क्या आप परमेश्वर की करुणा का अनुकरण करेंगे?
“इसलिए प्रिय, बालकों की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो।”—इफिसियों ५:१.
१. दूसरों का अनुकरण करना हम सब के ग़ौर करने का विषय क्यों होना चाहिए?
चाहे यह अच्छे के लिए या बुरे के लिए हो, लेकिन अधिकांश लोग दूसरों की नक़ल करते हैं। हम जिन लोगों के इर्द-गिर्द रहते हैं, और जिनकी हम शायद नक़ल करेंगे, वे हमें काफ़ी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। नीतिवचन १३:२० के प्रेरित लेखक ने चेतावनी दी: “जो बुद्धिमानों की संगति करता है, वह बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों से व्यवहार रखनेवाला बुरी तरह विफल होगा।” (N.W.) तो फिर परमेश्वर का वचन सकारण यूँ कहता है: “बुराई के नहीं, पर भलाई के अनुयायी हो। जो भलाई करता है, परमेश्वर की ओर से है।”—३ यूहन्ना ११.
२. हमें किस का अनुकरण करना चाहिए, और किन रीतियों में?
२ ऐसे आदमी और औरतों के बारे में हमें बढ़िया बाइबलीय मिसाल हैं जिनका हम अनुकरण कर सकते हैं। (१ कुरिन्थियों ४:१६; ११:१; फिलिप्पियों ३:१७) फिर भी, जिस प्रमुख व्यक्ति का हमें अनुकरण करना चाहिए, वह हैं परमेश्वर। इफिसियों ४:३१–५:२ में, उन गुणों और अभ्यासों पर विचार करने के बाद जिन से हमें बचे रहना चाहिए, प्रेरित पौलुस ने हमें ‘करुणामय होने, और अबाध रूप से एक दूसरे के अपराध क्षमा करने’ के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद यह मूल प्रोत्साहन दिया गया: “इसलिए प्रिय, बालकों की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो। और प्रेम में चलो।”
३, ४. परमेश्वर ने अपना कौनसा वर्णन दिया, और उनका एक न्याय्य परमेश्वर होने के विषय पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?
३ परमेश्वर के तरीक़े और गुण क्या हैं जिनका हमें अनुकरण करना चाहिए? उनके व्यक्तित्व और कार्यों के कई पहलू हैं, जैसा कि उस बात से दिखायी देता है जो मूसा को अपना वर्णन देते समय उन्होंने की: “यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष नहीं ठहराएगा, वह पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन पोतों और परपोतों को भी देनेवाला है।”—निर्गमन ३४:६, ७.
४ चूँकि यहोवा “धर्म और न्याय से प्रीति रखता है,” हमें निश्चय ही उनके व्यक्तित्व के इस पहलू को जान लेना और अनुकरण करना चाहिए। (भजन ३३:५; ३७:२८) वह सृष्टिकर्ता हैं, और साथ ही मनुष्यजाति के सर्वोच्च न्यायी और क़ानून देनेवाले हैं, इसलिए वह हर एक की ओर न्याय अभिव्यक्त करते हैं। (यशायाह ३३:२२) यह स्पष्टतः इस से सूचित है जिस तरह उन्होंने न्याय माँगा और अपनी जाति इस्राएल के बीच और बाद में मसीही मण्डली के बीच उसे पूरा करवाया।
ईश्वरीय न्याय पूरा किया गया है
५, ६. इस्राएल के साथ परमेश्वर के व्यवहार में न्याय किस तरह प्रकट था?
५ इस्राएल को अपनी जाति के तौर से चुनते समय, परमेश्वर ने पूछा कि क्या वे ‘निश्चय ही उनकी मानते और उनकी वाचा का पालन करते।’ सीनै पर्वत के सामने एकत्रित, उन्होंने जवाब दिया: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” (निर्गमन १९:३-८) कितनी गंभीर ज़िम्मेदारी! स्वर्गदूतों के ज़रिए, परमेश्वर ने इस्राएलियों को लगभग ६०० नियम दिए जिन्हें रखने के लिए वे, उनके प्रति समर्पित लोग होने के नाते, ज़िम्मेदार थे। अगर कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता, तब क्या? परमेश्वर की विधि के एक विशेषज्ञ ने व्याख्या की: “जो वचन स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया था . . . वह स्थिर रहा और हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का (न्याय के अनुसार, N.W.) ठीक ठीक बदला मिला।”—इब्रानियों २:२.
