बाइबल की किताब नंबर 59—याकूब
लेखक: याकूब
लिखने की जगह: यरूशलेम
लिखना पूरा हुआ: सा.यु. 62 से पहले
‘वह पागल हो गया है।’ धरती पर यीशु की सेवा के दौरान उसके बारे में उसके नाते-रिश्तेदारों का यही मानना था। “उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे।” दरअसल वे यानी याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा उसके शुरूआती चेलों में नहीं गिने जाते थे। (मर. 3:21, नयी हिन्दी बाइबिल; यूह. 7:5; मत्ती 13:55) अगर ऐसी बात है, तो किस बिनाह पर यह कहा जा सकता है कि बाइबल की किताब याकूब का लेखक, यीशु का सौतेला भाई याकूब ही था?
2 बाइबल में दर्ज़ रिकॉर्ड से पता चलता है कि यीशु का पुनरुत्थान होने के बाद, वह याकूब के सामने प्रकट हुआ। इससे याकूब को पूरा यकीन हो गया कि यीशु ही मसीहा है। (1 कुरि. 15:7) प्रेरितों 1:12-14 बताता है कि पिन्तेकुस्त से पहले मरियम और यीशु के भाई यरूशलेम में ऊपरवाले कमरे में प्रेरितों के साथ प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे हुए। मगर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि याकूब की किताब, याकूब नाम के किसी प्रेरित ने लिखी हो? यह मुमकिन नहीं, क्योंकि किताब की शुरूआत में ही लेखक कहता है कि वह ‘प्रभु यीशु मसीह का दास’ है, न कि एक प्रेरित। यही नहीं, इसके शुरूआती शब्द, यहूदा किताब के शुरूआती शब्दों से काफी मिलते-जुलते हैं, जिसमें यहूदा को “यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई” कहा गया है। (याकू. 1:1; यहू. 1) इस बिनाह पर यह कहना गलत नहीं होगा कि यीशु के सौतले भाइयों यानी याकूब और यहूदा ने ही अपने नाम की किताबें लिखी थीं।
3 मसीही कलीसिया को पत्री लिखने और उन्हें सलाह देने के लिए याकूब एकदम सही आदमी था। वह क्यों? यरूशलेम की कलीसिया में एक अध्यक्ष के नाते उसे बहुत इज़्ज़त दी जाती थी। पौलुस ने “प्रभु के भाई याकूब” के बारे में कहा कि वह, कैफा और यूहन्ना की तरह कलीसिया का ‘खम्भा’ है। (गल. 1:19; 2:9) याकूब, कलीसिया में एक अहम भूमिका निभाता था। यह हमें इस बात से पता चलता है कि जब पतरस कैद से छूटा, तब उसने तुरंत इसकी खबर “याकूब और भाइयों को” पहुँचायी। इसके अलावा, जब पौलुस और बरनबास खतना के मसले पर “प्रेरितों और प्राचीनों” का फैसला जानने यरूशलेम आए, तो उनकी तरफ से याकूब ने ही फैसला सुनाया था। गौरतलब है कि इस फैसले पर लिखा गया पत्र और याकूब की पत्री दोनों “नमस्कार” शब्द से शुरू होते हैं। इससे भी इशारा मिलता है कि इन दोनों को एक ही व्यक्ति ने लिखा होगा।—प्रेरि. 12:17; 15:13, 22, 23; याकू. 1:1.
