“प्रति दिन” अपने समर्पण के अनुरूप जीना
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इन्कार करे और प्रति दिन अपना क्रूस [यातना स्तम्भ, NW] उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।” —लूका ९: २३.
१. कौन-से एक तरीक़े से हम मसीहियों के रूप में अपनी सफलता माप सकते हैं?
“क्या हम सचमुच समर्पित व्यक्ति थे?” अमरीका के ३५वें राष्ट्रपति, जॉन एफ. केनेडी के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर सरकारी पदाधिकारियों की सफलता मापने का एक तत्व है। मसीही सेवकों के रूप में हमारी सफलता की एक परख के रूप में यह प्रश्न ज़्यादा गहरे महत्त्व का हो सकता है।
२. एक कोश शब्द “समर्पण” को कैसे परिभाषित करता है?
२ लेकिन, समर्पण है क्या? वेबस्टर्स् नाइन्थ न्यू कॉलिजिएट डिक्शनरी इसे “एक ईश्वरीय व्यक्ति या एक पवित्र प्रयोग के प्रति समर्पित होने का एक कृत्य या धर्मविधि,” “एक विशेष उद्देश्य के लिए समर्पित किया जाना या अलग रखा जाना,” “आत्म-त्यागी भक्ति” परिभाषित करती है। जॉन एफ. केनेडी प्रतीयमानतः इस शब्द का प्रयोग “आत्म-त्यागी भक्ति” के अर्थ में कर रहा था। एक मसीही के लिए समर्पण का अर्थ कहीं अधिक है।
३. मसीही समर्पण क्या है?
३ यीशु मसीह ने अपने शिष्यों से कहा: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस [यातना स्तम्भ, NW] उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती १६:२४) रविवार को या उपासना के किसी स्थान को भेंट करते समय उपासना का एक कृत्य करना ही ईश्वरीय प्रयोग के लिए अलग रखे जाने में सम्मिलित नहीं है। यह व्यक्ति की सम्पूर्ण जीवन-शैली समाविष्ट करता है। एक मसीही होने का अर्थ है उस परमेश्वर, अर्थात् यहोवा की सेवा करते हुए जिसकी सेवा यीशु मसीह ने की, अपने आपका इनकार करना या अपना त्याग करना। इसके अतिरिक्त, मसीह का अनुयायी होने के कारण आए किसी भी दुःख को सहने के द्वारा एक मसीही अपना “यातना स्तम्भ” उठाता है।
पूर्ण उदाहरण
४. यीशु का बपतिस्मा किस बात का प्रतीक था?
४ जब यीशु पृथ्वी पर था तो उसने प्रदर्शित किया कि अपने आपको यहोवा को समर्पित करने में क्या सम्मिलित है। उसकी भावनाएँ थीं: “बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया।” तब उसने आगे कहा: “देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।” (इब्रानियों १०:५-७) एक समर्पित जाति का सदस्य होने के कारण, वह जन्म के समय यहोवा को समर्पित था। फिर भी, अपनी पार्थिव सेवकाई की शुरूआत में, उसने यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए अपने आपको प्रस्तुत किया, और इसके प्रतीक के रूप में उसने अपने आपको बपतिस्मे के लिए पेश किया। उसके लिए यहोवा की इच्छा पूरी करने में छुड़ौती बलिदान के रूप में अपना जीवन देना सम्मिलित होता। इस प्रकार उसने मसीहियों के लिए उदाहरण रखा कि जो भी यहोवा की इच्छा हो उसे पूरा करें।
५. यीशु ने भौतिक वस्तुओं के बारे में एक अनुकरणीय दृष्टिकोण कैसे प्रदर्शित किया?
५ अपने बपतिस्मे के बाद यीशु ने ऐसा जीवन-मार्ग अपनाया जो आख़िरकार उसे एक बलिदान-रूपी मृत्यु की ओर ले गया। उसे पैसा बनाने या आरामदेह जीवन जीने में दिलचस्पी नहीं थी। उसके बजाय, उसकी सेवकाई उसके जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग था। उसने अपने शिष्यों को प्रोत्साहित किया कि “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो,” और स्वयं भी वह इन शब्दों के अनुरूप जीया। (मत्ती ६:३३) एक बार तो उसने यह भी कहा: “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” (मत्ती ८:२०) वह अपनी शिक्षाओं को इस प्रकार ढाल सकता था कि अपने अनुयायियों से पैसे ऐंठ सके। क्योंकि वह एक बढ़ई था वह कोई सुन्दर सामान बनाकर बेचने के लिए अपनी सेवकाई से कुछ समय निकाल सकता था ताकि उसके पास चांदी के चंद टुकड़े और हो जाएँ। लेकिन उसने अपने कौशल को भौतिक समृद्धि पाने के लिए प्रयोग नहीं किया। परमेश्वर के समर्पित सेवकों के रूप में, क्या हम भौतिक वस्तुओं के बारे में सही दृष्टिकोण रखने में यीशु का अनुकरण कर रहे हैं?—मत्ती ६:२४-३४.
