बाइबल की किताब नंबर 38—जकर्याह
लेखक: जकर्याह
लिखने की जगह: यरूशलेम
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 518
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 520-518
जब जकर्याह ने भविष्यवाणी करना शुरू किया था, तब यरूशलेम में यहोवा के मंदिर का निर्माण काम रुका हुआ था। सुलैमान ने पहले मंदिर को साढ़े सात साल के अंदर बनवाया था (1 राजा 6:37, 38), जबकि यहूदियों को अपने वतन, यरूशलेम लौटे 17 साल हो चुके थे, फिर भी मंदिर बनकर तैयार नहीं हुआ था। और अर्तक्षत्र (बारदिया या गौमाता) की लगायी पाबंदी के बाद से तो मंदिर का काम पूरी तरह से ठप्प पड़ गया था। मगर पाबंदी के बावजूद, अब मंदिर का काम दोबारा शुरू हो रहा था। यहोवा ने हाग्गै और जकर्याह के ज़रिए लोगों को उभारा कि वे निर्माण काम फिर से शुरू करें और उसे पूरा करके ही रहें।—एज्रा 4:23, 24; 5:1, 2.
2 यह काम पहाड़ जैसा मुश्किल लग रहा था। (जक. 4:6, 7) क्योंकि दुश्मनों के मुकाबले यहूदियों की गिनती मुट्ठी-भर ही थी। और हालाँकि दाऊद के वंश का राजकुमार जरुब्बाबेल उनके साथ था, मगर फिर भी उनका अपना कोई राजा नहीं था और वे पराए देश की हुकूमत के अधीन थे। ऐसे में, उनके लिए हिम्मत हारना और अपना ही स्वार्थ पूरा करने में डूब जाना कितना आसान था, जबकि वक्त की माँग यह थी कि वे मज़बूत विश्वास दिखाएँ और जोश के साथ काम में लग जाएँ! यहूदियों का ध्यान परमेश्वर के मौजूदा मकसदों और भविष्य के शानदार मकसदों की तरफ खींचने के लिए ही जकर्याह को इस्तेमाल किया गया था। इस तरह निर्माण काम के लिए उनकी हौसला-अफज़ाई की गयी थी। (8:9, 13) यह उनके लिए अपने बाप-दादों की तरह एहसानफरामोशी दिखाने का वक्त नहीं था।—1:5, 6.
3 जकर्याह कौन था? बाइबल के मुताबिक जकर्याह नाम के करीब 30 लोग थे। मगर जिस जकर्याह ने अपने नाम की किताब लिखी थी, उसकी पहचान यह है: “जकर्याह . . . जो बेरेक्याह का पुत्र और इद्दो का पोता था।” (जक. 1:1; एज्रा 5:1; नहे. 12:12, 16) उसके नाम (इब्रानी में, ज़ेखरयाह) का मतलब है, “यहोवा ने स्मरण किया है।” जकर्याह की किताब साफ-साफ बताती है कि “सेनाओं का यहोवा” अपने लोगों को स्मरण करता है और अपने नाम की खातिर उनके साथ भलाई से पेश आता है। (जक. 1:3) किताब में बतायी तारीखों से पता चलता है कि इसमें कम-से-कम दो साल का ब्यौरा दर्ज़ है। “दारा के राज्य के दूसरे वर्ष के आठवें महीने में” (सा.यु.पू. 520 का अक्टूबर/नवंबर) मंदिर बनाने का काम दोबारा शुरू हुआ और उसी वक्त जकर्याह ने नबूवत करना शुरू किया। (1:1) इस किताब में “दारा राजा के चौथे वर्ष के किसलेव नाम नौवें महीने के चौथे दिन” (लगभग दिसंबर 1, सा.यु.पू. 518) का भी हवाला मिलता है। (7:1) बेशक इससे पता चलता है कि जकर्याह ने सा.यु.पू. 520-518 के दौरान अपनी भविष्यवाणियाँ सुनायी होंगी और दर्ज़ भी की होंगी।—एज्रा 4:24.
4 जकर्याह किताब का अध्ययन करनेवालों को इसके सच होने के ढेरों सबूत मिलेंगे। मिसाल के लिए, सोर नगर को ही लीजिए। बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने 13 साल तक सोर की घेराबंदी करने के बाद उसे उजाड़ दिया था। लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि सोर का नामो-निशान मिट गया। इस घटना के कई सालों बाद, जकर्याह ने भविष्यवाणी की कि सोर को पूरी तरह नाश कर दिया जाएगा। उसकी इस भविष्यवाणी के 200 साल बाद, सिकंदर महान ने द्वीप पर बसे सोर नगर तक पहुँचने के लिए एक ऐसी तरकीब निकाली जो इतिहास में बहुत मशहूर हुई। उसने समुद्र पर एक रास्ता तैयार किया, उस पर चलकर नगर को जीत लिया और बड़ी बेरहमी से नगर को जलाकर राख कर दिया। इस तरह जकर्याह की भविष्यवाणी पूरी हुई।a—जक. 9:2-4.
