क्या आप यहोवा की तरफ हैं?
“तुम अपने परमेश्वर यहोवा का डर मानना, उसी की सेवा करना, उससे लिपटे रहना।”—व्यव. 10:20.
1, 2. (क) यहोवा की तरफ होना बुद्धिमानी क्यों है? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
यहोवा के जितना शक्तिशाली, बुद्धिमान और प्यार करनेवाला परमेश्वर और कोई नहीं! इस वजह से उसके करीब रहना ही हमारे लिए बुद्धिमानी है। बेशक हम सब उसके वफादार रहना चाहते हैं और उसकी तरफ होना चाहते हैं। (भज. 96:4-6) लेकिन कुछ लोग परमेश्वर की उपासना तो करते हैं, मगर उसकी तरफ नहीं हैं।
2 इस लेख में हम कुछ लोगों के बारे में चर्चा करेंगे, जिन्होंने यहोवा की तरफ होने का दावा तो किया, मगर साथ ही वे काम भी किए, जिनसे यहोवा नफरत करता है। उनसे हम ऐसी बातें सीखेंगे, जिनसे हम यहोवा के वफादार रह पाएँगे।
यहोवा दिल को जाँचता है
3. यहोवा ने कैन की मदद करने की कोशिश कैसे की?
3 ज़रा कैन के बारे में सोचिए। वह झूठे देवी-देवताओं की नहीं बल्कि यहोवा की उपासना करता था, फिर भी यहोवा ने उसे मंज़ूर नहीं किया। उसने देखा कि कैन के मन का रुझान बुरे कामों की तरफ है। (1 यूह. 3:12) उसने कैन को खबरदार किया, “अगर तू अच्छे काम करने लगे तो क्या मैं तुझे मंज़ूर नहीं करूँगा? लेकिन अगर तू अच्छाई की तरफ न फिरे, तो जान ले कि पाप तुझे धर-दबोचने के लिए दरवाज़े पर घात लगाए बैठा है। इसलिए तू पाप करने की इच्छा को काबू में कर ले।” (उत्प. 4:6, 7) यहोवा ने कैन को साफ-साफ बताया कि अगर वह पश्चाताप करे और उसकी तरफ होने का फैसला करे, तो वह भी कैन का साथ देगा।
4. जब कैन के पास यहोवा की तरफ होने का मौका था, तो उसने क्या किया?
4 अगर कैन अपनी सोच बदलता, तो उसे यहोवा की मंज़ूरी मिलती। लेकिन कैन ने यहोवा की बात नहीं मानी। अपनी गलत सोच और स्वार्थी इच्छाओं की वजह से वह पाप कर बैठा। (याकू. 1:14, 15) शायद कैन ने बचपन में कभी नहीं सोचा होगा कि वह यहोवा का विरोध करेगा। मगर बड़े होकर वह ऐसा ही कर बैठा। उसने यहोवा की चेतावनी अनसुनी कर दी, उससे बगावत की और अपने ही भाई को मार डाला।
5. किस तरह की सोच होने से हम यहोवा की मंज़ूरी खो सकते हैं?
5 शायद कैन की तरह एक मसीही यहोवा की उपासना करने का दावा करे, मगर असल में वह ऐसे काम करे जिनसे यहोवा नफरत करता है। (यहू. 11) शायद वह नियमित तौर पर प्रचार करता हो और सभाओं में जाता हो, मगर साथ ही अनैतिक बातों के बारे में कल्पना करता हो या चीज़ों का लालच करता हो या फिर किसी मसीही से नफरत करता हो। (1 यूह. 2:15-17; 3:15) ऐसी सोच होने से वह पाप करने लग सकता है। भले ही उसकी सोच या कामों के बारे में किसी को पता न चले, मगर यहोवा को पता चल जाता है। वह जान जाता है कि कब एक मसीही पूरे दिल से उसकी तरफ नहीं है।—यिर्मयाह 17:9, 10 पढ़िए।
6. बुरी इच्छाओं पर काबू पाने में यहोवा हमारी मदद कैसे करता है?
