इक्कीसवाँ अध्याय
सच्ची उपासना सारी दुनिया में फैल जाती है
1. यशायाह के 60वें अध्याय में हौसला बढ़ानेवाली कौन-सी बातें दी गयी हैं?
यशायाह के 60 अध्याय में ऐसी कहानी पेश की गयी है जो हमारे अंदर गहरी भावनाएँ जगाती है। पहली कुछ आयतें जिस दृश्य की तरफ हमारा ध्यान खींचती हैं उसे देखकर हम भावुक हो जाते हैं। फिर एक-के-बाद-एक तेज़ी से घटनाएँ घटती हैं और इनका अंत देखकर हमारा दिल मारे खुशी के गदगद हो उठता है। इस अध्याय में बड़े ही सुंदर शब्दों में एक तसवीर पेश की गयी है कि किस तरह प्राचीन यरूशलेम में सच्ची उपासना फिर से कायम होगी और किस तरह आज हमारे ज़माने में सच्ची उपासना सारी दुनिया में फैल जाएगी। इस अध्याय में यह भी बताया गया है कि जो लोग वफादारी से परमेश्वर की उपासना करते हैं उनका भविष्य अनंतकाल की आशीषों से भरा हुआ है। यशायाह की इस हैरतअंगेज़ भविष्यवाणी की पूर्ति में हममें से हरेक हिस्सा ले सकता है। इसलिए आइए बड़े ध्यान से इसकी जाँच करें।
अंधेरे में प्रकाश चमक उठता है
2. अंधकार में पड़ी स्त्री को क्या आज्ञा दी जाती है, और यह ज़रूरी क्यों है कि वह बिना देर किए इस आज्ञा का पालन करे?
2 यशायाह के इस अध्याय के शुरूआती शब्द एक ऐसी स्त्री से कहे गए हैं जो बहुत ही बुरी हालत में है। चारों तरफ अंधकार है और वह ज़मीन पर शायद औंधे मुँह पड़ी है। फिर अचानक, जब यहोवा उसे पुकारता है तो अंधकार को चीरता हुआ प्रकाश चमक उठता है। यशायाह के ज़रिए यहोवा उसे आवाज़ देता: “उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है।” (यशायाह 60:1) जी हाँ, इस ‘स्त्री’ को उठ खड़ा होना है और परमेश्वर का तेज चमकाना है! ऐसा करने की इतनी जल्दी क्या है? भविष्यवाणी इसकी वजह बताती है: “देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा।” (यशायाह 60:2) अपने आसपास के लोगों की खातिर, जो अब भी अंधकार में भटक रहे हैं, इस ‘स्त्री’ को ‘प्रकाशमान होना’ ही होगा। इसका परिणाम क्या होगा? “अन्यजातियां तेरे पास प्रकाश के लिये और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आएंगे।” (यशायाह 60:3) ये पहली आयतें आगे की उन आयतों का सार देती हैं जिनमें ब्यौरेदार तरीके से समझाया गया है कि सच्ची उपासना सारी दुनिया में कैसे फैल जाएगी!
3. (क) यह ‘स्त्री’ कौन है? (ख) ‘स्त्री’ अंधकार में क्यों पड़ी है?
3 हालाँकि यहोवा भविष्य की घटनाओं के बारे में बोल रहा है, लेकिन वह ‘स्त्री’ से कहता है कि उसका प्रकाश “आ गया है।” (यशायाह 60:1) भविष्य की बात को ऐसे कहना जैसे वह हो चुकी, इस बात की गारंटी है कि भविष्यवाणी हर हाल में पूरी होगी। यहाँ जिस ‘स्त्री’ का ज़िक्र किया गया है वह यहूदा देश की राजधानी, सिय्योन या यरूशलेम है। (यशायाह 52:1, 2; 60:14) यह नगरी पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती है। यह स्त्री तब “अंधकार” में पड़ी पायी गयी जब सा.यु.पू. 607 में इसे तबाह किया गया था। यह तभी से वहाँ पड़ी है और इससे भविष्यवाणी की पहली पूर्ति हुई। लेकिन, बंधुआई में पड़े यहूदियों में से वफादार शेष जनों ने सा.यु.पू. 537 में यरूशलेम लौटकर शुद्ध उपासना फिर से शुरू की। आखिरकार, यहोवा ने इस ‘स्त्री’ पर प्रकाश चमकाया और बहाल होनेवाले उसके लोगों ने आध्यात्मिक अंधकार में पड़े आसपास के देशों के बीच प्रकाश फैलाया।
बड़े पैमाने पर पूर्ति
4. आज इस पृथ्वी पर ‘स्त्री’ के प्रतिनिधि कौन हैं, और यह भविष्यवाणी और भी किन लोगों पर लागू होती है?
4 भविष्यवाणी के इन शब्दों पर ध्यान देने से हम जान पाते हैं कि यह न सिर्फ प्राचीन यरूशलेम पर बल्कि बाद में भी पूरे होते हैं। ये शब्द आज यहोवा की स्वर्गीय ‘स्त्री’ पर पूरे होते हैं, जिसका पृथ्वी पर प्रतिनिधि ‘परमेश्वर का इस्राएल’ है। (गलतियों 6:16) यह आत्मिक जाति, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन स्थापित हुई थी और तब से लेकर आज तक इसमें, आत्मा से अभिषिक्त कुल 1,44,000 सदस्य जमा हो चुके हैं। ये “पृथ्वी पर से मोल लिए गए” हैं और इन्हें मसीह के साथ स्वर्ग से राज्य करने की आशा है। (प्रकाशितवाक्य 14:1, 3) यशायाह के 60 अध्याय की पूर्ति खासकर आज 1,44,000 के उन सदस्यों पर हो रही है जो इन “अन्तिम दिनों” के दौरान पृथ्वी पर ज़िंदा हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) यह भविष्यवाणी, इन अभिषिक्त मसीहियों के साथियों यानी ‘अन्य भेड़ों’ (NW) की “बड़ी भीड़” पर भी लागू होती है।—यूहन्ना 10:11, 16; प्रकाशितवाक्य 7:9.
