अध्याय छः
मरे हुए कहाँ हैं?
मरने पर हमारा क्या होता है?
हम क्यों मरते हैं?
मौत के बारे में हकीकत जानने से क्या हमें कोई राहत और चैन मिलेगा?
1-3. मौत के बारे में अकसर क्या सवाल पूछे जाते हैं, और अलग-अलग धर्म इन सवालों के क्या जवाब देते हैं?
ये सवाल हज़ारों सालों से इंसान को परेशान करते आए हैं। ये इतने अहम हैं कि इनके जवाब मालूम करना हम सबके लिए बेहद ज़रूरी है। हम चाहे जो भी हों, और दुनिया के किसी भी देश में क्यों न रहते हों, इन सवालों का हम सबके साथ गहरा ताल्लुक है।
2 पिछले अध्याय में हमने सीखा था कि यीशु के छुड़ौती बलिदान ने कैसे हमारे लिए हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खोल दिया है। हमने यह भी सीखा था कि एक ऐसा वक्त आएगा जब “मृत्यु न रहेगी।” (प्रकाशितवाक्य 21:4) लेकिन उस वक्त के आने तक हममें से कोई भी मौत से बच नहीं सकता। सुलैमान जैसे बुद्धिमान राजा ने ठीक कहा था: “जो जीवित हैं, वे जानते हैं कि उन्हें एक दिन मरना ही होगा।” (सभोपदेशक 9:5, नयी हिन्दी बाइबिल) इस हकीकत के बावजूद हम सब ज़्यादा-से-ज़्यादा साल जीने की कोशिश करते हैं। मगर कभी-न-कभी हम सबके मन में यह सवाल ज़रूर उठता है कि मरने पर हमारा क्या होगा।
3 जब हमारे अज़ीज़ों की मौत हो जाती है, तो हमें गहरा सदमा पहुँचता है। हमारे मन में ऐसे कई सवाल उठते हैं, जैसे: ‘उनका क्या हुआ होगा? क्या वे कहीं तड़प रहे हैं? क्या वे कहीं से हमें देख रहे हैं? क्या हम उनकी मदद कर सकते हैं? क्या हम उन्हें फिर कभी देख पाएँगे?’ हर धर्म इन सवालों के अलग-अलग जवाब देता है। कुछ धर्म सिखाते हैं कि अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं और बुरे नरक में। दूसरे सिखाते हैं कि मरने के बाद इंसान आत्मिक लोक में अपने पूर्वजों में जा मिलता है। कुछ और धर्म सिखाते हैं कि मरने के बाद लोग पाताल लोक में जाते हैं, जहाँ पहले उनके कर्मों का लेखा लिया जाता है और फिर यह तय किया जाता है कि उनका किस रूप में पुनर्जन्म होना चाहिए।
4. मौत के बारे में सभी धर्मों की आम शिक्षा क्या है?
4 इन सारी शिक्षाओं में एक बात आम है। वह यह कि इंसान के शरीर में एक ऐसा अंश होता है जो उसके मरने पर शरीर से निकल जाता है। वे यह भी सिखाते हैं कि साए जैसा यह अंश अमर होता है। तो चाहे प्राचीन काल के धर्म हों या आज के, सब यही सिखाते हैं कि मरने के बाद भी इंसान किसी-न-किसी रूप में जीवित रहता है। वह सबकुछ देख सकता है, सुन सकता है और महसूस कर सकता है। मगर यह कैसे मुमकिन है? क्योंकि ये सारे काम करने के लिए हमारे दिमाग का ज़िंदा रहना ज़रूरी है। लेकिन मरने पर तो हमारा शरीर पूरी तरह नष्ट हो जाता है। हमारी यादें, भावनाएँ और चेतना, सबकुछ उसी के साथ मिट जाती हैं। वे किसी चमत्कारी तरीके से खुद-ब-खुद जारी नहीं रहतीं।
मरने पर असल में क्या होता है?
5, 6. बाइबल मरे हुओं के बारे में क्या सिखाती है?