६ जी हाँ, जो इस्राएली आज्ञा नहीं मानता, उसे ‘न्याय के अनुसार ठीक ठीक बदला मिलता,’ त्रुटिपूर्ण मानवीय न्याय नहीं, लेकिन हमारे सृष्टिकर्ता की ओर से इंसाफ़। परमेश्वर ने न्यायभंग के लिए विविध सज़ाएँ अनुबद्ध की। सबसे ज़्यादा संजीदा सज़ा ‘नाश किया जाना,’ या मृत्युदण्ड था। यह गंभीर आज्ञाभंग पर लागू हुआ, जैसे मूर्तिपूजा, व्यभिचार, अगम्यागमन, पशुगमन, समलिंगकामुकता, बाल-यज्ञ, हत्या, और लहू का दुरुपयोग। (लैव्यव्यवस्था १७:१४; १८:६-१७, २१-२९) इसके अलावा, जिस किसी इस्राएली ने जान-बूझकर, और पश्चातापहीन रूप से ईश्वरीय क़ानून को तोड़ा, वह “नाश किया” जा सकता था। (गिनती ४:१५, १८; १५:३०, ३१) जब इस ईश्वरीय न्याय को पूरा किया जाता था, तब इसका असर अपराधी के वंशजों द्वारा भली-भाँति महसूस किया जा सकता था।
७. परमेश्वर के प्राचीन लोगों के बीच न्याय के कार्यान्वयन के कुछ परिणाम क्या थे?
७ ऐसी सज़ाओं से ईश्वरीय क़ानून तोड़ने की गंभीरता पर बल दिया जाता था। मिसाल के तौर पर, अगर कोई बेटा शराबी और पेटू बन गया, तो उसे परिपक्व न्यायियों के सामने लाना था। अगर उन्होंने पाया कि वह एक जान-बूझकर करनेवाला, पश्चातापहीन अपराधी है, तो उसके माता-पिता को न्याय के कार्यान्वयन में हिस्सा लेना था। (व्यवस्थाविवरण २१:१८-२१) हम में से जो लोग माता-पिता हैं, अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ऐसा करना आसान न था। फिर भी परमेश्वर को पता था कि यह इसलिए आवश्यक था कि बुराई सच्चे उपासकों में फैल न जाए। (यहेज़केल ३३:१७-१९) इसका प्रबन्ध एक ऐसे व्यक्ति ने किया था जिसके बारे में यह कहा जा सकता है: “उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:४.
८. मसीही कलीसिया के साथ परमेश्वर के व्यवहार में न्याय किस तरह दिखायी दी?
८ कई सदियों के बाद परमेश्वर ने इस्राएल की जाति को अस्वीकार किया और मसीही कलीसिया को चुन लिया। लेकिन यहोवा नहीं बदले। वह अब भी न्याय की ओर प्रतिबद्ध थे और उनका वर्णन एक “भस्म करनेवाली आग” के तौर से किया जा सकता था। (इब्रानियों १२:२९; लूका १८:७, ८) इसीलिए पूरी मण्डली में ईश्वरीय भय बैठाने के लिए उनका एक प्रबन्ध अब भी था जिसके अंतर्गत अपराधियों को निष्कासित किया जाता था। उन समर्पित मसीहियों को, जो पश्चातापहीन अपराधी बन चुके थे, निष्कासित करना था।
९. जाति-बहिष्कार क्या है, और इस से क्या पूरा होता है?