5. पृथ्वी पर परमेश्वर के इस्राएल के बचे हुए सदस्यों ने खुद को अंधकार में कब पाया, और यहोवा का प्रकाश उन पर कब चमका?
5 बीसवीं सदी के शुरूआती सालों के दौरान परमेश्वर के इस्राएल के सदस्य जो पृथ्वी पर बचे हुए थे, उन्होंने खुद को मानो अंधकार और बुरी हालत में पड़ा हुआ पाया। पहले विश्वयुद्ध के खत्म होने पर उनकी हालत वैसी ही हो गयी थी, जैसा प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी में एक दृष्टांत में बताया गया था। उनकी लाशें मानो “बड़े नगर के चौक में पड़ी [थीं], जो आत्मिक रीति से सदोम और मिसर कहलाता है।” (प्रकाशितवाक्य 11:8) मगर सन् 1919 में यहोवा ने उन पर अपना प्रकाश चमकाया। इससे वे उठ खड़े हुए और यहोवा का तेज प्रकट करने और बेखौफ होकर परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का ऐलान करने लगे।—मत्ती 5:14-16; 24:14.
6. यीशु राजा बनकर विराजमान हुआ है, यह खबर सुनकर ज़्यादातर लोगों ने क्या किया, मगर यहोवा के प्रकाश की ओर कौन खिंचे चले आए हैं?
6 “इस संसार के अन्धकार के हाकिमों” के प्रधान, शैतान के साए में रहने की वजह से ज़्यादातर इंसानों ने इस खबर को ठुकरा दिया है कि “जगत की ज्योति” यीशु मसीह एक राजा की हैसियत से राज कर रहा है। (इफिसियों 6:12; यूहन्ना 8:12; 2 कुरिन्थियों 4:3, 4) मगर फिर भी, लाखों लोग यहोवा के प्रकाश की ओर खिंचे चले आए हैं, जिनमें “राजा” (जो स्वर्गीय राज्य के अभिषिक्त वारिस बनते हैं) और “अन्यजातियां” (अन्य भेड़ों की बड़ी भीड़) शामिल हैं।
बढ़ोतरी से सच्ची खुशी मिलती है
7. यह ‘स्त्री’ कैसा दिलकश नज़ारा देखती है?
7 यशायाह 60:3 में बतायी गयी बात को आगे बढ़ाते हुए यहोवा इस ‘स्त्री’ को एक और आज्ञा देता है: “अपनी आंखें चारों ओर उठाकर देख।” जब वह ‘स्त्री’ इस आज्ञा का पालन करती है, तो उसे क्या ही दिलकश नज़ारा दिखायी देता है—उसके बच्चे अपने घर आ रहे हैं! वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं; तेरे पुत्र दूर से आ रहे हैं, और तेरी पुत्रियां हाथों-हाथ पहुंचाई जा रही हैं।” (यशायाह 60:4) सन् 1919 से जब सारी दुनिया में राज्य का ऐलान किया जाने लगा तो और भी अभिषिक्त “पुत्र” और “पुत्रियां” परमेश्वर के इस्राएल में आने लगे। इस तरह यहोवा ने भविष्यवाणी के मुताबिक मसीह के साथ राज्य करनेवाले 1,44,000 लोगों की संख्या को पूरा करने के लिए कदम उठाया।—प्रकाशितवाक्य 5:9, 10.
8. सन् 1919 से परमेश्वर के इस्राएल को खुश होने की क्या वजह मिली है?
8 इस बढ़ोतरी से अपार आनंद मिलता है। “तब तू इसे देखेगी और तेरा मुख चमकेगा, तेरा हृदय थरथराएगा और आनन्द से भर जाएगा; क्योंकि समुद्र का सारा धन और अन्यजातियों की धन-सम्पत्ति तुझ को मिलेगी।” (यशायाह 60:5) जब 1920 और 1930 के दशकों में, अभिषिक्त जनों को इकट्ठा किया गया तब परमेश्वर के इस्राएल को बेहद खुशी हुई। लेकिन उनकी खुशी की एक और वजह भी थी। खासकर 1935 के आस-पास के सालों से, सभी जातियों के ऐसे लोग परमेश्वर के इस्राएल के साथ उपासना करने के लिए इकट्ठा होने लगे, जो एक वक्त “समुद्र” यानी परमेश्वर से दूर जा चुकी मानवजाति का हिस्सा थे। (यशायाह 57:20; हाग्गै 2:7) ये लोग अपने-अपने तरीके से परमेश्वर की सेवा नहीं करते। इसके बजाय, वे परमेश्वर की ‘स्त्री’ के पास आते हैं और एकता में बंधे परमेश्वर के झुंड में शामिल हो जाते हैं। इस तरह परमेश्वर के सभी सेवक सच्ची उपासना को फैलाने में हिस्सा लेते हैं।
जातियाँ यरूशलेम में इकट्ठी होती हैं
9, 10. यरूशलेम की तरफ किसे आते हुए देखा गया, और यहोवा उन्हें कैसे स्वीकार करता है?
