गीत 51
याह से लिपटे रहो!
1. ज-हाँ का श-हं-शाह! इ-बा-दत के तू क़ा-बिल!
इं-साफ़ सच्-चा ते-रा, हर काम ते-रा है का-मिल!
ल-कीर है पत्-थर की य-हो-वा ते-री बात।
भ-रो-सा ह-में है तू छो-ड़े-गा ना साथ।
लिप-टे र-हें तुझ-से, क-रें से-वा दिन-रात।
2. ज-लाल ते-रा फै-ला है आस्-मा-नों से आ-गे
तू नूर से घि-रा, ते-री रौश-नी जग-म-गा-ए।
फिर भी है न-ज़र ते-री हम इं-सा-नों पे।
बु-ला-ए जब तू, तो नेक-दिल च-ले आ-ए।
लिप-टे र-हें तुझ-से, तू ही सच सि-खा-ए।
3. ऊँ-चे आ-स-मा-नों में भी तू ना स-मा-ए।
अ-सीम ते-री ता-क़त देख दुश्-मन थर-थरा-ए।
भर आ-ए ये दिल जब हम प्यार ते-रा दे-खें,
तुझ जै-सा श-हं-शाह मि-ले क-हाँ ह-में?
लिप-टे र-हें तुझ-से, सिज-दा तुझ-को क-रें।
(व्यव. 4:4; 30:20; 2 राजा 18:6; भज. 89:14 भी देखिए।)