हम यहोवा की जागीर हैं
“सुखी है वह राष्ट्र जिसका परमेश्वर यहोवा है, वे लोग जिनको उसने अपनी जागीर चुना है।”—भज. 33:12.
1. हम यह क्यों कह सकते हैं कि सबकुछ यहोवा का ही है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
सबकुछ यहोवा का ही है! वह “आकाश का मालिक है, ऊँचे-से-ऊँचा आकाश और धरती और जो कुछ उसमें है सब उसी का है।” (व्यव. 10:14; प्रका. 4:11) हम सब इंसान भी उसी के हैं, क्योंकि उसने हमें बनाया है। (भज. 100:3) लेकिन मानवजाति की शुरूआत से वह कुछ इंसानों को इस तरह चुनता आया है कि वे उसके खास लोग बनें।
2. बाइबल के मुताबिक यहोवा ने अपने लोग होने के लिए किन्हें चुना है?
2 उदाहरण के लिए, प्राचीन इसराएल में रहनेवाले यहोवा के वफादार उपासकों को उसकी “खास जागीर” कहा गया है। (भज. 135:4) इसके अलावा होशे ने भविष्यवाणी की थी कि कुछ लोग जो इसराएली नहीं हैं, वे यहोवा के लोग होंगे। (होशे 2:23) यह भविष्यवाणी तब पूरी हुई, जब यहोवा ने गैर-यहूदियों को भी मसीह के साथ स्वर्ग में राज करने के लिए चुनना शुरू किया। (प्रेषि. 10:45; रोमि. 9:23-26) जिन लोगों का पवित्र शक्ति से अभिषेक किया जाता है, उन्हें “पवित्र राष्ट्र” कहा गया है। वे यहोवा की “खास जागीर” हैं। (1 पत. 2:9, 10) लेकिन यहोवा उन वफादार मसीहियों को किस नज़र से देखता है, जिन्हें इस धरती पर हमेशा जीने की आशा है? वह उन्हें भी ‘मेरे लोग’ और “मेरे चुने हुए” लोग कहता है।—यशा. 65:22.
3. (क) आज यहोवा के साथ किन लोगों का नज़दीकी रिश्ता है? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
3 हालाँकि “छोटे झुंड” के लोगों की आशा और ‘दूसरी भेड़ों’ के लोगों की आशा अलग-अलग है, फिर भी वे सब “एक झुंड” होकर यहोवा की उपासना करते हैं। (लूका 12:32; यूह. 10:16) यहोवा ने हमें अपने साथ एक नज़दीकी रिश्ता बनाने का जो खास सम्मान दिया है, उसके लिए हम बहुत शुक्रगुज़ार हैं! लेकिन हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम इस सम्मान के लिए एहसानमंद हैं? इसी सवाल की चर्चा इस लेख में की जाएगी।
हम अपना जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं
4. (क) यहोवा को अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करने का एक तरीका क्या है? (ख) यीशु ने क्या ज़ाहिर किया?
4 यहोवा को अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करने का एक तरीका है, अपना जीवन उसे समर्पित करना और बपतिस्मा लेना। जब हम ऐसा करते हैं, तो सभी जान जाते हैं कि अब हम यहोवा के हैं और अपनी मरज़ी से उसकी आज्ञा मानना चाहते हैं। (इब्रा. 12:9) जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, तो उसने भी यही बात ज़ाहिर की। एक तरह से उसने कहा, “हे मेरे परमेश्वर, तेरी मरज़ी पूरी करना ही मेरी इच्छा है।” (भज. 40:7, 8, फु.) हालाँकि यीशु जिस राष्ट्र में पैदा हुआ था, वह पहले से यहोवा को एक समर्पित राष्ट्र था, फिर भी उसने उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए खुद को पेश किया।
5, 6. (क) जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, तब यहोवा ने क्या कहा? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि हमारे समर्पण से यहोवा को कैसा लगता है।
5 जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, तो यहोवा को कैसा लगा? बाइबल कहती है, “बपतिस्मा लेने के बाद यीशु फौरन पानी में से ऊपर आया। तब आकाश खुल गया और उसने परमेश्वर की पवित्र शक्ति को एक कबूतर के रूप में उस पर उतरते देखा। तभी स्वर्ग से आवाज़ आयी: ‘यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है।’” (मत्ती 3:16, 17) यीशु के जीवन पर पहले से ही यहोवा का अधिकार था, लेकिन जब उसने देखा कि यीशु अपनी मरज़ी से अपना जीवन सिर्फ उसकी सेवा में लगाना चाहता है, तो उसे बहुत खुशी हुई। उसी तरह जब हम अपना जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं, तो उसे बहुत खुशी होती है। वह हमें आशीष भी देता है।—भज. 149:4.
