“देख! मैं सब कुछ नया कर देता हूँ”
१–४. (अ) हमारी जिल्द की तस्वीर की किन विशेषताओं के आनन्द में आप सम्मिलीत होंगे? (ब) यहाँ आपके लिए क्या महिमायुक्त प्रत्याशा है? (स) ऐसे कौनसे बाइबल अवतरण है, जो इस आशा का समर्थन करते हैं?
इस पुस्तिका की जिल्द पर इन प्रसन्नचित्त लोगों को देखिए। क्या आप उन में सम्मिलित होना पसन्द करेंगे? आप ‘अवश्य हाँ’, कहेंगे। क्योंकि यहाँ वह शांति और समता है जिसे सारी मानव जाति चाहती है। सारी जातियों के लोग—काले, श्वेत, पीले—एक परिवार के समान मिल जुल रहे हैं। क्या आनन्द है! क्या एकता है! स्पष्ट है कि ये लोग न्यूक्लियर कणों और आतंकवाद के खतरे की चिन्ता नहीं करते हैं। जेट युद्धविमान इस सुन्दर उद्यान पर छाए हुए आकाश की शांति को खण्डित नहीं करते हैं। यहाँ न सैनिक हैं, न टैंक न बन्दूकें। न ही शांति स्थापित करने के लिए पुलिस के छोटे डंडे की आवश्यकता है। युद्ध और अपराध का नाम नहीं। न ही मकानों की कमी है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के पास अति सुन्दर मकान है जिसे वह अपना कह सकता है।
२ जरा इन बच्चों को देखिए। उन्हें खेलते देखने से कितना आनन्द मिलता है। खेलने के लिए पशु भी क्या क्या है! इस उद्यान में लोहे के सरियों की भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सब पशुओं और मानवजाति के मध्य और स्वयं पशुओं के मध्य शांति है। यहाँ तक कि सिंह और मेम्ना मित्र हो गए हैं। इन सुन्दर रंग बिरंगे पक्षियों को देखिए जो इधर उधर उड़ते फिरते हैं, और उनके मधुर गीतों को सुनिए जो बच्चों की हंसी के साथ मिलकर हवा को गुंजारित कर देते हैं। पिंजरे भी नहीं है? नहीं, क्योंकि इस क्षेत्र में स्वतंत्रता और असीम आनन्द पाया जाता है। जरा इन फूलों की सुगंध को सूंघिए, सोते के तरंग की आवाज को सुनिए, सूर्य की सनसनी गरमाहट का अनुभव कीजिए। काश, उस टोकरी में पड़े हुए फल चखने को मिल जाएं, क्योंकि वह पृथ्वी की उत्तम उपज है और प्रत्येक वस्तु के समान जो इस अति सुन्दर उद्यान में दिखाई देती है और जिससे आनन्द उठाया जा सकता है, सर्वोत्तम है।
३ ‘परन्तु ठहरिए,’ कोई कहता है, ‘बुढ़े लोग कहाँ हैं? क्या उन्हें भी इस प्रसन्न समाज के आनन्द में हिस्सा नहीं लेना चाहिए?’ वास्तविकता यह है कि बूढ़े लोग वहीं मौजूद हैं, परन्तु वे फिर से जवान होते जा रहे हैं। इस उद्यान में कोई व्यक्ति बुढ़ापे के कारण नहीं मरता है। नवयुवक अब प्रौढ़ पुरुषत्व की ओर बढ़ते हैं, और बूढ़े नहीं होते हैं। इस उद्यान में रहनेवाले लाखों लोगों में प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह २० वर्ष या २०० वर्ष का है, सिद्ध स्वास्थ्य में यौवन से भरपूर जीवन का आनन्द उत्साहपूर्वक उठाता है। आप कहते हैं, लाखों लोग? हाँ, लाखों लोग, क्योंकि यह उद्यान प्रत्येक देश तक फैला हुआ है। हमारी पृथ्वी की छोर तक, फूजी से ऐन्डीस, हाँग काँग से भूमध्य सागर तक जीवन, शांति और सुन्दरता से भरपूर होगा, क्योंकि सारी पृथ्वी परादीस में परिवर्त्तित की जा रही है। यह वह परादीस होगा जो पृथ्वी व्याप्त में पूर्व अवस्था में स्थापित किया जाएगा।
४ क्या आपने इसे ‘अविश्वसनीय’ कहा? पहले, इसके प्रमाण में दिए हुए तथ्यों पर विचार कीजिए। आप और आपके परिवार के लिए वर्त्तमान दुःखद रीति रिवाज के विनाश से बचना और हमारी जिल्द में वर्णित परादीस में प्रवेश करना सम्भव है।a
वह पुस्तक जो परादीस की व्याख्या करती है
५. (अ) इन बातों का वर्णन कौनसी किताब करती है? (ब) किन बातों में यह एक असाधारण किताब है?
५ ये सारी महिमायुक्त बातें और उनकी निश्चितता की व्याख्या एक ऐसी पुस्तक में दी गई है जो अत्यन्त अद्र्भित पुस्तक है और जिस के समान आज तक कोई दूसरी पुस्तक नहीं लिखी गई है। यह बाइबल है। यह बहुत प्राचीन पुस्तक है, जिसके कुछ भाग कोई ३,५०० वर्ष पहले लिखे गए हैं। इसके साथ ही, यह अत्यन्त आधुनिक पुस्तक है जो आधुनिक युग में रहने के लिए ठोस और व्यावहारिक सलाह देती है। उसकी भविष्यद्वाणियाँ भविष्य के लिए उज्जवल आशा जागृत करती है। पूरे इतिहास में यह सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक है, क्योंकि पूरी बाइबल या उसके बड़े हिस्से की कोई २,००,००,००,००० से अधिक प्रति १,८१० भाषाओं में वितरित की जा चुकी हैं।
६. कौनसी बात बाइबल को दूसरे पवित्र समझे जाने वाले लेखों से विशेषता में अलग करती है?
६ कोई भी दूसरी पवित्र पुस्तक सारे विश्व में इतनी अधिक वितरित नहीं की गयी हैं, और न ही वे इतनी प्राचीन हैं। इस्लाम का कुरान १,४०० वर्ष से कम पुराना है। बुद्ध और कॅन्फ्यूशस लगभग २,५०० वर्ष पहले जीवित थे, और उनके लेखों की तिथि उसी समय से है। शिन्टो के शास्त्र जिस रूप में आज पाए जाते हैं, १,२०० वर्ष से पहले नहीं रचें है। मॉर्मन की पुस्तक केवल १६० वर्ष पुरानी है। इन पवित्र पुस्तकों में से कोई भी पुस्तक बाइबल के समान मानव इतिहास के पिछले ६००० वर्ष का पता यथार्थता के साथ नहीं लगा सकती है। इसलिए मूल धर्म को समझने के लिए, हमें बाइबल की ओर जाना चाहिए। यही एकमात्र पुस्तक है जिसमें सारी मानवजाति के लिए विश्वव्यापी संदेश पाया जाता है।
७. सोच–विचार करने वाले बाइबल के बारे में क्या कहते हैं?
७ सारी श्रेणियों और, समस्त जातियों के सोच विचार करने वाले लोगों ने बाइबल के संदेश की बुद्धिमत्ता और सुन्दरता को माना है। मशहूर विज्ञानवेत्ता और गुरुत्वाकर्षण नियम के आविष्कारक सर आइजिक न्यूटन ने कहा है: “कोई भी दूसरा विज्ञान इतना प्रमाणित नहीं समझा जाता है जितना कि बाइबल।” अमरीकी क्रांतिकारी नेता पैट्रिक हैनरी ने भी, जो “मुझे स्वतंत्रता दो, या मृत्यु दो” इन शब्दों के लिए प्रसिद्ध है, यह घोषित किया था: “बाइबल उन सब पुस्तकों के तुल्य है जो अभी तक छापी जा चुकी है।” यहाँ तक कि उस हिन्दू महाज्ञानी मोहनदास क. गांधी ने एक बार भारत के अंग्रेज वाइसरॉय से कहा था: “जब आपका और मेरा देश उन शिक्षाओं पर एकत्व प्रकट करेगा जो मसीह द्वारा पहाड़ी उपदेश में दी गयी थी, तब हम न केवल अपने देश की बल्कि पूरे संसार की समस्याओं को सुलझा लेंगे।” गांधीजी बाइबल में मत्ती पुस्तक के अध्याय ५ से ७ के विषय बात कर रहे थे। इन अध्यायों को आप स्वयं पढ़िये और देखिये कि उसका शक्तिपूर्ण संदेश आपको रोमांचित करता है कि नहीं।
बाइबल—एक पूर्वी पुस्तक
८, ९. (अ) क्यों बाइबल को एक पश्चिमी किताब कहना गलत है? (ब) बाइबल कैसे लिखी गयी थी, और कितने समय की अवधि में? (स) क्यों बाइबल को एक पुस्तकालय कहा जा सकता है? (ड) बाइबल लिखने में कितने लोगों का प्रयोग किया गया था? (ई) इन में से कुछ लोग बाइबल के स्रोत के बारे में क्या प्रमाण देते हैं?
८ लोक–प्रिय विश्वास के विपरीत, बाइबल पश्चिमी सभ्यता की उपज नहीं है, न ही वह उस सभ्यता की महिमा करती है। प्रायः सम्पूर्ण बाइबल पूर्वीय देशों में लिखी गयी थी। जिन मनुष्यों ने इसे लिखा था वे सब पूर्वीय देशों के निवासी थे। बुद्ध से एक हजार वर्ष पहले, १५१३ ई. पूर्व में, मूसा, जो मध्य–पूर्व में रहता था, बाइबल की पहली पुस्तक, जो उत्पति कहलायी, लिखने के लिए परमेश्वर द्वारा उत्प्रेरित किया गया था। इस शुरुआत से बाइबल अन्तिम पुस्तक प्रकाशितवाक्य तक एक समान सुसंगत विषय का अनुसरण करती है। बाइबल बुद्ध के लगभग ६०० वर्ष बाद, ९८ ई. सन में पूरी हुई थी। क्या आपको मालूम था कि बाइबल ६६ विभिन्न पुस्तकों से मिल कर बनी है? हाँ बाइबल स्वयं एक पुस्तकालय है!