4 इतिहासकार जोसीफस बताता है कि याकूब को पत्थरवाह करके मार डाला गया था और उसकी मौत के लिए महायाजक एननस (हनन्याह) ज़िम्मेदार था। यह घटना लगभग सा.यु. 62 में हुई थी, यानी रोमी राज्यपाल फेस्तुस की मौत के बाद और उसके वारिस एलबीनस के हुकूमत सँभालने से पहले।a लेकिन याकूब ने अपनी पत्री कब लिखी? यह जानने के लिए इन बातों पर गौर कीजिए। याकूब ने यह पत्री यरूशलेम से ‘बारह गोत्रों’ को लिखी थी, “जो तित्तर बित्तर” हो गए थे। (याकू. 1:1) सा.यु. 33 में पवित्र शक्ति के उँडेले जाने के बाद, मसीहियत को चारों तरफ फैलने में समय लगा होगा। साथ ही, पत्री में जिन गंभीर हालात का ज़िक्र किया गया है, उन्हें पैदा होने में भी वक्त लगा होगा। इसके अलावा, पत्री से पता चलता है कि मसीही छोटे समूहों में नहीं, बल्कि कलीसियाओं में संगठित थे। और “प्राचीनों” का भी इंतज़ाम था, जो कमज़ोरों के लिए प्रार्थना कर सकते थे और उन्हें मदद दे सकते थे। कलीसिया में कुछ लोग बेफिक्री से जी रहे थे और महज़ दिखावे के लिए उपासना कर रहे थे, इससे भी पता चलता है कि मसीही कलीसिया को शुरू हुए काफी समय हो चुका था। (1:26, 27; 2:1-4; 4:1-3; 5:14) इन बातों को मद्देनज़र रखते हुए यह कहा जा सकता है कि याकूब ने अपनी पत्री सा.यु. 33 के बहुत समय बाद लिखी। और अगर फेस्तुस की मौत से जुड़ी घटनाओं के बारे में जोसीफस का ब्यौरा सच है, साथ ही अगर सूत्रों से मिली यह जानकारी भी सच है कि फेस्तुस की मौत लगभग सा.यु. 62 में हुई थी, तो हम इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि याकूब ने अपनी पत्री सा.यु. 62 से पहले लिखी थी।
5 याकूब की किताब के सच होने के क्या सबूत हैं? वैटिकन नं. 1209, साइनाइटिक और एलैक्ज़ैंड्रीन हस्तलिपियों में यह किताब पायी जाती है। सामान्य युग 397 में कार्थेज में हुई धर्मसभा से पहले कम-से-कम दस प्राचीन सूचियों में इस किताब का नाम आता है। शुरू के चर्च के लेखकों ने इस किताब से बेशुमार हवाले दिए। यही नहीं, याकूब की किताब से साफ देखा जा सकता है कि इसमें और बाकी ईश्वर-प्रेरित शास्त्र में गहरा तालमेल है।
6 याकूब ने यह पत्री क्यों लिखी? पत्री की करीबी से जाँच करने पर खुलासा होता है कि कलीसिया में कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए थे, जिनकी वजह से भाइयों में रगड़े-झगड़े हो रहे थे। मसीही स्तरों से समझौता किया जा रहा था, कुछ लोगों ने तो उन स्तरों को ताक पर रख दिया था। इस तरह वे दुनिया से दोस्ती करके आध्यात्मिक मायने में व्यभिचार कर रहे थे। कुछ और लोग कलीसिया में मतभेद पैदा करने के लिए यह दावा कर रहे थे कि याकूब, पौलुस की बात काटता है। वे यह दलील दे रहे थे कि याकूब कामों से विश्वास ज़ाहिर करने का बढ़ावा देता है, जबकि पौलुस ने कहा कि उद्धार विश्वास से मिलता है कामों से नहीं। लेकिन संदर्भ से पता चलता है कि याकूब का मतलब था कि विश्वास सिर्फ बातों से नहीं बल्कि कामों से ज़ाहिर होता है। जबकि पौलुस का मतलब था कि व्यवस्था के कामों से उद्धार नहीं मिल सकता। दरअसल देखा जाए तो याकूब अपनी पत्री में पौलुस की दलीलों को ही आगे बढ़ाते हुए कहता है कि उद्धार के लिए विश्वास कैसे दिखाया जा सकता है। याकूब की किताब मसीहियों को इस बारे में बहुत ही कारगर सलाह देती है कि वे रोज़-बरोज़ की समस्याओं का कैसे सामना कर सकते हैं।
7 याकूब ने विश्वास, सब्र और धीरज जैसे गुणों पर दी अपनी दलीलों को सजीव और दिलचस्प बनाने के लिए रोज़मर्रा ज़िंदगी से जुड़े उदाहरण दिए। जैसे, जानवर, जहाज़, किसान और घास का। सिखाने का यह असरदार तरीका अपनाकर वह यीशु की मिसाल पर चला और इस वजह से उसकी किताब बहुत ही दमदार है। याकूब की पत्री पढ़ने पर हम इस बात से प्रभावित होते हैं कि याकूब एक व्यक्ति के इरादों को अच्छी तरह भाँप सकता था।
क्यों फायदेमंद है
15 हालाँकि याकूब अपनी पत्री में सिर्फ दो बार यीशु का नाम लेता है, (1:1; 2:1) मगर वह कई बार यीशु की शिक्षाएँ रोज़मर्रा ज़िंदगी पर लागू करता है। यह हमें याकूब की पत्री और पहाड़ी उपदेश की तुलना करने से पता चलता है। इसके अलावा, पत्री में यहोवा का नाम 13 बार (न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन) आता है और इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि यहोवा वफादार मसीहियों को इनाम देने का वादा करता है। (4:10; 5:11) याकूब अपनी सलाह खुलकर समझाने के लिए बार-बार इब्रानी शास्त्र से मिसालें और उचित हवाले देता है। वह अपनी हर बात शास्त्र के आधार पर कहता है, जैसा कि हमें उसके इन शब्दों से पता चलता है: “पवित्र शास्त्र के इस वचन के अनुसार,” “पवित्र शास्त्र का यह वचन पूरा हुआ” और ‘पवित्र शास्त्र कहता है।’ फिर वह समझाता है कि पवित्र शास्त्र की ये आयतें हम मसीहियों पर कैसे लागू होती हैं। (2:8, 23; 4:5) याकूब अपने मुद्दे समझाने और इब्रानी और यूनानी, दोनों शास्त्र पर विश्वास बढ़ाने के लिए इब्राहीम और राहाब के विश्वास के कामों, अय्यूब की वफादारी और धीरज, साथ ही यहोवा पर भरोसा रखनेवाले एल्लियाह की प्रार्थना का ज़िक्र करता है।—उत्प. 22:9-12; यहो. 2:1-21; 1 राजा 17:1; 18:41-45; अय्यू. 1:20-22; 42:10; याकू. 2:21-25; 5:11, 17, 18.
