आप जीवन की दौड़ में कैसे दौड़ रहे हैं?
“क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।”—१ कुरिन्थियों ९:२४.
१. हमारे मसीही मार्ग की तुलना बाइबल किससे करती है?
अनन्त जीवन की हमारी खोज की तुलना बाइबल एक दौड़ से करती है। अपने जीवन के अंत के निकट, प्रेरित पौलुस ने अपने बारे में कहा: “मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है।” उसने अपने संगी मसीहियों से ऐसा ही करने का आग्रह किया जब उसने कहा: “आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।”—२ तीमुथियुस ४:७; इब्रानियों १२:१.
२. जीवन की दौड़ में हम कौनसी प्रोत्साहनदायक शुरुआत देखते हैं?
२ यह तुलना उचित है क्योंकि एक दौड़ में शुरुआत, निधार्रित मार्ग, और अंत-रेखा, या लक्ष्य होता है। जीवन की तरफ़ हमारी आध्यात्मिक तरक़्क़ी की प्रक्रिया भी ऐसी ही है। जैसे हम ने देखा है, हर साल लाखों की तादाद में लोग जीवन की दौड़ में एक अच्छी शुरुआत करते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले पाँच सालों में, १३,३६,४२९ व्यक्तियों ने समर्पण और पानी में बपतिस्मा के द्वारा इस दौड़ में औपचारिक रूप से शुरुआत की है। ऐसी ज़ोरदार शुरुआत बहुत ही प्रोत्साहनदायक है। बहरहाल, अंत-रेखा तक पहुँचने तक इस दौड़ में लगे रहना ही अहम बात है। क्या आप ऐसा कर रहे हैं?
जीवन की दौड़
३, ४. (क) पौलुस ने दौड़ में गति बरक़रार रखने के महत्त्व पर कैसे ध्यान दिया? (ख) किस तरह कुछ व्यक्तियों ने पौलुस की सलाह नहीं मानी?
३ दौड़ में रहने के महत्त्व पर ज़ोर देने के लिए, पौलुस ने समझाया: “क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।”—१ कुरिन्थियों ९:२४.
४ यह सच है कि प्राचीन खेलों में सिर्फ़ एक ही व्यक्ति इनाम पा सकता था। बहरहाल, जीवन की दौड़ में, हर कोई इनाम के लिए योग्य है। सिर्फ़ यह ज़रूरी है कि हम अंत तक दौड़ में रहें! यह ख़ुशी की बात है कि जैसे प्रेरित पौलुस ने किया, अनेक व्यक्ति अपने जीवन के अंत तक इस मार्ग पर वफ़ादारी से दौड़े हैं। और करोड़ों लोग दौड़ते जा रहे हैं। यद्यपि, कई लोग, अंत-रेखा की तरफ़ आगे बढ़ने में या उन्नति करने में विफल रहे हैं। इसके बदले में, उन्होंने दूसरी चीज़ों को रुकावट डालने दिया है जिसकी वजह से वे दौड़ से बाहर निकल गए हैं या किसी तरह से अयोग्य ठहरे हैं। (गलतियों ५:७) इन सब बातों को हमें यह जाँचने का सबब देना चाहिए कि हम जीवन की दौड़ में कैसे दौड़ रहे हैं।
५. क्या पौलुस जीवन की दौड़ की तुलना एक प्रतियोगी खेल से कर रहा था? व्याख्या करें.
५ यह सवाल पूछा जा सकता है: जब पौलुस ने कहा कि “इनाम एक ही ले जाता है,” तब उसके मन में क्या था? जैसे पहले देखा गया, उसके कहने का अर्थ यह नहीं था कि जीवन की दौड़ में दौड़नेवालों में से केवल एक ही व्यक्ति को अनन्त जीवन का इनाम प्राप्त होगा। प्रत्यक्षतः वैसा हो ही नहीं सकता, क्योंकि अनेकों बार उसने साफ़-साफ़ कहा कि यह परमेश्वर की इच्छा है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो। (रोमियों ५:१८; १ तीमुथियुस २:३, ४; ४:१०; तीतुस २:११) नहीं, वह यह नहीं कह रहा था कि जीवन की दौड़ एक प्रतियोगिता है जिस में हर प्रतियोगी दूसरों को हराने की कोशिश करता है। कुरिन्थियों अच्छी तरह जानते थे कि इस प्रकार की प्रतियोगी आत्मा उनके इस्थिमी खेलों के प्रतियोगियों में थी, और यह खेल उस समय ओलम्पिक खेलों से भी अधिक प्रतिष्ठित थे। तो फिर, पौलुस के मन में क्या था?