९ इस प्रकार, १,६०० वर्षों की अवधि से ऊपर, मूसा के समय से, कोई ४० मनुष्यों ने बाइबल के सुसंगत अभिलेख को लिखने में भाग लिया था। वे इस बात का प्रमाण देते हैं, कि उनके लेखों को ऐसी शक्ति ने उत्प्रेरित किया था जो मरनहार मनुष्य से बहुत ऊँची है। मसीही प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने और धर्म की शिक्षा [धार्मिकता के अनुशासन, न्यू.व.] के लिए लाभदायक है।”b (२ तीमुथियुस ३:१६) और प्रेरित पतरस ने व्याख्या दी थी कि: “पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।”—२ पतरस १:२०, २१; २ शमूएल २३:२; लूका १:७०.
१०. (अ) बाइबल हमारे दिनों तक कैसे पहुंची है? (ब) क्यों हम निश्चित हो सकते हैं कि हमारे पास आज भी प्रेरितीय मूलपाठ में बाइबल अवतरण है?
१० जिस रीति से बाइबल हमारे समय तक पहुंची है वह बहुत ही विलक्षण है। कई हजार वर्षों तक लगभग ५०० वर्ष पहले छपाई के अविष्कार होने तक, बाइबल की कापियां हाथ से लिखी जाती थी। प्राचीन समय में किसी भी साहित्यिक कार्य की कापियां और उन से दूसरी कापियां इतने परिश्रम से नहीं बनायी गयी थीं। कई कई बार उसकी कापियां बनाई जाती थीं, परन्तु हमेशा बड़ी सावधानी के साथ। प्रतिलिपिकों ने केवल थोड़ी छोटी गलतियां की, और इनकी तुलना परमेश्वर द्वारा उत्प्रेरित प्रारम्भिक मूल–पाठ को स्थापित करती है। बाइबल हस्तलिपियों पर एक प्रमुख विशेषज्ञ, सर फ्रेडरिक केनयन, कहते हैं: “शास्त्रों के मूल रूप में, जैसा वे लिखे गये थे हम तक पहुंचने के सम्बन्ध में जो भी संदेह उत्पन्न होता है, उसकी अंतिम नींव भी हटा दी गयी है।” आज, बाइबल या उसके भागों की करीब १६,००० हस्तलिपियां मौजूद है, जिन में से कुछ मसीह से दूसरी शताब्दी पूर्व की लिखी हुई हैं। उसके अतिरिक्त, इब्रानी, आरामी और यूनानी भाषाओं में, जिनमें बाइबल प्रारम्भ में लिखी गई थी, उनके यथार्थ अनुवाद पृथ्वी की प्रायः सब भाषाओं में हो चुके है।
११. क्या बाइबल के अभिलेख के साथ आधुनिक अन्वेषण सहमत हैं?
११ कुछ लोगों ने यह कह कर कि बाइबल यथार्थ नहीं है, उसे बदनाम करने का प्रयास किया है। तथापि, हाल के वर्षों में पुरातत्त्व वेत्ताओं ने बाइबल के देशों में प्राचीन नगरों के खण्डहरों की खुदाई की है और उन्होंनें उन शिलालेखों और अन्य प्रमाणों को पाया है जो निश्चयात्मक रीति से यह सिद्ध करते हैं कि वे व्यक्ति और स्थान जिनका वर्णन बाइबल के सब से पुराने अभिलेखों में हुआ है, वास्तव में मौजूद थे। उन्होंने भूमि खोदकर यथेष्ट प्रमाण प्रकट किए हैं जो सारी पृथ्वी पर आए हुए जल–प्रलय का संकेत देते हैं, जिसके विषय में बाइबल कहती है कि वह ४,००० से अधिक वर्षों पहले नूह के दिनों में हुआ था। इस विषय में, राजकुमार मिकासा, एक प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता ने कहा: “क्या वास्तव में जल–प्रलय हुआ था? . . . यह तथ्य कि जल–प्रलय वास्तव में हुआ था विश्वासनीय प्रमाणित हुआ है।”c
बाइबल का परमेश्वर
१२. (अ) कुछ निन्दक परमेश्वर के बारे क्या कहते हैं? (ब) क्यों बाइबल परमेश्वर का उल्लेख पिता करके करती है? (स) बाइबल कैसे दिखाती है कि परमेश्वर का नाम क्या है?
१२ जिस प्रकार कुछ लोगों ने बाइबल का मजाक उड़ाया है, उसी प्रकार, दूसरे लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अस्तित्व का मजाक उड़ाते हैं। (२ पतरस ३:३-७) वे कहते हैं, ‘मैं परमेश्वर पर कैसे विश्वास कर सकता हूँ, जब कि मैं उसे देख नहीं सकता हूँ? क्या कोई प्रमाण है कि एक अदृश्य सृष्टिकर्त्ता, जो मनुष्य से उच्च है, वास्तव में अस्तित्व में है? क्या परमेश्वर प्रत्येक वस्तु में नहीं रहता है?’ दूसरे कहते हैं, ‘न कोई परमेश्वर है, न कोई बुद्ध।’ परन्तु, बाइबल प्रदर्शित करती है कि जिस प्रकार हम सब एक पार्थिव पिता से जीवन प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार, हमारे आदि पूर्वजों ने स्वर्गीय पिता या सृष्टिकर्त्ता से, जिसका व्यक्तिगत नाम यहोवा है, जीवन प्राप्त किया था।—भजन संहिता ८३:१८; १००:३; यशायाह १२:२; २६:४.
१३. किन दो तरीकों से यहोवा ने स्वंय को मनुष्यजाति पर प्रकट किया है?
१३ यहोवा ने दो श्रेष्ठ तरीकों से स्वयं को मानवजाति पर प्रकट किया है। मुख्य तरीका बाइबल के द्वारा है, जो उसकी सच्चाई और उसके अनन्त उद्देश्यों को प्रकट करती है। (यूहन्ना १७:१७; १ पतरस १:२४, २५) दूसरा तरीका उसकी सृष्टि के द्वारा है। अपने चारों ओर की अद्र्भित चीजों पर ध्यान देने के द्वारा, बहुत से लोग इस बात का मूल्यांकन करने लगे हैं कि एक सृष्टिकर्त्ता–परमेश्वर है जिसका महान व्यक्तित्व उसके कामों में प्रतिबिंबित होता है।—प्रकाशितवाक्य १५:३, ४.
१४. बाइबल हमे यहोवा के बारे में क्या कहती है?
१४ यहोवा परमेश्वर बाइबल का लेखक है। वह महान आत्मा है, जो अनन्त काल से अस्तित्व में रहा है। (यूहन्ना ४:२४; भजन संहिता ९०:१, २) उसका नाम “यहोवा” उसके जीवधारियों के प्रति उसके उद्देश्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करता है। उसका उद्देश्य दुष्टों का नाश करना और उनको जो उससे प्रेम रखते हैं, परादीस पृथ्वी पर रहने के लिये छुटकारा देकर उस महान नाम की दोष–मुक्ति करना है। (निर्गमन ६:२-८; यशायाह ३५:१, २) सर्वशक्तिमान परमेश्वर होने के नाते, उसमें ऐसा करने की शक्ति है। सारे विश्व–मंडल का सृष्टिकर्त्ता होने के कारण, वह सामान्य राष्ट्रीय देवताओं और मूर्तियों से बहुत ऊपर है।—यशायाह ४२:५, ८; भजन संहिता ११५:१, ४-८.
१५. बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा किये गये सृष्टि के अध्ययन किस निष्कर्ष की ओर ले जाते हैं?
१५ हाल की शताब्दियों में, वैज्ञानिक लोगों ने सृष्टि के कार्यों के अध्ययन में काफी समय लगाया है। वे किस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं? बिजली के क्षेत्र में अग्रगामी कार्य करने वाले एक व्यक्ति, मशहूर अंग्रेज भौतिक–वैज्ञानिक लॉर्ड केलविन ने, यह घोषित किया: “मेरा यह विश्वास है कि विज्ञान का अध्ययन जितना भी पूर्ण रूप से किया जाए, उतना ही वह हमें नास्तिकता तुल्य किसी भी चीज से और भी दूर ले जाता है।” यूरोप में जन्मे विज्ञानवेत्ता अलर्बट आइंस्टाइन ने, यद्यपि एक नास्तिक व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध था, स्वीकार किया: “मेरे लिए इतना ही काफी है कि, विश्व मंडल के अद्र्भित निर्माण पर, जिसे हम स्पष्ट रीति से नहीं समझ सकते हैं, सोच विचार करूं, और नम्रतापूर्वक उस बुद्धि के अत्यल्प भाग को समझने का प्रयास करुं जो प्रकृति में दिखाई देता है।” अमरीकन विज्ञानवेत्ता और नोबेल प्राइज विजेता आर्थर हॉली कॉम्टन ने बताया: “एक सुव्यवस्थित रूप से प्रकट होनेवाला विश्व–मंडल इस अत्यन्त महान कथन की सत्यता को प्रमाणित करता है जो अतुल्य है, अर्थात—‘आदि में परमेश्वर।’” उसने बाइबल के प्रारम्भिक शब्दों को उदृत किया था।
१६. परमेश्वर की रचनात्मक बुद्धि और शक्ति की महिमा यह विश्व कैसे करता है?
१६ शक्तिशाली राष्ट्रों के शासक बाहरी अवकाश मंडल को जीतने में अपनी बुद्धि और वैज्ञानिक सफलताओं पर घमण्ड कर सकते हैं। परन्तु जब अन्तरिक्ष उपग्रह की तुलना चन्द्रमा से की जाती है जो पृथ्वी के चारों ओर अपने पथ पर घुमता है, और उन ग्रहों से जो सूर्य के चारों ओर घुमते हैं, तो वे इन के सम्मुख तुच्छ हैं! इन मरनहार मनुष्यों की सफलताएं कितनी छोटी हैं जब उनकी तुलना यहोवा की निर्मित किए हुए करोड़ों आकाशीय तारांगणों से की जाती हैं जहाँ प्रत्येक तारांगण में हमारे सूर्य के समान अरबों सूर्य है और जिनके अलग अलग समूह बना कर उसे अन्तरिक्ष में असीम काल के लिए स्थापित कर दिया है! (भजन संहिता १९:१, २; अय्यूब २६:७, १४) कोई आश्चर्य नहीं कि यहोवा मनुष्यों को मात्र टिड्डियां और शक्तिशाली राष्ट्रों को “कुछ नहीं” समझता है।—यशायाह ४०:१३-१८, २२.