6 हमसे गलतियाँ हो जाने पर भी यहोवा फौरन हमें ठुकरा नहीं देता। जब एक व्यक्ति यहोवा से दूर चला जाता है, तो यहोवा उससे गुज़ारिश करता है, ‘मेरे पास लौट आ, तब मैं तेरे पास लौट आऊँगा।’ (मला. 3:7) यहोवा समझता है कि हममें कमज़ोरियाँ हैं। फिर भी वह चाहता है कि इन कमज़ोरियों से लड़ते वक्त हम बुराई से सख्त नफरत करें और कोई भी बुरा काम न करें। (यशा. 55:7) वह वादा करता है कि अगर हम ऐसा करें, तो वह हमें बुरी इच्छाओं पर “काबू” पाने की ताकत देगा।—उत्प. 4:7.
“धोखा न खाओ”
7. सुलैमान ने यहोवा के साथ अपनी दोस्ती किस वजह से खो दी?
7 जब सुलैमान जवान था, तब यहोवा के साथ उसकी अच्छी दोस्ती थी। परमेश्वर ने उसे बहुत बुद्धि दी और यरूशलेम में एक आलीशान मंदिर बनाने की भारी ज़िम्मेदारी सौंपी। लेकिन बाद में सुलैमान ने यहोवा के साथ अपनी दोस्ती खो दी। (1 राजा 3:12; 11:1, 2) परमेश्वर के कानून में लिखा था कि एक राजा को ‘बहुत-सी शादियाँ नहीं करनी चाहिए ताकि उसका मन सही राह से भटक न जाए।’ (व्यव. 17:17) सुलैमान ने यह कानून नहीं माना, उसने बहुत-सी औरतों से शादी की। उसकी 700 पत्नियाँ और 300 उप-पत्नियाँ थीं! (1 राजा 11:3) इनमें से ज़्यादातर औरतें दूसरे देशों की थीं और वे झूठे देवी-देवताओं की पूजा करती थीं। इससे पता चलता है कि सुलैमान ने परमेश्वर का यह कानून भी तोड़ा कि इसराएलियों को परदेसियों से शादी नहीं करनी चाहिए।—व्यव. 7:3, 4.
8. सुलैमान और किन तरीकों से यहोवा के खिलाफ गया?
8 धीरे-धीरे सुलैमान यहोवा के और भी कानून तोड़ने लगा, जिस वजह से वह बड़े-बड़े पाप करने लगा। उसने अशतोरेत और कमोश जैसे झूठे देवी-देवताओं के लिए वेदियाँ बनवायीं। उसने तो ये वेदियाँ उस पहाड़ पर बनवायीं, जो यरूशलेम में यहोवा के मंदिर के ठीक सामने था! फिर वह अपनी पत्नियों के साथ इन झूठे देवी-देवताओं की पूजा करने लगा। (1 राजा 11:5-8; 2 राजा 23:13) शायद वह यह सोचकर खुद को धोखा दे रहा था कि अगर वह मंदिर में बलिदान चढ़ाता रहे, तो यहोवा उसकी सारी बुराइयों को अनदेखा कर देगा।
9. जब सुलैमान ने परमेश्वर की चेतावनी नहीं सुनी, तो क्या हुआ?
9 लेकिन यहोवा पाप को कभी अनदेखा नहीं करता। बाइबल बताती है, “यहोवा को सुलैमान पर बहुत क्रोध आया क्योंकि उसका दिल . . . यहोवा से बहककर दूर चला गया था।” परमेश्वर ने सुलैमान की मदद करने की कोशिश की। उसने ‘दो बार उसे दर्शन दिया और उसे साफ चेतावनी दी कि वह दूसरे देवताओं के पीछे न जाए। मगर उसने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी।’ इसका अंजाम यह हुआ कि उसने परमेश्वर की मंज़ूरी खो दी। यहोवा ने उसके वंशजों को पूरे इसराएल राष्ट्र पर राज करने की इजाज़त नहीं दी और उन्हें सैकड़ों सालों तक बड़ी-बड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ीं।—1 राजा 11:9-13.
10. यहोवा के साथ हमारा रिश्ता किस वजह से कमज़ोर पड़ सकता है?