६. पौलुस का दौड़नेवाला और दौड़ के विचार-विमर्श के बारे में संदर्भ क्या बताता है?
६ दौड़नेवाले के दृष्टांत का हवाला देते समय, पौलुस मुख्य रूप से स्वयं अपनी उद्धार की प्रत्याशाओं पर विचार-विमर्श कर रहा था। पूर्ववर्ती आयतों में, उसने वर्णन किया कि किस तरह उसने अनेक तरीक़ों से मेहनत तथा परिश्रम किया था। (१ कुरिन्थियों ९:१९-२२) फिर, आयत २३ में, उसने कहा: “मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूं, कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊं।” उसे एहसास था कि सिर्फ़ एक प्रेरित होने के लिए चुने जाने से या दूसरों को प्रचार करने में अनेक साल बिताने की वजह से उसके उद्धार की गारंटी नहीं थी। सुसमाचार की आशिषों में भाग लेने के लिए, उसे सुसमाचार के वास्ते अपनी सामर्थ्य से जितना भी हो सके सब कुछ करना चाहिए। उसे जीतने के इरादे से उतना ही कठिन परिश्रम करते हुए दौड़ना चाहिए, जितना कि इस्थिमी खेलों के पैदल दौड़ में वह दौड़ते समय करता, जहाँ “इनाम एक ही ले जाता है।”—१ कुरिन्थियों ९:२४क.
७. “तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो” के लिए क्या ज़रूरी है?
७ इससे हम काफ़ी कुछ सीख सकते हैं। हालाँकि दौड़ में भाग लेनेवाला हर कोई व्यक्ति जीतना चाहता है, इसे जीतने की प्रत्याशा सिर्फ़ उन्हीं व्यक्तियों को है जिन्होंने पूरी तरह ठान लिया है कि उन्हें जीतना ही है। परिणामस्वरूप, इस दौड़ में सिर्फ़ भाग लेने से ही हमें आत्म-संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए कि हमारे ‘सच्चाई में’ होने की वजह से सब कुछ भला होगा। हम मसीही नाम धारण कर सकते हैं, पर क्या हमारे पास वह मूलभूत गुण है यह साबित करने के लिए कि हम मसीही हैं? मिसाल के तौर पर, क्या हम वे कार्य करते हैं जो एक मसीही को करना चाहिए—मसीही सभाओं में हाज़िर होना, क्षेत्र सेवकाई में हिस्सा लेना, इत्यादि। अगर हाँ, तो यह सराहनीय है, और ऐसी ख़ूब आदतों में हमें लगे रहने की मेहनत करनी चाहिए। तो भी, क्या यह मुमकिन है कि हम अपने कार्यों से और अधिक लाभ ले सकते हैं? मिसाल के तौर पर, क्या हम सभाओं में अपनी टिप्पणियों के ज़रिये भाग लेने के लिए हमेशा तैयार हैं? क्या हम सीखी हुई बातों को अपने निजी जीवन में अमल में लाने का प्रयास करते हैं? क्या हम अपने हुनर के सुधार पर ध्यान देते हैं ताकि क्षेत्र में मिली बाधाओं के बावजूद हम एक पक्की गवाही दे सकें? क्या हम दिलचस्पी दिखानेवालों के यहाँ वापस जाने और गृह बाइबल अध्ययन संचालित करने की चुनौती को स्वीकार करने के लिए इच्छुक हैं? पौलुस ने आग्रह किया, “तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।”—१ कुरिन्थियों ९:२४ख.
सभी बातों में आत्म-संयम दिखाएँ
८. संगी मसीहियों को ‘सभी बातों में आत्म-संयम रखने’ के लिए किस बात ने पौलुस को प्रेरित किया?
