अध्याय 5
राजा राज की सच्चाइयों को रौशन करता है
1, 2. यीशु कैसे एक समझदार गाइड साबित हुआ है?
मान लीजिए, आप कुछ लोगों के साथ मिलकर एक शहर घूमने गए हैं। शहर बहुत खूबसूरत और शानदार है और एक तजुरबेकार गाइड आप सबको शहर घुमा रहा है। आप पहली बार वहाँ गए हैं, इसलिए आप गाइड की एक-एक बात ध्यान से सुनते हैं। आप और दूसरे सैलानी शहर की कुछ खास जगहों के बारे में जानने के लिए बेताब हैं जो आपने अभी तक नहीं देखीं। आप गाइड से उनके बारे में पूछते हैं, मगर वह आपको कुछ नहीं बताता। जब आप उन जगहों के नज़दीक पहुँच रहे होते हैं तभी वह आपको उनके बारे में बताता है। कुछ वक्त बाद आप देख पाते हैं कि वह गाइड कितना समझदार है, क्योंकि आपको जो जानने की ज़रूरत है उस बारे में वह आपको सही समय पर बताता है।
2 सच्चे मसीही भी एक मायने में उन सैलानियों की तरह हैं। हम सबसे शानदार शहर, यानी परमेश्वर के राज के बारे में पूरी उत्सुकता से सीख रहे हैं। वह ‘एक ऐसा शहर है जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है।’ (इब्रा. 11:10) जब यीशु धरती पर था तो वह खुद अपने चेलों को राह दिखाता था और उन्हें राज के बारे में गहरी समझ देता था। क्या उसने एक ही बार में राज से जुड़ी सारी बातें उन्हें बता दीं और उसके बारे में उनके सारे सवालों के जवाब दे दिए? नहीं। उसने कहा, “मुझे तुमसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, मगर इस वक्त तुम इन्हें नहीं समझ सकते।” (यूह. 16:12) यीशु सबसे समझदार गाइड है, इसलिए उसने कभी-भी अपने चेलों को वक्त से पहले ढेर सारी जानकारी नहीं दी जिसे वे समझ नहीं पाते।
3, 4. (क) यीशु कैसे वफादार लोगों को परमेश्वर के राज के बारे में लगातार सिखा रहा है? (ख) इस अध्याय में हम क्या चर्चा करेंगे?
3 यूहन्ना 16:12 में लिखी बात यीशु ने धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात कही थी। अपनी मौत के बाद वह वफादार लोगों को परमेश्वर के राज के बारे में सिखाना कैसे जारी रखता? उसने अपने प्रेषितों को भरोसा दिलाया, ‘सच्चाई की पवित्र शक्ति, सच्चाई की पूरी समझ पाने में तुम्हारी मदद करेगी।’a (यूह. 16:13) पवित्र शक्ति एक ऐसे गाइड की तरह है जो सब्र से राह दिखाता है। इसी शक्ति के ज़रिए यीशु चेलों को परमेश्वर के राज के बारे में हर वह बात सिखाता जिसे जानना उनके लिए ज़रूरी होता और वह भी सही समय पर।
4 आइए देखें कि यहोवा की पवित्र शक्ति कैसे सच्चे मसीहियों को राह दिखाती रही है जिस वजह से वे राज के बारे में ज़्यादा ज्ञान हासिल कर पाए हैं। सबसे पहले हम देखेंगे कि हमें इस बारे में समझ कैसे मिली कि परमेश्वर के राज की हुकूमत कब शुरू हुई। इसके बाद हम देखेंगे कि हमने इस बारे में समझ कैसे हासिल की कि राज के शासक और उसकी प्रजा कौन होंगे और उनकी क्या आशा है। आखिर में हम देखेंगे कि मसीह के चेलों ने कैसे साफ-साफ समझा कि राज के वफादार रहने के लिए उन्हें क्या करना होगा।
उन्हें एक खास साल के बारे में समझ मिली
5, 6. (क) बाइबल विद्यार्थी राज की शुरूआत और कटाई के समय के बारे में क्या गलत सोच रखते थे? (ख) इस वजह से हमें क्यों नहीं सोचना चाहिए कि यीशु उन्हें राह नहीं दिखा रहा था?
