खुद के बारे में सही नज़रिया कैसे बनाए रखें
“यदि मनुष्य बहुत वर्ष जीवित रहे, तो उन सभों में आनन्दित रहे।”—सभो. 11:8.
1. यहोवा की तरफ से मिली कौन-सी आशीषों से हमें खुश रहने में मदद मिल सकती है?
यहोवा चाहता है कि हम खुश रहें, और वह हमें ढेरों आशीषें देता है जिनसे हमें खुशी मिलनी चाहिए। इनमें से एक आशीष है, हमारा जीवन। हम अपना जीवन परमेश्वर की महिमा करने में लगा सकते हैं, क्योंकि उसने हमें सच्ची उपासना की तरफ खींचा है। (भज. 144:15; यूह. 6:44) यहोवा हमें अपने प्यार का यकीन दिलाता है और हमारी मदद करता है, ताकि हम हार न मानें बल्कि उसकी सेवा में लगे रहें। (यिर्म. 31:3; 2 कुरिं. 4:16) हम आध्यात्मिक फिरदौस का भी लुत्फ उठाते हैं, जिसमें बहुतायत में मिलनेवाला आध्यात्मिक भोजन और दुनिया-भर में फैला हमारा प्यारा भाईचारा शामिल है। इसके अलावा, भविष्य के लिए हमारे पास एक शानदार आशा भी है।
2. परमेश्वर के कुछ वफादार सेवक क्या सोचते हैं?
2 हालाँकि हमारे पास खुश रहने की ये सारी वजह हैं, फिर भी परमेश्वर के कुछ वफादार सेवक सोचते हैं कि यहोवा की नज़र में उनका या उनकी सेवा का कोई मोल नहीं। जिन्हें बार-बार ऐसे खयाल आते हैं, उन्हें शायद “बहुत वर्ष” तक आनंद मनाने की बात बस एक सपना ही लगे। उन्हें लग सकता है कि उनकी ज़िंदगी बस एक अँधेरी काली गुफा है, जिससे कभी बाहर नहीं निकला जा सकता।—सभो. 11:8.
3. हममें बुरी भावनाएँ किन वजहों से आ सकती हैं?
3 इस तरह की बुरी भावनाएँ कई बार निराशा, बीमारी या बुढ़ापे में होनेवाली किसी कमज़ोरी की वजह से आ सकती हैं। (भज. 71:9; नीति. 13:12; सभो. 7:7) इसके अलावा, हमें इस बात को भी कबूल करना चाहिए कि हमारा दिल “धोखा देनेवाला” है और यह उस वक्त भी हमें दोषी महसूस करा सकता है, जब परमेश्वर हमसे खुश हो। (यिर्म. 17:9; 1 यूह. 3:20) इब्लीस परमेश्वर के सेवकों के बारे में झूठ फैलाता है। शैतान ने एलीपज को यह कहने के लिए उकसाया कि हम परमेश्वर की नज़रों में बेकार हैं। यह बात अय्यूब के दिनों में सरासर झूठ थी और आज भी है।—अय्यू. 4:18, 19.
4. हम इस लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?
4 बाइबल में यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि वह उन लोगों के साथ रहेगा जो ‘घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलते’ हैं। (भज. 23:4) एक तरीका जिससे वह हमारे साथ रहता है, वह है अपने वचन के ज़रिए। बाइबल ‘ऐसा शक्तिशाली हथियार है जो परमेश्वर ने हमें दिया है कि हम गहराई तक समायी हुई बातों को जड़ से उखाड़ सकें।’ इन गहराई तक समायी हुई बातों में खुद के बारे में बुरा सोचना और खुद के बारे में गलत नज़रिया रखना भी शामिल है। (2 कुरिं. 10:4, 5) तो आइए हम चर्चा करें कि कैसे हम बाइबल की मदद से खुद के बारे में सही नज़रिया पैदा कर सकते हैं और उसे बनाए रख सकते हैं। इससे खुद आपको भी फायदा होगा, और आप दूसरों का भी हौसला बढ़ाने के तरीके जान पाएँगे।
बाइबल का इस्तेमाल करके सही नज़रिया पैदा कीजिए
5. क्या जाँच करने से हमें सही नज़रिया बनाए रखने में मदद मिल सकती है?
