प्रधान अधिकारियों की भूमिका
“यह तेरी भलाई के लिए परमेश्वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर।”—रोमियों १३:४.
१, २. ईसाईजगत् में अनेक लोग क्रांतिकारी गतिविधियों में किस तरह उलझ गए हैं?
दो साल पहले लंदन में बिशपों की एक सभा के कारण उत्तेजित होकर न्यू यॉर्क पोस्ट में एक रुष्ट संपादकीय लेख लिखा गया। सभा लैम्बेथ कॉन्फरेंस थी, जिसमें ऐंग्लिकन धर्मसमाज के ५०० से अधिक बिशप उपस्थित हुए थे। यह रोष सम्मेलन द्वारा एक प्रस्ताव के स्वीकृत किए जाने से उत्तेजित हुआ था, जिस में उन लोगों के लिए सहानुभूति व्यक्त की गयी, “जो, बाक़ी सारे उपाय समाप्त करने के बाद, सशस्त्र संघर्ष का मार्ग चुनते हैं, इस तौर से कि यह न्याय प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है।”
२ पोस्ट ने कहा कि यह वास्तव में आतंकवाद का पुष्टांकन था। परन्तु, बिशप महज़ एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति का अनुसरण कर रहे थे। उनकी अभिवृत्ति घाना के उस कैथोलिक पादरी की अभिवृत्ति से बिल्कुल ही अलग न थी, जिसने गुरिल्ला संघर्ष को उपयुक्त बताया कि यह आफ्रिका विमुक्त करने का सबसे शीघ्र, सबसे पक्का, और सबसे विश्वस्त तरीक़ा है; या उस आफ्रिकी मेथोडिस्ट बिशप की अभिवृत्ति से, जिसने “दुःखद अन्त तक विमुक्ति के संघर्ष को जारी रखने” की क़सम खाई; या फिर ईसाईजगत् के उन कई मिशनरियों की अभिवृत्ति से, जिन्होंने एशिया और दक्षिण अमरीका में संस्थापित सरकारों के विरुद्ध बाग़ियों के साथ लड़ाई की है।
सच्चे मसीही ‘अधिकार का विरोध’ नहीं करते
३, ४. (अ) क्रांति को बढ़ावा देनेवाले नाम-मात्र ईसाइयों द्वारा कौनसे सिद्धान्तों का उल्लंघन किया जा रहा है? (ब) एक व्यक्ति को यहोवा के गवाहों के बारे में क्या पता चल गया?
३ पहली सदी में, यीशु ने अपने अनुयायियों के बारे में कहा: “जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।” (यूहन्ना १७:१४) कोई भी तथाकथित मसीही जो क्रांति को बढ़ाता है, वह सचमुच ही इस संसार का हिस्सा है। वह यीशु का अनुयायी नहीं; और ना ही वह “प्रधान अधिकारियों के आधीन” है। (रोमियों १३:१) वह प्रेरित पौलुस की इस चेतावनी की ओर ध्यान देकर भली-भाँति करेगा, कि “जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करनेवाले दण्ड पाएँगे।”—रोमियों १३:२.
४ ईसाईजगत् में अनेकों के विपरीत, यहोवा के गवाहों को सशस्त्र हिंसा से कोई नाता नहीं है। यूरोप में एक आदमी को यही पता हो गया। वह लिखता है: “धर्म और राजनीति ने क्या-क्या उत्पन्न किया है, यह देखकर मैं संस्थापित सामाजिक व्यवस्था को उलट देने के लक्ष्य की ओर समर्पित हो गया। मैं आतंकवादियों के एक समुदाय का सदस्य बन गया और मैं ने हर प्रकार के हथियार चलाने में प्रशिक्षण हासिल की; मैं ने अनेक सशस्त्र ड़कैतियों में हिस्सा लिया। मेरी जान हमेशा ख़तरे में थी। जैसे समय गुज़रता गया, यह ज़ाहिर हुआ कि हम एक हारनेवाली जंग लड़ रहे थे। मैं एक हतोत्साह आदमी बन गया था, जो कि जीवन में पूरी निराशा से अभिभूत हो चुका था। तब एक गवाह ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया। उसने मुझे परमेश्वर के राज्य के बारे में बताया। यह आग्रह करते हुए कि इससे मेरी समय की बरबादी होगी, मैं ने अपनी पत्नी को सुझाया कि वही सुने। उसने ऐसा किया, और एक गृह बाइबल अध्ययन शुरु की गई। आख़िर में, मैं अध्ययन के वक़्त मौजूद रहने के लिए राज़ी हो गया। कोई शब्द उस राहत को बयान नहीं कर सकते, जो मैंने मनुष्यजाति को बुराई की ओर ढकेलनेवाले प्रेरक बल को समझने में महसूस किया। राज्य के इस बढ़िया वादे ने मुझे ज़िन्दगी में एक बल प्रदान करनेवाली आशा और एक लक्ष्य दिया है।”
५. मसीही शान्तिपूर्ण रीति से प्रधान अधिकारियों के अधीन क्यों रहते हैं, और ऐसा कब तक चलता रहेगा?
