यहोवा के उत्साही गवाह अग्रसर हैं!
यहोवा के पहले-शतक के गवाह निडर और उत्साही सचेष्ट कार्य करनेवाले थे। उन्होंने उत्सुकता से यीशु के समादेश का पालन किया: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।”—मत्ती २८:१९, २०.
पर हम कैसे जानते हैं कि यीशु के प्रारंभिक शिष्यों ने उस समादेश को गंभीरतापूर्वक लिया? अजी, बाइबल की किताब प्रेरितों के काम साबित करती है कि वे यहोवा के उत्साही गवाह थे, और सचमुच अग्रसर थे!
फ़ायदें और अन्य विशेषताएँ
तीसरे सुसमाचार विवरण और प्रेरितों के काम की किताब के बीच भाषा और शैली में समानता एक ही लेखक सूचित करती है—लूका, “प्रिय वैद्य।” (कुलुस्सियों ४:१४) उसकी बेजोड़ विशेषताओं में वे बातचीत और प्रार्थनाएँ हैं, जो प्रेरितों के काम में सँभालकर रखे हैं। इस किताब के लगभग २० प्रतिशत हिस्से में भाषण हैं, उदाहरणार्थ वे भाषण जो पतरस और पौलुस ने सच्चे धर्म की सफ़ाई में दिए थे।
कामों की किताब सामान्य युग लगभग ६१ में रोम में लिखी गयी। प्रत्यक्षतः इसी कारण इस में पौलुस का क़ैसर के सामने पेश होने या सा.यु. लगभग ६४ में नीरो द्वारा मसीहियों पर किए उत्पीड़न का कोई ज़िक्र नहीं किया गया है।—२ तीमुथियुस ४:११.
लूका द्वारा रचित सुसमाचार के जैसे, प्रेरितों के काम थियुफिलुस को संबोधित था। यह विश्वास प्रोत्साहित करने और मसीहियत के फैलाव का विवरण देने के लिए लिखी गयी थी। (लूका १:१-४; काम १:१, २) यह किताब साबित करती है कि यहोवा का हाथ अपने वफ़ादार सेवकों पर था। यह हमें उसके आत्मा के सामर्थ के विषय में अवगत कराती है और ईश्वरीय रूप से प्रेरित भविष्यद्वाणियों पर हमारे भरोसे को सदृढ़ करती है। और प्रेरितों के काम हमें उत्पीड़न सहने की मदद तथा यहोवा के आत्म-त्यागी गवाह होने के लिए प्रेरित करती है और राज्य आशा में हमारा विश्वास बाँधती है।
ऐतिहासिक यथार्थता
पौलुस का साथी होने के नाते, लूका ने उनके सफ़र लिपिबद्ध किए। उसने प्रत्यक्षदर्शियों से भी बातचीत की। जहाँ तक ऐतिहासिक यथार्थता का सवाल है, ये विशेषताएँ और संपूर्ण खोज उसकी रचना को एक ग्रन्थरत्न बनाती हैं।
इसलिए विद्वान् विलियम रामसे कह सका: “लूका पहले दर्जे का इतिहासकार है: उसके तथ्यों का विवरण न केवल भरोसेमंद है, पर वह सच्चे ऐतिहासिक भाव से सम्पन्न है . . . इस लेखक को सबसे महत्तम इतिहासकारों के साथ पहचाना जाना चाहिए।”
पतरस—एक विश्वसनीय गवाह
सुसमाचार घोषित करने का ईश्वर-प्रदत्त कार्य सिर्फ़ यहोवा के पवित्र आत्मा की शक्ति में पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार, जब यीशु के अनुयायी पवित्र आत्मा प्राप्त करेंगे, तब वे यरूशलेम, यहूदिया, और सामरिया में और “पृथ्वी की छोर तक” उसके गवाह बन जाएँगे। सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के अवसर पर, उन में पवित्र आत्मा भर जाता है। चूँकि यह प्रातः सिर्फ़ ९ बजे हैं, वे निश्चय ही मदहोश नहीं, जैसा कि कुछ लोग सोचते हैं। पतरस एक भावोत्तेजक गवाही देता है, और ३,००० व्यक्ति बपतिस्मा लेते हैं। धार्मिक विरोधी राज्य उद्घोषकों को चुप कराने की कोशिश करते हैं, लेकिन प्रार्थना के उत्तर में, परमेश्वर अपने गवाहों को उसका वचन बड़े हियाव से सुनाने के लिए समर्थ करता है। फिर से धमकाए जाने पर, वे प्रत्युत्तर देते हैं: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” काम जारी रहता है, जैसे वे घर-घर जाकर प्रचार करते हैं।—१:१-५:४२.
