चौबीसवाँ अध्याय
यहोवा अपने नाम की महिमा प्रकट करता है
1, 2. (क) आनेवाले ‘यहोवा के दिन’ में मसीहियों को खास दिलचस्पी क्यों है? (ख) यहोवा के आनेवाले दिन से कौन-सा बड़ा मसला जुड़ा हुआ है?
लगभग दो हज़ार साल से मसीही, ‘परमेश्वर के दिन की बाट जोहते’ आए हैं। (2 पतरस 3:12; तीतुस 2:13) ज़ाहिर है कि वे उस दिन के आने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। क्यों? क्योंकि असिद्धता ने जो बरबादी मचायी है, वह दिन उसके खत्म होने और उससे राहत पाने का दिन होगा। (रोमियों 8:22) इसके अलावा, वह दिन उन सारी मुसीबतों का आखिरी दिन होगा जिनका मसीहियों को इस “कठिन समय” में सामना करना पड़ रहा है।—2 तीमुथियुस 3:1.
2 लेकिन, जहाँ एक तरफ यहोवा का दिन धर्मियों के लिए राहत लाएगा, वहीं वह दिन उन लोगों का सर्वनाश कर देगा “जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते।” (2 थिस्सलुनीकियों 1:7,8) बात बहुत गंभीर है। लेकिन, क्या परमेश्वर सिर्फ अपने लोगों को तकलीफों से छुटकारा दिलाने के लिए सचमुच दुष्टों का विनाश कर डालेगा? यशायाह का 63वाँ अध्याय दिखाता है कि मसला इंसान को राहत दिलाने से कहीं बढ़कर है। वह मसला है, परमेश्वर के नाम का पवित्र किया जाना।
एक योद्धा की विजय-यात्रा
3, 4. (क) यशायाह के 63वें अध्याय की भविष्यवाणी किस हालत में की गयी? (ख) यशायाह किसे यरूशलेम की ओर आता हुआ देखता है, और कुछ विद्वानों का उसके बारे में क्या कहना है?
3 यशायाह के 62वें अध्याय में, हमने पढ़ा कि बचे हुए यहूदी बाबुल की बंधुआई से छूटकर अपने वतन लौटते हैं। इसलिए यह सवाल उठना लाज़िमी है: क्या दोबारा अपने वतन आकर बसनेवाले यहूदियों को दूसरी दुश्मन जातियों से डरने की ज़रूरत है कि कहीं वे फिर से उन पर हमला करके उन्हें तबाह ना कर दें? यशायाह का दर्शन उनका यह डर भी दूर कर देता है। इस भविष्यवाणी की शुरूआत यूँ होती है: “यह कौन है जो एदोम से, हां, बोस्रा से किरमिजी वस्त्र पहने हुए चला आता है, यह जिसकी वेश-भूषा ऐश्वर्यवान है और जो अपने महान् सामर्थ्य में चला आता है?”—यशायाह 63:1क, NHT.
4 यशायाह एक ऐसे योद्धा को देखता है जो बहुत ही बलवान है और वह फतह हासिल करके यरूशलेम की ओर चला आ रहा है। उसकी भव्य पोशाक से पता चलता है कि वह सबसे ऊँचे पद पर है। वह एदोम के सबसे बड़े नगर, बोस्रा की दिशा से आ रहा है, जिससे मालूम होता है कि उसने उस दुश्मन देश पर भारी जीत हासिल की है। यह योद्धा कौन हो सकता है? कुछ विद्वान कहते हैं कि वह यीशु मसीह है। कुछ और का मानना है कि यह यहूदियों की एक सेना का अगुवा, यहूदा मक्काबी है। मगर इसका सही जवाब खुद योद्धा अपनी पहचान बताकर देता है। वह कहता है: “यह मैं हूं, जो धार्मिकता में बोलता और उद्धार करने में सामर्थी हूं।”—यशायाह 63:1ख, NHT.
5. यशायाह ने जिस योद्धा को देखा वह कौन है, और आप ऐसा क्यों कहते हैं?
