सफल माता-पिता कैसे बन सकेंगे
“मैं आप से कहता हूँ कि एक सफल माता या पिता बनने में क्या अन्तर्गत है,” पाँच बच्चों के पिता, रेमन्ड कहता है, “खून, परिश्रम, आँसू और पसीना।
रेमन्ड की पत्नी पूरे मन से सहमति देती है। लेकिन वह आगे कहती है: “आज बच्चों का पालन-पोषण करना आसान नहीं लेकिन जब आप उन्हें जिम्मेदार प्रौढ़ व्यक्तियाँ बनते हुए देखेंगे, यह सचमुच संघर्ष के योग्य है।”
बच्चों का पालन-पोषण कभी-भी पूर्ण रूप से चिन्ता के बिना नहीं हुआ है। फिर भी, आज, कई माता-पिताओं के लिए बच्चों का पालन-पोषण बहुत कष्टप्रद लग रहा है। “मेरे अनुसार आज एक माता या पिता होना मेरे माता-पिता के समय से अधिक कठिन है क्योंकि जीवन अधिक उलझा हुआ बन गया है,” ऐसे एलेन कहती है, जो ४० वर्ष की है और एक किशोर की माता है। “आप हमेशा यह नहीं जानते कि कब सख्त और कब सदय बनना है।”
एक सफल माता या पिता क्या है?
एक सफल माता या पिता वह है जो अपने बच्चे का इस तरह पालन-पोषण करता है कि, वह बच्चे के पास एक जिम्मेदार वयस्क बनने का हर अवसर हो, जो सक्रिय रूप से यहोवा की उपासना करता रहेगा और मनुष्य के लिए प्रेम प्रदर्शित करता रहेगा। (मत्ती २२:३७-३९) यद्यपि, दुःख की बात है कि सभी बच्चे ज़िम्मेदार वयस्क बनने में अपना कर्त्तव्य नहीं निभाते। क्यों नहीं? जब ऐसा होता है, क्या वह हमेशा माता-पिता की गलती है?
एक उदाहरण पर ध्यान दें। एक इमारती ठेकेदार के अधिकार में शायद सब से उत्तम रूपरेखाएं और इमारती सामग्रियाँ उपलब्ध होंगी। लेकिन परिणाम क्या निकलेगा अगर वह ठेकेदार उन रूपरेखाओं के अनुसार कार्य करने से इन्कार करे, कदाचित मूर्खतापूर्ण सुगम मार्गों को अपनाता हो या उत्कृष्ट चीजों के बदले घटिया सामग्रियों का उपयोग करने की अनुमति दें? क्या सम्पूरित इमारत दोषपूर्ण या उपयोग करने के लिए खतरनाक नहीं होगी? लेकिन मान लो कि वह ठेकेदार कर्त्तव्यनिष्ठ था और रूपरेखाओं का पालन करने में और उत्कृष्ट सामग्रियों का उपयोग करने में भरसक कोशिश की थी। क्या अब वह समुचित इमारत के मालिक की यह जिम्मेदारी नहीं होगी कि उसे एक समुचित दशा में बनाए रखें? क्या उसे यह भी ज़िम्मेदारी नहीं कि उन उत्कृष्ट सामग्रियों को उखाड़कर उन के स्थान पर घटिया चीज़ों का उपयोग ना करें?
एक प्रतीकात्मक रीति से माता-पिता एक निर्माण कार्य में अन्तर्ग्रस्त हैं। वे उनके बच्चों में उत्तम व्यक्तित्वों की रचना करना चाहते हैं। इसके लिए बाइबल सब से उत्तम रूपरेखा देती है। वे उत्कृष्ट सामग्रियों को जैसे, “सोना, चान्दी, बहुमोल पत्थर,” शास्त्रों में मजबूत विश्वास, ईश्वरीय बुद्धि, आत्मिक विवेक, वफादारी और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए मूल्यांकन के बराबर समझे गए हैं।—१ कुरिन्थियों ३:१०-१३; भजन १९:७-११ से तुलना करें, नीतिवचन २:१-६; १ पतरस १:६, ७.