१७. एक सृष्टिकर्त्ता पर विश्वास करना क्यों तर्कसंगत है?
१७ क्या आप किसी मकान में रहते हैं? शायद आप ने स्वयं उस मकान को नहीं बनाया, और न ही आपको मालूम है कि उसे किस ने बनाया था। तथापि, आप बनाने वाले को नहीं जानते हैं, यह तथ्य आपको यह सच्चाई स्वीकार करने से नहीं रोकती है कि उसे किसी बुद्धिमान व्यक्ति ने निर्मित्त किया था। यह तर्क करना कि मकान स्वयं निर्मित हुआ, बहुत मूर्खता पूर्ण लगेगा! जबकि इस महान विश्व–मंडल और उस में की प्रत्येक वस्तुओं के निर्माण में अत्यन्त महान बुद्धि की आवश्यकता हुई होगी, तो क्या इस निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं है कि निश्चय ही एक बद्धिमान सृष्टिकर्त्ता है? सच है, केवल एक मूर्ख ही अपने मन में कहेगा, “कोई यहोवा नहीं।”—भजन संहिता १४:१; इब्रानियों ३:४.
१८. क्या दिखाता है कि परमेश्वर एक व्यक्ति है, और स्तुती पाने के योग्य है?
१८ महिमायुक्त आश्चर्य जो हमारे चारों ओर है—फूल, पक्षी, जानवर, मनुष्य जो अद्र्भित सृष्टि कहलाता है, जन्म और मृत्यु की विचित्रता—ये सब अदृष्य महान बुद्धि की गवाही देते हैं जिसने उसको उत्पन्न किया है। (रोमियों १:२०) जहाँ बुद्धि है, वहाँ मस्तिष्क है। जहाँ मस्तिष्क है, वहाँ व्यक्ति है। यह सर्वोच्च बुद्धि एक सर्वोच्च व्यक्ति है, जो सब जीवधारियों का सृष्टिकर्त्ता है, जीवन का मूल स्रोत है। (भजन संहिता ३६:९) यह सृष्टिकर्त्ता वास्तव में सारी स्तुति और भक्ति के योग्य है।—भजन संहिता १०४:२४; प्रकाशितवाक्य ४:११.
१९. (अ) क्यों आज कोई राष्ट्र युद्ध में परमेश्वर–प्रदत्त विजय का दावा नहीं कर सकता है? (ब) क्यों परमेश्वर का राष्ट्रों के युद्धों में कोई भाग नहीं है?
१९ द्वितिय विश्व युद्ध के कठोर अनुभवों से परमेश्वर पर कुछ लोगों का विश्वास डांवांडोल हो गया था। उस समय प्रत्येक देश अपने “ईश्वर” को पुकारता था, चाहे वह कैथोलिक धर्मी हो या प्रोटेस्टेंट धर्मी या पूर्वीय धर्म का मानने वाला। क्या यह कहा जा सकता था कि “ईश्वर” ने इन में से कुछ राष्ट्रों को विजय दी थी और दूसरों को पराजित होने के लिए छोड़ दिया था? बाइबल दिखाती है कि इन राष्ट्रों में से कोई भी सच्चे परमेश्वर को नही पुकार रहा था। आकाश और पृथ्वी का सृष्टिकर्त्ता यहोवा परमेश्वर राष्ट्रों के मध्य उत्पन्न होने वाले युद्ध और गड़बड़ी के लिए उत्तरदायी नहीं है। (१ कुरिन्थियों १४:३३) उसके विचार इस पृथ्वी के राजनैतिक और सेना शासित राष्ट्रों के विचारों से बहुत ऊंचे हैं। (यशायाह ५५:८, ९) इसी प्रकार, सच्चे धर्म और यहोवा की उपासना का राष्ट्रों की लड़ाईयों में कोई भाग नहीं है। यहोवा राष्ट्रवादी ईश्वरों से बहुत उंचा है। वह सब राष्ट्रों के शांति–प्रिय पुरुषों और स्त्रियों का परमेश्वर कहलाये जाने में अद्वितीय है। जैसा बाइबल कहती है: “परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में से जो उस से डरता और धर्म [धार्मिकता, न्यू.व.] के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों के काम १०:३४, ३५) समस्त राष्ट्रों में धार्मिक प्रवृत्ति वाले लोग अभी बाइबल सीख रहे हैं और सब मनुष्यजाति के सृष्टिकर्त्ता, “शान्ति” देने वाले सच्चे “परमेश्वर” की उपासना को स्वीकार कर रहे हैं।—रोमियों १६:२०; प्रेरितों के काम १७:२४-२७.
२०. कौनसी बाते मसीही जगत को गैर–मसीही और परमेश्वर–विरोधी दिखाती है?
२० बाइबल का अनुसरण करने का दावा करने वाले मसीही जगत के धर्मों में पाए जाने वाले विभाजन और कपटता की ओर कुछ लोग संकेत करते हैं। और वे यह भी कहते हैं, ‘मैं बाइबल के परमेश्वर पर कैसे विश्वास कर सकता हूँ, जब कि वे राष्ट्र जिनके पास बाइबल है व्यग्रता से न्यूक्लियर हथियारों को इकट्ठा कर रहे हैं?’ तथ्य यह है कि बाइबल हमेशा से सत्य रही है, परन्तु मसीही जगत के राष्ट्र बाइबल की मसीहियत से इतने दूर हो गए हैं जितना उत्तरी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव से दूर है। उनका मसीहियत को मानने का दावा करना पाखण्ड है। उनके पास बाइबल है, परन्तु वे उसकी शिक्षाओं पर नहीं चलते हैं। अमरीकन राष्ट्रपति ने, जिसने हीरोशीमा पर पहला ॲटम बम गिराने की आज्ञा दी थी, एक बार चिल्ला कर कहा था: “काश, कोई यशायाह या संत पौलुस होता”!—जो इस संसार की संकट–स्थिति में मनुष्यों का मार्गदर्शक बनता। वह बाइबल के यशायाह से सहमत होता तो वह कभी भी ॲटम बम नहीं गिराता, क्योंकि यशायाह ने ‘तलवारों को तोड़ कर फाल, और भालों को हंसिया बनाने’ का समर्थन किया था। इसके अलावे वह बाइबल का पौलुस था जिसने यह घोषणा की थी कि: “यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। क्योंकि हमारे लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं।” (यशायाह २:४; २ कुरिन्थियों १०:३, ४) तथापि, बाइबल की बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह का अनुसरण करने के बदले, मसीही जगत के राष्ट्र आत्मघातक युद्ध–सामग्री की दौड़ में अन्तर्ग्रस्त हैं। उनका यह दावा, कि वे बाइबल का पालन करने वाले मसीही हैं, झूठा है। उन्हें परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में असफल रहने के कारण उसके न्याय का सामना करना पड़ेगा।—मत्ती ७:१८-२३; सपन्याह १:१७, १८.
यहोवा की सृष्टि और आश्चर्यजनक कार्य
२१. क्यों परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों पर सन्देह करना तर्कसंगत नहीं है?
२१ यहोवा सृष्टि करता है, और वह आश्चर्यजनक कार्य सम्पन्न करता है। क्या आपको बाइबल में अभिलिखित पानी का खून में परिवर्तित हो जाना, लाल समुंदर का विभाजन, यीशु का एक कुँवारी से जन्म लेना, और दूसरे अद्र्भित कार्यों पर आश्चर्य हुआ है? चूंकि मनुष्य की विचार शक्ति सीमित है, शायद वह इस बात को कभी न समझ पाएगा इनमें से कुछ आश्चर्यजनक कार्य कैसे हुए थे, उसी प्रकार जैसे वह प्रति दिन उदय होने वाले और डूबने वाले सूर्य के आश्चर्य को पूर्णतया नहीं समझ सकता है। मनुष्य की सृष्टि एक आश्चर्यजनक कार्य थी। आधुनिक मनुष्य ने उस आश्चर्य–कर्म को नहीं देखा था, वह जानता है कि ऐसा हुआ था, क्योंकि वह उसे प्रमाणित करने के लिए आज जीवित है। निश्चय ही, सारा जीवन और सारा विश्व–मंडल एक चिरस्थायी आश्चर्य कर्म है। अतः क्या हम संदेह करते हैं जब परमेश्वर का वचन, बाइबल, कहती है कि उसने विशिष्ट समय के लिए विशिष्ट आश्चर्यकर्म सम्पन्न किया था, यद्यपि आज उसी प्रकार के आश्चर्य–कर्मों की आवश्यकता नहीं है?
२२. परमेश्वर की पहली सृष्टि का वर्णन किजिए।
२२ यहोवा की सारी सृष्टि आश्चर्यजनक और अद्र्भित है! तथापि, उसकी पहली सृष्टि सबसे अद्र्भित थी। यह एक आत्मिक पुत्र, उसके “पहिलौठे” की सृष्टि थी। (कुलुस्सियों १:१५) इस स्वर्गीय पुत्र का नाम “वचन” था। अपनी सृष्टि के अनगिनत युगों बाद, वह इस पृथ्वी पर आया था और “मसीह यीशु मनुष्य” कहलाया। (१ तीमुथियुस २:५) तब उसके बारे में कहा गया था: “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसे पिता के एकलौते की महिमा।”—यूहन्ना १:१४.
२३. (अ) परमेश्वर और उसके पुत्र के बीच के सम्बन्ध का वर्णन कैसे किया जा सकता है? (ब) अपने पुत्र के द्वारा, यहोवा ने किसकी सृष्टि की थी?