5 इसमें कोई शक नहीं कि यह योद्धा खुद यहोवा परमेश्वर है। बाइबल में दूसरी जगहों पर उसे “सामर्थी” और “धार्मिकता की बातें” (NHT) बोलनेवाला परमेश्वर कहा गया है। (यशायाह 40:26; यशायाह 45:19,23) इस योद्धा की भव्य पोशाक हमें भजनहार के ये शब्द याद दिलाती है: “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू विभव और ऐश्वर्य का वस्त्र पहिने हुए है।” (भजन 104:1) बाइबल दिखाती है कि हालाँकि यहोवा प्रेम का परमेश्वर है, फिर भी ज़रूरत पड़ने पर वह एक योद्धा बन जाता है।—यशायाह 34:2; 1 यूहन्ना 4:16.
6. यहोवा, एदोम से युद्ध करके क्यों आ रहा है?
6 लेकिन, यहोवा एदोम से लड़कर क्यों आ रहा है? एदोमी, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बहुत पुराने दुश्मन हैं और वे आज भी उस दुश्मनी को निभा रहे हैं जो उनके पुरखे एसाव के ज़माने में शुरू हुई थी। (उत्पत्ति 25:24-34; गिनती 20:14-21) यहूदा के लिए एदोम के मन में नफरत किस कदर कूट-कूटकर भरी हुई थी, यह खासकर तब ज़ाहिर हुआ जब यरूशलेम के विनाश के वक्त एदोमी, बाबुल के सैनिकों को ताव दिला-दिलाकर उकसा रहे थे। (भजन 137:7) ऐसी दुश्मनी को यहोवा खुद अपने खिलाफ अपराध समझता है। तो इसमें ताज्जुब नहीं कि यहोवा ने एदोम से पलटा लेने के लिए उसके खिलाफ तलवार चलाने की ठान ली है!—यशायाह 34:5-15; यिर्मयाह 49:7-22.
7. (क) यह भविष्यवाणी एदोम पर पहली बार कैसे पूरी हुई? (ख) आज, एदोम कौन है?
7 इसलिए यरूशलेम लौटनेवाले यहूदियों को यशायाह के इस दर्शन से बहुत हौसला मिलता है। इससे उन्हें यह आश्वासन मिलता है कि वे अपने नए घर में बिना किसी डर के सुरक्षित रह पाएँगे। ठीक भविष्यवाणी के मुताबिक, भविष्यवक्ता मलाकी के दिनों तक, परमेश्वर ने एदोम के “पहाड़ों को उजाड़ डाला, और उसकी बपौती को जंगल के गीदड़ों का कर दिया।” (मलाकी 1:3) क्या इसका मतलब यह है कि एदोम के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी, मलाकी के दिनों में हर तरह से पूरी हो गयी थी? जी नहीं, उजड़ने के बाद भी एदोम अपने खंडहरों को फिर से बनाने की ठान चुका था और मलाकी ने एदोम के बारे में कहा कि वह एक “दुष्ट जाति” और “ऐसे लोग” हैं “जिन पर यहोवा सदैव क्रोधित रहे।”a (मलाकी 1:4,5) लेकिन, इस भविष्यवाणी में एदोम का मतलब सिर्फ एसाव के वंशज नहीं हैं। यह नाम उन तमाम देशों की पहचान है जो खुद को यहोवा के उपासकों के दुश्मन साबित करते हैं। इनमें आज के ईसाई देश सबसे आगे हैं। तो आज के एदोम यानी ईसाईजगत का क्या अंजाम होगा?
दाख रौंदने का हौद
8, 9. (क) यशायाह ने जिस योद्धा को देखा वह क्या काम करके आ रहा था? (ख) भविष्यवाणी में बताया गया दाख का हौद कब और कैसे रौंदा जाएगा?
8 अब यशायाह लौटनेवाले उस योद्धा से पूछता है: “तेरा पहिरावा क्यों लाल है? और क्या कारण है कि तेरे वस्त्र हौद में दाख रौंदनेवाले के समान हैं?” यहोवा जवाब देता है: “मैं ने तो अकेले ही हौद में दाखें रौंदी हैं, और देश के लोगों में से किसी ने मेरा साथ नहीं दिया; हां, मैं ने अपने क्रोध में आकर उन्हें रौंदा और जलकर उन्हें लताड़ा; उनके लोहू के छींटे मेरे वस्त्रों पर पड़े हैं, इस से मेरा सारा पहिरावा धब्बेदार हो गया है।”—यशायाह 63:2,3.
