मृतकों के लिए क्या आशा है?
एक युवा परिवार छुट्टी मनाने के लिए दक्षिणी आफ्रिका के पूर्वी समुद्रतट की ओर यात्रा कर रहा था। पत्नी के माता-पिता दूसरी कार में उनके ठीक आगे जा रहे थे। अचानक एक टायर फट गया। जब वे रास्ते के किनारे उसे बदलने की तैयारी कर रहे थे, एक शराबी ड्राइवर दोनों कारों से टकरा गया। बूढ़ा पुरुष और उसकी पत्नी मर गए। कुछ दिनों के बाद युवा पुरूष मर गया। उसकी पत्नी की पसलियों टूट गयीं और दूसरे चोटों भी लगी। उसका बच्चा मस्तिष्क में चोट लगने से लकवे का शिकार हो गया था।
इस बदनसीब परिवार के लिए कितने दुख की बात थी! जब युवा पत्नी की बहन, कैरोलैन ने, यह समाचार सुना, तब वह स्तब्ध रह गई। इस तरह की घटनाएं सब देशों में होती हैं। दु:खी रिश्तेदार और मित्र बहुधा आश्चर्य करते हैं, ‘क्या मृतक सचमुच मर गए हैं,” या . . .
‘क्या मृतक जीवित हैं?’
लगभग सभी धर्म सिखाते हैं कि प्राण अमर है। इस कारण, उनके अनुयायी विश्वास करते हैं कि जो मर गए हैं वास्तव में मरे नहीं है पर स्वर्ग में, शोधन-स्थान या नरक में जीवित हैं। जैसा अधिकांश गिरजों में सिखाया जाता है, वे जो नरक में हैं भयानक रीति से अनन्त दुःख उठाते हैं। लेकिन क्या वास्तव में एक प्रेमी परमेश्वर अपनी सृजे हुए प्राणीयों पर ऐसा कष्ट पड़ने देगा?—१ यूहन्ना ४:८.
ऐसा लगता है तो नहीं, परन्तु हम कैसे निश्चित हो सकते हैं? निम्नलिखित बाइबल प्रमाण पर सावधानीपूर्वक ध्यान दें: “यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।” (उत्पत्ति २:७) क्या यह प्रेरित विवरण यह बताता है कि पहले मनुष्य, आदम को, प्राण दिया गया था? नहीं, वह एक प्राणी बना, एक जीवित व्यक्ति बना। इस बात की पुष्टि प्रेरित पौलुस करते है, जिसने लिखा: “प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम, जैसे शास्त्र-वचन कहतें हैं, जीवित प्राणी बना।” पौलुस इसे उत्पत्ति से उद्घृत कर रहा था।—१ कुरिन्थियों १५:४५, दि जेरूशलेम बाइबल।
क्या मनुष्य का प्राण मर सकता है? भविष्यद्वक्ता यहेजकेल ने लिखा था: “सभों के प्राण तो मेरे है; जैसा पिता का प्राण, वैसा ही पुत्र का भी प्राण है; दोनों मेरे ही हैं। इसलिए जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा।” (यहेजकेल १८:४, २०; सभोपदेशक ९:५, १०) स्पष्ट है, यदि प्राणी मरता है, तो वह मनुष्य कुछ नहीं जानता, इसलिए दुःख नहीं भोगता। पिन्तेकुस्त ३३ सा.यु. के बाद अपने पहले आम-भाषण में, प्रेरित पतरस ने घोषणा की थी: “परन्तु प्रत्येक मनुष्य [प्राण, न्यू.व.] जो उस भविष्यद्वक्ता [यीशु] की न सुने, लोगों में से नाश किया जाएगा।” इसलिए प्राण मरणशील है।—प्रेरितों के काम ३:२३.
क्या मृतक फिर से जीवित होंगे?
वे सब जो विश्वास करते हैं कि बाइबल सत्य है जानते हैं कि यीशु की मृत्यु हुई थी और तीसरे दिन वह जिलाया गया। (प्रेरितों के काम १०:३९, ४०) यह कैसे हो सका? परमेश्वर के पवित्र आत्मा के द्वारा ऐसा हुआ।
क्या यीशु का पुनरूत्थान एक अपवाद था? नहीं। पौलुस ने कोरिन्थ की मंडली को लिखा था: “मसीह मुर्दों में से जी उठा है और जो सो गए हैं, उन में पहला फल हुआ। क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य [मसीह] ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्थान भी आया।” (१ कुरिन्थियों १५:२०-२२) इसलिये, बहुत से लोग मृतकों में से जिलाए जाएंगे। यीशु ने यह भी कहा था: “इससे अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरूत्थान के लिए जी उठेंगे।” (यूहन्ना ५:२८, २९) यह लाखों व्यक्तियों के पुनरूत्थान का आश्वासन देता है।
यदि ऊपर दी गयी व्याख्या पुनरूत्थान में आपकी दिलचस्पी को बढ़ाती है, तब आप पूछ सकते हैं, ‘पुनरूत्थान किसके लिए है, और कब?’ आइए उन जरूरी प्रश्नों पर विचार करें।