भजन
एक सताए हुए इंसान की उस समय की प्रार्थना जब वह दुख से बेहाल होता है* और अपनी सारी चिंताएँ यहोवा को बताता है।+
2 मैं बड़ी मुसीबत में हूँ, मुझसे मुँह न फेर।+
3 क्योंकि मेरी ज़िंदगी के दिन धुएँ की तरह गायब हो रहे हैं,
मेरी हड्डियाँ मानो भट्ठी की तरह जल रही हैं।+
6 मैं वीराने के हवासिल जैसा दिख रहा हूँ,
मैं खंडहरों में रहनेवाले छोटे उल्लू जैसा बन गया हूँ।
8 मेरे दुश्मन सारा दिन मुझे ताना मारते हैं।+
मेरी खिल्ली उड़ानेवाले* मेरा नाम लेकर शाप देते हैं।
10 क्योंकि तेरा क्रोध और तेरी जलजलाहट मुझ पर भड़की है,
तूने मुझे उठाकर फेंक दिया है।
13 बेशक तू उठेगा और सिय्योन पर दया करेगा,+
क्योंकि वह घड़ी आ गयी है कि तू उस पर कृपा करे,+
तय वक्त आ चुका है।+
19 वह अपने ऊँचे पवित्र-स्थान से नीचे देखता है,+
यहोवा स्वर्ग से धरती पर नज़र डालता है
20 ताकि कैदियों का कराहना सुने,+
जिन्हें मौत की सज़ा सुनायी गयी है, उन्हें छुड़ाए।+
21 इससे सिय्योन में यहोवा के नाम का ऐलान किया जाएगा+
यरूशलेम में उसकी तारीफ की जाएगी,
22 जब देश-देश और राज्य-राज्य के लोग
यहोवा की सेवा करने के लिए इकट्ठा होंगे।+
23 उसने वक्त से पहले ही मेरी ताकत छीन ली,
मेरे दिन घटा दिए।
24 मैंने कहा, “हे मेरे परमेश्वर,
तू जिसका वजूद पीढ़ी-पीढ़ी तक कायम रहता है,+
मुझे मिटा न देना, अभी तो मैंने आधी उम्र ही जी है।
26 वे तो नाश हो जाएँगे, मगर तू सदा कायम रहेगा।
एक कपड़े की तरह वे सब पुराने हो जाएँगे,
एक कपड़े की तरह तू उन्हें बदल देगा और वे मिट जाएँगे।