अध्याय 13
राज के प्रचारक अदालत का दरवाज़ा खटखटाते हैं
1, 2. (क) धर्म गुरु क्या करने में कामयाब हो गए? (ख) प्रेषितों ने क्या किया? (ग) प्रेषितों ने प्रचार काम रोकने की आज्ञा क्यों नहीं मानी?
ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त में यरूशलेम में मसीही मंडली की शुरूआत हुई थी। कुछ हफ्तों बाद इस नयी मंडली पर शैतान का हमला शुरू हो गया। वह चाहता था कि इससे पहले कि यह मंडली मज़बूत हो जाए उसे मिटा दिया जाए। शैतान ने घटनाओं का रुख ऐसा मोड़ा कि धर्म गुरुओं ने राज के प्रचार काम पर पूरी तरह रोक लगा दी। मगर प्रेषित हिम्मत से प्रचार करते रहे। इसलिए बहुत-से लोग “प्रभु पर विश्वास करनेवाले” बन गए।—प्रेषि. 4:18, 33; 5:14.
2 यह देखकर विरोधी गुस्से से भर गए। उन्होंने फिर से प्रेषितों पर वार किया। इस बार उन्होंने सभी प्रेषितों को जेल में डाल दिया। मगर रात को यहोवा के एक स्वर्गदूत ने जेल के दरवाज़े खोल दिए। दिन निकलते-निकलते प्रेषित दोबारा प्रचार करते हुए नज़र आए! उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया और अधिकारियों के पास ले जाया गया। अधिकारियों ने प्रेषितों से कहा कि उन्होंने प्रचार न करने का आदेश तोड़ा है। तब प्रेषितों ने हिम्मत से कहा, “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।” अधिकारी आग-बबूला हो उठे और “वे उनका काम तमाम कर देना चाहते थे।” मगर उसी वक्त कानून के एक माने हुए शिक्षक गमलीएल ने प्रेषितों के पक्ष में बोलते हुए अधिकारियों को खबरदार किया, “अच्छी तरह सोच लो . . . इन आदमियों के काम में दखल मत दो, पर इन्हें अपने हाल पर छोड़ दो।” हैरानी की बात है कि अधिकारियों ने उसकी सलाह मान ली और प्रेषितों को छोड़ दिया! उन वफादार प्रेषितों ने क्या किया? वे निडर होकर “बिना नागा . . . सिखाते रहे और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते रहे।”—प्रेषि. 5:17-21, 27-42; नीति. 21:1, 30.
3, 4. (क) पुराने ज़माने से शैतान ने परमेश्वर के लोगों पर हमला करने के लिए क्या किया है? (ख) हम इस अध्याय में और अगले दो अध्यायों में क्या देखेंगे?
3 इस तरह ईसवी सन् 33 में पहली बार मसीही मंडली के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गयी। मगर यह सिर्फ एक शुरूआत थी। (प्रेषि. 4:5-8; 16:20; 17:6, 7) तब से लेकर आज तक शैतान सच्ची उपासना के विरोधियों को भड़काता रहा है ताकि वे सरकारी अधिकारियों को हमारे प्रचार काम पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए उकसाएँ। विरोधियों ने परमेश्वर के लोगों पर कई तरह के इलज़ाम लगाए हैं। एक यह है कि हम फसाद की जड़ हैं, समाज में गड़बड़ी फैलाते हैं और दूसरा, हम देशद्रोही हैं। वे हम पर यह दोष भी लगाते हैं कि हम किताबें बेचते हैं। हमारे भाइयों को जब-जब सही लगा वे इन इलज़ामों को झूठा साबित करने के लिए अदालत गए। इन मुकदमों का क्या नतीजा रहा है? बरसों पहले अदालतों के किए फैसलों से आज आपको क्या फायदा हो रहा है? आइए कुछ मुकदमों पर ध्यान दें ताकि हम जानें कि उनसे “खुशखबरी की पैरवी करने और उसे कानूनी मान्यता दिलाने” में कैसे मदद मिली है।—फिलि. 1:7.
4 इस अध्याय में हम देखेंगे कि हमने प्रचार करने के अधिकार की कैसे पैरवी की है। इसके बाद के दो अध्यायों में हम देखेंगे कि हमने दुनिया से अलग रहने और राज के स्तरों को मानने के लिए कौन-सी कानूनी लड़ाइयाँ लड़ी हैं।
फसाद की जड़ या परमेश्वर के राज के वफादार समर्थक?
5. (क) 1935 के बाद राज के प्रचारकों को क्यों गिरफ्तार किया गया? (ख) अगुवाई करनेवाले भाइयों ने क्या करने की सोची?
