छठी विश्व शक्ति –रोम
जब रोमी साम्राज्य राज कर रहा था, उस समय मसीहत्व का प्रारम्भ हुआ। प्राचीन रोम के बारे में बेहत्तर ज्ञान आपको यह समझने में मदद देगा कि यीशु ने किन हालात में प्रचार किया और जब उनके पहिले चेलों ने उस समय के संसार में मसीहत्व फैलाया तब कैसी परिस्थितियाँ थी।
जब यीशु ने जन्म लिया और उनके प्रेरितों ने प्रचार किया तब रोम, बाइबल इतिहास की छठी विश्व शक्ति का राज था। यूनान, इससे पहिले की विश्व शक्ति, ने एक अंतरराष्ट्रिय भाषा दी थी—कोइने अथवा आम यूनानी—जिससे संसार के उस भाग में मसीही प्रशिक्षण दिया जा सकता था। अब रोम ने ऐसे हालात और सड़के प्रदान की जिससे मसीही सत्य को तेज़ी से फैलने में मदद मिली।
रोम, जो एक समय लेटियम, इटेली में एक छोटा शहर था, आगे बढ़कर पुराने बाइबल काल का सबसे महान साम्राज्य बना। शुरु में उसने बढ़कर इटेली के अर्ध-टापू को नियंत्रण में कर लिया। अफ्रीका के उत्तरी किनारे पर उसने शक्तिशाली कार्थेज को पराजित किया। स्पेन, मकिदूनिया और यूनान उसके नियंत्रण में आ गए। फिर उसने ६३ सा.यु.पूर्व में येरूशलेम पर कब्ज़ा किया और ३० सा.यु.पूर्व में मिस्र को रोमी प्रान्त बना लिया। अपनी चर्मसीमा पर यह शक्तिशाली साम्राज्य ब्रिटेन से मिस्र तक और पोरतुगल से मेसोपोटामिया, यानि कि प्राचीन बाबेलाने के देश तक फैला गया था। उसने मध्यभूमि सागर जो मारे नोस्त्रम (हमारा सागर) कहलाता था, के चारों तरफ के देशों को पूर्ण रूप से कब्ज़े में कर लिया था।
उस दूर तक फैले साम्राज्य के क्षेत्र में कई खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। ब्रिटेन में आज हेद्रियन की दीवार देख सकते हैं, स्पेन का सेगोविआ में पानी लाने की शानदार प्रणाली देख सकते हैं, ओरेन्ज में रोमी नाट्यशाला, और आरलेस (दोनों फ्रांस में) की रंगभूमि देख सकते हैं। रोम के पास ओस्तिआ एनटीका के मौन खंडहर में घूम सकते हैं और नेपल्स के दक्षिण में पोम्पेआए के प्राचीन नगर देख सकते हैं। रोम में कोलोसियम में आप उत्तेजित भीड़ का विचार कर सकते हैं और तीतुस के मेहराब को देख सकते हैं जो ७० सा.यु. में येरूशलेम और उसके मंदिर में विनाश का स्मारक है, जिसकी भविष्यवाणी यीशु ने ३५ से अधिक वर्ष पहिले की थी.
प्राचीन रोम में धनी लोगों के बड़ घराने होते थे जिनमें सैकड़ों नौकर और दास होते थे। गरीब बहुमंजिल मकानों में रहते थे जो गन्दी टेढ़ी सड़को पर बने हुए थे। बहुत कम लोग मध्य-वर्ग के कहलाए जा सकते थे। गरीब को विद्रोह से रोकने के लिए सरकार मुफ्त अनाज भत्ता और मनोरंजन का प्रबन्ध करती थी। इस खर्चे को पूरा करने के लिए प्रान्तों से कर लिया जाता था।
रोमी सेना
प्रसिद्ध रोमी सेना कई लश्करों से बनी थी। हर लश्कर, जिसमें ४,५०० से ७,००० आदमी थे जो अपने आप से एक पूरी सेना थी। उसका सेनापति सीधे रूप से सम्राट के प्रति जवाबदेह था। एक लश्कर को ६० शतियों में बाँट दिया जाता था, जिसके अक्सर सौ-सौ आदमी होते थे। यह शती एक शतपति के अधीन होता था जिसे न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन में “सेना का अफसर” कहा गया है। वह एक शतपति ही था जिसके अधीन चार सैनिक थे, जिन्होंने यीशु को मार दिया और जिसने उनकी मृत्यु के समय चमत्कार और हालात देखकर कहा: “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था।” (मत्ती २७:५४; यूहन्ना १९:२३) और वह एक शतपति ही था, कुरनेलियुस, जो पहला खतनारहित गैर-यहूदी था जो मसीही बना।—प्रेरितों के कार्य १०:२२.