२३ यहोवा और उसके पुत्र के सम्बन्धों की तुलना एक कारखाने के मालिक–प्रबन्धक और उसके पुत्र से की जा सकती है, जहाँ पुत्र अपने पिता द्वारा अभिकल्पित वस्तुओं को बनाने में सहायता करता है। अपने पहलौंठे पुत्र और सह–कारीगर के द्वारा, यहोवा ने अनेक आत्मिक जीवधारियों, परमेश्वर के पुत्रों की सृष्टि की थी। इसके बाद, वे यहोवा के पुत्र, उसके निपुण कारीगर, को भौतिक आकाश और पृथ्वी, जिस पर हम रहते हैं, उसकी सृष्टि करते देखकर आनन्दित हुए। क्या आपको इन वस्तुओं की सृष्टि में सन्देह है? हजारों वर्ष बाद, यहोवा ने एक विश्वस्त पुरुष से पूछा था: “जब मैं ने पृथ्वी की नेंव डाली, तब तू कहाँ था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे?”—अय्यूब ३८:४, ७; यूहन्ना १:३.
२४. (अ) यहोवा की कौन सी पार्थिव सृष्टि असाधारण है, और किस विषय में? (ब) क्यों ऐसा कहना अनुचित है कि मनुष्य जानवरों से विकसित हुआ है?
२४ समय बीतने पर, यहोवा ने इस पृथ्वी पर, जीवित, भौतिक वस्तुएं, अर्थात् पौधे, वृक्ष, फूल मछलियाँ, पक्षी और पशु की सृष्टि की। (उत्पत्ति १:११-१३, २०–२५) फिर परमेश्वर ने अपने निपुण कारीगर से कहा “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं, . . . तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।” (उत्पत्ति १:२६, २७) प्रथम मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में और उसकी समानता में, परमेश्वर के प्रेम, बुद्धि, न्याय और शक्ति जैसे महान गुणों सहित बनाया गया था। इसलिए वह पशुओं से अधिक श्रेष्ठ था। मनुष्य का वर्ग पशुओं के वर्ग से बिल्कुल अलग है क्योंकि वह तर्क करने, भविष्य के लिए योजना बनाने के योग्य है, और उसमें परमेश्वर की उपासना करने की क्षमता है। पशुओं में तर्क करने की बुद्धि नहीं पाई जाती है, बल्कि वे स्वाभाविक प्रवृत्ति से जीवन व्यतीत करते हैं। यह कहना कितना अनुचित है कि कोई सृष्टिकर्त्ता नहीं है परन्तु गुणों की अधिकता के साथ सम्पन्न, बुद्धिमान प्राणी मनुष्य बुद्धिहीन क्षुद्र पशुओं से विकसित हुआ है!—भजन संहिता ९२:६, ७; १३९:१४.
२५, २६. (अ) मनुष्य के सामने कौनसी बड़ी प्रत्याशा रखी गयी थी? (ब) क्यों पृथ्वी में अत्यधिक जनसंख्या बढने की समस्या नहीं होगी?
२५ परमेश्वर ने “पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका” में मनुष्य को रखा था। वह इस पुस्तिका की जिल्द पर दिए हुए चित्र की बाटिका के समान आनन्द की बाटिका थी, यद्यपि उस में केवल दो मानव थे, आदम और उसकी पत्नी। यह प्रारम्भिक परादीस अब अस्तित्व में नहीं है, क्योंकि वह नूह के दिनों के जल–प्रलय में नष्ट हो गया था। परन्तु मध्यपूर्व में उसका स्थान लगभग मालूम है, क्योंकि वह नदियां जिन का वर्णन बाइबल में किया गया है जो उस में से होकर बहती थीं, आज तक मौजूद हैं। (उत्पत्ति २:७-१४) मनुष्य को यह बड़ा मौका मिला था कि वह उस बाटिका को एक केन्द्र के रूप में प्रयोग करे और वहाँ से सारी पृथ्वी में फैल जाए और उसकी देखभाल करके उसे एक भूमण्डलीय परादीस में परिवर्तित कर दें।—यशायाह ४५:१२, १८.
२६ जिस तरह परमेश्वर और उसका पुत्र दोनों कार्यकर्त्ता हैं, उसी तरह परमेश्वर ने यहाँ पृथ्वी पर मनुष्य को काम दिया। (यूहन्ना ५:१७) प्रथम पुरुष और स्त्री, आदम और हव्वा से, उसने कहा: “फूलो–फलो, और पृथ्वी में भर जाओं, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।” (उत्पत्ति १:२८) क्या इसका अर्थ यह था कि मनुष्य संख्या में बढ़ जाता, पृथ्वी को भर देता और फिर बढ़ता ही जाता जब तक कि पृथ्वी अतिरेक से अधिक न भर जाती? नहीं। जब कोई आपसे प्याले को चाय से भरने के लिए कहता है, तब आप उस समय तक चाय नहीं डालते हैं जब तक कि चाय प्याले से बाहर आ जाए और सारी मेज पर फैल जाए। आप प्याले को भर देते हैं और रूक जाते हैं। इसी प्रकार, मनुष्य के लिए यहोवा का आदेश “पृथ्वी” को “भर” दो, उसके इस उद्देश्य की ओर संकेत करता है कि मनुष्य आराम से पृथ्वी को भर दे, और फिर यहाँ पृथ्वी पर मानवजाति का पैदा होना बन्द हो जाएगा। इससे एक सिद्ध मानव समाज में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी। केवल आज की असिद्ध मानवजाति के संसार में जनसंख्या की अधिक वृद्धि एक समस्या प्रस्तुत करती है।
बुरी बातें—परमेश्वर क्यों उनको अनुमति देता है?
२७. कौनसे प्रश्न अभी उत्तर की मांग करते हैं?
२७ यदि परमेश्वर का उद्देश्य एक परादीस रूपी पृथ्वी निर्मित करने का है, तो क्यों यह पृथ्वी आज दुष्टता, दुःख, और शोक से परिपूर्ण है? यदि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, तो क्यों उसने इतने लम्बे समय तक इन स्थितियों को रहने दिया है? क्या हमारे सब दुःखों के अन्त होने की कोई आशा है? बाइबल क्या कहती है?
२८. कैसे विद्रोह का प्रवेश परादीस के बगीचे में हुआ था?
२८ बाइबल दिखाती है कि मनुष्य–जाति के दुःख उस समय शुरु हुए थे जब परमेश्वर के आत्मिक पुत्रों में से एक ने यहोवा के प्रभुत्व, या स्वामित्व के विरूद्ध विद्रोह किया था। (रोमियों १:२०; भजन संहिता १०३:२२, न्यू.व. रेफरन्स बाइबल फुटनोट) इस में कोई सन्देह नहीं कि यह स्वर्गदूत उन में से एक था जो मनुष्य की सृष्टि देखकर आनन्दित हुए थे। परन्तु तब लालच और घमण्ड ने उसके हृदय में जड़ पकड़ लिया, और आदम और हव्वा से अपने सृष्टिकर्त्ता, यहोवा, के बजाय अपनी उपासना कराने की इच्छा के प्रलोभन में आ गया था। जिस तरह एक विन्ट्रिलोक्किस्ट एक कठपुतली के द्वारा बातें करता है, उसी तरह एक सर्प के द्वारा, इस स्वर्गदूत ने हव्वा को सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आज्ञा उल्लंघन करने के लिए बहकाया। फिर उसके पति आदम ने भी अनाज्ञाकारिता में उसका अनुसरण किया।—उत्पत्ति २:१५-१७; ३:१-६; याकूब १:१४, १५.
२९. (अ) निर्णय के लिए क्या वाद–विषय उठे? (ब) कैसे परमेश्वर ने चुनौती का सामना किया? (ब) कैसे आप सैतान के निंदा का उत्तर देने में सहभागी हो सकते हैं?
२९ वह विद्रोही स्वर्गदूत “पूराने सांप” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। (प्रकाशितवाक्य १२:९; २ कुरिन्थियों ११:३) वह शैतान भी कहलाता है, जिसका अर्थ है, “विरोधक,” और इब्लीस, जिसका अर्थ है “झूठा कलंक लगाने वाला।” उसने पृथ्वी पर यहोवा के शासकपन की वैधता और धार्मिकता का वादविषय खड़ा किया, और उसने परमेश्वर को चुनौती दी थी कि अब वह, शैतान पूरी मानवजाति को सच्ची उपासना से अलग कर सकता था। परमेश्वर ने शैतान को उसकी चुनौती को प्रमाणित करने के प्रयास में कोई ६,००० वर्षों की अनुमति दी, ताकि यहोवा के सार्वभौमत्व का वाद–विषय अनन्त काल के लिए निश्चित हो जाए। परमेश्वर से स्वतंत्र मानव–शासन बुरी तरह से असफल रहा है। परन्तु विश्वासी पुरुषों और स्त्रियों ने, जिनमें यीशु एक श्रेष्ठ उदाहरण है, कठिन परीक्षाओं में भी परमेश्वर के प्रति अपनी खराई बनाए रखते हुए, यहोवा को न्यायसंगत और इब्लीस को झूठा प्रमाणित किया है। (लूका ४:१-१३; अय्यूब १:७-१२; २:१-६; २७:५) आप भी, खराई बनाए रखने वाले बन सकते हैं। (नीतिवचन २७:११) पर शैतान अकेला ही शत्रु नहीं है जो हमें कष्ट देता है। वह दूसरा शत्रु कौन है?
शत्रु है—मृत्यु
३०. अनाज्ञाकारिता के कारण मनुष्य को जो सजा मिली उसके बारे में धर्मशास्त्र क्या कहते हैं?
३० परमेश्वर ने आज्ञा उल्लंघन का जो दण्ड बताया था—वह मृत्यु थी। प्रथम स्त्री को दण्डाज्ञा देते हुए यहोवा ने कहा था: “ मैं तेरी पीड़ा और गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” पुरुष आदम से उसने कहा: “तू अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१६-१९) अब अनाज्ञाकारी दम्पत्ति खुशी के परादीस से निकाले गये और अकृष्ट भूमि पर भेजे गए। समय आने पर वे मर गये।—उत्पत्ति ५:५.
३१. पाप क्या है, और मनुष्यजाति को उसका क्या प्रतिफल मिला?
