सोलहवाँ अध्याय
संघर्ष करनेवाले राजाओं का अंत करीब
1, 2. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उत्तर के राजा की पहचान कैसे बदल गई?
सन् 1835 में अमरीका और रूस के राजनैतिक माहौल के बारे में बताते हुए फ्राँस के दार्शनिक और इतिहासकार अलेक्सिस दे टॉकविल ने लिखा था: “एक आज़ादी देने के नाम पर हुकूमत करता है तो दूसरा तानाशाह बनकर हुकूमत करता है। उनके . . . रास्ते एकदम अलग-अलग हैं; फिर भी किसी अदृश्य शक्ति ने उनके नाम यह लिख दिया है कि वही एक दिन आधी दुनिया की तकदीर लिखेंगे।” दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह बात किस हद तक सच साबित हुई? इतिहासकार जे. एम. रॉबर्टस् लिखते हैं: “दूसरे विश्वयुद्ध के आखिर में इस बात पर और भी यकीन होता जा रहा था कि इस पूरी दुनिया का भविष्य सचमुच दो बड़ी और एकदम अलग-अलग किस्म की शक्तियों के हाथों में आ गया है। एक शक्ति थी उस वक्त का रूस और दूसरी अमरीका।”
2 दोनों ही विश्वयुद्धों में जर्मनी उत्तर का राजा था और वह दक्खिन के राजा, यानी ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन साबित हुआ। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी उत्तर का राजा नहीं रहा और वह दो भागों में बँट गया। पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी। पश्चिमी जर्मनी, दक्खिन के राजा ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति का मित्र-राष्ट्र बन गया, लेकिन पूर्वी जर्मनी पूर्वी यूरोप के उन देशों का साथी बन गया जिन पर कम्युनिस्ट पार्टियों का शासन था। पूर्वी यूरोप के इन सभी देशों के गुट को कम्युनिस्ट ब्लॉक कहा जाता है जिसका मुखिया सोवियत संघ था। अब यही कम्युनिस्ट ब्लॉक उत्तर का राजा था, यह पहले की तरह एक देश नहीं था बल्कि कई देशों से बना एक गुट था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया दो खेमों में बँट चुकी थी, एक तरफ दक्खिन का राजा था यानी ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति और उनके साथ पश्चिमी यूरोप के देश और दूसरी तरफ उत्तर का राजा यानी कम्युनिस्ट ब्लॉक जिसमें सोवियत संघ के साथ पूर्वी यूरोप के दूसरे देश थे। और इन दोनों राजाओं के बीच जो टकराव या संघर्ष हुआ उसे शीत युद्ध (या, कोल्ड वार) कहा जाता है। यह शीत युद्ध सन् 1948 से सन् 1989 तक चला। इससे पहले हमने देखा था कि उत्तर का राजा जर्मनी “पवित्र वाचा के विरुद्ध” था। (दानिय्येल 11:28, 30) लेकिन अब सवाल यह था कि उत्तर का नया राजा, कम्युनिस्ट ब्लॉक पवित्र वाचा के साथ कैसा बर्ताव करेगा?
सच्चे मसीही दुःख तो उठाते हैं मगर बड़े काम करते हैं
3, 4. ‘दुष्ट होकर वाचा को तोड़नेवाले लोग’ कौन हैं और उत्तर के राजा के साथ उनका क्या रिश्ता रहा है?
3 परमेश्वर के स्वर्गदूत ने कहा, “और जो लोग दुष्ट होकर उस वाचा को तोड़ेंगे, उनको वह [उत्तर का राजा] चिकनी-चुपड़ी बातें कह कहकर भक्तिहीन कर देगा।” स्वर्गदूत ने आगे कहा: “परन्तु जो लोग अपने परमेश्वर का ज्ञान रखेंगे, वे हियाव बान्धकर बड़े काम करेंगे। और लोगों के सिखानेवाले बुद्धिमान जन बहुतों को समझाएंगे, तौभी वे बहुत दिन तक तलवार से छिदकर और आग में जलकर, और बंधुए होकर और लुटकर, बड़े दुःख में पड़े रहेंगे।”—दानिय्येल 11:32, 33.
4 ‘दुष्ट होकर वाचा को तोड़नेवाले लोग’ ईसाईजगत के पादरियों को छोड़ और कौन हो सकते हैं? वे खुद को ईसाई कहते हैं जिसका मतलब है ईसा यानी यीशु को माननेवाले, लेकिन उन्होंने अपनी करतूतों से यीशु के नाम को बदनाम किया है और वे सच्ची मसीहियत के नाम पर कलंक हैं। अपनी किताब सोवियत संघ में धर्म (अंग्रेज़ी) में वॉल्टर कोलार्ज़ कहते हैं: “[दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान] सोवियत संघ सरकार ने पूरी कोशिश की कि मातृभूमि की रक्षा करने के लिए चर्च अपनी धन-संपत्ति और सहयोग दे।” उत्तर का नया राजा तानाशाह और नास्तिक था। आम जनता को काबू में रखने के लिए उसे तो बस ऐसा धर्म चाहिए था जिस पर सिर्फ उसी की हुकूमत हो और जो बस देश की सरकार के लिए ही काम करे। ईसाईजगत के पादरियों ने खुद को इस काम के लिए पेश किया। विश्वयुद्ध खत्म हो जाने के बाद भी चर्च के पादरियों की यही कोशिश रही कि राजनीति और धर्म की इस दोस्ती को कायम रखा जाए। इस वज़ह से ईसाईजगत पहले से भी ज़्यादा इस संसार का भाग बन गया। यहोवा की नज़रों में क्या ही घृणित धर्मत्याग!—यूहन्ना 17:16; याकूब 4:4.
