, हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हम सभा में हाज़िर होकर अपना भाग पेश करें। क्या हमारे पुस्तक अध्ययन अध्यक्ष ने घोषणा की है कि राज्य घर को साफ करने की हमारी बारी है? तो फिर आइए जितनी हमारी सेहत और ताकत हमें इजाज़त देती है, हम इस काम में अपने अध्यक्ष को पूरा-पूरा सहयोग दें। इन तरीकों के अलावा, हम और भी कई तरीकों से उन पुरुषों को अधीनता दिखाते हैं, जिन्हें यहोवा और उसके बेटे ने झुंड की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है।
16. अगर एक प्राचीन हिदायतों को मानकर न चले, तो हमें क्यों बगावत करने की छूट नहीं मिल जाती?
16 कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि एक प्राचीन, विश्वासयोग्य दास वर्ग और उसके शासी निकाय की हिदायतों को मानकर न चले। अगर वह ऐसा लगातार करता रहता है, तो उसे “[हमारे] प्राणों के रखवाले और अध्यक्ष” यहोवा को इसके लिए जवाब देना पड़ेगा। (1 पतरस 2:25) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि प्राचीनों की खामियों या गलतियों की वजह से हमें उन्हें अधीनता न दिखाने की छूट मिल जाती है। क्योंकि यहोवा आज्ञा तोड़नेवालों और बगावत करनेवालों को हरगिज़ आशीष नहीं देता।—गिनती 12:1, 2, 9-11.
खुशी-खुशी सहयोग देनेवालों को यहोवा आशीषें देता है
17. अध्यक्षों की तरफ हमारा क्या रवैया होना चाहिए?
17 यहोवा परमेश्वर जानता है कि जिन पुरुषों को उसने अध्यक्ष ठहराया है, वे असिद्ध हैं। फिर भी, वह धरती पर अपने लोगों की देखभाल करने के लिए उन्हें इस्तेमाल करता है और अपनी पवित्र आत्मा से उनकी मदद करता है। प्राचीनों और हम सबके मामले में यह बात सच है कि “असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से” है। (2 कुरिन्थियों 4:7) इसलिए इन वफादार अध्यक्षों के ज़रिए यहोवा जो काम पूरा कर रहा है, उसके लिए हमें उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए और इन अध्यक्षों को खुशी-खुशी सहयोग देना चाहिए।
18. अपने अध्यक्षों के अधीन रहकर हम दरअसल क्या कर रहे होंगे?
18 आज के इन अंतिम दिनों में, अध्यक्ष उन चरवाहों की तरह बनने के लिए अपना भरसक करते हैं, जिनके बारे में यहोवा यिर्मयाह 3:15 में बताता है: “मैं तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहे दूंगा, जो ज्ञान और बुद्धि से तुम्हें चराएंगे।” इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे प्राचीन यहोवा की भेड़ों को सिखाने और उनकी हिफाज़त करने की अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। आइए हम उन्हें पूरा-पूरा सहयोग देकर, उनकी आज्ञाओं को मानकर और उनके अधीन रहकर उनकी कड़ी मेहनत के लिए अपनी कदर दिखाते रहें। ऐसा करके हम दरअसल स्वर्ग में रहनेवाले अपने चरवाहे, यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के लिए अपनी कदर दिखा रहे होंगे। (w07 4/1)
दोहराने के लिए
• यहोवा और यीशु मसीह ने कैसे दिखाया है कि वे अपने झुंड से प्यार करनेवाले चरवाहे हैं?
• आज्ञा मानने के साथ-साथ, अधीन रहना क्यों ज़रूरी है?
• हम किन कारगर तरीकों से अधीनता दिखा सकते हैं?
[पेज 28 पर तसवीर]
मसीही प्राचीन, मसीह की अगुवाई के अधीन काम करते हैं
[पेज 30 पर तसवीरें]
हम कई तरीकों से यहोवा के ठहराए चरवाहों के लिए अधीनता दिखा सकते हैं