5 सन् 1935 के बाद अमरीका के सभी शहरों और राज्यों के अधिकारियों ने यहोवा के साक्षियों पर दबाव डाला कि उन्हें प्रचार करने के लिए सरकार से परमिट या लाइसेंस लेना होगा। मगर हमारे भाइयों ने लाइसेंस के लिए अर्ज़ी नहीं भरी क्योंकि लाइसेंस रद्द किया जा सकता था। वे मानते थे कि किसी भी सरकार को प्रचार काम रोकने का अधिकार नहीं है क्योंकि यह काम करने की आज्ञा उन्हें यीशु ने दी है। (मर. 13:10) नतीजा, सैकड़ों राज के प्रचारकों को गिरफ्तार कर लिया गया। तब संगठन में अगुवाई करनेवाले भाइयों ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की सोची। वे अदालत में बताना चाहते थे कि साक्षियों को अपना धर्म मानने की जो आज़ादी है उस पर सरकार ने गैर-कानूनी रोक लगायी है। सन् 1938 में एक ऐसी घटना घटी जिसका मामला अदालत ले जाया गया और एक अहम फैसला लिया गया। वह घटना क्या थी?
6, 7. कैंटवैल परिवार के साथ क्या हुआ?
6 मंगलवार, 26 अप्रैल, 1938 की सुबह भाई न्यूटन कैंटवैल, जो 60 साल के थे, उनकी पत्नी ऐस्थर और उनके बेटे हैनरी, रसल और जैस्सी, कनैटिकट राज्य के न्यू हेवन शहर में प्रचार के लिए निकल पड़े। ये पाँचों खास पायनियर थे। उन्होंने तय किया था कि वे पूरा दिन प्रचार करने के बाद ही घर लौटेंगे। यहाँ तक कि वे कुछ दिन बाद लौटने के लिए भी तैयार थे। क्यों? इससे पहले भी कई बार उन्हें गिरफ्तार किया गया था, इसलिए वे जानते थे कि उन्हें कभी-भी गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर भी कैंटवैल परिवार का जोश कम नहीं हुआ। उस दिन वे दो गाड़ियों में न्यू हेवन पहुँचे। एक गाड़ी भाई कैंटवैल चला रहे थे और उसमें बाइबल के कई प्रकाशन और ग्रामोफोन थे। दूसरी गाड़ी लाउडस्पीकरवाली थी और उसे 22 साल का हैनरी चला रहा था। जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही हुआ। कुछ ही घंटों में पुलिस ने आकर उन्हें रोक दिया।
7 सबसे पहले 18 साल का रसल गिरफ्तार हुआ। इसके बाद भाई कैंटवैल और ऐस्थर गिरफ्तार हुए। सोलह साल के जैस्सी ने दूर से देखा कि पुलिस उसके माता-पिता और भाई को पकड़कर ले जा रही है। हैनरी कसबे के दूसरे इलाके में प्रचार कर रहा था, इसलिए जैस्सी अकेला रह गया था। फिर भी उसने अपना ग्रामोफोन उठाया और वह प्रचार करता रहा। दो कैथोलिक आदमियों ने जैस्सी को भाई रदरफर्ड का भाषण सुनाने की इजाज़त दी, जिसका शीर्षक था “शत्रु।” मगर भाषण सुनते-सुनते वे इतना गुस्सा हो गए कि वे जैस्सी को मारना चाहते थे। जैस्सी चुपचाप वहाँ से जाने लगा। मगर कुछ ही देर में एक पुलिसवाले ने उसे रोक दिया। इस तरह जैस्सी को भी हिरासत में ले लिया गया। पुलिस ने ऐस्थर पर कोई आरोप नहीं लगाया, मगर भाई कैंटवैल और उनके दो बेटों पर आरोप लगाया। लेकिन उसी दिन उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया।
8. अदालत ने क्यों जैस्सी कैंटवैल को शांति भंग करने का दोषी ठहराया?
8 कुछ महीनों बाद, सितंबर 1938 में न्यू हेवन की अदालत में कैंटवैल परिवार के मुकदमे की सुनवाई हुई। भाई कैंटवैल, रसल और जैस्सी को बगैर लाइसेंस के दान माँगने और समाज की शांति भंग करने का दोषी ठहराया गया। जब मामले की अपील कनैटिकट के सुप्रीम कोर्ट में की गयी तो भाई कैंटवैल और रसल बरी हो गए, मगर जैस्सी को समाज की शांति भंग करने का दोषी ठहराया गया। क्यों? क्योंकि जिन दो कैथोलिक आदमियों ने रिकॉर्ड किया हुआ भाषण सुना था उन्होंने अदालत में गवाही दी कि उस भाषण में उनके धर्म की बेइज़्ज़ती की गयी है और उसे सुनकर उनका गुस्सा भड़क उठा। तब हमारे संगठन में ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाई इस मुकदमे को अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ले गए जो देश की सबसे बड़ी अदालत है।
9, 10. (क) अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने कैंटवैल परिवार के मुकदमे का क्या फैसला सुनाया? (ख) हमें आज भी उस फैसले से क्या फायदा होता है?