5, 6. ‘अपने परमेश्वर का ज्ञान रखनेवाले’ लोग कौन थे और उत्तर के राजा के राज में उनके साथ क्या हुआ और उन्होंने क्या किया?
5 लेकिन ‘अपने परमेश्वर का ज्ञान रखनेवाले’ और ‘बुद्धिमान’ सच्चे मसीहियों ने क्या किया? वे उत्तर के राजा के देश में रहते तो थे और “प्रधान अधिकारियों” के अधीन भी थे लेकिन वे कभी-भी इस संसार का भाग नहीं बने। (रोमियों 13:1; यूहन्ना 18:36) उन्होंने ईमानदारी से “जो कैसर का है, वह कैसर को” दिया लेकिन उससे भी बढ़कर उन्होंने “जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को” देना कभी नहीं छोड़ा। (मत्ती 22:21) और इसी वज़ह से उनके ईमान की परीक्षा हुई।—2 तीमुथियुस 3:12.
6 इस परीक्षा से सच्चे मसीही ‘दुःख में पड़े’ और उन्होंने ‘बड़े काम भी किए’। वे दुःख में इसलिए पड़े क्योंकि उन्हें बहुत बुरी तरह सताया गया था, यहाँ तक कि उनमें से कुछ को मार डाला गया। लेकिन, इतनी कड़ी परीक्षा में भी उनमें से ज़्यादातर लोग आखिर तक परमेश्वर के वफादार बने रहे, इस तरह उन्होंने ‘बड़े काम किए।’ जी हाँ, जैसे यीशु ने इस संसार को जीत लिया था वैसे ही इन वफादार मसीहियों ने भी इस संसार पर जय पायी। (यूहन्ना 16:33) इतना ही नहीं, उन्होंने इस दौरान कभी-भी प्रचार करना नहीं छोड़ा भले ही वे कैद में थे या यातना शिविरों में। वे जहाँ भी गए उन्होंने ‘बहुतों को यह समझाया’ कि सच्चाई क्या है। उत्तर के राजा के ज़्यादातर देशों में सताए जाने के बावजूद यहोवा के साक्षियों की गिनती बढ़ गयी। इन ‘बुद्धिमान जनों’ की बदौलत इन देशों में से लगातार बढ़ती जा रही एक ‘बड़ी भीड़’ निकलकर सामने आयी है।—प्रकाशितवाक्य 7:9-14.
यहोवा के लोग शुद्ध किए जाते हैं
7. उत्तर के राजा की हुकूमत में रहनेवाले अभिषिक्त मसीहियों को कैसे ‘थोड़ी-सी सहायता मिली’?
7 स्वर्गदूत ने कहा: “जब यह संकट आएगा तब उनको [परमेश्वर के लोगों को] थोड़ी-सी सहायता तो मिलेगी।” (दानिय्येल 11:34क, NHT) जब दूसरे विश्वयुद्ध में दक्खिन के राजा की जीत हुई तो उससे उत्तर के राजा यानी हिटलर के थर्ड राइख की हुकूमत में रहनेवाले परमेश्वर के लोगों को दुःख-तकलीफों से कुछ राहत मिली और यही वह ‘थोड़ी-सी सहायता’ थी जिसके बारे में भविष्यवाणी में कहा गया था। (प्रकाशितवाक्य 12:15, 16 से तुलना कीजिए।) और जिन लोगों को उत्तर के अगले राजा, कम्युनिस्ट ब्लॉक ने सताया उन्हें भी इसी तरह समय-समय पर राहत मिलती रही। क्योंकि जैसे-जैसे शीत युद्ध खत्म होता गया वैसे-वैसे बहुत से राजनेताओं को यह समझ आ गया कि ये वफादार मसीही उनके लिए खतरा नहीं हैं इसलिए उन्होंने उनके काम को कानूनी तौर पर मान्यता दे दी। इसके अलावा, लगातार बढ़ती ‘बड़ी भीड़’ के लोगों ने भी इन वफादार मसीहियों की बहुत मदद की। उन्होंने न सिर्फ परमेश्वर के राज्य के बारे में अभिषिक्त मसीहियों के सुसमाचार को माना बल्कि उनके काम में उनकी मदद भी की।—मत्ती 25:34-40.
8. कैसे कुछ लोग “चिकनी-चुपड़ी बातें कह कहकर” परमेश्वर के लोगों के बीच चुपके से घुस आए थे?
