बाइबल की किताब नंबर 50—फिलिप्पियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: रोम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 60-61
जब प्रेरित पौलुस को एक दर्शन में मकिदुनिया में सुसमाचार सुनाने का बुलावा मिला, तब उसने और उसके साथी लूका, सीलास और जवान तीमुथियुस ने तुरंत उस बुलावे को स्वीकार किया। वे एशिया माइनर में त्रोआस से नियापुलिस तक जहाज़ से गए। वहाँ पहुँचते ही वे फौरन फिलिप्पी नगर के लिए रवाना हुए, जो समुद्रतट से 15 किलोमीटर दूर बसा था और जहाँ तक पहुँचने के लिए उन्हें पहाड़ों के ऊपर से होकर जाना था। लूका ने इस नगर को “मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर” कहा। (प्रेरि. 16:12) नगर का नाम मकिदुनिया के राजा फिलिप द्वितीय (सिकंदर महान के पिता) के नाम पर रखा गया था, जिसने इसे सा.यु.पू. 356 में जीता था। बाद में रोमियों ने इस पर अपना कब्ज़ा जमाया। यह एक ऐसी जगह थी, जहाँ पर सा.यु.पू. 42 में अहम लड़ाइयाँ लड़ी गयी थीं। इन लड़ाइयों में ऑक्टेवियन, जो आगे चलकर कैसर औगूस्तुस बना, सबसे ताकतवर साबित हुआ। अपनी जीत की याद में उसने फिलिप्पी को रोम का एक उपनिवेश बना दिया।
2 पौलुस का यह दस्तूर था कि किसी भी नए नगर में पहुँचने पर वह सबसे पहले यहूदियों को प्रचार करता था। लेकिन जब वह सा.यु. 50 में पहली बार फिलिप्पी आया, तो उसने देखा कि उस नगर में सिर्फ मुट्ठी-भर यहूदी थे। और ऐसा मालूम होता है कि उनका कोई आराधनालय भी नहीं था, क्योंकि वे नगर के बाहर नदी तट पर प्रार्थनाओं के लिए इकट्ठा होते थे। पौलुस के प्रचार से बहुत जल्द कई लोग मसीही बने। इनमें सबसे पहली थी, लूदिया नाम की एक कारोबार करनेवाली स्त्री और जिसने पहले यहूदी धर्म अपनाया था। उसने मसीह के बारे में सच्चाई को खुशी-खुशी कबूल किया। इसके बाद, उसने ज़िद की कि पौलुस और उसके साथी उसके घर पर आकर ठहरे। उसके बारे में लूका कहता है, “वह हमें मनाकर ले गई।” फिर देखते-ही-देखते प्रचार काम का विरोध होने लगा। पौलुस और सीलास को बेंतों से मारा गया और उन्हें जेल में डाला गया। जब वे कैद में थे तो एक भूकंप आया। उसके बाद पौलुस और सीलास ने जेल के दारोगा और उसके परिवार को प्रचार किया जिससे वे विश्वासी बन गए। अगले दिन पौलुस और सीलास को रिहा किया गया। वे लुदिया के घर भाइयों से मिलने गए और विदा होने से पहले उनकी हौसला-अफज़ाई की। जाते-जाते, पौलुस अपने साथ उन क्लेशों की यादें ले गया, जो फिलिप्पी की नयी कलीसिया के बनने के दौरान उस पर आयी थीं।—प्रेरि. 16:9-40.