9 यह बढ़ोतरी कैसे होगी इसकी तसवीर पेश करने के लिए यहोवा ऐसे दृष्टांत बताता है जिनसे यशायाह के ज़माने के लोग अच्छी तरह परिचित थे। यह ‘स्त्री’ सिय्योन पर्वत की ऊँचाई से सबसे पहले पूर्व दिशा की तरफ नज़र दौड़ाती है। उसे क्या नज़र आता है? “तेरे देश में ऊंटों के झुण्ड और मिद्यान और एपादेशों की साड़नियां इकट्ठी होंगी; शिबा के सब लोग आकर सोना और लोबान भेंट लाएंगे और यहोवा का गुणानुवाद आनन्द से सुनाएंगे।” (यशायाह 60:6) अलग-अलग कबीलों से व्यापारियों के ऊँटों के कारवाँ यरूशलेम की तरफ आ रहे हैं। (उत्पत्ति 37:25, 28; न्यायियों 6:1, 5; 1 राजा 10:1, 2) इतने ऊँट नज़र आ रहे हैं, मानो देश में ऊँटों की बाढ़ आ गयी हो! ये कारवाँ अपने साथ कीमती तोहफे लाए हैं, जिससे पता चलता है कि वे शांति के इरादे से आए हैं। वे यहोवा की उपासना करना चाहते हैं और उसे अपना उत्तम-से-उत्तम अर्पित करना चाहते हैं।
10 लेकिन यरूशलेम की तरफ सिर्फ व्यापारी ही नहीं आते। “केदार की सब भेड़-बकरियां इकट्ठी होकर तेरी हो जाएंगी, नबायोत के मेढ़े तेरी सेवा टहल के काम में आएंगे।” जी हाँ, भेड़-बकरियाँ चरानेवाले कबीले भी यरूशलेम की तरफ चले आ रहे हैं। वे अपनी सबसे कीमती चीज़, यानी भेड़ों के झुंड भेंट के रूप में ला रहे हैं और वे खुद को भी सेवा-टहल करने के लिए सौंप रहे हैं। यहोवा उनके साथ कैसे पेश आएगा? वह कहता है: “मेरी वेदी पर वे ग्रहण किए जाएंगे और मैं अपने शोभायमान भवन को और भी प्रतापी कर दूंगा।” (यशायाह 60:7) यहोवा उनकी ये भेंटें स्वीकार करता है, और ये शुद्ध उपासना में इस्तेमाल होंगी।—यशायाह 56:7; यिर्मयाह 49:28, 29.
11, 12. (क) जब ‘स्त्री’ पश्चिम की ओर देखती है तो उसे क्या नज़ारा दिखायी देता है? (ख) इतने सारे लोगों को यरूशलेम जाने की क्यों जल्दी है?
11 अब यहोवा ‘स्त्री’ को पश्चिम दिशा की ओर देखने का आदेश देता है और उससे पूछता है: “ये कौन हैं जो बादल की नाईं और दर्बाओं की ओर उड़ते हुए कबूतरों की नाईं चले आते हैं?” यहोवा खुद ही इसका जवाब देता है: “निश्चय द्वीप मेरी ही बाट देखेंगे, पहिले तो तर्शीश के जहाज़ आएंगे, कि, तेरे पुत्रों को सोने-चान्दी समेत तेरे परमेश्वर यहोवा अर्थात् इस्राएल के पवित्र के नाम के निमित्त दूर से पहुंचाएं, क्योंकि उस ने तुझे शोभायमान किया है।”—यशायाह 60:8, 9.
12 कल्पना कीजिए कि आप उस ‘स्त्री’ के साथ खड़े हैं और पश्चिम की ओर महासागर (भूमध्य सागर) को देख रहे हैं। आपको क्या नज़र आता है? ऐसा लगता है जैसे दूर पानी की सतह पर छोटे-छोटे सफेद बिंदु तैरते आ रहे हैं। वे पक्षियों की तरह लगते हैं, मगर जब वे पास आते हैं तो आप देखते हैं कि ये तो पाल फहराते हुए जहाज़ हैं। ये बहुत “दूर से” आए हैं।a (यशायाह 49:12) इतने सारे जहाज़ सिय्योन की ओर तेज़ी से चले आ रहे हैं कि लगता है जैसे कबूतरों का झुण्ड-का-झुण्ड अपने दरबे की तरफ उड़ता आ रहा हो। जहाज़ों का यह बेड़ा इतनी जल्दी में क्यों है? क्योंकि यह यहोवा के उन उपासकों को किनारे तक पहुँचाने के लिए बेचैन है जिन्हें वह दूर-दूर के बंदरगाहों से लाया है। जी हाँ, आनेवाले सभी यात्री—चाहे वे पूर्व से आए हों या पश्चिम से, दूर से या पास से, इस्राएली हों या परदेशी—बड़ी तेज़ी से यरूशलेम की तरफ आ रहे हैं, ताकि अपने परमेश्वर यहोवा के नाम के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दें।—यशायाह 55:5.
13. आज के ज़माने में “पुत्र” और “पुत्रियां” कौन हैं, और “अन्यजातियों की धन-सम्पत्ति” कौन हैं?
13 यशायाह 60:4-9 ने उस समय की क्या ही जीती-जागती तसवीर पेश की जब यहोवा की ‘स्त्री’ ने इस संसार के अंधकार के बीच प्रकाश चमकाना शुरू किया जिसकी वजह से शुद्ध उपासना दुनिया भर में दमक उठी! सबसे पहले स्वर्गीय सिय्योन के “पुत्र” और “पुत्रियां” इकट्ठे किए गए जो अभिषिक्त मसीही बने। सन् 1931 में इन्होंने यहोवा के साक्षी नाम से सारी दुनिया के सामने अपनी पहचान करायी। उसके बाद नम्र लोगों का बादल यानी “अन्यजातियों की धन-सम्पत्ति” और “समुद्र का सारा धन” बड़ी तेज़ी से आकर मसीह के भाइयों के शेष जनों के साथ मिल गया।b आज पृथ्वी के चारों कोनों से अलग-अलग जातियों से आए यहोवा के ये सेवक, परमेश्वर के इस्राएल के साथ इस जहान के महाराजाधिराज, प्रभु यहोवा का गुणगान करते हैं और सारे विश्व में उसके सबसे महान नाम की महिमा करते हैं।
14. अन्यजातियों से आनेवाले नए यात्री, परमेश्वर की “वेदी पर” कैसे “ग्रहण किए” जाते हैं?