८ अपने जीवन काल में, पौलुस ने अनेकों को जीवन की दौड़ में धीमे होते हुए, बहकर दूर जाते हुए, या उसे छोड़ते हुए देखा था। (१ तीमुथियुस १:१९, २०; इब्रानियों २:१) इसलिए उसने बार-बार अपने संगी मसीहियों को याद दिलाया कि वे एक कठिन और स्थायी प्रतियोगिता में हैं। (इफिसियों ६:१२; १ तीमुथियुस ६:१२) उसने दौड़नेवाले का दृष्टान्त आगे बढ़ाते हुए कहा: “हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम [सभी बातों में आत्म-संयम, NW] करता है।” (१ कुरिन्थियों ९:२५क) ऐसा कहने से, पौलुस उस चीज़ की तरफ़ संकेत कर रहा था जिससे कुरिन्थ के मसीही अच्छी तरह वाक़िफ़ थे, अर्थात्, इस्थिमी खेलों के प्रतियोगियों द्वारा किया गया सख़्त प्रशिक्षण।
९, १०. (क) एक सूत्र इस्थिमी खेलों के प्रतियोगियों का विवरण किस तरह करता है? (ख) इस विवरण के बारे में कौनसी बात ख़ास तौर से ग़ौर करने के लायक़ है?
९ यहाँ प्रशिक्षण ले रहे एक प्रतियोगी का एक सजीव विवरण दिया गया है:
“ख़ुशी-ख़ुशी और बिना किसी शिक़ायत के वह ख़ुद को दस महीने के प्रशिक्षण के नियमों और नियंत्रणों के अधीन पेश करता है, जिसके बिना हिस्सा लेना उचित नहीं होगा। . . . उसे अपनी छोटी तक़लीफ़ों, थकान, और तंगियों पर नाज़ है, और वह अपनी सफलता की सम्भावना को छोटी सी भी मात्रा में कम करनेवाली किसी भी चीज़ से ईमानदारी से दूर रहना अभिमान का कारण समझता है। वह दूसरे आदमियों को खाने की चाह के हवाले होते हुए, आराम करते हुए, गुसलख़ाने में आनन्द लेते हुए, ज़िंदगी का मज़ा लेते हुए, देखता है जबकि वह परिश्रम के मारे हाँफ रहा है; लेकिन उसे डाह का ख़याल तक नहीं आता, क्योंकि उसका दिल इनाम पर लगा हुआ है, और सख़्त प्रशिक्षण अनिवार्य है। वह जानता है कि अगर किसी भी बात में या मौक़े पर वह अनुशासन की सख़्ती में ढील छोड़ता है तो अवसर हाथ से निकल जाएगा।”—दी ऍक्स्पोज़िटर्ज़ बाइबल (The Expositor’s Bible), खंड ५, पृष्ठ ६७४.
१० यह टिप्पणी ख़ास दिलचस्पी की है कि प्रशिक्षण ले रहा व्यक्ति आत्म-त्याग के इस सख़्त नित्यक्रम के पालन करने को “अभिमान का कारण समझता है”। दरअसल, दूसरों को ऐशो-आराम का मज़ा लेते हुए देखकर “उसे डाह का ख़याल तक नहीं आता”। क्या हम इससे कुछ सीख सकते हैं? वाक़ई।
११. जीवन की दौड़ में दौड़ते समय कौनसे ग़लत नज़रिये से हमें बचकर रहना चाहिए?
११ यीशु के शब्दों को याद करें कि “चौड़ा है वह फाटक और चाकल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचाता है; और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।” (मत्ती ७:१३, १४) जैसे-जैसे आप ‘सकरे मार्ग’ पर सफ़र करने की कोशिश करते हैं, वैसे-वैसे क्या आप दूसरे मार्ग पर सफ़र करनेवालों की प्रतीत होनेवाली आज़ादी और आराम से ईर्ष्या करते हैं? क्या आप ऐसा महसूस करते हैं कि आप उन वस्तुओं का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं, जिसे अन्य लोग कर रहे हैं, और जो अपने आप में इतनी बुरी नहीं दिखतीं? हमारे लिए ऐसा महसूस करना आसान है अगर हम इस मार्ग का बीड़ा उठाने के कारण को भूल जाएँ। पौलुस ने कहा, “वे तो एक मुरझानेवाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं।”—१ कुरिन्थियों ९:२५ख.
१२. यह क्यों कहा जा सकता है कि लोगों द्वारा चाहा हुआ गौरव और ख़्याति इस्थिमी खेलों में दिए मुरझानेवाले मुकुट के समान है?