5 यहोवा हमारे शरीर और दिमाग दोनों का बनानेवाला है और वही यह सच्चाई जानता है कि मरने पर असल में क्या होता है। उसके लिए यह बात कोई राज़ नहीं है। और उसने यह सच्चाई अपने वचन बाइबल में साफ-साफ बतायी है। बाइबल सिखाती है कि जब एक इंसान मर जाता है तो उसका वजूद पूरी तरह मिट जाता है। मौत, ज़िंदगी के बिलकुल उलट है। मरे हुए न कुछ देख सकते हैं, न सुन सकते, ना ही सोच सकते हैं, क्योंकि उनकी चेतना नष्ट हो चुकी है। हमारे अंदर साए जैसी कोई चीज़ नहीं होती जो हमारी मौत के बाद भी ज़िंदा रहती हो। जी हाँ, हमारे अंदर कोई अमर आत्मा नहीं होती।a
6 जो जीवित हैं, वे जानते हैं कि उन्हें एक दिन मरना ही होगा, यह बताने के बाद सुलैमान ने कहा: “परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” आगे की आयतों में उसने इस बुनियादी सच्चाई को और अच्छी तरह समझाया है कि मरे हुए न किसी से प्रेम कर सकते हैं, न बैर। और “[कब्र में] न कोई क्रियाकलाप है, न युक्ति, न बुद्धिमानी।” (NHT) (सभोपदेशक 9:5, 6, 10) भजन 146:4 भी यही कहता है कि एक इंसान की मौत के साथ ‘उसकी सारी कल्पनाएं नाश हो जाती हैं।’ जब हम मर जाते हैं तो हमारा अस्तित्त्व मिट जाता है। ऐसा नहीं कि सिर्फ शरीर मरता है और आत्मा ज़िंदा रहती है। जीवन एक जलती लौ की तरह है। जब लौ बुझ जाती है, तो वह कहीं जाती नहीं, बस खत्म हो जाती है। उसी तरह मरने के बाद हम पूरी तरह खत्म हो जाते हैं।
मौत के बारे में यीशु ने क्या बताया
7. यीशु ने मौत की तुलना किससे की?
7 यीशु मसीह ने भी बताया था कि मरे हुए किस दशा में हैं। यह उस घटना से पता चलता है जब उसका दोस्त लाजर मर गया था। उसने अपने चेलों से कहा: “हमारा मित्र लाजर सो गया है।” चेलों ने समझा कि लाजर बीमार होने की वजह से आराम कर रहा है। मगर यीशु के कहने का यह मतलब नहीं था। इसलिए उसने चेलों को साफ-साफ बताया: “लाजर मर गया है।” (यूहन्ना 11:11-14) गौर कीजिए, यीशु ने मरे हुए लाजर की दशा की तुलना एक सोए हुए इंसान से की। लाजर मरने के बाद न स्वर्ग में था, न नरक में। ना ही वह फरिश्तों या अपने पूर्वजों से मिलने गया था, और ना ही उसने कहीं दोबारा जन्म लिया था। दरअसल वह मौत की आगोश में सो रहा था, मानो ऐसी गहरी नींद में जब इंसान दुनिया से बेखबर होता है। बाइबल की दूसरी कुछ आयतें भी मौत की तुलना नींद से करती हैं। मिसाल के लिए, बाइबल कहती है कि जब स्तिफनुस को पत्थरवाह करके मार डाला गया, तो वह मौत की नींद “सो गया।” (प्रेरितों 7:60) उसी तरह, प्रेरित पौलुस के दिनों में जो चेले मर गए थे, उनके बारे में उसने लिखा कि वे “सो गए” हैं।—1 कुरिन्थियों 15:6.
8. हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर ने इंसान को चंद रोज़ जीकर मरने के लिए नहीं बनाया था?
8 क्या परमेश्वर ने इंसान को इसलिए बनाया था कि वह चंद रोज़ जीए और फिर मर जाए? बिलकुल नहीं! यहोवा ने इंसान को धरती पर हमेशा-हमेशा तक जीने के लिए रचा था। जैसे हमने इस किताब में पहले सीखा, परमेश्वर ने पहले जोड़े को फिरदौस में खुशियों-भरी ज़िंदगी दी थी। वे पूरी तरह तंदुरुस्त थे। यहोवा उन्हें हमेशा सुखी देखना चाहता था। ज़रा सोचिए, क्या कोई भी माँ-बाप कभी चाहेगा कि उसके बच्चे बीमार हों और मर जाएँ? कभी नहीं। माँ-बाप तो यही चाहेंगे कि उनके बच्चे सदा सुखी और सेहतमंद रहें और लंबी उम्र पाएँ। उसी तरह, यहोवा चाहता था कि इंसान सदा जीए और सुखी रहे। यही नहीं, बाइबल कहती है: “[यहोवा] ने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है।” (सभोपदेशक 3:11) यहोवा ने हमें सदा तक जीने की ख्वाहिश देकर बनाया है, और ऐसा इंतज़ाम भी किया है कि हम सदा तक जी सकें।
इंसान मरता क्यों है
9. यहोवा ने आदम पर क्या पाबंदी लगायी थी, और इसे मानना क्यों एक मुश्किल काम नहीं था?