३१ सिद्धता के चिन्ह से गिर जाने के पश्चात् आदम और हव्वा ने बच्चे उत्पन्न करना आरम्भ किया। आज सब मनुष्य उनके असिद्ध वंशज हैं और इसीलिए सब मरते हैं। एक बाइबल लेखक इन शब्दों में उसकी व्याख्या करता है: “जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिए कि सब ने पाप किया।” यह “पाप” क्या है? सिद्धता या पूर्णता के लक्ष्य से गिर जाना पाप है। यहोवा परमेश्वर किसी भी ऐसी वस्तु को जो असिद्ध है, स्वीकार नहीं करता, या जीवित रखता है। चूंकि सब मनुष्यों ने प्रथम पुरूष आदम से पाप और असिद्धता को उत्तराधिकार में प्राप्त किया है, उन पर “मृत्यु . . . राज्य” करता है। (रोमियों ५:१२, १४) पतित मनुष्य मर जाता है, जिस तरह से जानवर भी मरते हैं।—सभोपदेशक ३:१९-२१.
३२. बाइबल मृत्यु का वर्णन कैसे करती है जो हमें उत्तराधीकारित्व में मिला है?
३२ यह “मृत्यु” क्या है? जीवन का उलटा मृत्यु है। परमेश्वर ने मुनष्य के सम्मुख अनन्त जीवन की प्रत्याशा रखी थी, यदि वह आज्ञाकारी रहता। तथापि, उसने आज्ञा नहीं मानी, और उसका दण्ड मृत्यु, अचेतन–अवस्था, अनास्तित्व था। परमेश्वर ने मनुष्य के जीवन को एक आत्मिक लोक या जलते हुए “नरक” में स्थानान्तरित करने के बारे कुछ नहीं कहा था यदि वह आज्ञा नहीं मानता वह मर जाता। उसने मनुष्य को यह चेतावनी दी थी: “तू . . . अवश्य मर जाएगा।” यह मनुष्य की हत्या करने वाला इब्लीस था, जिसने यह कह कर झूठ बोला था: “तुम निश्चय न मरोगे।” (उत्पत्ति २:१७; ३:४; यूहन्ना ८:४४) सब मनुष्यों ने आदम से जो उत्तराधिकार में पाया है वह मिट्टी–सदृश मृत्यु है।—सभोपदेशक ९:५, १०; भजन संहिता ११५:१७; १४६:४.
३३. (अ) मानव और इस पृथ्वी के लिए कैसा महिमायुक्त भविष्य प्रतिक्षा कर रहा है? (ब) यहोवा अपने पुत्र के द्वारा कौनसी तीन महत्वपूर्ण बातों को पूरा करता है?
३३ तब, क्या उस मनुष्य के लिए जो मर जाता है, कोई भविष्य नहीं है? एक अद्र्भित भविष्य है! बाइबल दिखाती है कि सब मनुष्यजाति के लिए, जिसमें अभी के मृतक भी अन्तर्ग्रस्त हैं, एक परादीस रूपी पृथ्वी के सम्बन्ध में परमेश्वर का उद्देश्य, कभी असफल नहीं होगा। यहोवा कहता है: “आकाश मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है।” “मैं अपने चरणों के स्थान को महिमा दूंगा।” (यशायाह ६६:१; ६०:१३) अपने प्रेम की अधिकता के कारण, यहोवा ने अपने पुत्र, वचन को, इस पृथ्वी पर भेजा था, ताकि मनुष्यजाति का यह संसार उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें। (यूहन्ना ३:१६; १ यूहन्ना ४:९) तीन महत्वपूर्ण बातें हैं जिस पर अब हम वाद–विवाद करेंगे और जिसे यहोवा अपने पुत्र के द्वारा पूरा करता है, अर्थात्: (१) मृत्यु की शक्ति से छुटकारा प्रदान करना, (२) वास्तव में मृतकों को जीवन में पूर्व अवस्था में लाना; और (३) सब मनुष्यजाति के ऊपर एक सिद्ध सरकार की स्थापना करना।
मृत्यु से छुटकारा
३४, ३५. (अ) केवल किस प्रकार मनुष्य मृत्यु से छुटकारा प्राप्त कर सकता है? (ब) छुड़ौती क्या है?
३४ प्राचीन काल से, परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं ने मनुष्य की अमरता में नहीं, पर इस बात की आशा में, अपना दृढ़–विश्वास प्रकट किया है कि परमेश्वर मृत्यु से “उनको छुटकारा” देगा। (होशे १३:१४) पर कैसे मनुष्य मृत्यु के बन्धन से छुटकारा पा सकता है? यहोवा का सिद्ध न्याय ‘प्राण के बदले प्राण, आँख के बदले आँख, दांत के बदले दांत’ चाहता है। (व्यवस्थाविवरण १९:२१) तथापि, चूंकि आदम स्वेछापूर्वक परमेश्वर की आज्ञा को न मानने के द्वारा सब मनुष्यजाति पर उत्तराधिकार में मृत्यु लाया और इस तरह मानव जीवन की सिद्धता को खो दिया, दूसरे सिद्ध मनुष्य को आदम का स्थान लेना अवश्य था जो अपने सिद्ध जीवन को देकर उस जीवन को मोल ले जिसे आदम ने खो दिया था।
३५ ‘जैसे को तैसा’ देने का सिद्धान्त व्यापक रूप से पूरे इतिहास में स्वीकार किया गया है। साधारणतः “छुड़ौती भुगतान करना” अभिव्यक्ति प्रयोग में लायी जाती है। छुड़ौती क्या है? यह वह मूल्य है जो उस व्यक्ति या वस्तु को पुनः प्राप्त करने के लिए उस व्यक्ति को दिया जाता है जो उस व्यक्ति या वस्तु को कैद में रोके रखता है। इसलिए युद्ध के कैदी या गुलाम उस समय छुड़ौती प्राप्त कहलाते हैं जब वे किसी बहुमूल्य क्षतिपूर्त्ति के लिए दिये गये बदले में मुक्त किए जाते हैं। . . . उस दल के लिए क्षतिपूर्ति में जो कुछ बदले में दिया जाता या आदान–प्रदान किया जाता वही उसकी छुड़ौती है।”d आदम के पाप से, सारी मानवजाति युद्ध के कैदियों या गुलामों के समान, असिद्धता और मृत्यु से बन्धे हुए हैं। उन्हें छुटकारा देने के लिए, एक छुडौती का प्रबन्ध करना था। छुड़ौती के मूल्य के औचित्य के सम्बन्ध में अभी या बाद में होने वाले किसी वाद–विवाद से बचने के लिए, एक सिद्ध मानव जीवन का बलिदान करना जरूरी था, अथवा, जो आदम के तुल्य यथार्थ हो।
३६. कैसे यहोवा ने छुड़ौती के रूप में एक सिद्ध मानव जीवन का प्रबंध किया?
३६ तथापि, ऐसा सिद्ध मानव जीवन कहाँ मिल सकता था? सब मनुष्य, असिद्ध आदम के वंशज होने के कारण, असिद्धता में उत्पन्न हुए हैं। “उन में से कोई भी अपने भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसकी सन्ती प्रायश्चित्त में कुछ दे सकता है।” (भजन संहिता ४९:७) इस आवश्यकता के उत्तर में, यहोवा ने, मनुष्यजाति के प्रति अपने गहरे प्रेम से प्रेरित होकर, अपने बहुमूल्य “पहलौठे” पुत्र का बलिदान बनने के लिए वास्तव में प्रबन्ध किया। उसने इस आत्मिक पुत्र, वचन के सिद्ध जीवन को एक यहूदी कुंवारी, मरियम के गर्भ में स्थानान्तरण किया। वह युवा स्त्री गर्भवती हुई और समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम “यीशु” रखा गया। (मत्ती १:१८-२५) जीवन का सृष्टिकर्त्ता तार्किक रूप से ऐसा एक आश्चर्यजनक कार्य करने में समर्थ था।
३७. यीशु ने उन सब मनुष्यों के प्रति कैसा प्रेम दिखाया जो जीवन चाहते हैं?
३७ यीशु जवान हुआ, यहोवा के सम्मुख स्वयं को प्रस्तुत किया, और बपतिस्मा लिया। फिर परमेश्वर ने उसको, अपनी इच्छा पूरी करने का कार्य सौंपा। (मत्ती ३:१३, १६, १७) चूंकि यीशु का पार्थिव जीवन स्वर्ग से आया था और वह सिद्ध था, वह मानवजाति को मृत्यु से छुड़ाने के लिए इस सिद्ध मानव जीवन का प्रयोग कर सकता था, उसका बलिदान कर सकता था। (रोमियों ६:२३; ५:१८, १९) जैसा उसने कहा था: “मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।” “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे।” (यूहन्ना १०:१०; १५:१३) जब शैतान यीशु को यातना के काठ पर मार डाल रहा था, यीशु ने इस क्रूर मृत्यु को स्वीकार कर लिया, यह जान कर कि इस पर विश्वास करने वाले लोग इस छुड़ौती के प्रबन्ध से जीवन प्राप्त करेंगे।—मत्ती २०:२८; १ तीमुथियुस २:५, ६.
जीवन को पूर्व अवस्था में लाना
३८. परमेश्वर के पुत्र को कैसे फिर से जीवन मिला था, और यह क्या प्रमाणित करता है?
३८ यद्यपि उसके शत्रुओं ने उसे मार डाला, परमेश्वर के पुत्र ने सिद्ध मानव जीवन के अपने अधिकार को कभी नहीं खोया था, क्योंकि उसने परमेश्वर के प्रति अपनी खराई बनाये रखी थी। पर, कब्र में मृतक रहकर, कैसे यीशु उस बहुमूल्य वस्तु, मानव जीवन के अधिकार का मानवजाति के निमित्त, प्रयोग कर सकता था? यहाँ यहोवा ने दूसरा आश्चर्य–कर्म किया था, जो अपनी किस्म का पहला कार्य था। कब्र में यीशु के रहने के तीसरे दिन, यहोवा ने उसे एक अमर, आत्मिक जीवधारी करके मृत्यु से जिला उठाया। (रोमियों ६:९; १ पतरस ३:१८) पुनरूत्थान में विश्वास स्थापित करने के लिए, विभिन्न अवसरों पर यीशु ने मानव शरीर धारण किया था और एक समय में अपने ५०० और उससे भी अधिक, चेलों को दिखाई दिया था। न इनमें से किसी के पास, न ही प्रेरित पौलुस के पास, जो बाद में यीशु का महिमायुक्त रूप देखकर अन्धा हो गया था, उसके पुनरुत्थान के आश्चर्य पर सन्देह करने का कोई कारण था।—१ कुरिन्थियों १५:३-८; प्ररितों के काम ९:१-९.