16 याकूब की ये सलाहें बहुत ही बेशकीमती हैं: वचन के सुननेवाले ही नहीं बल्कि चलनेवाले बनो; धार्मिकता के कामों से अपने विश्वास को साबित करो; तरह-तरह की परीक्षाएँ खुशी-खुशी सहो; परमेश्वर से बुद्धि माँगते रहो; प्रार्थना के ज़रिए हमेशा यहोवा के करीब रहो; और इस राज्य व्यवस्था पर चलो कि “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (याकू. 1:2, 3क, 5, 22; 2:8, 24; 4:8; 5:13-18) इतना ही नहीं, याकूब झूठी शिक्षा देने, जीभ का गलत इस्तेमाल करने, कलीसिया में भेदभाव करने, भोग-विलास की इच्छा करने और नाश होनेवाली दौलत पर भरोसा रखने के खिलाफ कड़ी चेतावनी देता है। (2:4; 3:1, 8; 4:3; 5:1, 5) याकूब सीधे-सीधे बताता है कि संसार से दोस्ती करना आध्यात्मिक मायने में व्यभिचार करना और परमेश्वर से दुश्मनी मोल लेना है। वह यह भी बताता है कि किस तरह की उपासना परमेश्वर की नज़र में शुद्ध है और वह है, ‘अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लेना, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखना।’ (1:27; 4:4) याकूब की ये तमाम सलाहें बहुत ही कारगर और समझने में आसान हैं। मसीही कलीसिया के इस “खम्भे” से हम यही तो उम्मीद करेंगे। (गल. 2:9) याकूब का यह प्यार-भरा पैगाम आज भी मुश्किलों के इस दौर में मसीहियों को सही राह दिखा सकता है। क्योंकि यह पैगाम वाकई “ऊपर से आनेवाली बुद्धि” (NW) है, जो “धार्मिकता का फल” पैदा करती है।—3:17, 18.
17 याकूब दिल से चाहता था कि उसके भाइयों को परमेश्वर के राज्य में जीवन मिले। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह उन्हें उकसाता है: “तुम भी धीरज धरो, और अपने हृदय को दृढ़ करो, क्योंकि प्रभु का शुभागमन निकट है।” अगर वे परीक्षाओं में स्थिर रहें, तो खुश होंगे। क्यों? क्योंकि उन्हें परमेश्वर की मंज़ूरी मिलेगी और इसका मतलब होगा कि वे ‘जीवन का वह मुकुट पाएँगे, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों को दी है।’ (1:12; 5:8) यह प्रतिज्ञा हमें वफादारी से सेवा करते रहने की ज़बरदस्त वजह देती है। क्योंकि तभी हम या तो स्वर्ग में अमर जीवन पाएँगे, या धरती पर अनंत जीवन। इसमें कोई शक नहीं कि इस बेमिसाल पत्री से सभी को बढ़ावा मिलेगा कि वे राज्य के वंश यानी हमारे प्रभु यीशु मसीह की हुकूमत में अनंत जीवन पाने की पूरी-पूरी कोशिश करें।—2:5.
[फुटनोट]
a जूइश एन्टिक्विटीस्, XX, 197-200 (9, 1); वेबस्टर्स् न्यू बायोग्राफिकल डिक्शनरी, सन् 1983, पेज 350.