६. आत्म-त्यागी, परमेश्वर के समर्पित सेवक होने में हम यीशु का अनुकरण कैसे कर सकते हैं?
६ परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा को पहले रखने में यीशु ने स्वयं अपना हित नहीं चाहा। उसकी सार्वजनिक सेवकाई के साढ़े तीन साल के दौरान उसका जीवन आत्म-त्याग का जीवन था। एक अवसर पर दिन-भर व्यस्त रहने के बाद, यहाँ तक कि भोजन करने के लिए भी समय निकाले बिना, यीशु उन लोगों को सिखाने के लिए तत्पर था जो ‘उन भेड़ों की नाईं थे जिनका कोई रखवाला न हो।’ (मत्ती ९:३६; मरकुस ६:३१-३४) हालाँकि वह “मार्ग का थका हुआ” था, उसने सूखार में याकूब के कूँए पर आयी एक सामरी स्त्री से बात करने में पहल की। (यूहन्ना ४:६, ७, १३-१५) उसने हमेशा दूसरों के हित अपने हितों से आगे रखे। (यूहन्ना ११:५-१५) परमेश्वर की और दूसरों की सेवा करने के लिए हम स्वयं अपने हितों को उदारता से त्यागने के द्वारा यीशु का अनुकरण कर सकते हैं। (यूहन्ना ६:३८) मात्र न्यूनतम माँगों को पूरा करने के बजाय यह मनोवृत्ति रखने के द्वारा कि हम सचमुच यहोवा को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं, हम अपने समर्पण के अनुरूप जीएँगे।
७. यहोवा को हमेशा सम्मान देने में हम यीशु का अनुकरण कैसे कर सकते हैं?
७ लोगों की मदद करने के द्वारा यीशु किसी भी हालत अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश नहीं कर रहा था। वह परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए उसे समर्पित था। सो उसने हमेशा निश्चित किया कि जो कुछ निष्पन्न हुआ उसकी सारी महिमा यहोवा, उसके पिता को मिले। जब एक शासक ने उसे “उत्तम गुरु” कहकर सम्बोधित किया, और शब्द “उत्तम” को एक उपाधि के रूप में प्रयोग किया, तो यीशु ने उसे यह कहते हुए सुधारा: “कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्वर।” (लूका १८:१८, १९; यूहन्ना ५:१९, ३०) क्या हम यीशु की तरह सम्मान स्वयं न लेकर जल्दी से यहोवा की ओर निर्देशित करते हैं?
८. (क) एक समर्पित मनुष्य के रूप में, यीशु ने अपने आपको संसार से अलग कैसे किया? (ख) हमें उसका अनुकरण कैसे करना चाहिए?
८ पृथ्वी पर अपने पूरे समर्पित जीवन-काल के दौरान यीशु ने प्रदर्शित किया कि उसने अपने आपको ईश्वरीय सेवा के लिए अलग रखा था। उसने अपने आपको स्वच्छ रखा ताकि वह छुड़ौती बलिदान होने के लिए अपने आपको “निर्दोष और निष्कलंक मेम्ने” के रूप में प्रस्तुत कर सके। (१ पतरस १:१९; इब्रानियों ७:२६) उसने मूसा की व्यवस्था के सारे नियमों का पालन किया, इस प्रकार उस व्यवस्था को पूरा किया। (मत्ती ५:१७; २ कुरिन्थियों १:२०) वह स्वयं अपनी नैतिक शिक्षाओं के अनुरूप जीया। (मत्ती ५:२७, २८) कोई भी व्यक्ति उस पर उचित रूप से बुरे अभिप्रायों का दोष नहीं लगा सकता था। सचमुच, उसने “अधर्म से बैर रखा।” (इब्रानियों १:९) परमेश्वर के दासों के रूप में, आइए हम यहोवा की दृष्टि में अपने जीवन और अपने अभिप्राय भी स्वच्छ रखने में यीशु का अनुकरण करें।
चेतावनी उदाहरण
९. पौलुस ने किस चेतावनी उदाहरण का उल्लेख किया, और हमें इस उदाहरण पर विचार क्यों करना चाहिए?
