अध्ययन १५
उपयुक्त दृष्टान्त
१, २. संक्षिप्त में बताइए कि दृष्टान्त एक भाषण में क्या भूमिका निभाते हैं।
जब वक्ता दृष्टान्तों का इस्तेमाल करता है तो वह वास्तव में अपने श्रोतागण के मन में अर्थपूर्ण चित्र बिठाता है। दृष्टान्त दिलचस्पी को बढ़ाते हैं और महत्त्वपूर्ण विचारों को विशिष्ट करते हैं। वे लोगों की सोच-विचार प्रक्रिया को उकसाते हैं और नए विचारों को समझना आसान बनाते हैं। दृष्टान्तों का अच्छा चयन मानसिक आकर्षण के साथ-साथ भावात्मक रूप से भी प्रभावित करता है। इसका परिणाम यह होता है कि वह संदेश मन में इतनी अच्छी तरह बैठ जाता है जितना कि मात्र सरल तथ्यों को बताने से नहीं किया जा सकता। लेकिन यह केवल तब सच है जब दृष्टान्त उपयुक्त होते हैं। उन्हें आपके विषय के अनुरूप होना चाहिए।
२ कुछ अवसरों पर, पूर्वधारणा या किसी पक्षपात पर विजय पाने के लिए एक दृष्टान्त का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक विवादास्पद धर्मसिद्धांत को प्रस्तुत करने से पहले यह आपत्तियों को हटा सकता है। उदाहरण के लिए आप शायद कहें, “कोई भी पिता दण्ड के तौर पर अपने बच्चे का हाथ एक गरम चूल्हे में नहीं डालेगा।” “नरक” के धर्मसिद्धांत को ऐसे एक दृष्टान्त से प्रस्तुत करना तुरन्त “नरक” के उस झूठे धार्मिक विचार को घिनौना बनाएगा और इस प्रकार उसे आसानी से त्यागा जाएगा।
३-६. किन स्रोतों से दृष्टान्त लिए जा सकते हैं?
३ दृष्टान्त कई प्रकार के हो सकते हैं। वे तुल्यरूपताएँ, तुलनाएँ, विषमताएँ, उपमाएँ, रूपक, व्यक्तिगत अनुभव, अथवा उदाहरण हो सकते हैं। वे अनेक स्रोतों से चुने जा सकते हैं। वे सृष्टि की जीवित या निर्जीव वस्तुओं से सम्बन्धित हो सकते हैं। वे श्रोतागण के व्यवसाय पर, मानव गुणों या विशेषताओं पर, घरेलू वस्तुओं पर, या घर अथवा जहाज़ जैसे मनुष्यों की रचनाओं, इत्यादि पर आधारित हो सकते हैं। लेकिन, जो भी दृष्टान्त इस्तेमाल किया जाए, उसे अवसर और विषय के कारण चुना जाना चाहिए, न कि मात्र इसलिए कि वह वक्ता का पसन्दीदा दृष्टान्त है।
४ सावधान। बहुत ज़्यादा दृष्टान्त देकर अपने भाषण को अत्यधिक मसालेदार न बनाइए। उनका इस्तेमाल कीजिए लेकिन उनका अत्यधिक इस्तेमाल न कीजिए।
५ दृष्टान्तों का सही इस्तेमाल एक कला है। इसके लिए कौशल और अनुभव की ज़रूरत है। लेकिन इसकी प्रभावकारिता के बारे में जितना कहें उतना कम है। दृष्टान्तों का इस्तेमाल करना सीखने के लिए आपको दृष्टान्तों के तौर पर सोचना सीखना पड़ेगा। जब आप पढ़ते हैं, तो ध्यान दीजिए कि कौन-से दृष्टान्त इस्तेमाल किए गए हैं। जब आप बातों को देखते हैं तो उन्हें मसीही जीवन और सेवकाई की नज़र से देखिए। उदाहरण के लिए, यदि आप एक गमले में एक फूल को देखते हैं जो सूखा और मुरझाया हुआ प्रतीत होता है तो आप शायद सोचें, “मित्रता एक पौधे की तरह है। बढ़ने के लिए इसे सींचा जाना चाहिए।” आज कुछ व्यक्ति चाँद की ओर मात्र अंतरिक्ष यात्रा से सम्बन्धित नज़रिए से ही देखते हैं। एक मसीही इसे परमेश्वर की रचना, उसकी सृष्टि का एक उपग्रह, एक ऐसी वस्तु जो सर्वदा बनी रहती है, एक ऐसी वस्तु जो हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करती है, ज्वार-भाटा के चढ़ने और उतरने का कारण बनती है, के तौर पर देखता है।