९ जाति बहिष्करण में क्या शामिल है? पहली सदी में जिस रीति से एक समस्या से निपट लिया गया, उस में हम एक नसीहत पाते हैं। कुरिन्थ में रहनेवाला एक मसीही अपने पिता की पत्नी के साथ अनैतिकता कर रहा था और उस ने पश्चाताप नहीं दिखाया, इसलिए पौलुस ने निर्दिष्ट किया कि उसे उस मण्डली में से जाति-बहिष्कृत किया जाए। यह परमेश्वर के लोगों की स्वच्छता को सुरक्षित रखने के लिए करना ही पड़ा, इसलिए कि “थोड़ा सा खमीर पूरे गूँधे हुए आटे को खमीर कर देता है।” उसे निष्कासित करने के द्वारा, उसकी बुराई को परमेश्वर और उनके लोग, दोनों, का अनादर करने से रोक दिया जाता। जाति-बहिष्कृत किए जाने की कड़ी ताड़ना से उसे ऐसा धक्का लग सकता है कि वह अपने होश में आ सकता है और उस में तथा मण्डली में परमेश्वर के प्रति उचित भय बैठाया जा सकता है।—१ कुरिन्थियों ५:१-१३; व्यवस्थाविवरण १७:२, १२, १३ से तुलना करें।
१०. अगर कोई जाति-बहिष्कृत किया जाता है, तो परमेश्वर के दासों को कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
१० ईश्वरीय आदेश यह है कि अगर कोई बुरा व्यक्ति निष्कासित किया जाए, तो मसीहियों को ‘उसकी संगति नहीं करनी थी; बरन ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना था।’a वह इस प्रकार परमेश्वर के नियम का आदर करनेवाले और उसके अनुसार चलना चाहनेवाले वफ़ादार व्यक्तियों के साहचर्य से, जिस में मेल-जोल रखना भी शामिल है, अलग किया जाता है। उन में से कुछ लोग निकटतम परिवार के बाहर रिश्तेदार होंगे, जो कि वही घराने के सदस्य नहीं हैं। उन रिश्तेदारों के लिए इस ईश्वरीय आदेश का पालन करना शायद मुश्किल होगा, जिस तरह मूसा की व्यवस्था के अधीन इब्रानी माता-पिता के लिए भी यह आसान न था कि एक बुरे बेटे को मृत्युदण्ड देने में हिस्सा लें। फिर भी, परमेश्वर का आदेश स्पष्ट है; इस प्रकार हम निश्चित रह सकते हैं कि जाति-बहिष्करण न्याय्य है।—१ कुरिन्थियों ५:१, ६-८, ११; तीतुस ३:१०, ११; २ यूहन्ना ९-११; द वॉचटावर, सितम्बर १५, १९८१, पृष्ठ २६-३१; अप्रैल १५, १९८८, पृष्ठ २८-३१ देखें।
११. किसी के जाति-बहिष्कार के सम्बन्ध में परमेश्वर के व्यक्तित्व के विविध पहलू किस तरह प्रकट हो सकते हैं?
११ यद्यपि, यह याद रखें कि हमारा परमेश्वर न सिर्फ़ न्याय्य हैं; वह ‘अति करुणामय और अधर्म और अपराध का क्षमा करनेवाला भी हैं।’ (गिनती १४:१८) उसके वचन में यह स्पष्ट किया जाता है कि एक बहिष्कृत व्यक्ति पश्चाताप कर सकता है, और ईश्वरीय माफ़ी के लिए बिनती कर सकता है। फिर क्या? तजर्बेकार अध्यक्ष उससे मुलाक़ात कर सकते हैं यह प्रार्थनापूर्वक और ध्यानपूर्वक तै करने के लिए कि क्या वह उस अपराध के बारे में पश्चातापी होने का सबूत दे रहा है या नहीं, जिसके कारण वह जाति-बहिष्कृत हुआ था। (प्रेरितों २६:२० से तुलना करें।) अगर ऐसा है, तो उसे मण्डली में बहाल किया जा सकता है, जैसा कि २ कुरिन्थियों २:६-११ में सूचित होता है कि कुरिन्थ के उस आदमी के साथ हुआ। फिर भी, कुछेक निष्कासित व्यक्ति बरसों से परमेश्वर की कलीसिया से दूर रह चुके हैं, तो क्या कुछ किया जा सकता है जिस से उन्हें वापस आने का रास्ता समझने की मदद की जाए?