5 जैसे हमने अध्याय 2 में देखा, बाइबल विद्यार्थी सालों से बता रहे थे कि 1914 एक खास साल होगा क्योंकि उस वक्त बाइबल की कुछ भविष्यवाणियाँ पूरी होंगी। मगर उस वक्त वे मानते थे कि मसीह की मौजूदगी 1874 में शुरू हो चुकी है, वह 1878 से स्वर्ग में राज कर रहा है और उसका राज अक्टूबर 1914 को पूरी तरह कायम होगा। वे यह भी मानते थे कि कटाई का समय 1874 से 1914 तक चलेगा और उस समय के आखिर में अभिषिक्त जनों को इकट्ठा करके स्वर्ग ले लिया जाएगा। क्या ऐसी गलत धारणाओं का यह मतलब था कि यीशु उन वफादार लोगों को पवित्र शक्ति के ज़रिए राह नहीं दिखा रहा था?
6 ऐसी बात नहीं है! अध्याय की शुरूआत में दी गयी मिसाल पर दोबारा ध्यान दीजिए। सैलानी कोई जगह देखने से पहले जो अटकलें लगाते हैं और बेसब्र होकर सवाल पूछते हैं, क्या उसका मतलब यह है कि उनका गाइड अच्छा नहीं है? ऐसा कहना सही नहीं होगा! पवित्र शक्ति के ज़रिए परमेश्वर सही वक्त पर अपने लोगों को अपने मकसद के बारे में सही समझ देता है। लेकिन कभी-कभी परमेश्वर के लोगों ने समय से पहले उसके मकसद को समझने की कोशिश की है। फिर भी इसका यह मतलब नहीं कि यीशु उन्हें राह नहीं दिखा रहा। इसलिए वफादार लोग नम्रता से अपनी समझ में फेरबदल करने को तैयार रहते हैं।—याकू. 4:6.
7. परमेश्वर के लोगों को किन सच्चाइयों की तेज़ रौशनी मिली?
7 सन् 1919 के बाद के सालों में परमेश्वर के लोगों को उसकी आशीष से सच्चाई की और भी तेज़ रौशनी मिलती गयी। (भजन 97:11 पढ़िए।) सन् 1925 की एक प्रहरीदुर्ग में एक खास लेख प्रकाशित किया गया जिसका शीर्षक था, “राष्ट्र का जन्म।” लेख में बाइबल से ठोस सबूत देकर बताया गया कि मसीहा का राज 1914 में शुरू हो चुका है और इस तरह प्रकाशितवाक्य के अध्याय 12 की यह भविष्यवाणी पूरी हो गयी है कि ‘एक औरत बेटे को जन्म देगी।’b लेख में यह भी बताया गया कि युद्ध के उन सालों के दौरान यहोवा के लोगों को जो ज़ुल्म सहने पड़े, वे साफ दिखाते हैं कि शैतान को स्वर्ग से फेंक दिया गया है और वह “बड़े क्रोध में है, क्योंकि वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्त बाकी रह गया है।”—प्रका. 12:12.
8, 9. (क) परमेश्वर के राज को कैसे ज़्यादा अहमियत दी जाने लगी? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
8 परमेश्वर का राज कितनी अहमियत रखता है? सन् 1928 से प्रहरीदुर्ग ज़ोर देकर बताने लगी कि परमेश्वर का राज, फिरौती के ज़रिए इंसानों के उद्धार से ज़्यादा अहमियत रखता है। मसीहा के राज के ज़रिए ही यहोवा अपने नाम को पवित्र करेगा, अपनी हुकूमत बुलंद करेगा और इंसानों से जुड़े सारे मकसद पूरे करेगा।
9 कौन उस राज में मसीह के साथ हुकूमत करेंगे? कौन उस राज की प्रजा होंगे? मसीह के चेलों को किस काम में लगे रहना चाहिए?
अभिषिक्त जनों को इकट्ठा करने पर ध्यान दिया गया
10. परमेश्वर के लोग 1,44,000 जनों के बारे में बहुत पहले से क्या समझ गए थे?
10 सन् 1914 से सालों पहले ही बाइबल विद्यार्थी समझ गए थे कि मसीह के 1,44,000 वफादार चेले स्वर्ग में उसके साथ राज करेंगे।c वे समझ गए थे कि 1,44,000 सचमुच की संख्या है और पहली सदी से उन्हें चुनना शुरू हो गया था।
11. दुल्हन वर्ग के सदस्य बननेवाले उस काम के बारे में कैसे समझ हासिल करते गए जो उन्हें धरती पर सौंपा गया था?