6 इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। एक आदमी के पास खूबसूरत फूलों का बगीचा है। एक दिन उसकी छोटी-सी बेटी, जिसे वह बहुत प्यार करता है, एक फूल तोड़कर उसे देती है। हालाँकि बगीचे के सारे फूल उसके हैं, फिर भी अपनी बेटी से यह फूल पाकर वह बहुत खुश होता है, क्योंकि यह फूल उसकी बेटी के प्यार की निशानी है। उसकी नज़रों में इस फूल का मोल बाकी फूलों से बढ़ जाता है। वैसे ही जब हम अपनी मरज़ी से अपना जीवन यहोवा को समर्पित करते हैं, तो वह बहुत खुश होता है।—निर्ग. 34:14.
7. मलाकी 3:16 के मुताबिक यहोवा उन लोगों के बारे में कैसा महसूस करता है, जो अपनी मरज़ी से उसकी सेवा करते हैं?
7 मलाकी 3:16 पढ़िए। सबकुछ तो यहोवा का है, फिर हमें अपना जीवन उसे समर्पित करके बपतिस्मा लेना ज़रूरी क्यों है? यह सच है कि जिस पल से हमारा जीवन शुरू होता है, उसी पल से हम अपने सृष्टिकर्ता यहोवा के हैं। लेकिन सोचिए, जब हम उसे अपना राजा स्वीकार करते हैं और अपना जीवन समर्पित करते हैं, तो उसे कितनी खुशी होती होगी! (नीति. 23:15) जो अपनी मरज़ी से यहोवा की सेवा करते हैं, उन्हें वह पहचानता है और उन्हें “याद रखने के लिए” उनके नाम अपनी ‘किताब में लिखता है।’
8, 9. जिन लोगों का नाम यहोवा अपनी किताब में लिखता है, उनसे वह क्या चाहता है?
8 अगर हम चाहते हैं कि हमारा नाम यहोवा की किताब से न मिटे, तो हमें कुछ कदम उठाने होंगे। मलाकी ने कहा कि हमें यहोवा का डर मानना होगा और उसके नाम के बारे में मनन करना होगा। अगर हम ऐसा करने के बजाय किसी और की उपासना करें, तो यहोवा की किताब से हमारा नाम मिटा दिया जाएगा!—निर्ग. 32:33; भज. 69:28.
9 इस वजह से सिर्फ यह वादा करके बपतिस्मा लेना कि हम यहोवा की मरज़ी पूरी करेंगे, काफी नहीं है। यह कदम हम बस एक बार उठाते हैं, लेकिन यहोवा की उपासना हमें ज़िंदगी-भर करनी है। हमें हर दिन अपने कामों से दिखाना है कि हम यहोवा की आज्ञा मानते हैं।—1 पत. 4:1, 2.
हम दुनियावी इच्छाएँ ठुकरा देते हैं
10. यहोवा की उपासना करनेवालों और न करनेवालों के बीच का फर्क कैसे साफ दिखायी देना चाहिए?
10 पिछले लेख में हमने देखा कि कैन, सुलैमान और इसराएलियों ने दावा तो किया कि वे यहोवा की उपासना करते हैं, मगर वे उसके वफादार नहीं थे। इससे हम यही सीखते हैं कि सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि हम यहोवा की उपासना करते हैं, हमें अपने कामों से भी यह दिखाना है। हमें बुरी बातों से घिन करनी चाहिए और अच्छी बातों से लगाव रखना चाहिए। (रोमि. 12:9) यहोवा ने कहा कि यह फर्क साफ दिखायी देगा कि “कौन नेक है और कौन दुष्ट, कौन परमेश्वर की सेवा करता है और कौन नहीं।”—मला. 3:18.
11. सब लोगों को यह साफ क्यों दिखायी देना चाहिए कि हम सिर्फ यहोवा की उपासना करते हैं?