करुणा से सन्तुलित न्याय
१२, १३. हमारा परमेश्वर का अनुकरण करने में उसके न्याय का अनुकरण करने से कुछ अधिक क्यों शामिल होना चाहिए?
१२ उपर्युक्त बातों में मुख्यतः परमेश्वर के गुणों के एक ही पहलू पर विचार किया गया है, जैसा कि निर्गमन ३४:६, ७ में ज़िक्र किया गया है। परन्तु, उन आयतों में परमेश्वर के न्याय से बहुत अधिक की रूप-रेखा दी गयी है, और जो लोग उनका अनुकरण करना चाहते हैं, वे सिर्फ़ न्याय को लागू करने पर ही ध्यानकेंद्रित नहीं करते। अगर आप सुलैमान की मन्दिर का एक नमूना बना रहे होते, तो क्या आप उसके सिर्फ़ एक ही खम्भे की जाँच करते? (१ राजा ७:१५-२२) नहीं, इसलिए कि उस से तो आपको मन्दिर के प्रकार और भूमिका की एक सन्तुलित तस्वीर बिलकुल ही न मिलती। उसी तरह, अगर हम परमेश्वर का अनुकरण करना चाहते हैं, तो हमें उनके अन्य तरीक़ों और गुणों का भी अनुकरण करने की ज़रूरत है, जैसा कि उनका “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला” होना।
१३ करुणा और माफ़ी परमेश्वर के बुनियादी गुण हैं, जैसा कि हम इस्राएल के साथ उनके व्यवहार से देख सकते हैं। बार-बार किए गए पाप के लिए उन्होंने उनको सज़ा से छूट नहीं दी, फिर भी उन्होंने बहुत ज़्यादा करुणा और माफ़ी दिखायी। “उस ने मूसा को अपनी गति, और इस्राएलियों पर अपने काम प्रगट किए। यहोवा दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है। वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिए भड़का रहेगा।” (भजन १०३:७-९; १०६:४३-४६) जी हाँ, सैंकड़ों सालों के दौरान उनके व्यवहार का एक अनुदर्शी दृष्टिकोण उन वचनों को सच साबित करता है।—भजन ८६:१५; १४५:८, ९; मीका ७:१८, १९.
१४. यीशु ने किस तरह दिखाया कि उसने परमेश्वर की करुणा का अनुकरण किया?
१४ चूँकि यीशु मसीह “[परमेश्वर] की महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है,” हमें अपेक्षा करनी चाहिए कि वह समान करुणा और माफ़ कर देने की इच्छा दर्शाएगा। (इब्रानियों १:३) उसने ऐसा ही किया, जैसे दूसरों की ओर उसके कार्यों से दिखायी देता है। (मत्ती २०:३०-३४) उसने अपने शब्दों से करुणा पर भी ज़ोर दिया जैसा कि हम लूका अध्याय १५ में पढ़ते हैं। वहाँ दिए गए तीन दृष्टान्तों से साबित होता है कि यीशु ने यहोवा का अनुकरण किया, और वे हमें महत्त्वपूर्ण सबक़ देते हैं।
खोए हुए के लिए परवाह
१५, १६. यीशु लूका १५ में लिपिबद्ध दृष्टान्त देने के लिए क्यों प्रेरित हुआ?
१५ वे दृष्टान्त पापियों में परमेश्वर की करुणामय दिलचस्पी की साक्षी देते हैं, और हमारे अनुकरण के लिए एक सुसंगत तस्वीर का सजीव वर्णन करते हैं। इन दृष्टान्तों के दृश्य पर ग़ौर करें: “सब चुंगी लेनेवाले और पापी [यीशु] के पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें। और फ़रीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, कि ‘यह तो पापियों से मिलता है और उन के साथ खाता भी है।’”—लूका १५:१, २.