५ मसीही परमेश्वर और मसीह के राजदूत, या उपराजदूत हैं। (यशायाह ६१:१, २; २ कुरिन्थियों ५:२०; इफिसियों ६:१९, २०) उसी हैसियत से, वे इस संसार की लड़ाइयों में निष्पक्ष रहते हैं। हालाँकि कुछेक राजनीतिक व्यवस्थाएँ आर्थिक रूप से दूसरों से अधिक सफ़ल प्रतीत होती हैं, और कुछेक दूसरों से अधिक स्वतंत्रता देती हैं, फिर भी मसीही किसी व्यवस्था को दूसरी व्यवस्था के ऊपर उन्नत नहीं करते, और न ही किसी व्यवस्था को दूसरे से श्रेष्ठ मानते हैं। वे जानते हैं कि सभी व्यवस्थाएँ अपरिपूर्ण हैं। यह “परमेश्वर की विधि” है कि ये व्यवस्थाएँ उनके राज्य के सत्ता लेने तक अस्तित्व में रहें। (दानिय्येल २:४४) इसलिए, मसीही शान्तिपूर्ण रीति से प्रधान अधिकारियों के अधीन रहते हैं, जबकि वे राज्य का सुसमाचार प्रचार करके दूसरों के अनन्त हित को बढ़ावा देते रहते हैं।—मत्ती २४:१४; १ पतरस ३:११, १२.
नियम का पालन करना
६. अनेक मानवीय नियम अच्छे क्यों हैं, हालाँकि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है”?
६ राष्ट्रीय सरकारें नियमों की व्यवस्थाएँ स्थापित करती हैं, और इन में से अधिकांश नियम अच्छे हैं। इस वास्तविकता का विचार करते हुए, कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है,” क्या हमें आश्चर्यचकित होना चाहिए? (१ यूहन्ना ५:१९) नहीं। यहोवा ने हमारे मौलिक पिता, आदम को एक अन्तःकरण दिया, और सही तथा ग़लत की यही सहज भावना मानवीय नियमों में अनेक रीतियों से प्रतिम्बिबित है। (रोमियों २:१३-१६) प्राचीन बाबेलोन के विधिकर्त्ता, हम्मुराबी ने अपनी विधि-संहिता को इस तरह प्रारंभ किया: “उस समय [उन्होंने] मुझे लोगों के हित को आगे बढ़ाने के लिए नियुक्त किया; हाँ मुझे, हम्मुराबी, धर्मपरायण और ईश्वर से डरनेवाले राजकुमार को देश में न्याय फैलाने के लिए, और दुष्ट तथा बुरे लोगों को नष्ट करने के लिए, ताकि बलवंत लोग कमज़ोरों पर अत्याचार न करें।”
७. अगर कोई नियम तोड़ दें, उसे सज़ा देने का हक़ किसे है, और क्यों?
