नौजवानो, शैतान का डटकर सामना करो
“परमेश्वर के दिए सारे हथियार बाँध लो ताकि तुम शैतान की धूर्त चालों का डटकर सामना कर सको।”—इफि. 6:11.
1, 2. (क) मसीही नौजवान कैसे शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों के खिलाफ जीत हासिल कर रहे हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
प्रेषित पौलुस ने मसीहियों की तुलना सैनिकों से की। लेकिन हमारी लड़ाई हाड़-माँस के इंसानों से नहीं बल्कि शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों से है। ये दुश्मन हज़ारों सालों से युद्ध कर रहे हैं और लड़ाई में बहुत माहिर हैं। ऐसा लग सकता है कि उनसे जीतना नामुमकिन है खासकर नौजवानों के लिए! तो सवाल है कि क्या नौजवान इन ताकतवर दुश्मनों से जीत सकते हैं? बिलकुल! यहोवा की ताकत से बहुत-से नौजवान जीत हासिल कर रहे हैं। इसके अलावा, एक अच्छे योद्धा की तरह वे लड़ने के लिए “परमेश्वर के दिए सारे हथियार बाँध” लेते हैं।—इफिसियों 6:10-12 पढ़िए।
2 जब पौलुस ने यह मिसाल दी, तो वह शायद एक रोमी सैनिक के हथियारों के बारे में सोच रहा था। (प्रेषि. 28:16) इस लेख में हम इस बढ़िया मिसाल को करीब से जाँचेंगे। हम यह भी चर्चा करेंगे कि परमेश्वर के दिए हथियारों के बारे में नौजवानों का क्या कहना है। वे इन हथियारों को बाँधने से आनेवाली मुश्किलों और फायदों के बारे में बताएँगे।
‘सच्चाई का पट्टा’
3, 4. बाइबल में दी सच्चाइयाँ कैसे एक रोमी सैनिक के पट्टे की तरह हैं?
3 इफिसियों 6:14 पढ़िए। एक रोमी सैनिक के पट्टे यानी बेल्ट में धातु के टुकड़े जड़े होते थे जो उसकी कमर की हिफाज़त करते थे और भारी-भरकम कवच को अपनी जगह पर बनाए रखते थे। कुछ सैनिकों के पट्टों पर कुछ ऐसा होता था जिसके सहारे तलवार और खंजर लटकाए जा सकते थे। जब एक सैनिक अपनी कमर पर पट्टा कस लेता था, तो वह पूरी हिम्मत के साथ युद्ध के मैदान में उतरता था।
4 जिस तरह सैनिक का पट्टा उसकी हिफाज़त करता था, उसी तरह परमेश्वर के वचन में दी सच्चाइयाँ, झूठी शिक्षाओं से हमारी हिफाज़त करती हैं। (यूह. 8:31, 32; 1 यूह. 4:1) हम जितना ज़्यादा उन सच्चाइयों से लगाव रखेंगे, उतना ज़्यादा परमेश्वर के स्तरों पर चलना यानी अपना “कवच” पहनना आसान होगा। (भज. 111:7, 8; 1 यूह. 5:3) इसके अलावा, जब हम सच्चाइयों की बेहतर समझ हासिल करते हैं, तो हम पूरी हिम्मत के साथ उनकी पैरवी कर पाते हैं।—1 पत. 3:15.
5. हमें क्यों हर समय सच बोलना चाहिए?