9 इन शब्दों से मन में ऐसी वारदातों की तसवीर उभरती है जिसमें खून की नदियाँ बहायी गयी हों। यहाँ तक कि परमेश्वर के सुंदर वस्त्रों पर भी धब्बे लग गए हैं, वैसे ही जैसे हौद में दाख रौंदनेवाले के कपड़ों पर लग जाते हैं! दाख रौंदने के हौद से, बहुत बढ़िया तरीके से बयान किया गया है कि परमेश्वर के दुश्मनों की क्या हालत होगी। जब यहोवा उन्हें कुचलने के लिए आएगा तो वे खुद को मानो एक हौद में चारों तरफ से फँसा हुआ पाएँगे। भविष्यवाणी में बताया गया दाख का हौद कब रौंदा जाएगा? योएल और प्रेरित यूहन्ना की भविष्यवाणियों में भी एक दाख के कुंड के बारे में बताया गया है। इन भविष्यवाणियों में बताया गया दाख का कुंड, हरमगिदोन के वक्त रौंदा जाएगा जब यहोवा अपने दुश्मनों को लताड़कर नाश कर देगा। (योएल 3:13; प्रकाशितवाक्य 14:18-20; 16:16) यशायाह की भविष्यवाणी का यह दाख का हौद भी उसी वक्त रौंदे जाने की तरफ इशारा करता है।
10. यहोवा क्यों कहता है कि वह अकेला ही हौद में दाखें रौंद रहा था?
10 लेकिन, यहोवा ने ऐसा क्यों कहा कि वह इस कुंड में अकेला ही दाखें रौंद रहा था और देश के लोगों में से किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया? क्या यीशु मसीह परमेश्वर का प्रतिनिधि बनकर, हौद में दाख रौंदने में सबसे आगे नहीं होगा? (प्रकाशितवाक्य 19:11-16) हाँ, मगर यहाँ यहोवा, इंसानों की बात कर रहा है, आत्मिक प्राणियों की नहीं। वह कह रहा है कि कोई भी इंसान इस काबिल नहीं कि इस पृथ्वी से शैतान के दूतों का सफाया कर सके। (यशायाह 59:15,16) तो फिर, सिर्फ सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही रह जाता है जो अपनी जलजलाहट में आकर उनको तब तक रौंदता रहता है जब तक कि वे पूरी तरह से मिट न जाएँ।
11. (क) यहोवा “पलटा लेने का दिन” क्यों लाता है? (ख) प्राचीनकाल में “छुड़ाई हुई प्रजा” कौन थे, और आज वे कौन हैं?
11 यहोवा आगे भी इसका कारण बताता है कि क्यों वह खुद इस काम को पूरा करता है: “पलटा लेने का दिन मेरे मन में था, और मेरी छुड़ाई हुई प्रजा का वर्ष आ पहुंचा है।” (यशायाह 63:4)b सिर्फ यहोवा को उनसे बदला लेने का हक है जो उसके लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। (व्यवस्थाविवरण 32:35) प्राचीनकाल में “छुड़ाई हुई प्रजा” वे यहूदी थे जिन्होंने बाबुल के लोगों के हाथों ज़ुल्म सहे थे। (यशायाह 35:10; 43:1; 48:20) आज के ज़माने में ये अभिषिक्त मसीहियों के शेष जन हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:17) प्राचीनकाल के यहूदियों की तरह, उन्हें भी झूठे धर्म के शिकंजे से छुड़ाया गया है। और जैसे उन यहूदियों के साथ हुआ, वैसे ही अभिषिक्त जनों और ‘अन्य भेड़ों’ के उनके साथियों को सताया गया और उनका सख्त विरोध किया गया है। (यूहन्ना 10:16, NW) इसलिए यशायाह की भविष्यवाणी आज मसीहियों को यकीन दिलाती है कि परमेश्वर अपने ठहराए हुए समय में उनकी खातिर ज़रूर कार्यवाही करेगा।
12, 13. (क) किस मायने में यहोवा का कोई सहायक नहीं है? (ख) यहोवा का भुजबल कैसे उद्धार कराता है, और उसकी जलजलाहट उसे कैसे सम्हालती है?