5 इस किताब के ईश्वर-प्रेरित होने का सबसे ज़बरदस्त सबूत है, मसीहा यानी यीशु के बारे में पूरी हुई इसकी भविष्यवाणियाँ। इन भविष्यवाणियों की पूर्ति के लिए इन आयतों की तुलना कीजिए: जकर्याह 9:9 की मत्ती 21:4, 5 और यूहन्ना 12:14-16 से; जकर्याह 12:10 की यूहन्ना 19:34-37 से; और जकर्याह 13:7 की मत्ती 26:31 और मरकुस 14:27 से। इसके अलावा, जकर्याह 8:16 और इफिसियों 4:25 में; जकर्याह 3:2 और यहूदा 9 में; और जकर्याह 14:5 और यहूदा 14 में मिलती-जुलती बातें कही गयी हैं। परमेश्वर के वचन में सचमुच कमाल का तालमेल पाया जाता है!
6 जकर्याह अध्याय 9 से लेखन-शैली में एक बदलाव नज़र आता है। इसलिए बाइबल के कुछ आलोचक कहते हैं कि इस भाग को जकर्याह ने नहीं लिखा था। मगर विषय की माँग की वजह से इसकी शैली में बदलाव नज़र आता है। पहले आठ अध्यायों में जकर्याह अपने ज़माने के लोगों से ताल्लुक रखनेवाले मामलों के बारे में लिखता है, जबकि अध्याय 9 से 14 में वह बताता है कि भविष्य में क्या होनेवाला है। कुछ लोगों ने यह सवाल किया है कि मत्ती ने जकर्याह के शब्दों का हवाला देकर उसे यिर्मयाह का क्यों बताया था। (मत्ती 27:9; जक. 11:12) ऐसा मालूम होता है कि उस ज़माने में कभी-कभी यिर्मयाह को ‘बाद के नबियों’ (यानी यशायाह से मलाकी तक) की सूची में पहली जगह पर रखा जाता था (जो जगह आज हमारी बाइबलों में, यशायाह को दी जाती है)। इसलिए जब मत्ती ने जकर्याह का हवाला देते वक्त उसे “यिर्मयाह” का बताया, तो वह शायद यहूदियों के उस दस्तूर को मान रहा था जिसमें वे शास्त्र के एक पूरे भाग को उसकी पहली किताब के नाम से बुलाते थे। खुद यीशु ने भी ‘लेख’ के तहत आनेवाली सभी किताबों को ‘भजनों की पुस्तकें’b कहा था।—लूका 24:44.c
7 इस किताब में अध्याय 6 की आयत 8 तक, एक-के-बाद-एक आठ दर्शन दिए गए हैं, जो मोटे तौर पर मंदिर के दोबारा बनाए जाने से ताल्लुक रखते हैं। साथ ही, ये दर्शन दानिय्येल और यहेजकेल के दर्शन से भी काफी मिलते-जुलते हैं। इसके बाद के अध्यायों में न्यायदंड के संदेश सुनाए जाने के साथ-साथ सच्ची उपासना, बहाली और यहोवा के युद्ध के दिन के बारे में भी भविष्यवाणियाँ की गयी हैं।
क्यों फायदेमंद है
23 जो कोई जकर्याह की किताब का अध्ययन करता है और उस पर मनन करता है, उसे फायदा होगा। उसे वह ज्ञान हासिल होगा जो उसके विश्वास को और भी मज़बूत करेगा। जकर्याह अपनी किताब में 50 से भी ज़्यादा बार “सेनाओं के यहोवा” का ज़िक्र करता है, जो अपने लोगों की तरफ से लड़ता है, उनकी हिफाज़त करता है और ज़रूरत के हिसाब से उन्हें ताकत देता है। जब मंदिर के निर्माण में पहाड़ जैसी रुकावटें आयीं, तब जकर्याह ने ऐलान किया: “जरुब्बाबेल के लिये यहोवा का यह वचन है: न तो बल से, और न शक्ति से, परन्तु मेरे आत्मा के द्वारा होगा, मुझ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। हे बड़े पहाड़, तू क्या है? जरुब्बाबेल के साम्हने तू मैदान हो जाएगा।” यहोवा की आत्मा की मदद से ही मंदिर बनकर तैयार हुआ। उसी तरह, अगर आज भी हमारे सामने रुकावटें आएँ, तो हम यहोवा पर विश्वास दिखाते हुए उन रुकावटों को पार कर पाएँगे। ठीक जैसे यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, कि यहां से सरककर वहां चला जा, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अन्होनी न होगी।”—जक. 4:6, 7; मत्ती 17:20.