8 शीत युद्ध के सालों के दौरान कई लोगों ने यह दिखाया कि वे परमेश्वर की सेवा करना चाहते हैं। मगर ऐसे हर इंसान के इरादे नेक नहीं थे। क्योंकि स्वर्गदूत ने चेतावनी दी थी: “बहुत से लोग चिकनी-चुपड़ी बातें कह कहकर उन से मिल जाएंगे।” (दानिय्येल 11:34ख) इन सालों में ऐसे बहुत-से लोग आए जिन्होंने सच्चाई में दिलचस्पी तो दिखाई, लेकिन जब परमेश्वर को समर्पण करने की बात आयी तो वे पीछे हट गए। दूसरी तरफ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने बहुत जल्द सच्चाई को स्वीकार कर लिया लेकिन असल में वे सरकार के जासूस थे। एक देश से ऐसी रिपोर्ट आयी: “इनमें से कई पाखंडी और बेईमान लोग, दरअसल कट्टर कम्युनिस्ट थे और प्रभु की कलीसिया में चुपके से घुस आए थे। उन्होंने परमेश्वर के काम के लिए बेहद जोश दिखाने का नाटक किया और इनमें से कुछ लोगों को तो संगठन में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी सौंपी गयी थीं।”
9. भेदियों की वज़ह से कुछ वफादार मसीही ‘गिरे,’ यहोवा ने ऐसा किस लिए होने दिया?
9 स्वर्गदूत आगे कहता है: “सिखानेवालों में से कितने गिरेंगे, और इसलिये गिरने पाएंगे कि जांचे जाएं, और निर्मल और उजले किए जाएं। यह दशा अन्त के समय तक बनी रहेगी, क्योंकि इन सब बातों का अन्त नियत समय में होनेवाला है।” (दानिय्येल 11:35) इन भेदियों ने कुछ वफादार भाइयों के साथ विश्वासघात करके उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। लेकिन ऐसा क्यों हुआ? यहोवा ने यह सब इसलिए होने दिया ताकि उसके लोग परखे जाएँ और शुद्ध हों। जैसे यीशु ने “दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी” वैसे ही इन वफादार भाइयों ने विश्वास की परीक्षाओं से गुज़रकर धीरज धरना सीखा। (इब्रानियों 5:8; याकूब 1:2, 3. मलाकी 3:3 से तुलना कीजिए।) इस तरह इन मसीहियों को ‘जांचा गया, उन्हें निर्मल और उजला’ किया गया।
10. दानिय्येल 11:35 में बताए गए “अन्त के समय तक” का क्या मतलब है?
10 आयत कहती है कि यहोवा के लोगों को ‘अन्त के समय तक’ गिरते और शुद्ध होते रहना था। बेशक, परमेश्वर के लोग जानते हैं कि उन्हें इस दुष्ट दुनिया के अंत तक सताया जाएगा। लेकिन, यहाँ जिस अरामी शब्द का अनुवाद “तक” किया गया है, वही शब्द दानिय्येल 7:25 के अरामी पाठ में इस्तेमाल हुआ है और उसका मतलब है, “के दौरान” या “के लिए।” इसलिए दानिय्येल 11:35 में बताए गए “अन्त के समय” का मतलब इसी ‘नियत समय’ का अंत है। यह कुल मिलाकर उतना समय था जितना परमेश्वर ने अपने लोगों के जांचे जाने और शुद्ध किए जाने के लिए ठहराया था। इस दौरान उन्होंने उत्तर के राजा के ज़ुल्म सहते हुए भी धीरज धरा और शुद्ध किए गए। परमेश्वर के लोगों का यह गिरना या ठोकर खाना यहोवा के ठहराए हुए इस नियत समय के बाद खत्म हो गया।
वह राजा खुद को बड़ा ठहराता है
11. उत्तर का राजा, सारे विश्वमंडल पर यहोवा की हुकूमत को किस नज़र से देखता है, इसके बारे में स्वर्गदूत ने क्या बताया?
11 उत्तर के राजा के बारे में स्वर्गदूत आगे बताता है: “तब वह राजा अपनी इच्छा के अनुसार काम करेगा, और अपने आप को सारे देवताओं से ऊंचा और बड़ा ठहराएगा; वरन [सारे विश्वमंडल पर यहोवा की हुकूमत को मानने से इनकार करते हुए] सब देवताओं के परमेश्वर के विरुद्ध भी अनोखी बातें कहेगा। और जब तक परमेश्वर का क्रोध न हो जाए तब तक उस राजा का कार्य सफल होता रहेगा; क्योंकि जो कुछ निश्चय करके ठना हुआ है वह अवश्य ही पूरा होनेवाला है। वह अपने पुरखाओं के देवताओं की चिन्ता न करेगा, न स्त्रियों की प्रीति की कुछ चिन्ता करेगा और न किसी देवता की; क्योंकि वह अपने आप ही को सभों के ऊपर बड़ा ठहराएगा।”—दानिय्येल 11:36, 37.
12, 13. (क) किस तरह उत्तर के राजा ने “अपने पुरखाओं के देवताओं” को ठुकरा दिया? (ख) वे ‘स्त्रियाँ’ क्या हैं जिनकी “प्रीति” पर उत्तर के राजा ने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया? (ग) उत्तर के राजा ने किस “देवता” को सम्मान दिया?