5 प्रेषित पौलुस ने कुछ बातों के बारे में बताया जो हमें सही नज़रिया पैदा करने में मदद दे सकती हैं। उसने कुरिंथ की मंडली को बढ़ावा दिया: “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्वास में हो या नहीं।” (2 कुरिं. 13:5) “विश्वास” का मतलब है, बाइबल में दर्ज़ सभी मसीही शिक्षाएँ। अगर हमारी बातें और हमारे काम बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक हों, तो हम इस जाँच में खरे उतरेंगे और दिखाएँगे कि हम ‘विश्वास में हैं।’ बेशक, इसका यह मतलब नहीं कि हम सिर्फ उन शिक्षाओं पर चलें जो हमें पसंद हैं और उन शिक्षाओं को नज़रअंदाज़ कर दें जो हमें पसंद नहीं। हमें बाइबल में दर्ज़ सभी मसीही शिक्षाओं को मानना चाहिए।—याकू. 2:10, 11.
6. हमें क्यों जाँचना चाहिए कि हम ‘विश्वास में हैं या नहीं?’ (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
6 हो सकता है आप अपने विश्वास की जाँच करने से कतराएँ, खासकर तब जब आपको लगे कि आप इसमें खरे नहीं उतरेंगे। लेकिन हमारे बारे में यहोवा का नज़रिया हमारे अपने नज़रिए से ज़्यादा मायने रखता है, क्योंकि वह हमें हमसे बेहतर जानता है। (यशा. 55:8, 9) वह अपने उपासकों को जाँचता है, मगर इस मकसद से नहीं कि वह उन्हें दोषी ठहराए, बल्कि इस मकसद से कि वह उनमें अच्छे गुण ढूँढ़े और उनकी मदद करे। ‘आप विश्वास में हैं या नहीं’ यह जाँचने के लिए जब आप परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल करेंगे, तब आपको यह एहसास होना शुरू होगा कि परमेश्वर आपके बारे में कैसा महसूस करता है। इससे आपको ऐसी किसी भी तरह की सोच से दूर रहने में मदद मिलेगी कि आप बिलकुल बेकार हैं। साथ ही, इससे आपको परमेश्वर का नज़रिया याद रखने में भी मदद मिलेगी। कौन-सा नज़रिया? यही कि आप उसकी नज़रों में बहुत अनमोल हैं। नतीजा, आपको ऐसा महसूस होगा मानो आप एक अँधेरे कमरे में परदा हटाकर सूरज की रोशनी को अंदर आने दे रहे हैं।
7. बाइबल में दर्ज़ वफादार लोगों की मिसालें कैसे हमारी मदद कर सकती हैं?
7 खुद की जाँच करने का एक अच्छा तरीका है, बाइबल में दर्ज़ वफादार लोगों की मिसाल पर मनन करना। उनके हालात या भावनाओं की तुलना खुद के हालात और भावनाओं से कीजिए और सोचिए कि अगर आप उनकी जगह होते, तो आप क्या करते? आइए हम तीन उदाहरणों पर गौर करें और देखें कि कैसे बाइबल का इस्तेमाल करके हम इस बात को पक्का कर सकते हैं कि हम ‘विश्वास में हैं।’ इससे आपको खुद के बारे में सही नज़रिया पैदा करने में भी मदद मिलेगी।
गरीब विधवा
8, 9. (क) गरीब विधवा के हालात कैसे थे? (ख) उस विधवा के मन में किस तरह के खयाल आए होंगे?
8 यरूशलेम के मंदिर में, यीशु ने एक गरीब विधवा पर गौर किया। उसकी मिसाल हमें अपने बारे में सही नज़रिया बनाए रखने में मदद दे सकती है, तब भी जब हम वह सब न कर पा रहे हों, जो हम करना चाहते हैं। (लूका 21:1-4 पढ़िए।) ज़रा इस विधवा के हालात पर गौर कीजिए। सबसे पहले, उसे अपने पति को खोने का गम सहना पड़ा। इसके अलावा, लालची धर्म-गुरु मदद करने के बजाय, उसके जैसी “विधवाओं के घर हड़प जाते” थे। (लूका 20:47) वह इतनी गरीब थी कि वह मंदिर में सिर्फ उतना ही दान दे सकती थी, जितना एक मज़दूर सिर्फ 15 मिनटों में ही कमा लेता था।
9 ज़रा कल्पना कीजिए कि जब उस विधवा ने सिर्फ दो छोटे सिक्के लेकर मंदिर के आँगन में कदम रखा, तो उसे कैसा लगा होगा? क्या वह सोच रही होगी कि अपने पति के ज़िंदा रहते वह जितना दान देती, उसके मुकाबले अब वह जो दान दे रही है, वह कितना मामूली है? जब उसने दूसरों को बड़े-बड़े दान देते देखा, तो क्या उसे शर्मिंदगी महसूस हुई होगी? क्या उसने सोचा होगा कि उसका दान देना न देना, एक बराबर है? अगर उसके मन में इस तरह के खयाल आए भी हों, फिर भी उसने सच्ची उपासना को आगे बढ़ाने के लिए जो कुछ उसके पास था, वह सब दे दिया।
10. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह विधवा यहोवा की नज़रों में अनमोल थी?