वह बच्चा भी, जैसे वह उम्र में बढ़ता है, वह स्वयं उस में एक सच्चा ईमानदार व्यक्तित्व बनाने के लिए अधिकाधिक जिम्मेदारी लेता है। वह वही रूपरेखा, परमेश्वर के वचन, का अनुकरण करने और वह उत्कृष्ट सामग्रियों का उपयोग करने के लिए, जैसे उसके माता-पिता ने किया था, इच्छुक होना चाहिए। अगर वह बच्चा एक जवान वयस्क बन जाने पर ऐसा करने से इन्कार करता है या इतने उत्कृष्ठ रचना कार्य को उखाड़ देता है, तो परिणामी विपत्ति के लिए वही उत्तरदायी है।—व्यवस्थाविवरण ३२:५.
यह मुश्किल क्यों है?
आज एक सफल माता या पिता कम से कम दो कारणों से मुश्किल है। पहली बात तो यह है कि दोनों माता-पिता और बच्चों असम्पूर्ण हैं और गलतियाँ करते हैं। बहुधा, इस में वह सम्बद्ध है जिसे बाइबल पाप कर्म कहती है और पाप करने की प्रवृत्ति वंशागत है।—रोमियों ५:१२.
दूसरा कारण यह है: बढ़ते बच्चे केवल उनके माता-पिता से नहीं बल्कि दूसरी बातों से भी प्रभावित होते हैं। सम्पूर्ण समाज का, एक बच्चे की मान्यताओं और जीवन के विषय में के दृष्टिकोण पर असर पड़ता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमारे दिनों से सम्बन्धित पौलुस की भविष्यवाणी माता-पिताओं के लिए महत्त्व रखती है। उन्होंने कहा: “आपको इस तथ्य का सामना करना ही है: इस संसार का अन्तिम काल समस्याओं का एक समय होगा। मानव और कुछ नहीं बल्कि पैसों से और खुद से प्रेम रखेंगे; वे अक्खड़, घमण्डी और अपमानजनक होंगे; माता-पिता के लिए आदर नहीं, कृतज्ञता नहीं, धर्मपरायणता नहीं, स्वाभाविक स्नेह नहीं, वे उनकी कठोरता में अप्रशम्य होंगे, चुगलखोर, असंयमी और उग्र होंगे सभी अच्छाइयों से अपरिचित, विश्वासघातियाँ, सट्टेबाज़ों, अभिमान से भरे हुए होंगे। वे ऐसे मनुष्य होंगे जो परमेश्वर के स्थान पर सुख रखेंगे, ऐसे मनुष्य जो धर्म का ऊपरी रूप बनाए रखते हैं, लेकिन वे उसकी सच्चाई के विरुद्ध एक प्रचलित खण्डन है। ऐसे मनुष्यों से परे रहो।” (तिरछा टाइप हमारा।)—२ तीमुथियुस ३:१-५, न्यू इंग्लिश बाइबल।
हमारे वर्तमान दिन के समाज के वस्त्र का इतने दोषपूर्ण धागों से बुनने के कारण क्या यह कोई आश्चर्य की बात है कि कुछ माता-पिता नैराश्य से हार मान लेते हैं और करीब-करीब बच्चे के पालन-पोषण की आशा छोड़ देते हैं? वर्ष १९१४ का स्मरण कीजिए। उस विनाशक वर्ष ने एक परिवर्तन देखा और वह परिवर्तन उन्नति के लिए नहीं था। तब से आए दो विश्वयुद्धों ने इस पृथ्वी पर से शांति से अधिक कुछ उठा ले गए हैं। आज समाज उस नैतिक बल से रहित है जिसकी उसे बच्चों को उत्तरदायी प्रौढ़ता के लिए तैयार कराने के लिए जरूरत है। असल में, धार्मिक हृदय रखनेवाले माता-पिता एक ऐसा सामाजिक वातावरण का सामना कर रहे हैं जो उन मान्यताओं के विरोध हैं, जो वे उनके बच्चों को सिखाना चाहते हैं।