यहोवा के आत्मा पर निर्भर रहना उसके गवाहों को उत्पीड़न सहने के लिए समर्थ करता है। अतः, विश्वसनीय गवाह स्तिफनुस को पत्थरवाह करके जान से मार डालने के बाद, यीशु के शिष्य तितर-बितर हो जाते हैं, लेकिन इसकी वजह से तो वचन और भी फैलता है। सुसमाचार-प्रचारक फिलिप्पुस सामरिया में अग्रगामी का काम करता है। आश्चर्यजनक रूप से, उस हिंसक उत्पीडक शाऊल तारसी का मन-परिवर्तन हो जाता है। प्रेरित पौलुस के रूप में, वह दमश्क में उत्पीड़न का ताप अनुभव करता है लेकिन यहूदियों के हिंसक षड्यन्त्र से बच निकलता है। थोड़े समय के लिए, पौलुस यरूशलेम में प्रेरितों से संग-साथ करता है और फिर अपनी सेवकाई के काम के लिए निकल पड़ता है।—६:१-९:३१.
यहोवा का हाथ अपने गवाहों पर है, जैसा कि प्रेरितों के काम आगे जाकर दिखाता है। पतरस दोरकास (तबीता) को मृतावस्था से पुनरुत्थित करता है। एक आह्वान के उत्तर में, पतरस क़ैसरिया में कुरनेलियुस नाम व्यक्ति, उसके परिवार और दोस्तों को सुसमाचार प्रचार करता है। यीशु के शिष्य बनने वाले पहले अन्यजातीय व्यक्ति होकर, उनका बपतिस्मा होता है। इस प्रकार “सत्तर सप्ताह” समाप्त होते हैं, और हम सा.यु. सन् ३६ तक पहुँचते हैं। (दानिय्येल ९:२४) उसके थोड़ी देर बाद, हेरोदेस अग्रिप्पा I प्रेरित याकूब को मरवा डालकर पतरस को गिरफ़्तार करवाता है। पर प्रेरित क़ैदखाने से स्वर्गदूत द्वारा रिहाई अनुभव करता है, और ‘यहोवा का वचन बढ़ता और फैलता जाता है।’—९:३२-१२:२५.
पौलुस की तीन मिशनरी यात्राएँ
आशीषें उन लोगों पर बहती हैं जो खुद को परमेश्वर की सेवा में लगाते हैं, जैसा कि पौलुस ने किया। उसकी पहली मिशनरी यात्रा अन्ताकिया, सूरिया, में शुरू होती है। कुप्रुस के द्वीप पर, सिरगियुस पौलुस सूबे (रोमी प्रतिनिधि) और कई अन्य विश्वासी बन जाते हैं। पंफूलिया के पिरगा में, यूहन्ना मरकुस यरूशलेम के लिए निकलता है, लेकिन पौलुस और बरनबास पिसिदिया के अन्ताकिया की ओर जाते हैं। लुस्त्रा में, यहूदी लोग उत्पीड़न उकसाते हैं। हालाँकि उसे पीटने के बाद मुरदा समझकर छोड़ा जाता है, पौलुस ठीक होता है और सेवकाई जारी रखता है। आख़िरकार, वह और बरनबास सूरिया के अन्ताकिया लौट जाते हैं, और इस प्रकार पहली यात्रा पूरी होती है।—१३:१-१४:२८.