12 यहोवा आगे कहता है: “मैं ने खोजा, पर कोई सहायक न दिखाई पड़ा; मैं ने इस से अचम्भा भी किया कि कोई सम्भालनेवाला नहीं था; तब मैं ने अपने ही भुजबल से उद्धार किया, और मेरी जलजलाहट ही ने मुझे सम्हाला। हां, मैं ने अपने क्रोध में आकर देश देश के लोगों को लताड़ा, अपनी जलजलाहट से मैं ने उन्हें मतवाला कर दिया, और उनके लोहू को भूमि पर बहा दिया।”—यशायाह 63:5,6.
13 कोई इंसान यह दावा नहीं कर सकता कि यहोवा के पलटा लेने का महान दिन लाने में उसने किसी तरह से मदद की है। ना ही यहोवा को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए किसी इंसान के सहारे की ज़रूरत है।c इस काम को करने के लिए उसके भुजबल का असीम सामर्थ ही काफी है। (भजन 44:3; 98:1; यिर्मयाह 27:5) यही नहीं, उसकी जलजलाहट उसे सम्हालती है। कैसे? वह ऐसे कि यहोवा की जलजलाहट बेकाबू नहीं होती बल्कि वह धार्मिकता की खातिर क्रोध करता है। यहोवा हमेशा अपने धर्मी सिद्धांतों के मुताबिक काम करता है, इसलिए उसकी जलजलाहट उसे सम्हालती और प्रेरित करती है कि दुश्मनों के “लोहू को भूमि पर बहा” दे यानी उन्हें नीचा दिखाकर उनको मिटा दे।—भजन 75:8; यशायाह 25:10; 26:5.
परमेश्वर की करुणा
14. यशायाह अब किस बात की सही-सही याद दिलाता है?
14 बीते समय में, यहोवा ने यहूदियों की खातिर जो काम किए थे उन्हें वे एहसानफरामोशों की तरह फौरन भूल गए। इसलिए, यशायाह का उन्हें यह याद दिलाना बिलकुल सही है कि यहोवा ने ऐसे काम क्यों किए थे। यशायाह घोषणा करता है: “जितना उपकार यहोवा ने हम लोगों का किया अर्थात् इस्राएल के घराने पर दया और अत्यन्त करुणा करके उस ने हम से जितनी भलाई की, उस सब के अनुसार मैं यहोवा के करुणामय कामों का वर्णन और उसका गुणानुवाद करूंगा। क्योंकि उस ने कहा, नि:सन्देह ये मेरी प्रजा के लोग हैं, ऐसे लड़के हैं जो धोखा न देंगे; और वह उनका उद्धारकर्त्ता हो गया। उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया, और उसके सम्मुख रहनेवाले दूत ने उनका उद्धार किया; प्रेम और कोमलता से उस ने आप ही उनको छुड़ाया; उस ने उन्हें उठाया और प्राचीनकाल से सदा उन्हें लिए फिरा।”—यशायाह 63:7-9.
15. यहोवा ने, मिस्र में कैद इब्राहीम की संतान के लिए कैसे और क्यों करुणा दिखायी?
15 यहोवा करुणा या सच्चे प्यार की क्या ही सर्वश्रेष्ठ मिसाल है! (भजन 36:7; 62:12) उसे इब्राहीम से गहरा लगाव हो गया था। (मीका 7:20) यहोवा ने इस कुलपिता से वादा किया कि उसके वंश या संतान के ज़रिए पृथ्वी की सारी जातियाँ खुद को आशीष दिलाएँगी। (उत्पत्ति 22:17,18) यहोवा ने अपना वादा निभाया, उसने इस्राएल के घराने के साथ बेहिसाब भलाई की। यहोवा के सच्चे प्यार और वफादारी की एक बहुत बड़ी मिसाल यह थी कि उसने इब्राहीम की संतान को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराया।—निर्गमन 14:30.
16. (क) जब यहोवा ने इस्राएल के साथ वाचा बाँधी तो उसका नज़रिया कैसा था? (ख) परमेश्वर अपने लोगों के साथ किस तरह व्यवहार करता है?