11 लेकिन जो मसीही आगे चलकर यीशु की दुल्हन वर्ग के सदस्य बनते, उन्हें धरती पर रहते वक्त क्या काम करना था? वे समझ गए कि यीशु ने प्रचार काम पर ज़ोर दिया था और कहा था कि यह काम कटाई के समय होगा। (मत्ती 9:37; यूह. 4:35) जैसे हमने अध्याय 2 में देखा, पहले वे सोचते थे कि कटाई का समय 40 साल तक चलेगा और उस समय के आखिर में अभिषिक्त जनों को इकट्ठा करके स्वर्ग ले जाया जाएगा। लेकिन उन 40 सालों के बाद भी वह काम जारी रहा, इसलिए इस बारे में उन्हें और भी साफ समझ की ज़रूरत थी। आज हम जानते हैं कि कटाई का समय 1914 में शुरू हुआ था। कटाई के समय का मतलब है गेहूँ को जंगली पौधों से, यानी वफादार अभिषिक्त मसीहियों को नकली मसीहियों से अलग करने का समय। अब वक्त आ गया था कि स्वर्ग जानेवालों में से बचे हुओं को इकट्ठा करने पर ध्यान दिया जाए!
12, 13. यीशु ने दस कुँवारियों और तोड़ों की मिसाल देकर जो सीख दी उसे कैसे आखिरी दिनों में लागू किया गया?
12 सन् 1919 से मसीह, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास को लगातार राह दिखाता रहा कि वह प्रचार काम पर ज़ोर दे। उसने अपने चेलों को यह काम पहली सदी में सौंपा था। (मत्ती 28:19, 20) उसने यह भी ज़ाहिर किया था कि प्रचार करने के लिए अभिषिक्त चेलों में कौन-से गुण होने चाहिए। कैसे? उसने दस कुँवारियों की मिसाल देकर समझाया कि अभिषिक्त जनों को जागते रहना होगा, तभी वे अपना आखिरी लक्ष्य हासिल कर पाएँगे यानी स्वर्ग में होनेवाली शादी की महान दावत में हिस्सा ले पाएँगे, जब मसीह का 1,44,000 जनों से बनी अपनी “दुल्हन” से मिलन होगा। (प्रका. 21:2) इसके बाद यीशु ने तोड़ों की मिसाल देकर बताया कि प्रचार काम को पूरा करने के लिए उसके चेलों को कड़ी मेहनत करनी होगी।—मत्ती 25:1-30.
13 पिछले सौ सालों के दौरान अभिषिक्त मसीही जागते रहे और प्रचार काम में मेहनत करते रहे। इसलिए उन्हें इसका इनाम ज़रूर मिलेगा! मगर क्या कटाई के महान काम में सिर्फ 1,44,000 में से बचे हुओं को इकट्ठा किया जाता?
परमेश्वर का राज धरती पर रहनेवाली प्रजा को इकट्ठा करता है!
14, 15. समाप्त रहस्य में किन चार समूहों के बारे में बताया गया?
14 वफादार लोग हमेशा से यह जानने के लिए बेसब्र थे कि प्रकाशितवाक्य 7:9-14 में बतायी “बड़ी भीड़” किन लोगों से बनी है। इसलिए इसके बारे में काफी अटकलें लगायी गयीं। आज हमारे पास इस सच्चाई की साफ समझ है। लेकिन उस ज़माने में मसीह ने इस बारे में सच्चाई ज़ाहिर नहीं की थी। इसलिए जो बातें बतायी गयीं वे समझने में काफी मुश्किल थीं और कुछ हद तक गलत भी थीं।
15 सन् 1917 में प्रकाशित किताब समाप्त रहस्य (द फिनिश्ड मिस्ट्री ) में दावे के साथ कहा गया कि “उद्धार पाकर स्वर्ग जानेवालों में दो श्रेणी के लोग हैं और उद्धार पाकर पृथ्वी पर जीनेवालों में भी दो श्रेणी के लोग हैं।” इन चारों समूहों के बारे में क्या बताया जाता था? पहले समूह में 1,44,000 जन हैं जो मसीह के साथ राज करेंगे। दूसरे समूह में बड़ी भीड़ है और यह भीड़ ईसाईजगत के चर्चों के लोगों से बनी है जो नाम के मसीही हैं। उनमें विश्वास ज़रूर है मगर इतना मज़बूत नहीं कि वे सच्ची उपासना की खातिर सख्त कदम उठा सकें। इसलिए उन्हें स्वर्ग में कम दर्जा दिया जाएगा। तीसरे समूह के लोगों के बारे में माना जाता था कि वे धरती पर जीएँगे। इनमें पुराने ज़माने के वफादार लोग होंगे, जैसे अब्राहम और मूसा। उन्हें धरती पर जीनेवाले चौथे समूह के लोगों पर अधिकार दिया जाएगा। यह चौथा समूह बाकी बचे लोगों से बना होगा।
16. सन् 1923 और 1932 में किन सच्चाइयों की रौशनी चमकी?
