सुरक्षित ज़िंदगी की तलाश में
डर और चिंता मिटाने का तरीका हरेक के लिए अलग-अलग होता है। एक व्यक्ति सोचता है कि अच्छी नौकरी होने से, दूसरा सोचता है कि रुपया-पैसा होने से, और तीसरा सोचता है कि एक ऐसा माहौल होने से हमें किसी तरह का डर और चिंता नहीं होगी, जहाँ अपराध का नामो-निशान नहीं है। क्या इसके बारे में आपका नज़रिया कुछ और है?
इसके बारे में आप चाहे जो भी सोचते हों, बेशक आप ऐसे कदम उठाने की कोशिश करते हैं जिससे आपकी ज़िंदगी पर डर और चिंता के काले बादल न मँडराएँ। गौर कीजिए कि यूरोप के लोग अपनी ज़िंदगी में सुरक्षा पाने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं।
पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब?
यूरोपीयन कमिशन के अध्यक्ष, ज़्हाक साँते के मुताबिक, यूरोपीय देशों में २० प्रतिशत जवान लोग बेरोज़गार हैं। और इसलिए, उन जवानों के दिलो-दिमाग में बस एक ही सवाल है कि मुझे एक पक्की नौकरी कैसे मिलेगी जिससे मेरी ज़िंदगी सँवर जाए? कई लोग इस कहावत को सही मानते हैं कि ‘पढ़ोगे लिखोगे, तो बनोगे नवाब।’ वे सोचते हैं कि अपना भविष्य सँवारने का बेहतरीन तरीका है उच्च शिक्षा हासिल करना। इसके बारे में लंदन का द संडे टाइम्स कहता है कि उच्च शिक्षा से विद्यार्थियों को “जॉब मार्कॆट में एक खास फायदा होता है।”
मिसाल के तौर पर, नॉसाउइशॆ नॉइए प्रॆसॆ रिपोर्ट करता है कि जर्मनी में “शिक्षा और अच्छी डिगरी पाने की इच्छा पहले से कहीं ज़्यादा है।” और वहाँ के विद्यार्थी ऐसी उच्च शिक्षा पाने के लिए इस बात की फिक्र नहीं करते कि एक यूनिवर्सिटी कोर्स पूरा करने तक का औसतन खर्च करीब २२,००,००० रुपए है।
ऐसे जवानों की तारीफ की जानी चाहिए जो शिक्षा की गंभीरता को समझते हैं और अच्छी, पक्की नौकरी पाना चाहते हैं। और रोज़गार के लिए जिसके हाथ में कोई हुनर या दूसरी क्वालिफिकेशन है, तो बस सोने पर सुहागा है। मगर, क्या अच्छी तरह पढ़-लिखकर भी बच्चों को हमेशा ‘नवाबों’ की सी अच्छी, पक्की नौकरी मिलती है? एक विद्यार्थिनी ने कहा: “मैं पहले से ही जानती थी कि मेरे कोर्स से मुझे कोई सही पेशा अपनाने में मदद नहीं मिलेगी, और मुझे हमेशा इसकी चिंता खाती रहेगी।” इस लड़की की तरह और भी कई लोग हैं। हाल के एक साल में, जर्मनी में बेरोज़गार ग्रैजुएटों की संख्या एक नए शिखर तक पहुँच गयी।
एक अखबार के मुताबिक, फ्रांस में जवान लोग युनिवर्सिटी के कोर्स करते हैं क्योंकि वहाँ इतने सारे बेरोज़गार जवानों के होते, हाई स्कूल के सर्टिफिकेट का मोल कौड़ी के बराबर है। मगर, युनिवर्सिटी के कई विद्यार्थी खुद इस बात को कबूल करते हैं कि अपना कोर्स खत्म करने के बाद “उनकी जेब में बस एक डिग्री के अलावा और कुछ नहीं होगा।” द इंडिपॆंडॆंट रिपोर्ट करता है कि ब्रिटॆन में, “विद्यार्थियों पर लंबे समय तक पढ़ाई करने का बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है।” ज़िंदगी को सँवारने में विद्यार्थी की मदद करने की तो बात दूर रही, यह रिपोर्ट किया गया है कि पढ़ाई-लिखायी के दबाव की वज़ह से कभी-कभी हताशा, गंभीर परेशानी, स्वाभिमान में कमी जैसी समस्याएँ हुई हैं।
अकसर, कोई व्यापार या ट्रेड सीखने से या मैनुफैक्चरिंग की ट्रेनिंग लेने से ऐसी अच्छी नौकरी मिलने की ज़्यादा गुंजाइश होती है, जो युनिवर्सिटी डिग्री से शायद नहीं मिले।
क्या ढेर सारी संपत्ति काफी है?