10 यीशु ने कहा कि वह विधवा और उसका दिया दान दोनों यहोवा की नज़रों में अनमोल थे। उसने कहा कि इस विधवा ने “उन सबसे [सब अमीर लोगों से] ज़्यादा डाला है।” उसका दान भी बाकी लोगों के दान के साथ मिल जाता, लेकिन यीशु ने खास तौर से उस विधवा के तोहफे की कदर की। जिन्होंने बाद में मंदिर में दिए गए दान की गिनती की, उन्हें शायद ही इस बात का एहसास हुआ होगा कि यहोवा के लिए वे दो छोटे सिक्के और वह विधवा कितने अनमोल थे। लेकिन दूसरे लोग क्या सोचते थे या खुद विधवा अपने बारे में क्या सोचती थी, यह बात इतनी मायने नहीं रखती थी। जो बात सबसे ज़्यादा मायने रखती थी, वह थी परमेश्वर का नज़रिया। क्या आप इस ब्यौरे की मदद से यह जाँच सकते हैं कि ‘आप विश्वास में हैं या नहीं?’
11. आप विधवा के वाकए से क्या सीख सकते हैं?
11 आप यहोवा को कितना दे पाते हैं, यह आपके हालात पर निर्भर करता है। बढ़ती उम्र या बीमारी की वजह से कुछ लोग प्रचार में उतना समय नहीं बिता पाते, जितना वे बिताना चाहते हैं। क्या उनका यह सोचना सही होगा कि प्रचार में वे जो भी थोड़ा-बहुत वक्त बिताते हैं, उसकी रिपोर्ट देने का कोई फायदा नहीं? अगर आप जवान हैं या आपकी सेहत अच्छी है, तब भी आपको लग सकता है कि प्रचार में की गयी आपकी मेहनत उन करोड़ों घंटों के आगे कुछ भी नहीं, जो परमेश्वर के लोग हर साल उसकी उपासना में बिताते हैं। लेकिन उस गरीब विधवा के वाकए से हम सीख सकते हैं कि यहोवा की खातिर हम जो भी छोटे-से-छोटा काम करते हैं, खास तौर से मुश्किल हालात में, उस पर वह ध्यान देता है और उसे याद रखता है। ज़रा सोचिए कि पिछले साल आपने यहोवा की उपासना में क्या-क्या किया था? उस साल प्रचार में आपने जो समय बिताया था, क्या उसमें कोई एक घंटा ऐसा था, जिसे करने के लिए आपने कुछ बड़ा त्याग किया था? अगर हाँ, तो आप यकीन रख सकते हैं कि उस एक घंटे में आपने यहोवा के लिए जो किया, उसकी वह बहुत कदर करता है। जब आप गरीब विधवा की मिसाल पर चलते हैं और यहोवा के लिए अपना भरसक करते हैं, तो आप इस बात का सबूत देते हैं कि आप ‘विश्वास में हैं।’
“मेरा प्राण ले ले”
12-14. (क) एलिय्याह ने खुद के बारे में कैसा महसूस किया? (ख) एलिय्याह क्यों इतना निराश हो गया था?
12 एलिय्याह नबी यहोवा का वफादार था और उसमें मज़बूत विश्वास था। फिर भी, ज़िंदगी के एक मोड़ पर वह इतना निराश हो गया कि उसने यहोवा से यह कहकर अपने लिए मौत माँगी: “हे यहोवा बस है, अब मेरा प्राण ले ले।” (1 राजा 19:4) जो कभी अपने हालात से इतने निराश नहीं हुए हैं, वे शायद सोचें कि एलिय्याह “उतावली” में आकर प्रार्थना कर रहा था। (अय्यू. 6:3) लेकिन एलिय्याह के मन में सचमुच ऐसी भावनाएँ उठी थीं। गौर कीजिए कि एलिय्याह पर गुस्सा होने के बजाए, यहोवा ने उसकी मदद की।
13 एलिय्याह क्यों इतना निराश हो गया था? इससे कुछ ही समय पहले, एलिय्याह ने एक चमत्कार किया था जिससे यह साबित हुआ था कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है। इस चमत्कार के बाद, बाल के 450 नबियों को मार डाला गया। (1 राजा 18:37-40) एलिय्याह शायद यह उम्मीद कर रहा था कि परमेश्वर के लोग अब शुद्ध उपासना की तरफ लौट आएँगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। दुष्ट रानी ईज़ेबेल ने एलिय्याह के पास यह संदेश भेजा कि वह उसे मार डालेगी। अपनी जान बचाने के लिए एलिय्याह पास के यहूदा से होते हुए दक्षिण की तरफ वीराने में भाग गया।—1 राजा 19:2-4.