लश्कर के अपने झण्डे होते थे, जो लकड़ी अथवा किसी धातु के बने चिन्ह अथवा मूर्तियाँ होती थी और जिनका काम आधुनिक झण्डे जैसे होता था। वे पवित्र माने जाते थे और जान की बाजी लगाकर उसकी रक्षा की जाती थी। एनसाइक्लोपेडिया ब्रिटेनिका कहती है: “रोमी झण्डो को धार्मिक पूजन के साथ रोम के मंदिरों में सुरक्षित रखा जाता था। वह असामान्य बात नहीं थी कि एक सेनापति आज्ञा दे कि उनके झण्डे को दुष्मन के बीच फेंक दिया जाए जिससे उसके सैनिक उत्साहित होकर आगे बढ़े और जो वस्तु शायद पृथ्वी-भर में उनके लिए सर्व पवित्र हो उसे वापस प्राप्त करें।”
रोमी सड़के और पदवी
रोम ने अपने अधीन राष्ट्रों को एक विश्व साम्राज्य में संयुक्त किया। उसने सड़के बनवायी जो पूरे साम्राज्य में जाती थी। और लोग खूब यात्रा करते थे। जरा स्थानों की सूची देखिए जहाँ से ३३ सा.यु. में पिन्तेकुस्त का पर्ब मनाने के लिए लोग यरूशलेम आए हुए थे। वे दूर उत्तरपूर्व में मेदीया से, दूर पश्चिम में रोम और उत्तर अफ्रीका से और बीच के कई स्थानों से आए हुए थे।—प्रेरितों के कार्य २:९-११.
रोमी सड़क बनानेवालों ने जो मार्ग बनाए उन में से कई आज भी उपयुक्त हैं। रोम के दक्षिण में आप पुराने अधियुस के मार्ग पर जा सकते हैं जिस मार्ग से स्वयं प्रेरित पौलुस ने रोम में प्रवेश किया था। (प्रेरितों के कार्य २८:१५, १६) कहा गया है कि रोमी सड़कों ने “भूमि यात्रा के लिए ऐसी सुविधायें दी, रेल के आने तक, जिससे बेहत्तर कोई सुविधा न बनी।”—द वेस्टमिनिस्टर हिस्तोरिकल एट्लेस टू द बाइबल।
अपने दूर तक फैले साम्राज्य पर सत्ता चलाने में कई बार रोमियों ने स्थानीय रीति-रिवाज़ों को बनाए रखा। अतः विभिन्न क्षेत्रों में अधिकारियों को विभिन्न नामों अथवा पदवी से जाना जाता था। मॉर्डन डिस्कवरी एन्ड द बाइबल में ए. रेन्डल शोर्त कहते है कि “माने हुए रोमी इतिहासकार” भी “इन सारे अधिकारियों को उनकी सही पदवी” देने की कोशिश नहीं करते थे। परन्तु वह कहते हैं, बाइबल लेखक लूका इस बात में हमेशा पूर्ण यथार्थता बनाए रखते हैं।” उदाहरण के लिए, लूका हेरोदेस को “टेटरार्क”, हेरोदेस अग्रिप्पा को “राजा” थिस्सलुनीकि अधिकारियों को “पोलिटार्क” और कुप्रुस का राज्यपाल सिरगियुस पौलुस को “प्रोकोन्सल” बताते हैं। (लूका ३:१; प्रेरितों के काम २५:१३; प्रेरितों १७:६; प्रेरितों १३:७; न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन रेफररेन्स बाइबल का फुटनोट देखें) कभी-कभी ऐसा हुआ कि एक सिक्का अथवा शिलालेख मिल जाने से यह प्रमाणित हुआ कि यह बाइबल लेखक ने सही वक्त पर सही पदवी बतायी थी। यह ध्यान और यथार्थता इस बात के प्रमाण है कि किस सच्चाई से बाइबल यीशु मसीह के जीवन और काल के बारे में ऐतिहासिक वृतान्त दती है।a
साम्राज्य और मसीहत्व