11 यहोवा ने हमें अपने लोग होने के लिए चुना है, इसके लिए एहसानमंदी जताने का एक और तरीका है, सच्चाई में हमारी तरक्की “सब लोगों को साफ दिखायी दे।” (1 तीमु. 4:15; मत्ती 5:16) खुद से पूछिए, ‘क्या लोग देख सकते हैं कि मैं पूरी तरह यहोवा का वफादार हूँ? क्या मुझे लोगों को यह बताने में गर्व होता है कि मैं यहोवा का साक्षी हूँ?’ अगर हम यह बताने में शर्मिंदा महसूस करें कि हम यहोवा के लोग हैं, तो सोचिए यहोवा को कितना दुख होगा!—भज. 119:46; मरकुस 8:38 पढ़िए।
12, 13. कुछ साक्षियों के क्या करने की वजह से लोगों को यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वे साक्षी हैं या नहीं?
12 अफसोस की बात है कि कुछ साक्षी “दुनिया की फितरत” अपनाने लगे हैं। इस वजह से उनमें और यहोवा की उपासना न करनेवालों में ज़्यादा फर्क नज़र नहीं आता। (1 कुरिं. 2:12) “दुनिया की फितरत” की वजह से लोग अपनी स्वार्थी इच्छाएँ पूरी करने पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। (इफि. 2:3) उदाहरण के लिए, पहनावे के बारे में हमें इतनी सारी सलाह दी गयी है, फिर भी कुछ लोग बेढंगे कपड़े पहनते हैं। उनके कपड़े या तो बहुत चुस्त या छोटे होते हैं या फिर ऐसे होते हैं कि उनसे शरीर के अंग दिखायी देते हैं। वे सभाओं और सम्मेलनों में भी ऐसे कपड़े पहनते हैं। इसके अलावा कई मसीही बालों की ऐसी स्टाइल अपनाते हैं, जिससे दुनिया की फितरत झलकती है। (1 तीमु. 2:9, 10) इस वजह से लोगों को यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वे यहोवा के साक्षी हैं या नहीं।—याकू. 4:4.
13 कुछ और भी पहलू हैं, जिनमें कई साक्षी दुनिया के लोगों से अलग नज़र नहीं आते। जैसे, पार्टियों में कुछ भाई-बहन इस तरह नाचते और व्यवहार करते हैं, जो मसीहियों को शोभा नहीं देता। दूसरों ने सोशल मीडिया पर अपनी ऐसी तसवीरें डाली हैं या ऐसी बातें लिखी हैं, जिनसे उनकी इंसानी सोच झलकती है। भले ही उन्होंने ऐसा कोई पाप न किया हो, जिसके लिए उन्हें सुधारा जाए, फिर भी वे उन मसीहियों पर बुरा असर डाल सकते हैं, जो दुनिया से अलग नज़र आने की कोशिश करते हैं।—1 पतरस 2:11, 12 पढ़िए।
14. यहोवा के साथ हमारी दोस्ती न टूटे, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
14 यह दुनिया हमें उकसाती है कि हम ‘शरीर की ख्वाहिशें और आँखों की ख्वाहिशें’ पूरी करने और “अपनी चीज़ों का दिखावा” करने में ही लगे रहें। (1 यूह. 2:16) लेकिन हम यहोवा के लोग हैं, इसलिए हम ऐसा नहीं करते। हम “भक्तिहीन कामों और दुनियावी इच्छाओं” को ठुकरा देते हैं और “इस दुनिया में सही सोच रखते हुए और नेकी और परमेश्वर की भक्ति के साथ जीवन” बिताते हैं। (तीतु. 2:12) हमारी बातचीत, खान-पान, पहनावे, काम, हमारी पूरी ज़िंदगी से यह साफ नज़र आना चाहिए कि हम यहोवा के लोग हैं।—1 कुरिंथियों 10:31, 32 पढ़िए।
हम “एक-दूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार” करते हैं
15. हमें दूसरे मसीहियों के साथ प्यार से पेश क्यों आना चाहिए?
15 जिस तरह हम अपने भाई-बहनों के साथ व्यवहार करते हैं, उससे भी हम दिखाते हैं कि यहोवा के साथ अपनी दोस्ती को हम अनमोल समझते हैं। जैसे हम यहोवा के हैं, वैसे ही वे भी यहोवा के हैं। यह सच्चाई याद रखने से हम हमेशा अपने भाई-बहनों के साथ प्यार से पेश आएँगे और उन पर कृपा करेंगे। (1 थिस्स. 5:15) ऐसा करना ज़रूरी क्यों है? यीशु ने अपने चेलों से कहा, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूह. 13:35.