14 जब एलिय्याह वीराने में अकेला था, तो वह सोचने लगा कि एक नबी के नाते उसने जो भी मेहनत की थी, वह सब बेकार गयी। उसने यहोवा से कहा: “मैं अपने पुरखाओं से अच्छा नहीं हूं।” वह जानता था कि उसके पुरखे मिट्टी में मिल चुके हैं और अब वे किसी काम के नहीं। उसे भी अपने बारे में बिलकुल ऐसा ही महसूस हो रहा था। वह खुद को हारा हुआ इंसान महसूस कर रहा था, एक ऐसा इंसान जिसका यहोवा की या किसी और की नज़र में कोई मोल न हो।
15. परमेश्वर ने एलिय्याह को कैसे यकीन दिलाया कि वह अब भी उसकी नज़र में अनमोल है?
15 लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एलिय्याह के बारे में कुछ और ही नज़रिया था। एलिय्याह अब भी यहोवा की नज़र में अनमोल था। उसे इस बात का यकीन दिलाने के लिए यहोवा ने कुछ कदम उठाए। उसने एलिय्याह के पास एक स्वर्गदूत भेजा, ताकि वह उसकी हिम्मत बढ़ा सके। यहोवा ने उसके खाने-पीने का भी इंतज़ाम किया, जिसकी बदौलत वह दक्षिण में होरेब पर्वत तक का 40 दिन का सफर तय कर पाया। जब एलिय्याह को लगा कि उसके अलावा और कोई इसराएली यहोवा का वफादार नहीं रहा, तब परमेश्वर ने प्यार से उसकी गलत सोच सुधारी। यह भी गौर कीजिए कि यहोवा ने एलिय्याह को नयी ज़िम्मेदारियाँ भी दीं, जिन्हें उसने कबूल किया। एलिय्याह को यहोवा से मदद मिली। नतीजा, उसमें फिर से जोश भर आया और वह दोबारा नबी के तौर पर सेवा करने लगा।—1 राजा 19:5-8, 15-19.
16. यहोवा ने किन-किन तरीकों से आपको सँभाला है?
16 आप ‘विश्वास में हैं या नहीं,’ यह पक्का करने और एक सही रवैया पैदा करने के लिए, आप एलिय्याह के अनुभव से सीख सकते हैं। वह कैसे? पहला, सोचिए कि यहोवा ने आपको किन-किन तरीकों से सँभाला है। क्या किसी प्राचीन या किसी दूसरे प्रौढ़ मसीही ने आपको सही समय पर मदद दी है? (गला. 6:2) क्या कभी बाइबल, हमारे मसीही साहित्य और सभाओं के ज़रिए आपने महसूस किया है कि यहोवा आपकी परवाह करता है? अगली बार जब इनमें से किसी भी तरीके से आपको मदद मिले, तो सोचिए कि यह मदद असल में किसकी तरफ से है और फिर प्रार्थना में यहोवा को शुक्रिया कहना मत भूलिए।—भज. 121:1, 2.
17. यहोवा अपने सेवकों में किस बात की कदर करता है?
17 दूसरा, याद रखिए कि खुद के बारे में गलत नज़रिया हमें गुमराह कर सकता है। मगर जो बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है, वह है परमेश्वर का हमारे बारे में नज़रिया। (1 शमूएल 16:7 पढ़िए।) वह हमारी भक्ति और वफादारी की कदर करता है। यहोवा हमें कितना अनमोल समझता है यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम उसकी सेवा में कितना करते हैं। एलिय्याह की तरह, हो सकता है आपको भी लगे कि आपने यहोवा की सेवा में ज़्यादा कुछ नहीं किया है। लेकिन एलिय्याह की तरह आपको भी शायद इस बात का एहसास न हो कि आपने कितना कुछ किया है। जैसे आपको शायद एहसास न हो, लेकिन हो सकता है आपने मंडली में दूसरों की मदद की हो। और शायद आपकी कड़ी मेहनत की वजह से प्रचार इलाके में लोगों को सच्चाई से रू-ब-रू होने का मौका मिला हो।
18. यहोवा की तरफ से आपको मिली ज़िम्मेदारी किस बात का सबूत है?