9 उनतीस मार्च, 1940 से मुख्य न्यायाधीश चार्ल्स ई. ह्यूज़ और उसके 8 साथी जज, भाई हेडन कविंग्टन की दलीलें सुनने लगे। भाई कविंग्टन यहोवा के साक्षियों के एक वकील थे।a जब कनैटिकट राज्य के वकील ने यह साबित करने के लिए कि साक्षी गड़बड़ी फैलाते हैं, अपनी दलीलें पेश कीं तो एक जज ने उससे पूछा, “क्या यह सच नहीं कि मसीह यीशु के दिनों में भी लोगों ने उसका संदेश पसंद नहीं किया था?” जवाब में वकील ने कहा, “जी हाँ। और जहाँ तक मुझे याद है, बाइबल यह भी बताती है कि वह संदेश सुनाने के कारण यीशु के साथ क्या किया गया था!” ज़रा सोचिए, उसने कैसी बात कही! उसने अनजाने में साक्षियों की तुलना यीशु से और कनैटिकट राज्य की तुलना उन लोगों से की जिन्होंने यीशु को दोषी ठहराया था। बीस मई, 1940 को अदालत के सभी जजों ने साक्षियों के पक्ष में फैसला सुनाया।
10 अदालत का फैसला क्यों अहम था? क्योंकि फैसला यह था कि सबको अपना धर्म मानने की आज़ादी है और न तो कोई देश, राज्य या इलाके के अधिकारी उस आज़ादी पर रोक लगा सकते हैं। इसके अलावा, अदालत ने यह भी पाया कि जैस्सी ने जो किया उससे “समाज की शांति और व्यवस्था को कोई खतरा नहीं हुआ।” अदालत के उस फैसले से साबित हुआ कि यहोवा के साक्षी समाज में गड़बड़ी नहीं फैलाते। इस मुकदमे में परमेश्वर के सेवकों को कितनी बड़ी जीत मिली! आज भी हमें उससे फायदा होता है। एक वकील, जो यहोवा का साक्षी है, कहता है: “हमें अपना धर्म मानने की इतनी आज़ादी मिली है कि अब हमें डर नहीं कि झूठे इलज़ामों की वजह से हम पर पाबंदियाँ लगायी जाएँगी। इसलिए हम जहाँ भी रहते हैं, दूसरों को आशा का संदेश सुना पाते हैं।”
देशद्रोही या सच्चाई के प्रचारक?
11. कनाडा में हमारे भाइयों ने क्या अभियान चलाया और क्यों?
11 सन् 1940 से 1950 के बीच कनाडा में यहोवा के साक्षियों ने कड़े विरोध का सामना किया। इसलिए 1946 में हमारे भाइयों ने आम जनता को यह बताने के लिए कि सरकार हमसे उपासना करने का अधिकार छीन रही है, एक अभियान चलाया। यह अभियान 16 दिन तक चला और इसमें उन्होंने एक अँग्रेज़ी परचा बाँटा जिसका शीर्षक था, परमेश्वर, मसीह और स्वतंत्रता से क्युबेक की तीव्र घृणा—कनाडावासियों पर कलंक। चार पेज के इस परचे में खुलकर बताया गया कि क्युबेक प्रांत में हमारे भाइयों के खिलाफ पादरियों ने कैसे दंगे भड़काए और पुलिस और लोगों की भीड़ ने भाइयों को कैसे बेरहमी से मारा-पीटा। परचे में लिखा था, “यहोवा के साक्षियों को आज भी अवैध तरीके से गिरफ्तार किया जा रहा है। ग्रेटर मान्ट्रियल के न्यायालय में यहोवा के साक्षियों के विरोध में लगभग 800 मुकदमे दायर हैं।”
12. (क) परचे बाँटने के अभियान के दौरान विरोधियों ने क्या किया? (ख) भाइयों पर क्या इलज़ाम लगाया गया? (फुटनोट भी देखें।)
12 क्युबेक के प्रमुख अधिकारी मोरीस ड्यूप्लीसी ने, जो रोमन कैथोलिक चर्च के कार्डिनल विल्लेन्यूव के साथ मिला था, परचे का विरोध किया और साक्षियों के खिलाफ मानो जंग छेड़ दी। उसने कहा कि साक्षियों पर बिलकुल दया नहीं की जाएगी। देखते-ही-देखते मुकदमों की गिनती 800 से बढ़कर 1,600 हो गयी। एक पायनियर बहन ने कहा, “पुलिस ने हमें इतनी बार गिरफ्तार किया कि हमने गिनना ही छोड़ दिया।” जो साक्षी वह परचा बाँटते हुए पकड़े जाते, उन पर इलज़ाम लगाया जाता था कि वे “देशद्रोह को बढ़ावा देनेवाली बातें” फैलाकर अपराध कर रहे हैं।b
13. (क) सबसे पहले किन पर देशद्रोह का इलज़ाम लगाकर मुकदमा चलाया गया? (ख) अदालत ने उस मुकदमे का क्या फैसला सुनाया?