३९. (अ) कैसे यीशु ने अपने बलिदान के मूल्य का प्रयोग किया, और पहले किनके लिए? (ब) यीशु ने और किस बड़े आश्चर्यजनक कार्य के बारे में बताया था?
३९ ४० दिनों के बाद पुनर्जीवित यीशु परमेश्वर की स्वयं की उपस्थिति में स्वर्ग पर चढ़ा, ताकि मानवजाति के छुटकारे के लिए अपने सिद्ध मानव बलिदान के मूल्य को प्रस्तुत करे। “पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिए चढ़ाकर परमेश्वर के दहिने जा बैठा। और उसी समय से इस की बाट जोहता रहा है, कि उसके बैरी उसके पांवों के नीचे की पीढी बने।” (इब्रानियों १०:१२, १३) इस छुड़ौती के द्वारा छुटकारा प्राप्त करने वाले पहले लोग, विश्वस्त मसीहियों का, “छोटा झुण्ड” हैं जो “मसीह के . . . लोग” है। (लूका १२:३२; १ कुरिन्थियों १५:२२, २३) ये “मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं” और इसलिए पुनरुत्थान में वे स्वर्ग में यीशु के आत्मिक सहयोगी बनते हैं। (प्रकाशितवाक्य १४:१-५) तथापि, मनुष्यजाति के अधिक से अधिक लोगों का क्या होगा जो अभी अपने कब्रों में मृत पड़े हैं? जब वह इस पृथ्वी पर था, यीशु ने कहा था कि उसके पिता ने उसे न्याय करने और जीवन देने का अधिकार दिया था। उसने आगे बताया: “इससे अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों [स्मारक कब्र, न्यू.व.] में हैं उसका शब्द सुनकर निकलेंगे, . . . पुनरूत्थान के लिए।” (यूहन्ना ५:२६-२९) वह परादीस पृथ्वी में इन्हें फिर से जीवित करेगा।
४०, ४१. (अ) स्पष्ट किजिये की यथार्थ में “पुनरुत्थान” का अर्थ क्या है? (ब) क्यों हम परमेश्वर से की गई पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा में विश्वास रख सकते हैं?
४० यीशु के इन वचनों पर ध्यान दें, “इससे अचम्भा मत करो।” यदि ऐसा है, तो कैसे बहुत दिनों पहले का मृतक मृत्यु से छुटकारा पा सकता है और पुनःर्जीवित हो सकता है? क्या उसका शरीर मिट्टी में पुनः नहीं मिल गया है? जिन कणों से शरीर बना था उनमें से कुछ दूसरी जीवित वस्तुओं में, जैसे पौधे और जानवरों में आत्मसात हो जाते हैं। तथापि, पुनरूत्थान का अर्थ फिर से उन्ही रासायनिक तत्त्वों को एक साथ मिलाना नहीं है। इसका यह अर्थ है कि परमेश्वर उसी व्यक्ति को, उसके उसी व्यक्तित्व के साथ दुबारा उत्पन्न करेगा। वह पार्थिव तत्त्वों से एक नया शरीर लाएगा, और उस शरीर में वह उन्ही विशेषताओं, उन्ही विशिष्ट गुणों, उसी स्मृति, उसी जीवन–ढांचे को डालेगा जो उस व्यक्ति में उसकी मृत्यु के समय थे।
४१ आपका अनुभव ऐसा हो सकता है कि आपका घर जिसे आप बहुत प्यार करते थे जल गया था। तथापि, आप आसानी से उसी घर को फिर से बना सकते हैं, क्योंकि उसके प्रिय व्योरा का नमूना आपकी स्मरण–शक्ति में बहुत स्पष्ट है। तब, निश्चय ही, परमेश्वर जो स्मरणशक्ति का उत्पादक है मनुष्य की सृष्टि दुबारा कर सकता है जिसे उसने अपनी स्मरण–शक्ति में रखा है क्योंकि वह उसे प्यार करता है। (यशायाह ६४:८) इसीलिए बाइबल “स्मारक कब्र” (न्यू.व.) अभिव्यक्ति का प्रयोग करती है। जब परमेश्वर का मृतकों को फिर से जीवन में लाने का उचित समय आएगा, वह उस आश्चर्य–कर्म को उसी रीति से करेगा, जिस रीति से उसने पहले मनुष्य की सृष्टि में किया था, केवल इस समय वह कई गुणा अधिक करेगा।—उत्पत्ति २:७; प्रेरितों के काम २४:१५.
४२. क्यों पृथ्वी पर अनन्त जीवन सम्भव और निश्चित है?
४२ परमेश्वर मानवजाति को पृथ्वी पर फिर कभी न मरने की प्रत्याशा से पुनःर्जीवित करेगा। पर पृथ्वी पर अनन्त जीवन कैसे सम्भव है? यह सम्भव और निश्चित है क्योंकि यह परमेश्वरीय इच्छा और उद्देश्य है। (यूहन्ना ६:३७-४०; मत्ती ६:१०) आज पृथ्वी में मनुष्य के मरने का एक मात्र कारण यह है कि उसने आदम से उत्तराधिकार में मृत्यु को प्राप्त किया है। तथापि, जब हम पृथ्वी पर अद्र्भित वस्तुओं की असंख्य विभिन्नताओं पर ध्यान देते हैं जिसका आनन्द उठाने के लिए मनुष्य अभिप्रेत था, एक सौ वर्षों से भी कम अल्पकालीन जीवन अवधि बहुत ही कम है! मनुष्य के पुत्रों को इस पृथ्वी को देने में, परमेश्वर का उद्देश्य यही था कि मनुष्य उसकी सृष्टि की भव्यता का आनन्द उठाये, न केवल एक सौ वर्षों या एक हजार वर्षों के लिए, पर सर्वदा के लिए जीवित रहे!—भजन संहिता ११५:१६; १३३:३.
शांति की सिद्ध सरकार
४३. (अ) एक सिद्ध सरकार की जरूरत क्यों है? (ब) इस सम्बन्ध में यहोवा का उद्देश्य क्या है?
४३ चूंकि हमारे पहले माता–पिता ने परमेश्वर के नियम की अवहेलना की थी, मानव सरकार शैतान के नियंत्रण में आ गयी थी। ठीक रीति से बाइबल शैतान को “इस रीति–रिवाज का ईश्वर” कहती है। (२ कुरिन्थियों ४:४, न्यू.व.) और इस वास्तविकता को लड़ाइयां, क्रूरताएं, भ्रष्टाचार, और मनुष्य की सरकारों की अस्थिरता प्रमाणित करती हैं। लीग ऑफ नेशन्स और यूनाईटेड नेशन्स इस गडबडी के मध्य शान्ति लाने में असफल रही हैं। मनुष्य जाति शान्ति की सरकार को पुकार रही है। क्या यह तर्कपूर्ण बात नहीं है कि सृष्टिकर्त्ता, जो इस पृथ्वी पर परादीस को पूर्व अवस्था में लाने का उद्देश्य रखता है, उस परादीस के लिए एक सिद्ध सरकार का भी प्रबन्ध करेगा? ठीक ऐसा ही करना यहोवा का उद्देश्य है। इस सरकार में उसका प्रतिनिधित्व करने वाला राजा उसका “शान्ति का राजकुमार,” यीशु मसीह है, और ‘उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का कभी अन्त न होगा।”—यशायाह ९:६, ७.
४४. (अ) यह सरकार कहाँ होगी? (ब) इसकी रचना कैसे होंगी?
४४ बाइबल दिखाती है कि सिद्ध सरकार स्वर्ग में होगी। इस सुविधा–जनक स्थान से, राजा यीशु मसीह सारी पृथ्वी पर धार्मिकता से सफलतापूर्वक शासन करेगा। इसके अलावे, उस अदृष्य, स्वर्गीय सरकार में उसके संगी शासक होंगे। वे विश्वासी मनुष्यों, अर्थात यीशु के अनुयायिओं में से चुने गए हैं जो परीक्षाओं में उसके साथ–साथ रहे हैं और जिनसे वह कहता है: “जैसे मेरे पिता ने मेरे लिए एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिए ठहराता हूँ।” (लूका २२:२८, २९) मनुष्यजाति में से केवल कुछ हैं जो यीशु मसीह के साथ शासन करने के लिए स्वर्ग में लिए गए हैं। यह आज उन राष्ट्रों के समान है, जहाँ केवल कुछ विधान सभा या संसद् में शासन करने के लिए चुने गए हैं। बाइबल दिखाती है कि यीशु मसीह के साथ केवल १,४४,००० संगी शासक होंगे। सो परमेश्वर का राज्य, या स्वर्गीय सरकार, यीशु मसीह और स्वर्ग के लिए पृथ्वी से लिए गए १,४४,००० लोगों से बनी है। (प्रकाशितवाक्य १४:१-४; ५:९, १०) और पृथ्वी के बारे में क्या है? भजन संहिता ४५:१६ जिक्र करता है कि राजा “पृथ्वी पर हाकिम” की नियुक्ति करेगा। मानव “हाकिम,” या सरकारी अध्यक्ष, धार्मिकता के सिद्धान्तों के प्रति अपनी गहरी भक्ति के कारण स्वर्ग से नियुक्त होंगे।—यशायाह ३२:१ से तुलना करें।
४५, ४६. (अ) पृथ्वी पर यीशु के प्रचार का मुख्य विषय क्या था? (ब) क्यों सिद्ध सरकार तुरन्त स्थापित नहीं हुई थी? (स) भविष्यद्वाणी और संसार की घटनाओं में १९१४ ई. सन कैसे एक असाधारण वर्ष था?
