नीतिवचन
2 अपने मुँह से अपनी तारीफ मत कर, दूसरे तेरी तारीफ करें,
तेरे अपने होंठ नहीं बल्कि किसी और के होंठ तेरी बड़ाई करें।+
7 जिसका पेट भरा हो वह छत्ते का शहद भी नहीं खाता,
लेकिन जिसे भूख लगी हो उसे कड़वी चीज़ भी मीठी लगती है।
8 जो आदमी अपना घर छोड़कर भटकता फिरता है,
वह उस पंछी जैसा है, जो अपना घोंसला छोड़कर उड़ता फिरता है।
9 जैसे तेल और खुशबूदार धूप से दिल खुश हो जाता है,
वैसे ही दोस्त की सीधी-सच्ची सलाह से मन खुश हो जाता है।+
10 अपने दोस्त या अपने पिता के दोस्त का साथ मत छोड़ना
और मुसीबत में अपने सगे भाई के घर न जाना,
पास रहनेवाला दोस्त, दूर रहनेवाले भाई से अच्छा है।+
13 उस आदमी के कपड़े गिरवी रख ले, जो किसी अजनबी का ज़ामिन बना है
और अगर उसने बदचलन* औरत की वजह से अपनी चीज़ गिरवी रखी है, तो उसे वापस मत कर।+
14 अगर कोई सुबह-सुबह चिल्लाकर अपने साथी को आशीर्वाद देता है,
तो ऐसा आशीर्वाद शाप माना जाएगा।
15 झगड़ालू* पत्नी, बारिश में टपकती छत जैसी होती है,+
16 जो उसे रोक सकता है, वह हवा को भी रोक सकता है
और दायीं मुट्ठी में तेल पकड़ सकता है।
18 जो अंजीर के पेड़ की देखरेख करता है, वह उसका फल खाएगा+
और जो अपने मालिक का खयाल रखता है वह इज़्ज़त पाएगा।+
19 जैसे कोई पानी में अपना चेहरा देख पाता है,
वैसे ही एक इंसान दूसरे के मन में अपना मन देख पाता है।
21 जैसे चाँदी के लिए कुठाली* और सोने के लिए भट्ठी होती है,+
वैसे ही इंसान की परख उसे मिलनेवाली तारीफ से होती है।
24 क्योंकि दौलत हमेशा नहीं रहती,+
न ही मुकुट पीढ़ी-पीढ़ी तक टिकता है।
25 जब हरी घास सूख जाती है, तो नयी घास आती है
और पहाड़ों से हरियाली इकट्ठी की जाती है।
26 भेड़ के बच्चों के ऊन से तुझे कपड़े मिलेंगे
और बकरियों के दाम से तू खेत खरीदेगा।
27 बकरियाँ तुझे इतना दूध देंगी कि तू, तेरा पूरा घराना और तेरी दासियाँ जी-भरकर पीएँगे।