६ एक भाषण तैयार करने में, यदि सरल दृष्टान्त आसानी से याद नहीं आते तो वॉच टावर सोसाइटी के प्रकाशनों में सम्बन्धित विषय की जाँच कीजिए। देखिए कि क्या वहाँ दृष्टान्तों का इस्तेमाल किया गया है। भाषण के मुख्य शब्दों और जिन चित्रों की वे आपको याद दिलाते हैं उनके बारे में विचार कीजिए। इन पर आगे कार्य कीजिए। लेकिन याद रखिए, एक दृष्टान्त जो ठीक नहीं बैठता है किसी दृष्टान्त के ना होने से भी बदतर है। “विषय के लिए उपयुक्त दृष्टान्त” जो आपकी भाषण सलाह परची पर सूचीबद्ध है पर विचार करते वक़्त, इस मामले के कई पहलू हैं जिन्हें याद रखा जाना चाहिए।
७-९. सरल दृष्टान्त इतने प्रभावकारी क्यों होते हैं?
७ सरल। एक सरल दृष्टान्त याद रखना आसान है। जटिल होने की वजह से विकर्षित करने के बजाय सरलता तर्क के क्रम में योग देती है। यीशु के दृष्टान्त अकसर कुछ शब्दों के ही थे। (उदाहरण के लिए मत्ती १३:३१-३३; २४:३२, ३३ देखिए।) सरल होने के लिए शब्दावली समझी जानी चाहिए। यदि किसी दृष्टान्त को बहुत ज़्यादा समझाने की ज़रूरत है तो वह अतिरिक्त बोझ है। उसे छोड़ दीजिए या उसे सरल बनाइए।
८ यीशु ने बड़ी बातों को समझाने के लिए छोटी बातों का, और कठिन बातों को समझाने के लिए सरल बातों का इस्तेमाल किया। किसी दृष्टान्त का आसानी से मानसिक चित्र बनाया जाना चाहिए, और एक साथ अनेक विवरणों को प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। उसे सुस्पष्ट और ठोस होना चाहिए। ऐसे दृष्टान्तों का आसानी से ग़लत अनुप्रयोग नहीं किया जाता।
९ ऐसा दृष्टान्त सबसे अच्छा है जब वह पूर्णतः उस विषय की समानता में है जिसे सचित्रित करने के लिए उसे तैयार किया गया है। यदि दृष्टान्त का कोई भी पहलू उपयुक्त न हो तो बेहतर होगा कि उसे इस्तेमाल न करें। कोई व्यक्ति उन अनुचित पहलुओं के बारे में विचार करेगा और वह दृष्टान्त अपना प्रभाव खो देगा।
१०, ११. समझाइए कि क्यों दृष्टान्तों का अनुप्रयोग स्पष्ट किया जाना चाहिए।
१० अनुप्रयोग स्पष्ट किया गया। यदि किसी दृष्टान्त का अनुप्रयोग न किया जाए तो कुछ लोग शायद उसे समझें लेकिन अधिकांश लोग उसे नहीं समझेंगे। वक्ता के मन में दृष्टान्त स्पष्ट होना चाहिए और उसका उद्देश्य मालूम होना चाहिए। उसे सरल रीति से बताना चाहिए कि दृष्टान्त का महत्त्व क्या है। (मत्ती १२:१०-१२ देखिए।)
११ किसी दृष्टान्त का अनेक तरीक़ों से अनुप्रयोग किया जा सकता है। इसे एक सिद्धान्त को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जो दृष्टान्त के पहले अथवा बाद में सरल रीति से बताया गया है। दृष्टान्त द्वारा प्रदर्शित तर्कों के परिणामों को लागू करने से इसका अनुप्रयोग किया जा सकता है। या दृष्टान्त के मुद्दों और तर्क के बीच समानताओं की ओर मात्र ध्यान आकर्षित करने के द्वारा इसका अनुप्रयोग किया जा सकता है।
१२-१४. कौन-सी बात हमें यह निर्धारित करने में मदद देगी कि उपयुक्त दृष्टान्त क्या है?