14 लेकिन, इसका क्या मतलब है कि अन्यजातियों से आनेवाले ये नए यात्री परमेश्वर की “वेदी पर . . . ग्रहण किए जाएंगे”? बलिदान वेदी पर रखे जाते हैं। प्रेरित पौलुस ने यह बात कहने के लिए बलिदान से ही जुड़े शब्द इस्तेमाल किए थे: “हे भाइयो, मैं तुम से . . . बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।” (रोमियों 12:1) सच्चे मसीही, परमेश्वर की सेवा में खुद को खुशी-खुशी निछावर करते हैं। (लूका 9:23, 24) शुद्ध उपासना को बढ़ाने के लिए वे अपना वक्त, ताकत और हुनर लगा देते हैं। (रोमियों 6:13) ऐसा करके, वे परमेश्वर की स्तुति में ऐसे बलिदान चढ़ाते हैं जिनसे वह प्रसन्न होता है। (इब्रानियों 13:15) आज यह देखकर कितना फख्र महसूस होता है कि यहोवा के लाखों उपासकों ने, चाहे वे जवान हों या बुज़ुर्ग, अपनी इच्छाओं को किनारे रखकर परमेश्वर के राज्य के हितों को अपनी ज़िंदगी में पहला स्थान दिया है! उनके अंदर त्याग की सच्ची भावना है।—मत्ती 6:33; 2 कुरिन्थियों 5:15.
अभी-अभी आनेवाले भी बढ़ोतरी में हिस्सा लेते हैं
15. (क) प्राचीनकाल में, यहोवा ने परदेशियों पर कैसे दया की? (ख) आज के ज़माने में, ‘परदेशियों’ ने सच्ची उपासना का निर्माण करने में किस तरह हिस्सा लिया है?
15 अभी-अभी आए यात्री, यहोवा की ‘स्त्री’ के लिए सिर्फ अपनी धन-संपत्ति ही नहीं लाते बल्कि उसकी सेवा में खुद को भी दे देते हैं। “परदेशी लोग तेरी शहरपनाह को उठाएंगे, और उनके राजा तेरी सेवा टहल करेंगे; क्योंकि मैं ने क्रोध में आकर तुझे दु:ख दिया था, परन्तु अब तुझ से प्रसन्न होकर तुझ पर दया की है।” (यशायाह 60:10) यहोवा ने सा.यु.पू. छठी सदी में परदेशियों पर दया की क्योंकि उस वक्त उसने यरूशलेम का दोबारा निर्माण करने के काम में मदद करने का उन्हें भी मौका दिया। (एज्रा 3:7; नहेमायाह 3:26) इसकी बड़ी पूर्ति में आज “परदेशी” यानी बड़ी भीड़ के लोग, अभिषिक्त शेष जनों के साथ शुद्ध उपासना को बढ़ाने में हाथ बँटा रहे हैं। वे मसीही गुण पैदा करने में बाइबल विद्यार्थियों की मदद करते हैं। इस तरह वे मसीही कलीसियाओं के निर्माण में हाथ बँटाते हैं और यहोवा के संगठन की शहरपनाह को मज़बूत करते हैं। (1 कुरिन्थियों 3:10-15) वे सचमुच का निर्माण काम भी करते हैं, जैसे किंगडम हॉल, असेम्बली हॉल और बेथेल घरों की इमारतें बनाने में कड़ी मेहनत करना। इस तरह वे अपने अभिषिक्त भाइयों के साथ मिलकर यहोवा के बढ़ते संगठन की ज़रूरतों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी उठा रहे हैं।—यशायाह 61:5.
16, 17. (क) परमेश्वर के संगठन के “फाटक” कैसे खुले रखे गए हैं? (ख) ‘राजाओं’ ने कैसे सिय्योन की सेवा-टहल की है? (ग) यहोवा जिन ‘फाटकों’ को खुला रखना चाहता है, उन्हें अगर कोई बंद करने की कोशिश करेगा तो उसका अंजाम क्या होगा?