रोम में एक उन्नतिशील कलीसिया थी। हो सकता है कि पिन्तेकुस्त के दिन ३३ सा.यु. को येरूशलेम में मसीह धर्म स्वीकार करने के बाद जो लोग रोम लौटे उन्होंने इसे स्थापित किया था। (प्रेरितों २:१०) रोमियों के नाम बाइबल पुस्तक लगभग ५६ सा.यु. के करीब इस कलीसिया को लिखी गई। कुछ समय बाद पौलूस एक कैदी ने नाते रोम आए, और दो वर्ष तक अपने घर में जहाँ वह कैद थे उनसे जो लोग मिलने आते थे उनसे बराबर प्रचार करते रहे। अतः सम्राट का प्रेटोरियन पलटन के सदस्यों ने राज्य का सुसमाचार सुना और “कैसर के घराने” के कुछ सदस्य भी मसीही बने।—फिलिप्पियों १:१२, १३; ४:२२.
बाइबल में रोमी साम्राज्य के रीति-रिवाज, कानून और नियमों का जिक्र अकसर हुआ है। औगूस्तुस की राजाज्ञा से यूसुफ और मरियम बैतलहेम आए, जहाँ यीशु का जन्म हुआ। यीशु ने कहा कि जो कर कैसर माँगता है वह उसे देना उचित है। यहूदी याजकों ने यीशु को मखाने के लिए कैसर के प्रति वफ़ादारी का दिखावा किया। और रोमी कानून के अधीन, मसीही प्रेरित पौलूस ने अपने मुकदमें के लिए कैसर को दुहाई दी। —लूका २:१-६; २०:२२-२५; यूहन्ना १९:१२, १५; प्रेरितों के कार्य २५:११, १२.
एक रोमी सैनिक का कवच—उसका टोप, झिलम, ढाल, पाँवों पर जूते और तलवार—का उदाहरण दिया गया, हमें यह दिखाने के लिए प्रयुक्त हुआ है कि सत्य का मूल्य, उद्धार की आशा, धार्मिकता, विश्वास, सुसमाचार का प्रचार, और परमेश्वर का वचन, शैतान के आक्रमणों के ख़िलाफ़ हमें दृढ़ खड़े रहने के लिए कितने आवश्यक हैं। (इफिसियों ६:१०-१८; १ थिस्सलुनीकियों ५:८) जब पौलुस ने तीमुथियुस से “मसीह यीशु के अच्छे योद्धा” बनने का जिक्र किया, तब वह सु-अनुशासित रोमी सैनिक का उदाहरण दे रहा था। (२ तीमुथियुस २:३, ४) परन्तु मसीही युद्ध देहिक नहीं, आत्मिक था। अतः प्रारम्भिक मसीहियों ने रोमी सेना मे सेवा करने से इन्कार कर दिया। जस्टिन मार्टर (११०-१६५ सा.यु.) ने कहा की मसीहत्वने “हमारे युद्ध के शस्त्रों को बदल दिया—हमारे तलवारों को हल के फाल और हमारे भालों को खेती के शस्त्र बना दिए।” युद्ध सेवा करने से, इन्कार के कारण कई मसीहियों ने अपना जीवन खो दिया।
कैसर
कैसरों के अधीन रोम अपने महिमा के शिखर पर पहुँच गया था। यह बेहतर होगा कि उनमें से कुछेक के बारे में हम विशेष बातों देखें, जैसे जैसे वे बाइबल इतिहास में अर्न्तग्रस्त हुए।
४४ सा.यु.पूर्व में जूल्यस कैसर की हत्या की गई। आखिर में ओकटेवियन अकेले प्रशासक बने। ३० सा.यु.पूर्व में ओकटेवियन ने मिस्र को अपने अधीन कर लिया और वहाँ के यूनानी टोलमेइक राज्य को समाप्त कर दिया। इससे यूनानी विश्वशक्ति का अंत आया जो ३०० साल पहले महान सिकन्दर के समय से बना रहा था।b
२७ सा.यु.पूर्व में ओकटेवियन सम्राट बना। उसने “औगूस्तुस” की पदवी ग्रहण कर ली, जिसका अर्थ है “उँचा किया हुआ, पवित्र”। उसने एक महिने का नाम बदलकर उसे अपने नाम कर लिया, और फरवरी के महीने में से एक दिन ले लिया जिससे अगस्त के उतने ही दिन हो गए जितने जूल्यस कैसर के नाम के महिने में थे। जब यीशु ने जन्म लिया तब औगूस्तुस सम्राट था और उसने १४ सा.यु. तक राज किया।—लूका २:१.
