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अपनी मसीही पहचान की रक्षा करनाप्रहरीदुर्ग—2005 | फरवरी 15
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4. यीशु ने कैसे ज़ोर देकर बताया कि मसीहियों के नाते अपनी पहचान की रक्षा करना हमारे लिए ज़रूरी है?
4 लेकिन, यहोवा के समर्पित सेवकों के नाते, हम जानते हैं कि अगर हममें से कोई भी, चाहे जवान हो या बुज़ुर्ग, अपनी मसीही पहचान खो दे तो इससे बड़े दुःख की बात और कोई नहीं होगी। अपनी मसीही पहचान के बारे में हमारा नज़रिया सिर्फ तभी सही हो सकता है जब इसकी बुनियाद यहोवा के स्तरों पर रखी हो और हमें अच्छी तरह पता हो कि वह हमसे क्या चाहता है। और ऐसा होना लाज़िमी भी है, क्योंकि हम यहोवा के स्वरूप में बनाए गए हैं। (उत्पत्ति 1:26; मीका 6:8) बाइबल, मसीहियों के नाते हमारी साफ पहचान को बाहरी वस्त्र के जैसा बताती है, जिसे पहनने पर सभी इसे देखते हैं। हमारे वक्त के बारे में यीशु ने चेतावनी दी थी: “देख, मैं चोर की नाईं आता हूं; धन्य वह है, जो जागता रहता है, और अपने वस्त्र की चौकसी करता है, कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें।”a (प्रकाशितवाक्य 16:15) हम नहीं चाहते कि हम अपने मसीही गुणों और अच्छे व्यवहार को उतार फेंके और शैतान की दुनिया हमें अपने साँचे में ढाल ले। अगर ऐसा होगा, तो हम ये “वस्त्र” खो देंगे। हमारी ऐसी हालत बहुत ही अफसोसजनक और शर्मनाक होगी।
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अपनी मसीही पहचान की रक्षा करनाप्रहरीदुर्ग—2005 | फरवरी 15
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a ये शब्द शायद यरूशलेम के मंदिर के हाकिम के काम की ओर इशारा करते हैं। रात को पहरा देते वक्त, वह यह देखने के लिए मंदिर के चक्कर लगाता था कि लेवी पहरेदार अपनी-अपनी जगहों पर तैनात हैं और जाग रहे हैं या सो गए। अगर कोई पहरेदार सोता हुआ मिलता, तो उसे डंडे से पीटा जाता और बड़ी शर्मनाक सज़ा देने के लिए उसका बाहरी वस्त्र जला दिया जाता था।
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