७ अधिकांश सारकारें कहेंगी कि उनके नियमों का उद्देश्य एक जैसा है: नागरिकों के हित और समाज में सुव्यवस्था को बढ़ावा देना। इसलिए, वे ऐसे समाज-विरोधी कार्य, जैसे कि हत्या और चोरी के लिए सज़ा देते हैं, और ऐसे विनियम लगाते हैं, जैसे गति-सीमा और गाड़ी पार्क करने के नियम। जो कोई जानबूझकर उनके नियम तोड़ते हैं, वे अधिकार के विरोध में पक्ष लेते हैं और “दण्ड पाएँगे।” सज़ा, किस से? यह आवश्यक नहीं कि यह परमेश्वर की ओर से हो। यहाँ अनुवाद किया गया यूनानी शब्द यहोवा की ओर से न्यायदण्ड के बजाय नगर-क़ानून संबंधी कार्यवाई का उल्लेख करता है। (१ कुरिन्थियों ६:७ से तुलना करें।) अगर कोई ग़ैर-क़ानूनी रूप से कार्य करता है, तो उस उच्च अधिकार को उसे सज़ा देने का हक़ है।
८. अगर मण्डली का कोई सदस्य एक गंभीर अपराध करे, तो मण्डली कैसी प्रतिक्रिया दिखाएगी?
८ यहोवा के गवाह मानवीय अधिकारियों का विरोध न करने के विषय में नेकनाम हैं। अगर ऐसा हो भी जाता है कि मण्डली का कोई व्यक्ति नियम भंग करता है, तो मण्डली उसे विधिसम्मत सज़ा से बच निकलने की मदद नहीं करेगा। अगर कोई चोरी करता है, ख़ून करता है, मान-हानि करता है, अपने कर अदा करने में बेईमानी करता है, बलात्कार करता है, धोखेबाज़ी करता है, ग़ैर-क़ानूनी नशीले पदार्थ इस्तेमाल करता है, या किसी अन्य रीति से विधिसम्मत अधिकार का विरोध करता है, तो मण्डली की तरफ़ से उसे कड़ी सज़ा मिलेगी—और जब वह सांसारिक अधिकार द्वारा दण्ड प्राप्त करे, तब उसे यह महसूस नहीं करना चाहिए कि उसे उत्पीड़ित किया जा रहा है।—१ कुरिन्थियों ५:१२, १३; १ पतरस २:१३-१७, २०.
डर का कारण
९. अगर विधिहीन तत्त्वों द्वारा धमकाए जाएँ, तो मसीही उचित रूप से किस की शरण ले सकते हैं?
९ प्रधान अधिकारियों के विषय में पौलुस अपनी चर्चा यह कहकर जारी रखता है: “क्योंकि हाकिम अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिए डर का कारण हैं; सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी।” (रोमियों १३:३) वफ़ादार मसीहियों को नहीं, बल्कि अपराधियों को, जो ‘बुरे काम,’ अपराधिक कार्य करते हैं, अधिकारियों की ओर से आनेवाली सज़ा से डरना चाहिए। जब ऐसे विधिहीन तत्त्वों द्वारा धमकाए जाते हैं, तब यहोवा के गवाह उचित रूप से अधिकारियों से पुलिस या सैन्य संरक्षण स्वीकार कर सकते हैं।—प्रेरितों २३:१२-२२.
१०. यहोवा के गवाहों ने अधिकारियों से किस तरह ‘सराहना पाई’ है?
१० प्रधान अधिकारी के नियमों का पालन करनेवाले मसीही से पौलुस कहता है: “उसकी ओर से तेरी सराहना होगी।” इसी बात की एक मिसाल के तौर से, ब्राज़िल में यहोवा के गवाहों के ज़िला सम्मेलनों के बाद उनके द्वारा प्राप्त कुछ पत्रों पर ग़ौर करें। नगर-निगम के क्रिडा विभाग के अधिपति से यह चिट्ठी मिली: “आपके शान्तिमय आचरण को सर्वोत्तम प्रशंसा मिलनी ही चाहिए। आज की संत्रस्त दुनिया में यह जानना सान्त्वनादायक है, कि अनेक लोग अब भी परमेश्वर में विश्वास करते और उनकी उपासना करते हैं।” नगर-निगम के एक स्टेडियम के निदेशक ने लिखा: “उपस्थित लोगों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद भी ऐसा कोई हादसा रिपोर्ट नहीं किया गया जिस से इस विशेष कार्यक्रम पर धब्बा लग जाए, और यह सब आपके त्रुटिहीन व्यवस्थापन के कारण है।” नगर-प्रमुख के कार्यालय से यह आया: “हम आप को आपकी सुव्यवस्था और अद्भुत, स्वाभाविक अनुशासन पर बधाई देने का यह मौक़ा लेते हैं, और आनेवाले विशेष कार्यक्रमों की सफ़लता के लिए शुभ कामना देते हैं।”
११. क्यों सुसमाचार के प्रचार को किसी भी तरह एक बुरा काम कहा नहीं जा सकता?