औगूस्तुस के उत्तराधिकारी तिबिरियुस ने १४ से ३७ सा.यु. तक राज किया। तिबिरियुस के राज के पंदरहवें साल में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला प्रचार करने लगा। और उसी के राज के दौरान यीशु ने बपतिस्मा लिया, अपने साढ़े तीन वर्ष की पार्थिव सेवा पूर्ण की, और अपना जीवन बलिदान के रूप में दे दिया। वह तब भी राज कर रहा था जब यीशु के चेलों ने उन दिनों के ज्ञात संसार में मसीहत्व को फैलाने लगे थे।—लूका ३:१-३, २३.
गेयस उर्फ केलिग्युला ने ३७ से ४१ सा.यु. तक राज किया। क्लोडियस (४१-५४ सा.यु.) उसके बाद आया और उसने यहूदियों को रोम से बाहर निकाल दिया जैसे प्रेरितों के कार्य १८:१, २ में लिखा है। बाद में उसकी पत्नी ने उसे ज़हर दे दिया और पत्नी का युवा पुत्र नीरो सिंहासन पर बैठ गया। जुलाई ६४ सा.यु. में रोम में एक भारी आग लगी जिसमें करीब शहर का एक चौथाई भाग नष्ट हो गया। इतिहासकार टेकिटस कहते हैं कि अपने ऊपर से शंका हटाने के लिए, नीरो ने मसीहियों पर आग का दोष लगा दिया, जिन्हें फिर “कुत्तों ने फाड़ खाया और मार दिया” और जिन्हें “आग की सज़ा दी गई और जलाया गया, जिससे दिन की रोशनी ढ़लने के बाद वे रात को उजाला दे सके। इस तमाशें के लिए नीरो ने अपना उद्यान दिया।” इस सताहट के दौरान, पौलूस जिसने येरूशलेम से रोम तक और शायद स्पेन तक प्रचार किया था, दूसरी बार कैद हुआ। शायद ६६ सा.यु. के करीब नीरो ने उसे मार दिया होगा।
दूसरे रोमी सम्राट जिनमें हमें दिलचस्पी है वे हैं वेस्पेसियन (६९-७९ सा.यु.) जिसके राज के दौरान तीतुस ने येरूशलेम का विनाश किया, तीतुस स्वयं (७९-८१ सा.यु.), और उसका भाई (८१-९६ सा.यु.) दोमिटियन जिसने सरकार द्वारा मसीहियों के सताहट को फिर से आरम्भ किया। परम्परा के अनुसार इसी सताहट के दौरान बूढ़े प्रेरित यूहन्ना को पतमुस के दण्ड विषयक टापू भेज दिया गया। वहाँ उन्हें दुष्ट मानवी व्यवस्था के समाप्ति का और उसके बदले आनेवाला परमेश्वर के धर्मयुक्त स्वर्गीय राज्य का रोमांचकारी दर्शन दिया गया, जिसे यूहन्ना ने बाइबल पुस्तक प्रकाशितवाक्य में लेखबद्ध किया। (प्रकाशितवाक्य १:९) मालूम होता है कि यूहन्ना को अगले सम्राट, नरवा, ९६-९८ सा.यु. के राज के दौरान मुक्त किया गया और ट्राजान (९८-११७ सा.यु.) ने राज करना आरम्भ किया, उसके बाद ही उनका सुसमाचार और तीन पत्र पूरे हुए।
रोमी साम्राज्य का पतन
