गिनती
11 अब लोग यहोवा के सामने बुरी तरह शिकायत करने लगे। जब यहोवा ने उनकी शिकायतें सुनीं तो वह गुस्से से भड़क उठा। यहोवा ने आग बरसायी और वह छावनी के किनारे से लोगों को भस्म करने लगा। 2 जब लोग मदद के लिए मूसा को पुकारने लगे, तो मूसा ने यहोवा से मिन्नत की+ और आग बुझ गयी। 3 उस जगह का नाम तबेरा* पड़ा क्योंकि वहाँ यहोवा ने लोगों पर आग बरसायी थी।+
4 इसके बाद इसराएलियों के बीच लोगों की जो मिली-जुली भीड़* थी,+ वह खाने की चीज़ों की बड़ी लालसा करने लगी+ और इसराएली भी रोने लगे, “काश, हमें इस वीराने में गोश्त मिल जाता!+ 5 वे दिन हम कैसे भुला सकते हैं जब हम मिस्र में मछलियाँ मुफ्त खाया करते थे! और खीरा, तरबूज़, लहसुन, प्याज़, क्या नहीं मिलता था वहाँ!+ 6 मगर अब देखो, हम सूखते जा रहे हैं! सिवा इस मन्ना के यहाँ कुछ नहीं मिलता!”+
7 मन्ना+ धनिए के बीज जैसा था।+ वह दिखने में गुग्गुल पौधे के गोंद की तरह था। 8 लोग इधर-उधर जाकर ज़मीन से उसे बटोरते थे और फिर हाथ की चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे। इसके बाद वे उसे या तो हाँडी में उबालकर खाते या उससे गोल-गोल रोटियाँ बनाकर खाते थे।+ उसका स्वाद पुए जैसा था। 9 रात के वक्त जब छावनी में ओस पड़ती तो उसके साथ मन्ना गिरता था।+
10 मूसा ने देखा कि पूरी छावनी में कोहराम मचा हुआ है। हर परिवार और हर इंसान अपने तंबू के द्वार पर बैठा अपना रोना रो रहा है। यह देखकर यहोवा का क्रोध भड़क उठा+ और मूसा को भी गुस्सा आया। 11 उसने यहोवा से कहा, “तू क्यों अपने इस दास को सता रहा है? आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो तू मुझसे नाराज़ है? तूने क्यों इन सारे लोगों का बोझ मुझ पर लाद दिया?+ 12 क्या मैं इन सबका पिता हूँ? क्या मैंने इन्हें जन्म दिया है? फिर तू मुझसे क्यों कहता है कि जैसे एक धाई दूध-पीते बच्चे को गोद में लिए फिरती है, वैसे ही तू इनकी देखभाल कर और उस देश में ले जा जिसे देने के बारे में मैंने उनके पुरखों से शपथ खायी थी?+ 13 ये लोग मुझसे रो-रोकर कहते हैं, ‘हमें खाने को गोश्त दे!’ अब तू ही बता, इन सबके लिए गोश्त मैं कहाँ से लाऊँ? 14 मैं अकेला इन सबको सँभालते-सँभालते थक गया हूँ। अब मुझसे और नहीं होगा।+ 15 अगर तू मुझसे यह बोझ दूर नहीं करना चाहता तो अभी-के-अभी मुझे मार डाल।+ लेकिन अगर तेरी कृपा मुझ पर है, तो मुझ पर और मुसीबतें न आने दे।”
16 यहोवा ने मूसा से कहा, “इसराएल के मुखियाओं में से 70 आदमी चुन, ऐसे आदमी जिन्हें तू जानता है* कि वे लोगों के मुखिया और अधिकारी हैं।+ तू उन्हें भेंट के तंबू के पास ले जा और अपने साथ खड़ा कर। 17 मैं आकर वहाँ तुझसे बात करूँगा+ और तुझ पर मेरी जो पवित्र शक्ति+ है उसमें से थोड़ी लेकर उन्हें दूँगा। और वे लोगों को सँभालने की ज़िम्मेदारी निभाने में तेरी मदद करेंगे ताकि यह सारा बोझ तुझे अकेले न उठाना पड़े।+ 18 और तू लोगों से कहना, ‘कल के लिए तैयार हो जाओ।+ कल तुम्हें ज़रूर खाने को गोश्त मिलेगा, क्योंकि तुम जो रोना रोते हो, “यहाँ हमें खाने के लिए गोश्त कौन देगा? हम मिस्र में ही अच्छे थे,”+ यह सब यहोवा ने सुना है।+ यहोवा तुम्हें ज़रूर गोश्त देगा और तुम खाओगे।+ 19 तुम एक या 2 दिन नहीं, 5 या 10 या 20 दिन नहीं, 20 बल्कि पूरे महीने खाते रहोगे, इतना कि वह तुम्हारे नथनों से निकलने लगेगा और तुम्हें उससे घिन हो जाएगी,+ क्योंकि तुमने यहोवा को ठुकरा दिया है जो तुम्हारे बीच है और तुमने उसके सामने रो-रोकर कहा है, “हम मिस्र छोड़कर क्यों आए?”’”+
21 तब मूसा ने कहा, “यहाँ तो पैदल सैनिकों की गिनती ही 6,00,000 है।+ और तू कहता है कि मैं सबको गोश्त दूँगा, उन्हें महीने-भर गोश्त खिलाऊँगा! यह कैसे हो सकता है? 22 भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के झुंड-के-झुंड भी हलाल कर दिए जाएँ तो भी क्या इतने सारे लोगों के लिए काफी होगा? या अगर समुंदर की सारी मछलियाँ पकड़ ली जाएँ, फिर भी क्या उनके खाने के लिए काफी होगा?”