16 पवित्र शक्ति ने कैसे मसीह के चेलों को इस बारे में वह सच्चाई समझने में मदद दी जिसे आज हम बहुत अनमोल समझते हैं? उन्हें समय के गुज़रते इस बारे में एक-एक सच्चाई समझ आयी। सन् 1923 की एक प्रहरीदुर्ग ने एक ऐसे समूह के बारे में बताया जिसके लोगों को स्वर्ग जाने की आशा नहीं होगी बल्कि वे मसीह के राज में धरती पर जीएँगे। सन् 1932 में प्रहरीदुर्ग ने योनादाब (या यहोनादाब) के बारे में बताया जो परमेश्वर के अभिषिक्त राजा येहू के साथ जुड़ गया था ताकि झूठी उपासना मिटाने में उसका साथ दे। (2 राजा 10:15-17) लेख में बताया गया कि आज के ज़माने में योनादाब जैसे लोगों का एक समूह है जिसे यहोवा हर-मगिदोन पार कराएगा ताकि वे यहीं धरती पर जी सकें।
17. (क) 1935 में कौन-सी तेज़ रौशनी चमकी? (ख) बड़ी भीड़ के बारे में नयी समझ पाकर वफादार मसीहियों को कैसा लगा? (यह बक्स देखें: “राहत की साँस।”)
17 सन् 1935 में इस बारे में एक तेज़ रौशनी चमकी। वॉशिंगटन, डी.सी. में हुए अधिवेशन के एक भाषण में समझाया गया कि बड़ी भीड़ के लोग धरती पर जीएँगे और यीशु ने भेड़ों और बकरियों की जो मिसाल दी थी उसमें बतायी भेड़ें इन्हीं लोगों को दर्शाती हैं। (मत्ती 25:33-40) बड़ी भीड़ के लोग ‘दूसरी भेड़ों’ के समूह का हिस्सा होंगे जिसके बारे में यीशु ने कहा था, “मुझे उन्हें भी लाना है।” (यूह. 10:16) वक्ता भाई जे. एफ. रदरफर्ड ने हाज़िर लोगों से पूछा, “आपमें से जो लोग पृथ्वी पर अनंत जीवन पाने की आशा रखते हैं, क्या वे सभी कृपया खड़े होंगे?” तब आधे से ज़्यादा लोग खड़े हो गए! भाई ने ऐलान किया, “देखो! बड़ी भीड़ यही है!” जब कई लोगों ने जाना कि भविष्य में उन्हें कहाँ जीवन मिलेगा तो यह बात उनके दिल को छू गयी।
18. (क) मसीह के चेलों ने प्रचार करके किन लोगों को इकट्ठा करने पर ध्यान दिया? (ख) नतीजा क्या हुआ?
18 तब से मसीह अपने चेलों का ध्यान इस बात की तरफ खींचता रहा है कि वे उन लोगों को इकट्ठा करने में मेहनत करें जो बड़ी भीड़ के सदस्य बनेंगे और महा-संकट से ज़िंदा बचेंगे। शुरू में ऐसे लोगों को इकट्ठा करने में खास नतीजे नहीं मिले। यहाँ तक कि भाई रदरफर्ड ने एक बार कहा था, “लगता है ‘बड़ी भीड़’ उतनी भी बड़ी नहीं होगी।” मगर आज हम जानते हैं कि यहोवा ने तब से कटाई के काम पर कितनी आशीष दी है! यीशु और पवित्र शक्ति का मार्गदर्शन पाकर अभिषिक्त मसीही और उनके साथी, यानी ‘दूसरी भेड़ें’ “एक झुंड” बन गए हैं और ‘एक चरवाहे’ के अधीन रहकर सेवा कर रहे हैं, ठीक जैसे यीशु ने भविष्यवाणी की थी।
19. बड़ी भीड़ की गिनती बढ़ाने में हम कैसे हिस्सा ले सकते हैं?