१२ इस्थिमी खेल के विजेता को इस्थिमी देवदार या अन्य किसी ऐसे पौधे की एक माला मिलती, जो शायद कुछ दिनों में या हफ़्तों में मुरझा जाती। निस्संदेह, खेल-प्रतियोगी उस नश्वर माला के लिए नहीं बल्कि उसके संग मिलनेवाले गौरव, इज़्ज़त, और ख्याति के लिए संघर्ष करते थे। एक सूत्र बताता है कि जब विजेता घर लौटता, तो उसका एक विजयी वीर की तरह स्वागत किया जाता था। शहर से उसकी शोभायात्रा गुज़रने के लिए अक़सर शहरपनाह गिरा दिए जाते थे, और उसके सम्मान में मूर्तियाँ खड़ी की जाती थीं। तथापि, इन सब के बावजूद, उसका गौरव फिर भी मुरझानेवाला था। आज, थोड़े ही लोग उन विजयी वीरों के बारे में कुछ जानते हैं, और दरअसल अधिकांश लोग तो परवाह ही नहीं करते। जो दुनिया में सामर्थ्य, ख़्याति, और धन पाने के लिए अपना वक़्त, शक्ति, तंदुरुस्ती, और अपनी पारिवारिक ख़ुशी भी त्यागते हैं, पर जो परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं हैं, यह पाएँगे कि उनका भौतिक “मुकुट” उनके जीवन की तरह, जाता रहेग।—मत्ती ६:१९, २०; लूका १२:१६-२१.
१३. जीवन की दौड़ में एक व्यक्ति का जीवन किस तरह एक खेल-प्रतियोगी के जीवन से भिन्न है?
१३ प्रतियोगिता में प्रतियोगी शायद ऊपर वर्णन किए गए प्रशिक्षण की सख़्त ज़रूरतों को स्वीकारने के लिए इच्छुक हों, पर सिर्फ़ सीमित अवधि के लिए। खेल ख़त्म होने पर, वे फिर से अपनी रोज़मर्रा ज़िंदगी में लग जाते हैं। अपना हुनर क़ायम रखने के लिए शायद वे समय-समय पर प्रशिक्षण लें, लेकिन वे सख़्त आत्म-त्याग के उस क्रम का पालन नहीं करते, कम से कम तब तक तो नहीं जब तक अगली प्रतियोगिता न आनेवाली हो। जीवन की दौड़ में भाग लेनेवालों के विषय में ऐसा नहीं है। प्रशिक्षण और आत्म-त्याग उन के लिए जीवन का एक हिस्सा होना चाहिए।—१ तीमुथियुस ६:६-८.
१४, १५. जीवन की दौड़ में भाग लेनेवाले को क्यों लगातार आत्म-संयम रखना चाहिए?
१४ शिष्य और अन्य व्यक्तियों की एक भीड़ को यीशु मसीह ने कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे (या, “उसे अपने आप को ‘ना’ कहना चाहिए,” चार्ल्स बी. विलियम्स अनुवाद) और अपना यातना स्तंभ उठाकर लगातार मेरे पीछे हो ले।” (मरकुस ८:३४, NW) जब हम इस आमंत्रण को स्वीकार करते हैं, हमें “लगातार” करने के लिए तैयार होना चाहिए, इसलिए नहीं कि आत्म-त्याग में कुछ ख़ास खूबी है, परन्तु इसलिए कि एक पल की भूल, फ़ैसले में एक चूक, सब किए कराए पर पानी फेर सकती है, यहाँ तक कि हमारी सदा की ख़ैरियत को ख़तरे में डाल सकती है। आध्यात्मिक तरक़्क़ी अक़सर आहिस्ता होती है, लेकिन हर पल तैयार न होने पर यह तुरन्त रद्द की जा सकती है!
१५ इसके अलावा, पौलुस ने आग्रह किया कि हमें “सब बातों में” आत्म-संयम दिखाना चाहिए, यानी, जीवन के सभी पहलुओं में संगतिपूर्वक ऐसा करना चाहिए। यही समझदारी है क्योंकि अगर प्रशिक्षार्थी अतिसेवन करता है या बिना किसी अंकुश के जीता है, तो झेली हुई उन सब शारीरिक पीड़ा और थकान का क्या फ़ायदा होगा? इसी प्रकार, जीवन के लिए हमारी दौड़ में भी, हमें सभी बातों में आत्म-संयम व्यवहार में लाना चाहिए। एक व्यक्ति मतवालेपन और व्यभिचार जैसे मामलों में शायद अपने आप पर क़ाबू रखे, पर इसका मूल्य घटता है अगर वह घमंडी और झगड़ालू है। और तब क्या अगर वह दूसरों के प्रति सहनशील और कृपालु है, पर अपनी निजी ज़िंदगी में कुछ गुप्त पाप को मन में रखता है? आत्म-संयम को पूरी तरह फ़ायदेमंद होने के लिए, इसे “सभी बातों में” रखना चाहिए।—याकूब २:१०, ११ से तुलना करें.