9 तो फिर इंसान मरता क्यों है? इसका जवाब जानने के लिए आइए हम उस वक्त में जाएँ जब धरती पर पहला जोड़ा रहता था। बाइबल बताती है: “यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए” थे। इन सारे पेड़ों के फल आदम और हव्वा को उनके खाने के लिए दिए गए थे। (उत्पत्ति 2:9) लेकिन एक पाबंदी थी, जिसे उन्हें सख्ती से मानना था। यहोवा ने आदम को साफ-साफ बताया कि उस पर क्या पाबंदी है: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:16, 17) इस पाबंदी को मानना आदम और हव्वा के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था, क्योंकि उन्हें एक पेड़ को छोड़ बाकी सभी पेड़ों के फल खाने की छूट थी। दरअसल इस पाबंदी से उन्हें यह दिखाने का शानदार मौका मिला था कि वे दिल से यहोवा के एहसानमंद हैं, जिसने उन्हें सबकुछ दिया था, यहाँ तक कि सिद्ध जीवन भी। यह हुक्म मानकर वे यह भी दिखा सकते थे कि वे अपने स्वर्गीय पिता के अधिकार का गहरा आदर करते हैं और चाहते हैं कि वह उन्हें हिदायतें दे और तय करे कि उनके लिए सही क्या है और गलत क्या।
10, 11. (क) पहले स्त्री-पुरुष ने परमेश्वर का हुक्म कैसे तोड़ा? (ख) आदम और हव्वा ने जो किया, वह क्यों एक महापाप था?
10 मगर अफसोस कि उस पहले जोड़े ने यहोवा के इस हुक्म को तोड़ने का फैसला किया। यह सब कैसे हुआ? अदन के उस बाग में शैतान ने एक साँप के ज़रिए हव्वा से पूछा: “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” हव्वा ने जवाब दिया: “इस बाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं। पर जो वृक्ष बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।”—उत्पत्ति 3:1-3.
11 मगर शैतान ने कहा: “तुम निश्चय न मरोगे, वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” (उत्पत्ति 3:4, 5) शैतान, हव्वा को यकीन दिला रहा था कि वह फल खाने से उसी को फायदा होगा। दरअसल उसका दावा था कि खुद हव्वा को अपने अच्छे-बुरे का फैसला करने का हक है, न कि यहोवा को। और उसे यह भी हक है कि उसका मन जो चाहे वह करे। इतना ही नहीं, शैतान, यहोवा पर इलज़ाम लगा रहा था कि उसने झूठ बोला है, हव्वा फल खाने से नहीं मरेगी। हव्वा ने शैतान की बात का यकीन किया और फल तोड़कर खाया। उसने अपने पति को भी वह फल दिया और उसने भी खाया। आदम और हव्वा ने जो किया वह एक महापाप था, क्योंकि उन दोनों ने यह काम अनजाने में नहीं बल्कि सबकुछ जानते हुए किया था। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि वे वही कर रहे हैं, जिसे करने से परमेश्वर ने उनको सख्त मना किया था। परमेश्वर ने उन्हें एक आसान-सी आज्ञा दी थी, फिर भी उन्होंने जानबूझकर उसे तोड़ दिया। ऐसा करके उन्होंने दिखाया कि वे अपने स्वर्गीय पिता और उसके अधिकार को कितना तुच्छ समझते हैं। वाकई, जिस परमेश्वर ने उन्हें ज़िंदगी, यहाँ तक कि सबकुछ दिया था, उसका इतनी बुरी तरह अपमान करना ऐसा महापाप था जिसे हरगिज़ माफ नहीं किया जा सकता था!
12. आदम और हव्वा की बगावत से यहोवा पर जो बीती, उसे किस मिसाल से समझाया जा सकता है?