16 इस आध्यात्मिक निर्माण काम की वजह से हर साल, हज़ारों “परदेशी” यहोवा के संगठन में आ रहे हैं और अभी-भी बहुतों के लिए यह रास्ता खुला है। यहोवा कहता है: “तेरे फाटक सदैव खुले रहेंगे; दिन और रात वे बन्द न किए जाएंगे जिस से अन्यजातियों की धन-सम्पत्ति और उनके राजा बंधुए होकर तेरे पास पहुंचाए जाएं।” (यशायाह 60:11) लेकिन ये “राजा” कौन हैं जो अन्यजातियों की धन-संपत्ति सिय्योन तक पहुँचाने में अगुवाई कर रहे हैं? प्राचीनकाल में यहोवा ने कुछ राजाओं को सिय्योन की “सेवा टहल” करने के लिए उभारा था। मिसाल के तौर पर, कुस्रू ने यहूदियों को वापस यरूशलेम भेजकर मंदिर को फिर से बनवाने का कदम उठाया। बाद में, अर्तक्षत्र ने नहेमायाह को बहुत-सी सामग्री और साधन देकर यरूशलेम की दीवारें खड़ी करने के लिए भेजा। (एज्रा 1:2, 3; नहेमायाह 2:1-8) वाकई, “राजा का मन नालियों के जल की नाईं यहोवा के हाथ में रहता है।” (नीतिवचन 21:1) हमारा परमेश्वर, बड़े-बड़े ताकतवर राजाओं को भी उसकी इच्छा पूरी करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
17 आज के ज़माने में, बहुत-से ‘राजाओं’ या सरकारी अधिकारियों ने, यहोवा के संगठन के “फाटक” बंद करने की कोशिश की है। लेकिन, दूसरे अधिकारियों ने ऐसे फैसले सुनाकर सिय्योन की सेवा-टहल की है, जिससे उसके “फाटक” खुले रखने में मदद मिली। (रोमियों 13:4) सन् 1919 में, सरकारी अधिकारियों ने जोसेफ एफ. रदरफर्ड और उनके साथियों को जेल से रिहा किया, जिन्हें झूठे इलज़ाम लगाकर कैद किया गया था। (प्रकाशितवाक्य 11:13) इंसानी सरकारों ने शैतान के ज़ुल्मों की उस बाढ़ को “पी लिया” जिसे शैतान ने धरती पर गिराए जाने के बाद परमेश्वर के सेवकों पर छोड़ा था। (प्रकाशितवाक्य 12:16) कुछ सरकारों ने अपने देश में धर्म के लिए सहनशीलता को बढ़ावा दिया है और कुछ मामलों में तो खास तौर पर यहोवा के साक्षियों की खातिर ऐसा किया गया है। ऐसी सेवा-टहल की वजह से नम्र लोगों की भीड़ के लिए यहोवा के संगठन के खुले “फाटक” से प्रवेश करना आसान हो गया है। और उन विरोधियों का क्या जो इस “फाटक” को बंद करने की कोशिश करते हैं? वे चाहे कितने भी मंसूबे बना ले, वे हरगिज़ कामयाब नहीं होनेवाले। उनके बारे में यहोवा कहता है: “जो जाति और राज्य के लोग तेरी सेवा न करें वे नष्ट हो जाएंगे; हां ऐसी जातियां पूरी रीति से सत्यानाश हो जाएंगी।” (यशायाह 60:12) ऐसे सभी जो परमेश्वर की ‘स्त्री’ के खिलाफ लड़ते हैं—चाहे लोग हों या संगठन—वे अगर कुछ दिनों तक किसी तरह बचे भी रहे तो आनेवाले हरमगिदोन के युद्ध में उनको नाश होने से कोई बचा नहीं पाएगा।—प्रकाशितवाक्य 16:14, 16.
18. (क) इस वादे का क्या मतलब है कि इस्राएल में पेड़ फलेंगे-फूलेंगे? (ख) आज ‘यहोवा के चरणों का स्थान’ क्या है?
18 दंड की इस चेतावनी के बाद, यह भविष्यवाणी अब फिर से महिमा और खुशहाली के वादों के बारे में बताती है। अपनी ‘स्त्री’ से यहोवा कहता है: “लबानोन का विभव अर्थात् सनौबर और देवदार और सीधे सनौबर के पेड़ एक साथ तेरे पास आएंगे कि मेरे पवित्रस्थान को सुशोभित करें; और मैं अपने चरणों के स्थान को महिमा दूंगा।” (यशायाह 60:13) हरे-भरे पेड़, सुंदरता और फलदायी होने की पहचान होते हैं। (यशायाह 41:19; 55:13) इस आयत में शब्द “पवित्रस्थान” और “चरणों के स्थान” का मतलब यरूशलेम का मंदिर है। (1 इतिहास 28:2; भजन 99:5) लेकिन, प्रेरित पौलुस ने समझाया था कि यरूशलेम का मंदिर, उससे भी बड़े आत्मिक मंदिर का एक नमूना था। यह आत्मिक मंदिर, मसीह के बलिदान के आधार पर यहोवा की उपासना का इंतज़ाम है। (इब्रानियों 8:1-5; 9:2-10, 23) आज यहोवा ने अपने “चरणों के स्थान” यानी इस महान आत्मिक मंदिर के आँगन यानी पृथ्वी को महिमा से भर दिया है। यह आँगन देखने में इतना मनोहर है कि इसमें सच्ची उपासना करने के लिए देश-देश से लोग खिंचे चले आते हैं।—यशायाह 2:1-4; हाग्गै 2:7.
19. विरोधियों को मजबूरन क्या मानना होगा, और अगर अब नहीं तो वे कब ऐसा करेंगे?
19 अब, दोबारा अपने विरोधियों के बारे में, यहोवा कहता है: “तेरे दु:ख देनेवालों की सन्तान तेरे पास सिर झुकाए हुए आएंगे; और जिन्हों ने तेरा तिरस्कार किया सब तेरे पांवों पर गिरकर दण्डवत् करेंगे; वे तेरा नाम यहोवा का नगर, इस्राएल के पवित्र का सिय्योन रखेंगे।” (यशायाह 60:14) जी हाँ, जब विरोधी देखेंगे कि परमेश्वर की आशीष की वजह से उसके लोग बढ़ते ही जा रहे हैं और उनके जीने का तरीका सबसे बेहतरीन है तो उनमें से कुछ परमेश्वर की ‘स्त्री’ के सामने आकर दंडवत् करेंगे और पुकार उठेंगे। जी हाँ, उन्हें यह मानने के लिए मजबूर किया जाएगा चाहे अब नहीं तो हरमगिदोन में ही सही कि अभिषिक्त शेष जन और उनके साथी सचमुच यहोवा के स्वर्गीय संगठन, ‘यहोवा के नगर, इस्राएल के पवित्र के सिय्योन’ की तरफ से काम कर रहे हैं।
मौजूदा साधनों को इस्तेमाल करना
20. यहोवा की ‘स्त्री’ के हालात में कैसा बड़ा बदलाव होता है?