18 और तीसरा, यहोवा की तरफ से मिली हर ज़िम्मेदारी को इस बात का सबूत मानिए कि वह आपसे खुश है और आपके साथ है। (यिर्म. 20:11) एलिय्याह की तरह आप शायद निराश हों, क्योंकि आपको सेवा में अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे या यहोवा की सेवा में रखे लक्ष्य हासिल करना आपको मुश्किल लग रहा है। लेकिन याद रखिए कि आपको दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान मिला है। और वह है, खुशखबरी का प्रचार करने और यहोवा का एक साक्षी कहलाने का अनोखा सम्मान। इसलिए यहोवा के वफादार बने रहिए। तब ये शब्द जो यीशु ने अपने एक दृष्टांत में कहे थे, वे आपसे भी कहे जा सकते हैं: “अपने मालिक की खुशी में शामिल हो जा।”—मत्ती 25:23.
‘पीड़ित व्यक्ति की प्रार्थना’
19. भजन 102 का रचयिता कैसा महसूस कर रहा था?
19 भजन 102 का रचयिता बहुत परेशान था। वह “पीड़ित” था, यानी वह शारीरिक या भावनात्मक दर्द से गुज़र रहा था और उसमें अपनी परेशानियाँ सहने की ताकत नहीं थी। (भज. 102, उपरिलेख, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) वह अपने दर्द, अकेलेपन और अपनी भावनाओं के दलदल में धँसता ही जा रहा था। (भज. 102:3, 4, 6, 11) वह यह मानने लगा था कि यहोवा उसे ठुकरा देना चाहता है।—भज. 102:10.
20. प्रार्थना एक व्यक्ति को खुद के बारे में गलत नज़रिए से लड़ने में कैसे मदद दे सकती है?
20 भजन 102 दिखाता है कि जो ‘विश्वास में हैं,’ हो सकता है वे भी दर्द से गुज़रें और उन्हें भी और कुछ न सूझे। भजनहार को लगा जैसे वह एक ‘गौरे के समान है जो छत के ऊपर अकेला बैठता है।’ यानी उसे लगा जैसे वह बिलकुल अकेला है और चारों तरफ से परेशानियों से घिरा है। (भज. 102:7) फिर भी, भजन के इस रचयिता ने प्रार्थना के ज़रिए यहोवा की महिमा की। (भजन 102:19-21 पढ़िए।) अगर आप भी कभी ऐसा महसूस करते हैं, तो भजनहार की तरह दिल खोलकर यहोवा से बात कीजिए। आपकी प्रार्थनाएँ आपको खुद के बारे में गलत नज़रिए से लड़ने में मदद दे सकती हैं। यहोवा वादा करता है कि “वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता।” (भज. 102:17) उसके इस वादे पर भरोसा रखिए।
21. अगर आप निराश हो जाते हैं, तो क्या बात आपको खुद के बारे में और भी ज़्यादा सही नज़रिया बनाए रखने में मदद दे सकती है?
21 भजन 102 यह भी दिखाता है कि आप अपने बारे में और भी ज़्यादा सही नज़रिया बनाए रख सकते हैं। वह कैसे? भजनहार ने खुद के बारे में सोचने के बजाय, यहोवा के साथ अपने रिश्ते पर ध्यान दिया। (भज. 102:12, 27) उसे यह जानकर दिलासा मिला कि यहोवा हमेशा अपने लोगों को परीक्षाओं का सामना करने में मदद देगा। इसलिए अगर आप निराश हो गए हैं और परमेश्वर की सेवा में उतना नहीं कर पा रहे, जितना आप करना चाहते हैं, तो इस बारे में प्रार्थना कीजिए। परमेश्वर से गुज़ारिश कीजिए कि वह आपकी प्रार्थना सुने, न सिर्फ इसलिए कि आपको अपनी तकलीफ से निजात मिले, बल्कि इसलिए भी कि “यहोवा के नाम का वर्णन किया जाए।”—भज. 102:20, 21.
22. हममें से हरेक कैसे यहोवा को खुश कर सकता है?
22 जी हाँ, हम बाइबल का इस्तेमाल करके खुद को इस बात का यकीन दिला सकते हैं कि हम ‘विश्वास में हैं’ और यहोवा की नज़रों में अनमोल हैं। यह सच है कि शैतान की दुनिया में, हम शायद खुद के बारे में गलत नज़रिया रखने से या निराशा से पूरी तरह पीछा नहीं छुड़ा सकते। लेकिन हम सभी यहोवा को खुश कर सकते हैं और हमेशा की ज़िंदगी पा सकते हैं, बशर्ते हम वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहें।—मत्ती 24:13.