४५ कब और कैसे इस सिद्ध सरकार की स्थापना हुई है? जब यीशु पृथ्वी पर था यह राज्य उसके प्रचार का मुख्य विषय था। (मत्ती ४:१७; लूका ८:१) तथापि, उसने न उस समय, न ही अपने पुनरूत्थान के समय उस राज्य की स्थापना की थी। (प्रेरितों के काम १:६-८) यहाँ तक कि जब वह स्वर्ग पर चढ़ा, उस समय भी उसे यहोवा के नियुक्त समय के लिए रूकना था। (भजन संहिता ११०:१, २ इब्रानियों १:१३) बाइबल की भविष्यद्वाणी दिखाती है कि नियुक्त समय १९१४ ई. सन में आया था। तथापि, कोई पूछ सकता है, ‘क्या १९१४ सिद्ध सरकार के बजाय, बढ़ते हुए सांसारिक दुःखों की शुरुआत का चिन्ह नहीं था?’ यथार्थ में यही बात है! परमेश्वर के राज्य के आगमन और हाल के वर्षों की महान आपत्ति–जनक घटनाओं के बीच एक निकट सम्बन्ध है, जिसे हम अभी देखेंगे।
४६ १९१४ से कोई ३५ वर्षों पहले से, दि वाचटावर (अभी पृथ्वी पर सबसे अधिक वितरित होने वाली धार्मिक पत्रिका) १९१४ की ओर ध्यान आकृष्ट कर रही थी कि यह बाइबल की भविष्यद्वाणी में एक चिन्हित वर्ष है। १९१४ में इन भविष्यद्वाणियों की एक अद्र्भित पूर्णता की शुरुआत हुई थी। इनमें से एक यीशु की अपनी भविष्यद्वाणी थी जो उस “चिन्ह” के सम्बन्ध में, १,९०० वर्षों पहले कही गयी थी जो इस रीति–रिवाज के अन्त में प्रकट होता और जो यह प्रमाणित करता कि वह अदृश्य रूप से राजसत्ता के साथ उपस्थित है। इस “चिन्ह” के बारे अपने चेलों के प्रश्न के उत्तर में, उसने बताया: “जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह जगह अकाल पड़ेंगे, और भुईंडोल होंगे। ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी।” (मत्ती २४:३, ७, ८) विचित्र पूर्णता में, १९१४ में विश्व युद्धों का पहला युद्ध शुरू हुआ था, और यह पिछले २,५०० वर्षों में होने वाले सारे ९०० युद्धों से सात गुणा बड़ा विनाश अपने साथ लाया। क्या आपने युद्ध–विनाश, अकाल, या किसी बड़े भूकम्प का अनुभव किया है जो १९१४ से पृथ्वी को पीड़ित कर रहे हैं? यदि ऐसा है तो, आप इस रीति रिवाज के “अन्त समय” के “चिन्ह” के चश्मदीद गवाह हैं।—दानिय्येल १२:४.
४७. कैसे “चिन्ह” को पूरा करने वाली घटनाएं हाल के वर्षों में तीव्र हो गई हैं?
४७ द्वितीय विश्व युद्ध के द्वारा “पीड़ाएं” और अधिक बढ़ गई, जो प्रथम विश्व युद्ध से चार गुना अधिक विनाशकारी थी, और यीशु की इस भविष्यद्वाणी को इस न्यूक्लियर युग तक, पूरा करती हैं: “पृथ्वी पर, देश देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे . . . घबरा जाएंगे। और भय के कारण और संसार पर आने वाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।” (लूका २१: २५, २६) अपराध और दुष्टता, बच्चों के मध्य अवज्ञाकारिता और अपराध की वृद्धि, साथ ही नास्तिकता और अनैतिकता में वृद्धि—इन सब भयप्रद घटनाओं के बारे पहले ही बताया गया था कि ये इस दुष्ट रीति–रिवाज के “अन्तिम दिनों” के चिन्ह होंगे।—२ तीमुथियुस ३:१-५; मत्ती २४:१२.
४८. पृथ्वी पर के संकटों के लिए उत्तरदायी कौन है, और क्यों वे १९१४ से बढ़ गए हैं?
४८ तथापि, यदि स्वर्गीय सरकार १९१४ में स्थापित हुई थी, तो क्यों पृथ्वी पर ये सब क्लेश हैं? यह शैतान इब्लीस है जो इसका उत्तरदायी है। जब मसीह को राज्य सत्ता मिली, तो उसका पहला कार्य अदृश्य स्वर्ग में शैतान से युद्ध करना था। परिणाम यह हुआ कि, शैतान, जो . . . “सारे संसार का भरमानेवाला है,” अपने दूतों के साथ पृथ्वी के निकट गिरा दिया गया। यह जानते हुए कि उसका विनाश निकट है, वह पृथ्वी पर बड़ा क्लेश उत्पन्न करता है। “पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि इब्लीस बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है, क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।“—प्रकाशितवाक्य १२:७-९, १२.
४९. (अ) उनका क्या होगा जो “पृथ्वी के बिगाड़नेवाले” हैं? (ब) कैसे यहोवा राष्ट्रों पर अपना “न्यायदण्ड” कार्यान्वित करेगा?
४९ क्या इन दुःखों का अन्त होगा? हाँ!—जब स्वयं स्वर्ग की सरकार, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर का राज्य “पृथ्वी के बिगाड़नेवाले का नाश” करना आरंभ करेगा। (प्रकाशितवाक्य ११:१८; दानिय्येल २:४४) परमेश्वर राजनैतिक शक्तियों झूठे मसीहियों या दुसरे किसी को भी उनके न्युक्लियर साधनों से अपने हात से बनायी पृथ्वी का नाश करने की अनुमति कभी नही देगा। बल्कि, वह घोषणा करता है: “मैं ने यह ठान लिया है कि जाति–जाति के और राज्य–राज्य के लोगों को मैं इकट्ठा करूँ, कि उन पर अपने क्रोध की आग पूरी रीति से भड़काऊँ।” (सपन्याह ३:८) यहोवा, मसीह के द्वारा, अपने महान शक्तियों का प्रयोग जिससे वह विश्व–मंडल में नियंत्रण रखता है उनके विरूद्ध जबरदस्त विनाश लाने के लिए करेगा जो पृथ्वी पर शैतान का अनुकरण करते हैं। यह सब भूमण्डलीय पैमाने पर होगा, जो विस्तार में नूह के दिनों के जल–प्रलय के समान होगा।—यिर्मयाह २५:३१-३४; २ पतरस ३:५-७, १०.
५०. (अ) “आर्मागेडन” क्या है? (ब) केवल कौन आर्मागेडन से बचेंगे?
५० बाइबल में दुष्ट राष्ट्रों का यह विनाश परमेश्वर की लड़ाई आर्मागेडन कहलाती है। (प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६) संभव है केवल नम्र लोग, जो यहोवा और धार्मिकता को ढूंढते हैं, परमेश्वर की शान्तिपूर्ण नयी रीति में आर्मागेडन से बचकर जा सकते हैं। (सपन्याह २:३; यशायाह २६:२०, २१) इनके सम्बन्ध में बाइबल कहती है: “परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन संहिता ३७:११) तब पृथ्वी पर परादीस को पूर्व अवस्था में लाने का महान कार्य आरम्भ होगा!
परादीस में प्रवेश करने के लिए शिक्षा
५१. क्यों अभी आपको कार्यवाई करने की जरूरत है?
५१ क्या आप परादीस में रहना पसन्द करेंगे? यदि आप का उत्तर ‘हाँ’ है, तो आप यह जानकर रोमांचित होंगे कि जब यीशु ने आज के दु:खद रीति–रिवाज और उसके निकट आनेवाले विनाश के “चिन्ह” के बारे में बताया था, तब उसने आगे कहा था, “जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” इस पीढ़ी में से कुछ लोग, जिन्होंनें १९१४ में “पीड़ाओं का आरम्भ” देखा था, पृथ्वी पर पूर्व अवस्था में लाये हुए परादीस को देखने के लिए जीवित रहेंगे। (मत्ती २४:३-८, ३४) फिर भी, यह दुःखद वास्तविकता है की बहुत सारे लोग आज चाकल मार्ग पर चल रहे है जो विनाश को पहुंचाता है। (मत्ती ७:१३, १४) उनके बदलाव के लिए बहुत थोड़ा समय बाकी रह गया है। आप कितने धन्यवादित हो सकते हैं, क्योंकि यहोवा ने समय पर चेतावनी दी है! चूंकि यहोवा चाहता है आप जीवित रहें, वह सही कदम लेने में आपकी मदद करेगा।—२ पतरस ३:९; यहेजकेल १८:२३.
५२. धर्म के सम्बन्ध में बुद्धिमत्तापूर्ण चुनाव के लिए आपको क्या करने की जरूरत है?
५२ अभी आपकी अत्यावश्यकता यथार्थ ज्ञान पाने की है। (१ तीमुथियुस २:४, यूहन्ना १७:३, न्यू.व.) आप इसे कहाँ पा सकते हैं? क्या यह किसी भी धर्म में पाया जा सकता है? कुछ लोग कहते हैं कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं, जैसे एक पर्वत के सभी मार्ग शिखर की ओर ले जाते हैं। वे कितने गलत हैं! सही मार्ग पाने के लिए, पर्वतारोही नक्शे का प्रयोग करते हैं और वे किराये में मार्गदर्शक लेते हैं। इसी प्रकार, सत्य का केवल एक ही धर्म है जो अनन्त जीवन की ओर जाएगा, और उसे पाने के लिए अगुवाई की जरूरत है।—प्रेरितों के काम ८:२६-३१.
५३. (अ) अनन्त जीवन पाने के लिए, आपको क्या करते रहना है? (ब) शैतान के किन प्रलोभनों पर आपको विजय पाने की जरूरत है?