११ “अच्छे काम,” ये शब्द उन कार्यों का उल्लेख करता है जो प्रधान अधिकारियों के नियमों के पालन करने में किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, हमारा प्रचार कार्य, जिसे करने का आदेश मनुष्यों ने नहीं, बल्कि परमेश्वर ने दिया है, एक बुरा काम नहीं—यह एक ऐसी बात है जिसे राजनीतिक अधिकारियों को समझना चाहिए। यह एक लोक-सेवा है जो अनुकूल प्रतिक्रिया दिखानेवालों के नैतिक स्तर को सुधारती है। इसलिए, यह हमारी आशा है कि प्रधान अधिकारी दूसरों को सुसमाचार सुनाने के हमारे हक़ का संरक्षण करेंगे। सुसमाचार के प्रचार को क़ानूनी रूप से प्रमाणित करने के लिए पौलुस ने अधिकारियों से निवेदन किया। (प्रेरितों १६:३५-४०; २५:८-१२; फिलिप्पियों १:७) हाल में, यहोवा के गवाहों ने उसी तरह पूर्व जर्मनी, हंगेरी, पोलैंड, रोमेनिया, बेनिन और म्यानमार (बर्मा) में अपने कार्य की क़ानूनी मान्यता के लिए माँग की है और उसे हासिल भी किया है।
‘वह परमेश्वर का सेवक है’
१२-१४. परमेश्वर के सेवक के रूप में प्रधान अधिकारियों ने (अ) बाइबल के समय में और (ब) आधुनिक समय में कैसे कार्य किया है?
१२ उस सांसारिक अधिकार के बारे में बताते हुए, पौलुस आगे कहता है: “वह तेरी भलाई के लिए परमेश्वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योंकि वह तलवार व्यर्थ लिए हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे।”—रोमियों १३:४.
१३ राष्ट्रीय अधिकारियों ने कभी-कभी विशिष्ट तरीक़ों से परमेश्वर के सेवक के रूप में काम किया है। राजा कुस्रू ने ऐसा तब किया, जब उन्होंने यहूदियों को बाबेलोन से लौटने और परमेश्वर के भवन का पुनर्निर्माण करने का आदेश दिया। (एज्रा १:१-४; यशायाह ४४:२८) राजा अर्तक्षत्र परमेश्वर के सेवक तब थे जब उन्होंने एज्रा के साथ उस भवन के निर्माण के लिए एक दान भेजा और बाद में जब उन्होंने नहेमायाह को यरूशलेम का शहरपनाह बाँधने का कार्य सौंप दिया। (एज्रा ७:११-२६; ८:२५-३०; नहेमायाह २:१-८) रोमी प्रधान अधिकार ने इसी प्रकार कार्य किया जब इसने पौलुस को यरूशलेम में एक उत्तेजित भीड़ से बचा लिया, जहाज़ के नष्ट होने के दौरान उसकी रक्षा की, और रोम में खुद अपना एक घर लेने का प्रबन्ध किया।—प्रेरितों २१:३१, ३२; २८:७-१०, ३०, ३१.
१४ उसी तरह, वर्तमान समय में सांसारिक अधिकारियों ने परमेश्वर के सेवक के रूप में कार्य किया है। उदाहरणार्थ, १९५९ में, कॅन्डा के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यहोवा का वह गवाह, जिस पर क्वीबेक प्रान्त में आरोप लगाया गया कि वह राजद्रोही था और मानहानिकारक अपमान-लेख प्रकाशित कर रहा था, निर्दोष था—और इस प्रकार क्वीबेक के उस वक़्त के प्रधान मंत्री, मोरीस दूप्लेसी की पूर्वधारणा को प्रभावहीन कर दिया।
१५. अधिकारी कौनसे सामान्य रूप से परमेश्वर के सेवक के तौर से कार्य करते हैं, और इस से उनको कौनसा हक़ मिलता है?