23 यहोवा ने मूसा से कहा, “क्या यहोवा का हाथ इतना छोटा है+ कि वह लोगों को खिला न सके? अब तू देखेगा कि मैंने तुझसे जो कहा है वह होता है या नहीं।”
24 तब मूसा बाहर आया और उसने लोगों को बताया कि यहोवा ने उससे क्या कहा है। मूसा ने लोगों के मुखियाओं में से 70 आदमी चुने और उनसे कहा कि वे तंबू के चारों तरफ खड़े हो जाएँ।+ 25 फिर यहोवा एक बादल में उतरा+ और उसने मूसा से बात की।+ मूसा पर उसकी जो पवित्र शक्ति थी, उसमें से थोड़ी लेकर+ उसने उन 70 मुखियाओं में से हरेक को दी। जैसे ही उन सब पर पवित्र शक्ति आयी, वे भविष्यवक्ताओं जैसा व्यवहार करने लगे।*+ मगर इसके बाद उन्होंने फिर कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया।
26 एलदाद और मेदाद नाम के दो मुखिया तंबू के पास नहीं गए बल्कि छावनी में ही रहे। वे उन आदमियों में से थे जिनके नाम लिखे गए थे। इसलिए उन दोनों पर भी पवित्र शक्ति आयी, इसके बावजूद कि वे तंबू के पास नहीं गए। और वे दोनों छावनी में भविष्यवक्ताओं जैसा व्यवहार करने लगे। 27 यह देखकर एक जवान ने दौड़कर मूसा को यह खबर दी: “एलदाद और मेदाद छावनी में भविष्यवक्ताओं जैसा व्यवहार कर रहे हैं!” 28 तब नून के बेटे यहोशू+ ने, जो जवानी की उम्र से मूसा का सेवक था, मूसा से कहा, “मालिक, उन्हें रोक!”+ 29 मगर मूसा ने उससे कहा, “क्या तुझे मेरे लिए जलन हो रही है? मैं तो यही चाहूँगा कि यहोवा के सब लोग भविष्यवक्ता बन जाएँ और यहोवा उन्हें अपनी पवित्र शक्ति दे।” 30 इसके बाद मूसा इसराएल के मुखियाओं के साथ छावनी में लौट गया।
31 फिर यहोवा ने ऐसी तेज़ हवा चलायी जो समुंदर के ऊपर उड़नेवाली बटेरों को अपने साथ बहाकर ले आयी और उन्हें छावनी के आस-पास गिरा दिया।+ वे इतनी भारी तादाद में थीं कि छावनी के दोनों तरफ एक दिन के सफर की दूरी तक फैल गयीं। वे छावनी के चारों तरफ ज़मीन से करीब दो हाथ* की ऊँचाई तक छा गयीं। 32 अब लोग सारा दिन और सारी रात जागकर बटेर इकट्ठा करते रहे। फिर वे अगले दिन भी जा-जाकर बटेर जमा करते रहे। किसी ने भी दस होमेर* से कम नहीं बटोरा। और वे छावनी के चारों तरफ अपने लिए बटेरों का गोश्त फैलाते गए। 33 मगर लोगों ने बटेरों का गोश्त खाने के लिए दाँतों से काटा ही था और उसे चबा भी न पाए थे कि यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा। यहोवा ने उन पर ऐसा कहर ढाया कि बड़ी तादाद में लोग मारे गए।+
34 लोगों ने उस जगह का नाम किबरोत-हत्तावा* रखा+ क्योंकि वहाँ उन्होंने उन लोगों को दफनाया जिन्होंने खाने के लिए लालच किया था।+ 35 फिर लोग किबरोत-हत्तावा से हसेरोत के लिए रवाना हुए और वहाँ ठहरे।+