12 जैसा भविष्यवाणी में कहा गया था वैसा ही हुआ। उत्तर के इस नए राजा, कम्युनिस्ट बलॉक ने पहले के उत्तर के राजाओं यानी “अपने पुरखाओं के देवताओं” को, जैसे कि ईसाईजगत के त्रिएक ईश्वर को ठुकरा दिया। इस कम्युनिस्ट ब्लॉक ने तो सीधे-सीधे नास्तिकवाद को बढ़ावा दिया। ऐसा करके, उत्तर के राजा ने खुद अपनी पूजा करवायी और इस तरह उसने ‘अपने आप ही को सभों के ऊपर बड़ा ठहराया।’ इस राजा ने “स्त्रियों की प्रीति” यानी स्त्रियों की तरह उसके अधीन देशों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। मिसाल के तौर पर, इस राजा ने उत्तरी वियतनाम देश को अपने फायदे के लिए एक नौकरानी की तरह इस्तेमाल तो किया, मगर उसने अपने राज में सिर्फ “अपनी इच्छा के अनुसार काम” किया।
13 आगे भविष्यवाणी करते हुए स्वर्गदूत कहता है: “वह अपने राजपद पर स्थिर रहकर दृढ़ गढ़ों ही के देवता का सम्मान करेगा, एक ऐसे देवता का जिसे उसके पुरखा भी न जानते थे, वह सोना, चान्दी, मणि और मनभावनी वस्तुएं चढ़ाकर उसका सम्मान करेगा।” (दानिय्येल 11:38) वाकई, उत्तर के इस राजा ने अपना भरोसा ‘दृढ़ गढ़ों के देवता’ यानी अपनी फौजों पर रखा जो वैज्ञानिक तकनीक से बने नए-से-नए हथियारों से लैस हैं। उसे पूरा भरोसा था कि यही “देवता” या उसकी सैन्य-व्यवस्था उसका उद्धार कराएगी इसलिए उसने इस देवता की वेदी पर धन के अंबार चढ़ाए। उसने अपनी इस सैन्य-व्यवस्था को बढ़ाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया।
14. किस तरह उत्तर का राजा ‘लड़ा’ और कामयाब रहा?
14 “उस बिराने देवता के सहारे से वह अति दृढ़ गढ़ों से लड़ेगा, और जो कोई उसको माने उसे वह बड़ी प्रतिष्ठा देगा। ऐसे लोगों को वह बहुतों के ऊपर प्रभुता देगा, और अपने लाभ के लिए अपने देश की भूमि को बांट देगा।” (दानिय्येल 11:39) उत्तर का राजा इस “बिराने देवता” यानी अपनी सैन्य-व्यवस्था के सहारे ‘लड़ा’ और कामयाब रहा। इसी की वज़ह से वह इन “अन्तिम दिनों” में बहुत बड़ी फौजी ताकत बन गया। (2 तीमुथियुस 3:1) जो देश इस राजा के विचारों से सहमत हुए उन्हें इसने इनाम के तौर पर न सिर्फ राजनैतिक सहायता दी, बल्कि धन-दौलत भी दी यहाँ तक कि वक्त पड़ने पर अपनी फौजें भेजकर उनकी मदद भी की।
अंत के समय में ‘सींग मारना’
15. किस तरह से दक्खिन के राजा ने उत्तर के राजा को ‘सींग मारे’?
15 स्वर्गदूत ने दानिय्येल को बताया: “अन्त के समय दक्खिन देश का राजा उसको सींग मारने लगेगा।” (दानिय्येल 11:40क) क्या “अन्त के समय” के दौरान दक्खिन के राजा ने उत्तर के राजा को ‘सींग मारे’ हैं? (दानिय्येल 12:4, 9) जी हाँ। जब पहला विश्वयुद्ध खत्म हुआ था तब दक्खिन के राजा ने उस वक्त के उत्तर के राजा, जर्मनी को सज़ा देने के लिए उस पर ज़बरदस्ती एक सख्त शांति संधि थोपी जो ‘सींग मारकर’ उसे भड़काने के बराबर थी। और जब दक्खिन के राजा ने दूसरा विश्वयुद्ध जीता तब उसने अपने खतरनाक परमाणु हथियार खड़े किए जिनका निशाना उत्तर के राजा की तरफ ही था। इतना ही नहीं, उसने उत्तर के राजा के खिलाफ कई देशों को मिलाकर एक शक्तिशाली सैनिक गुट भी बनाया जिसे उत्तरी एटलांटिक संधि संगठन (नाटो) कहा जाता है। नाटो के काम के बारे में ब्रिटेन के एक इतिहासकार ने कहा: “इसका सबसे बड़ा मकसद सोवियत संघ (या USSR) को ‘काबू’ में रखना था, जिसे यूरोप की शांति का सबसे बड़ा दुश्मन समझा गया है। NATO ने 40 साल तक काम किया और इसे जिस मकसद से बनाया गया था उसमें इसे कामयाबी मिली।” साल-दर-साल जैसे-जैसे शीत युद्ध जारी रहा, दक्खिन के राजा ने ‘सींग मारना’ जारी रखा। उसने उत्तर के राजा की जासूसी करने के लिए नए-से-नए वैज्ञानिक यंत्रों और तकनीकों का इस्तेमाल किया। उसके खिलाफ सियासी चालें चलीं और फौजी कार्यवाही की।
16. दक्खिन के राजा ने जब उसे सींग मारे, तब उत्तर के राजा ने क्या किया?