5 बाइबल में दी सच्चाइयाँ हमारे लिए अनमोल हैं, इसलिए हम उनके मुताबिक जीने की कोशिश करते हैं और हमेशा सच बोलते हैं। झूठ शैतान का एक कामयाब हथियार है। झूठ से न सिर्फ झूठ बोलनेवाले को नुकसान होता है बल्कि उस झूठ पर यकीन करनेवाले को भी होता है। (यूह. 8:44) इसलिए अपरिपूर्ण होने के बावजूद हम पूरी कोशिश करते हैं कि हम झूठ न बोलें। (इफि. 4:25) ऐसा करना आसान नहीं। अठारह साल की एबीगेल कहती है, “हमें शायद लगे कि हर समय सच बोलना फायदेमंद न हो, खासकर तब जब हम झूठ बोलकर आसानी से किसी मुसीबत से निकल सकते हैं।” तो फिर एबीगेल क्यों हमेशा सच बोलती है? वह बताती है, “सच बोलने से मैं यहोवा के सामने एक साफ ज़मीर रख पाती हूँ। मेरे माता-पिता और दोस्त भी मुझ पर भरोसा करते हैं।” तेइस साल की विक्टोरिया कहती है, “जब हम सच बोलते हैं और अपने विश्वास से नहीं मुकरते, तो दूसरे शायद हमें परेशान करें। लेकिन अगर हम डटे रहें तो हम निडर होंगे, यहोवा के करीब आएँगे और हमारे अज़ीज़ हमारी इज़्ज़त करेंगे।” वाकई, हर समय ‘सच्चाई का पट्टा’ पहनना कितना ज़रूरी है!
“नेकी का कवच”
6, 7. यहोवा के नेक स्तरों की तुलना कवच से क्यों की गयी है?
6 रोमी सैनिक का कवच आम तौर पर लोहे की पट्टियों से बना होता था जिन्हें छाती के आकार के हिसाब से मोड़ा जाता था। हर पट्टी में हुक लगे होते थे और पट्टियों को चमड़े के फीतों से कसा जाता था। सैनिक के कंधों पर भी लोहे की पट्टियाँ होती थीं जो चमड़े के पट्टे से जुड़ी होती थीं। कवच पहनकर एक सैनिक ज़्यादा हिल-डुल नहीं पाता था और उसे बार-बार देखना होता था कि लोहे की पट्टियाँ अपनी जगह पर हैं या नहीं। लेकिन उस कवच से उसके दिल और दूसरे अंगों की रक्षा होती थी। कोई भी तलवार या तीर कवच को भेद नहीं सकता था!
7 उस कवच की तरह यहोवा के नेक स्तर भी हमारे “दिल” यानी अंदर के इंसान की हिफाज़त करते हैं। (नीति. 4:23) एक सैनिक कभी-भी लोहे का कवच उतारकर सस्ती धातु से बना कवच नहीं पहनेगा। उसी तरह, हम यहोवा के नेक स्तरों को छोड़कर अपने स्तरों के मुताबिक नहीं चलेंगे। हम अपनी बुद्धि से कभी अपने दिल की हिफाज़त नहीं कर सकते। (नीति. 3:5, 6) इसलिए हमें हर वक्त जाँचना चाहिए कि क्या हमारा “कवच” हमारे दिल की हिफाज़त कर रहा है।
8. हमें क्यों यहोवा के स्तरों पर चलना चाहिए?