९ यीशु के उदाहरण की विषमता में, हमारे पास इस्राएलियों का चेतावनी उदाहरण है। यह घोषित करने के बाद भी कि वे वह सब कुछ करेंगे जो यहोवा उनको करने के लिए कहेगा, वे उसकी इच्छा पूरी करने से चूक गए। (दानिय्येल ९:११) प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को प्रोत्साहित किया कि इस्राएलियों पर पड़ी बातों से सीखें। आइए कुछ घटनाओं की जाँच करें जिनका उल्लेख पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखी अपनी पहली पत्री में किया और देखें कि हमारे समय में परमेश्वर के समर्पित सेवकों को किन फन्दों से बचने की ज़रूरत है। —१ कुरिन्थियों १०: १-६, ११.
१०. (क) इस्राएलियों ने कैसे “बुरी वस्तुओं का लालच” किया? (ख) इस्राएली दूसरी बार जब भोजन के बारे में कुड़कुड़ाए तब वे ज़्यादा ज़िम्मेदार क्यों थे, और हम इस चेतावनी उदाहरण से क्या सीख सकते हैं?
१० पहले, पौलुस ने हमें चेतावनी दी कि “बुरी वस्तुओं का लालच” न करें। (१ कुरिन्थियों १०:६) यह आपको शायद उस अवसर की याद दिलाए जब इस्राएलियों ने शिकायत की कि खाने के लिए सिर्फ़ मन्ना था। यहोवा ने उनके लिए बटेर भेजी। क़रीब एक साल पहले सीन नाम जंगल में, इस्राएलियों द्वारा यहोवा को अपना समर्पण घोषित करने के थोड़े ही समय पहले, कुछ ऐसा ही हुआ था। (निर्गमन १६:१-३, १२, १३) लेकिन स्थिति बिलकुल एक-समान नहीं थी। जब पहली बार यहोवा ने बटेर प्रदान की, तो उसने इस्राएलियों को उनकी कुड़कुड़ाहट के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया। लेकिन, इस बार स्थिति भिन्न थी। “माँस उनके मुंह ही में था, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उस ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा।” (गिनती ११:४-६, ३१-३४) क्या बदल गया था? एक समर्पित जाति के रूप में, वे अब अपने कार्यों के लिए ज़िम्मेदार थे। यहोवा के प्रबन्धों के प्रति उनके मूल्यांकन की कमी के कारण वे यहोवा के विरुद्ध शिकायत करने लगे। यहोवा द्वारा कही सभी बातों को पूरा करने की प्रतिज्ञा करने के बावजूद उन्होंने ऐसा किया! यहोवा की मेज़ के बारे में शिकायत करना आज समान है। कुछ लोग “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा किए गए यहोवा के आध्यात्मिक प्रबन्धों का मूल्यांकन करने से चूक जाते हैं। (मत्ती २४:४५-४७) लेकिन, याद रखिए कि हमारा समर्पण माँग करता है कि हम कृतज्ञता के साथ उन बातों को मन में रखें जो यहोवा ने हमारे लिए की हैं और उस आध्यात्मिक भोजन को स्वीकार करें जो यहोवा प्रदान करता है।
११. (क) इस्राएलियों ने यहोवा के प्रति अपनी उपासना को मूर्तिपूजा के साथ कैसे दूषित किया? (ख) हम कैसे एक क़िस्म की मूर्तिपूजा से प्रभावित हो सकते हैं?