16 मिस्र से निकाल लाने के बाद यहोवा, इस्राएल को सीनै पर्वत के पास ले आया और उनसे यह वादा किया: “यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो . . . तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे . . . तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।” (निर्गमन 19:5,6) क्या यहोवा उनसे झूठे वादे कर रहा था? नहीं, क्योंकि यशायाह बताता है कि यहोवा ने अपने आप से कहा: “नि:सन्देह ये मेरी प्रजा के लोग हैं, ऐसे लड़के हैं जो धोखा न देंगे।” एक विद्वान कहते हैं: “यहाँ ‘नि:सन्देह’ शब्द का मतलब यह नहीं कि सर्वशक्तिमान ने कह दिया तो यह होकर ही रहेगा, या फिर वह अपने लोगों का भविष्य पढ़कर ऐसा कह रहा था। इसके बजाय यह तो यहोवा का प्यार है कि वह अपने लोगों से उम्मीद लगाए बैठा है और उसे उन पर पूरा भरोसा है।” जी हाँ, यहोवा ने अपने लोगों के साथ पूरी ईमानदारी और भरोसे के साथ वाचा बाँधी, और वह दिल से चाहता था कि उसके लोग कामयाब हों। हालाँकि उसके लोगों की खामियाँ साफ नज़र आती थीं, फिर भी उसने उन पर भरोसा ज़ाहिर किया। ऐसे परमेश्वर की उपासना करना कितने आनंद की बात है जो अपने उपासकों पर इतना भरोसा करता है! आज कलीसिया के प्राचीन भी अगर यह विश्वास दिखाएँ कि परमेश्वर के लोग दिल से भलाई करना चाहते हैं तो उनको सौंपे गए लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए वे काफी कुछ कर सकते हैं।—2 थिस्सलुनीकियों 3:4; इब्रानियों 6:9,10.
17. (क) यहोवा ने इस्राएलियों के लिए अपने प्यार का क्या सबूत दिया? (ख) आज हम क्या यकीन रख सकते हैं?
17 इसके बावजूद, भजनहार इस्राएलियों के बारे में कहता है: “वे अपने उद्धारकर्त्ता ईश्वर को भूल गए, जिस ने मिस्र में बड़े बड़े काम किए थे।” (भजन 106:21) अपने हठ और आज्ञा न मानने की वजह से वे अकसर मुसीबत को दावत देते थे (व्यवस्थाविवरण 9:6) क्या यहोवा ने उन पर करुणा करना छोड़ दिया? इसके बजाय, यशायाह कहता है कि “उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया।” यहोवा कितना बड़ा हमदर्द है! वह प्यार करनेवाला पिता है, इसलिए जब वह अपने बच्चों को दुःख झेलता हुआ देखता है तो उसका दिल तड़प उठता है फिर चाहे ये दुःख उनकी अपनी मूर्खता की वजह से ही उन पर क्यों न आए हों। अपने प्यार का सबूत देने के लिए यहोवा ने उन्हें प्रतिज्ञा किए हुए देश में पहुँचाया। इसके लिए उसने अपने “सम्मुख रहनेवाले दूत” को उनके आगे-आगे भेजा। वह दूत शायद मानव रूप में आने से पहले का यीशु था। (निर्गमन 23:20) इस तरह यहोवा, इस्राएल जाति को हाथों में उठाए उन्हें लिए फिरा, “जिस रीति कोई पुरुष अपने लड़के को उठाए चलता है।” (व्यवस्थाविवरण 1:31; भजन 106:10) आज हम भी यह यकीन रख सकते हैं कि जब हम पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है तो यहोवा को हमारे दुःख का पूरा एहसास होता है और हमारे साथ-साथ उसे भी कष्ट होता है। इसलिए हम पूरे विश्वास के साथ ‘अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल सकते हैं, क्योंकि उस को हमारा ध्यान है।’—1 पतरस 5:7.
परमेश्वर शत्रु हो जाता है
18. यहोवा अपने ही लोगों का शत्रु क्यों बन गया?