१२ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ज़ोर दिया गया। एक दृष्टान्त का मात्र इसलिए इस्तेमाल न कीजिए क्योंकि यह आपके मन में आया। भाषण की जाँच कीजिए ताकि पता चले कि मुख्य मुद्दे क्या हैं और फिर उन्हें समझाने के लिए दृष्टान्तों को चुनिए। यदि छोटे मुद्दों के लिए प्रभावकारी दृष्टान्त इस्तेमाल किए जाते हैं तो श्रोतागण मुख्य मुद्दों के बजाय छोटे मुद्दों को याद रखेंगे। (मत्ती १८:२१-३५; ७:२४-२७ देखिए।)
१३ दृष्टान्त को तर्क पर हावी नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि श्रोतागण उसे ही याद रखें, परन्तु जब दृष्टान्त याद आता है तो जिस मुद्दे को विशिष्ट करने के लिए उसे इस्तेमाल किया गया था वह भी याद आना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो दृष्टान्त बहुत ज़्यादा प्रमुख बन गया है।
१४ किसी भाषण की तैयारी करते वक़्त और दृष्टान्तों को चुनते वक़्त ज़ोर दिए जानेवाले मुद्दों की तुलना में दृष्टान्त का महत्त्व जाँचिए। क्या यह इन मुद्दों को प्रबल करता है? क्या यह उन्हें विशिष्ट करता है? क्या यह मुद्दों को समझना और याद रखना आसान बनाता है? यदि नहीं, तो यह एक उपयुक्त दृष्टान्त नहीं है।
१५, १६. समझाइए कि क्यों दृष्टान्तों को श्रोतागण के अनुरूप होना चाहिए।
१५ दृष्टान्तों को न केवल विषय के लिए उपयुक्त होना चाहिए परन्तु उन्हें आपके श्रोतागण के अनुरूप भी बनाया जाना चाहिए। यह सलाह फ़ार्म पर “श्रोतागण के लिए उपयुक्त दृष्टान्त” के तौर पर अलग सूचीबद्ध किया गया है। जब बतशेबा के साथ दाऊद के पाप के सम्बन्ध में उसको सुधारने के लिए नातान से कहा गया था, तब उसने एक निर्धन व्यक्ति और उसकी भेड़ की एक छोटी बच्ची का दृष्टान्त चुना। (२ शमू. १२:१-६) यह दृष्टान्त न केवल व्यवहार-कुशल था परन्तु वह दाऊद के लिए उपयुक्त था क्योंकि वह एक चरवाहा रह चुका था। उसे तुरन्त बात समझ में आ गई।
१६ यदि श्रोतागण में से अधिकांश जन बुज़ुर्ग हैं तो ऐसे दृष्टान्तों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए जो केवल युवा लोगों को ही रुचिकर लगें। लेकिन कॉलेज छात्रों के एक समूह के लिए ऐसे दृष्टान्त शायद पूर्णतः उपयुक्त हों। कभी-कभी श्रोताओं के लिए, जैसे कि बुज़ुर्ग और युवा, पुरुष और स्त्रियाँ, दृष्टान्तों को दो विपरीत नज़रियों से विकसित किया जा सकता है।
१७-१९. आपके श्रोतागण को आकर्षित करने के लिए आपके दृष्टान्त कहाँ से लिए जाने चाहिए?