११ उसके बाद, पौलुस ने चेतावनी दी: “न तुम मूरत पूजनेवाले बनो; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे।” (१ कुरिन्थियों १०:७) यहाँ प्रेरित प्रत्यक्षतः बछड़े की उपासना का उल्लेख कर रहा था जो इस्राएलियों ने सीनै पर्वत पर यहोवा के साथ वाचा बाँधने के तुरन्त बाद की। आप शायद कहें, ‘यहोवा के समर्पित सेवक के रूप में, मैं कभी मूर्तिपूजा में नहीं फँसूँगा।’ लेकिन नोट कीजिए कि इस्राएलियों के दृष्टिकोण से, उन्होंने यहोवा की उपासना करना बन्द नहीं किया था; फिर भी, वे बछड़े की उपासना की प्रथा ले आए—जिससे यहोवा को घृणा थी। इस क़िस्म की उपासना में क्या अंतर्ग्रस्त था? लोगों ने बछड़े के सामने बलि चढ़ायी, और फिर उन्होंने “बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।” (निर्गमन ३२:४-६) आज, कुछ लोग शायद दावा करें कि वे यहोवा की उपासना करते हैं। लेकिन उनका जीवन शायद यहोवा की उपासना पर नहीं, बल्कि इस संसार की वस्तुओं का आनन्द लेने पर केंद्रित हो, और वे यहोवा के प्रति अपनी सेवा को इन के इर्द-गिर्द बिठाने की कोशिश करते हैं। सच है कि यह उतना आत्यन्तिक नहीं है जितना कि एक सोने के बछड़े के सामने दण्डवत् करना है, लेकिन सिद्धान्त में यह बहुत भिन्न नहीं है। एक व्यक्ति का स्वयं अपनी अभिलाषा को एक ईश्वर बनाना यहोवा के प्रति व्यक्ति के समर्पण के अनुरूप जीने से कहीं दूर है।—फिलिप्पियों ३:१९.
१२. बालपोर के साथ इस्राएलियों के अनुभव से हम अपने आपका इनकार करने के बारे में क्या सीखते हैं?
१२ पौलुस ने जिस अगले चेतावनी उदाहरण का उल्लेख किया उसमें एक क़िस्म का मनोरंजन भी सम्मिलित था। “न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: और एक दिन में तेईस हजार मर गये।” (१ कुरिन्थियों १०:८) मोआबी लड़कियों के आमंत्रण पर अनैतिक भोग-विलास में फँसने के कारण शित्तीम में इस्राएली बालपोर की उपासना करने लगे। (गिनती २५:१-३, ९) यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए अपने आपका इनकार करने में नैतिक रूप से क्या स्वच्छ है इस बारे में उसके स्तर स्वीकार करना सम्मिलित है। (मत्ती ५:२७-३०) गिरते स्तरों के इस युग में, हमें अपने आपको हर क़िस्म के अनैतिक आचरण से स्वच्छ रखने की ज़रूरत के बारे में याद दिलाया जाता है। क्या भला है और क्या बुरा इसका निर्णय करने के लिए हमें यहोवा के अधिकार के अधीन होने की ज़रूरत है।—१ कुरिन्थियों ६:९-११.
१३. पीनहास का उदाहरण यह समझने में हमारी मदद कैसे करता है कि यहोवा को हमारे समर्पण में क्या सम्मिलित है?
१३ जबकि अनेक लोग शित्तीम में व्यभिचार के फन्दे में फँस गए, कुछ लोग यहोवा को किए जातीय समर्पण के अनुरूप जीए। उनमें से, पीनहास का जोश उल्लेखनीय था। जब उसने एक इस्राएली सरदार को एक मिद्यानी स्त्री को अपने तम्बू में लाते देखा, तो पीनहास ने तुरन्त अपने हाथ में एक बरछी ली और उन के आर-पार भेद दी। यहोवा ने मूसा से कहा: “पीनहास ने इस्राएल के पुत्रों पर मेरी जलजलाहट को दूर किया है क्योंकि उसने उनके मध्य में मेरे प्रति कोई भी विरोध नहीं सहन किया, इस कारण मैं ने अनन्य भक्ति के अपने आग्रह पर इस्राएल के पुत्रों का अन्त नहीं कर डाला है।” (गिनती २५:११, NW) यहोवा के प्रति कोई भी विरोध न सहना—समर्पण का यही अर्थ है। हम किसी भी चीज़ को अपने हृदय में वह स्थान नहीं लेने दे सकते जो यहोवा के प्रति समर्पण को मिलना चाहिए। यहोवा के प्रति हमारा जोश हमें गंभीर अनैतिकता को सहन करने के बजाय उसकी रिपोर्ट प्राचीनों को करने के द्वारा कलीसिया को स्वच्छ रखने के लिए भी प्रेरित करता है।
१४. (क) इस्राएलियों ने यहोवा को कैसे परखा? (ख) यहोवा को पूर्ण समर्पण “ढीले” न होने में हमारी मदद कैसे करता है?