“बेठिकाने” न दौड़ें
१६. “बेठिकाने” न दौड़ने का क्या अर्थ है?
१६ जीवन की दौड़ में कामयाब होने के लिए ज़रूरी कड़ी मेहनत को देखकर, पौलुस ने आगे कहा: “इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।” (१ कुरिन्थियों ९:२६) “बेठिकाने” शब्द का शाब्दिक अर्थ “अप्रत्यक्ष” (किंग्डम इंटरलीनियर, Kingdom Interlinear), “अलक्षित, अचिह्नित” (लाँघेज़ कॉमॅन्टरि, Lange’s Commentary) है। इसलिए, “बेठिकाने” न दौड़ने का अर्थ यह है कि हर देखनेवाले को ज़ाहिर होना चाहिए कि दौड़नेवाला कहाँ जा रहा है। दी ऐंकर बाइबल (The Anchor Bible) इसका अनुवाद यूँ करती है, “टेढ़े-मेढ़े नहीं चलना।” अगर आप कुछ पदछापों को देखते हैं जो समुद्रतट के इधर-उधर घूमते हैं, समय-समय पर चक्कर काटते हैं, और कभी-कभी पीछे भी जाते हैं, तो आप यह नहीं सोचेंगे कि वह व्यक्ति दौड़ रहा है, पर समझेंगे कि उसे यक़ीनन पता नहीं है कि वह कहाँ जा रहा है। पर अगर आप ऐसी पदछापों को देखते हैं जो एक लंबी, सीधी रेखा में जा रहे हैं, हर पदछाप पिछलेवाले के आगे और दोनों में समान अंतर, तो आप निष्कर्ष निकालेंगे कि यह उस व्यक्ति के पदछाप होंगे जिसे यह पता है कि वह कहाँ जा रहा है।
१७. (क) पौलुस ने किस तरह दिखाया कि वह “बेठिकाने” नहीं दौड़ रहा था? (ख) इस सम्बन्ध में हम पौलुस का अनुकरण किस तरह कर सकते हैं?
१७ पौलुस का जीवन साफ़-साफ़ बताता है कि वह “बेठिकाने” नहीं दौड़ रहा था। उसके पास यह साबित करने के लिए काफी सबूत थे कि वह एक मसीही सेवक और एक प्रेरित था। उसका एक ही उद्देश्य था, और इसे पाने के लिए उसने ज़िंदगी भर प्रबलता से परिश्रम किया। वह ख़्याति, सामर्थ्य, दौलत, या आराम, से कभी नहीं बहका, हालाँकि वह शायद इन चीज़ों में से किसी को भी हासिल कर सकता था। (प्रेरितों २०:२४; १ कुरिन्थियों ९:२; २ कुरिन्थियों ३:२, ३; फिलिप्पियों ३:८, १३, १४) अपनी जीवन-चर्या को मुड़कर देखते समय, आप किस तरह की रेखा देखते हैं? सीधी रेखा जिसकी दिशा सही है या ऐसी एक रेखा जो बेमक़सद घूमती है? क्या इसका कोई सबूत है कि आप जीवन की दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं? याद रखिए, हम इस दौड़ में, मानो, सिर्फ़ दौड़ने के वास्ते नहीं हैं, बल्कि अंत-रेखा तक पहुँचने के लिए हैं।
१८. (क) हमारे ‘हवा पीटने’ की तुलना किससे की जा सकती है? (ख) ऐसे मार्ग पर चलना क्यों ख़तरनाक है?