१७ परिचित परिस्थितियों से लिया गया। यदि आप दृष्टान्त बनाने में आस-पास की वस्तुओं का इस्तेमाल करेंगे तो वे आपके श्रोतागण के लिए परिचित होंगी। यीशु ने ऐसा किया। कुँए के पास उस स्त्री से उसने अपने जीवनदायी गुणों की तुलना पानी से की। उसने जीवन की साधारण बातों का इस्तेमाल किया, असाधारण बातों का नहीं। उसके दृष्टान्तों ने उसके श्रोतागण के मन में आसानी से एक चित्र खींचा या उन्हें तुरन्त उनके अपने जीवन की कुछ घटनाओं के बारे में याद दिलाया। उसने सिखाने के लिए दृष्टान्तों का इस्तेमाल किया।
१८ उसी प्रकार आज भी है। गृहिणियाँ व्यवसाय जगत के बारे में शायद जानती हों, लेकिन बेहतर होगा यदि आप अपनी टिप्पणियों को उन बातों से सचित्रित करें जो उनके दैनिक जीवन में हैं, उनके बच्चे, उनके घरेलू कार्य और वे चीज़ें जिन्हें वे अपने घर में इस्तेमाल करती हैं।
१९ कोई ऐसी चीज़ जो पूर्णतः स्थानीय है, संभवतः मात्र उस ख़ास क्षेत्र में पायी जानेवाली, उस पर आधारित दृष्टान्त भी प्रभावकारी होते हैं। वर्तमान घटनाएँ जिनके बारे में उस समुदाय में लोगों को अच्छी तरह मालूम है, जैसे कि स्थानीय समाचार की बातें भी उपयुक्त हैं यदि उनका अच्छी तरह चयन किया गया है।
२०-२२. दृष्टान्तों के इस्तेमाल में जिन ख़तरों से दूर रहना है उन्हें बताइए।
२० अच्छा चयन किया गया। इस्तेमाल किया गया कोई भी दृष्टान्त एक बाइबल चर्चा के लिए उपयुक्त होना चाहिए। स्पष्टतः दृष्टान्तों को “भद्दा” नहीं होना चाहिए, अर्थात् नैतिकता के सम्बन्ध में। यदि उन्हें ग़लत समझा जा सकता है तो दोहरे अर्थवाले कथनों से दूर रहिए। पालन करने के लिए यह एक अच्छी नीति है: यदि सन्देह हो तो उसे छोड़ दीजिए।
२१ दृष्टान्तों को अनावश्यक ही आपके श्रोतागण में किसी व्यक्ति को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए, ख़ासकर वे जो नई-नई संगति कर रहे हैं। इसीलिए, यह अच्छा होगा कि कोई धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी या विवादात्मक बातों को न उठाएँ जो वास्तव में आपकी चर्चा में दाँव पर नहीं है। उदाहरण के लिए, आप एक ऐसा उदाहरण नहीं इस्तेमाल करेंगे जो रक्ताधान या झण्डे की सलामी से सम्बन्धित है यदि वे भाषण के मुख्य मुद्दे नहीं हैं। इससे कोई व्यक्ति भटक सकता है और ठोकर भी खा सकता है। यदि आपके भाषण में मुख्यतः ऐसी बातों की चर्चा की जानी है तो वह अलग बात है। तब आपके पास उन पर तर्क करने का और अपने श्रोतागण को विश्वास दिलाने का अवसर है। लेकिन अपने दृष्टान्तों से उन महत्त्वपूर्ण सच्चाइयों के प्रति जिनकी आप चर्चा कर रहे हैं अपने श्रोतागण को पूर्वधारणा बनाने न दीजिए। ऐसी पूर्वधारणा से आपका उद्देश्य नाक़ामयाब होगा।
२२ अतः अपने दृष्टान्तों को चुनने में समझ का इस्तेमाल कीजिए। निश्चित कीजिए कि वे उपयुक्त हैं। वे उपयुक्त होंगे यदि वे आपके विषय और आपके श्रोतागण दोनों के अनुरूप हैं।