19 वफादार लोगों में से ज़्यादातर जन धरती पर फिरदौस में हमेशा के लिए जीएँगे और उन पर मसीह और उसके 1,44,000 साथी राजा राज करेंगे। जब हम गौर करते हैं कि मसीह ने कैसे परमेश्वर के लोगों को भविष्य की आशा के बारे में बाइबल से सही समझ दी तो क्या हमें खुशी नहीं होती? हमें इस आशा के बारे में दूसरों को बताने का क्या ही बड़ा सम्मान मिला है! आइए हम अपने हालात के मुताबिक जितना हो सके, पूरे जोश से प्रचार करते रहें ताकि बड़ी भीड़ की गिनती और भी बढ़ती जाए और यहोवा के नाम की पहले से ज़्यादा जयजयकार हो!—लूका 10:2 पढ़िए।
राज के वफादार रहने के लिए क्या करना ज़रूरी है
20. (क) शैतान के संगठन के क्या-क्या हिस्से हैं? (ख) मसीहियों को कैसे राज के वफादार रहना चाहिए?
20 परमेश्वर के लोग जैसे-जैसे राज के बारे में ज़्यादा सीखते गए, उन्हें यह भी समझने की ज़रूरत थी कि स्वर्ग की उस सरकार के वफादार रहने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए। सन् 1922 की एक प्रहरीदुर्ग में बताया गया कि दुनिया में दो संगठन हैं। एक यहोवा का है और दूसरा शैतान का। शैतान का संगठन व्यापार, धर्म और राजनीति से बना है। जो लोग परमेश्वर के राज के वफादार रहना चाहते हैं उन्हें शैतान के संगठन का किसी भी तरह साथ नहीं देना चाहिए। (2 कुरिं. 6:17) इसका क्या मतलब है?
21. (क) विश्वासयोग्य दास ने परमेश्वर के लोगों को व्यापार जगत के बारे में कैसे खबरदार किया है? (ख) 1963 की एक प्रहरीदुर्ग में “महानगरी बैबिलोन” के बारे में क्या बताया?
21 विश्वासयोग्य दास के तैयार किए गए प्रकाशनों में व्यापार जगत की बेईमानी का बार-बार परदाफाश किया गया है और परमेश्वर के लोगों को खबरदार किया गया है कि वे उसके बहकावे में आकर धन-दौलत के पीछे न भागें। (मत्ती 6:24) हमारे प्रकाशनों में धर्मों पर भी ध्यान दिलाया गया जो शैतान के संगठन का हिस्सा हैं। सन् 1963 की एक प्रहरीदुर्ग में साफ बताया गया कि “महानगरी बैबिलोन” न सिर्फ ईसाईजगत को बल्कि पूरी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म को दर्शाता है। इसलिए जैसे हम इस किताब के अध्याय 10 में सीखेंगे, परमेश्वर के सभी लोगों को, फिर चाहे वे किसी भी देश में रहते हों या किसी भी संस्कृति से हों, झूठे धर्मों से ‘निकल आने’ और उनसे जुड़े काम छोड़कर खुद को शुद्ध करने में मदद दी गयी है।—प्रका. 18:2, 4.
22. पहले विश्व युद्ध के दौरान परमेश्वर के बहुत-से लोगों ने रोमियों 13:1 में दी सलाह के बारे में क्या समझा?
22 शैतान के संगठन के एक और हिस्से यानी राजनीति के बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या सच्चे मसीही देशों के बीच होनेवाले युद्धों और झगड़ों में हिस्सा ले सकते हैं? पहले विश्व युद्ध के दौरान, बाइबल विद्यार्थी समझ गए थे कि मसीह के चेलों को किसी की जान नहीं लेनी चाहिए। (मत्ती 26:52) मगर उनमें से कइयों ने सोचा कि रोमियों 13:1 में बताए “ऊँचे अधिकारियों” की आज्ञा मानने का यह मतलब है कि उन्हें सेना में भरती होना चाहिए, सैनिकों की वर्दी पहननी चाहिए और हथियार भी उठाने चाहिए, मगर जब उनसे दुश्मनों को मार डालने के लिए कहा जाए तो हवा में गोली चलानी चाहिए।
23, 24. (क) दूसरे विश्व युद्ध के दौरान रोमियों 13:1 के बारे में हमारी क्या समझ थी? (ख) किस तरह मसीह के चेलों को और भी सही समझ दी गयी?