अपने पहले-शतक के प्रतिरूप के जैसे, आज का शासी वर्ग पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन से सवालों का समाधान करते हैं। खतना उन “आवश्यक बातों” में शामिल न था, जिन में “मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, परे” रहना शामिल है। (१५:२८, २९) जब पौलुस और बरनबास दूसरी यात्रा शुरू करते हैं, तीमुथियुस उनके साथ चलता है। पार उतरकर मकिदुनिया में आने के आह्वान के बाद, कार्य फ़ौरन शुरू किया जाता है। फिलिप्पी में, प्रचार करने के फलस्वरूप तहलका मच जाता है और उनकी गिरफ़्तारी भी होती है। लेकिन पौलुस और बरनबास एक भूईंडोल के ज़रिए रिहा किए जाते हैं और दरोगा तथा उसके परिवार को प्रचार करते हैं, और ये विश्वासी बन जाते हैं।—१५:१-१६:४०.
यहोवा के सेवकों को उसके वचन के उद्यमी अध्येता होना चाहिए। धर्मशास्त्रों में खोज करनेवाले बिरीया वासी वैसे थे, और पौलुस भी। अथेने के अरियुपगुस पर, वह यहोवा के सृष्टिकर्तृत्व के बारे में गवाही देता है, और कुछ लोग विश्वासी बन जाते हैं। कुरिन्थ में इतनी दिलचस्पी दिखायी जाती है कि वह १८ महीनों तक उस शहर में रहता है। वहाँ रहकर, वह थिस्सलुनीकियों के नाम पहली और दूसरी पत्री लिखता है। सीलास और तीमुथियुस से जुदा होकर, प्रेरित इफिसुस के लिए प्रस्थान करता है, फिर क़ैसरिया के लिए जहाज़ से रवाना होता है, और फिर यरूशलेम की ओर चल देता है। जब वह सूरियाई अन्ताकिया लौट जाता है, तब उसकी दूसरी मिशनरी यात्रा पूरी हो चुकी होती है।—१७:१-१८:२२.
जैसा कि पौलुस ने दिखाया, घर-घर जाकर गवाही देना मसीही सेवकाई का एक अत्यावश्यक हिस्सा है। प्रेरित की तीसरी मिशनरी यात्रा (सा.यु. ५२-५६) अधिकांशतः उसकी दूसरी मिशनरी यात्रा के दौरान भेंट की गयी जगहों को पुनर्भेंट होती है। इफिसुस में, जहाँ वह कुरिन्थियों के नाम पहली पत्री लिखता है, पौलुस की सेवकाई के कारण विरोध उकसाया जाता है। मकिदुनिया में कुरिन्थियों के नाम दूसरी पत्री लिखी जाती है, और जब वह कुरिन्थ में होता है, वह रोमियों को लिखता है। मिलेतुस में, पौलुस इफिसुस के बुज़ुर्गों से मिलता है और उन्हें बताता है कि कैसे उसने उन्हें लोगों के सामने और घर-घर सिखाया था। यरूशलेम आने पर उसकी तीसरी मिशनरी यात्रा पूरी होती है।—१८:२३-२१:१४.
उत्पीड़न निष्फल
उत्पीड़न से यहोवा के विश्वसनीय गवाहों के होंठ सी नहीं जाते। तो जब यरूशलेम के मंदिर में पौलुस के ख़िलाफ़ भीड़ की हिंसा भड़क उठती है, वह हलचल से भरी भीड़ को निडरता से गवाही देता है। उसकी हत्या करने का षड्यन्त्र व्यर्थ किया जाता है जब उसे एक सैन्य रक्षक-दल के साथ क़ैसरिया में फेलिक्स हाकिम के पास भेजा जाता है। दो साल तक पौलुस को बंद रखा जाता है, इसलिए कि फेलिक्स उस रिश्वत के लिए डटा रहता है, जो आता ही नहीं। उसका उत्तराधिकारी, फेस्तुस, क़ैसर को की पौलुस की अपील सुनता है। बहरहाल, रोम के लिए रवाना होने से पहले, प्रेरित राजा अग्रिप्पा के सामने एक भावोत्तेजक सफ़ाई देता है।—२१:१५-२६:३२.