20 यहोवा की ‘स्त्री’ के हालात में कितना बड़ा, अद्भुत बदलाव होता है! यहोवा कहता है: “तू जो त्यागी गई और घृणित ठहरी, यहां तक कि कोई तुझ में से होकर नहीं जाता था, इसकी सन्ती मैं तुझे सदा के घमण्ड का और पीढ़ी पीढ़ी के हर्ष का कारण ठहराऊंगा। तू अन्यजातियों का दूध पी लेगी, तू राजाओं की छातियां चूसेगी; और तू जान लेगी कि मैं यहोवा तेरा उद्धारकर्त्ता और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का सर्वशक्तिमान हूं।”—यशायाह 60:15, 16.
21. (क) प्राचीन यरूशलेम कैसे ‘घमण्ड का कारण’ ठहरा? (ख) सन् 1919 से यहोवा के अभिषिक्त सेवकों ने किन आशीषों का आनंद उठाया है, और उन्होंने “अन्यजातियों का दूध” कैसे पीया है?
21 सत्तर साल तक प्राचीन यरूशलेम मानो नक्शे पर से ही गायब हो गया था, क्योंकि “कोई [उस] में से होकर नहीं जाता था।” मगर सा.यु.पू. 537 से, यहोवा ने इस नगर को फिर से आबाद किया और इसे ‘घमण्ड का कारण’ ठहराया। उसी तरह, पहले विश्वयुद्ध के खत्म होते-होते, परमेश्वर का इस्राएल उजाड़ हो गया, और उसने ‘त्यागा’ हुआ महसूस किया। मगर 1919 में, यहोवा ने अपने अभिषिक्त सेवकों को बंधुआई से मोल ले लिया और तब से वह उन्हें ऐसी बढ़ोतरी और आध्यात्मिक खुशहाली की आशीष दे रहा है जो उन्होंने पहले कभी महसूस न की थी। उसके लोगों ने ‘अन्यजातियों का दूध पीया’ है यानी सच्ची उपासना को बढ़ाने के लिए इन देशों में मौजूद हर साधन का इस्तेमाल किया है। मिसाल के लिए, आधुनिक टेक्नॉलजी का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करने से सैकड़ों भाषाओं में बाइबलें और बाइबल साहित्यों का अनुवाद करना और इन्हें प्रकाशित करना मुमकिन हो सका है। इनकी वजह से हर साल लाखों लोग यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन कर रहे हैं और यह जान रहे हैं कि मसीह के ज़रिए, यहोवा ही उनका उद्धारकर्त्ता और छुड़ानेवाला है।—प्रेरितों 5:31; 1 यूहन्ना 4:14.
संगठन में उन्नति
22. यहोवा किस खास किस्म की उन्नति का वादा करता है?
22 यहोवा के लोगों की गिनती में बढ़ोतरी के साथ-साथ संगठन के काम करने के तरीके में भी उन्नति हुई है। यहोवा वादा करता है: “मैं पीतल की सन्ती सोना, लोहे की सन्ती चान्दी, लकड़ी की सन्ती पीतल और पत्थर की सन्ती लोहा लाऊंगा। मैं तेरे हाकिमों को मेल-मिलाप और तेरे चौधरियों को धार्मिकता ठहराऊंगा।” (यशायाह 60:17) पीतल की जगह सोना लाना, उन्नति की निशानी है और यही बात यहाँ बताए गए बाकी धातुओं के बारे में भी सच है। इसके मुताबिक, यहोवा के लोगों ने अंतिम दिनों के दौरान संगठन में देख-रेख के इंतज़ामों में लगातार उन्नति होते देखी है।
23, 24. सन् 1919 से यहोवा के लोगों ने संगठन में देख-रेख के इंतज़ामों में क्या-क्या उन्नति देखी है?
23 सन् 1919 तक, कलीसिया के सदस्य अपनी मरज़ी से खुद अपने लिए प्राचीनों और डीकनों का चुनाव करते थे। उस साल से, कलीसिया में प्रचार काम की निगरानी के लिए, परमेश्वर की मरज़ी से यानी उसके ठहराए इंतज़ाम के मुताबिक एक सर्विस डाइरेक्टर को नियुक्त किया गया। लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि चुनावों से नियुक्त किए गए कुछ प्राचीनों ने सर्विस डाइरेक्टर का विरोध किया। लेकिन 1932 में बदलाव आया। वॉचटावर पत्रिका के ज़रिए, कलीसियाओं को हिदायत दी गयी कि वे प्राचीनों और डीकनों का खुद चुनाव करना बंद करें। इसके बजाय, उन्हें एक सर्विस कमिटी का चुनाव करने की हिदायत दी गयी जो सर्विस डाइरेक्टर के साथ मिलकर काम करती। यह उन्नति का बहुत बड़ा कदम था।
24 सन् 1938 में, और भी “सोना” लाया गया जब यह फैसला किया गया कि कलीसिया की ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले सभी भाइयों को परमेश्वर के ठहराए हुए इंतज़ाम के मुताबिक यानी ईशतंत्र के ज़रिए नियुक्त किया जाना है। कलीसिया की देख-रेख अब एक कंपनी सर्वेन्ट (जो बाद में, कॉन्ग्रिगेशन सर्वेन्ट कहलाया) और उसकी सहायता करनेवाले बाकी भाई करने लगे।c इन सभी भाइयों को “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के मार्गदर्शन में नियुक्त किया जाता था। (मत्ती 24:45-47) लेकिन, 1972 में यह समझा गया कि बाइबल के मुताबिक कलीसिया की निगरानी करने के लिए प्राचीनों का एक दल होना चाहिए, न कि सिर्फ एक प्राचीन। (फिलिप्पियों 1:1) इसके अलावा कलीसियाओं में और शासी निकाय में भी दूसरे कई बदलाव किए गए। शासी निकाय में एक बदलाव अक्टूबर 7, 2000 को हुआ जब यह घोषणा की गयी कि शासी निकाय के सदस्य, जो वॉच टावर सोसाइटी ऑफ पॆन्सिलवेनिया और उससे जुड़े निगमों के डाइरेक्टर थे, उन्होंने अपनी मरज़ी से इन पदों को त्याग दिया है। ऐसा करने से, शासी निकाय जो विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास का प्रतिनिधि है, अब “परमेश्वर की कलीसिया” और उसके साथियों यानी अन्य भेड़ों की आध्यात्मिक देखभाल करने पर ज़्यादा ध्यान दे सकता है। (प्रेरितों 20:28) ये सारे इंतज़ाम दिखाते हैं कि संगठन उन्नति के रास्ते में आगे बढ़ रहा है। इनसे यहोवा का संगठन मज़बूत हुआ है और उसके उपासकों को आशीष मिली है।
25. यहोवा के संगठन में हुई उन्नति के पीछे किसका हाथ है, और इससे क्या लाभ हुए हैं?