16 इस पर उत्तर के राजा ने क्या किया? “उत्तर देश का राजा उस पर बवण्डर की नाईं बहुत से रथ-सवार और जहाज़ लेकर चढ़ाई करेगा; इस रीति से वह बहुत से देशों में फैल जाएगा, और उन में से निकल जाएगा।” (दानिय्येल 11:40ख) इतिहास इस बात का गवाह है कि इन अन्तिम दिनों में उत्तर के राजा ने कैसे अपनी सीमाओं को बढ़ाया है। दूसरे विश्वयुद्ध में नाज़ी “राजा” अपने देश की सीमाओं से निकलकर पास-पड़ोस के देशों की सीमाओं में फैल गया। दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने पर उत्तर के अगले “राजा” यानी कम्युनिस्ट ब्लॉक ने एक बड़ा और शक्तिशाली साम्राज्य खड़ा किया। शीत युद्ध के दौरान उत्तर के राजा ने अपने दुश्मन, दक्खिन के राजा से दूसरे देशों की मदद करने के नाम पर लड़ाई लड़ी। उसने दक्खिन के राजा के उपनिवेशों, जैसे अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमरीका में होनेवाली क्रांतियों को भी बहुत बढ़ावा दिया। और उसके सैनिक हमलों और सियासी चालों से कई देशों पर उसका अधिकार हो गया। उसने सच्चे मसीहियों को भी सताया। उसने उनके काम में रुकावट तो डाली मगर वह उन्हें रोक नहीं पाया। उस स्वर्गदूत ने ठीक यही भविष्यवाणी की थी: “वह शिरोमणि देश [यहोवा के लोगों के आत्मिक देश] में भी आएगा। और बहुत से देश उजड़ जाएंगे।”—दानिय्येल 11:41क.
17. उत्तर का राजा अपना साम्राज्य बढ़ाने में कहाँ-कहाँ कामयाब नहीं हो सका?
17 इस सबके बावजूद उत्तर का राजा पूरी दुनिया पर कब्ज़ा नहीं कर सका। क्योंकि जैसा उस स्वर्गदूत ने कहा था: “एदोमी, मोआबी और मुख्य मुख्य अम्मोनी आदि जातियों के देश उसके हाथ से बच जाएंगे।” (दानिय्येल 11:41ख) पुराने ज़माने में एदोम, मोआब, और अम्मोन के देश, दक्खिन के पुराने राजा मिस्र और उत्तर के पुराने राजा सीरिया के इलाकों के बीच में थे। ये सभी देश, हमारे ज़माने के ऐसे देश और संगठन हैं जिनको उत्तर के राजा ने अपना निशाना तो बनाया मगर उन्हें अपने अधीन करने में कामयाब न हो सका।
मिस्र नहीं बचता
18, 19. किस तरह दक्खिन के राजा ने अपने दुश्मन का दबदबा महसूस किया?
18 यहोवा का दूत आगे बताता है: “वह [उत्तर का राजा] कई देशों पर हाथ बढ़ाएगा और मिस्र देश भी न बचेगा। वह मिस्र के सोने चान्दी के खज़ानों और सब मनभावनी वस्तुओं का स्वामी हो जाएगा; और लूबी और कूशी लोग भी उसके पीछे हो लेंगे।” (दानिय्येल 11:42, 43) हमारे ज़माने के दक्खिन के राजा ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति ने, पुराने ज़माने के दक्खिन के राजा मिस्र की जगह ले ली है, इसलिए यह आयत उसी पर लागू होती है। इस आयत के मुताबिक हमारे ज़माने का दक्खिन का राजा, ब्रिटेन-अमरीकी विश्वशक्ति भी उत्तर के राजा की सरहदें बढ़ाने की नीतियों से नहीं बच पाता। मिसाल के तौर पर, उत्तर के राजा की मदद से वियतनाम की जनता, दक्खिन के राजा के खिलाफ लड़ी और उसे बहुत बुरी तरह हराया। लेकिन ‘लूबी और कूशियों’ के बारे में क्या? लिबिया और कूश (या, इथियोपिया) देश प्राचीन मिस्र के पड़ोसी देश थे। इसलिए ये वो देश हैं जो आज के “मिस्र” (दक्खिन देश के राजा) के पड़ोसी देश हैं। कई बार ये भी उत्तर के राजा के ‘पीछे हो लिए हैं’ या उसी के नक्शे-कदम पर चले हैं।
19 क्या उत्तर का राजा ‘मिस्र के सोने-चान्दी के खज़ाने’ का भी स्वामी हो गया था? जी हाँ, दक्खिन के राजा ने अपनी धन-दौलत को जिस तरीके से इस्तेमाल किया, उससे यह बात सच साबित होती है। मिसाल के तौर पर, अपने दुश्मन उत्तर के राजा के डर से दक्खिन के राजा ने अपनी थलसेना, नौसेना और वायुसेना को बहुत शक्तिशाली बनाने के लिए बेपनाह दौलत खर्च की है। इस मायने में, उत्तर के राजा ने दक्खिन के राजा की धन-दौलत पर अधिकार चलाया या उसका ‘स्वामी हो’ गया।
आखिरी हमला
20. उत्तर के राजा के आखिरी हमले के बारे में स्वर्गदूत क्या बताता है?