इस तरह माता-पिताओं को उनकी टीम में बहुत कम सहायक हैं। अतीत में, वे सार्वजनिक विद्यालयों से, उनकी बच्चों को वही बुनियादी मूल्यों को जो वे घर में बहुमूल्य समझते हैं, सिखाने में मदद की अपेक्षा करते थे। हालाँकि, अब नहीं।
शर्ली जिस ने १९६० में उच्चविद्यालय से उपाधि प्राप्त की थी कहती है, “आज के जवानों पर के दबाव अलग हैं। जब मैं उच्चविद्यालय में थी, तब हमारे बीच नशीली दवाइयाँ या स्वच्छन्द लैंगिक सम्बन्ध नहीं थे। २० साल पहले चुपके से सिगरेट का एक कश लगाना भी बुरा समझा गया था। जब मेरी सब से बड़ी बेटी १९७७ से १९८१ तक उच्चविद्यालय में थी, तब नशीली दवाइयों की एक बड़ी समस्या थी। अब नशीली दवाइयाँ न्यूनतर विद्यालयों में भी प्रवेश कर चुकी हैं। मेरी सब से छोटी बेटी जो १३ वर्ष की है, गए दो वर्षों से स्कूल में इस नशीली दवाइयों का दबाव का सामना कर रही है।”
साथ ही, अतीत में, माता-पिता दादा-दादी या नाना-नानी, रिश्तेदार और पड़ोसियों से “जॉनी” के आचरण के देख-रेख करने की अपेक्षा रख सकते थे। लेकिन एक बार फिर यह भी बदल गया। और यह कहने में दुःख है कि एक बड़ी संख्या के परिवारों में दो-सदस्यों का एक दल भी नहीं है; बच्चे का पालन-पोषण का सम्पूर्ण बोझ माता या पिता, किसी एक के कँधों पर आ जाता है।
माता-पिता के लिए सफल रूपरेखा
हालाँकि बच्चे का पालन-पोषण आज अधिक कठिन है माता-पिता सफल हो सकते हैं, अगर वे उस परीक्षित सहायता का उपयोग करेंगे—बाइबल। परमेश्वर का वचन बच्चे का पालन-पोषण के लिए आपकी रूपरेखा या क्रिया-विधि की योजना बन सकता है। ठीक जैसे एक बुद्धिमान ठेकेदार एक इमारत के निर्माण कार्य को उसकी सफल पूर्ति की ओर ले जाने के लिए एक रूपरेखा का अच्छा उपयोग करता है, आप भी आपके बच्चे को जिम्मेदार वयस्क बनने के लिए उनका पालन-पोषण करने में एक मार्गदर्शक के रूप में बाइबल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सच है कि बाइबल केवल सफल पितृत्व के लिए एक नियम-पुस्तक के रूप में अभिप्रेत नहीं था, लेकिन उस में माता-पिता और बच्चों के लिए स्पष्ट सलाह अवश्य हैं। यह सिद्धान्तों का एक खज़ाना भी है जिन्हें लागू करने पर आपको एक माता या पिता होने के नाते लाभ पहुँचाएंगे।—व्यवस्थाविवरण ६:४-९.