3 कुछ सालों बाद, अपने तीसरे मिशनरी दौरे पर पौलुस एक बार फिर फिलिप्पी गया। फिर जब फिलिप्पी कलीसिया को बने दस साल हो गए थे, तब वहाँ के भाइयों ने जिस तरीके से पौलुस के लिए प्यार दिखाया, वह उसके दिल को छू गया। इसी वजह से उसने ईश्वर-प्रेरणा से उस प्यारी कलीसिया के नाम एक पत्री लिखी, जो आज तक पवित्र शास्त्र का हिस्सा है।
4 इस पत्री की पहली आयत से पता चलता है कि इसे पौलुस ने ही लिखा था। और इस बात को आम तौर पर बाइबल के टीकाकार भी मानते हैं और इसकी कई अच्छी वजह भी हैं। पॉलिकार्प (सा.यु. 69?-155?) नाम के एक लेखक ने फिलिप्पियों को लिखे अपने खत में कहा कि पौलुस ने उन्हें एक पत्री लिखी थी। इग्नेशीअस, आइरीनियस, टर्टलियन और सिकंदरिया का क्लैमेंट जैसे शुरू के बाइबल टीकाकार भी कहते हैं कि यह पत्री पौलुस ने लिखी थी। इसका हवाला सा.यु. दूसरी सदी के मूराटोरी खंड और बाइबल की दूसरी प्राचीन सूचियों में भी दिया गया है। चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46) में इस पत्री को पौलुस की बाकी आठ पत्रियों के साथ रखा गया है। माना जाता है कि यह पपाइरस करीब सा.यु. 200 के समय की है।
5 मोटे तौर पर यह पुख्ता किया जा सकता है कि इस पत्री को कब और कहाँ लिखा गया था। इसे लिखते समय, पौलुस रोमी सम्राट के अंगरक्षक की निगरानी में एक कैदी था और उस वक्त रोम में मसीही भाई-बहन ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहे थे। पौलुस ने अपनी पत्री के आखिर में कैसर के घराने के वफादार जनों की तरफ से भी शुभकामनाएँ भेजीं। इन सारी बातों से पता चलता है कि पौलुस ने अपनी पत्री रोम में लिखी थी।—फिलि. 1:7, 13, 14; 4:22; प्रेरि. 28:30, 31.
6 मगर यह पत्री कब लिखी गयी थी? रोमी सम्राट के अंगरक्षकों और दूसरों में यह खबर फैल गयी थी कि पौलुस एक मसीही होने की वजह से कैद में है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पौलुस काफी समय से रोम में था। इसके अलावा, दूसरी बातों से भी ज़ाहिर होता है कि वह काफी समय से रोम में था। जैसे, इस बीच इपफ्रुदीतुस (करीब 1,000 किलोमीटर दूर) फिलिप्पी से पौलुस के लिए तोहफा लेकर आता है, फिलिप्पी कलीसिया को इस बात की खबर मिलती है कि इपफ्रुदीतुस रोम जाकर बीमार पड़ गया है, और वे रोम में खबर भिजवाकर अपना दुःख ज़ाहिर करते हैं। (फिलि. 2:25-30; 4:18) पौलुस को पहली बार रोम में करीब सा.यु. 59-61 में कैद किया गया था, इसलिए मुमकिन है कि उसने रोम पहुँचने के एकाध साल बाद यानी सा.यु. 60 या 61 के आस-पास फिलिप्पियों को अपनी पत्री लिखी होगी।
7 जिस तरह एक माँ अपने बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़ाएँ सहती है, उसी तरह पौलुस ने फिलिप्पी में अपने आध्यात्मिक बच्चों को सच्चाई सिखाने के लिए पीड़ाएँ सहीं। मसीही बनने के बाद, फिलिप्पी के भाइयों ने कई मौकों पर पौलुस के लिए प्यार और दरियादिली दिखायी। वे उसकी यात्राओं और मुश्किलों में उसे तोहफे के तौर पर ज़रूरत की चीज़ें भेजते रहे। इसके अलावा, यहोवा ने मकिदुनिया में पौलुस और दूसरे मिशनरियों की मेहनत पर अनोखी आशीषें बरसायीं। इन सारी वजहों से पौलुस और फिलिप्पी के भाइयों के बीच प्यार का एक मज़बूत बंधन बंध गया था। उन्होंने इस बार भी पौलुस को एक तोहफा भेजा साथ ही, इपफ्रुदीतुस की खैरियत पूछी और यह जानना चाहा कि रोम में सुसमाचार का काम कैसे चल रहा है। इसीलिए पौलुस ने उन्हें एक प्यार-भरी पत्री लिखना ज़रूरी समझा, जिसमें उसने उनका हौसला बढ़ाया।