१८ एक और खेलकूद स्पर्धा से तुलना करते हुए, पौलुस ने आगे कहा: “मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।” (१ कुरिन्थियों ९:२६ख) जीवन के लिए हमारी प्रतियोगिता में, हमारे अनेक दुश्मन हैं, जिस में शैतान, दुनिया, और हमारी अपरिपूर्णता सम्मिलित है। एक प्राचीन मुक्केबाज़ की तरह, सही जगह पर लगाए गए मुक्कों द्वारा हमें उन्हें मारने के क़ाबिल होना चाहिए। ख़ुशी की बात यह है कि यहोवा परमेश्वर हमें प्रशिक्षित करता है और इस लड़ाई में हमारी मदद करता है। अपने वचन, बाइबल-आधारित प्रकाशन, और मसीही सभाओं में वह हमें शिक्षा देता है। बहरहाल, अगर हम बाइबल और प्रकाशन पढ़ते हैं और सभाओं में उपस्थित होते हैं, पर सीखी हुई बातों पर अमल नहीं करते, तो क्या हम ‘हवा पीटते हुए,” अपना प्रयास बेकार नहीं कर रहे हैं? ऐसा करना हमें एक ख़तरनाक स्थिति में डाल देता है। हम सोचते हैं कि हम सामना कर रहें हैं और इस प्रकार हम में सुरक्षा की झूठी भावना आ सकती है, लेकिन हम अपने दुश्मनों को पराजित नहीं कर रहे हैं। इसलिए शिष्य याकूब ने चेतावनी दी: “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।” जिस तरह ‘हवा पीटने’ से हमारे दुश्मन कमज़ोर नहीं होंगे, उसी तरह “केवल सुननेवाले” बनने से यह निश्चित नहीं होगा कि हम परमेश्वर की इच्छा कर रहे हैं।—याकूब १:२२; १ शमूएल १५:२२; मत्ती ७:२४, २५.
१९. हम किसी भी रीति से निकम्मे न ठहरें, इसे किस तरह निश्चित किया जा सकता है?
१९ आख़िरकार, पौलुस ने हमें अपनी कामयाबी का राज़ बताया: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।” (१ कुरिन्थियों ९:२७) पौलुस की तरह, हमें अपनी अपरिपूर्ण देह पर क़ाबू पाना चाहिए, इसके बजाय कि हम उसे अपने पर क़ाबू पाने दें। हमें जिस्मानी झुकाव, अरमान, और ख़्वाहिशों को मिटा देने की ज़रूरत है। (रोमियों ८:५-८; याकूब १:१४, १५) ऐसा करना कष्टकर हो सकता है, चूँकि ‘मारना कूटना’ का शाब्दिक अर्थ ‘आँख के नीचे मारना’ (किंग्डम इंटरलीनियर, Kingdom Interlinear) है। क्या शरीर की अभिलाषाओं के सामने हार मानने और मर जाने से, मानो, एक आँख पर नील लेकर जीना बेहतर नहीं है?—मत्ती ५:२८, २९; १८:९; १ यूहन्ना २:१५-१७ से तुलना करें.
२०. हम जीवन की दौड़ में किस तरह दौड़ रहे हैं इसकी जाँच अब करना क्यों इतना अत्यावश्यक है?
२० आज, हम दौड़ की अंत-रेखा के क़रीब आ रहे हैं। इनाम दिए जाने का वक़्त क़रीब है। अभिषिक्त मसीहियों के लिए, यह वह ‘इनाम’ है, ‘जिस के लिए परमेश्वर ने उन्हें मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।’ (फिलिप्पियों ३:१४) बड़ी भीड़ के लिए, यह परादीस पृथ्वी पर अनन्तकालीन जीवन है। चूँकि दाँव पर इतना कुछ है, आइए हम पौलुस की तरह ठान लें, कि हम “किसी रीति से निकम्मा” न बनें। आइए हम सब इस आदेश पर गंभीरतापूर्वक विचार करें: “तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।”—१ कुरिन्थियों ९:२४, २७.
क्या आपको याद है?
▫ मसीही के जीवन की तुलना एक दौड़ से करना क्यों उचित है?
▫ किस तरह जीवन की दौड़ एक पैदल दौड़ से भिन्न है?
▫ हमें आत्म-संयम ‘सभी बातों में’ और लगातार क्यों दिखाना चाहिए?
▫ कैसे एक व्यक्ति “बेठिकाने” नहीं दौड़ता है?
▫ क्यों सिर्फ़ ‘हवा पीटना’ ख़तरनाक है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
विजेता की माला, और साथ ही गौरव और इज़्ज़त, एक मुरझानेवाली चीज़ है