उदाहरणार्थ, डायान के बारे में विचार कीजिए। जब उसका १४-वर्षीय बेटा, एरिक्, छोटा था वह “एक भावप्रवण बच्चा था, जिससे बात करना मुश्किल था,” ऐसे वह कहती है। उसने उस समय बाइबल की इस कहावत में छिपी बुद्धिमानी का अनुभव किया: “मनुष्य के मन की युक्ति [एक व्यक्ति का लक्ष्य या उद्देश्य] अथाह तो है, तौभी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है।” (नीतिवचन २०:५) कुछ बच्चों में उनकी भावनाएं और उनके विचार—उनके वास्तविक उद्देश्य—उनके हृदय में एक गहरे कुए के पानी के समान स्थित है। एरिक ऐसा था। उन विचारों को बाहर निकालने के लिए माता या पिता की ओर से कठिन परिश्रम की जरूरत है। डायान याद करती है, जब वह स्कूल से आता तब बातें करने के लिए वह उतावना नहीं रहता। इसलिए यह जानने के लिए मैंने समय बिताया कि वह स्कूल में क्या सामना कर रहा था। कभी-कभी वह सचमुच अपने दिल की गहराई में क्या सोच रहा था यह व्यक्त करने से पहले मुझे अक्षरशः घंटों तक एरिक से बात करनी पड़ी।”
एक मार्गदर्शक के रूप में बाइबल का उच्च मूल्य का कारण सरल है: यहोवा परमेश्वर उसका रचयिता है: वह हमारा सृष्टिकर्ता भी है। (प्रकाशितवाक्य ४:११) वह हमारा स्वभाव जानता है और वह ‘हमें हमारे लाभ के लिए शिक्षा देने और जिस मार्ग से हमें जाना है, उसी मार्ग पर हमें ले चलने की इच्छा रखता है। यह सत्य है, चाहे एक व्यक्ति एक माता या पिता या एक बच्चा हो। (यशायाह ४८:१७; भजन १०३:१४) यद्यपि कुछ लोगों को एक बेहतर माता या पिता बनने के लिए औरों से अधिक परिश्रम करने होंगे, शास्त्रों में प्रस्तुत मार्गदर्शन का अनुसरण करने के द्वारा सभी बच्चों का पालन-पोषण करने में बेहतर बन सकेंगे।
एक व्यक्ति के रूप में प्रत्येक के साथ बर्ताव करें
जैसे कि हम वयस्क एक “परिपूर्ण” माता या पिता नहीं, वैसे ही अच्छे बच्चे किसी निर्धारित मानवीय नियमों की माला अनुसरण करने से उत्पन्न नहीं किए जा सकते। हर बच्चे का अपना एक व्यक्तित्व होता है, और प्रत्येक बच्चे के साथ, एक व्यक्ति के रूप में बर्ताव किया जाना चाहिए। बाइबल इसे मानती है। एक बच्चे का किसी दूसरे के साथ नकारात्मक रूप से तुलना करने से दूर रहने में माता-पिता की मदद करने के लिए निम्नलिखित बाइबल सलाह में पाया गया सिद्धान्त उपयुक्त है: “पर हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।”—गलतियों ५:२६; ६:४.
जॉन, जो दो बच्चों का पिता है, पाता है कि उपर्युक्त शास्त्रीय सलाह उसे उसके बच्चों में एक दूसरे के बारे में या कभी दूसरे परिवारों के बारे में उनके दृष्टिकोण में सन्तुलन बनाए रखने के लिए मदद देती है। “दूसरे परिवारों के पास जो है, या वे जो करते हैं, उसकी ओर नहीं देखने के लिए मैं अपने बच्चों को प्रोत्साहित करता हूँ” जॉन स्पष्ट करता है। “हमारे पास हमारा अपना पारिवारिक स्तर है जिसे बनाए रखना चाहिए।”
“बालकपन से” शिक्षा दें
बच्चों के पालन-पोषण में धर्म एक हिस्सा कब बनना चाहिए? गॅरी, जिसका बेटा अब बालविहार में आरम्भ ही किया है, कहता है, “आप जितनी भी जल्दी शुरू करें वह बहुत जल्दी नहीं।” गॅरी विश्वास करता है कि बच्चों को, स्कूल में जाना आरम्भ करने से पहले ही स्थानीय मसीही सभा में सच्चे मित्र होने चाहिए यह एक हेतु है जिसके कारण गॅरी और उसकी पत्नी इवान को लगभग उस दिन से मसीही सभाओं में लाते हैं जिस दिन वह पैदा हुआ था। यूनीके ने, एक ऐसी माता जिसकी बाइबल में प्रशंसा की गई है, अपने पुत्र तीमुथियुस के साथ जो किया, उसका गॅरी अनुकरण कर रहा है। तीमुथियुस ने “बालकपन से” शास्त्रीय सिद्धान्तों की प्राथमिक शिक्षाएं सीख लीं।—२ तीमुथियुस १:५; ३:१५.