12 आप ही सोचिए, अगर आपकी कोई औलाद जिसे आपने बड़े नाज़ों से पाला है और किसी चीज़ की कमी न होने दी, वह आपका हुक्म तोड़कर आपको यह महसूस कराए कि उसकी नज़रों में आपकी रत्ती-भर भी इज़्ज़त नहीं, तो आपको कैसा लगेगा? अगर वह अपनी हरकतों से दिखाए कि उसे आपसे बिलकुल प्यार नहीं तो आपके दिल पर क्या बीतेगी? यह सब देखकर किसी भी माँ-बाप का कलेजा छलनी हो जाएगा। तो फिर सोचिए, उस वक्त यहोवा पर क्या बीती होगी, जब आदम और हव्वा दोनों उसके सारे एहसानों को भूल गए और जानबूझकर उसके खिलाफ बगावत की!
13. मरने पर आदम का क्या होता, इसके बारे में यहोवा ने क्या कहा, और इसका क्या मतलब है?
13 जब आदम और हव्वा ने खुद हमेशा तक जीने का मौका ठुकरा दिया, तो यहोवा किस बिना पर उनकी ज़िंदगी को कायम रखता? इसलिए जैसा यहोवा ने कहा था, वैसा ही हुआ। आदम और हव्वा, दोनों मर गए। उनका अस्तित्त्व पूरी तरह मिट गया। वे मरने के बाद किसी आत्मिक लोक में नहीं चले गए। यह हम कैसे जानते हैं? ध्यान दीजिए कि यहोवा ने आदम को क्या सज़ा सुनायी, जिससे पता चलता है कि मरने पर आदम का क्या होता: “[तू] अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति 3:19) परमेश्वर ने आदम को मिट्टी से बनाया था। (उत्पत्ति 2:7) रचे जाने से पहले आदम कहीं अस्तित्त्व में नहीं था। इसलिए जब यहोवा ने आदम से कहा कि वह मिट्टी में मिल जाएगा, तो उसका यह मतलब था कि आदम रचे जाने से पहले जिस तरह अस्तित्त्व में नहीं था, मरने के बाद भी वह अस्तित्त्व में नहीं रहेगा। वह मिट्टी था, और मिट्टी में मिल जाता।
14. हम सब क्यों मरते हैं?
14 आदम और हव्वा आज भी ज़िंदा होते, अगर उन्होंने यहोवा की आज्ञा न तोड़ी होती और पाप न किया होता। हम आज इसलिए मरते हैं क्योंकि आदम ने अपना पाप और मौत हम सबको विरासत में दिया है। (रोमियों 5:12) पाप एक ऐसी जानलेवा खानदानी बीमारी की तरह है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी माँ-बाप से उनके बच्चों में फैलती है। यही वजह है कि हममें से कोई भी इससे बच नहीं सकता। पाप का अंजाम है, मौत। मौत एक श्राप है। यह हमारी दोस्त नहीं बल्कि सबसे बड़ी दुश्मन है। (1 कुरिन्थियों 15:26) इसलिए हम कितने शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि यहोवा ने हमें इस ज़ालिम दुश्मन से बचाने के लिए छुड़ौती का इंतज़ाम किया है!
मौत के बारे में हकीकत जानना क्यों फायदेमंद है
15. मरे हुओं के बारे में हकीकत जानकर हमें क्यों राहत मिलती है?
15 मरे हुओं के बारे में बाइबल से हकीकत जानकर हमें बड़ी राहत मिलती है। जैसे हमने देखा, मरे हुओं को किसी तरह की पीड़ा नहीं होती और ना ही वे कहीं तड़प रहे हैं। हमें उनसे डरने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि वे हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकते। न हम उनकी मदद कर सकते हैं, न वे हमारी। न हम उनसे बात कर सकते हैं और न वे हमसे। कई धर्म-गुरुओं का यह दावा है कि वे मरे हुओं की मदद कर सकते हैं। और उनकी बातों का यकीन करनेवाले लोग इस काम के लिए उन्हें पैसा देते हैं। मगर मरे हुओं के बारे में हकीकत जानने से हम इन धोखेबाज़ों से बच सकते हैं जो ऐसे झूठ सिखाते हैं।
16. झूठे धर्मों की शिक्षाएँ किसकी तरफ से हैं, और इन शिक्षाओं का वह किस तरह इस्तेमाल करता है?