24 अध्याय 13 की आयत 2 से 6 में जकर्याह वफादारी की बात करता है, जो आज भी यहोवा के संगठन की खास पहचान है। यहोवा के लिए हमारी वफादारी इंसानी रिश्तों से कहीं बढ़कर होनी चाहिए, फिर चाहे किसी के साथ हमारा खून का रिश्ता ही क्यों न हो। मान लीजिए, परिवार का कोई सदस्य यहोवा के नाम से झूठी भविष्यवाणी करने लगता है, यानी राज्य संदेश से बिलकुल उलटी बातें कहने लगता है और कलीसिया के भाई-बहनों को गुमराह करने की भी कोशिश करता है। ऐसे में, उसके खिलाफ जो भी न्यायिक कार्रवाई की जाती है, उसमें उसके घरवालों को कलीसिया का वफादारी से साथ देना चाहिए। उसी तरह, जब उनका कोई करीबी दोस्त झूठी भविष्यवाणी करता है, तो उस वक्त भी उन्हें यह वफादारी दिखानी चाहिए ताकि उसे अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हो और उसके दिल को गहरी चोट पहुँचे।
25 जैसे कि शुरू के पैराग्राफों में बताया गया है, यीशु का “दीन [होकर] और गदहे पर” बैठकर राजा के तौर पर यरूशलेम में आना, ‘चान्दी के तीस टुकड़ों’ के लिए उसके साथ विश्वासघात किया जाना, उसके गिरफ्तार होने पर चेलों का तितर-बितर होना और सूली पर सैनिक के भाले से बेधा जाना, इन सब घटनाओं की जकर्याह ने बारीकी से भविष्यवाणी की थी। (जक. 9:9; 11:12; 13:7; 12:10) जकर्याह की भविष्यवाणी यह भी बताती है कि एक “अंकुर” (NHT, फुटनोट) उगेगा जो यहोवा के मंदिर को बनाएगा। यशायाह 11:1-10; यिर्मयाह 23:5; और लूका 1:32, 33 की तुलना करने से पता चलता है कि वह अंकुर यीशु मसीह है, जो “याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा।” जकर्याह बताता है कि वह “अंकुर” “अपने सिंहासन पर याजक भी होगा।” यह बात प्रेरित पौलुस के इन शब्दों से मेल खाती है: “यीशु मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक [बन गया]” और “स्वर्ग पर महामहिमन के सिंहासन के दहिने जा बैठा।” (जक. 6:12, 13, NHT; इब्रा. 6:20; 8:1) इस तरह, जकर्याह की भविष्यवाणी इशारा करती है कि वह “अंकुर” ही महायाजक और राजा है जो स्वर्ग में परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठा है। साथ ही, यह भविष्यवाणी ऐलान करती है कि यहोवा पूरे जहान का महाराजाधिराज है: “यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा; और उस समय एक ही यहोवा और उसका नाम भी एक ही माना जाएगा।”—जक. 14:9.
26 जकर्याह उस समय का ज़िक्र करीब 20 बार करता है और वह अपनी भविष्यवाणी के आखिर में एक बार फिर उस समय का ज़िक्र करता है। जकर्याह की किताब में जहाँ-जहाँ शब्द, “उसी दिन” और “उस समय” आते हैं, उनकी जाँच करने से पता चलता है कि यह एक ऐसा दिन होगा जब यहोवा धरती पर से मूरतों के नाम मिटा डालेगा और झूठे भविष्यवक्ताओं को दूर करेगा। (13:2, 4) उस दिन यहोवा हमला करनेवाले देशों के साथ लड़ेगा और उनमें घबराहट पैदा करके उन्हें नाश करेगा। मगर वह अपने लोगों को पनाह देने के लिए “पर्वत की तराई” (NHT) का इंतज़ाम करेगा। (14:1-5, 13; 12:8, 9) जी हाँ, “उस समय उनका परमेश्वर यहोवा उनको अपनी प्रजारूपी भेड़-बकरियां जानकर उनका उद्धार करेगा” और वे अपने-अपने भाई-बंधुओं को दाखलता और अंजीर के वृक्ष के नीचे आने के लिए बुलाएँगे। (जक. 9:16; 3:10; मीका 4:4) यह एक ऐसा शानदार दिन होगा जब सेनाओं का यहोवा अपने लोगों के ‘बीच में बास करेगा’ और जब “जीवन का जल यरूशलेम से बह निकलेगा।” (NHT) जकर्याह के ये शब्द बताते हैं कि “उस समय” जो घटनाएँ घटेंगी, वे इस बात का इशारा होंगी कि “नये आकाश और नयी पृथ्वी” के बारे में राज्य के वादे जल्द पूरे होनेवाले हैं।—जक. 2:11; 14:8; प्रका. 21:1-3; 22:1.
27 यहोवा पूछता है: “किस ने छोटी बातों का दिन तुच्छ जाना है?” देखो! पूरी धरती पर खुशी का यह आलम होगा: ‘बहुत से देशों के वरन सामर्थी जातियों के लोग यरूशलेम में सेनाओं के यहोवा को ढूंढ़ने और भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, कि, हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।’ “उस समय” घोड़ों की घंटियों पर भी यह लिखा होगा: “पवित्रता यहोवा की है!” (NW) दिल को छू लेनेवाली इन भविष्यवाणियों पर ध्यान देना बहुत फायदेमंद है, क्योंकि ये बताती हैं कि राज्य के वंश के ज़रिए ही यहोवा का नाम पवित्र किया जाएगा।—जक. 4:10; 8:22, 23; 14:20.
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 531,1136.
b पेज 32 पर दिया बक्स देखिए।
c इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका, सन् 1973, भाग 4, कॉलम 828; इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 1, पेज 1080-1.