कई लोग सोचते हैं कि बस पैसा है तो जहान है। वे सोचते हैं कि ढेर सारा पैसा हो तो आपको ज़िंदगी भर फिक्र करने की ज़रूरत नहीं। शायद यह खयाल ठीक लगे, क्योंकि एक अच्छा बैंक बैलेंस होगा तो बुरे वक्त में काम आएगा। और बाइबल समझाती है कि ‘रुपये-पैसे संरक्षण प्रदान करते हैं।’ (सभोपदेशक ७:१२, NHT) मगर, क्या ढेर सारा पैसा होगा तो हमारा भविष्य सुरक्षित होगा?
ज़रूरी नहीं। गौर कीजिए कि पिछले ५० सालों में लोगों के पास धन-दौलत कैसे बढ़ी है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के एक बड़े भाग की आबादी के पास कुछ भी नहीं था। और आज, जर्मनी का एक अखबार कहता है कि एक आम जर्मन व्यक्ति के पास १०,००० वस्तुएँ हैं। अगर अर्थशास्त्रियों का अनुमान सही हैं, तो आनेवाली नस्लों के पास तो इससे भी ज़्यादा वस्तुएँ होंगी। मगर क्या ये धन-दौलत, रुपया-पैसा इंसान की चिंता और डर को निकालकर उसका भविष्य सुरक्षित बनाता है? नहीं। क्योंकि जर्मनी में किए गए एक सर्वे से पता चला, ३ में से २ लोग सोचते हैं कि अब ज़िंदगी उतनी सुरक्षित नहीं रही जितनी २० या ३० साल पहले थी। सो हालाँकि लोगों के पास ज़्यादा पैसा आया है, मगर इसने उनमें फैली चिंता और डर को दूर नहीं किया है।
और इस बात में दम भी है, क्योंकि जैसे पिछले लेख में बताया गया था, डर और चिंता का बुरा असर दिल और दिमाग पर पड़ता है। और रुपये-पैसे से तो इस असर को पूरी तरह निकाला नही जा सकता। हाँ, यह बात ज़रूर है कि रुपया-पैसा गरीबी में और हमारे बुरे वक्त में काम आता है। मगर, ऐसे भी हालात होते हैं, जब ज़्यादा पैसा होने से भी उतनी ही मुसीबतें आती हैं जितनी की कम पैसा होने से।
सो इन भौतिक चीज़ों के बारे में एक सही नज़रिया रखने से हमें इस बात को याद रखने में मदद मिलेगी कि हालाँकि रुपया-पैसा एक आशीष हो सकती है, इससे हमारा भविष्य पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो सकता। जब यीशु इस पृथ्वी पर था, तब उसने अपने चेलों को प्रोत्साहन दिया और कहा: “किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायात से नहीं होता।” (लूका १२:१५) ज़िंदगी में डर और चिंता को पूरी तरह मिटाने के लिए, एक व्यक्ति को रुपये-पैसे से भी बढ़कर कुछ चाहिए।
बुज़ुर्ग लोगों के लिए संपत्ति बहुमूल्य होती है, उसकी कीमत की वज़ह से नहीं, मगर उसके साथ जुड़े उनके जज़्बातों की वज़ह से। इन बुज़ुर्गों को इस धन-दौलत से बड़ी चिंता चोरी-डकैती की होती है।
होशियार!
ब्रिटेन में प्रकाशित बुकलेट अपराध से बचने के प्रैक्टिकल तरीके (अंग्रेज़ी) बताती है कि “पिछले ३० सालों में अपराध दुनिया भर में बढ़ रहा है।” पुलिस बल अपना दम-खम लगाकर काम कर रही है। कुछ लोग क्या कर रहे हैं?