१६ इस में शामिल सभी लोग यहूदी थे। फ़रीसी और शास्त्री उनका मूसा की व्यवस्था के तथाकथित अत्योपचारिक पालन पर, एक क़िस्म की क़ानूनी धार्मिकता पर गर्व करते थे। फिर भी, परमेश्वर ऐसी स्व-घोषित धार्मिकता से सहमत न थे। (लूका १६:१५) प्रत्यक्ष रूप से, जिन चुंगी लेनेवालों का ज़िक्र हुआ, वे रोम के लिए कर एकत्र करनेवाले यहूदी थे। चूँकि अनेकों ने संगी यहूदियों से अत्याधिक राशि जमा की, चुंगी लेनेवालों का समूह तिरस्कृत था। (लूका १९:२, ८) उन्हें “पापियों” के साथ वर्गीकृत किया जाता था, जिन में अनैतिक लोग, वेश्याएँ भी, शामिल थे। (लूका ५:२७-३२; मत्ती २१:३२) लेकिन यीशु ने शिक़ायत करनेवाले धार्मिक अगुवों से पूछा:
१७. लूका १५ में यीशु का पहला दृष्टान्त क्या था?
१७ “तुम में से कौन है जिस की सौ भेड़ें हों, और उन में से एक खो जाए तो निन्नानवे को जंगल में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे? और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे कांधे पर उठा लेता है। और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठे करके कहता है, मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है। मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।” धार्मिक अगुवा भेड़ों और चरवाहों की संकल्पना को समझ सकते थे, इसलिए कि भेड़ें और चरवाहे एक सामान्य दृश्य थे। परवाह के साथ, चरवाहे ने ९९ भेड़ों को जाने-पहचाने चरागाह में चराने को छोड़कर खोए हुए को खोजने निकला। जब तक कि उसने उसे ढूँढ़ न निकाला, वह खोजता रहा, और डरी हुई भेड़ को उठाकर कोमलता से वापस झुण्ड ले आया।—लूका १५:४-७.
१८. जैसा कि लूका १५ में यीशु के दूसरे दृष्टान्त में विशिष्ट किया गया, आनन्द किस बात पर मनाया गया?
१८ यीशु ने एक और दृष्टान्त दिया: “या कौन स्त्री होगी, जिस के पास दस (द्राखमा, N.W.) सिक्के हों, और उन में से एक खो जाए; तो वह दीया बारकर और घर झाड़ बुहारकर जब तक मिल न जाए जी लगाकर खोजती न रहे? और जब मिल जाता है, तो वह अपने सखियों और पड़ोसिनियों को इकट्ठी करके कहती है, कि ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरा खोया हुआ सिक्का मिल गया है।’ मैं तुम से कहता हूँ, कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने आनन्द होता है।” (लूका १५:८-१०) द्राखमा का मूल्य मज़दूर के लिए तक़रीबन पूरे दिन की कमाई होती थी। उस स्त्री का सिक्का शायद एक कुलागत वस्तु रही होगी, या यह एक ऐसे सेट का एक भाग रहा होगा जिस से गहने बनाए गए होंगे। जब यह खो गया, उसने सिक्के को खोजने की ज़ोरदार कोशिश की, और फिर उसने और उसकी सहेलियों ने आनन्द मनाया। यह हमें परमेश्वर के बारे में क्या बताता है?
स्वर्गीय आनन्द—किस बात पर?
१९, २०. लूका १५ में यीशु के पहले दो दृष्टान्त मुख्यतः किस के बारे में थे, और उन में कौनसा मुख्य मुद्दा बताया गया?
१९ ये दो दृष्टान्त यीशु के बारे में की गयी समालोचना के जवाब में दिए गए थे, जिसने कुछ महीनों पहले अपनी पहचान एक “उत्तम चरवाहा” के तौर से दी थी, जो अपनी भेड़ों के लिए अपना प्राण देता। (यूहन्ना १०:११-१५) फिर भी, दृष्टान्त मुख्य रूप से यीशु के बारे में न थे। शास्त्रियों और फ़रीसियों को जो सबक़ सीखने थे, वे परमेश्वर की मनोवृत्ति और तरीक़ों पर केंद्रित थे। इस प्रकार, यीशु ने कहा कि मन फिरानेवाले पापी के विषय में स्वर्ग में आनन्द होता है। उन धर्मोत्साहियों ने यहोवा की सेवा करने का दावा किया, फिर भी वे उनका अनुकरण नहीं कर रहे थे। दूसरी ओर, यीशु के करुणामय आचरण ने उसके पिता की इच्छा को चित्रित किया।—लूका १८:१०-१४; यूहन्ना ८:२८, २९; १२:४७-५०; १४:७-११.