13 सन् 1947 में सबसे पहले भाई एमे बूशे और उनकी बेटियों पर देशद्रोह के इलज़ाम में मुकदमा किया गया। उनकी बेटियाँ थीं, 18 साल की जिज़ैल और 11 साल की लूसील। उन तीनों ने क्युबेक की तीव्र घृणा नाम का परचा क्युबेक शहर के दक्षिण में अपने खेत के पास पहाड़ियों पर बाँटा था। यह इलज़ाम सरासर गलत था कि वे कानून के खिलाफ जाकर लोगों में गड़बड़ी फैला रहे हैं। भाई बूशे स्वभाव से बहुत नम्र थे और एक सीधे-सादे इंसान थे। वे चुपचाप अपने छोटे-से खेत में काम करते और कभी-कभार घोड़े-गाड़ी से नगर जाते थे। फिर भी उनके परिवार को वही ज़ुल्म सहने पड़े जिनका ज़िक्र परचे में किया गया था। उनके मुकदमे की सुनवाई करनेवाला जज साक्षियों से नफरत करता था। उसने बूशे परिवार की बेगुनाही के सबूतों को ठुकरा दिया और सरकारी वकील की दलीलों को माना कि उस परचे से नफरत की आग भड़कायी जा रही है, इसलिए बूशे परिवार को दोषी माना जाए। एक तरह से जज यह कह रहा था कि सच्चाई बताना एक जुर्म है! भाई बूशे और जिज़ैल को देशद्रोह को बढ़ावा देनेवाली बातें फैलाने का दोषी करार दिया गया और छोटी लूसील को भी दो दिन जेल में बिताने पड़े। भाइयों ने देश की सबसे बड़ी अदालत, कनाडा के सुप्रीम कोर्ट में अपील की और वह अदालत मुकदमा सुनने के लिए राज़ी हो गयी।
14. क्युबेक के भाई ज़ुल्मों के दौर में क्या करते रहे?
14 इस बीच क्युबेक में हमारे भाई-बहनों पर लगातार हिंसा होती रही, फिर भी वे निडर होकर राज का संदेश सुनाते रहे। कई बार इसके बहुत बढ़िया नतीजे निकले। सन् 1946 में जब परचा बाँटने का अभियान शुरू हुआ तब से चार सालों के दौरान क्युबेक में साक्षियों की गिनती 300 से बढ़कर 1,000 हो गयी!c
15, 16. (क) कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने बूशे परिवार के मुकदमे का क्या फैसला सुनाया? (ख) इस जीत से हमारे भाइयों और दूसरों को क्या फायदा हुआ?
15 जून 1950 में कनाडा के सुप्रीम कोर्ट के सभी नौ जजों ने भाई एमे बूशे के मुकदमे की सुनवाई की। छ: महीने बाद 18 दिसंबर, 1950 को अदालत ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया। क्यों? भाई ग्लैन हाउ ने, जो साक्षियों के एक वकील थे, बताया कि अदालत भाई बूशे की पैरवी करनेवाले वकीलों की दलील से सहमत हो गयी कि “देशद्रोह” का मतलब लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसा या बगावत करने के लिए भड़काना है। मगर उस परचे में “ऐसा कुछ नहीं लिखा था जिससे विद्रोह भड़के, इसलिए उस परचे में जो लिखा था वह उस कानून के दायरे में आता है जो सबको बोलने की स्वतंत्रता देता है।” भाई हाउ ने यह भी कहा, “मैंने अपनी आँखों से देखा कि यहोवा ने कैसे हमें विजय दिलायी।”d
16 सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला परमेश्वर के राज के लिए वाकई एक अनोखी जीत थी। क्युबेक में 122 और मुकदमे थे जिनमें साक्षियों पर देशद्रोह को बढ़ावा देनेवाली बातें फैलाने का इलज़ाम लगाया गया था। मगर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले ने उन सारे मुकदमों को बेबुनियाद साबित कर दिया। अदालत के उस फैसले से कनाडा और राष्ट्रमंडल के देशों के नागरिकों को यह आज़ादी भी मिल गयी कि अगर वे सरकार की किसी कार्रवाई से खुश न हों तो वे आवाज़ उठा सकते हैं। इतना ही नहीं, इस जीत की वजह से क्युबेक में यहोवा के साक्षियों पर चर्च और सरकार के सारे हमले रुक गए।e
किताबें बेचनेवाले या राज के जोशीले प्रचारक?
17. कुछ सरकारें हमारे प्रचार काम के मामले में क्या करने की कोशिश करती हैं?
17 शुरू के मसीहियों की तरह आज यहोवा के सेवक “परमेश्वर के वचन का सौदा करनेवाले नहीं” हैं। (2 कुरिंथियों 2:17 पढ़िए।) फिर भी कुछ सरकारें हमारे प्रचार काम पर व्यापार से जुड़े कानून लागू करके इस पर पाबंदियाँ लगाने की कोशिश करती हैं। आइए ऐसे दो मुकदमों पर गौर करें जो इस मसले को लेकर थे कि यहोवा के साक्षी किताबें बेचनेवाले हैं या मसीही सेवक।
18, 19. डेनमार्क के अधिकारियों ने कैसे प्रचार काम को रोकने की कोशिश की?