16. मूसा के कानून से एक मिसाल देकर समझाइए कि यहोवा अपने लोगों से बहुत प्यार करता है।
16 हमें मंडली के भाई-बहनों से किस तरह व्यवहार करना चाहिए, यह समझने के लिए एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। यहोवा के मंदिर में इस्तेमाल करने के लिए कुछ बरतनों को पवित्र ठहराया गया था। ये बरतन सिर्फ उपासना से जुड़े कामों के लिए समर्पित थे। मूसा के कानून में हिदायतें दी गयी थीं कि उन बरतनों की देखभाल लेवियों को किस तरह करनी चाहिए। अगर कोई ये हिदायतें न मानता, तो उसे मौत की सज़ा दी जाती। (गिन. 1:50, 51) ज़रा सोचिए, अगर यहोवा को अपनी उपासना में इस्तेमाल होनेवाली बेजान चीज़ों की इतनी फिक्र थी, तो उसे अपने वफादार सेवकों की कितनी ज़्यादा फिक्र होगी! जी हाँ, यहोवा हम समर्पित लोगों को बहुत अनमोल समझता है, इसीलिए उसने कहा, “जो तुम्हें छूता है वह मेरी आँख की पुतली को छूता है।”—जक. 2:8.
17. यहोवा किस बात पर ध्यान देता है और सुनता है?
17 मलाकी ने कहा कि “यहोवा ध्यान से” देखता है कि उसके लोग एक-दूसरे से किस तरह व्यवहार करते हैं। वह उनकी बातें भी “सुनता” है। (मला. 3:16) यहोवा वाकई “उन्हें जानता है जो उसके अपने हैं।” (2 तीमु. 2:19) हम जो भी करते या कहते हैं, उसे वह अच्छी तरह जानता है। (इब्रा. 4:13) जब हम अपने भाई-बहनों के साथ रुखाई से पेश आते हैं, तो वह इस पर ध्यान देता है। लेकिन वह तब भी ध्यान देता है, जब हम अपने भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी करते हैं, उदारता से उनकी मदद करते हैं, उन्हें माफ करते हैं और उन पर कृपा करते हैं।—इब्रा. 13:16; 1 पत. 4:8, 9.
“यहोवा अपने लोगों को नहीं त्यागेगा”
18. यहोवा ने अपने लोग होने का जो सम्मान हमें दिया है, उसके लिए हम अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर कैसे कर सकते हैं?
18 सच में हम यह ज़ाहिर करना चाहते हैं कि यहोवा ने हमें अपने लोग होने का जो खास सम्मान दिया है, उसके लिए हम एहसानमंद हैं। हम जानते हैं कि यहोवा को अपना जीवन समर्पित करके हमने एकदम सही फैसला किया। हालाँकि हम “एक टेढ़ी और भ्रष्ट पीढ़ी के बीच” रहते हैं, फिर भी हम “निर्दोष और मासूम” बने रह सकते हैं और “इस दुनिया में रौशनी की तरह” चमकते रह सकते हैं। (फिलि. 2:15) इस वजह से हमने ठान लिया है कि हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे यहोवा नफरत करता है। (याकू. 4:7) हमने यह भी ठान लिया है कि हम अपने भाई-बहनों से प्यार करेंगे और उनका आदर करेंगे, क्योंकि वे भी यहोवा के लोग हैं।—रोमि. 12:10.
19. यहोवा अपने लोगों को कौन-सी आशीषें देता है?
19 बाइबल कहती है, “यहोवा अपने लोगों को नहीं त्यागेगा।” (भज. 94:14) यह एक पक्का वादा है! कुछ भी हो जाए, यहोवा हमेशा हमारे साथ रहेगा। चाहे हमारी मौत भी हो जाए, तब भी वह हमें नहीं भूलेगा। (रोमि. 8:38, 39) “अगर हम जीते हैं तो यहोवा के लिए जीते हैं और अगर मरते हैं तो यहोवा के लिए मरते हैं। इसलिए चाहे हम जीएँ या मरें, हम यहोवा ही के हैं।” (रोमि. 14:8) हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है, जब यहोवा अपने उन सभी वफादार दोस्तों को ज़िंदा करेगा जो मौत की नींद सो रहे हैं। (मत्ती 22:32) हमारा प्यारा पिता आज भी हमें बहुत-सी आशीषें देता है। बाइबल की यह बात कितनी सच है, “सुखी है वह राष्ट्र जिसका परमेश्वर यहोवा है, वे लोग जिनको उसने अपनी जागीर चुना है।”—भज. 33:12.