गीत 52
दिल की हिफ़ाज़त कर
1. सँ-भा-ले रख-ना तू दिल को
द-ग़ा दे-ता है ये।
बिन लं-गर की कश्-ती जै-से
भट-के कि-ना-रे से।
बुद्-धि को तू ब-ना पत्-वार
हो इस-से दिल क़ा-बू।
क-रे-गा ख़ुश य-हो-वा को
सा-हिल भी पा-ए तू।
2. याह की शि-क्षा दिल में उ-तार
रख-ना ख़-याल तू ये,
तो दिल की मा-टी रख न-रम
दु-आ कर-के याह से।
नि-खर के तब व-फ़ा का रंग
जी-वन में आ-ए-गा।
क-सौ-टी भी तु-झे याह से
कर पा-ए ना जु-दा।
3. हि-फ़ा-ज़त कर-ना तू दिल की
बु-रे ख़-या-लों से,
श-हर-प-नाह दिल की ब-ना
भ-ली, सच बा-तों से।
छिप-ता न-हीं याह से कुछ भी
साफ़ तू मन को रख-ना।
स-दा कर तन-मन से से-वा
दो-स्त याह का तू बन-ना।
(भज. 34:1; फिलि. 4:8; 1 पत. 3:4 भी देखिए।)