चौथी शताब्दी में सम्राट कॉन्स्टेनटाइन ने निर्णय लिया कि वह लोगों को एक “केथोलिक” अथवा विश्वव्यापी धर्म के अधीन संयुक्त करें। अन्य जातियों के रिवाज़ों और उत्सवों को “मसीही” नाम दिए गए, परन्तु वही पुराना भ्रष्टाचार बना रहा। ३२५ सा.यु. में कोन्स्टेनटाइन नाइसीआ में एक चर्च सभा का अध्यक्ष बना और उसने त्रिएक्य के सिद्धान्त के पक्ष में निर्णय लिया। परन्तु एक सच मसीही बनने के बजाय, बहुत जल्द कोन्स्टेनटाइन ने कारण ढूँढा कि वह अपने सबसे बड़ पुत्र क्रिस्पस और अपनी पत्नी फौस्ता को मार दे।
कोन्स्टेनटाइन ने अपने सरकार को बायसेनटियम स्थानान्तरित किया। जिसको उन्होंने पहले न्यू रोम और फिर कोन्स्टेनटीनोपल (कोन्स्टेनटाइन का नगर) नाम दिया। बोस्परस पर यह नगर जहाँ यूरोप और एशिया का मिलन होता है। पूर्व में ११ शताब्दी तक रोमी साम्राज्य की राजधानी बना रहा, जब तक वह १४५३ में ओटोभेन तुर्कियों के हाथों पराजित हुआ।
वहाँ रोम में, रोमी साम्राज्य का पाश्चत्य भाग ४७६ में पराजित हुआ जब जर्मन उत्तरअधिकार का सेनापति राजा ओडोएसर ने सम्राट को हटा दिया और सिंहासन खाली रह गया। बाद में शारलेमेन ने पाश्चात्य साम्राज्य को फिर बसाने की कोशिश की और ८०० स.ई. में पोप लीओ III ने उसे सम्राट का मुकुट पहनाया। फिर ९६२ सा.यु. में पो जॉन XII ने ओट्टो I को जर्मन राष्ट्र का पवित्र रोमी साम्राज्य के सम्राट का मुकुट पहनाया—एक ऐसी पदवी जिसे मात्र १८०६ में हटाया गया।
परन्तु उस समय तक बाइबल इतिहास की सातवीं और आख़िरी विश्व शक्ति उभरने लगी थी। जैसे भविष्यद्वाणी दी गई थी, यह भी जाती रहेगी, और उसके स्थान पर एक स्थायी सरकार परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य आने वाला है।—प्रकाशितवाक्य १७:१०; दानिय्येल २:४४.
[फुटनोट]
a “ऑल स्क्रिप्चर इस इनस्पायर्ड ऑफ गॉड ॲण्ड बेनिफिशियल,” पृष्ठ ३४०-१ देखें।
b अतः राम के शासन के दौरान इन विश्व शक्तियों के विषय में स्वर्गदूत कह सकता था: “और सात राजा हैं; पांच गिर चुकें हैं (मिस्र, अशुर, बेबिलोन, मिदो-फारसी और यूनानी) और एक अभी है (रोम) और एक (एन्गलो-अम्रीकी) अब तक आया नहीं।”—प्रकाशितवाक्य १७:१०.
[पेज 24 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
रोमी साम्राज्य का विस्तार
ब्रिटेनिया
एटलान्टिक सागर
स्पेन
फ्रांस
इटली
रोम
यूनान
ममध्यभूमि सागर
मिस्र
काला सागर
केस्पियन सागर
टिग्रीस
फ़िरात
येरूशलेम
[पेज 26 पर तसवीरें]
एपीयन मार्ग जिस पर पौलूस ने रोम जाते हुए सफर किया