क्यों फायदेमंद है
12 फिलिप्पियों की किताब सचमुच हमारे लिए फायदेमंद है! इसमें कोई दो राय नहीं कि हम यहोवा की मंज़ूरी पाना चाहते हैं और अपने मसीही अध्यक्षों से वैसी शाबाशी पाना चाहते हैं, जैसी फिलिप्पी की कलीसिया को पौलुस से मिली थी। हम ऐसी शाबाशी पा सकते हैं, बशर्ते हम फिलिप्पियों की बेहतरीन मिसाल पर चलें और पौलुस की प्यार-भरी सलाह को मानें। उन भाइयों की तरह हमें दरियादिल होना चाहिए, मुसीबत की घड़ी में अपने भाइयों की मदद करनी चाहिए और सुसमाचार की रक्षा और कानून की मदद से उसका पुष्टिकरण करना चाहिए। (1:3-7) हमें ‘एक ही आत्मा में स्थिर होना चाहिए, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिये परिश्रम करते रहना चाहिए।’ हमें टेढ़े और हठीले लोगों के बीच “जलते दीपकों” की नाईं अपना उजियाला चमकाना चाहिए। अगर हम ऐसा करें और जो बातें आदरनीय हैं, उन पर ध्यान लगाए रहें, तो हम अपने भाइयों का आनंद ठहरेंगे, ठीक जैसे फिलिप्पी के भाई पौलुस का आनंद और मुकुट थे।—फिलि. 1:27; 2:15; 4:1, 8.
13 पौलुस कहता है, “तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो।” हम किन तरीकों से उसकी सी चाल चल सकते हैं? एक तरीका है, हर हालात में संतोष करना सीखना। चाहे पौलुस के पास बहुत कुछ था या कुछ भी नहीं, उसने सभी हालात में खुद को ढालना सीखा और शिकायत नहीं की। इस तरह उसे जोश और खुशी के साथ परमेश्वर की सेवा करते रहने में मदद मिली। इसके अलावा, हम सभी को पौलुस की तरह वफादार भाइयों के लिए कोमल प्यार दिखाना चाहिए। जब उसने तीमुथियुस और इपफ्रुदीतुस की सेवा की बात की, तो उसकी बातों में कितना प्यार और कितनी खुशी थी। उसे फिलिप्पी के भाइयों से भी बहुत लगाव था। उनके बारे में उसने कहा: “मेरे प्रिय भाइयो, जिन में मेरा जी लगा रहता है जो मेरे आनन्द और मुकुट” हैं।—3:17; 4:1, 11, 12; 2:19-30.
14 हम और किस तरह से पौलुस की सी चाल चल सकते हैं? ‘लक्ष्य की ओर दौड़ने’ (NHT) के ज़रिए। जिन लोगों का ध्यान ‘आदरनीय बातों’ पर लगा है, उन्हें स्वर्ग और धरती पर यहोवा के लाजवाब इंतज़ाम में गहरी दिलचस्पी होती है। इस इंतज़ाम के तहत ‘परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार करेगी कि यीशु मसीह ही प्रभु है।’ जो लोग परमेश्वर के राज्य में अनंत जीवन पाने का लक्ष्य रखते हैं, फिलिप्पियों की पत्री में दी बढ़िया सलाह उन्हें उस लक्ष्य का पीछा करने का बढ़ावा देती है। लेकिन यह पत्री खासकर उन लोगों के लिए लिखी गयी है, जिनकी “नागरिकता स्वर्ग की है” (NHT) और जिनकी देह को मसीह “अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा।” तो ऐसा हो कि ये लोग प्रेरित पौलुस की तरह ‘पीछे रह गई बातों को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ते हुए लक्ष्य की ओर दौड़े कि वह इनाम पाएं, जिसके लिए वे ऊपर बुलाए’ गए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें स्वर्ग के राज्य में हुकूमत करने का शानदार मौका मिलेगा।—4:8; 2:10, 11; 3:13, 14, 20, 21.