25 इस उन्नति के पीछे किसका हाथ है? क्या यह उन्नति किसी इंसान की काबिलीयत या सूझ-बूझ की बदौलत हुई है? बिलकुल नहीं, क्योंकि यहोवा ने कहा था: ‘मैं सोना लाऊंगा।’ यह सारी प्रगति परमेश्वर से मिले मार्गदर्शन का नतीजा है। जैसे-जैसे यहोवा के लोग उसके मार्गदर्शन पर चलते और उसके मुताबिक बदलाव करते हैं, वैसे-वैसे उन्हें इसका फल मिलता है। उनके बीच शांति कायम रहती है और धार्मिकता के लिए प्रेम उन्हें यहोवा की सेवा करने के लिए उकसाता है।
26. विरोधी भी सच्चे मसीहियों की किस खास पहचान पर ध्यान देते हैं?
26 परमेश्वर से मिलनेवाली शांति इंसान की ज़िंदगी बदल देती है। यहोवा वादा करता है: “तेरे देश में फिर कभी उपद्रव और तेरे सिवानों के भीतर उत्पात वा अन्धेर की चर्चा न सुनाई पड़ेगी; परन्तु तू अपनी शहरपनाह का नाम उद्धार और अपने फाटकों का नाम यश रखेगी।” (यशायाह 60:18) यह बात कितनी सच है! हमारे विरोधी भी यह मानते हैं कि सच्चे मसीहियों के बीच पायी जानेवाली शांति उनकी एक खास पहचान है। (मीका 4:3) परमेश्वर के साथ और साक्षियों के बीच शांति होने की वजह से ही आज के इस हिंसा से भरे संसार में, मसीहियों के इकट्ठा होने की हर जगह ऐसी है जैसे धूप से जलते रेगिस्तान में हरा-भरा ताज़गी देनेवाला कोई बगीचा हो। (1 पतरस 2:17) यह पृथ्वी पर उस वक्त मिलनेवाली अपार शांति का पहला स्वाद है जब दुनिया के सभी लोग “यहोवा के सिखलाए हुए होंगे।”—यशायाह 11:9; 54:13.
परमेश्वर के अनुग्रह का तेज
27. यहोवा की ‘स्त्री’ पर लगातार कैसा प्रकाश चमक रहा है?
27 यरूशलेम पर प्रकाश कितनी तेज़ी से चमक रहा है, इसका वर्णन करते हुए यहोवा कहता है: “फिर दिन को सूर्य तेरा उजियाला न होगा, न चान्दनी के लिये चन्द्रमा परन्तु यहोवा तेरे लिये सदा का उजियाला और तेरा परमेश्वर तेरी शोभा ठहरेगा। तेरा सूर्य फिर कभी अस्त न होगा और न तेरे चन्द्रमा की ज्योति मलिन होगी; क्योंकि यहोवा तेरी सदैव की ज्योति होगा और तेरे विलाप के दिन समाप्त हो जाएंगे।” (यशायाह 60:19, 20) यहोवा अपनी ‘स्त्री’ के लिए “सदैव की ज्योति” होगा। वह कभी-भी सूर्य की तरह “अस्त” न होगा, न ही चन्द्रमा की तरह “मलिन” होगा या घटेगा।d इस पृथ्वी पर ‘स्त्री’ के प्रतिनिधियों यानी अभिषिक्त मसीहियों पर उसके अनुग्रह का प्रकाश लगातार चमकता रहता है। उन पर और बड़ी भीड़ पर आध्यात्मिक प्रकाश इतनी तेज़ी से चमक रहा है कि इस संसार की किसी भी राजनीतिक या आर्थिक हालत का घनघोर अंधियारा उस प्रकाश को रत्ती भर भी कम नहीं कर सकता। और उन्हें यकीन है कि यहोवा ने उन्हें जो उज्ज्वल भविष्य देने का वादा किया है, वह उन्हें ज़रूर मिलेगा।—रोमियों 2:7; प्रकाशितवाक्य 21:3-5.
28. (क) यरूशलेम लौटनेवालों के बारे में क्या वादा किया गया है? (ख) सन् 1919 में अभिषिक्त मसीही किसके अधिकारी हुए? (ग) धर्मी कब तक देश के अधिकारी रहेंगे?