23 सन् 1939 में जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो रहा था, तब निष्पक्ष रहने के बारे में प्रहरीदुर्ग के एक लेख में काफी गहराई से चर्चा की गयी। लेख में साफ-साफ बताया गया कि मसीहियों को शैतान की दुनिया के युद्धों और झगड़ों में बिलकुल हिस्सा नहीं लेना चाहिए। यह सलाह सही समय पर दी गयी थी! इसलिए जब उस युद्ध में कई देशों ने खून की नदियाँ बहा दीं तो मसीह के चेले खून के दोष से बच गए। मगर उन्हें रोमियों 13:1 की सही समझ तब भी नहीं थी क्योंकि 1929 से हमारे प्रकाशनों में यह समझाया जाता था कि इस आयत में बताए ऊँचे अधिकारी दुनिया के शासक नहीं बल्कि यहोवा और यीशु हैं।
24 सन् 1962 में पवित्र शक्ति ने मसीह के चेलों को इस बारे में सही समझ दी। उस साल 15 नवंबर और 1 दिसंबर की प्रहरीदुर्ग में रोमियों 13:1-7 पर कुछ खास लेख प्रकाशित किए गए। आखिरकार, यीशु के बताए एक सिद्धांत से परमेश्वर के लोग समझ गए कि उन्हें सरकारों के भी अधीन रहना है, मगर हर मामले में नहीं। यीशु ने कहा था, “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।” (लूका 20:25) अब सच्चे मसीही समझ गए कि ऊँचे अधिकारियों का मतलब इस दुनिया के शासक हैं और मसीहियों को उनके अधीन रहना चाहिए, मगर ऐसे मामलों में नहीं जिनमें उनकी आज्ञा यहोवा की आज्ञा के खिलाफ हो। जब अधिकारी हमें यहोवा की आज्ञा तोड़ने के लिए कहते हैं तो हम भी पुराने ज़माने के प्रेषितों की तरह कहते हैं, “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।” (प्रेषि. 5:29) इस किताब के अध्याय 14 में हम और भी सीखेंगे कि परमेश्वर के लोगों ने निष्पक्ष रहने के सिद्धांत को कैसे माना।
25. आप क्यों एहसानमंद हैं कि पवित्र शक्ति परमेश्वर के राज के बारे में सही समझ देती रही है?
25 ज़रा वे सारी बातें याद कीजिए जो पिछले सौ सालों के दौरान मसीह के चेलों को राज के बारे में सिखायी गयी थीं। हमने सीखा कि परमेश्वर के राज की हुकूमत स्वर्ग में कब शुरू हुई और यह राज कितनी अहमियत रखता है। हमें साफ समझ मिली है कि वफादार लोगों को दो तरह की आशा है, एक स्वर्ग में जीने की और दूसरी धरती पर। हमने यह भी सीखा कि हम दुनिया के अधिकारियों के अधीन रहने के बावजूद कैसे परमेश्वर के वफादार रह सकते हैं। खुद से पूछिए, ‘अगर यीशु मसीह धरती पर मौजूद अपने विश्वासयोग्य दास को राह नहीं दिखाता, उन्हें ये सारी अनमोल सच्चाइयाँ समझने में मदद नहीं देता और फिर उन्हें ये सच्चाइयाँ दूसरों को सिखाने का बढ़ावा न देता तो क्या मैं एक भी सच्चाई जान पाता?’ यह कितनी बड़ी आशीष है कि मसीह और पवित्र शक्ति हमें राह दिखा रहे हैं!
a एक किताब के मुताबिक उस आयत में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “मदद” किया गया है उसका मतलब है “राह दिखाना।”
b इससे पहले माना जाता था कि वह दर्शन रोमी साम्राज्य के गैर-ईसाई धर्मों और रोमन कैथोलिक चर्च के बीच होनेवाले युद्ध की तरफ इशारा करता है।
c जून 1880 की प्रहरीदुर्ग में इस बात की तरफ इशारा किया गया कि 1,44,000 जन पैदाइशी यहूदी होंगे जो 1914 तक मसीही बन जाएँगे। मगर उसी साल बाद में एक लेख में नयी समझ दी गयी, जो इस बारे में आज हमारी समझ से काफी मिलती-जुलती थी।