परीक्षाओं से निर्भीक रहकर, यहोवा के सेवक प्रचार करते रहते हैं। यह निश्चय ही पौलुस के संबंध में सच था। क़ैसर को की अपनी अपील की वजह से, सा.यु. लगभग ५८ में लूका के साथ प्रेरित रोम के लिए रवाना हो जाता है। लूसिया के मूरा में, वे दूसरे जहाज़ पर चढ़ जाते हैं। हालाँकि उनका जहाज़ दुर्घटनाग्रस्त होता है, वे मिलिते के द्वीप पहुँचते हैं, और बाद में एक और जहाज़ उन्हें इतालिया ले जाता है। रोम में सैन्य पहरे के बावजूद भी, पौलुस लोगों को भीतर बुलाकर उन्हें सुसमाचार प्रचार करता है। इस क़ैद के दौरान, वह इफिसियों, फिलिप्पियों, कुलुस्सियों, फिलेमोन और इब्रानियों को पत्र लिखता है।—२७:१-२८:३१.
सदैव अग्रसर
कामों की किताब साबित करती है कि परमेश्वर के पुत्र द्वारा शुरू किया गया काम पहले-शतक के यहोवा के गवाहों द्वारा विश्वसनीयता से जारी रखा गया। जी हाँ, परमेश्वर के पवित्र आत्मा की शक्ति में, उन्होंने उत्साह से गवाही दी।
चूँकि यीशु के प्रारंभिक शिष्य परमेश्वर पर प्रार्थनापूर्वक निर्भर रहे, उसका हाथ उन पर था। इस प्रकार हज़ारों लोग विश्वासी बन गए, और ‘सुसमाचार का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।’ (कुलुस्सियों १:२३) सचमुच, दोनों तब और अब, यह साबित हुआ है कि सच्चे मसीही यहोवा के उत्साही, अग्रसर गवाह हैं!
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कुरनेलियुस शतपति: कुरनेलियुस एक सेना अधिकारी, या शतपति था। (१०:१) एक शतपति की सलाना तनख़ाह पदाति की तनख़ाह से पाँच गुना ज़्यादा, या लगभग १,२०० दीनार थी, लेकिन उस से और भी अधिक हो सकती थी। सेवा-निवृत्ति होने पर, उसे पैसों या ज़मीन का अनुदान दिया जाता था। चाँदी के टोप से लेकर किल्ट-समान (मर्दों द्वारा पहना छोटे घाघरे जैसा निचला) वस्त्र, एक महीन ऊनी लबादा और आलंकृत टाँग के कवच तक, उसके सैन्य वस्त्र रंगीन थे। शतपति की कंपनी में सिद्धान्त रूप से १०० आदमी हुआ करते थे, लेकिन कभी-कभी केवल ८० के आस-पास ही होते थे। “इतालियानी नाम पलटन” के लिए रंगरूट प्रत्यक्षतः रोमी नागरिकों और इतालिया के मुक्तदासों में से आया करते थे।
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छत पर प्रार्थना: पतरस दिखावटी नहीं हो रहा था जब उसने छत पर अकेले प्रार्थना की। (१०:९) समतल छत की चारों ओर के मुँडेरे ने संभवतः उसे लोगों की नज़र से छिपा दिया होगा। (व्यवस्थाविवरण २२:८) छत विश्राम करने और शाम के समय गली के शोर से छुटकारा पाने के लिए भी एक जगह थी।
