भजन
2 मैं तुम्हें नीतिवचन सुनाऊँगा,
पुराने ज़माने की पहेलियाँ बताऊँगा।+
3 जो बातें हमने सुनी और जानी हैं,
हमारे पुरखों ने हमें बतायी हैं,+
4 वे हम उनके वंशजों से नहीं छिपाएँगे।
हम आनेवाली पीढ़ी को
यहोवा के लाजवाब कामों और उसकी ताकत के,
उसके आश्चर्य के कामों के किस्से सुनाएँगे।+
5 उसने याकूब को याद दिलाने के लिए हिदायत दी,
इसराएल में एक कानून ठहराया,
हमारे पुरखों को आज्ञा दी
कि ये बातें अपने बच्चों को बताएँ+
6 ताकि अगली पीढ़ी,
आनेवाली नसल इन बातों को जाने।+
फिर वे भी अपने बच्चों को ये सब बताएँगे।+
7 तब अगली पीढ़ी के लोग परमेश्वर पर भरोसा करेंगे।
8 वे अपने पुरखों की तरह नहीं बनेंगे,
जिनकी पीढ़ी हठीली और बगावती थी,+
वे परमेश्वर के विश्वासयोग्य नहीं रहे।
9 एप्रैमी लोग तीर-कमान से लैस थे,
मगर युद्ध के दिन पीठ दिखाकर भाग गए।
17 फिर भी, वे वीराने में परम-प्रधान परमेश्वर से बगावत करते रहे,
ऐसा करके वे उसके खिलाफ पाप करते रहे।+
18 उन्होंने उस खाने की माँग की जिसकी वे ज़बरदस्त लालसा कर रहे थे,
19 वे परमेश्वर के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे,
“क्या इस वीराने में परमेश्वर हमारे लिए मेज़ लगा सकता है?”+
फिर भी वे कहने लगे, “क्या वह हमें रोटी भी दे सकता है?
अपने लोगों को गोश्त खिला सकता है?”+
21 जब यहोवा ने यह सुना तो वह क्रोध से भर गया,+
उसने याकूब पर आग बरसायी,+
वह इसराएल पर भड़क उठा+
22 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया,+
यह भरोसा नहीं किया कि वह उनका उद्धार करने के काबिल है।
23 इसलिए परमेश्वर ने बादलों से घिरे आसमान को हुक्म दिया,
आकाश के द्वार खोल दिए।
27 उसने उन पर गोश्त की ऐसी बौछार की जैसे ढेर सारी धूल हो,
बेशुमार पक्षी भेजे मानो समुंदर किनारे की बालू हो।
28 उसने पक्षियों को अपनी छावनी के बीचों-बीच गिराया,
अपने तंबुओं के चारों ओर गिराया।
उसने उनके ताकतवर आदमियों को मार डाला,+
इसराएल के जवानों को ढेर कर दिया।
34 मगर जब भी वह उनका घात करता वे उसकी खोज करने लगते,+
वे फिरकर परमेश्वर को ढूँढ़ने लगते,
36 मगर उन्होंने मुँह से उसे धोखा देने की कोशिश की,
अपनी जीभ से उससे झूठ बोला।
वह अकसर अपना गुस्सा रोक लेता था,+
उन पर सारा क्रोध नहीं प्रकट करता था।
वह दिन भूल गए जब उसने उन्हें दुश्मन से छुड़ाया था,+
43 कैसे उसने मिस्र में चिन्ह दिखाए थे,+
सोअन प्रदेश में करिश्मे किए थे,
44 कैसे उसने नील नदी की नहरों का पानी खून में बदल दिया था+
और वे अपनी नदियों से पी न सके थे।
48 उसने उनके बोझ ढोनेवाले जानवरों को ओलों से नाश कर दिया,+
बिजली गिराकर* उनके मवेशियों को खत्म कर दिया।
49 उसने उन पर गुस्से की आग भड़कायी
क्रोध, जलजलाहट और संकट ले आया,
कहर ढाने के लिए स्वर्गदूतों के दल भेजे।
50 उसने अपने गुस्से के लिए रास्ता बनाया,
उन्हें मौत से नहीं बचाया
और उन्हें महामारी के हवाले कर दिया।
51 आखिर में उसने मिस्र के सभी पहलौठों को मार डाला,+
हाम के तंबुओं में उनकी शक्ति* की पहली निशानी मिटा दी।
52 फिर वह अपने लोगों को भेड़ों की तरह निकाल लाया,+
वीराने में उन्हें रास्ता दिखाता गया जैसे चरवाहा झुंड को रास्ता दिखाता है।
53 वह उन्हें हर खतरे से बचाता हुआ ले चला,
इसलिए उन्हें कोई डर नहीं था,+
समुंदर उनके दुश्मनों को निगल गया।+
55 उसने उनके सामने से जातियों को खदेड़ दिया,+
नापने की डोरी से विरासत की ज़मीन उनमें बाँट दी,+
इसराएल के गोत्रों को रहने के लिए घर दिया।+
56 मगर वे परम-प्रधान परमेश्वर को चुनौती देने* से बाज़ नहीं आए,
उससे बगावत करते रहे,+
उसके याद दिलाने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।+
57 वे भी परमेश्वर से फिर गए और अपने पुरखों की तरह गद्दार निकले,+
ढीली कमान की तरह भरोसे के लायक नहीं थे।+
60 आखिरकार उसने शीलो का पवित्र डेरा+ छोड़ दिया,
वह तंबू छोड़ दिया जिसमें वास करके वह इंसानों के बीच रहता था।+
63 उसके जवानों को आग ने भस्म कर दिया,
उसकी कुँवारियों के लिए शादी के गीत नहीं गाए गए।
67 उसने यूसुफ का तंबू ठुकरा दिया,
एप्रैम गोत्र को नहीं चुना।
69 उसने अपने पवित्र-स्थान को आसमान की तरह हमेशा के लिए कायम किया,+
धरती की तरह सदा के लिए मज़बूती से कायम किया।+