10 आज ऐसे कई लोग हैं, जो यहोवा के स्तरों के बारे में नहीं जानते या वे जानते तो हैं, मगर उनके मुताबिक जीते नहीं। अगर हम इन लोगों से दोस्ती करें, तो इनका हमारी सोच पर बुरा असर हो सकता है। यही नहीं, इनकी वजह से यहोवा के साथ हमारी दोस्ती टूट सकती है। ये लोग मंडली के ऐसे भाई-बहन हो सकते हैं, जिनका यहोवा के साथ मज़बूत रिश्ता नहीं है। ये हमारे रिश्तेदार, पड़ोसी, साथ काम करनेवाले या स्कूल के साथी भी हो सकते हैं, जो यहोवा की उपासना नहीं करते। अगर हम ऐसे लोगों के साथ ज़्यादा वक्त बिताएँ, तो उनका हम पर बहुत असर हो सकता है, इतना कि यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कमज़ोर पड़ सकता है।
11. हम कैसे जान सकते हैं कि हम जिन लोगों की संगति कर रहे हैं, वे सही हैं या नहीं?
11 पहला कुरिंथियों 15:33 पढ़िए। ज़्यादातर लोगों में कुछ-न-कुछ अच्छे गुण होते हैं। जो लोग यहोवा की उपासना नहीं करते, ज़रूरी नहीं कि वे सब बुरे काम ही करें। कुछ लोग अच्छे भी होते हैं। अगर आप ऐसे लोगों को जानते हैं, फिर चाहे वे मंडली के भाई-बहन हों या बाहरवाले, तो क्या उनके साथ संगति करना सही होगा? ज़रा इन सवालों पर सोचिए: उनकी वजह से यहोवा के साथ आपके रिश्ते पर कैसा असर पड़ रहा है? क्या परमेश्वर के और भी करीब आने में वे आपकी मदद करते हैं? वे किन बातों को अहमियत देते हैं? वे किस बारे में बात करते हैं? क्या वे ज़्यादातर नए-नए फैशन, मोबाइल, मनोरंजन वगैरह के बारे में बात करते हैं? क्या वे अकसर दूसरों की बुराई करते हैं? क्या वे गंदे चुटकुले सुनाते हैं? यीशु ने खबरदार किया था, “जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।” (मत्ती 12:34) अगर आपको एहसास होता है कि आप जिन लोगों की संगति कर रहे हैं, वे आपको यहोवा से दूर ले जा रहे हैं, तो फौरन कदम उठाइए! उनसे मिलना-जुलना कम कर दीजिए, ज़रूरत पड़े तो उनसे पूरी तरह नाता तोड़ दीजिए।—नीति. 13:20.
यहोवा माँग करता है कि सिर्फ उसकी भक्ति की जाए
12. (क) मिस्र छोड़ने के बाद यहोवा ने इसराएलियों से क्या कहा? (ख) इसराएलियों ने उसका क्या जवाब दिया?
12 जब इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाया गया, तो उसके बाद हुई घटना से भी हम सबक सीख सकते हैं। सीनै पहाड़ के पास यहोवा ने हैरतअंगेज़ तरीके से खुद को उनके सामने ज़ाहिर किया! लोगों को घना बादल दिखायी दिया, बिजली चमकने लगी और पहाड़ धुएँ से ढक गया। उन्हें तेज़ गरजन और नरसिंगे की ज़ोरदार आवाज़ सुनायी दी। (निर्ग. 19:16-19) तब उन्होंने यहोवा को यह ऐलान करते हुए सुना, “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा माँग करता हूँ कि सिर्फ मेरी भक्ति की जाए, मुझे छोड़ किसी और की नहीं।” उसने वादा किया कि जो लोग उससे प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं, उनका वह वफादार रहेगा। (निर्गमन 20:1-6 पढ़िए।) इस तरह यहोवा ने इसराएलियों को बताया कि अगर वे उसकी तरफ रहें, तो वह भी उनका साथ देगा। अगर आप उन इसराएलियों में से एक होते, तो यहोवा की बात सुनकर आपको कैसा लगता? शायद आप उन इसराएलियों की तरह जवाब देते, जिन्होंने कहा, “यहोवा ने जो-जो कहा है, वह सब करना हमें मंज़ूर है।” (निर्ग. 24:3) लेकिन कुछ ही समय बाद उनकी वफादारी की परख हुई। आइए देखें कैसे।
13. इसराएलियों की वफादारी की परख कैसे हुई?