२० अगर सौ में से एक आनन्द का आधार था, तो दस सिक्कों में से एक सिक्का उस से कहीं अधिक आनन्द का आधार था। आज भी, हमें उस सिक्के को पाने की वजह से आनन्द मना रही उन स्त्रियों के जज़बातों का अहसास हो सकता है! यहाँ भी, सबक़ स्वर्ग पर केंद्रित है, क्योंकि “एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूत” यहोवा के साथ आनन्द मनाते हैं। उस शब्द पर ग़ौर करें: “मन फिरानेवाले।” ये दृष्टान्त असल में मन फिरानेवाले पापियों के बारे में थे। और आप देख सकते हैं कि दोनों में उनके मन फिराव पर आनन्द करने की उपयुक्तता पर ज़ोर दिया गया।
२१. लूका १५ में दिए गए यीशु के दृष्टान्तों से हमें क्या सबक़ सीखने चाहिए?
२१ उन विभ्रान्त धार्मिक अगुवों ने, जो व्यवस्था के बाहरी अनुपालन पर आत्मसन्तुष्ट थे, परमेश्वर का “दयालु, और अनुग्रहकारी, . . . अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला” होने की बात को नज़रंदाज़ किया। (निर्गमन ३४:६, ७) अगर वे परमेश्वर के तरीक़ों और व्यक्तित्व के इस पहलू का अनुकरण कर रहे होते, तो उन्होंने मन फिरानेवाले पापियों के प्रति यीशु की करुणा की क़दर की होती। हमारे बारे में क्या? क्या हम इस सबक़ को अपने मन में लेकर उस पर अमल कर रहे हैं? ख़ैर, यीशु के तीसरे दृष्टान्त पर ग़ौर करें।
मन फिराव और करुणा का अभ्यास
२२. संक्षिप्त रूप से बताएँ, लूका १५ में यीशु का तीसरा दृष्टान्त क्या था?
२२ इसे अकसर खोए हुए बेटे का दृष्टान्त कहा गया है। लेकिन, जब आप इसे पढ़ेंगे तो आप देख सकेंगे कि क्यों कुछ लोग इसे एक पिता के प्रेम का दृष्टान्त समझते हैं। इस में एक परिवार के छोटे बेटे के बारे में बताया गया है, जो अपने पिता से अपनी विरासत ले लेता है। (व्यवस्थाविवरण २१:१७ से तुलना करें।) यह बेटा किसी दूर देश के लिए निकल पड़ता है, जहाँ वह सब कुछ विलासिता में उड़ा देता है, जिस कारण उसे सूअर चराने का काम लेना पड़ता है, और ऐसी गिरी-पड़ी अवस्था में पड़ता है कि वह सूअरों के लिए रखे भोजन के लिए भी तरसने लगता है। आख़िरकार वह अपने होश में आ जाता है और घर लौटने का फ़ैसला कर लेता है, चाहे यह अपने पिता के लिए एक मज़दूर के रूप में ही काम करने के लिए क्यों न हो। जैसे वह घर के पास आता है, उसका पिता उसका स्वागत करने का सकारात्मक क़दम लेता है, यहाँ तक कि उसके लिए एक जेवनार भी आयोजित करता है। बड़ा भाई, जिसने घर रहकर काम किया था, दिखायी गयी करुणा पर बुरा मानता है। लेकिन पिता कहता है कि उन्हें आनन्द मनाना चाहिए इसलिए कि जो बेटा मर गया था, वह अब ज़िन्दा है।—लूका १५:११-३२.
२३. हमें खोए हुए बेटे के दृष्टान्त से क्या सीखना चाहिए?