8 क्या कभी-कभी आपको लगता है कि यहोवा के स्तर मानने से आपकी आज़ादी पर रोक लगती है? डैनियेल जिसकी उम्र 21 साल है, कहता है, “बाइबल के स्तरों पर चलने की वजह से मेरे टीचर और स्कूल के बच्चे मेरा मज़ाक उड़ाते थे। इससे मेरा आत्म-विश्वास खत्म हो गया और मैं निराश हो गया।” डैनियेल अपने हालात का सामना कैसे कर पाया? वह बताता है, “मैंने देखा कि स्कूल के कुछ बच्चे ड्रग्स लेने लगे और कुछ बच्चों ने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। उनकी ज़िंदगी को इस तरह खराब होते देख मुझे बहुत दुख हुआ। मैं समझ गया कि यहोवा के स्तरों पर चलने से हमेशा फायदे होते हैं। वह हमारी कितनी हिफाज़त करता है!” मैडिसन जिसकी उम्र 15 साल है, कहती है, “मेरे लिए यहोवा के स्तरों पर बने रहना मुश्किल है, खासकर तब जब मैं ऐसे काम करने से मना करती हूँ जिनमें बाकी नौजवानों को बड़ा मज़ा आता है।” तो फिर, मैडिसन क्या करती है? वह कहती है, “मैं खुद को याद दिलाती हूँ कि मैं यहोवा के नाम से जानी जाती हूँ और यह भी कि मुझे लुभाकर दरअसल शैतान मुझ पर वार कर रहा है। हर बार जब मैं शैतान के खिलाफ जीत हासिल करती हूँ, तो मुझे बहुत खुशी होती है।”
“तैयारी के जूते”
9-11. (क) मसीही किस मायने में लाक्षणिक जूते पहनते हैं? (ख) आराम से प्रचार करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
9 इफिसियों 6:15 पढ़िए। एक रोमी सैनिक बिना जूते के युद्ध में जाने की सोच भी नहीं सकता था। ये जूते चमड़े की तीन परतों से बने होते थे और इस वजह से मज़बूत और टिकाऊ होते थे। इससे न तो फिसलने का डर होता था, न ही चलने में दिक्कत होती थी। ये पहनने में आरामदायक थे।
10 हालाँकि जूते पहनकर रोमी सैनिक युद्ध के लिए निकलते थे, लेकिन मसीही, लाक्षणिक जूते पहनकर “शांति की खुशखबरी” सुनाने के लिए निकलते हैं। (यशा. 52:7; रोमि. 10:15) खुशखबरी सुनाने के लिए कभी-कभी हमें हिम्मत की बहुत ज़रूरत होती है। रोबर्टोa जिसकी उम्र 20 साल है, कहता है, “मैं अपनी क्लास के साथियों को गवाही देने से घबराता था। शायद मुझे शर्म आती थी। अब जब मैं उस बारे में सोचता हूँ, तो मुझे लगता है कि इसमें शर्मिंदा होनेवाली क्या बात है। आज मैं खुशी-खुशी अपनी उम्र के लोगों को गवाही देता हूँ।”
11 कई मसीही नौजवानों ने देखा है कि जब वे पहले से तैयारी करते हैं, तो बड़े आराम से प्रचार कर पाते हैं। आपके बारे में क्या? गवाही देने के लिए आप कैसी तैयारी कर सकते हैं? सोलह साल की जूलिया कहती है, “मैं अपने स्कूल बैग में कुछ किताबें-पत्रिकाएँ रखती हूँ और जब क्लास के बच्चे किसी बात पर अपनी राय देते हैं, तो मैं ध्यान से सुनती हूँ। फिर मैं सोचती हूँ कि मैं उनकी मदद कैसे कर सकती हूँ। जब मैं तैयारी करती हूँ, तो मैं उन्हें ऐसी बातें बता पाती हूँ जिनसे उनको फायदा होता है।” तेइस साल की मारिया कहती है, “अगर हम स्कूल के साथियों के साथ प्यार से पेश आएँ और उनकी ध्यान से सुनें, तो हमें पता चलेगा कि वे किन हालात से गुज़र रहे हैं। मैं कोशिश करती हूँ कि नौजवानों के लिए जितनी भी जानकारी प्रकाशित की जाती है, उन्हें पढ़कर रखूँ। इस तरह मैं अपने साथियों को बाइबल से या jw.org से ऐसी जानकारी बता पाती हूँ जो उनकी मदद करेगी।” जी हाँ, अच्छी तैयारी करना मानो ऐसे “जूते” पहनना है जिनमें आपको कोई दिक्कत नहीं होती।
“विश्वास की बड़ी ढाल”
12, 13. शैतान किन “जलते हुए तीरों” से नौजवानों पर हमला करता है?