13 जिस तरह यहोवा ने खुद को ज़ाहिर किया, वह देखकर इसराएली बहुत डर गए। इस वजह से मूसा सीनै पहाड़ पर गया और उसने उनकी तरफ से यहोवा से बात की। (निर्ग. 20:18-21) काफी वक्त बीत गया और मूसा पहाड़ से नीचे नहीं आया। लोगों को लगा कि वे उस वीराने में फँस गए हैं, क्योंकि अब उन्हें रास्ता दिखानेवाला कोई नहीं है। शायद इसराएली एक इंसान पर कुछ ज़्यादा ही निर्भर हो गए थे। उन्हें चिंता होने लगी और उन्होंने हारून से कहा, “पता नहीं उस मूसा का क्या हुआ, जो हमें मिस्र से निकालकर यहाँ ले आया था। इसलिए अब हमारी अगुवाई के लिए तू एक देवता बना दे।”—निर्ग. 32:1, 2.
14. (क) इसराएली क्या सोचकर खुद को धोखा दे रहे थे? (ख) इससे यहोवा को कैसा लगा?
14 इसराएली जानते थे कि मूरतों की पूजा करना गलत है। (निर्ग. 20:3-5) मगर पल-भर में वे यह नियम भूल गए! वे सोने के बछड़े की पूजा करने लगे। यहोवा की आज्ञा तोड़ने के बाद भी उन्हें लगा कि वे यहोवा की तरफ हैं। हारून ने तो यह भी कहा कि बछड़े की पूजा करना “यहोवा के लिए एक त्योहार” है! वे खुद को कितना बड़ा धोखा दे रहे थे! यह देखकर यहोवा ने मूसा से कहा कि लोगों ने “खुद को भ्रष्ट कर लिया है” और उस राह पर चलना छोड़ दिया है, “जिस राह पर चलने की [उसने] आज्ञा दी थी।” यहोवा को उन पर इतना गुस्सा आया कि उसने पूरे राष्ट्र को मिटा देने की सोची।—निर्ग. 32:5-10.
15, 16. मूसा और हारून ने कैसे दिखाया कि वे यहोवा की तरफ हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
15 लेकिन यहोवा दयालु परमेश्वर है। उसने इसराएल राष्ट्र को मिटाने का अपना इरादा बदल दिया। उसने सभी इसराएलियों को मौका दिया कि वे यह दिखाएँ कि वे उसकी तरफ हैं। (निर्ग. 32:14) मूसा ने साबित किया कि वह यहोवा की तरफ है। उसने सोने के बछड़े को लेकर चूर-चूर कर डाला, जिसके सामने लोग चिल्ला रहे थे और नाच-गा रहे थे। फिर उसने ज़ोर से कहा, “तुममें से कौन-कौन यहोवा की तरफ है? वह मेरे पास आ जाए!” “तब सभी लेवी मूसा के पास आकर जमा हो गए।”—निर्ग. 32:17-20, 26.
16 हालाँकि हारून ने सोने का बछड़ा बनाया था, मगर उसने पश्चाताप किया। दूसरे लेवियों की तरह उसने भी यहोवा की तरफ होने का फैसला किया। उन सभी वफादार लोगों ने यह साफ दिखाया कि वे पाप करनेवाले लोगों की तरफ नहीं हैं। उनका यह फैसला बिलकुल सही था, क्योंकि उसी दिन उन हज़ारों लोगों को मार डाला गया, जिन्होंने बछड़े की पूजा की थी। लेकिन जो यहोवा की तरफ थे, वे सब बच गए। परमेश्वर ने उनसे वादा किया कि वह उन्हें आशीष देगा।—निर्ग. 32:27-29.
17. पौलुस ने सोने के बछड़े की घटना के बारे में जो लिखा, उससे हम क्या सीखते हैं?