18 डेनमार्क: 1 अक्टूबर, 1932 को यह कानून लागू किया गया कि बिना लाइसेंस के किताबें-पत्रिकाएँ बेचना गैर-कानूनी है। हमारे भाइयों ने लाइसेंस के लिए अर्ज़ी नहीं भरी। जिस दिन वह कानून लागू हुआ उसके अगले दिन 5 प्रचारक रसकिल नगर में प्रचार कर रहे थे, जो डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन से करीब 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में था। पूरा दिन प्रचार करने के बाद भाइयों ने देखा कि ऑगस्त लेमान नाम का एक प्रचारक गायब है। उसे बगैर लाइसेंस के चीज़ें बेचने के इलज़ाम में गिरफ्तार कर लिया गया था।
19 उन्नीस दिसंबर, 1932 को ऑगस्त लेमान को अदालत में पेश किया गया। उसने अपनी सफाई में कहा कि वह लोगों से मिलकर उन्हें बाइबल के प्रकाशन दे रहा था, मगर वह बेच नहीं रहा था। अदालत मान गयी। अदालत ने कहा, “प्रतिवादी . . . अपनी रोज़ी-रोटी कमाने में समर्थ है और उसे इस काम से न अब तक कोई आर्थिक लाभ हुआ है और न ही वह आगे ऐसा लाभ पाने की इच्छा रखता है। इसके बजाय इस काम में उसका अपना पैसा खर्च होता है।” अदालत ने साक्षियों का पक्ष लिया और फैसला सुनाया कि लेमान के काम को “व्यापार नहीं कहा जा सकता।” मगर परमेश्वर के लोगों के दुश्मनों ने ठान लिया था कि वे पूरे देश में प्रचार काम को रोक देंगे। (भज. 94:20) सरकारी वकील ने देश की कई अदालतों में अपील की और आखिर में वह सुप्रीम कोर्ट गया। तब हमारे भाइयों ने क्या किया?
20. (क) डेनमार्क के सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया? (ख) यह फैसला सुनकर हमारे भाइयों ने क्या किया?
20 जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनेवाली थी, उससे पहलेवाले हफ्ते पूरे डेनमार्क में साक्षियों ने प्रचार काम और भी ज़ोर-शोर से किया। मंगलवार, 3 अक्टूबर, 1933 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। यह अदालत, निचली अदालत के फैसले से सहमत थी कि ऑगस्त लेमान ने कानून नहीं तोड़ा था। उस फैसले का मतलब था कि साक्षी बिना रोक-टोक प्रचार कर सकते हैं। भाई-बहन इस कानूनी जीत के लिए यहोवा को अपना एहसान ज़ाहिर करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने प्रचार काम और भी बढ़-चढ़कर किया। अदालत के उस फैसले के बाद से डेनमार्क में हमारे भाई सरकार की दखलअंदाज़ी के बगैर प्रचार काम कर पाए हैं।
21, 22. भाई मरडक के मुकदमे में अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
21 अमरीका: रविवार, 25 फरवरी, 1940 को जब रौबर्ट मरडक नाम का पायनियर भाई और सात और साक्षी पेन्सिलवेनिया राज्य के पिट्सबर्ग के पास जनैट शहर में प्रचार कर रहे थे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर इलज़ाम लगाया गया कि वे बिना लाइसेंस के लोगों को किताबें दे रहे थे। जब अमरीका के सुप्रीम कोर्ट से अपील की गयी तो वह अदालत उनके मुकदमे की सुनवाई करने को राज़ी हो गयी।
22 सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई, 1943 को साक्षियों के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि लाइसेंस पाने की माँग करना गलत है क्योंकि इसका मतलब होगा कि “देश के संविधान से मिले अधिकार का उपयोग करने के लिए कीमत चुकाना आवश्यक है।” अदालत ने शहर में बनाए कानून को यह कहकर रद्द कर दिया कि वह कानून “साहित्य छापने और अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता पर रोक” लगाता है। न्यायाधीश विलियम ओ. डगलस ने अदालत के ज़्यादातर जजों की राय ज़ाहिर करते हुए कहा कि यहोवा के साक्षी “सिर्फ प्रचार नहीं करते या सिर्फ धार्मिक साहित्य नहीं बाँटते। वे दोनों काम करते हैं।” उसने यह भी कहा, “इस तरह के धार्मिक काम को वही मान्यता दी जानी चाहिए जो चर्चों में होनेवाली उपासना और मंच से दिए जानेवाले उपदेश को दी गयी है।”
23. सन् 1943 में हमने जो मुकदमे जीते वे आज भी हमारे लिए क्यों मायने रखते हैं?