12 इफिसियों 6:16 पढ़िए। एक रोमी सैनिक की “बड़ी ढाल” आयताकार होती थी और कंधे से लेकर घुटने तक उसे पूरी तरह ढक लेती थी। यह ढाल उसे तलवारों, भालों और तीरों से बचाती थी।
13 शैतान आप नौजवानों पर कौन-से ‘जलते हुए तीर’ चलाता है? हो सकता है, वह यहोवा के बारे में कुछ झूठी बातें कहे। जैसे, यहोवा आपसे प्यार नहीं करता और उसे आपकी परवाह नहीं। उन्नीस साल की आइडा कहती है, “अकसर मुझे ऐसा लगता है कि यहोवा मेरे करीब नहीं और वह मेरा दोस्त नहीं बनना चाहता।” आइडा शैतान के इस हमले का सामना कैसे करती है? वह कहती है, “सभाओं से मेरा विश्वास मज़बूत होता है। पहले मैं सभाओं में चुपचाप बैठी रहती थी, कोई जवाब नहीं देती थी। मैं सोचती थी कि भला कौन मेरा जवाब सुनना चाहेगा। लेकिन अब मैं सभाओं की तैयारी करती हूँ और दो या तीन जवाब देने की कोशिश करती हूँ। मेरे लिए यह आसान नहीं, लेकिन ऐसा करने के बाद मुझे अच्छा महसूस होता है। भाई-बहन भी मेरा बहुत हौसला बढ़ाते हैं। हर सभा के बाद मुझे यकीन हो जाता है कि यहोवा सचमुच मुझसे प्यार करता है।”
14. आइडा के अनुभव से हम क्या सीखते हैं?
14 एक सैनिक की ढाल एक ही नाप की रहती है। लेकिन हमने आइडा के अनुभव से देखा, हमारा विश्वास ऐसा नहीं है। यह या तो बढ़ सकता है या कम हो सकता है, मज़बूत हो सकता है या कमज़ोर पड़ सकता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हमारा विश्वास कैसा होगा। (मत्ती 14:31; 2 थिस्स. 1:3) अगर हम चाहते हैं कि ‘विश्वास की ढाल’ हमारी हिफाज़त करे, तो हमें अपने विश्वास को बढ़ाना और मज़बूत करते जाना होगा।
“उद्धार का टोप”
15, 16. हमारी आशा कैसे एक टोप की तरह है?
15 इफिसियों 6:17 पढ़िए। एक रोमी सैनिक टोप इसलिए पहनता था ताकि वह अपने सिर, गरदन और चेहरे की रक्षा कर सके। कुछ टोप में फीते होते थे जिससे सैनिक इसे हाथ में पकड़ सकते थे।
16 जिस तरह एक टोप से सैनिक के सिर की रक्षा होती थी, उसी तरह “उद्धार की आशा का टोप” पहनने से हमारे सोच-विचारों की रक्षा होती है। (1 थिस्स. 5:8; नीति. 3:21) इसी आशा की वजह से हम परमेश्वर के वादों पर अपना ध्यान लगाए रख पाते हैं और मुश्किलों के दौरान निराश नहीं होते। (भज. 27:1, 14; प्रेषि. 24:15) हमें इस आशा पर पूरा यकीन होना चाहिए, तभी यह हमारी हिफाज़त कर सकती है। जी हाँ, हमें अपना “टोप” हमेशा पहने रखना चाहिए न कि इसे हाथ में पकड़े रहना चाहिए।
17, 18. (क) शैतान किस तरह हमें अपना टोप उतारने के लिए लुभा सकता है? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम शैतान के झाँसे में नहीं आए हैं?