तीमुथियुस की माँ और नानी ने यह निश्चित किया कि जो विचार उसे बालकपन से प्रभावित कर रहे थे, वे उनके वैयक्तिक विचार नहीं, बल्कि वे जानते थे कि उसे उद्धार के लिए बुद्धिमान बनाने वाली शिक्षाएं यहोवा की है। मसीही प्रेरित पौलुस द्वारा तीमुथियुस को लिखी हुई चिट्ठी बताती है: “पर तू इन बातों पर जो तू ने सीखी हैं और प्रतीति की थी, यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था? और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।”—२ तीमुथियुस ३:१४, १५.
इसलिए लोइस और यूनीके ने तीमुथियुस को, वचन को समझने और जो परमेश्वर के लिखित वचन बताता है, उस पर विश्वास रखने में, मदद दी। इस तरह उसका विश्वास केवल उसके माता-पिता पर आधारित नहीं था बल्कि परमेश्वर के वचन की दैवी बुद्धि में आधारित था। वह मसीही सच्चाई का अनुसरण केवल इसलिए नहीं किया कि उसकी माँ और नानी यहोवा के उपासक थे बल्कि इसलिए कि उसने अपने आप को आश्वस्त किया कि उनके द्वारा उसे जो सिखाया जा रहा था वह वास्तव में सत्य था।
निस्सन्देह, तीमुथियुस ने इस पर भी विचार किया कि उसकी माँ और नानी किस प्रकार के व्यक्तियाँ थे—सचमुच आत्मिक व्यक्तियाँ। वे स्वार्थी लक्ष्यों के लिए उसे धोखा नहीं देंगे या सच्चाई को विकृत नहीं करेंगे; ना ही वे पाखण्डी थे। इसलिए उसने जो बातें सीखीं, उसके बारे में तीमुथियुस को कोई सन्देह नहीं था। और इस में कोई शक नहीं कि एक सक्रिय मसीही के रूप में उसका प्रौढ़ जीवन उसकी विश्वासी माता के हृदय को आनन्दित किया होगा।
जी हाँ, बच्चों का सफल पालन-पोषण कठिन कार्य है किन्तु जैसे कि वह पहले उल्लिखित माँ कह रही थी: “यह संघर्ष के योग्य है।” यह विशेष रूप से तब सत्य है जब माता-पिता अपने बच्चों के बारे में यह कह सकेंगे जो प्रेरित यूहन्ना ने उनके आध्यात्मिक बच्चों को लिखा था: “मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं।”—३ यूहन्ना ४.
[पेज 6 पर बक्स]
इस्राएल में के माता-पिताओं द्वारा अनुसरण किया गया शैक्षिक कार्यक्रम
प्राचीन इस्राएल में अपने छोटे बच्चों को सिखाने और शिक्षा देने के लिए माता-पिता जिम्मेदार थे। वे उनके बच्चों के शिक्षक और मार्गदर्शक भी बन गए। बच्चों के आधुनिक पालन-पोषण के लिए एक समान कार्यक्रम का अनुसरण करना लाभदायक है। इस्राएल का शैक्षिक कार्यक्रम का सारांश जैसे कि नीचे दिया है, प्रस्तुत किया जा सकता है:
१. यहोवा का भय सिखाया गया।—भजन ३४:११.
२. पिता और माता के लिए आदर प्रबोधित किया गया।—निर्गमन २०:१२.
३. मन में, व्यवस्था के और साथ ही यहोवा के कार्यों के बारे में शिक्षण बैठाया गया था।—व्यवस्थाविवरण ६:७-२१.
४. प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए सम्मान पर विशेष बल दिया गया।—लैव्यव्यवस्था १९:३२.
५. आज्ञाकारिता पर ज़ोर दिया गया।—नीतिवचन २३:२२-२५.
६. जीने के लिए आवश्यक व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया।—मरकुस ६:३.
७. पढ़ने और लिखने में शिक्षा दी गई।—यूहन्ना ७:१५.
[पेज 5 पर तसवीरें]
परमेश्वर का वचन बच्चों के पालन-पोषण के लिए एक रूपरेखा या क्रिया-विधि की एक योजना है