भजन
104 मेरा मन यहोवा की तारीफ करे।+
हे यहोवा, मेरे परमेश्वर, तू बहुत महान है।+
तू प्रताप* और वैभव का लिबास पहने हुए है।+
3 वह ऊपर के पानी में* शहतीरों से ऊपरी कोठरियाँ बनाता है,+
बादलों को अपना रथ बनाता है,+
पवन के पंखों पर सवारी करता है।+
6 तूने धरती को गहरे पानी से ऐसे ढाँप दिया मानो चादर हो।+
पानी ने पहाड़ों को ढक लिया।
7 तेरी डाँट सुनते ही वह भाग गया,+
तेरे गरजन से वह घबराकर भाग गया,
8 उस जगह चला गया जो तूने उसके लिए तय की।
पहाड़ उभरकर आए+ और घाटियाँ नीचे धँस गयीं।
10 वह सोतों का पानी घाटियों में भेजता है,
पानी पहाड़ों के बीच बहता है।
11 उससे मैदान के सभी जंगली जानवरों को पानी मिलता है,
जंगली गधे अपनी प्यास बुझाते हैं।
12 पानी के पास आकाश के पंछी बसेरा करते हैं,
घनी डालियों पर बैठे गीत गाते हैं।
13 वह अपनी ऊपरी कोठरियों से पहाड़ों को सींचता है।+
तेरी मेहनत के फल से धरती भर गयी है।+
14 वह मवेशियों के लिए घास
और इंसानों के इस्तेमाल के लिए पेड़-पौधे उगाता है+
ताकि ज़मीन से खाने की चीज़ें उपजें,
15 दाख-मदिरा मिले जिससे इंसान का दिल मगन होता है,+
तेल मिले जिससे उसका चेहरा चमक उठता है,
रोटी मिले जिससे नश्वर इंसान का दिल मज़बूत बना रहता है।+
16 यहोवा के पेड़ों को,
उसके लगाए लबानोन के देवदारों को भरपूर पानी मिलता है
17 जिन पर पंछी घोंसला बनाते हैं।
लगलग+ का बसेरा सनोवर के पेड़ों पर है।
18 ऊँचे-ऊँचे पहाड़, पहाड़ी बकरियों के लिए हैं,+
बड़ी-बड़ी चट्टानें, चट्टानी बिज्जुओं के लिए पनाह हैं।+
22 जब सूरज उगता है
तो वे माँद में लौट जाते हैं और लेट जाते हैं।
23 इंसान काम पर जाता है
और शाम तक मशक्कत करता है।
24 हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं!+
तूने ये सब अपनी बुद्धि से बनाया है,+
धरती तेरी बनायी चीज़ों से भरपूर है।
28 तू उन्हें जो देता है, उसे वे बटोरते हैं।+
जब तू मुट्ठी खोलकर देता है तो वे अच्छी चीज़ों से संतुष्ट होते हैं।+
29 जब तू उनसे अपना मुँह फेर लेता है तो वे बेचैन हो जाते हैं।
जब तू उनकी साँस* ले लेता है तो वे मर जाते हैं, मिट्टी में लौट जाते हैं।+
31 यहोवा की महिमा सदा बनी रहेगी।
यहोवा अपने कामों से खुश होगा।+
33 मैं सारी ज़िंदगी यहोवा के लिए गीत गाऊँगा,+
जब तक मैं ज़िंदा रहूँगा, अपने परमेश्वर की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+
मैं यहोवा के कारण मगन होऊँगा।
मेरा मन यहोवा की तारीफ करे। याह की तारीफ करो!*