१४ पौलुस ने एक और चेतावनी उदाहरण का ज़िक्र किया: “और न हम प्रभु [यहोवा, NW] को परखें; जैसा उन में से कितनों ने किया, और सांपों के द्वारा नाश किए गए।” (१ कुरिन्थियों १०:९) पौलुस यहाँ उस समय की बात कर रहा था जब इस्राएलियों ने परमेश्वर के विरुद्ध मूसा से शिकायत की जब उनका “मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया।” (गिनती २१:४) क्या आप कभी वह ग़लती करते हैं? जब आपने यहोवा को अपना समर्पण किया था, तब क्या आपने सोचा था कि अरमगिदोन बहुत निकट है? क्या यहोवा का धीरज आपकी अपेक्षा से ज़्यादा निकला है? याद रखिए, हमने अपने आपको यहोवा को सिर्फ़ किसी निश्चित समय-अवधि के लिए या मात्र अरमगिदोन तक के लिए नहीं समर्पित किया। हमारा समर्पण हमेशा का है। तो फिर, “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—गलतियों ६:९.
१५. (क) इस्राएली किसके विरुद्ध कुड़कुड़ाए? (ख) यहोवा को हमारा समर्पण कैसे हमें ईश्वरशासित अधिकार का आदर करने के लिए प्रेरित करता है?
१५ अन्त में, पौलुस ने यहोवा के नियुक्त सेवकों के विरुद्ध ‘कुड़कुड़ानेवाले’ बनने के बारे में चेतावनी दी। (१ कुरिन्थियों १०:१०) इस्राएली लोग मूसा और हारून के विरुद्ध बुरी तरह बुड़बुड़ाने लगे जब कनान देश का पता लगाने के लिए भेजे गए १२ भेदियों में से १० भेदिए बुरे समाचार लाए। उन्होंने मूसा के बदले किसी और को अपना प्रधान बनाने और मिस्र को लौटने की भी बात की। (गिनती १४:१-४) आज, क्या हम उस नेतृत्व को स्वीकार करते हैं जो हमें यहोवा की पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा दिया जाता है? विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग द्वारा प्रदान की गयी भरपूर आध्यात्मिक मेज़ को देखने से, यह स्पष्ट है कि ‘समय पर भोजन’ देने के लिए यीशु किसे प्रयोग कर रहा है। (मत्ती २४:४५) यहोवा के प्रति एकनिष्ठ समर्पण माँग करता है कि हम उसके नियुक्त सेवकों के प्रति आदर दिखाएँ। ऐसा हो कि हम कभी कुछ आधुनिक-दिन के कुड़कुड़ानेवालों की तरह न बनें जिनके बारे में यूँ कहा जा सकता है कि वे एक नए प्रधान की ओर मुड़े हैं जो उन्हें संसार में लौटा ले जाए।
क्या यह मेरा भरसक है?
१६. परमेश्वर के समर्पित सेवक अपने आपसे शायद कौन-से प्रश्न पूछना चाहें?
१६ इस्राएली ऐसी गंभीर ग़लतियों में न पड़े होते यदि उन्होंने याद रखा होता कि यहोवा को उनका समर्पण बिलाशर्त था। उन अविश्वासी इस्राएलियों से भिन्न, यीशु मसीह अन्त तक अपने समर्पण के अनुरूप जीया। मसीह के अनुयायियों के रूप में, हम एकनिष्ठ भक्ति के उसके उदाहरण का अनुकरण करते हैं, अपने जीवन ‘मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं बरन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार’ व्यतीत करते हैं। (१ पतरस ४:२. २ कुरिन्थियों ५:१५ से तुलना कीजिए।) आज यहोवा की इच्छा यह है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (१ तीमुथियुस २:४) उस लक्ष्य के साथ, हमें अन्त आने से पहले “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करना है। (मत्ती २४:१४) इस सेवा में हम कितना परिश्रम करते हैं? हम शायद अपने आपसे पूछना चाहें, ‘क्या यह मेरा भरसक है?’ (२ तीमुथियुस २:१५) परिस्थितियाँ भिन्न होती हैं। एक व्यक्ति द्वारा ‘उसके अनुसार जो उसके पास है, न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं’ यहोवा की सेवा की जाने पर यहोवा प्रसन्न होता है। (२ कुरिन्थियों ८:१२; लूका २१:१-४) किसी को भी दूसरे व्यक्ति के समर्पण की गहराई और निष्कपटता नहीं जाँचनी चाहिए। हरेक को व्यक्तिगत रूप से यह आँकना चाहिए कि यहोवा के प्रति स्वयं उसकी भक्ति कितनी है। (गलतियों ६:४) यहोवा के प्रति हमारे प्रेम के कारण हमें यह पूछने के लिए प्रेरित होना चाहिए, ‘मैं यहोवा को कैसे ख़ुश कर सकता हूँ?’