18 लेकिन, हमें कभी-भी यहोवा की करुणा का नाजायज़ फायदा नहीं उठाना चाहिए। यशायाह आगे कहता है: “उन्हों ने बलवा किया और उसके पवित्र आत्मा को खेदित किया; इस कारण वह पलटकर उनका शत्रु हो गया, और स्वयं उन से लड़ने लगा।” (यशायाह 63:10) यहोवा ने चेतावनी दी कि वह दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर ज़रूर है, फिर भी “दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा।” (निर्गमन 34:6,7) इस्राएलियों ने बार-बार विद्रोह करने का ढर्रा बना लिया था, इसलिए वे दंड के लायक थे। मूसा ने उन्हें याद दिलाया था: “कभी भी न भूलना, कि जंगल में तू ने किस किस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस दिन से तू मिस्र देश से निकला है जब तक तुम इस स्थान पर न पहुंचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो।” (व्यवस्थाविवरण 9:7) परमेश्वर की भली आत्मा के खिलाफ काम करके उन्होंने उसे खेदित या शोकित किया। (इफिसियों 4:30) उन्होंने यहोवा को इस कदर मजबूर कर दिया है कि वह उनका शत्रु बन जाए।—लैव्यव्यवस्था 26:17; व्यवस्थाविवरण 28:63.
19, 20. यहूदी किन बातों को याद करते हैं, और क्यों?
19 मुसीबतों के दौरान कुछ यहूदियों को बीते वक्त की याद आती है। यशायाह कहता है: “तब उसकी प्रजा ने प्राचीनकाल अर्थात् मूसा के दिनों को स्मरण किया। वह कहां है जो उनको अपने झुण्ड के चरवाहों के द्वारा समुद्र में से निकाल लाया? जिसने उनके मध्य अपना पवित्र आत्मा डाला, जिसने अपनी महिमामय भुजा को मूसा के दाहिने हाथ कर दिया, जिसने उनके सामने जल को दो भाग करके सदाकाल के लिए नाम कमाया, जिसने समुद्र की गहराइयों में से उनकी अगुवाई की, वह कहां है? जैसे जंगल में घोड़े को, वैसे ही उनको भी ठोकर न लगी। जैसे तराई में उतरने वाले पशु को विश्राम मिलता है, वैसे ही यहोवा के आत्मा ने उनको भी विश्राम दिया।”—यशायाह 63:11-14क, NHT.
20 जी हाँ, आज्ञा ना मानने का अंजाम भुगतने की वजह से यहूदी उन दिनों के लिए तरसते हैं जब यहोवा उनका शत्रु नहीं बल्कि उनका छुड़ानेवाला था। वे याद करते हैं कि कैसे उनके “चरवाहों,” मूसा और हारून ने उन्हें सही-सलामत लाल समुद्र पार करवाया था। (भजन 77:20; यशायाह 51:10) वे उस वक्त को याद करते हैं जब वे परमेश्वर की आत्मा को खेदित नहीं करते थे, बल्कि आत्मा से नियुक्त किए गए मूसा और दूसरे पुरनियों के ज़रिए वे उसके मार्गदर्शन में चलते थे। (गिनती 11:16,17) उन्हें याद है कि यहोवा ने उनकी खातिर, कैसे मूसा के ज़रिए अपनी “महिमामय भुजा” की शक्ति दिखायी थी! और फिर वक्त आने पर परमेश्वर कैसे उन्हें उस “बड़े और भयानक जंगल” में से निकालकर एक ऐसे देश में ले गया था जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती थीं और जहाँ उन्हें विश्राम मिला था। (व्यवस्थाविवरण 1:19; यहोशू 5:6; 22:4) लेकिन, अब इस्राएली मुसीबतें झेल रहे हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता गँवा बैठे हैं!
‘अपने नाम की महिमा प्रकट की’
21. (क) परमेश्वर के नाम के संबंध में, इस्राएल को क्या खास सम्मान मिला था? (ख) परमेश्वर ने किस खास वजह से, इब्राहीम के वंशजों को मिस्र से छुटकारा दिलाया?