16 जो मर गए हैं उनके बारे में क्या आपका धर्म भी वही सिखाता है जो बाइबल कहती है? बहुत-से धर्म यह नहीं सिखाते। क्यों? क्योंकि उनकी शिक्षाएँ बाइबल से नहीं बल्कि शैतान की तरफ से हैं। शैतान ने झूठे धर्मों का इस्तेमाल करके लोगों को इस धोखे में रखा है कि इंसान का सिर्फ शरीर मरता है, आत्मा नहीं। यह सरासर झूठ है। शैतान ऐसे ही हज़ारों झूठ फैलाकर लोगों को यहोवा परमेश्वर से दूर ले जा रहा है। वह कैसे?
17. नरक की शिक्षा कैसे यहोवा को बदनाम करती है?
17 जैसा हमने शुरू में देखा, कुछ धर्म सिखाते हैं कि बुरे लोग मरने के बाद नरक में जाते हैं, जहाँ वे कभी न बुझनेवाली आग में तड़पते रहते हैं। यह शिक्षा यहोवा को कितना बदनाम करती है। यहोवा प्यार करनेवाला परमेश्वर है, इसलिए हो नहीं सकता कि वह इंसानों को इतनी बेरहमी से तड़पाए। (1 यूहन्ना 4:8) आप एक ऐसे बाप के बारे में क्या सोचेंगे जो अपने बच्चे को बात न मानने की सज़ा देने के लिए उसके दोनों हाथ आग में जलाए? क्या ऐसे ज़ालिम बाप के लिए आपके दिल में इज़्ज़त होगी? क्या आप उससे जान-पहचान बढ़ाना चाहेंगे? जान-पहचान तो दूर, आप ऐसे इंसान से नफरत करेंगे। यहोवा के बारे में शैतान हमें बिलकुल ऐसा ही महसूस कराना चाहता है। वह हमें यकीन दिलाने पर तुला हुआ है कि यहोवा इंसानों को आनेवाले अरबों-खरबों सालों तक, जी हाँ, हमेशा-हमेशा तक नरक की आग में तड़पाता रहेगा!
18. बहुत-से लोग किस झूठ पर यकीन करके मरे हुओं की पूजा करते हैं?
18 शैतान कुछ धर्मों का इस्तेमाल करके यह भी सिखाता है कि मरने के बाद लोग आत्मा बन जाते हैं इसलिए उनका आदर करना चाहिए और उन्हें पूजना चाहिए। तभी वे ज़िंदा लोगों की दोस्त बन सकती हैं, वरना वे दुश्मन बनकर उनका जीना दुश्वार कर सकती हैं। बहुत-से लोग इस झूठ पर यकीन कर लेते हैं। इसलिए वे मरे हुओं से डरते हैं और उनका सम्मान और उनकी पूजा करते हैं। मगर बाइबल बिलकुल अलग बात बताती है। यह सिखाती है कि मरे हुए लोग मौत की नींद सो रहे हैं और उनकी उपासना करना गलत है। हमें सिर्फ सच्चे परमेश्वर यहोवा की उपासना करनी चाहिए, क्योंकि उसी ने हमें बनाया है और वही हमें सबकुछ देता है।—प्रकाशितवाक्य 4:11.
19. मौत के बारे में हकीकत जानने से हमें बाइबल की किस शिक्षा को समझने में मदद मिलती है?
19 मरे हुओं के बारे में हकीकत जानने से आप झूठी शिक्षाओं से धोखा नहीं खाएँगे। यह सच्चाई आपको बाइबल की दूसरी शिक्षाओं को भी समझने में मदद देगी। मिसाल के लिए, जब आप यह समझ लेते हैं कि इंसान मरने के बाद आत्मिक लोक में नहीं जाता, तो यहोवा का यह वादा आपको और भी सच्चा लगेगा कि वह फिरदौस में आपको हमेशा की ज़िंदगी देगा।
20. अगले अध्याय में हम किस सवाल पर गौर करेंगे?
20 सदियों पहले धर्मी पुरुष अय्यूब ने यह सवाल किया था: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा?” (अय्यूब 14:14) आज जो मौत की नींद सो रहे हैं, क्या उन्हें दोबारा ज़िंदा किया जा सकता है? इस बारे में बाइबल जो सिखाती है, उससे बहुत दिलासा मिलता है। अगले अध्याय में इसी बात पर गौर किया जाएगा।
a “प्राण” और “आत्मा” के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए “क्या इंसानों के अंदर कोई अमर आत्मा है?” नाम का अतिरिक्त लेख देखिए।