५३ यह पुस्तिका आपकी सहायता के लिए यहोवा के गवाहों द्वारा प्रबन्ध की गयी है। इसने पहले ही कुछ मौलिक बाइबल सच्चाईयों को समझने में आपकी मदद की है, क्या ऐसा नहीं है? कोई सन्देह नहीं कि आपने स्वयं के लिए पुष्टिकरण किया है कि प्रत्येक विषय परमेश्वर के उत्प्रेरित वचन पर आधारित है। अब, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए, आपको सीखते रहना है। जिस तरह प्रतिदिन समाज में एक जगह पाने के लिए एक व्यक्ति को उपयुक्त बनने के लिए उचित लौकिक शिक्षा की जरूरत होती है, उसी तरह एक उचित बाइबल शिक्षा उस समाज में प्रवेश करने के लिए एक व्यक्ति को सुसज्जित करती है जो परादीसीय पृथ्वी में जीवित रहने के लिए बचेगा। (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) शैतान आपके निकट साथियों द्वारा आपका विरोध करने या स्वार्थपूर्ण भौतिकवादी या अनैतिक तरीकों से आपको बहकाने के द्वारा आपको दूसरी ओर प्रलोभित करने की कोशिश कर सकता है। शैतान के सामने ऐसे न झुकें। आपकी सुरक्षा और आपका और आपके परिवार का भविष्य आपके आगे को बाइबल का अध्ययन करने पर निर्भर करता है।—मत्ती १०:३६; १ यूहन्ना २:१५-१७.
५४. यहोवाने आपके पड़ोस में शिक्षा का क्या अगला प्रबन्ध किया है?
५४ अपने वर्त्तमान बाइबल अध्ययन को जारी रखने के अलावे, सीखने का एक दूसरा तरीका भी है। आपके पड़ोस के लोग जो बाइबल शिक्षा में दिलचस्पी लेते हैं स्थानीय राज्य सभागृह की सभाओं में नियमित रूप से उपस्थित होते हैं। यहाँ उपस्थित सभी लोग वहाँ बाइबल से निर्देश लेते हैं और निष्कपटता से अच्छे लोग बनने की कोशिश करते हैं। वे स्वेच्छापूर्वक नये आने वालों का स्वागत, यह कहते हुए, करते हैं, “आओं, हम यहोवा के पर्वत [उसकी उपासना का स्थान] . . . पर चढकर जायें; वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।” (यशायाह २:३) बाइबल सभाओं में उपस्थित होने के अच्छे कारणों का वर्णन इब्रानियों १०:२४, २५ में किया गया है जहाँ हम पढ़ते हैं: “और प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिए एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें, और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो।”
५५. (अ) किन तरीकों से यहोवा की संस्था दूसरी संस्थाओं से भिन्न है? (ब) कैसे यहोवा के गवाह संगठित हैं जैसे दूसरे कोई नहीं हैं?
५५ जैसे आप यहोवा की संस्था के साथ मिलते हैं, आप वहाँ मन्दिरों और गिरजों से बहुत अलग वातावरण पाएंगे। वहाँ द्रव्य की मांग नहीं है, पीठ पीछे निन्दा या कलह नहीं है, और पारिवारिक इतिहास या आर्थिक स्थिति के कारण कोई भेदभाव नहीं है। यहोवा के गवाहों के बीच अत्यन्त असाधारण गुण प्रेम है। पहले, वे यहोवा से प्रेम रखते हैं और दूसरा, वे दूसरे लोगों से प्रेम रखते हैं। ये सच्चे मसीहियों के चिन्ह हैं। (मत्ती २२:३७-३९; यूहन्ना १३:३५) आपको उनकी सभाओं में उपस्थित होकर और स्वयं इस बात की पुष्टि करनी चाहिए। निःसन्देह आप उनकी एकता से प्रभावित होंगे। विश्व–व्याप्त २०० से अधिक देशों में तीस लाख से अधिक गवाह हैं। फिर भी, पूरी पृथ्वी में गवाह अपनी सभाओं में एक ही कार्यक्रम का पालन करते हैं। और कई भाषाओं में साथ–साथ छपाई के कारण पूरे संसार में अपनी साप्ताहिक सभाओं में यहोवा के अधिकांश गवाह एक दूसरे से कुछ घंटों के अन्दर एक समान शास्त्रीय विषय का अध्ययन करते हैं। यहोवा की संस्था की एकता, इस विभाजित संसार में आधुनिक समय का एक आश्चर्य है।
५६. (अ) आप यहोवा की संस्था की संगति से क्या लाभ प्राप्त कर सकते हैं? (ब) जब समस्याएं आती हैं, आपको कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए? (स) यहोवा के लिए अपने जीवन को समर्पित करना आपके लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
५६ जैसे आप यहोवा के लोगों के साथ नियमित रूप से मिलते हैं, आपको “नए मनुष्यत्व” से स्वयं को पहनने और परमेश्वर के आत्मा के फल—प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम को उत्पन्न करने की जरूरत होगी। (कुलुस्सियों ३:१०, १२-१४; गलतियों ५:२२, २३) यह आपके लिए गहरा सन्तोष लाएगा। समय समय पर आप को अपनी समस्याओं का सामना करना पडेगा क्योंकि आप एक भ्रष्ट संसार में रहते हैं और साथ ही साथ अपनी खुदकी असिद्धता के कारण। पर यहोवा आपकी सहायता करेगा। उसका वचन उनको आश्वासन देता जो निष्कपटता से उसे खुश करने की कोशिश करते हैं: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो, परन्तु हर बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिन्ती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों ४:६, ७) आप यहोवा के प्रेम से आकर्षित होंगे, जिससे आप उसकी सेवा करना चाहेंगे। यहोवा के गवाह आपको यह बताने में खुश होंगे कि कैसे आप इस प्रेमी परमेश्वर को अपना जीवन समर्पित कर सकते हैं और उसके एक अनुग्रह–प्राप्त गवाह बन सकते हैं। (भजन संहिता १०४:३३; लूका ९:२३) हाँ, यह एक अनुग्रह है। जरा सोचिए! यहोवा का एक उपासक होकर, आप यहाँ पृथ्वी पर परादीस में अनन्त जीवन के लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं।—सपन्याह २:३; यशायाह २५:६, ८.
५७. (अ) नये रीति–रिवाज में, परमेश्वर और मनुष्यजाति के बीच कैसा घनिष्ट सम्बन्ध होगा? (ब) कुछेक आशीषें कैसी हैं जिसका आनन्द आप उठा सकते हैं?
५७ तब, अध्ययन करते रहिए और यहोवा परमेश्वर, उसके पुत्र, और धार्मिकता की स्वर्गीय सरकार के प्रति प्रेम और मूल्यांकन में बढ़ते रहिए। परमेश्वर की सरकार और मनुष्यजाति पर बौछार होने वाली आशीषों का वर्णन करते हुए, बाइबल की भविष्यद्वाणी बताती है: “देख! परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है, वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा।” “परमेश्वर आप,” जो इस समय के स्वार्थी, विनाश करने वाले मानव–शासन से बहुत ऊंचा है, उन सबके लिए एक दयालु पिता के रूप में बहुत निकट रहेगा, जो उस नये रीति–रिवाज में उससे प्रेम रखते हैं और उसकी उपासना करते हैं। निश्चय ही, वहाँ केवल एक धर्म, यहोवा परमेश्वर की सच्ची उपासना रहेगी, और उसके उपासक पिता के प्रति बच्चों के घनिष्ट सम्बन्ध का आनन्द उठाएंगे। वह स्वयं को कितना प्रेमी पिता शाबीत करेगा! “और वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी, पहली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.
५८. आप क्यों आश्वासित हो सकते हैं कि यहोवा ‘सब कुछ नया कर’ देगा?
५८ इस प्रकार एक सिद्ध स्वर्गीय सरकार के अधीन एक परादीसीय पृथ्वी को स्थापित करने का महान आश्चर्य–कर्म पूरा किया जायगा। यह इस तथ्य के समान निश्चित है कि कल सूर्य उदय होगा और सूर्यास्त होगा। क्योंकि स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्त्ता, यहोवा परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं, हमेशा “विश्वास के योग्य और सत्य” रही हैं। यह वही है जो स्वर्ग में अपने सिंहासन से यह घोषणा करता है कि: “देख! मैं सब कुछ नया कर देता हूँ।”—प्रकाशितवाक्य २१:५.
इस पुस्तिका का समालोचन करते हुए, कैसे आप निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देंगे?
किन तरीकों से बाइबल असाधारण है?
परमेश्वर के बारे में आपने क्या सीखा?
यीशु मसीह कौन है?
शैतान इब्लीस कौन है?
क्यों परमेश्वर ने दुष्टता को अनुमति दी है?
मनुष्य क्यों मरता है?
मृतकों की स्थिति क्या है?
छुड़ौती क्या है?
कहाँ और कैसे पुनरुत्थान होगा?
राज्य क्या है, और यह क्या पूरा करेगा?
“इस रीति–रिवाज के अन्त” का “चिन्ह” क्या है?
परादीस में अनन्त जीवन पाने के लिए आप कैसे तैयारी कर सकते हैं?
[फुटनोट]
a ऊपर के परिच्छेदों के समर्थन में बाइबल के सन्दर्भ: (१) प्रेरितों के काम १७:२६; भजन संहिता ४६:९; मीका ४:३, ४; यशायाह ६५:२१-२३; (२) यशायाह ६५:२५; ११:६-९; ५५:१२, १३; भजन संहिता ६७:६, ७; (३) अय्यूब ३३:२५; यशायाह ३५:५, ६; ३३:२४; भजन संहिता १०४:२४; (४) यशायाह ५५:११.
b यदि अन्य प्रकार से संकेत नहीं किया गया है, इस पत्रिका में उद्धृत पदस्थल आधुनिक भाषा के न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन ऑफ दि होली स्क्रिपचर्स, १९८४ संस्करण से लिये गये हैं।
c मोनआर्कस् ॲन्ड टुम्बस् ॲन्ड पीपल्स्—द डॉन ऑफ द ओरिएन्ट, पृष्ठ २५.
d जे. मेक्लिनटोक और जे. स्ट्रोंग द्वारा सायक्लोपीडीया ऑफ बिलिकल, थियोलॉजिकल, ॲन्ड एकक्लीसीएस्टीकल लिट्रेएचर, वोल्यूम ८, पृष्ठ ९०८.
[पेज 13 पर तसवीरें]
एक सृष्टि के रूप में, मनुष्य पशुओं से अधिक श्रेष्ठ है
[पेज 18 पर तसवीर]
यीशु सिद्ध मनुष्य आदाम के तुल्य था