21 मगर, इस्राएलियों ने धन-संपत्ति से भी बढ़कर, परमेश्वर के नाम की महिमा करने में हिस्सा लेने का सुअवसर गँवाया है। मूसा ने इस्राएलियों से वादा किया था: “यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते हुए उसके मार्गों पर चले, तो वह अपनी शपथ के अनुसार तुझे अपनी पवित्र प्रजा करके स्थिर रखेगा। और पृथ्वी के देश देश के सब लोग यह देखकर, कि तू यहोवा का कहलाता है, तुझ से डर जाएंगे।” (व्यवस्थाविवरण 28:9,10) इसलिए जब यहोवा ने इब्राहीम के वंशजों की खातिर कदम उठाते हुए उन्हें मिस्र की गुलामी से आज़ाद करवाया तो वह ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कर रहा था कि वह उनकी तकलीफों को दूर करके उन्हें चैन की ज़िंदगी देना चाहता था। वह इससे भी बड़ी और अहम चीज़ के लिए लड़ रहा था और वह था उसका अपना नाम। जी हाँ, उसने यह “सारी पृथ्वी पर” अपना नाम “प्रसिद्ध” करने के लिए किया था। (निर्गमन 9:15,16) और जब यहोवा ने वीराने में इस्राएल के विद्रोह के बाद दया दिखायी, तो उसने सिर्फ जज़्बात में बहकर ऐसा नहीं किया। यहोवा ने खुद कहा: “ऐसा मैंने अपने नाम के निमित्त किया, जिस से मेरा नाम . . . अपवित्र न ठहरे।”—यहेजकेल 20:8-10, NHT.
22. (क) भविष्य में, परमेश्वर फिर एक बार अपने लोगों की खातिर क्यों लड़ेगा? (ख) अगर हम परमेश्वर के नाम से प्यार करते हैं, तो हमारे काम कैसे होंगे?
22 अब यशायाह इस भविष्यवाणी का क्या ही ज़बरदस्त निचोड़ पेश करता है! वह कहता है: “तूने अपने नाम की महिमा प्रकट करने के लिए हमारा पथ प्रदर्शन किया था।” (यशायाह 63:14ख, नयी हिन्दी बाइबिल) अब हम अच्छी तरह समझ सकते हैं कि यहोवा अपने लोगों की खातिर इतने सामर्थ से क्यों लड़ता है। अपने नाम की महिमा प्रकट करने के लिए। इसलिए यशायाह की भविष्यवाणी हमारे लिए बड़ी ही ज़बरदस्त चेतावनी है कि यहोवा का नाम धारण करना हमारे लिए बहुत बड़ा सम्मान है, साथ ही बहुत भारी ज़िम्मेदारी भी। आज सच्चे मसीहियों को, यहोवा का नाम अपनी जान से भी प्यारा है। (यशायाह 56:6; इब्रानियों 6:10) वे ऐसे हर काम से घृणा करते हैं जिससे उस पवित्र नाम की बदनामी हो। वे परमेश्वर के सच्चे प्यार के जवाब में उसके वफादार रहकर वैसा ही सच्चा प्यार दिखाते हैं। और क्योंकि वे यहोवा के महिमामय नाम से प्यार करते हैं, वे उस दिन का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जब परमेश्वर अपने क्रोध के हौद में अपने दुश्मनों को रौंद डालेगा। लेकिन परमेश्वर के लोग सिर्फ इसलिए इंतज़ार नहीं करते कि इससे उन्हें फायदा होगा बल्कि इसलिए कि इसके ज़रिए उनके परमेश्वर के नाम की महिमा होगी जिससे वे बेहद प्यार करते हैं।—मत्ती 6:9.
[फुटनोट]
a सामान्य युग पहली सदी के हेरोद, एदोमी थे।
b “छुड़ाई हुई प्रजा का वर्ष” और “पलटा लेने का दिन” ये दोनों वाक्य एक ही समय-अवधि का ज़िक्र हो सकते हैं। ध्यान दीजिए कि कैसे यशायाह 34:8 में भी ऐसे ही शब्द इस्तेमाल किए गए हैं।
c यहोवा ताज्जुब करता है कि कोई उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं हुआ। यह सचमुच ताज्जुब की बात है कि यीशु की मौत के करीब 2,000 साल बाद भी, पृथ्वी के शक्तिशाली लोग आज तक परमेश्वर की इच्छा का विरोध करते हैं।—भजन 2:2-12; यशायाह 59:16.
[पेज 359 पर तसवीर]
यहोवा अपने लोगों से बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगाए हुए था