सबसे ज़्यादा सुरक्षा घर में मिलती है। इसीलिए, स्विट्ज़रलैंड में एक आर्किटेक्ट है जो अच्छे तालों, मज़बूत दरवाज़ों, और सलाखोंवाली खिड़कियों का इस्तेमाल करके ऐसे घर बनाता है जिनमें चोर-लुटेरे घुस नहीं सकते। ऐसे घरों में रहनेवाले सचमुच यह सोचते हैं “मेरे घर में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता।” न्यूज़मैग्ज़ीन फोकस के मुताबिक ऐसे घर बहुत ही मँहगे होते हैं, फिर भी उनकी भारी माँग है।
घर के अंदर और बाहर की सुरक्षा को और भी बढ़ाने के लिए, कुछ इलाकों में रहनेवाले लोग पहरेदारों को तैनात करते हैं। शहरों के कुछ भागों में लोग सेक्यूरिटी एजेंसियों को भाड़े पर रखते हैं, ताकि वे लोग उनके बिल्डिंग की रखवाली करें। कई लोगों को लगता है कि रात को सुनसान रास्तों पर अकेले निकलना ठीक नहीं है। और अपने बच्चों के बारे में चिंतित माता-पिता उनकी हिफाज़त करने के लिए और भी एहतियात बरतते हैं। इस पेज के बॉक्स में दिए गए सुझावों पर ध्यान दीजिए।
लेकिन सभी लोग ऐसे मँहगे घर नहीं खरीद सकते। और-तो-और, ऐसे पहरेदार और सेक्युरिटी एजेंसियाँ सामान्य अपराध को कम नहीं कर सकते; वे अपराधी बस दूसरी जगह चले जाएँगे, जहाँ कोई सुरक्षा नहीं हो। सो अपराध जान-माल के लिए अब भी एक बड़ा खतरा बना हुआ है। हमारी ज़िंदगी को सुरक्षित बनाने के लिए, यानी अपराध कम करने के लिए ये ज़बरदस्त तरीके भी काफी नहीं हैं।
बीमारी की जड़ तक पहुँचना
हम सभी अपनी ज़िंदगी और भविष्य को सुरक्षित बनाना चाहते हैं, और अच्छा होगा अगर हम उचित, व्यावहारिक कदम उठाते हैं। मगर अपराध, बेरोज़गारी, और ज़िंदगी को असुरक्षित बनानेवाली बाकी की बातें उस महामारी के मात्र लक्षण हैं जो पूरी दुनिया में फैली हुई है। इस हालत को ठीक करने के लिए, बीमारी के लक्षणों तक नहीं, मगर उसकी जड़ तक पहुँचना ज़रूरी है।
मगर, हमारी ज़िंदगी डर और चिंता के साये में क्यों रहती है? हम इसे कैसे ठीक कर सकते हैं जिससे हमारी ज़िंदगी से डर और चिंता के काले बादल हमेशा-हमेशा के लिए हट जाएँ? अगले लेख में हम इसकी चर्चा करेंगे।
[पेज 6 पर बक्स]
अपने बच्चों की रक्षा करने के कुछ तरीके
कई यूरोपीय देशों में बच्चों पर किए गए हमले, उनका अपहरण और उनकी हत्या करना बढ़ रहा है। इस वज़ह से कई माता-पिताओं ने अपने बच्चों को ये हिदायतें दी हैं:
१. अगर कोई उनसे ऐसा काम करने के लिए कहता है जो उन्हें ठीक नहीं लगता तो फौरन इनकार कीजिए—एकदम निडर होकर।
२. अगर मम्मी या डैडी नहीं हैं तो किसी को भी—डाक्टर या नर्स को भी—गुप्तांगों को छूने मत दीजिए—
३. जब खतरे में हों तो भाग जाइए, चिल्लाइए, शोर मचाइए, या आस-पास के किसी बड़े आदमी से मदद माँगिए।
४. अगर बच्चे को कोई भी घटना या बातचीत अच्छी नहीं लगी, तो मम्मी-डैडी को बताइए।
५. मम्मी-डैडी से कुछ भी मत छिपाइए।
और आखिरी बात, यह अच्छा होगा अगर माता-पिता उन लोगों को चुनते वक्त होशियार रहें जिनकी देखभाल में बच्चे को अकेला छोड़ा गया है।
[पेज 5 पर तसवीर]
हमारी ज़िंदगी को डर और चिंता से मुक्त करने के लिए सिर्फ शिक्षा, पैसा, और अपराध को रोकने के ज़बरदस्त तरीके ही काफी नहीं हैं