23 सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला परमेश्वर के लोगों के लिए एक बहुत बड़ी कानूनी जीत थी। इससे हमारे बारे में सच्चाई पुख्ता हुई कि हम मसीही सेवक हैं, न कि किताबें बेचनेवाले। सन् 1943 के उस यादगार दिन, सुप्रीम कोर्ट में यहोवा के साक्षी 13 में से 12 मुकदमे जीत गए। उनमें से एक था, मरडक मुकदमा। हाल में जब सरेआम और घर-घर जाकर गवाही देने के हमारे अधिकार पर विरोधियों ने दोबारा सवाल उठाया तो हम उन फैसलों की मिसाल देकर अपनी पैरवी कर पाए।
“इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है”
24. जब कोई सरकार हमारे प्रचार काम पर रोक लगाती है तो हम क्या करते हैं?
24 जब सरकारें हमें बेरोक-टोक प्रचार करने के लिए कानूनी हक देती हैं तो हम यहोवा के सेवक इसकी बहुत कदर करते हैं। लेकिन जब एक सरकार हमारे काम पर रोक लगाती है तो भी हम प्रचार करना नहीं छोड़ते, बस यह काम करने का तरीका बदल देते हैं। प्रेषितों की तरह “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।” (प्रेषि. 5:29; मत्ती 28:19, 20) पर साथ ही हम अदालतों में अपील करते हैं कि हमारे काम पर लगी रोक हटा दी जाए। इसकी दो मिसालों पर गौर कीजिए।
25, 26. (क) निकारागुआ में हुई किन घटनाओं की वजह से वहाँ के सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया? (ख) इसका नतीजा क्या हुआ?
25 निकारागुआ: 19 नवंबर, 1952 को मिशनरी और शाखा सेवक, भाई डोनवन मंस्टरमैन निकारागुआ की राजधानी मानागुआ में आप्रवास कार्यालय गए। उन्हें हुक्म दिया गया था कि वे उस कार्यालय के बड़े अधिकारी, कप्तान आरनल्ड गार्सिया के सामने हाज़िर हों। कप्तान ने भाई मंस्टरमैन को बताया कि निकारागुआ में सभी यहोवा के साक्षियों पर “रोक लगा दी गयी है और अब से वे अपनी शिक्षाओं का प्रचार नहीं कर सकते और अपने धर्म के कामों को बढ़ावा नहीं दे सकते।” जब भाई ने इसकी वजह पूछी तो कप्तान ने बताया कि साक्षियों को प्रचार करने के लिए सरकार से इजाज़त नहीं मिली है और उन पर कम्यूनिस्ट यानी साम्यवादी होने का आरोप है। उन पर यह आरोप लगानेवाले कौन थे? रोमन कैथोलिक पादरी।
26 भाई मंस्टरमैन ने फौरन सरकार और धर्मों के मंत्रालय से, साथ ही राष्ट्रपति आनासटासयो सोमोज़ा गार्सिया से अपील की। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए भाइयों ने उपासना करने के तरीकों में बदलाव किया। उन्होंने राज-घर में मिलना बंद कर दिया और वे छोटे-छोटे समूहों में मिलने लगे। उन्होंने सड़क पर गवाही देनी छोड़ दी, मगर दूसरे तरीकों से राज का संदेश सुनाते रहे। साथ ही, उन्होंने निकारागुआ के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि वह उन पर लगी रोक हटा दे। अखबारों ने यह खबर दूर-दूर तक फैला दी कि हम पर रोक लगायी गयी है और हमारी याचिका में क्या लिखा है। सुप्रीम कोर्ट हमारे मुकदमे की सुनवाई करने को राज़ी हो गया। नतीजा क्या हुआ? सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने एकमत से साक्षियों के पक्ष में फैसला सुनाया और उनका यह फैसला 19 जून, 1953 को प्रकाशित किया गया। अदालत ने पाया कि साक्षियों पर रोक लगाकर उनकी आज़ादी छीन ली गयी है जबकि संविधान सबको बोलने, अपने ज़मीर के मुताबिक फैसला करने और अपनी धार्मिक शिक्षाओं का प्रचार करने की आज़ादी देता है। अदालत ने यह हुक्म भी दिया कि निकारागुआ की सरकार साक्षियों के साथ पहले की तरह अच्छा व्यवहार करे।
27. (क) निकारागुआ के लोग अदालत के फैसले से क्यों दंग रह गए? (ख) हमारे भाइयों को इस जीत के बारे में क्या यकीन था?
27 निकारागुआ के लोग इस बात से दंग रह गए कि सुप्रीम कोर्ट ने साक्षियों का पक्ष लिया। तब तक पादरियों का इतना दबदबा था कि अदालत उनसे उलझने से बचती थी। सरकारी अधिकारियों की भी इतनी धाक थी कि अदालत शायद ही कभी उनके फैसलों के खिलाफ जाती थी। हमारे भाइयों को यकीन था कि उन्हें यह जीत इसीलिए मिली क्योंकि उनका राजा यीशु उनकी हिफाज़त कर रहा था और उन्होंने प्रचार करना नहीं छोड़ा था।—प्रेषि. 1:8.
28, 29. सन् 1985 के आस-पास जायर में अचानक हालात कैसे बदल गए?
