गीत 102
‘कमज़ोरों की मदद करें’
1. हैं कितनी कमज़ोरियाँ
हम इंसानों में।
फिर भी याह करता है प्यार
और रहम हम पे।
मायूस यहाँ कई,
मन जिनका है दुखी।
इन पे प्यार बरसाएँ हम,
जैसे याह करे।
2. हमको जो मज़बूत दिखें,
शायद हों कमज़ोर।
याह को है इनसे भी प्यार,
भरता इनमें ज़ोर।
हम अपनी बातों से,
इनको तसल्ली दें।
गर इनके आँसू बहें,
प्यार से हम पोंछें।
3. ना कमज़ोरों को कभी
दोषी ठहराएँ।
प्यार से जब इनकी सुनें,
हौसला ये पाएँ।
माँ जैसे हम इन्हें
प्यार से दिलासा दें।
दूजे का गम सीने में
हम महसूस करें।
(यशा. 35:3, 4; 2 कुरिं. 11:29; गला. 6:2 भी देखें।)