१५ और, जब तक परमेश्वर का राज्य इस ज़िम्मेदारी को ग्रहण कर न लें, तब तक राष्ट्रीय सरकारें जनता में व्यवस्था बनाए रखने के द्वारा एक सामान्य रूप से परमेश्वर के सेवक के रूप में कार्य करती हैं। पौलुस के अनुसार, यह अधिकार इसी उद्देश्य से ‘तलवार लिए हुए है,’ जो कि सज़ा देने के उसके हक़ का प्रतीक है। आम तौर पर, इस में क़ैद या जुर्माना शामिल होता है। कुछ देशों में इस में शायद मृत्यु दण्ड भी शामिल होगा।a दूसरी तरफ़, अनेक राष्ट्रों ने मृत्यु दण्ड न रखना पसन्द किया है, और यह भी उनका हक़ है।
१६. (अ) चूँकि अधिकारी परमेश्वर का सेवक है, परमेश्वर के कुछेक दासों ने क्या करना उचित समझा है? (ब) कोई मसीही किस प्रकार का रोज़गार स्वीकार नहीं करेगा, और क्यों नहीं?
१६ इस वास्तविकता से, कि प्रधान अधिकारी परमेश्वर का सेवक हैं, यह बात समझ में आती है कि दानिय्येल, तीन इब्री, नहेमायाह, और मोर्दकै किस कारण से बाबेली और फ़ारसी सरकारों में ज़िम्मेदार पद स्वीकार कर सके। इस तरह वे परमेश्वर के लोगों की भलाई के लिए शासन के अधिकार से निवेदन कर सकते थे। (नहेमायाह १:११; एस्तेर १०:३; दानिय्येल २:४८, ४९; ६:१, २) आज, कुछ मसीही भी सरकारी नौकरी करते हैं। पर चूँकि वे इस दुनिया से अलग हैं, वे राजनीतिक पार्टियों में सदस्य नहीं बनते, न ही राजनीतिक पद पाने की कोशिश करते हैं, और ना राजनीतिक संघटनों में नीति-बनानेवाले पद स्वीकार करते हैं।
विश्वास की आवश्यकता
१७. कुछेक ग़ैर-मसीही कौनसी परिस्थितियों की वजह से अधिकार का प्रतिरोध करने के लिए शायद उकसाए जाएँगे?
१७ फिर भी, क्या होगा अगर अधिकार भ्रष्टाचार या अत्याचार को भी बरदाश्त करे? क्या मसीहियों को उस अधिकार के बदले एक ऐसा अधिकार ले आने की कोशिश करनी चाहिए, जो ज़्यादा बेहतर लगे? ख़ैर, सरकारी अन्याय, और भ्रष्टाचार कोई नई बातें तो नहीं हैं। पहली सदी में, रोमी साम्राज्य ने ग़ुलामी जैसे अन्याय प्रोत्साहित किया। इस ने भ्रष्ट अधिकारियों को भी बरदाश्त किया। बाइबल बेईमान महसूल लेनेवालों, एक अधर्मी न्यायी, और घूस की अपेक्षा करनेवाले एक प्रान्तीय शासक के बारे में बताती है।—लूका ३:१२, १३; १८:२-५; प्रेरितों २४:२६, २७.
१८, १९. (अ) यदि सरकार या अधिकारियों की ओर से दुर्व्यवहार या भ्रष्टाचार होता है, तो मसीही किस तरह प्रतिक्रिया दिखाते हैं? (ब) मसीहियों ने व्यक्तियों की ज़िन्दगी को कैसे सुधारा है, जैसे कि एक इतिहासकार की टिप्पणी से और नीचे दिए बॉक्स से सूचित होता है?
१८ मसीही उस समय ही ऐसे दुर्व्यवहार को समाप्त करने की कोशिश कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मिसाल के तौर पर, पौलुस ने ग़ुलामी के अन्त का प्रचार नहीं किया, और ना ही उसने मसीही मालिकों को अपने ग़ुलामों को रिहा करने के लिए कहा। उलटा, उसने ग़ुलामों और ग़ुलाम के मालिकों को एक दूसरे से बरताव करने में मसीही संवेदना दिखाने के लिए कहा। (१ कुरिन्थियों ७:२०-२४; इफिसियों ६:१-९; फिलेमोन १०-१६; और १ पतरस २:१८ भी देखें।) उसी तरह, मसीही किसी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल नहीं हुए। वे “शान्ति का सुसमाचार” सुनाने में बहुत ही व्यस्त थे। (प्रेरितों १०:३६) सामान्य युग के वर्ष ६६ में, रोमी सेना ने यरूशलेम को घेर लिया और फिर हट गए। शहर के विद्रोही रक्षकों के साथ रहने के बजाय, इब्री मसीही यीशु की आज्ञा का पालन करते हुए, ‘पहाड़ों पर भाग गए।’—लूका २१:२०, २१.
