यशायाह
63 यह कौन है जो एदोम+ से चला आ रहा है?
“यह मैं हूँ जो नेकी की बातें कहता हूँ,
जो उद्धार दिलाने की ज़बरदस्त ताकत रखता हूँ।”
3 “मैंने अकेले ही हौद में अंगूर रौंदे हैं।
देश-देश के लोगों में से कोई भी मेरे साथ नहीं था।
मैं अपने क्रोध में उनको रौंदता गया,
अपनी जलजलाहट में उन्हें कुचलता गया।+
उनके खून के छींटें मेरी पोशाक पर आ पड़े,
इससे मेरे पूरे कपड़ों पर धब्बे लग गए।
5 मैंने यहाँ-वहाँ देखा मगर मदद के लिए कोई आगे नहीं आया,
मुझे बड़ी हैरानी हुई कि किसी ने मेरा साथ नहीं दिया।
तब मैंने अपने बाज़ू की ताकत से उद्धार दिलाया*+
और मेरी जलजलाहट ने मेरा साथ दिया।
6 मैंने अपने क्रोध में देश-देश के लोगों को कुचल डाला,
अपनी जलजलाहट का जाम पिलाकर उन्हें धुत्त कर दिया+
और उनका खून ज़मीन पर उँडेल दिया।”
7 मैं यहोवा के अटल प्यार का ऐलान करूँगा,
यहोवा के उन कामों का बखान करूँगा जो तारीफ के लायक हैं,
क्योंकि यहोवा ने हमारे लिए क्या-कुछ नहीं किया।+
अपनी दया और महान अटल प्यार की वजह से,
उसने इसराएल के घराने पर बहुत उपकार किए हैं।
8 परमेश्वर ने कहा, “ये मेरे लोग हैं, मेरे बेटे हैं, ये कभी विश्वासघात नहीं करेंगे।”+
और वह उनका उद्धारकर्ता बन गया।+
10 लेकिन उन्होंने बगावत की+ और उसकी पवित्र शक्ति को दुखी किया।+
इसलिए वह उनका दुश्मन बन गया+ और उनसे लड़ा।+
11 तब वे पुराने दिनों को याद करने लगे,
परमेश्वर के सेवक मूसा के दिनों को और कहने लगे,
“कहाँ है वह, जो अपने लोगों और उनके चरवाहों+ को समुंदर से निकाल लाया था?+
जिसने अपनी पवित्र शक्ति मूसा पर* उँडेली थी?+
12 कहाँ है वह, जिसने अपने शक्तिशाली हाथ से मूसा का दायाँ हाथ थामा था?+
जिसने लोगों के सामने पानी को दो हिस्सों में बाँटा था+
कि उसका नाम हमेशा तक याद रखा जाए?+
13 कहाँ है वह, जिसने गहरे सागर के बीच उन्हें चलाया था
और वे बिना ठोकर खाए आगे बढ़ते रहे,
जैसे कोई घोड़ा खुले मैदान* में दौड़ रहा हो?
इस तरह तूने अपने लोगों का मार्गदर्शन किया
कि तेरा नाम गौरवशाली ठहरे।+
तू मुझ पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा? अपनी शक्ति क्यों नहीं दिखा रहा?
तेरे अंदर करुणा क्यों नहीं जाग रही?+ कहाँ गयी तेरी दया?+
तू क्यों मुझसे यह सब रोके हुए है?
भले ही अब्राहम हमें जानने से
और इसराएल हमें पहचानने से इनकार कर दे,
मगर हे यहोवा, तू हमारा पिता है।
प्राचीन समय से तू ही हमारा छुड़ानेवाला है और यही तेरा नाम है।+
17 हे यहोवा, तूने क्यों हमें अपनी राहों से भटकने दिया?*
क्यों हमारे दिलों को कठोर होने दिया* कि हमने तेरा डर मानना छोड़ दिया?+
लौट आ, अपने सेवकों की खातिर लौट आ!
उन गोत्रों की खातिर लौट आ, जो तेरी जागीर हैं।+
18 तेरा देश कुछ समय के लिए तेरे पवित्र लोगों के अधिकार में था,
फिर हमारे दुश्मनों ने आकर तेरा पवित्र-स्थान रौंद डाला।+
19 अरसों तक हम ऐसे थे मानो तूने हम पर राज ही न किया हो,
मानो हम कभी तेरे नाम से बुलाए ही न गए हों।