17 इस घटना से हम क्या सीखते हैं? प्रेषित पौलुस ने कहा, “ये बातें हमारे लिए सबक बनीं,” ताकि “हम मूर्तिपूजा करनेवाले [न] बनें।” पौलुस ने यह समझाया कि इस तरह की मिसालें “हमारी चेतावनी के लिए लिखी गयी थीं जो दुनिया की व्यवस्थाओं के आखिरी वक्त में जी रहे हैं। इसलिए जो सोचता है कि वह मज़बूती से खड़ा है, वह खबरदार रहे कि कहीं गिर न पड़े।” (1 कुरिं. 10:6, 7, 11, 12) जैसे पौलुस ने बताया, यहोवा की उपासना करनेवाले लोग भी बुरे काम करने लग सकते हैं और यह सोच सकते हैं कि उन पर अब भी यहोवा की मंज़ूरी है। लेकिन ध्यान रखिए कि अगर एक इंसान यहोवा का दोस्त बनने की चाहत रखता है या दावा करता है कि वह उसका वफादार है, तो इसका मतलब हमेशा यह नहीं होता कि उस पर यहोवा की मंज़ूरी है।—1 कुरिं. 10:1-5.
18. (क) हम यहोवा से दूर किस वजह से जाने लग सकते हैं? (ख) इसका अंजाम क्या हो सकता है?
18 जब इसराएलियों को लगा कि मूसा सीनै पहाड़ से नीचे आने में देर कर रहा है, तो वे चिंता में पड़ गए। उसी तरह अगर हमें लगे कि दुनिया का अंत आने में देर हो रही है, तो हम चिंता में पड़ सकते हैं। हम सोचने लग सकते हैं कि यहोवा ने एक अच्छे भविष्य का जो वादा किया है, उसे पूरा होने में अभी बहुत वक्त है या वह कभी पूरा नहीं होगा। ऐसे में हम यहोवा की मरज़ी पूरी करने के बजाय खुद की मरज़ी पूरी करने लग सकते हैं। धीरे-धीरे हम यहोवा से दूर जा सकते हैं और ऐसे काम करने लग सकते हैं, जिन्हें करने की हमने कभी कल्पना भी न की हो।
19. हमें कौन-सी बात याद रखनी चाहिए और क्यों?
19 हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा चाहता है कि हम दिल से उसकी आज्ञा मानें और सिर्फ उसकी उपासना करें। (निर्ग. 20:5) वह हमसे ऐसा क्यों चाहता है? इसकी वजह है कि वह हमसे प्यार करता है। अगर हम यहोवा की मरज़ी पूरी न करें, तो हम शैतान की मरज़ी पूरी कर रहे होंगे और इससे हमारा ही नुकसान होगा। पौलुस ने कहा, “तुम ऐसा नहीं कर सकते कि यहोवा के प्याले से पीओ और दुष्ट स्वर्गदूतों के प्याले से भी पीओ। तुम ऐसा नहीं कर सकते कि ‘यहोवा की मेज़’ से खाओ और दुष्ट स्वर्गदूतों की मेज़ से भी खाओ।”—1 कुरिं. 10:21.
यहोवा के करीब रहिए
20. हमसे गलती हो जाने पर भी यहोवा हमारी मदद किस तरह करता है?
20 कैन, सुलैमान और इसराएली, सबके पास मौका था कि वे पश्चाताप करें और बुरे काम करना छोड़ दें। (प्रेषि. 3:19) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा उन लोगों को फौरन ठुकरा नहीं देता, जो गलती करते हैं। इसकी एक मिसाल है हारून, जिसे यहोवा ने माफ कर दिया था। आज भी यहोवा प्यार की खातिर हमें लगातार चेतावनी देता है, ताकि हम बुरे काम न करें। वह यह चेतावनी हमें बाइबल, किताबों-पत्रिकाओं और दूसरे मसीहियों के ज़रिए देता है। जब हम यहोवा से मिलनेवाली चेतावनी पर ध्यान देते हैं, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वह हम पर दया करेगा।
21. जब हमारी वफादारी की परख होती है, तो हमें क्या करना चाहिए?
21 यहोवा इस मकसद से हम पर महा-कृपा करता है कि हमें ‘भक्तिहीन कामों और दुनियावी इच्छाओं को ठुकराने’ का मौका मिले। (तीतुस 2:11-14 पढ़िए; 2 कुरिं. 6:1) अकसर इस दुनिया में ऐसे हालात उठते रहेंगे, जिनमें हमारी वफादारी की परख होगी। इस वजह से ठान लीजिए कि आप यहोवा की तरफ ही रहेंगे। याद रखिए कि हमें ‘अपने परमेश्वर यहोवा का डर मानना है, उसी की सेवा करनी है और उससे लिपटे रहना है’!—व्यव. 10:20.