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मानव रूप में तथाकथित देवता: चूँकि पौलुस ने एक लंगडे को स्वस्थ किया, लुस्त्रा वासियों ने सोचा कि देवता मनुष्यों के रूप में प्रकट हुए थे। (१४:८-१८) उस शहर में ज़ीयुस, प्रधान यूनानी देवता, का एक मंदिर था, और उसका पुत्र हर्मीज़, जो देवताओं का दूत था, अपनी वाक्पटुता के लिए प्रसिद्ध था। चूँकि लोगों ने सोचा कि पौलुस हर्मीज़ था, इसलिए कि उसने बोलने में अग्रता ली, उनकी दृष्टि से बरनबास ज़ीयुस था। वहाँ झूठे-देवता की मूर्तियों को फूलों या सरू अथवा देवदार के पत्तों से बनी मालाओं से सम्मानित करने की प्रथा थी, लेकिन पौलुस और बरनबास ने ऐसा मूर्तिपूजक व्यवहार अस्वीकार किया।
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दरोगा विश्वास करता है: जब एक भूईंडोल में क़ैदखाने के दरवाज़े खुल गए और क़ैदियों की बेड़ियाँ खुल गयीं, फिलिप्पी दरोगा खुदखुशी करनेवाला था। (१६:२५-२७) क्यों? इसलिए कि रोमी क़ानून का आदेश था कि दरोगा को फ़रार क़ैदी की सज़ा भुगतनी पड़ती। प्रकट रूप से दरोगा ने खुदखुशी करना पसंद किया, बजाय इसके कि यातना से मौत के घाट उतारा जाए, जो शायद कुछेक क़ैदियों के लिए नियत था। बहरहाल, उसने सुसमाचार स्वीकार किया, और “उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।”—१६:२८-३४.
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क़ैसर को अपील: जन्म से एक रोमी नागरिक होने के नाते, पौलुस का हक़ था कि वह क़ैसर के सामने अपील करे और उस पर रोम में मुकदमा चलाया जाए। (२५:१०-१२) एक रोमी नागरिक को मुकदमे के बग़ैर बाँधा, कोड़ों से मारा या सज़ा दिया नहीं जा सकता था।—१६:३५-४०; २२:२२-२९; २६:३२.
[चित्र का श्रेय]
Musei Capitolini, Roma.
[पेज 31 पर बक्स/तसवीर]
अरतिमिस के मंदिर का रखवाला: पौलुस के प्रचार की वजह से परेशान होकर, सुनार देमेत्रियुस ने दंगा उकसाया। लेकिन शहर के मंत्री ने भीड़ को तितर-बितर किया। (१९:२३-४१) सुनार मंदिर के सबसे पवित्र भाग के चाँदी के छोटे-छोटे मंदिर बनाया करते थे, जिसमें कई-स्तन वाली, जनन-क्षमता की देवी अरतिमिस की मूर्ति रखी जाती थी। अनेक शहर उसके मंदिर का नी·ओ·कोʹरॉस, या ‘मंदिर का रखवाला’ होने के सम्मान के लिए एक दूसरे से मुक़ाबला करते थे।
[पेज 31 पर बक्स/तसवीर]
समुंदर में संकट: जब पौलुस को ले जानेवाले जहाज़ का यूरकुलीन नाम तूफ़ानी हवा की वजह से तोड़-फ़ोड़ हुआ, ‘तब वे कठिनता से डोंगी को वश में कर सके थे।’ (२७:१५, १६) डोंगी एक छोटी नाव थी जिसे आम तौर से एक जहाज़ खींचता था। जहाज़ में ऐसी रस्सियाँ होती थीं जो पेटा के नीचे से घेर ली जा सकती थीं ताकि वह आँधियों के दौरान मस्तूल के प्रचालन द्वारा उत्पन्न खींचाव से बच सके। (२७:१७) इन नाविकों ने चार लंगर उतार दिए और पतवार डाँडों, या चप्पुओं की रस्सियाँ खोल दीं, जो जहाज़ चलाने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। (२७:२९, ४०) सिकंदरिया के जहाज़ के मस्तूल के सिरे पर “दियुसकुरी” (“ज़ीयुस के पुत्र”, न्यू.व.)—कॅस्टर और पॉल्लक्स का चिह्न था, जिन्हें नाविकों के संरक्षक माना जाता था।—२८:११.