भजन
दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।
31 हे यहोवा, मैंने तेरी पनाह ली है।+
मुझे कभी शर्मिंदा न होने दे।+
अपनी नेकी के कारण मुझे छुड़ा ले।+
मुझे छुड़ाने के लिए फौरन आ।+
मेरे लिए पहाड़ पर खड़ा मज़बूत गढ़ बन जा,
मुझे बचाने के लिए एक महफूज़ किला बन जा।+
3 क्योंकि तू मेरे लिए बड़ी चट्टान और मज़बूत गढ़ है,+
अपने नाम की खातिर+ तू मेरी अगुवाई करेगा, मुझे रास्ता दिखाएगा।+
5 मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ।+
हे यहोवा, सच्चाई के परमेश्वर,*+ तूने मुझे छुड़ाया है।
6 मैं उनसे नफरत करता हूँ जो बेकार और निकम्मी मूरतों को पूजते हैं,
मगर मैं यहोवा पर भरोसा करता हूँ।
7 मैं तेरे अटल प्यार के कारण बहुत मगन होऊँगा,
क्योंकि तूने मेरा दुख देखा है,+
तू मेरे मन की पीड़ा जानता है।
9 हे यहोवा, मुझ पर रहम कर, मैं मुसीबत में हूँ।
घोर चिंता से मेरी आँखें कमज़ोर हो गयी हैं,+ पूरा शरीर सूख गया है।+
मेरे गुनाह की वजह से मेरी ताकत मिट रही है,
मेरी हड्डियाँ कमज़ोर हो रही हैं।+
मेरे जान-पहचानवाले मुझसे डरते हैं,
मुझे बाहर देखते ही मुझसे दूर भागते हैं।+
12 उन्होंने मुझे अपने दिल* से निकाल दिया है,
मुझे भुला दिया है मानो मेरी मौत हो गयी हो,
मैं एक टूटे घड़े जैसा बन गया हूँ।
वे सब मेरे खिलाफ दल बाँधते हैं,
मेरी जान लेने की साज़िश रचते हैं।+
14 मगर हे यहोवा, मैं तुझ पर भरोसा करता हूँ।+
मैं ऐलान करता हूँ, “तू मेरा परमेश्वर है।”+
15 मेरी ज़िंदगी* तेरे हाथ में है।
मुझे मेरे दुश्मनों और सतानेवालों के हाथ से छुड़ा।+
16 अपने सेवक पर अपने मुख का प्रकाश चमका।+
अपने अटल प्यार के कारण मुझे बचा ले।
17 हे यहोवा, मैं तुझे पुकारूँगा, मुझे शर्मिंदा न होना पड़े।+
दुष्ट शर्मिंदा हों,+ कब्र में खामोश कर दिए जाएँ।+
18 झूठ बोलनेवाले मुँह बंद कर दिए जाएँ,+
जो मगरूर होकर, घमंड और नफरत से भरकर
नेक जन के खिलाफ बोलते हैं।
19 हे परमेश्वर, तेरी भलाई अपार है!+
यह तूने उनके लिए रख छोड़ी है जो तेरा डर मानते हैं+
और जो तेरी पनाह लेते हैं, उनके साथ तूने सबके देखते भलाई की है।+
20 तू उन्हें लोगों की साज़िशों से बचाने के लिए
अपनी मौजूदगी की गुप्त जगह छिपाए रखेगा,+
उन्हें चुभनेवाली बातों के वार से बचाने के लिए
अपने आसरे में छिपा लेगा।+
21 यहोवा की तारीफ हो क्योंकि जब मैं सेना से घिरे शहर में था,+
तब उसने मुझे अपने अटल प्यार का लाजवाब तरीके से सबूत दिया था।+
मगर जब मैंने दुहाई दी तो तूने मेरी सुनी।+