20 उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा का आपसी संघर्ष, चाहे फौजों से, धन-दौलत से या और किसी भी तरीके से क्यों न रहा हो, अब अपने अन्त की तरफ बढ़ रहा है। अब आगे इस संघर्ष में क्या होनेवाला है, इसके बारे में जानकारी देते हुए यहोवा का स्वर्गदूत कहता है: “उसी समय वह [उत्तर का राजा] पूरब और उत्तर दिशाओं से समाचार सुनकर घबराएगा, और बड़े क्रोध में आकर बहुतों को सत्यानाश करने के लिए निकलेगा। और वह . . . [“समुद्र और शिरोमणि पवित्र पर्वत के बीच,” NHT] अपना राजकीय तम्बू खड़ा कराएगा; इतना करने पर भी उसका अन्त आ जाएगा, और कोई उसका सहायक न रहेगा।”—दानिय्येल 11:44, 45.
21. उत्तर के राजा के बारे में अभी और क्या जानना बाकी है?
21 उत्तर के राजा कम्युनिस्ट ब्लॉक का मुखिया, सोवियत संघ दिसंबर 1991 में टुकड़े-टुकड़े हो गया। इससे उत्तर के राजा के अस्तित्व को भारी नुकसान पहुँचा। तो जब दानिय्येल 11:44, 45 की पूर्ति होगी तब उत्तर के राजा की जगह कौन होगा? क्या भूतपूर्व सोवियत संघ का ही कोई देश उत्तर के राजा की जगह ले लेगा? या जैसा पहले भी कई बार हुआ है, क्या इसका रूप और पहचान पूरी तरह से बदल जाएगी? आज नए-नए देश परमाणु हथियार बनाने लगे हैं, तो क्या इस वज़ह से हथियारों की एक नयी होड़ शुरू हो जाएगी और क्या इससे उत्तर का कोई नया राजा उभरकर सामने आएगा? सिर्फ आनेवाला वक्त ही इन सारे सवालों का जवाब दे पाएगा। समझदारी इसी में है कि हम इस मामले में अपनी अटकलें ना लगाएँ। जब उत्तर का राजा आखिरी बार हमला करेगा, तब बाइबल की सही समझ रखनेवाले लोग, बिलकुल साफ तरीके से इन आयतों की पूर्ति होते हुए देख पाएँगे।—पेज 284 पर “दानिय्येल के 11 अध्याय के राजा” देखिए।
22. उत्तर के राजा के आखिरी हमले के बारे में कौन-से सवाल खड़े होते हैं?
22 लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि उत्तर का राजा जल्द ही क्या करनेवाला है। “पूरब और उत्तर दिशाओं से” समाचार सुनकर वह “बहुतों को सत्यानाश करने के लिए” हमला करेगा। यह हमला खासकर किसके खिलाफ होगा? और वह “समाचार” क्या है जो उत्तर के राजा को हमला करने के लिए भड़काता है?
समाचार सुनकर भड़कता है
23. (क) हरमगिदोन से पहले कौन-सी एक बड़ी घटना होना ज़रूरी है? (ख) ‘पूर्व दिशा के राजा’ कौन हैं?
23 दानिय्येल 11:44, 45 का मतलब समझने के लिए, आइए ज़रा ध्यान दें कि प्रकाशितवाक्य की किताब, ‘बड़े बाबुल’ या झूठे धर्म के नाश के बारे में क्या बताती है, जो पूरी दुनिया में एक साम्राज्य की तरह फैला हुआ है। यह सच्ची उपासना का बहुत बड़ा दुश्मन रहा है। लेकिन “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई,” यानी हरमगिदोन से पहले ही इसे पूरी तरह से “आग में भस्म कर” दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16; 18:2-8) बड़े बाबुल को दंड देने के लिए परमेश्वर के कोप का छठा कटोरा इसके पानियों पर या फरात महानद पर उंडेल दिया जाता है, जिससे वह सूख जाता है। यह पानी दुनिया भर में फैले वे लोग हैं जो झूठे धर्म के अनुयायी हैं और जिनके दम पर यह चलता है। प्राचीन बाबुल में, जैसे फरात का पानी सूखने से कुस्रू के आने का रास्ता तैयार हुआ था, ठीक वैसे ही बड़े बाबुल के पानी को सुखाया जाता है ताकि ‘पूर्व दिशा के राजाओं के लिये मार्ग तैयार किया जा सके।’ (प्रकाशितवाक्य 16:12) ये पूर्व दिशा से आनेवाले राजा कौन हैं? ये कोई और नहीं, बल्कि यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह हैं!—यशायाह 41:2; 46:10, 11 से तुलना कीजिए।
24. यहोवा क्या काम करेगा, जिससे शायद उत्तर का राजा घबरा जाएगा?