17 शैतान हमें अपना टोप उतारने के लिए लुभा सकता है। वह कैसे? ध्यान दीजिए कि उसने यीशु के साथ क्या करने की कोशिश की। शैतान जानता था कि यीशु आगे चलकर इंसानों पर राज करेगा। लेकिन इससे पहले उसे तकलीफें सहनी पड़ेंगी और मरना होगा। फिर उसे राजा बनने के लिए यहोवा के वक्त का इंतज़ार करना होगा। इसलिए शैतान ने यीशु के सामने ऐसी पेशकश रखी जिससे वह तुरंत राजा बन सकता था। उसने कहा कि अगर वह एक बार उसकी उपासना करे, तो उसे पूरी दुनिया का राजा बना दिया जाएगा। (लूका 4:5-7) उसी तरह, शैतान जानता है कि यहोवा ने हमें नयी दुनिया में ढेरों आशीषें देने का वादा किया है। लेकिन इसके लिए हमें इंतज़ार करना होगा और इस दौरान हम पर शायद कई मुश्किलें भी आएँ। इसलिए शैतान हमारे सामने ऐसी पेशकश रखता है जिससे हम अभी आराम की ज़िंदगी जी सकते हैं। वह चाहता है कि हम परमेश्वर के राज के बजाय अपनी ख्वाहिशों को पहली जगह दें।—मत्ती 6:31-33.
18 लेकिन कई नौजवान शैतान के इस झाँसे में नहीं आए हैं। बीस साल की करीना की मिसाल लीजिए। वह कहती है, “मैं जानती हूँ कि हमारे लिए बस एक ही आशा है। वह है परमेश्वर का राज, जो हमारी सारी समस्याएँ दूर करेगा।” इस आशा का उसकी सोच और जीने के तरीके पर क्या असर होता है? यह उसे बार-बार याद दिलाती है कि दुनिया की चीज़ें बस पल-भर की हैं। करीना दुनिया में एक करियर बनाने के बजाय यहोवा की सेवा में समय और ताकत लगा रही है।
“पवित्र शक्ति की तलवार” यानी परमेश्वर का वचन
19, 20. हम परमेश्वर के वचन का सही इस्तेमाल करना कैसे सीख सकते हैं?
19 रोमी सैनिक लड़ाई में ऐसी तलवारें इस्तेमाल करते थे जो 20 इंच लंबी होती थीं। ये सैनिक हर दिन तलवार चलाने का अभ्यास करते थे, इसलिए वे इसका इस्तेमाल करने में निपुण थे।
20 पौलुस ने परमेश्वर के वचन की तुलना एक तलवार से की। यहोवा ने हमें अपना वचन दिया है। लेकिन हमें इसका सही इस्तेमाल करना सीखना होगा ताकि हम अपने विश्वास की रक्षा कर सकें और अपनी सोच सुधार सकें। (2 कुरिं. 10:4, 5; 2 तीमु. 2:15) हम यह कैसे कर सकते हैं? इक्कीस साल का सेबास्टियन कहता है, “जब मैं बाइबल पढ़ता हूँ, तो हर अध्याय में से एक आयत लिख लेता हूँ। इस तरह मैंने अपनी मनपसंद आयतों की एक सूची तैयार की है।” सेबास्टियन को लगता है कि ऐसा करने से वह यहोवा की सोच को और अच्छी तरह समझ पाया है। डैनियल जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, कहता है, “बाइबल पढ़ते वक्त मैं ऐसी आयतें चुनता हूँ जिनसे प्रचार में लोगों को फायदा हो सकता है। जब हम जोश के साथ बाइबल से आयतें दिखाते हैं और लोगों की मदद करने की कोशिश करते हैं, तो वे अच्छे से हमारी सुनते हैं।”
21. हमें शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों से खौफ खाने की ज़रूरत क्यों नहीं?
21 तो फिर इस लेख में नौजवानों की मिसालों से हमने सीखा कि हमें शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों से खौफ खाने की ज़रूरत नहीं। वे ताकतवर ज़रूर हैं लेकिन यहोवा से ज़्यादा शक्तिशाली नहीं और वे हमेशा तक नहीं रहेंगे। मसीह के हज़ार साल के शासन में उन्हें कैद किया जाएगा और वे किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। फिर इसके बाद उनका नाश कर दिया जाएगा। (प्रका. 20:1-3, 7-10) हम अपने दुश्मन को पहचानते हैं, उसकी चालों और उसके लक्ष्य से हम अनजान नहीं। अगर यहोवा हमारे साथ है, तो हम उसका डटकर सामना कर सकेंगे।
a कुछ नाम बदल दिए गए हैं।