२३ कुछेक शास्त्रियों और फ़रीसियों को लगा होगा कि उनकी तुलना बड़े बेटे से की जा रही है, उन पापियों के विपरीत जो छोटे बेटे की तरह थे। फिर भी, क्या उन्हें दृष्टान्त का मूल मुद्दा समझ में आया, और क्या हमें समझ में आता है? यह हमारे स्वर्ग के करुणामय पिता के एक अति-विशिष्ट गुण पर प्रकाश डालता है, पापी के हार्दिक मन फिराव और परिवर्तन के आधार पर माफ़ कर देने की उनकी तैयारी। इस से सुननेवालों को मन फिरानेवाले पापियों के उद्धार पर आनन्द से प्रतिक्रिया दिखाने के लिए प्रेरित होना चाहिए था। परमेश्वर इस तरह मामलों को देखते हैं और कार्य करते हैं, और उनका अनुकरण करनेवालों को उसी तरह करना चाहिए।—यशायाह १:१६, १७; ५५:६, ७.
२४, २५. हमें परमेश्वर के कौनसे तरीक़ों का अनुकरण करने की कोशिश करनी चाहिए?
२४ स्पष्ट रूप से, परमेश्वर की सारी गति न्याय की है, इसलिए जो लोग यहोवा का अनुकरण करना चाहते हैं, वे न्याय को मूल्यवान् समझकर उसके यत्न में रहते हैं। फिर भी, हमारे परमेश्वर सिर्फ़ निराकार या अनम्य न्याय से ही प्रेरित नहीं हैं। उनकी करुणा और प्रेम महान है। वह इसे असली मन फिराव पर आधारित माफ़ करने की इच्छा से दिखाते हैं। तो फिर, यह उपयुक्त है कि पौलुस ने हमारा परमेश्वर का अनुकरण करने से हमारा क्षमाशील होना जोड़ दिया: “और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध (अबाध रूप से, N.W.) क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध (अबाध रूप से, N.W.) क्षमा करो। इसलिए प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो, और प्रेम में चलो।”—इफिसियों ४:३२–५:२.
२५ सच्चे मसीहियों ने बहुत समय से यहोवा के न्याय के साथ साथ उनकी करुणा और माफ़ करने की तैयारी का अनुकरण करने की कोशिश की है। हम उन से जितना ज़्यादा परिचित होंगे, इन सम्बन्धों में हमारे लिए उनका अनुकरण करना उतना ही ज़्यादा आसान होना चाहिए। फिर भी, हम इस बात को एक ऐसे व्यक्ति के प्रति किस तरह अमल में ला सकते हैं, जिसे न्याय्यपूर्ण रूप से कड़ी ताड़ना दी गयी है, इसलिए कि वह पाप के मार्ग में चला? आइए देखते हैं।
[फुटनोट]
a “उसके सबसे सामान्य अर्थ में जाति-बहिष्कार एक सुविचारित कार्य है, जिसके द्वारा एक समूह उन लोगों को अपनी सदस्यता के विशेषाधिकारों से वंचित रखता है, जो किसी समय अच्छा नाम रखनेवाले सदस्य थे। . . . मसीही युग में जाति-बहिष्कार का अर्थ निष्कासन बन गया, जिसके द्वारा एक धार्मिक समुदाय अपराधियों को परमप्रसाद, कलीसियाई उपासना, और संभवतः किसी भी प्रकार के सामाजिक संपर्क से वंचित रखता है।”—दी इंटरनॅशनल् स्टॅन्डर्ड बाइबल एन्साइक्लोपीडिया.
आपने क्या सीखा है?
◻ इस्राएल की जाति में और मसीही कलीसिया में परमेश्वर का न्याय किस तरह प्रकट किया गया?
◻ उसके न्याय के साथ साथ, हमें परमेश्वर की करुणा का अनुकरण क्यों करना चाहिए?
◻ लूका १५ में दिए गए तीन दृष्टान्त किस बात से उत्पन्न हुए, और हमें उन से कौनसे सबक़ सीखने चाहिए?
[पेज 12 पर तसवीरें]
सीनै पर्वत (बायीं पृष्ठभूमि) के सामने अर-राहा की समतल भूमि
[चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.
[पेज 11 पर चित्र का श्रेय]
Garo Nalbandian
[पेज 14 पर चित्र का श्रेय]
Garo Nalbandian