28 यरूशलेम के निवासियों के बारे में यहोवा आगे कहता है: “और तेरे लोग सब के सब धर्मी होंगे; वे सर्वदा [“अनिश्चित काल तक,” NW] देश के अधिकारी रहेंगे, वे मेरे लगाए हुए पौधे और मेरे हाथों का काम ठहरेंगे, जिस से मेरी महिमा प्रगट हो।” (यशायाह 60:21) जब इस्राएली, बाबुल से लौटे तो वे “देश के अधिकारी” हुए। मगर उनके मामले में “अनिश्चित काल” सा.यु. पहली सदी में उस समय तक रहा, जब रोम की सेना ने यरूशलेम और यहूदी राज्य को नाश कर दिया। सन् 1919 में अभिषिक्त मसीहियों के शेष जन आध्यात्मिक बंधुआई से आज़ाद हुए और वे एक आध्यात्मिक देश के अधिकारी हुए। (यशायाह 66:8) यह देश उनका कार्यक्षेत्र है, जिसमें फिरदौस की सी आध्यात्मिक खुशहाली है और जो कभी नहीं मिटेगी। जैसे प्राचीन इस्राएल ने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया था, एक समूह के तौर पर आत्मिक इस्राएल परमेश्वर के साथ कभी-भी विश्वासघात नहीं करेगा। इसके अलावा, यशायाह की भविष्यवाणी इस ज़मीन के मामले में सचमुच में भी पूरी होगी जब यह एक फिरदौस बनेगी और इसमें “बड़ी शान्ति” होगी। तब इस धरती पर रहने की आशा रखनेवाले धर्मी लोग हमेशा के लिए इसके अधिकारी होंगे।—भजन 37:11, 29.
29, 30. किस तरह “छोटे से छोटा एक हजार” हो गया है?
29 यशायाह के 60 अध्याय के आखिर में एक बहुत ही ज़बरदस्त और अहम वादा किया गया है, जिसके पूरा होने की गारंटी खुद यहोवा अपने नाम से देता है। वह कहता है: “छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।” (यशायाह 60:22) जब यहाँ-वहाँ बिखरे अभिषिक्त जनों को सन् 1919 में फिर से उनके काम पर बहाल किया गया था तब वे ‘छोटे से छोटे’ थे।e मगर जब बचे हुए आत्मिक इस्राएलियों को भी इकट्ठा किया जाने लगा तो उनकी गिनती दिनों-दिन बढ़ती चली गयी। और जब बड़ी भीड़ को इकट्ठा करना शुरू हुआ तो उनकी गिनती में दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ोतरी होने लगी।
30 कुछ ही समय के अंदर, परमेश्वर के लोगों के बीच की शांति और धार्मिकता ने इतने नेकदिल लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया है कि सचमुच “छोटे से छोटा . . . एक सामर्थी जाति” बन गया है। फिलहाल इस जाति के लोगों की संख्या कई मुल्कों की जनसंख्या से कहीं ज़्यादा है। इससे साफ दिखायी देता है कि यहोवा ने यीशु मसीह के ज़रिए राज्य के काम का निर्देशन किया है और वह उसमें तेज़ी लाया है। सच्ची उपासना को सारी दुनिया में फैलते देखना और उसमें हिस्सा लेना अनोखा अनुभव है! जी हाँ, यह जानकर बड़ी खुशी होती है कि इस बढ़ोतरी से यहोवा को महिमा मिलती है जिसने बहुत पहले ही इन बातों की भविष्यवाणी की थी।
[फुटनोट]
a तर्शीश शायद वहीं था जहाँ आज स्पेन देश है। लेकिन, कुछ किताबों के मुताबिक शब्द “तर्शीश के जहाज़” का मतलब है, ऐसे किस्म के “ऊँचे पालवाले समुद्री जहाज़” जो “तर्शीश तक यात्रा करने के लायक” थे। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे जहाज़ जिन्हें दूर-दूर तक यात्रा करने के काबिल समझा जाता था।—1 राजा 22:48.
b हालाँकि 1930 से पहले भी, परमेश्वर के इस्राएल के साथ ऐसे मसीही पूरे जोश से परमेश्वर की सेवा कर रहे थे जिनकी आशा इस पृथ्वी पर जीने की थी, लेकिन खासकर 1930 के दशक से उनकी संख्या तेज़ी से बढ़ने लगी।
c उन दिनों, हर कलीसिया को एक कंपनी कहा जाता था।
d प्रेरित यूहन्ना ने “नये यरूशलेम,” यानी स्वर्गीय महिमा पाए हुए 1,44,000 का वर्णन करने के लिए भी ऐसी ही भाषा इस्तेमाल की। (प्रकाशितवाक्य 3:12; 21:10, 22-26) और यह सही भी है, क्योंकि ‘नया यरूशलेम’ परमेश्वर के इस्राएल के उन सभी सदस्यों को दर्शाता है जो स्वर्ग में अपना इनाम पा चुके हैं और यीशु मसीह के साथ परमेश्वर की ‘स्त्री’ यानी “ऊपर की यरूशलेम” का एक खास हिस्सा बन गए हैं।—गलतियों 4:26.
e सन् 1918 में हर महीने प्रचार में हिस्सा लेनेवालों की औसत गिनती 4,000 से भी कम थी।
[पेज 305 पर तसवीर]
यहोवा की ‘स्त्री’ को ‘उठने’ का आदेश दिया जाता है
[पेज 312, 313 पर तसवीर]
“तर्शीश के जहाज़” यहोवा के उपासकों को ला रहे हैं