१७. भक्ति और मूल्यांकन के बीच क्या सम्बन्ध है? उदाहरण देकर समझाइए।
१७ यहोवा के प्रति हमारी भक्ति और भी गहरी हो जाती है ज्यों-ज्यों उसके प्रति हमारा मूल्यांकन बढ़ता है। जापान में एक १४-वर्षीय लड़के ने अपने आपको यहोवा को समर्पित किया और इस समर्पण को पानी में बपतिस्मा लेने के द्वारा चिह्नित किया। बाद में, वह उच्च शिक्षा लेकर एक वैज्ञानिक बनना चाहता था। उसने पूर्ण-समय की सेवकाई के बारे में कभी नहीं सोचा, लेकिन एक समर्पित सेवक के रूप में, वह यहोवा और उसके दृश्य संगठन को नहीं छोड़ना चाहता था। अपने पेशे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह एक विश्वविद्यालय गया। वहाँ उसने विश्वविद्यालय के स्नातकों को अपना पूरा जीवन अपनी कंपनियों को या अपनी पढ़ाई को समर्पित करने के लिए मजबूर होते हुए देखा। उसने सोचा, ‘मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? क्या मैं सचमुच उनके जीवन-मार्ग पर चल सकता हूँ और अपने आपको लौकिक कार्य के प्रति समर्पित कर सकता हूँ? क्या मैं पहले ही यहोवा को समर्पित नहीं हूँ?’ नए मूल्यांकन के साथ, वह एक नियमित पायनियर बन गया। अपने समर्पण के बारे में उसकी समझ बढ़ गयी और इसने उसे अपने हृदय में यह निश्चित करने के लिए प्रेरित किया कि जहाँ भी उसकी ज़रूरत होगी वह जाएगा। उसने मिनिस्टीरियल ट्रेनिंग स्कूल में भाग लिया और उसे एक मिशनरी के रूप में विदेश में सेवा करने की नियुक्ति मिली।
१८. (क) यहोवा को हमारे समर्पण में कितना-कुछ सम्मिलित है? (ख) यहोवा को हमारे समर्पण से हम क्या प्रतिफल काट सकते हैं?
१८ समर्पण हमारे पूरे जीवन को सम्मिलित करता है। हमें अपना इनकार करना है और “प्रति दिन” यीशु के उत्तम उदाहरण पर चलना है। (लूका ९:२३) हम अपना इनकार कर चुके हैं, इसलिए हम यहोवा से छुट्टी, अथवा रुख़सत नहीं माँगते। हमारा जीवन उन सिद्धान्तों के अनुरूप है जो यहोवा अपने सेवकों के लिए निर्धारित करता है। उन क्षेत्रों में भी जहाँ हम व्यक्तिगत चुनाव कर सकते हैं, यह देखना अच्छा होगा कि हम यहोवा को समर्पित जीवन जीने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं या नहीं। जैसे-जैसे हम प्रति दिन उसकी सेवा करते हैं, उसे प्रसन्न करने के लिए अपना भरसक करते हैं, हम मसीहियों के रूप में सफल होंगे और हमें यहोवा के अनुमोदन की आशिष प्राप्त होगी, जो हमारी एकनिष्ठ भक्ति के योग्य है।
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ यीशु मसीह के लिए समर्पण में क्या सम्मिलित था?
◻ हमें यहोवा के विरुद्ध कुड़कुड़ाने से दूर क्यों रहना चाहिए?
◻ किस तरह हम मूर्तिपूजा को हमारे जीवन में चुपके से घुसने से रोक सकते हैं?
◻ क्या याद रखना परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में “ढीले” न होने के लिए हमारी मदद करेगा?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 17 पर तसवीरें]
समर्पित मसीही ‘भले काम करने में हियाव नहीं छोड़ते’