24 बड़े बाबुल का नाश कैसे होगा इसके बारे में प्रकाशितवाक्य की किताब में बेहतरीन ढंग से बयान किया गया है, इसमें कहा है: “जो दस सींग [अन्त के समय में राज करनेवाले राजा] तू ने देखे, वे और पशु [संयुक्त राष्ट्र संघ] उस वेश्या से बैर रखेंगे, और उसे लाचार और नङ्गी कर देंगे; और उसका मांस खा जाएंगे, और उसे आग में जला देंगे।” (प्रकाशितवाक्य 17:16) लेकिन ये राजा बड़े बाबुल को भला क्यों नाश करने लगे? क्योंकि परमेश्वर उनसे ऐसा करवाएगा। “परमेश्वर उन के मन में यह डालेगा, कि वे उस की मनसा पूरी करें।” (प्रकाशितवाक्य 17:17) इस आयत में बताए गए राजाओं में उत्तर का राजा भी होगा। दानिय्येल 11:44, 45 के मुताबिक, उत्तर का राजा ‘पूरब दिशा’ से जो सुनता है, वह शायद यहोवा का यही काम है जब वह वेश्या जैसे चरित्रहीन झूठे धर्म का सत्यानाश करने की बात इस दुनिया के राजाओं के मन में डालता है।
25. (क) उत्तर का राजा खासकर किसे अपना निशाना बनाता है? (ख) उत्तर का राजा “अपना राजकीय तम्बू” कहाँ खड़ा करता है?
25 लेकिन उत्तर के राजा का तो एक खास निशाना है, जिसे वह हमला करके मिटा देना चाहता है। स्वर्गदूत कहता है: वह ‘समुद्र और शिरोमणि पवित्र पर्वत के बीच, अपना राजकीय तम्बू खड़ा कराएगा।’ यह भविष्यवाणी तब पूरी होगी जब उत्तर का राजा जलजलाहट से भरकर परमेश्वर के लोगों पर आखिरी बार हमला करेगा। ऐसा क्यों कहा जा सकता है, आइए देखें। दानिय्येल के दिनों में समुद्र, भूमध्यसागर था और पवित्र शिरोमणि पर्वत सिय्योन था, जिस पर पहले यहोवा का मंदिर था। बाइबल के मुताबिक समुद्र का मतलब है, वह सारी मानवजाति जो परमेश्वर से अलग हो गई है। और सिय्योन वह स्वर्गीय पवित्र पर्वत है जिस पर यीशु मसीह के साथ उसके अभिषिक्त जन राज करेंगे। ये अभिषिक्त जन परमेश्वर से दूर हो चुकी, “समुद्र” जैसी मानवजाति से निकलकर आए हैं और उन्हें यीशु मसीह के साथ स्वर्गीय सिय्योन पहाड़ पर राज्य करने की आशा है। इसलिए, ‘समुद्र और शिरोमणि पवित्र पर्वत के बीच’ की जगह, इस पृथ्वी पर बचे हुए यहोवा परमेश्वर के अभिषिक्त सेवकों का आध्यात्मिक देश है और यही आध्यात्मिक देश उत्तर के राजा के हमले का खास निशाना बननेवाला है।—यशायाह 57:20; इब्रानियों 12:22; प्रकाशितवाक्य 14:1.
26. जैसा यहेजकेल की भविष्यवाणी में बताया गया है, ‘उत्तर दिशा से’ आनेवाला समाचार किसकी तरफ से हो सकता है?
26 दानिय्येल के दिनों के ही एक और भविष्यवक्ता यहेजकेल ने भी भविष्यवाणी की थी कि “अन्त के दिनों में” परमेश्वर के लोगों पर एक आक्रमण होगा। उसने बताया था कि गोग देश का मागोग यानी शैतान इब्लीस ही परमेश्वर के लोगों के खिलाफ नफरत भड़काकर हमला करवाएगा। (यहेजकेल 38:14, 16) गोग किस दिशा से हमला करने आता है? यहोवा ने यहेजकेल के ज़रिए बताया कि गोग लाक्षणिक रूप से “उत्तर दिशा के दूर दूर स्थानों से” आएगा। (यहेजकेल 38:15) चाहे यह आक्रमण कितना ही भयानक क्यों न हो, यहोवा के लोग नाश नहीं होंगे। असल में यह यहोवा का एक नपा-तुला पैंतरा होगा जिससे वह गोग की फौजों का नाश करने के लिए उन्हें खींच लाएगा। इसलिए, यहोवा शैतान से कहता है: “मैं . . . तेरे जबड़ों में आंकड़े डालकर तुझे निकालूंगा।” “मैं तुझे घुमा ले आऊंगा, और उत्तर दिशा के दूर दूर देशों से चढ़ा ले आऊंगा, और इस्राएल के पहाड़ों पर पहुंचाऊंगा।” (यहेजकेल 38:4; 39:2) तो फिर, ‘उत्तर दिशा से’ आनेवाला वह समाचार जिससे उत्तर का राजा भड़क उठता है, यहोवा की तरफ से ही निकलेगा। मगर, “पूरब और उत्तर दिशाओं से” आनेवाले ये समाचार सचमुच में क्या होंगे यह सिर्फ यहोवा परमेश्वर ही तय करेगा और वक्त आने पर ही इनका पता चलेगा।
27. (क) गोग, उत्तर के राजा के साथ-साथ इस दुनिया के राजाओं को परमेश्वर के लोगों पर आक्रमण करने के लिए क्यों उकसाता है? (ख) गोग के हमले का अंजाम क्या होगा?