१९ प्रारंभिक मसीही ने स्थिति को बदलने की कोशिश नहीं की, और व्यक्तियों को बाइबल सिद्धान्तों का अनुपालन करने की मदद के द्वारा उनकी ज़िन्दगी सुधारने की कोशिश की। इतिहासकार जॉन लॉर्ड ने अपनी किताब, दी ओल्ड रोमन वर्ल्ड में लिखा: “देखने में लोकप्रिय संस्थानों, या सरकारों, या नियमों को बदलने के बजाय, ईसाइयत की मतों पर विश्वास करनेवालों को अच्छे इन्सान बनाना ही उसकी सच्ची जीत मानी जाती थी।” क्या आज मसीहियों को किसी अन्य रीति से बरताव करना चाहिए?
जब सरकार मदद नहीं करेगी
२०, २१. (अ) एक सांसारिक अधिकार भलाई के लिए परमेश्वर का सेवक के तौर से कार्य करने में कैसे रह गया? (ब) सरकार की साँठ-गाँठ के साथ जब उत्पीड़ित किए जाएँ, तब यहोवा के गवाहों को कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
२० सितम्बर, १९७२ में, मध्य आफ्रिका के एक देश में यहोवा के गवाहों के ख़िलाफ़ द्वेषपूर्ण उत्पीड़न शुरु हुआ। हज़ारों की तमाम सम्पत्ति उन से छीन ली गई, और उन्हें पिटाई, यातना और हत्या के साथ साथ अन्य ज़ुल्म सहने पड़े। क्या गवाहों की हिफ़ाज़त करने के लिए प्रधान अधिकारियों ने अपना फ़र्ज़ पूरा किया? नहीं! बल्कि, इसने हिंसा को प्रोत्साहित किया, और इन अहानिकर मसीहियों को अपनी हिफ़ाज़त के लिए पड़ोसी देशों में भाग जाना पड़ा।
२१ क्या यहोवा के गवाहों को गुस्से से ऐसे अत्याचारियों के ख़िलाफ़ विद्रोह करना नहीं चाहिए? नहीं। मसीहियों को इस तरह के अपमान सब्र से सहन करने चाहिए, और यीशु का अनुसरण करके विनम्र रूप से बरताव करना चाहिए: “वह . . . दुःख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।” (१ पतरस २:२३) उन्हें याद हैं कि जब गतसमनी के बाग़ में यीशु को ग़िरफ़्तार कर लिया गया, तब उसने उस शिष्य को डाँटा था, जिस ने उसकी रक्षा के लिए तलवार चलाई थी, और बाद में उसने पुन्तियुस पिलातुस को बताया: “मेरा राज्य इस जगत का कोई भाग नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का भाग होता, तो मेरे सेवक लड़ते, ताकि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता। परन्तु, मेरा राज्य यहाँ का नहीं।”—यूहन्ना १८:३६; मत्ती २६:५२; लूका २२:५०, ५१.
२२. जब आफ्रिका के कुछ गवाहों ने कठोर उत्पीड़न सहा, तब उन्होंने कौनसी उत्तम मिसाल पेश की?
२२ यीशु की मिसाल को याद में रखकर, उन आफ्रिकी गवाहों को पौलुस की सलाह पर अमल करने का साहस था: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो। जहाँ तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियो, अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, ‘पलटा लेना मेरा काम है,’ यहोवा कहता है ‘मैं ही बदली दूँगा।’” (रोमियों १२:१७-१९, न्यू.व.; इब्रानियों १०:३२-३४ से तुलना करें।) हमारे आफ्रिकी भाई हम सब के लिए क्या ही उत्तेजक मिसाल हैं! जब अधिकार ईमानदारी से कार्य करना अस्वीकार करता है, तब भी सच्चे मसीही बाइबल के सिद्धान्तों को त्याग नहीं देते।
२३. कौनसे प्रश्नों पर विचार करना बाक़ी है?