28 जायर: 1985 के आस-पास जायर में लगभग 35,000 साक्षी थे। (आज जायर का नाम कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य है।) वहाँ राज के कामों में हो रही तरक्की को देखते हुए शाखा दफ्तर कुछ नयी इमारतें बना रहा था। दिसंबर 1985 में वहाँ की राजधानी किनशासा के एक स्टेडियम में एक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन रखा गया। दुनिया के कई देशों से आए भाई-बहनों को मिलाकर अधिवेशन की हाज़िरी 32,000 थी। मगर कुछ समय बाद यहोवा के साक्षियों के हालात बदलने लगे। कैसे?
29 उस समय मारसैल फिलटो नाम के मिशनरी भाई जायर में सेवा करते थे। वे कनाडा के क्युबेक से थे और उन्होंने ड्यूप्लीसी शासन में ज़ुल्म सहे थे। भाई ने बताया कि जायर में क्या हुआ: “12 मार्च, 1986 को ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों को एक खत मिला जिसमें यह घोषणा की गयी थी कि जायर में यहोवा के साक्षियों का संघ गैर-कानूनी है।” खत पर देश के राष्ट्रपति मोबुटू सेसे सेको ने हस्ताक्षर किए थे।
30. (क) शाखा-समिति को कौन-सा गंभीर फैसला करना था? (ख) समिति ने क्या फैसला लिया?
30 अगले दिन देश के सभी सरकारी रेडियो स्टेशनों पर यह घोषणा की गयी: “अब से हम [जायर] में यहोवा के साक्षियों के बारे में कभी नहीं सुनेंगे।” इसके फौरन बाद साक्षियों पर ज़ुल्म किए जाने लगे। राज-घर तबाह कर दिए गए, हमारे भाइयों को लूटा गया, गिरफ्तार किया गया, जेल में डाला गया और पीटा गया। साक्षियों के बच्चों को भी जेल में डाल दिया गया। बारह अक्टूबर, 1988 को सरकार ने हमारे संगठन की संपत्ति ज़ब्त कर ली और सेना की एक टुकड़ी, सिविल गार्ड ने शाखा दफ्तर पर कब्ज़ा कर लिया। ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों ने राष्ट्रपति मोबुटू से अपील की, मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। तब शाखा-समिति को यह गंभीर फैसला करना था: “हम सुप्रीम कोर्ट से अपील करें या फिर इंतज़ार करें?” भाई टिमथी होम्स, जो एक मिशनरी थे और उस वक्त शाखा-समिति प्रबंधक थे, उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं: “हमने बुद्धि और मार्गदर्शन के लिए यहोवा से प्रार्थना की।” इस बारे में प्रार्थना और काफी विचार करने के बाद, समिति इस नतीजे पर पहुँची कि कानूनी कार्रवाई करने का यह सही समय नहीं है। इसलिए उन्होंने भाई-बहनों की देखभाल करने और प्रचार काम जारी रखने के अलग-अलग तरीके ढूँढ़ने पर ध्यान दिया।
“उस मुकदमे के दौरान हमने देखा कि यहोवा कैसे हालात बदल सकता है”
31, 32. (क) जायर के सुप्रीम कोर्ट ने कौन-सा अनोखा फैसला किया? (ख) इस फैसले का भाइयों पर क्या असर हुआ?
31 कई साल बीत गए। साक्षियों पर ज़ुल्म होना कम हो गया और देश में मानव अधिकारों को ज़्यादा अहमियत दी जाने लगी। शाखा-समिति ने फैसला किया कि अब समय आ गया है कि हम पर लगायी गयी रोक हटाने के लिए हम जायर के सुप्रीम कोर्ट में अपील करें। गौर करनेवाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट उनके मुकदमे की सुनवाई करने को राज़ी हो गया। फिर 8 जनवरी, 1993 को यानी राष्ट्रपति की तरफ से लगी रोक के करीब सात साल बाद, अदालत ने फैसला सुनाया कि सरकार ने साक्षियों के खिलाफ जो कार्रवाई की थी वह गैर-कानूनी थी। इसलिए उन पर लगायी गयी रोक हटा दी गयी। यह फैसला किसी चमत्कार से कम नहीं था! जजों ने अपनी जान खतरे में डालकर देश के राष्ट्रपति का फैसला रद्द कर दिया था! भाई होम्स कहते हैं, “उस मुकदमे के दौरान हमने देखा कि यहोवा कैसे हालात बदल सकता है।” (दानि. 2:21) इस जीत से हमारे भाइयों का विश्वास बहुत मज़बूत हुआ। उन्होंने महसूस किया कि राजा यीशु ने अपने लोगों को यह फैसला करने में मदद दी कि उन्हें कब और कैसे कदम उठाना चाहिए।
32 जब रोक हटा दी गयी तो शाखा दफ्तर को इजाज़त दी गयी कि वे देश में मिशनरियों को बुला सकते हैं, नया शाखा दफ्तर बना सकते हैं और विदेश से बाइबल के प्रकाशन मँगा सकते हैं।f पूरी दुनिया में रहनेवाले परमेश्वर के सेवक यह देखकर बहुत खुश होते हैं कि यहोवा कैसे अपने लोगों की मदद करता है ताकि वे उसके साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रख सकें!—यशा. 52:10.