27 जब गोग देखता है कि ‘परमेश्वर का इस्राएल’ और उनके साथ ‘अन्य भेड़ों’ की एक “बड़ी भीड़” उसकी दुनिया का भाग नहीं हैं और खुशहाली में जी रहे हैं, तो वह उन्हें एक ही बार में पूरी तरह से खत्म करने की तैयारी करता है। (गलतियों 6:16; प्रकाशितवाक्य 7:9; यूहन्ना 10:16, NW; 17:15, 16; 1 यूहन्ना 5:19) जब वह देखता है कि ये लोग ‘जाति-जाति में से इकट्ठे हुए हैं, और [इनकी आध्यात्मिक] धन-सम्पत्ति’ बढ़ती जाती है तो ये लोग काँटे की तरह उसकी आँखों में खटकने लगते हैं। (यहेजकेल 38:12, NHT) गोग के लिए, मसीहियों का आध्यात्मिक देश “बिन शहरपनाह के गावों” जैसा है, जिस पर हमला करने का सही वक्त आ गया है। पूरी दुनिया पर उसकी हुकूमत के आड़े आनेवाले इन मुट्ठी-भर लोगों को अपने रास्ते से हटाने के लिए वह एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर उन पर हमला करता है। लेकिन वह चारों खाने चित्त गिरता है। (यहेजकेल 38:11, 18; 39:4) गोग के उकसावे में आकर, जब उत्तर के राजा के साथ-साथ इस दुनिया के राजा यहोवा के लोगों पर आक्रमण करेंगे तब ‘उनका अन्त आ जाएगा।’
‘उस राजा का अन्त आ जाएगा’
28. उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा का क्या अंजाम होगा, इस बारे में हम क्या जानते हैं?
28 उत्तर के राजा का आखिरी हमला, दक्खिन के राजा के खिलाफ नहीं होगा। इसलिए उत्तर के राजा का अन्त उसके दुश्मन यानी दक्खिन के राजा के हाथों नहीं होगा। इसी तरह दक्खिन के राजा का अन्त भी उत्तर के राजा के हाथों नहीं होगा। दक्खिन के राजा का नाश “किसी [इंसान] के हाथ से” नहीं होगा, बल्कि परमेश्वर का राज उसका नाश करेगा।a (दानिय्येल 8:25) दरअसल अरमगिदोन की लड़ाई में परमेश्वर का राज इस पृथ्वी के हर राजा को मिटा देगा और उत्तर के राजा का भी यही अंजाम होगा। (दानिय्येल 2:44) इस लड़ाई से पहले क्या-क्या होगा, इसी की जानकारी दानिय्येल 11:44, 45 में दी गयी है। इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि जब उत्तर के राजा का अन्त होगा तब “कोई उसका सहायक न रहेगा”!
[फुटनोट]
a इस किताब का 10 अध्याय देखिए।
आपने क्या समझा?
• दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उत्तर के राजा की पहचान कैसे बदल गई?
• आखिर में उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा का क्या अंजाम होगा?
• इन दो राजाओं के बीच संघर्ष के बारे में दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान देने से आपको कैसे लाभ हुआ है?
[पेज 284 पर चार्ट/तसवीरें]
दानिय्येल के 11 अध्याय के राजा
उत्तर दक्खिन
का राजा का राजा
दानिय्येल 11:5 सेल्युकस I निकेटोर टॉल्मी I
दानिय्येल 11:6 एन्टियोकस II टॉल्मी II
(पत्मी लाओदिस) (बेटी बरनिसी)
दानिय्येल 11:7-9 सेल्युकस II टॉल्मी III
दानिय्येल 11:10-12 एन्टियोकस III टॉल्मी IV
दानिय्येल 11:13-19 एन्टियोकस III टॉल्मी V
(बेटी क्लियोपेट्रा I) उत्तराधिकारी: टॉल्मी VI
उत्तराधिकारी:
सेल्युकस IV और
एन्टियोकस IV
दानिय्येल 11:20 औगूस्तुस
दानिय्येल 11:21-24 तिबिरियुस
दानिय्येल 11:27-30क जर्मन साम्राज्य ब्रिटेन, उसके बाद
(पहला विश्वयुद्ध) ब्रिटेन-अमरीकी
विश्वशक्ति
दानिय्येल 11:30ख, 31 हिटलर का थर्ड राइख ब्रिटेन-अमरीकी
(दूसरा विश्वयुद्ध) विश्वशक्ति
दानिय्येल 11:32-43 कम्युनिस्ट ब्लॉक ब्रिटेन-अमरीकी
(शीत युद्ध) विश्वशक्ति
दानिय्येल 11:44, 45 अभी उभरना बाकी हैb ब्रिटेन-अमरीकी
विश्वशक्ति
[फुटनोट]
b दानिय्येल के 11 अध्याय की भविष्यवाणी में अलग-अलग समय पर उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा की जगह लेनेवाली राजनैतिक हस्तियों के नाम नहीं बताए गए हैं। वे कौन हैं, यह हमें तब पता लगता है जब उनके बारे में की गयी भविष्यवाणियाँ पूरी होने लगती हैं। इसके अलावा, इन दोनों के बीच का संघर्ष अलग-अलग दौर में हुआ है, इसलिए ऐसा भी वक्त रहा है जब इन दोनों राजाओं के बीच कोई भी संघर्ष नहीं हुआ। यानी एक राजा की हुकूमत का बोलबाला रहता है पर दूसरा दबा रहता है।
[पेज 271 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]
[पेज 279 पर तसवीरें]
नए-नए यंत्रों से जासूसी करके और फौजी कार्यवाही करने की धमकी देकर, दक्खिन के राजा ने ‘सींग मारे’ हैं