२३ यद्यपि, प्रधान अधिकारी मसीहियों से कैसी अपेक्षा रख सकते हैं? क्या जो माँगें वे उचित रूप से कर सकते हैं, उनकी कोई सीमा है? इस बात पर अगले लेख में विचार किया जाएगा।
[फुटनोट]
a प्राचीन इस्राएल के ईश्वरीय रूप से दिए गए व्यवस्था-नियम में घोर अपराधों के लिए मृत्यु दण्ड शामिल था।—निर्गमन ३१:१४; लैव्यव्यवस्था १८:२९; २०:२-६; गिनती ३५:३०.
क्या आप व्याख्या कर सकते हैं?
◻ कुछेक तरीक़े क्या हैं, जिनको अपनाकर कोई व्यक्ति प्रधान अधिकारियों ‘के ख़िलाफ़ पक्ष ले’ सकता है?
◻ सरकारी अधिकार के संबंध में “परमेश्वर की विधि” क्या है?
◻ अधिकारी किस अर्थ से “डर का कारण” हैं?
◻ मानवीय सरकारें “परमेश्वर के सेवक” के रूप में कैसे कार्य करती हैं?
[पेज 19 पर बक्स]
एक पुलिस अध्यक्ष से चिट्ठी
एक चिट्ठी जिस पर “मिनाज़ जेरेज़ राज्य की लोक सेवा” राज-चिह्न था, ब्राज़िल के वॉचटावर सोसाइटी के शाखा कार्यालय में आई। यह कॉनक्विस्टा नगर के पुलिसाध्यक्ष से थी। क्या कुछ गड़बड़ थी? चिट्ठी को ही समझाने दीजिए। इस में कहा गया है:
“माननीय महोदय:
“इस चिट्ठी के द्वारा अपना परिचय देने में मुझे खुशी होती है। लगभग तीन साल से, मैं मीनाज़ जेरेज़ राज्य के कॉनक्विस्टा नगर का पुलिसाध्यक्ष रहा हूँ। मैं हमेशा अपना काम ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूँ, लेकिन कैदखाने में शान्ति बनाए रखने में मुझे कठिनाई होती थी। हालाँकि उनको कुछेक कामों में प्रशिक्षण दिया जाता था, वहाँ के क़ैदी बेचैन थे।
“कुछ महीने पहले, श्री. ओ—— हमारे नगर में आए और यहोवा के एक गवाह के तौर से अपना परिचय दिया। वह कुछ क़ैदियों को बाइबल सिखाने लगे, उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया और उन्हें पवित्र बाइबल के बारे में बताने के साथ साथ, स्वच्छता और सामाजिक सलीक़ा की बुनियादी बातें समझायी। जिस तरीक़े से इस प्रचारक ने कार्य किया, उस से समर्पण, प्रेम और आत्म-त्याग साफ़ ज़ाहिर हुआ। जल्द ही क़ैदियों का बरताव स्पष्ट रूप से बेहतरी के लिए बदल गया, जिस से देखनेवालों को बेहद हैरत हुई और उन्होंने इसकी क़दरदानी की।
“हमारे क़ैदखाने में जो हुआ, उसका विचार करते हुए, मैं सरकारी तौर पर वॉच टावर बाइबल ॲन्ड ट्रैक्ट सोसाइटी को इत्तला करना चाहता हूँ कि हमारी क़ौम में उस लायक प्रचारक द्वारा किए गए उमदा काम के लिए हम अपनी क़दर व्यक्त करते हैं।”
सरकारी अधिकार के संबंध में, प्रेरित पौलुस ने कहा: “अच्छा काम कर और उसकी ओर से तेरी सराहना होगी।” (रोमियों १३:३) ऊपर दिए गए मामले में यह वाक़ई सच था। परमेश्वर के वचन की काया-पलट कर देनेवाली शक्ति का यह क्या ही सबूत था, कि सुसमाचार ने बस कुछ ही महीनों में वह सब कुछ कर दिखाया जो दण्ड-व्यवस्था बरसों में नहीं कर पाई थी!—भजन १९:७-९.