“यहोवा मेरा मददगार है”
33. चंद मुकदमों के बारे में चर्चा करके हमने क्या सीखा?
33 अब तक हमने चंद कानूनी लड़ाइयों के बारे में जो चर्चा की उससे साबित होता है कि यीशु ने अपना यह वादा पूरा किया है: “मैं तुम्हें ऐसे शब्द और ऐसी बुद्धि दूँगा कि सब विरोधी साथ मिलकर भी तुम्हारा मुकाबला नहीं कर पाएँगे, न ही जवाब में कुछ कह पाएँगे।” (लूका 21:12-15 पढ़िए।) आज के समय में कभी-कभी यहोवा ने गमलीएल जैसे लोगों के ज़रिए अपने सेवकों की हिफाज़त की है या साहसी जजों और वकीलों को न्याय के पक्ष में खड़े होने के लिए उभारा है। यहोवा ने हमारे विरोधियों के हथियारों को बेकार साबित कर दिया है। (यशायाह 54:17 पढ़िए।) परमेश्वर के काम का चाहे जितना भी विरोध किया जाए वह रुक नहीं सकता।
34. (क) हमने जितने मुकदमे जीते हैं वे क्यों गौर करने लायक हैं? (ख) इनसे क्या साबित होता है? (यह बक्स भी देखें: “अदालतों में मिली अनोखी जीत से प्रचार काम आगे बढ़ा।”)
34 हमने जो मुकदमे जीते हैं, वे क्यों गौर करने लायक हैं? ज़रा इस बात पर ध्यान दीजिए: यहोवा के साक्षी बहुत रुतबेदार या ऊँचे दर्जे के लोग नहीं हैं। हम न तो वोट देते हैं, न ही राजनैतिक अभियानों में हिस्सा लेते हैं या नेताओं को अपनी तरफ करने की कोशिश करते हैं। इतना ही नहीं, हममें से जिनको अदालतों में ले जाया जाता है उनमें से ज़्यादातर को “कम पढ़े-लिखे, मामूली” लोग समझा जाता है। (प्रेषि. 4:13) इसके अलावा, हमारा विरोध करनेवाले धर्म के लोग और सरकारी अधिकारी बहुत ताकतवर हैं। इसलिए इंसानी नज़रिए से देखा जाए तो यह नामुमकिन लगता है कि अदालतें इन विरोधियों के खिलाफ जाकर हमारी मदद करेंगी। मगर अदालतों ने कई बार हमारे ही पक्ष में फैसला सुनाया है! हमारी जीत इस बात का सबूत है कि हम “परमेश्वर को हाज़िर जानकर मसीह के संग” चल रहे हैं। (2 कुरिं. 2:17) इसलिए प्रेषित पौलुस की तरह हम कहते हैं, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा।”—इब्रा. 13:6.
a इस मुकदमे को कैंटवैल बनाम कनैटिकट राज्य कहा जाता है। यह उन 43 मुकदमों में से पहला था जिनमें भाई हेडन कविंग्टन ने अमरीका के सुप्रीम कोर्ट में भाइयों की पैरवी की थी। सन् 1978 में भाई की मौत हो गयी थी। उनकी पत्नी डॉरथी की मौत 2015 में हुई जब वह 92 साल की थी। बहन ने अपनी मौत तक वफादारी से सेवा की।
b यह इलज़ाम 1606 में जारी हुए एक कानून के आधार पर लगाया गया था। उस कानून के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति की बातों के बारे में न्याय करनेवाली समिति (जूरी) को लगे कि उनसे सरकार के खिलाफ नफरत भड़क सकती है, फिर चाहे उसकी बातें सच ही क्यों न हों, तो समिति उस व्यक्ति को दोषी करार दे सकती है।
c सन् 1950 में क्युबेक में 164 पूरे समय के सेवक थे। उनमें से 63 जन गिलियड के ग्रैजुएट थे। जब उन्हें क्युबेक में सेवा करने के लिए कहा गया तो वे खुशी-खुशी तैयार हो गए, इसके बावजूद कि वे जानते थे कि वहाँ उनका कड़ा विरोध किया जाएगा।
d भाई डब्ल्यू. ग्लैन हाउ बड़े हिम्मतवाले वकील थे। सन् 1943 से 2003 तक उन्होंने कनाडा और दूसरे देशों में बड़ी कुशलता से यहोवा के साक्षियों के सैकड़ों मुकदमे लड़े।
e इस मुकदमे के बारे में ज़्यादा जानने के लिए 8 मई, 2000 की सजग होइए! के पेज 16-22 पर दिया लेख देखें जिसका शीर्षक है, “युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है।”
f सिविल गार्ड ने आखिरकार शाखा दफ्तर की इमारतें खाली कर दीं। फिर भी नया शाखा दफ्तर दूसरी जगह बनाया गया।